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❁ вɪѕмɪʟʟααнɪʀʀαнмαռɪʀʀαнєєм
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*▣_ शहादत ए हुसैन रज़ि _▣
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*※ मोहर्रम की हक़ीक़त ※*
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*▣__ सबसे पहले बात यहां से चलती है यह महीना मुअज्ज़म व मोहतरम है या मनहूस ? बाज़ लोग इसे मनहूस समझते हैं और वजह इसकी यह है कि इनके नज़दीक शहादत बहुत बुरी और मनहूस चीज़ है और चूंकि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत इसमें हुई है इसलिए इसमें कोई तकरिबात और खुशी का काम शादी निकाह वगैरह नहीं करते ।*
*▣_इसके बरअक्स मुसलमानों के यहां यह महीना मोहतरम , मोअज्जम और फजी़लत वाला है । मोहर्रम के मानी ही मोहतरम मोअज्जम और मुकद्दस के हैं ।आम तौर पर यह ख्याल किया जाता है कि इस महीने को इसलिए फजीलत मिली कि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत इसमें हुई , यह गलत है । इस महीने की फजी़लत इस्लाम से भी पहले से है ।*
*▣_बनी इसराईल को हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ फिरौन से इसी दिन में निजात हुई , इस नियामत के अदाएं शुक्र के तौर पर इस दिन के रोज़े का हुक्म हुआ और भी बहुत सी फजीलत की चीजें इसमें हुई , अलबत्ता यह कहेंगे कि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत में ज्यादा फजी़लत इसलिए हुई कि एसे फजीलत वाले माह में वाक़ई हुई ।*
*▣_ जब से यह साबित हुआ कि यह महीना और दिन अफज़ल है तो इसमें नेक काम बहुत ज्यादा करने चाहिए। निकाह वगैरह खुशी की तक़रिबात इसमें ज्यादा करनी चाहिए, इससे शादी में बरकत होगी लेकिन यह बुरी बात इसलिए समझी जाती रही है कि बहुत दिनों से यह गलत बातें कूट कूट कर दिल में भरी हुई है 100 साल का कुफ्र भरा हुआ जल्दी से नहीं निकलता, वो निकलते ही निकलता है ।*
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*▣ मोहर्रमुल हराम- फज़ाइल व मसाइल ▣*
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*※ 9-10 मोहर्रम का रोज़ा-※*
*▣_ सही बुखारी में हजरत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जनाबे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम मदीना तैय्यबा में तशरीफ लाए तो यहूद को देखा कि वह रोज़ा रखा करते हैं। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- तुम रोज़ा क्यों रखते हो?*
*"_कहने लगे यह बहुत अच्छा दिन है, इस दिन में हक़ ताअला ने बनी इसराईल को उनके दुश्मन फिरौन से निजात दी थी इसलिए हजरत मूसा अलैहिस्सलाम ने इस दिन का रोज़ा रखा ।*
*▣_यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि हम बनिसबत तुम्हारे हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की मुवाफक़त के ज्यादा हक़दार हैं।*
*"_फिर आप आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने खुद भी रोज़ा रखा और सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को भी इस दिन रोज़े का हुक्म दिया ।*
*®_ सही बुखारी_,*
*▣_ सही मुस्लिम में हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि :- रमजान के बाद अफज़ल रोज़ा मोहर्रम का है और फर्ज़ नमाज़ के बाद अफज़ल नमाज़ तहज्जुद की नमाज़ है ।*.
*®_ सही मुस्लिम,*
*▣_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हयात ए तैयबा में जब भी आशूरा का दिन आता आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम रोज़ा रखते लेकिन वफात से पहले जो आशूरा का दिन आया आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने आशूरा का रोज़ा रखा और साथ ही यह भी फरमाया 10 मोहर्रम को हम भी रोज़ा रखते हैं और यहूद भी रोज़ा रखते हैं जिसकी वजह से उनके साथ हल्की मुशाबहत पैदा हो जाती है, इसलिए अगर मैं आइंदा अगले साल जिंदा रहा तो सिर्फ आशूरा का रोज़ा नहीं रखूंगा बल्कि उसके साथ एक रोज़ा और मिलाऊंगा, 9 मोहर्रम का रोजा भी रखूंगा ताकि यहूदियों के साथ मुशाबहत खत्म हो जाए ।*
*▣_लेकिन अगले साल आशूरा का दिन आने से पहले हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल हो गया और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को इस पर अमल का मौक़ा नहीं मिला । लेकिन चूंकि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने यह बात इरशाद फरमा दी थी इसलिए सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने आशूरा के रोज़े में इस बात का अहतमाम किया और 9 या 11 मोहर्रम का एक रोज़ा और मिला कर रखा और इसको मुस्तहब क़रार दिया और तन्हा आशूरा का रोज़ा रखने को हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इरशाद की रोशनी में मकरूहे तंज़ीह और खिलाफ औला क़रार दिया ।*
*▣_ रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इस इरशाद में हमें एक सबक और मिला कि – गैर मुस्लिमों के साथ अदना मुसाबहत भी हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पसंद नहीं फरमाई हालांकि वो मुशाबहत किसी बुरे और नाजायज़ काम में नहीं थी बल्कि एक इबादत में मुशाबहत थी कि इस दिन जो इबादत वो कर रहे हैं उसी दिन हम भी वहीं इबादत कर रहे हैं, लेकिन आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इसको भी पसंद नहीं फरमाया। क्यों ? इसलिए कि अल्लाह ताला ने मुसलमानों को जो दीन अता फरमाया है वह सारे दीनों से मुमताज़ है ।*
*▣_जब इबादत ,बंदगी और नेकी के काम में भी नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने मुशाबहत पसंद नहीं फरमाई तो और कामों में मुसलमान अगर उनकी मुशाबहत अख्त्यार करें तो कितनी बुरी बात होगी ।*
*"_अगर ये मुशाबहत जानबूझकर इस मक़सद से अख्तियार की जाए कि उन जैसा नज़र आऊं तो यह गुनाह ए कबीरा है।*
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*※ 10 मोहर्रम में पेश आने वाले वाक़्यात ※*
*▣_ १ हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा की मकबूलियत,*
*◈२_ फिरौन से हजरत मूसा अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम की निजात,*
*◈३_ कश्ती ए नूह अलैहिस्सलाम इसी दिन जोदी पहाड़ पर ठहरी ,*
*◈४_ हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम इसी दिन मछली के पेट से बाहर आए ,*
*◈५_हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम का कुएं से निकलना,*
*◈६_हजरत ईसा अलैहिस्सलाम की विलादत और आसमान पर उठाया जाना,*
*◈७– हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की तौबा,*
*◈८_ हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की विलादत,*
*◈९_हजरत याकूब अलैहिस्सलाम की बिनाई का लौटना,*
*◈१०_इसी दिन जनाब ए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की अगली पिछली लग्ज़िशे हक़ ताअला ने माफ कर दी। ( हालांकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मासूम और बख्शे बख्शाए थे ,आप से कभी कोई भूल कर भी लग़्जिश नहीं हुई )*
*▣_ यह 10 वाक्यात शरह बुखारी में हैं, इसके अलावा बाज़ कुतुब में और बड़े-बड़े वाक्यात को शुमार किया है जो आशूरा के दिन हुए ,चंद यह है:-*
*◈१ हजरत आदम अलैहिस्सलाम का नबूवत के लिए मुंतखब होना,*
*◈२_ हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम का आसमानों की तरफ उठाया जाना,*
*◈३_ हक ताअला का हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को खलीफा बनाना,*
*◈४_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा से निकाह भी इसी दिन हुआ,*
*◈५_इसी दिन क़यामत क़ायम होगी ६इस दिन में सैयदना हज़रत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत का वाक़्या पेश आया ।*
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*※ _अहलो अयाल पर वुसअत _※*
*▣_ इमाम बहकी़ रहमतुल्लाह ने हदीस बयान फरमाई है कि जनाबे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जो शख्स आशूरा के दिन अहलो अयाल पर वुसअत करेगा अल्लाह ताअला सारे साल फराख़ रोज़ी अता फरमाता है ।*
*▣_हदीस के रावी हज़रत सुफियान बिन ऐनियाह रज़ियल्लाहु अन्हू फरमाते हैं कि हमने तजुर्बा किया है इसको दुरुस्त पाया है मगर इसको ज़रूरी ना समझे और ना हद से ज़्यादा अहतमाम करें और जब अहलो अयाल पर वुसअत करें तो गरीब पड़ोसी के यहां भी भेजो ।*
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*▣ मोहर्रम और आशूरा के दिन नाजायज़ काम ▣*
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*※(1) _मातम ,नोहा करना और सौग मनाना ※*
*▣_ माहे मोहर्रम को बाज़ लोग मनहूस महीना समझते हैं हालांकि (जैसा पहले गुज़र चुका) यह महीना मुबारक है बड़े बड़े अज़ीम वाक़्यात इस महीने में पेश आए हैं, कई लोग इस माह में खुशुसन आशूरा के दिन मातम करते हैं और गम का इज़हार करते हैं, यह गुनाह है, इस्लाम हमें सब्र और इस्तेका़मत की तालीम देता है। ज़ोर ज़ोर से रोना पीटना कपड़े फाड़ना छातियों को पीटना इस्लामी तालीमात से कोसों दूर है।*
*▣_ इस्लाम का हुक्म यह है कि किसी के मरने से 3 दिन के बाद गम का इज़हार ना करो और ना ही सोग मनाओ । सिर्फ औरत अपने शौहर के मरने के बाद 4 माह 10 दिन सोग मनाएं। शौहर के अलावा किसी और का चाहे वह बाप हो भाई हो या बेटा तीन दिन से ज़्यादा सोग मनाना जायज़ नहीं।*
*▣_ सहीह बुखारी की हदीस है कि उम्मुल मोमिनीन हजरत उम्मे हबीबा रजियल्लाहु अन्हा को अपने वालिद की वफात की खबर पहुंची तो 3 दिन के बाद खुशबू मंगाई और चेहरे को लगाई और फरमाया कि मुझे इसकी ज़रूरत नहीं थी (क्योंकि बूढ़ी हो चुकी थी और खाविंद यानी हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की वफात हो चुकी थी ) लेकिन मैंने बाप का सौग खत्म करने के लिए खुशबू लगाई क्योंकि मैंने हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से सुना कि किसी मुसलमान औरत के लिए 3 दिन से ज़्यादा सौग मनाना जायज़ नहीं ।*
*▣_ इस हदीस मुबारक से मालूम हुआ कि 3 दिन से ज्यादा सौग मनाना जायज़ नहीं, बाज़ लोग सैयदना हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु का सौग मनाते हैं ,मुहर्रम में अच्छे कपड़े नहीं पहनते ,बीवी के क़रीब नहीं जाते,चार पाइयों को उल्टा कर देते हैं वगैरा- वगैरा ।*
*▣_ हालांकि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत को तक़रीबन 14 साल से भी ज़्यादा हो चुके, यह नावाक़फियत की बातें है ।*
*▣_ अल्लाह ताअला हम सबको हिदायत पर रखे ।आमीन या रब्बुल आलमीन।*
*※ २_ ईसाले सवाब के लिए खाना ※*
*▣_ मोहर्रम के महीने में बिलखुसूस 9 वी 10 वी और 11 वीं तारीख में खाना पका कर हजरत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु की रूह को ईसाले सवाब करते हैं ।*
*▣_ईसाले सवाब का सबसे अफज़ल तरीक़ा यह है कि अपनी हैसियत के मुताबिक नक़द रक़म किसी खैर के काम में लगा दें या किसी मोहताज मिस्कीन को दे दें यह तरीक़ा इसलिए अफज़ल है कि इससे मिस्कीन अपनी हर हाजत पूरी कर सकेगा और आज उसे कोई ज़रूरत नहीं तो कल की ज़रूरत के लिए रख सकता है। यह सूरत दिखावे से भी पाक है।*
*▣_ हदीस पाक में मख्फी (गुप्त ) सदका देने वाले की यह फजीलत वारिद हुई है कि ऐसे शख्स को अल्लाह ताला बरोज़े क़यामत अर्श के साए में जगह इनायत फरमाएंगे जबकि कोई और साया ना होगा और शदीद गर्मी से लोग पसीनो में गर्क हो रहे होंगे।*
*▣_फजी़लत के लिहाज़ से दूसरे दर्जे पर यह सूरत है कि मिस्कीन की हाजत के मुताबिक़ सदका़ दिया जाए यानी उसकी ज़रूरत को देखकर उसे पूरा किया जाए यह ईसाले सवाब की सही सूरतें हैं।*
*※३_ 10वी मोहर्रम की छुट्टी ※*
*▣_ कई लोग दसवीं मोहर्रम की छुट्टी करना ज़रुरी समझते हैं और इसको सैयदना हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत का सौग समझते हैं ।*
*▣_हालांकि 3 दिन के बाद सौग मनाना जायज़ नहीं है और शरियत में किसी भी दिन कामकाज करने से मना नहीं किया। नमाज़ ए जुमा और नमाजे़ ईद के बाद भी अपना कारोबार कर सकते हैं*
*※ _ कब्रों की जियारत _※*
*▣_ कब्रों की जियारत सवाब है क्योंकि इनको देखने से मौत याद आती है मगर इस काम के लिए 10 मोहर्रम को मुक़र्रर करते हैं और साल में सिर्फ इसी दिन क़ब्रिस्तान जाते हैं और आगे पीछे कभी भूल कर भी नहीं जाते यह सही नहीं है ।*
*▣_कुछ लोग आशूरा के दिन कब्रों पर सब्ज़ छड़िया रखते हैं और यह समझते हैं कि इससे मुर्दे का अज़ाब टल जाता है इस अमल के इल्तजा़म में बहुत सी खराबियां हैं, मसलन -गैर लाज़िम को लाज़िम समझा जाता है । बाज़ लोग अज़ाब टल जाने को लाज़िम ख्याल करते हैं और यह सही नहीं है ।*
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*※_ क़ब्रों की जियारत के मसाइल ※*
*▣_ कब्रों के पास से गुज़रे तो "अस्सलामु अलैकुम या अहलल कु़बूर" कह लेना चाहिए ।*
*▣_ कब्रिस्तान जाने के लिए कोई दिन और कोई खास वक्त की तालीम नहीं दी गई जब चाहे जा सकते हैं लेकिन कब्रिस्तान जाने का मक़सद ईसाले सवाब और इबरत हासिल करना हो ।*
*"_शबे बरात और जुम्मे के दिन कब्रिस्तान जाना साबित है ।*
*▣_बुजुर्गों के मजारात पर जाना जायज़ है लेकिन मन्नत मांगना, उर्स या मेले भराना, चादर चढ़ाना बकरा जिबह करना, चढ़ावा चढ़ाना नाजायज़ और हराम है।*
*※_कब्रिस्तान में दुआ और फातिहा का तरीका 👇🏻*
*▣_सबसे पहले सलाम करना फिर जिस क़दर मुमकिन हो उनके लिए दुआ इस्तगफार करें और कुरान ए करीम पढ़ कर ईसाले सवाब करें ।*
*▣_बाज़ रिवायात में सूरह फातिहा, सूरह यासीन, तबारकल्लजी़, ज़िलज़ाल, तकासुर, सूरह इखलास, आयतल कुर्सी की फजीलत आई है ।*
*▣_कब्र की तरफ मुंह करके दुआ ना करें फतावा आलमगीरी में (सफा 350 जिल्द 5) में लिखा है की कब्र पर फातिहा ईसाले सवाब के लिए दुआ मांगे तो कब्र की तरफ रुख ना करें बल्कि कब्र की तरफ पुश्त करें और कि़ब्ले की तरफ मुंह करके दुआ मांगे ।*
*▣_कब्र पर बुलंद आवाज से क़ुरान ए करीम पढ़ना मकरुह है आहिस्ता पढ़ सकते हैं।*
*▣_ कब्रिस्तान में औरतों के जाने में इख्तिलाफ है सही यह है कि जवान औरतें हरगिज़ न जाएं, बूढ़ी औरतें जा सकती हैं लेकिन वहां कोई शरियत के खिलाफ ऐसा कोई काम ना करें तो गुंज़ाइश है।*
*⚀•हवाला:➻┐आपके मसाइल और उनका हल जिल्द-३,*
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*※ (5)-मजलिस ए शहादत ※*
*▣_ यौमें आशूरा को यौमे शहादत सैयदना हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु गुमान करना व अहकामें मातम ,नोहा, गिरिया व ज़ारी बेक़रारी करना और घर घर मजलिस ए शहादत में शहादत नामा या वफात नामा बयान करना खासकर असल रिवायत के खिलाफ यह हराम है।*
*▣_ हदीसे पाक में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मरसियों ( वफात नामा ) से मना फ़रमाया है और खिलाफे रिवायत बयान करना सब अवबाब में हराम है।*
*※(6)- सबील लगाना, शर्बत, खिचड़ा तक़सीम करना ※*
*▣_ तक़सीमें शरबत खिचड़ा जिसमें रिया दिखावा का खास दखल है और हर ग़नी और फ़कीर को इसका लेना और उसको तबर्रुक जानना और जो ना ले उसको बुरा समझना उस पर लान तान करना ,दूध शरबत की सबील लगाना और उसके लिए चंदा करना और ना देने वालों को बुरा कहना खासकर इन दिनों में करना । अगर जानबूझकर सवाब की नियत से करता है तो यह बिद’अते जलाला है और किसी और सदका़त का लेना ग़नी को मकरुह है और सैयद को हराम है और ना देने वाले को लान तान करना फिस्ख है। ( फक़त वल्लाहु आलम )*
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*※(7)_ मुहर्रम में शादी ना करना ※*
*▣__ मोहर्रम ,सफर और शाबान में शादी ना करना इस अकी़दे पर मुबनी है कि यह महीने मनहूस है। इस्लाम इस नजरिए का का़यल नहीं ।*
*▣_मोहर्रम में सैयदना हज़रत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की शहादत हुई है मगर इससे यह लाज़िम नहीं आता कि इस महीने में अक़्द निकाह ममनुआ हो गया। वरना हर महीने में किसी ना किसी शख्सियत का विसाल हुआ है जो हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु से भी बुजुर्गतर थे।*
*“_ इससे यह लाज़िम आएगा कि साल के 12 महीनों में किसी में भी निकाह ना किया जाए ।*
*▣_ फिर शहादत के महीने को सोग व नहुसत का महीना समझना भी गलत है।*
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*▣ मुन्किरात ए मोहर्रम ▣*
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*※_(1)- सैयदना हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु को इमाम कहने की क्या हैसियत है ? ※*
*▣_ इमाम का लफ्ज़ अहले हक़ के यहां भी इस्तेमाल होता है और शिया के यहां भी। अहले हक़ के यहां इसके मा’नी पेशवा, रहबर और मुक्तदा के हैं । अहले शिया के यहां इमाम आलिमुल गैब और मासूम होते हैं । उनके यहां इमाम का दर्जा नबियों से भी बड़ा होता है।*
*▣_जा़हिर है इस लफ्ज़ (इमाम) के इस्तेमाल में हम तो वही मतलब मलहूज रखते हैं जो अहले हक़ के यहां है ।इस एतबार से तमाम सहाबा किराम ,ताबाईन औलिया अल्लाह और उलेमा इमाम है, इसलिए इमाम अबू बकर, इमाम उमर, इमाम उस्मान, इमाम अली, इमाम अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हूम कहना चाहिए।*
*▣_रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया – मेरे सब सहाबा सितारों की मानिंद है।”*
*“_ यानी सबके सब इमाम है जिसकी चाहो इक़्तदा कर लो, हर सितारे में रोशनी है जिससे चाहो रोशनी हासिल कर लो, इस मा’नी में सारे सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम इमाम है।*
*▣_ सोचने की बात यह है कि लोग इमाम अबू बकर नहीं कहते इमाम उमर नहीं कहते, इमाम हसन और इमाम हुसैन ही कहते हैं । मालूम हुआ कि यह असर मुसलमानों में कहीं गैर से आया है, शियाओं का असर मुसलमानों में शरारत कर गया । अगर अहले हक उलेमा में से किसी ने इन हजरात को इमाम कहां है तो उन्होंने इसके सही मायने (पेशवा, रहबर और मुक्तदा) में इमाम कहां है , मगर इससे मुगालता जरूर होता है इसलिए इससे एहतराज़ जरूरी है।*
*※ (2)_ अलैहिस्सलाम का इतलाक़ ※*
*▣_ ऐसे ही सैयदना हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को अलेहिस्सलाम भी वही लोग कहते हैं जो उन्हें अंबिया अलैहिस्सलाम का दर्जा देते हैं। इससे भी एतराज़ लाज़िम है ।*
*▣_जिस तरह रजियल्लाहु ता’अला अन्हु के दुआएं कलमात लिखें और कहे जाते हैं ऐसे ही दुआएं कलमात हजराते हसनैन रज़ियल्लाहु अन्हुम के साथ भी लिखें और कहे जाए।*
*※ (3)- मुसलमानों के नामों में शियाओं का असर_,※*
*▣_ मुसलमानों के नामों में भी शियाओं का असर पाया जाता है मसलन असल नाम के साथ जिस तरह महज़ तबर्रुक के लिए मोहम्मद और अहमद मिलाने का दस्तूर है इसी तरह अली ,हसन, हुसैन मिलाया जाता है। सिद्दीक, फारुख, उस्मान और या किसी और सहाबी का नाम बतौर तबर्रुक असल नाम के साथ मिलाने का दस्तूर नहीं।*
*▣_ निस्बत ए गुलामी भी हजरत अली, हजरत हसन, हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हुम की तरफ ही की जाती है मगर और किसी शहर की तरफ नहीं की जाती।*
*▣_ औरतों में भी कनीज़ फातिमा का नाम तो पाया जाता है मगर कनीज़ खदीजा, कनीज़ आयशा और दीगर अजवाज़े मुताहरात और कनीज़ जैनब, कनीज़ कुसुम ( साहब जादियों) रजियल्लाहु अन्हुमा कहीं सुनाई नहीं देती ।*
*▣_इससे भी बढ़कर अल्ताफ हुसैन , फ़ज़ल हुसैन, फैजु़ल हसन जैसे शिर्किया नाम भी मुसलमानों में बा कसरत रखे जाते हैं ।*
*※ 4- ताज़िए का जुलूस और मातम की मजलिस देखना ※*
*▣_इन दिनों मुसलमानों में कसीर तादाद मातम की मजलिस और ताजिया के जुलूस का नज़ारा करने के लिए जमा हो जाती है इनमें कई गुनाह है।*
*“_ पहला गुनाह यह है कि इसमें दुश्मनाने सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम और दुश्मनाने क़ुरान के साथ मुशाबहत है ।रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का इरशाद है- जिसने किसी क़ौम से मुशाबहत की वह उसी में शुमार होगा।*
*▣_होली के दिन एक बुजुर्ग जा रहे थे उन्होंने मज़ाक के तौर पर एक गधे पर पान की पीक डालकर फरमाया कि तुझ पर कोई रंग नहीं फेंक रहा ले तुझे मैं रंग देता हूं । मरने के बाद इस पर पकड़ हुई कि तुम होली खेलते थे और अज़ाब में गिरफ्तार हुए।*
*▣_दूसरा गुनाह यह है कि जिस तरह इबादत को देखना इबादत है उसी तरह गुनाह को देखना भी गुनाह है । तीसरा गुनाह यह है कि इस मुकाम पर अल्लाह ता’अला का गज़ब नाजि़ल हो रहा होता है ऐसी गज़ब वाली जगह जाना बहुत बड़ा गुनाह है।*
*▣_एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम का गुज़र ऐसी बस्तियों के खंडहरात पर हुआ जिन पर अजा़ब आया था । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने सर मुबारक पर चादर डाल ली और सवारी को बहुत तेज़ चला कर उस मुकाम से जल्दी से गुज़र गए।*
*“_ जब सैयदुल अव्वलीन व आखिरीन, रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम गज़ब ( अज़ाब )वाली जगह से बचने का एहतमाम फरमाते थे तो अवाम का क्या हश्रर होगा।सोचना चाहिए कि अगर अल्लाह ता’अला के दुश्मनों के करतूतों से उस वक्त कोई अज़ाब आ गया तो क्या सिर्फ नज़ारा करने के लिए जमा होने वाले मुसलमान अज़ाब से बच जाएंगे । हरगिज़ नहीं बल्कि अज़ाबे आखिरत में भी यह लोग उनके साथ होंगे ।अल्लाह ता’अला मुस्तहिके़ आजा़ब बनाने वाली बद आमालियों से बचने की तौफीक अता फरमाए ।*
*➡ यह भी खयाल रहे कि जिस तरह मुबारक दिनों में इबादत का ज्यादा सवाब है इसी तरह गुनाहों पर ज्यादा अज़ाब है। अल्लाह ता’अला सबको दिन का सही फहम और कामिल इत्तेबा की नियामत अता फरमाए ।आमीन या रब्बुल आलमीन ।*
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*▣ फज़ाइल ए अहले बैत नबवी ﷺ ▣*
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*※_ 1-अहले बैत की अव्वलीन मिस्दाक़ अज़वाजे मुताहरात है ※*
*▣_ यह एक हक़ीक़त है जिसमें किसी शक व शुबहा की गुंजाइश नहीं कि अहले बैत का लफ्ज़ सिर्फ कुरान ए करीम में अजवाज़े मुताहरात के लिए ही इस्तेमाल हुआ है । सूरह अल अहज़ाब- आयत 33 में अजवाज़े मुताहरात को कुछ खास हिदायत देने के बाद फरमाया गया जिसका तर्जुमा यह है कि :-*
*“_ ऐ हमारे पैगंबर की बीवियों तुमको जो यह खास हिदायतें दी गई हैं इनसे अल्लाह ताला का मक़सद तुमको जहमत व मशक्कत में मुब्तिला करना नहीं है बल्कि अल्लाह ताला का इरादा इन हिदायात से यह है कि तुमको हर किस्म की जा़हिरी बातिनी बुराई और गंदगी से पाक साफ कर दिया जाए _,”*
*▣_ जो शख्स अरबी जुबान की कुछ भी वाक़फियत रखता है उसको सूरह अल अहज़ाब का यह पूरा रुकू पढ़ने के बाद इसमें कोई शक व शुबहा नहीं होगा कि यहां अहले बैत का लफ्ज़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की अजवाज़े मुताहरात के लिए इस्तेमाल हुआ है ।*
*▣_ लेकिन यह कैसी अजीब बात है कि क़ुरान पर ईमान रखने वाले हम मुसलमानों का हाल आज यह है कि अहले बैत का लफ्ज़ सुनकर हमारा ज़हन अजवाज़े मुताहरात की तरफ बिल्कुल नहीं जाता बल्कि आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की साहबजा़दी हज़रत फातिमा जो़हरा रजियल्लाहु अन्हा और उनके शौहर हज़रत अली मुर्तुजा रजियल्लाहु अन्हु और दोनों की ज़ुर्रियत हजरत हसनैन रजि़यल्लाहु अन्हुम ही की तरफ जाता है।
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*※ 2-अहले बैत और हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की दुआ ※*
*▣_ अलबत्ता हदीस पाक से यह बात साबित है कि जब सूरह अल अहज़ाब की यह आयत (आयत नंबर 33) नाजि़ल हुई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपनी साहबजादी हजरत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा, उनके दोनों साहबजादे (हजरत हसन और हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हुम) और उनके साथ उनके शौहर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को एक चादर में अपने साथ लेकर दुआ फरमाई, – “ ऐ अल्लाह ! यह भी मेरे अहले बैत हैं ,इनसे भी हर तरह की बुराई और गंदगी को दूर फरमा दे और इनको मुकम्मल तौर पर पाक साफ फरमा दे ।”*
*▣_ बिला शुबहा हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की यह दुआ कुबूल हुई और यह हजरात भी अहले बैत में शामिल हो गए।*
*▣”_अलगरज़ बात यह है कि अजवाज़े मुताहरात (आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पाक बीवियां ) अहलेबैत में से नहीं है बल्कि इस लफ्ज़ की मिस्दाक़ सिर्फ आप सल्लल्लाहु अलेही सल्लम की एक बेटी एक दामाद और दो नवासे हैं , ना तो जुबान के लिहाज़ से दुरुस्त है और ना क़ुरान हदीस से साबित है। बल्कि एक खास फिरके के फनकारों की साजिश के नतीजे में इस गलती ने उम्मत में उर्फे आम की हैसियत अख्तियार कर ली और हमारे सादा दिल भोलेपन की वजह से इस तरह की बहुत सी दूसरी गलत बातों की तरह इसको भी क़ुबूले आम हासिल हो गया।*
*▣_ जैसा कि अर्ज़ किया जा चुका है की हालत यह हो गई कि अहले बैत का लफ्ज़ सुनकर हमारे अच्छे पढ़े-लिखे का भी ज़हन अजवाज़े मुताहरात की तरफ नहीं जाता जो कुरान मजीद की रू से इस लफ्ज़ की अव्वलीन मिस्दाक़ है ।*
*“_ वल्लाहू मुवफ्फिक़ू वा हुवल मुसत’आनी _,*
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*※ 3_ अज़वाजे मुताहरात रज़ियल्लाहु अन्हुमा※*
*▣_ जैसाकि हदीस शरीफ की मुस्तनद रिवायत से मालूम होता है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की अज़वाजे मुताहरात जो मनकूहा बीवी की हैसियत से आपके साथ थोड़ी या ज्यादा मुद्दत रही वह कुल 11 है, उनके असमा ए गिरामी यह है :-*
*१_ हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते खुवेल्द,*
*२_हजरत सौदा रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते ज़’मा,*
*३_हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु,*
*४_ हजरत हफसा रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते उमर बिन खत्ताब रजियल्लाहु अन्हु,*
*५_ हजरत जे़नब रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते खुजे़मा,*
*६_हजरत उम्मे सलमा रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते अबी उमैया,*
*७_हजरत जे़नब रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते ज़हश,*
*८_ हजरत जुवेरिया रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते हारिस बिन ज़रार,*
*९_ हजरत उम्मे हबीबा बिन्ते अबू सुफियान रजि़यल्लाहु अन्हु,*
*१०_ हजरत सफिया रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते हयी बिन अखतब,*
*११_ हजरत मैमूना रजियल्लाहु अन्हा बिन्ते हारिस,*
*“_इनमें से हजरत खदीजा और हजरत जे़नब बिन्ते खुज़ेमा रजियल्लाहु अन्हुमा की वफात हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की हयात में हुई।*
*▣_ बाज़ रिवायात से मालूम होता है की इन 11 के अलावा बनू क़ुरेज़ा में से हजरत रैहाना शम’ऊन के मुताल्लिक मालूम होता है कि जब यहूद बनू क़ुरेज़ की गद्दारी की वजह से हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने उनके खिलाफ कार्यवाही की और उनकी बक़ाया को गिरफ्तार किया गया तो उनमें हजरत रेहाना भी थी । बाज़ कहते हैं कि इन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो इनको आज़ाद करके हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने निकाह में ले लिया ।लेकिन बाज़ रिवायात में इनको हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की मनकुहा बीवी का शर्फ हासिल नहीं हुआ बल्कि एक बांदी की हैसियत से आपके साथ रही और हुजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की हयात में ही हज्जतुल विदा के बाद वफात पाई। वल्लाहु आलम,*
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*※4- सरवरे दो आलम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की औलाद मुबारक ※*
*▣_ हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की औलाद के बारे में अक़वाल मुख्तलिफ हैं ,सबसे ज्यादा मौतबर क़ौल यह है कि – 3 साहबजादे हजरत कासिम, हजरत अब्दुल्लाह (इनको तैयब और ताहिर के नाम से भी पुकारा जाता था )और हजरत इब्राहिम। और चार साहबजादियां हजरत जे़नब, हजरत रुकैया ,हजरत उम्मे कुलसुम हजरत फातिमा रजियल्लाहु अन्हुमा थी।*
*▣_ हजरत कासिम, :- आपकी औलाद में सबसे पहले हजरत क़ासिम पैदा हुए और सिर्फ 2 साल हयात रहे । बैसते नबवी से पहले ही इंतकाल कर गए। आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की कुन्नियत अबू क़ासिम इन्हीं से इंतसाब थी।*
*▣_ हजरत जे़नब रज़ियल्लाहु अन्हा :- – हजरत जे़नब रजियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की साहबजादियों में सबसे बड़ी है। बैसत से 10 साल पहले पैदा हुई और इस्लाम लाई, बदर के बाद हिजरत की, खालाजाद भाई हजरत अबुल आ’स बिन रबिआ से निकाह हुआ और 8 हिजरी में इंतकाल हुआ। एक साहबजादे हजरत अली और एक साहबजादी हजरत उमामा रजियल्लाहु अन्हुमा अपनी यादगार छोड़ी ।*
*▣_फातिमा रजियल्लाहु अन्हा के इंतकाल के बाद हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत उमामा रजियल्लाहु अन्हा से निकाह किया और जब हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की शहादत हुई तो आपने मुगीरा बिन नोफिल को वसीयत की कि तुम उमामा से निकाह कर लेना।*
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*※ 5_ अबु लहब और उसके बेटों की बदबख्ती ※*
*▣_ हजरत रुकैया रजियल्लाहु अन्हा और हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा दोनों साहबजादियां अबु लहब के बेटों से मंसूब थी । हज़रत रुकैया रज़ियल्लाहु अन्हा उतबा और हजरत कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा उतैबा से फक़त निकाह हुआ था रुखसती नहीं हुई थी ।जब “तब्बत यदा अबि लहब,” नाज़िल हुई तो दोनों बेटों ने बाप के हुक्म से दोनों साहबजादियों को तलाक दे दी।*
*▣_हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा :- आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से किया हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने जब हबशा की हिजरत की तो हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा भी आपके साथ थी वहां इनके एक बच्चा पैदा हुआ जिनका नाम अब्दुल्लाह रखा गया जो 6 साल जिंदा रहकर इंतकाल कर गया।*
*▣_ जिस वक्त आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम गज़वा ए बदर के लिए रवाना हुए तो हज़रत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा बीमार थी इस वजह से हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु गज़वा ए बदर में शरीक ना हो सके उनकी तीमारदारी में रहे। जिस दिन हजरत ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु बिन हारिस बदर फतह की खबर लेकर मदीना मुनव्वरा आए, हजरत रुकैया रज़ियल्लाहु अन्हा ने इंतकाल फरमाया उस वक्त उनकी उम्र 20 साल थी।*
*▣_७- हज़रत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा :- हजरत रुक़ैया रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात के बाद माहे रबीउल अव्वल 2 हिजरी में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के निकाह में आई । 6 साल हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ रही और कोई औलाद नहीं हुई। माहे शाहबान नो हिजरी में इंतकाल किया।*
*▣_ ८-हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु:-हज़रत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा का इंतकाल हो गया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अगर मेरी 10 बेटियां भी होती तो एक के बाद एक दीगर उस्मान की ज़ौजियत में देता रहता।*
*▣_ ९-हजरत इब्राहीम रजियल्लाहु अन्हु:- हजरत इब्राहीम रजियल्लाहु अन्हु नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की आखिरी औलाद है जो हजरत मारिया क़िब्तिया के बतन से ज़िल हिज्जा 8 हिजरी में पैदा हुए , क़रीबन 15 -16 माह आप जिंदा रहे 10 हिजरी में इंतकाल हुआ।*
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*※ (१०)_ हज़रत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा ※*
*⚀•_ हजरत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की सबसे छोटी बेटी थी, जोहरा और बतूल यह दो आपके लक़ब थे । बैसत के पहले साल में पैदा हुई और इब्ने जौजी रह. कहते हैं कि बैसत से 5 साल पहले पैदा हुई जब क़ुरेश खाना काबा की तामीर कर रहे थे ।*
*⚀•_2 हिजरी में हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से निकाह हुआ एक कॉल के मुताबिक फातिमा रजियल्लाहु अन्हा उस वक्त 15 साल साढे 5 माह और हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु 21 साल 5 माह और दूसरे कॉल के मुताबिक फातिमा रजियल्लाहु अन्हा 19 साल डेढ़ माह और हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु 24साल डेढ़ माह थी , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद रमजान 11 हिजरी में इंतकाल फरमाया,*
*⚀•_ हज़रत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की सबसे ज्यादा महबूब थी , बार-बार आपने फ़रमाया कि – ऐ फातिमा ! क्या तू इस पर राज़ी नहीं कि तू जन्नत की तमाम औरतों की सरदार है ।*
*⚀•_ जब आप सफर में जाते हैं तो सबसे आखरी में हजरत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा से मिलते और जब सफर से वापस आते हैं तो सबसे पहले मिलते ।*
*⚀•_फातिमा रजियल्लाहु अन्हा की पांच औलादें हुई, ३ लड़के (हजरत हसन ,हजरत हुसैन और हजरत मोहसिन रजियल्लाहु अन्हुम) और दो लड़कियां ( हजरत कुलसुम रजियल्लाहु अन्हा और हजरत ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा) सिवाय हजरत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा के और किसी साहबज़ादी से आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की नस्ल का सिलसिला नहीं चला। हज़रत मोहसिन बचपन में इंतकाल कर गए , उम्मे कुलसुम रजियल्लाहु अन्हा से हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने निकाह फरमाया और हजरत ज़ेनब रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हजरत जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु से हुवा ।*
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*※_ हज़रत हुसैन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु ※*
*▣_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के दूसरे नवासे और हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु व हज़रत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा के छोटे साहबजा़दे हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की विलादत 4 हिजरी में हुई, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ही इनका नाम हुसैन रखा इनको शहद चटाया इनके मुंह में अपनी ज़ुबान मुबारक दाखिल करके लुआब मुबारक अता फ़रमाया और इनका अक़ीक़ा करने और बालों के हम वज़न चांदी सदका करने का हुक्म दिया।*
*▣_ अपने बड़े भाई हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु की तरह हज़रत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मुशाबे थे , जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात हुई इनकी उम्र सिर्फ 6 या 7 साल थी। हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के आखरी ज़माना ए खिलाफत में आपने जिहाद में शिरकत शुरू की। हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के ज़माने में जब बागियों ने उनके घर का मुहासबा किया तो हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने अपने दोनों बेटों हजरत हसन और हजरत हुसैन को उनके घर की हिफाज़त के लिए मुकर्रर कर दिया था।*
*▣_ अली रजियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद जब हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु ने हज़रत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु से सुलह कर के खिलाफत से दस्त बरदारी के इरादे का इज़हार किया तो हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने भाई की राय से इख्तलाफ किया लेकिन बड़े भाई के एतराम में उनके फैसले को तस्लीम कर लिया ।*
*▣_अलबत्ता जब हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु की वफात के बाद जब हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने अपने बेटे यजी़द की खिलाफत की बैत ली तो हज़रत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु इसको किसी तरह बर्दाश्त ना कर सके और यजी़द के खलीफा बन जाने के बाद जिहाद के इरादे से मदीना तैयबा से कूफा तशरीफ ले गए और कर्बला का वाक़्या पेश आया। आप वहां 10 मोहर्रम 61 हिजरी को शहीद कर दिए गए । (रज़ियल्लाहू अन्हू व अरज़ह),”*
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*※(12)_ हज़राते हसनैन रजि़यल्लाहु अन्हुम के फज़ाइल- ※*
*▣_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के नवासे और आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के सहाबी होने का शर्फ हीं क्या कम है फिर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को हजराते हसनैन रज़ियल्लाहु अन्हुम से बहुत मोहब्बत थी । शफक़त व मोहब्बत का यह आलम था कि यह दोनों भाई बचपन में नमाज़ की हालत में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की कमर मुबारक पर चढ़ जाते, कभी-कभी दोनों टांगों के बीच में से गुज़रते रहते और आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम नमाज़ में भी उनका ख्याल रखते ,जब तक वह कमर पर चढ़े रहते आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम सजदे से सर ना उठाते।*
*▣__ आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अक्सर इन्हें गोद में लेते, कभी कांधों पर सवार करते उनका बोसा लेते उनको सूंघते और फरमाते तुम अल्लाह की अता की हुई खुशबू हो । (जामिया तिर्मीजी )*
*▣__ सही बुखारी में हजरत अदी बिन साबित रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु को अपने कांधे पर सवार किए हुए थे और यह दुआ फरमा रहे थे- ऐ अल्लाह यह मुझे महबूब है आप भी इसे अपना महबूब बना लीजिए।(सही बुखारी -१/५३०)*
*▣__ इमाम तिर्मिज़ी रहमतुल्लाहि अलैहि ने हजरत ओसामा बिन ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु की हदीस ज़िक्र की है कि मैं किसी ज़रूरत से आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ, आप घर के बाहर इस हाल में तशरीफ लाए कि आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम दोनों गोद में कुछ रखे हुए थे और चादर ओढ़े हुए थे मैं जब अपने काम से फारिग हो गया तो अर्ज़ किया- यह क्या है ? तो आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने चादर हटा दी। मैंने देखा कि एक जानिब हजरत हसन और दूसरी जानिब हजरत हुसैन है और फरमाया- ऐ अल्लाह मै इन दोनों से मोहब्बत करता हूं आप भी इनसे मोहब्बत फरमाएं और जो इनसे मोहब्बत करे उसको भी तू अपना महबूब बना ले।*
*▣_ एक बार आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम खुत्बा दे रहे थे दोनों नवासे आ गए आपने खुतबा रोक कर दोनों को उठा लिया और अपने पास बिठाया फिर बाक़ी खुतबा पूरा किया।*
*▣_हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु दोनों भाई बहुत इबादत गुज़ार थे दोनों ने बार-बार मदीना तैयबा से मक्का मुकर्रमा तक पैदल सफर करके हज किये हैं ,अल्लाह के रास्ते में कसरत से माल खर्च करते थे जूदो सखावत मां-बाप और नाना जान से विरासत में मिली थी । ( मारफुल हदीस )*
*”★ _रज़ियल्लाहु अन्हुमा व अरज़हुमा _,”*
*▣_ आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अपने तमाम अहले बैत में हज़राते हसनैन रज़ियल्लाहु अन्हुम सबसे ज्यादा महबूब थे । हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाते थे कि अहले बैत में मुझको हसन और हुसैन सबसे ज्यादा महबूब है ।( तिर्मीजी शरीफ )*
*▣__ आप खुदा से अपने इन महबूबों से मोहब्बत करने की दुआ फरमाते थे। हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि एक मर्तबा मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के साथ बाज़ार से लौटा तो आप हज़रत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा के घर तशरीफ ले गए और पूछा – बच्चे कहां हैं?*
*"_थोड़ी देर में दोनों दौड़ते हुए आए और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से चिमट गये।आपने फरमाया -खुदारा मैं इनको महबूब रखता हूं इसलिए तू भी इन्हें मेहबूब रख और इनके महबूब रखने वाले को भी महबूब रख । ( मुस्लिम शरीफ )*
*▣__ एक मर्तबा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु को कांधे पर लेकर निकले एक शख्स ने देख कर कहा -क्या साहबजादे क्या अच्छी सवारी है ।आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया- सवार भी तो कितने अच्छे है। ( तिर्मीजी शरीफ )*
*▣__ नबुवत की हैसियत को छोड़कर जहां तक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की बशरी हैसियत का ताल्लुक है हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु और हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की जा़त गोया जा़ते मोहम्मदी का जुज्व थी ।*
*"_हजरत या’ली रजियल्लाहु अन्हु बिन मुर्राह रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं जो शख्स हुसैन को दोस्त रखता है खुदा उसको दोस्त रखता है, हुसैन रजियल्लाहु अन्हु असबात के एक सब्त हैं ( यानी नवासो में एक नवासे हैं )*
*▣__ हजराते हसनैन रजियल्लाहु अन्हुम को आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपने जन्नत के गुल खानदान फरमाते थे । इब्ने उमर रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फरमाते थे हसन और हुसैन मेरे जन्नत के दो फूल है। ( बुखारी शरीफ )*
*▣__ हजराते हसनैन रजियल्लाहु अन्हुम नौजवानाने जन्नत के सरदार है । हजरत हुज़ैफा रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक मर्तबा मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ मगरिब और इशा की नमाज़ पढ़ी नमाज़ के बाद आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम तशरीफ ले चले मैं भी पीछे हो लिया मेरी आवाज सुनकर आप ने फरमाया कौन ? हुजैफा! मैंने अर्ज़ किया -जी ! फरमाया- खुदा तुम्हारी और तुम्हारी मां की मगफिरत करें तुम्हारी कोई ज़रूरत है ? देखो अभी यह फरिश्ता नाज़िल हुआ है जो इससे पहले कभी ना आया था इसको खुदा ने इजाज़त दी है कि वह मुझे सलाम कहे और मुझे बशारत दे कि फातिमा जन्नत की औरतों की और हसन और हुसैन जन्नत के नौजवानों के सरदार है। ( तिर्मिज़ी शरीफ )*
*▣_ इन मुशतरक फज़ाइल के अलावा हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हु के कुछ इम्तियाजी फज़ाइल अलग है जो उन्हें हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु से मुमताज़ करते हैं। इन फज़ाइल में सबसे बड़ी फजी़हत यह है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनके मुताल्लिक पेशीन गोई फरमाई थी कि मेरा बेटा सैयद है खुदा इसके ज़रिए से मुसलमानों के दो बड़े गिरोहों में सुलह कराएगा।*
*▣_हजरत अमीरे मुआविया रजियल्लाहु अन्हु से सुलह के वक्त हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस पेशीन गोई की अमली तस्दीक़ फरमाई ।*
*"_एक मौके पर फरमाया कि हसन ( रज़ियल्लाहु अन्हु) को मेरा हिल्म अता हुआ है । (शेर अल सहाबा )*
*▣_हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने उस जंग में भी शिरकत फरमाई थी जिसने 15 हिजरी को कुस्तुनतुनिया पर हमला किया था इस हमले में यजी़द बिन मुआविया भी थे । ( अल-विदायता वल निहायता )*
*▣_ हज़रत हुसैन बिन अली रजियल्लाहू अन्हू इंतेहाई मुतावाजे थे । एक मर्तबा घोड़े पर सवार गुज़र रहे थे ,गुरबा की एक जमात नज़र आई जो जमीन पर बैठकर रोटी के टुकड़े खा रही थी, आपने उनको सलाम किया उन लोगों ने कहा- फरज़ंदे रसूल ! हमारे साथ खाना तलावुल फरमाएं ।*
*"_आप रजियल्लाहु अन्हु घोड़े से उतरे उनके साथ बैठकर खाने में शरीक़ हो गए । आपने इस मौके पर सूरह नहल की यह आयत तिलावत फरमाई –“_ इन्नल्लाहु युहिब्बुल मुस्तक बिरीन _,”*
*(अल्लाह तकब्बुर करने वालों को पसंद नहीं फरमाता है।)*
*"_फारिग होने के बाद फरमाया- भाइयों आपने मुझे दावत दी मैंने कुबूल किया अब आप सब मेरी दावत कुबूल कीजिए । उन लोगों ने भी दावत कबूल की और आपके घर आए , सब आकर बैठे तो आपने फरमाया – रुबाब लाना जो भी बचा हुआ महफूज़ रखा है। ( अल जौहर )
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*▣ शहादत के फज़ाइल व अक़साम ▣*
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*⚀• (1)- शहादत के फज़ाइल ⚀*
*▣_ हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हम्द ओ सना के बाद इरशाद फरमाया – बेशक सच्चा कलाम अल्लाह की किताब है सबसे मजबूत कड़ा तकवा है सबसे बेहतर मिल्लत हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की मिल्लत है सबसे बेहतर तरीका मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ) का है सबसे अशरफ कलाम अल्लाह का जिक्र है सबसे बेहतर किस्सा कुरान है तमाम कामों में सबसे बेहतर वह है जिसको अज़मियत से अदा किया जाए और बदतरीन काम वो है जो नए-नए इजाद किये जाए सबसे बेहतर तौर तरीका अंबिया अलैहिस्सलाम का तौर तरीका है सबसे अशरफ मौत शहादत है । ( हयातुस सहाबा )*
*▣_ कुरान ए करीम में हजराते शोहदा का दर्जा तीसरा बयान फ़रमाया है जैसे की इरशाद है-“.और जिसने कहा मान लिया अल्लाह का और रसूलल्लाह का तो यह लोग होंगे नबियों के साथ और सिद्दीकीन के साथ और शोहदा के साथ और आला दर्जा के नेक लोगों के साथ और बहुत ही उम्दा है यह सब हज़रात रफीक होने के एतबार से (इनसे ज्यादा उम्दा रफीक किसी को मयस्सर आ सकते हैं ?) ( सूरह अन निशा )*
*▣_ क़ुरआने करीम में पहला दर्जा अल्लाह के नबियों का बयान फ़रमाया दूसरा सिद्दीकीन का तीसरा शौहदा का चौथा सालेहीन यानी आला दर्जे के नेक लोगों का जिनको हम औलिया अल्लाह कहते हैं ।*
*▣_ हम जैसे ही गुनहगार मुसलमान जो अल्लाह ताला की और उसके रसूल हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की इता’त करें और इता’त की कोशिश करते रहें अल्लाह ताला ऐसे लोगों को खुशखबरी दे रहा है कि क़यामत के दिन उनका हश्र नबियों सिद्दीकीन शोहदा और सालेहीन के साथ होगा और यह बहुत अच्छे साथी हैं अल्लाह ताला का फज़ल है जिसको अल्लाह ताला नसीब फरमा दे ।*
*▣_( अल्लाह ताला हम सबको नसीब फरमा दे आमीन या रब्बुल आलमीन )*
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*※ (2)-शहादत की मौत का दर्जा ※*
*▣_ हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अल्लाह ताला ने नबूवत अता फरमाई और शौहदा आपके जूतों की ख़ाक हैं आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तमाम अंबिया अलैहिस्सलाम के सरदार हैं इसके बावजूद आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम इरशाद फरमाते थे कि “ मेरा जी चाहता है कि मैं अल्लाह के रास्ते में शहीद हो जाऊं फिर जिंदा किया जाऊं फिर शहीद हो जाऊं फिर जिंदा किया जाऊं फिर शहीद हो जाऊं फिर जिंदा किया जाऊं ( यह सिलसिला चलता ही रहे )( मिशकात शरीफ )*
*※_ 3- शहीद ज़िन्दा हैं _※*
*▣_ क़ुरआने करीम मे इरशाद है- “ _और जो अल्लाह की राह में शहीद हो जाते हैं उनको मुर्दा ना कहो बल्कि वह जिंदा है मगर उनकी जिंदगी का तुम शऊर नहीं रखते । ( सूरह अल बक़रा)*
*“_ और दूसरी जगह इरशाद फरमाया — “_बल्कि वह जिंदा हैं और उनके रब के पास उनको रिज़्क दिया जाता है। ( सूरह आले इमरान )*
*▣_ सही बुखारी के हवाले से मिशकात में हदीस है :- “अल्लाह ताला के अर्शे आज़म के साथ कुंडलियां लटकी हुई है और वह शौहदा का मसकन हैं वह शौहदा के रहने की जगह है और सब्ज़ परिंदों की शक्ल में अल्लाह ताला उनको सवारी अता फरमाते हैं और उनकी रूहें इन सब्ज़ परिंदों में जन्नत के अंदर परवाज़ करती है और जहां चाहती हैं खाती पीती हैं । ( मिशकात शरीफ )*
*“_ यह कयामत से पहले का क़िस्सा है क़यामत के दिन उनके साथ जो मामला होगा वह तो सुब्हानल्लाह क्या बात है।
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*▣ शहीद ए कर्बला ▣*
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*※_1- वाक़िया शहीदे कर्बला ※*
*▣__ सैयदना व सैयदुल सहाबा अहलल जन्नत हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु का वाक़िया ए शहादत ना सिर्फ़ इस्लामी तारीख का एक अहम वाक़िया है बल्कि पूरी दुनिया की तारीख में भी इसको एक खास इम्तियाज़ हासिल है ।*
*▣__इसमें एक तरफ जुल्म व ज़ोर और संगदिली व बेहयाई व फहशकशी के ऐसे होलनाक और हैरतअंगेज वाक़्यात है कि इंसान को उनका तसव्वुर भी दुश्वार है। और दूसरी तरफ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के चश्मे चिराग और उनके 70-72 मुताल्लिकीन की छोटी सी जमात जिनकी नज़ीर तारीख़ में मिलना मुश्किल है और इन दोनों में आने वाली नस्लों के लिए हजारों इबरतें और हिक़मते पोशीदा है।*
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*※ 2- खिलाफते इस्लामिया पर एक हादसा अज़ीमिया ※*
*▣_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की शहादत से फितनों का एक गैर मुंक़ता सिलसिला शुरू हो जाता है इसमें मुनाफिकीन की साजिशें, भोले भाले मुसलमानों के जज़बात से खेलने के वाक़यात पेश आते हैं ।मुसलमानों की आपस में तलवारें चलती हैं, मुसलमान भी वो जो खैरुल खलाइक़ बा’दल अंबिया कहलाने के मुस्तहिक़ हैं ।*
*▣_खिलाफत का सिलसिला जब अमीर मुआविया रजियल्लाहु अन्हु पर पहुंचता है तो खिलाफते राशीदा का रंग नहीं रहता मुल्कियत की सूरत पैदा हो जाती है । अमीर मुआविया रजियल्लाहु अन्हु को मशवरा दिया जाता है कि ज़माना सख्त फित्नों का है आप अपने बाद के लिए कोई ऐसा इंतजाम करें कि मुसलमानों में फिर तलवारे ना निकले और खिलाफते इस्लामिया पारा पारा होने से बच जाए। हालात के एतबार से यहां तक कोई गैर शरई नामाकू़ल बात भी ना थी।*
*▣_ लेकिन इसके साथ ही आपके बेटे यजी़द का नाम आपके बाद खिलाफत के लिए पेश किया जाता है, कूफा के 40 खुशामद पसंद लोग आते हैं या भेजे जाते हैं ,अमीर मुआविया रजियल्लाहु अन्हु से इसकी दरख्वास्त करें कि आपके बाद आपके बेटे यज़ीद से कोई का़बिल और मिल्की़ सियासत का माहिर नज़र नहीं आता इसलिए बैतै खिलाफत की जाए । हज़रत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु को शुरू में कुछ ता’मुल भी होता है तो आपने मखसूस लोगों से मशवरा किया उनमें इख्तिलाफ होता है । कोई मुवाफक़त में राय देता है और कोई मुखालफत में, यज़ीद का फिस्क़ व फिजूर भी उस वक्त खुला नहीं था, बिल आखिर बैते यज़ीद का क़स्द किया जाता है और इस्लाम पर यह पहला हादसा अजी़म है कि ख़िलाफते नबुवत मुल्क़ियत में मुन्तक़िल हो जाती है।*
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*※3- इस्लाम पर बैत और यज़ीद का वाक़्या ※*
*▣__शाम व इराक में मालूम नहीं किस तरह खुशामद पसंद लोगों ने यजी़द के लिए बैत का चर्चा किया और यह शोहरत दी गई कि शाम व इराक ,कूफा व बसरा वगैरा यजी़द की बैत पर मुत्तफिक़ हो गए, अब हिजाज़ की तरफ रुख किया गया। हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु की तरफ से अमीरे मक्का व मदीना को इस काम के लिए मामूर किया गया।*
*▣_ मदीना का आमिल मरवान था, उसने खुतबा दिया और लोगों से कहा की :- अमीरुल मोमिनीन मुआविया रजियल्लाहु अन्हु , हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की सुन्नत के मुताबिक यह चाहते हैं कि अपने बाद के लिए यजी़द की खिलाफत पर बैत ली जाए ।”*
*▣_हजरत अब्दुर्रहमान बिन अबी बकर रजियल्लाहु अन्हु खड़े हुए और कहां यह गलत है यह हजरत अबू बकर और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हुम की सुन्नत नहीं बल्कि किसरा और कैसर की सुन्नत है ,अबू बकर और उमर रजियल्लाहु अन्हुम ने खिलाफत अपनी औलाद में मुन्तक़िल नहीं की और ना ही अपने क़ुंबे व रिश्ते में की।*
*▣_ हिजाज़ के आम मुसलमानों की नज़रें अहलेबैत पर खुसूसन हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु पर लगी हुई थी जिनको हजरत मुआविया रजियल्लाहु के बाद खिलाफत का मुस्तहिक़ समझते थे । वो इसमें हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्दुर्रहमान बिन अबी बकर रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु की राय के मुंतजिर थे कि यह क्या करते हैं ।*
*▣_ इन हज़रात के सामने अव्वल तो किताब व सुन्नत का यह उसूल था कि खिलाफत ए इस्लामिया खिलाफत ए नबूवत है। इसमें विरासत का कोई काम नहीं कि बाप के बाद बेटा खलीफा हो बल्कि ज़रूरी है कि आजा़दाना इंतखाब से खलीफा का तक़र्रूर किया जाए।*
*▣_दूसरे यज़ीद के जा़ती हालात भी इसकी इजाजत नहीं देते थे कि उसको तमाम मुमालिके इस्लामिया का खलीफा मान लिया जाए । इन हज़रात ने इस साजिश की मुखालफत की और इनमें से अक्सर आखिर दम तक मुखालफत पर ही रहे । इसी हक़ गोई और हिमायते हक़ के नतीजों में मक्का और मदीना में, कूफा व कर्बला में क़त्लेआम के वाक़यात पेश आए।*
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*※4- हज़रत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु मदीना में ※*
*▣__ हज़रत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने खुद 51 हिजरी में हिजाज़ का सफर किया मदीना तैयबा तशरीफ लाए, इन सब हज़रात से नरम व गरम गुफ्तगू हुई, सबने खुले तौर पर मुखालफत की।*
*※ 5- उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से शिकायत और उनकी नसीहत ※*
*▣_ अमीर मुआविया रजियल्लाहु अन्हु हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ ले गए और उनसे शिकायत की कि यह हज़रात मेरी मुखालफत करते हैं ।*
*"_हज़रत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने नसीहत की कि मैंने सुना है आप उन पर जबर करते हैं और क़त्ल की धमकी देते हैं आपको हरगिज़ ऐसा नहीं करना चाहिए।*
*▣_ हज़रत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया -यह गलत है यह हज़रात मेरे नज़दीक वाजिबुल अहतराम है मैं कभी ऐसा नहीं कर सकता लेकिन बात यह है कि शाम और इराक़ और आम इस्लामी शहरों के बाशिंदे यजी़द की बैत पर मुत्तफिक़ हो चुके हैं, बैते खिलाफत मुकम्मल हो चुकी है, अब यह चंद हज़रात मुखालफत कर रहे है, अब आप ही बताइए मुसलमानों का कलमा एक शख्स पर मुक्तफिक़ हो चुका और बैत मुकम्मल हो चुकी है क्या मैं इस बैत को मुकम्मल होने के बाद तोड़ दूं ?*
*▣_हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया– यह तो आपकी राय है आप जाने, लेकिन मैं यह कहती हूं कि इन हज़रात पर तशद्दुद ना कीजिए, अहतराम व रफाक़ के साथ इनसे गुफ्तगू कीजिए। हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने उनसे वादा किया कि मैं ऐसा ही करूंगा ।*
*®_( इब्ने कसीर )*
*▣_ हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु के क़यामे मदीना के ज़माने में यह महसूस करते थे कि हमें मजबूर किया जाएगा इसलिए मय अहलो अयाल मक्का मुकर्रमा पहुंच गए। अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अब्दुर्रहमान बिन अबी बकर रजियल्लाहु अन्हु हज के लिए मक्का मुकर्रमा तशरीफ ले गए।*
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*※ 6- हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु का खुत्बा ※*
*▣_ आपसे पहले भी खुलफा थे और उनके भी औलाद थी आपका बेटा कुछ उनके बेटों से बेहतर नहीं मगर उन्होंने अपने बेटों के लिए वह राय का़यम नहीं की जो आप अपने बेटे के लिए कर रहे हैं बल्कि उन्होंने मुसलमानों के इज्तिमाई फायदे को सामने रखा । आप मुझे तफरीक़े मिल्लत से डराते हैं सो आप याद रखें कि मैं फिरका़बीन मुस्लिमीन का सबब हरगिज़ नहीं बनूंगा मुसलमानों का एक फर्द हूं अगर सब मुसलमान किसी राय पर पड़ गए तो मैं भी उनमें शामिल रहूंगा।*
*▣_इसके बाद हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अबी बकर रजियल्लाहु अन्हु से इस मामले में गुफ्तगू फरमाई उन्होंने शिद्दत से इनकार किया कि मैं कभी इसको क़ुबूल नहीं करूंगा फिर अब्दुल्लाह बिन जु़बेर रजियल्लाहु अन्हु को बुलाकर खिताब किया उन्होंने भी वैसा ही जवाब दिया।*
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*※ 7- इज्तिमाई तौर पर हज़रत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु को सही मशवरा ※*
*▣__ इसके बाद हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु खुद जाकर हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु से मिले और उनसे कहा कि -आपके लिए यह किसी तरह भी मुनासिब नहीं कि आप अपने बेटे यजीद के लिए बैत पर इसरार करें हम आपके सामने तीन सूरते रखते हैं जो आपके पेशरू की सुन्नत है :-*
*★_१_आप वह काम करें जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने किया कि अपने बाद किसी को मुतैयन नहीं फरमाया बल्कि मुसलमानों की आम राय पर छोड़ दिया।*
*★_२_या वह काम करें जो हजरत अबू बकर रजियल्लाहु अन्हु ने किया कि एक ऐसे शख्स का नाम पेश किया जो ना तो उनके खानदान का है ना उनका कोई क़रीबी रिश्तेदार है और उसकी अहलियत पर भी सब मुसलमान मुत्तफिक़ है।*
*★_३_या वह सूरत अख्तियार करें जो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने की कि अपने बाद का मामला 6 आदमी पर छोड़ दिया।*
*“▣_ इसके सिवा हम कोई चौथी सूरत नहीं समझते ना क़ुबूल करने के लिए तैयार हैं।*
*▣_मगर हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु को इस पर इसरार रहा कि अब तो यजीद के हाथ पर बैत मुकम्मल हो चुकी है और इसकी मुखालफत आप लोगों को जायज़ नहीं।*
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*※ 8- हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु की वफात और यज़ीद को नसीहत ※*
*▣__वफात से पहले हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने यज़ीद को कुछ वसीयतें फरमाई इनमें एक यह भी कि मेरा अंदाजा यह है अहले इराक़ हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु को तुम्हारे ख़िलाफ़ आमादा करेंगे, अगर ऐसा हो और मुकाबले में तुम कामयाब हो जाओ तो उनसे दर गुज़र करना और उनकी क़राबते रसूलुल्लाह का पूरा एहतराम करना उनका सब मुसलमानों पर बड़ा हक है।*
*※ 9- यज़ीद का खत वलीद के नाम ※*
*▣_ यजीद ने तख्ते खिलाफत पर आते ही वाली मदीना वलीद बिन उतबा बिन अबी सुफियान को खत लिखा हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु को बैते खिलाफत पर मजबूर करें और उन्हें इस मामले में मोहलत ना दे।*
*▣_ मजीद ने मरवान बिन हाकम के मशवरे से उसी वक्त इन हज़रात को बुलवा भेजा तो हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु अपनी ज़क़ावत से पूरी बात समझ गए कि लगता है अमीरे माविया रजियल्लाहु अन्हु का इंतकाल हो गया है और यह लोग चाहते हैं कि इंतकाल की खबर मशहूर होने से पहले हमें यज़ीद की बैत पर मजबूर करेंगे।*
*▣_हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु वलीद के पास पहुंचे तो उसने यजीद का खत सामने रख दिया । हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु के इंतकाल पर इजहार ए अफसोस किया और बैत के मुताल्लिक फरमाया कि मेरे जैसे आदमी के लिए यह मुनासिब नहीं की खिलवत में पोशीदा तौर पर बैत कर लूं, मुनासिब है कि आप सबको जमा करें और सबके सामने बैते खिलाफत का मामला रखें । वलीद ने इसको क़ुबूल किया और हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु को वापसी की इजाज़त दे दी ।*
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*※ 10- हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु और हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का चले गए ※*
*▣__ हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु अपने भाई जाफर रज़ियल्लाहु अन्हु को साथ लेकर रातों-रात मदीना छोड़कर निकल गए। हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने भी यही सूरत अख्तियार की और अपनी औलाद, मुताल्लिक़ीन को लेकर मदीना से निकल गए और मक्का मुक़र्रमा पहुंचकर पनाह ली ।*
*▣_ यज़ीद को जब यह पता चला तो उसने वलीद को हटाकर अमर् बिन सा’द को अमीरे मदीना बना दिया और उनकी पुलिस का अफसर हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई अमरु बिन जुबेर को बनाया क्योंकि उसे मालूम था कि दोनों भाइयों ने शदीद इख्तिलाफ है।*
*▣_ यह इन हज़रात की गिरफ्तारी के लिए 2000 जवानों को लेकर मक्का रवाना हुआ और मक्का से बाहर क़याम करके अपने भाई अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हू के पास गिरफ्तारी के लिए आदमी भेजें कि उन्हें यजीद का हुक्म है , मैं मुनासिब नहीं समझता कि मक्का मुकर्रमा के अंदर क़िताल हो।*
*▣_ हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने चंद नौजवानों को मुकाबले के लिए भेज दिया जिन्होंने उनको शिकस्त दी और अमरू बिन सा’द ने इब्ने अलक़मा के घर में पनाह ली ।*
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*※_ 11- अहले क़ूफा के खुतूत ※*
*▣_ इधर जब अहले क़ूफा को हजरत माविया रजियल्लाहु अन्हु की वफात की खबर मिली और यह कि हजरत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु वगैरह ने बैते यजीद से इनकार कर दिया तो कुछ शिया सुलेमान बिन सर्द खज़ाई के मकान पर जमा हुए और हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु को खत लिखा कि हम भी यजीद के हाथ पर बैत पर तैयार नहीं, आप फौरन क़ूफा आ जाएं हम सब आपके हाथ पर बैत करेंगे ।*
*▣_ इसके दो रोज़ बाद इसी मज़मून का खत लिखा और दूसरे खुतूत हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु के पास भेजे और चंद वफूद भी पहुंचे, हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु वफूद और खुतूत से मुतास्सिर हुए मगर हिकमत और दानिशमंदी से यह किया की बजाय खुद जाने के अपने चचाजाद भाई हजरत मुस्लिम बिन अक़ील को क़ूफा रवाना किया ताकि हालात की तहकी़क हो।*
*▣_ मुस्लिम बिन अकी़ल क़ूफा पहुंचकर मुख्तार के घर में क़याम हुए चंद रोज के क़याम से ये अंदाजा लगा लिया कि यहां के आम मुसलमान हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की बैत के लिए बेचैन है आपने यह देखकर हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु के लिए बैते खिलाफत शुरू कर दी। चंद रोज में हीं सिर्फ क़ूफा से 18 हज़ार मुसलमानों ने हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु के लिए बैत कर ली और यह सिलसिला चलता रहा।*
*▣_ जब मुस्लिम बिन अकी़ल को यह इतमिनान हो गया कि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु तशरीफ लाएंगे तो बेशक पूरा इराक उनकी बैत को आ जाएगा , उन्होंने हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु को क़ूफा आने की दावत दे दी ।*
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*※_ 12- हालात में इंकलाब ※*
*▣_ मगर यह खत लिखे जाने के बाद क़ूफा से किसी ने एक खत यज़ीद को भेज दिया जिसमें मुस्लिम बिन अकी़ल के आने और हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु के लिए बैत लेने का वाकि़या जिक्र किया गया ।*
*▣_ यजीद ने फरमान निकालकर क़ूफा का अमीर अब्दुल्लाह बिन जि़याद को मुकर्रर किया और खत लिखा कि मुस्लिम बिन अकी़ल को गिरफ्तार करें और कत्ल करें या क़ूफा से निकाल दें।*
*※_13- हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु का खत अहले बसरा के नाम ※*
*▣_ इधर हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु का एक खत अहले बसरा के नाम पहुंचा जिसका मज़मून यह था :- आप लोग देख रहे हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सुन्नत मिट रही है और बिद’अत फैलाई जा रही है । मैं तुम्हें दावत देता हूं कि किताबुल्लाह और सुन्नते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की हिफाज़त करो और उसके एहकाम की तनफीज़ के लिए कोशिश करो।”*
*▣__लेकिन जो शख्स खत लेकर आया था उसको इब्ने जियाद के सामने पेश कर दिया गया । इब्ने जियाद ने उस क़ासिद को क़त्ल कर दिया और तमाम अहले बसरा को जमा करके कहा :-“_ जो शख्स मेरी मुखालफत करें मैं उसके लिए अज़ाबे अलीम हूं और जो मुवाफक़त करें उसके लिए राहत हूं ।”*
*▣_ इसके बाद यज़ीद का हुक्म पाकर कूफा के लिए रवाना हो गया।*
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*※_14- इब्ने जियाद क़ूफा में ※*
*▣_ क़ूफा के लोग हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु की आमद के मुंतजिर थे और उनमें से बहुत से लोग उन्हें पहचानते भी नहीं थे। जब इब्ने जियाद क़ूफा पहुंचा तो उन लोगों ने यही समझा कि हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु है, वह जिस मजलिस से गुज़रता यह कहकर इस्तकबाल करते थे- मरहबा या इब्ने रसूलुल्लाह।*
*▣_ इब्ने जियाद यह मंज़र खामोशी से देखता और दिल में कुड़ता था कि कूफा पर हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु का पूरा तसल्लुत हो चुका है अगले रोज़ सुबह इब्ने जि़याद ने अहले क़ूफा को जमा करके एक तक़रीर की ।
*※ 15- मुस्लिम बिन अकी़ल रज़ियल्लाहु अन्हु के तास्सुरात ※*
*▣_ मुस्लिम बिन अकील रजियल्लाहु अन्हु ने जब इब्ने जियाद के आने की खबर सुनी तो उन्हें खतरा हुआ और उन्होंने मुख्तार बिन अबी उबेद का घर छोड़ कर हानी बिन उरवा के मकान पर पनाह ली।*
*▣_ इत्तेफाकन हानी बिन उरवा बीमार हुए और इब्ने जियाद उनकी बीमारी की खबर पाकर इयादत के लिए उनके घर पहुंचा। उस वक्त उमर बिन अब्द सलवी ने कहा कि मौक़ा गनीमत है इस वक्त दुश्मन (इब्ने जियाद) तुम्हारे का़बू में है क़त्ल करा दो लेकिन हानी बिन उरवा ने कहा कि यह शराफत के खिलाफ है कि मैं उसको अपने घर में कत्ल करूं ।*
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*※_ 16- अहले हक़ और अहले बातिल में फर्क ※*
*▣_ मुस्लिम बिन अकी़ल रज़ियल्लाहु अन्हु से भी कहा गया कि फाजिर ( इब्ने जियाद ) को क़त्ल कर दे फिर आप मुतमइन होकर कसरे इमारत पर बैठे मगर उन्होंने ये मुनासिब नहीं समझा।*
*▣_ यहां यह बात काबिले गौर है मुस्लिम बिन अकी़ल रज़ियल्लाहु अन्हु को अपनी मौत सामने नज़र आ रही है और ना सिर्फ अपनी बल्कि पूरे खानदान अहले बैत की मौत भी और इसके साथ एक सही इस्लामी मक़सद की नाकामी ही देख रहे हैं और जिस शख्स के हाथों यह सब कुछ होने वाला है वह इस तरह उनके सामने है कि बैठे-बैठे उसको क़त्ल कर सकते हैं मगर अहले हक़ खुसूसन अहले बैत का जोहर ए शराफत और तक़ाज़ा इत्तेबा ए सुन्नत देखना और याद रखने के का़बिल है इस वक्त भी उनका हाथ नहीं उठा।*
*"_ यही अहले हक़ की अलामत है अपनी हर हरकत व सुकून और हर क़दम पर सबसे पहले यह देखते हैं कि अल्लाह ताला और उसके रसूल के नज़दीक हमारा यह क़दम सही है या नहीं।*
*※_ 17- हानी बिन उरवा पर तशद्दुद व मारपीट ※*
*▣_ जब इब्ने जियाद को हानी के बारे में पता चला कि मुस्लिम बिन अकी़ल रज़ियल्लाहु अन्हु को पनाह दी है तो उनको बुलवाकर मुस्लिम बिन अकी़ल को हवाले करवाने को कहा वरना तुम्हें भी कत्ल कर देंगे और उनसे शदीद मारपीट की गई ।*
*▣_इधर शहर में मशहूर हो गया की हानी बिन उरवा को क़त्ल कर दिया गया, जब यह खबर उमर बिन हिजाज को पहुंची तो वह क़बीला ए मुजाजीज के बहुत से जवानों को लेकर मौके पर पहुंच गए और इब्ने जियाद के मकान का मुहासबा कर लिया। इब्ने जियाद ने का़जी शरीह को कहा कि आप बाहर जाकर लोगों को बताएं कि हानी बिन उरवा सही सालिम है, क़त्ल नहीं किया गये गये मैं खुद उनको देख कर आया हूं । उनकी बात सुन कर उमर बिन हिजाज को इतमिनान हो गया और जवानों को वापस लौटा दिया।*
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*※ 18-मुस्लिम बिन अकील रज़ियल्लाहु अन्हु की बेबसी ※*
*▣_ इधर हानी बिन उर्वा के कत्ल की खबर मुस्लिम बिन अकील रज़ि. को मिली तो वो भी मुक़ाबले के लिए तैयार हो कर निकले और जिन 18 हज़ार मुसलमानों ने उनके हाथ पर बेत की थी उनको जमा किया और इस लश्कर ने इब्ने ज़ियाद के कसर का मुहासबा कर लिया,*
*▣_इब्ने ज़ियाद के साथ कसर में सिर्फ 30 सिपाही थे और कुछ खानदान के सादात थे, इब्ने ज़ियाद ने इनमे से चंद ऐसे लोगों को मुन्तख़ब किया जिनका असर व रसूख उनके क़बाइल पर था जो मुस्लिम बिन अकील रज़ि के साथ शामिल थे, इनको कहा गया कि तुम बाहर जाकर अपने अपने हल्का ए असर लोगों को मुस्लिम बिन अकी़ल का साथ देने से रोको, माल ,हुकूमत का लालच देकर या हुकूमत की सज़ा का ख़ौफ़ दिलाकर जिस तरह भी मुमकिन हो इनको मुस्लिम बिन अकील से जुदा कर दो,*
*▣_इधर सादात शिया को हुक्म दिया कि तुम लोग कसर की छत पर चढ़कर लोगों को इस बगावत से रोको, जब लोगों ने सादात शिया की जुबानी बातें सुनी तो अलग होना शुरू हो गए, औरतें अपने बेटों, भाइयों , शौहरों को वापस ले जाने के लिए आने लगी,यहां तक कि मुस्लिम बिन अकील रज़ि के साथ सिर्फ 30 लोग रह गए और जब वहां से वापस हुए तो देखा कि एक आदमी भी उनके साथ नही था,तो उन्हें एक औरत ने अपने घर मे पनाह दी,*
*▣_उस वक़्त इब्ने ज़ियाद अपने कसर से उतरकर मस्जिद में आया और पोलिस के अफसर को हुक्म दिया कि शहर के तमाम गली कूचों के दरवाजे पर पहरा लगा दो कोई बाहर न जा सके और सब घरों की तलाशी लो,*
*▣_इधर जब औरत के लड़कों को तलाशी के पता चला तो उन्होंने खुद मुस्लिम बिन अकील रज़ि, की खबर दे दी और 70 सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया, उन्होंने सबका मुक़ाबला किया, इस मुकाबले में जख्मी हो गए लेकिन उनके बस में न आए,लोग छत पर चढ़ कर उन पर पत्थर बरसाने लगे, और घर मे आग लगा दी।*
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*※ 19-मुस्लिम बिन अकील रज़ि. की गिरफ्तारी ※*
*▣_ मुहम्मद बिन असस ने पुकार कर कहा कि मैं आपको अमन देता हूँ, अपनी जान हलाकत में न डालो, मुस्लिम बिन अकील रज़ि. तने तन्हा 70 सिपाहियों का मुकाबला करते हुए ज़ख्मों से चूर चूर होकर थक कर एक दीवार के सहारे टिक गए, और उनकी आंखों से आंसू बह निकले ,फरमाया,-*
*“▣_मैं अपनी जान के लिए नही रोता हूं बल्कि हुसैन रज़ि. और आले हुसैन की जानों के लिये रो रहा हूँ, जो मेरी तहरीर पर अनक़रीब कूफ़ा पहुंचने वाले हैं, कम से कम मेरी एक बात मान लो कि एक आदमी हुसैन रज़ि. के पास फ़ौरन रवाना कर दो जो उनको मेरी हालत की इत्तेला कर के ये कहें कि आप रास्ते से ही लौट जाएं, कूफ़ा वालों के खुतूत से धोखा न खाए, ये वही लोग हैं जिनकी बेवफाई से परेशान हो कर आपके वालिद अपनी मौत की तमन्ना किया करते थे“*
*▣_मुहम्मद बिन असस ने वादा किया और वादे के मुताबिक एक आदमी को खत देकर हज़रत हुसैन रज़ि. को रोकने के लिए रवाना कर दिया, जिस वक्त ये क़ासिद उनके पास पहुंचा उस वक़्त हज़रत हुसैन रज़ि. मक़ामे ज़ियाला तक पहुंच चुके थे, खत पढ़कर आपने फरमाया, “▣_जो चीज़ हो चुकी है वो होकर रहेगी, हम सिर्फ अल्लाह ताला से अपनी जानों का सवाब चाहते हैं और उम्मत के फसाद की फरियाद करते हैं,,*
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*※ 20-मुस्लिम बिन अकील रज़ि. की शहादत और वसीयत ※*
*▣_मुस्लिम बिन अकील रज़ि. पहले ही समझते थे कि मुहम्मद बिन असस का अमान देना कोई चीज़ नही, इब्ने ज़ियाद मुझे क़त्ल करेगा, उन्होंने कहा कि, मुझे वसीयत करने की मोहलत दो,*
*"_इब्ने ज़ियाद ने मोहलत दे दी , और उन्होंने अम्र बिन साद से कहा के मेरे और आप के दरमियान क़राबत है और मैं इस क़राबत का वास्ता देकर कहता हूं कि मुझे तुमसे एक काम है,जो राज़ है वो मैं तन्हाई में बता सकता हूँ,*
*▣_अलाहिदा होकर मुस्लिम बिन अकील रज़ि.ने कहा कि काम ये है कि मेरे ज़िम्मे 700 दिरहम क़र्ज़ है जो मैंने कूफ़ा में फला आदमी से लिये थे वो मेरी तरफ से अदा कर दो,दूसरा काम ये है कि हुसैन रज़ि. के पास एक आदमी भेज कर उनको रास्ते से वापस कर दो,*
*▣_अम्र बिन साद ने इब्ने ज़ियाद से वसीयत पूरी करने की इजाज़त चाही तो उसने कहा, बेशक अमीन आदमी कभी खयानत नही करता ,तुम इनका क़र्ज़ अदा कर सकते हो बाक़ी रहा हुसैन रज़ि. का मामला सो अगर वो हमारे मुक़ाबले के लिए न आए तो हम भी उनके मुक़ाबले के लिए नही जाएंगे और वो आये तो हम भी मुक़ाबला करेंगे,*
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*※ 21-मुस्लिम बिन अकील रज़ि. और इब्ने ज़ियाद का मामला _,*
*▣_इब्ने ज़ियाद ने कहा ,ऐ मुस्लिम! तूने बड़ा ज़ुल्म किया कि मुसलमानों का नज़्म एक कलमा था, सब एक ईमान के ताबे थे, तुमने आकर इनमे तफर्रुक़ा डाला और लोगों को अपने अमीर के खिलाफ बगावत पर आमादा किया,*
*▣_मुस्लिम बिन अकील रज़ि. ने फरमाया कि मामला ये नही है बल्कि इस शहर कूफ़ा के लोगों ने खुतूत लिखे की तुम्हारे बाप ने इनके नेक और शरीफ लोगों को क़त्ल कर दिया, उनका खून नाहक़ बहाया और यहां के अवाम पर किसरा व क़ैसर जैसी हुकूमत करनी चाही, इसीलिए हम मजबूर हुए के अदल क़ाइम करने और किताब सुन्नत के अहकाम नाफ़िज़ करने की तरफ लोगों को बुलाए और समझाए,*
*"_इस पर इब्ने ज़ियाद और ज़्यादा बिगड़ गया, उसके हुक्म के मुवाफिक उनको शहीद कर के नीचे डाल दिया गया,*
*(इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजिऊन)*
*▣__हज़रत मुस्लिम बिन अकील रज़ियल्लाहु अन्हु को क़त्ल करने के बाद हानी बिन उर्वा को बाजार में ले जाकर क़त्ल किया गया, इब्ने ज़ियाद ने इन दोनों के सर काट कर यज़ीद के पास भेज दिए,*
*"_यज़ीद ने शुक्रिया का खत लिखा कि मुझे ये खबर मिली है कि हुसैन रज़ि. इराक़ के क़रीब पहुंच गए हैं, इसीलिए जासूस सारे शहर में फैला दो और जिस पर ज़रा भी हुसैन रज़ि. की ताइद का शुब्हा हो उसकों क़ैद कर लो मगर सिवाय उसके जो तुमसे मुक़ाबला करे किसी को क़त्ल न करो,*
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*※ 22- हज़रत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु का कूफा जाने का अज़्म ※*
*▣__हजरत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के पास अहले क़ूफा के 150 खुतूत और बहुत से वफूद पहले पहुंच चुके थे फिर मुस्लिम बिन अकी़ल रज़ियल्लाहु अन्हु ने 18000 मुसलमानों की बैत की खबर के साथ उन्हें कूफा आने की दावत दे दी थी तो हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने कूफा जाने का अज़्म कर लिया ।*
*▣__लेकिन जब यह बात मशहूर हुई तो बस अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु के और किसी ने भी क़ूफा जाने का मशवरा नहीं दिया। बहुत से हजरात आप की खिदमत में हाजिर हुए और अहले क़ूफा व इराक के वादों बैतों पर भरोसा ना करने का और वहां जाने में बड़ा खतरा होने का मशवरा दिया।*
*※ 23- हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु का मश्वरा ※*
*▣_ इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु को जब हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु के इरादे की खबर हुई तो तशरीफ लाए और फरमाया :- भाई मै इससे आपको खुदा की पनाह में देता हूं खुदा के लिए आप मुझे यह बताएं कि आप किसी ऐसी कौम के लिए जा रहे हैं जिन्होंने अपने ऊपर मुसल्लत होने वाले अमीर को क़त्ल कर दिया और वह लोग अपने शहर पर काबिज़ हो चुके हैं और अपने दुश्मनों को निकाल चुके हैं तो बेशक आपको उनके बुलावे पर फौरन चले जाना चाहिए।*
*"_ हजरत हुसैन रजियल्लाहु अन्हु ने इसके जवाब में फरमाया:- अच्छा मै अल्लाह से इस्तिखारा करता हूं फिर जो कुछ समझ में आएगा अमल कर लूंगा,*
*▣__दूसरे रोज़ इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फिर तशरीफ लाए और फरमाया :- भाई मैं सब्र करना चाहता हूं मगर सब्र नहीं होता, मुझे आपके इस क़दम से हलाक़त का सख्त खतरा है, अहले इराक बेवफा अहद शिकन लोग हैं आप उनके पास ना जाएं। आप पहले हिजाज़ के मुस्लिम रहनुमा और सरदार हैं और अगर अहले इराक आपसे मजीद तकाज़ा करें तो आप उनको लिखो कि पहले अमीर व हुक्काम को अपने शहर से निकाल दो फिर मुझे बुलाओ ।*
*“_मेरे भाई अगर आप जाना ही तय कर चुके हैं तो खुदा के लिए औरतों और बच्चों को साथ ना ले जाएं मुझे खौफ है कि कहीं आप इसी तरह अपनी औरतों और बच्चों के सामने क़त्ल किए जाएं जिस तरह हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु कत्ल किए गए ।*
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*※_ 24-हज़रत हुसैन रज़ि. की कूफ़ा रवानगी_※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. अपने नज़दीक एक दीनी ज़रूरत समझकर खुदा के लिए अज़्म कर चुके थे, मशवरा देने वालों ने उन्हें ख़तरात से आगाह किया मगर मक़सद की अहमियत ने उनको ख़तरात का मुकाबला करने के लिए मजबूर कर दिया,*
*▣_और ज़िल्हिज्जा 60 की 3 या 8 तारीख को आप रवाना हो गए उस वक़्त यज़ीद की तरफ से मक्का का हाकिम अमर् बिन साद बिन आस मुक़र्रर था, उसको उनकी रवानगी की खबर मिली तो चंद आदमी रास्ते पर उनको रोकने के लिए भेजे, लेकिन हज़रत हुसैन रज़ि. ने वापसी से इन्कार फरमाया और आगे बढ़ गए,*
*※_ 25-फ़र्ज़ूक शायर से मुलाक़ात ※*
*▣_रास्ते मे फ़र्ज़ूक शायर इराक की तरफ से आता हुआ मिला, हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा अहले इराक को तुमने किस हाल में छोड़ा,,*
*"_फ़र्ज़ूक ने जवाब दिया ‘”अहले इराक के कु़लूब तो आपके साथ है मगर उनकी तलवारें बनी उमैय्या के साथ है और तक़दीर आसमान से नाज़िल होती है और अल्लाह ता’ला जो चाहता है करता है,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरमाया :- तुम सच कहते हो, अल्लाह ही के हाथ मे तमाम काम है वो जो चाहता है करता है और हमारा रब हर रोज़ एक नई शान में है, अगर तक़दीरे इलाही हमारी मुराद के मुवाफिक हुई तो हम अल्लाह का शुक्र करेंगे और शुक्र करने में भी उन्ही की इ’आनत तलब करते हैं कि अदाए शुक्र की तौफ़ीक़ दे, और अगर तक़दीर इलाही हमारी मुराद में हाइल हो गई तो वो शख्स खता पर नही जिसकी नियत हक़ की हिमायत हो और जिसके दिल मे ख़ौफ़े खुदा हो,*
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*※ 26-हज़रत हुसैन रज़ि. का ख्वाब और अज़्म की वजह ※*
*▣_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफर रज़ि. ने जब हज़रत हुसैन रज़ि. की रवानगी की खबर सुनी तो अपने बेटों को खत देकर तेज़ी से रवाना किया कि उन्हें रास्ते मे ही रोक दो,*
*▣_ ये खत लिखकर पहले अब्दुल्लाह बिन जाफर रज़ि. यज़ीद की तरफ से वाली ए मक्का अमर् बिन साद के पास तशरीफ़ ले गए और उनसे वादा ए तहरीर लिखवाया कि वापस आ जाएं तो उनके साथ मक्का में अच्छा सुलूक किया जाएगा,*
*▣_जब ये खत हज़रत हुसैन रज़ि. के पास पहुंचा तो उस वक़्त आपने अपने अज़्म की एक और वजह बयान की कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा। और मुझे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से ये हुक्म दिया गया है, मैं इस हुक्म की बजा आवरी की तरफ जा रहा हूँ, चाहे मुझ पर कुछ भी गुज़र जाए,*
*"_उन्होंने पूछा कि ख्वाब क्या है? फरमाया कि आज तक मैंने वो ख्वाब किसी से बयान नही किया है, न करूँगा यहां तक कि मैं अपने परवरदिगार से जा मिलूं,।*
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*※27-कूफ़ा वालों के नाम हज़रत हुसैन रज़ि. का खत※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. जब मक़ामे हाजिर पर पहुंचे तो अहले कूफ़ा के नाम एक खत लिख कर हज़रत क़ैस के हाथ रवाना किया, खत में आपने आने की इत्तेला और जिस काम के लिए उनको अहले कूफ़ा ने बुलाया था उसमें पूरी कोशिश करने की हिदायत थी,*
*▣_हज़रत क़ैस जब ये खत ले कर क़ादसिया तक पहुंचे तो वहां उनको गिरफ्तार कर इब्ने ज़ियाद के पास भेज दिया गया, इब्ने ज़ियाद ने उनको हुक्म दिया कि कसरे इमारत की छत से (माजल्लाह)हज़रत हुसैन रज़ि. पर सब व शितम और लान तान करे, मगर हज़रत क़ैस ने बुलंद आवाज़ से हज़रत हुसैन रज़ि. के आने का मक़सद को बयां कर दिया, इससे नाराज हो कर इब्ने ज़ियाद ने उनको कसर की बुलंदी से फेक देने का हुक्म दिया और हज़रत क़ैस शहीद कर दिए गए ।*
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*※ 28-मुस्लिम बिन अकील रज़ि. के कत्ल की खबर पाकर हज़रत हुसैन रज़ि. का साथियों से मशवरा※*
*▣_ रास्ते मे एक पड़ाव पर अचानक अब्दुल्लाह बिन मती'अ से मुलाक़ात हुई, उन्होंने भी कहा:-*
*"_ऐ इब्ने रसूलुल्लाह !मैं आप को अल्लाह का और इज़्ज़ते इस्लाम का वास्ता देकर कहता हूं कि आप इस इरादे से रुक जाए, आप अगर बनु उमैया से उनकी इक़्तेदार को लेना चाहेंगे तो वो आप को क़त्ल कर देंगे ,आप ऐसा हरगिज़ न करे,आप कूफ़ा न जाये,*
*▣_मगर हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपना इरादा नही बदला,मक़ामे साल्विया में पहुंचकर आपको मुस्लिम बिन अकील रज़ि. के कत्ल की खबर मिली जो मुहम्मद बिन असअस के भेजे हुए क़ासिद ने दी, ये खबर सुनकर आपके बाज़ साथियों ने भी आपसे वापस लौट जाने का इसरार किया, मगर बनु अकील जोश में आ गए और कहने लगे कि हम मुस्लिम बिन अकील रज़ि. का बदला लेंगे या उनकी तरह जान दे देंगे,*
*▣_बाज़ साथियों की ये राय थी कि आप मुस्लिम बिन अकील रज़ि. नही हैं, आपकी शान कुछ और है, हमे उम्मीद है जब अहले कूफ़ा आपको देखेंगे तो आप के साथ हो जाएंगे।*
*▣_यहां तक कि फिर आगे बढ़ना तै कर के सफर किया गया और मक़ामे ज़ियाला पहुंच कर पड़ाव डाला, यहां ये खबर मिली कि आप के रज़ाई भाई अब्दुल्लाह इब्ने लकी़त जिनको रास्ते से मुस्लिम बिन अकील रज़ि. की तरफ भेजा गया था उनको भी क़त्ल कर दिया गया, इस खबर के बाद हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपने साथियों को जमा करके फरमाया:-*
*"_अहले कूफ़ा ने हमे धोखा दिया है, अब जिसका जी चाहे वापस हो जाये, मैं किसी की ज़िम्मेदारी अपने सर लेना नही चाहता_,"*
*▣_इस एलान के बाद रास्ते से साथ होने वाले लोग सब चल दिये और अब हज़रत हुसैन रज़ि. के साथ सिर्फ वही लोग रह गए जो मक्का से उनके साथ थे,*
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*※ 29-इब्ने ज़ियाद की तरफ से हर बिन यज़ीद एक हज़ार का लश्कर लेकर पहुंचा ※*
*▣_रास्ते मे दोपहर के वक़्त दूर से घुड़सवार फौज नज़र आई, ये देख कर हज़रत हुसैन रज़ि. और उनके साथियों ने एक पहाड़ के नज़दीक पहुंच कर मुहाज़ जंग बनाने में मसरूफ ही थे कि हर बिन यज़ीद की फौज मुक़ाबले पर आ गई,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपने साथियों से फरमाया, खूब पानी पीकर और घोड़ों को पिलाकर सैराब हो जाओ,*
*▣_यहां नमाज़ें ज़ुहर का वक़्त आ गया और सब नमाज़ के लिए जमा हो गए,हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरीक मुक़ाबिल को सुनाने के लिए एक तक़रीर फरमाई, तक़रीर सुनकर सब खामोश रहे, हज़रत हुसैन रज़ि. ने नमाज़ के लिए अक़ामत कहने का हुक्म दिया और हर बिन यज़ीद से फरमाया, तुम अपने लश्कर के साथ अलग नमाज़ पढोगे या हमारे साथ,*
*" ▣_हर ने कहा ,की नही हम सब आपके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे, हज़रत हुसैन रज़ि. ने नमाज़ ज़ुहर पढ़ाई और अपनी जगह तशरीफ़ ले गए, फिर नमाज़े असर भी आपने पढ़ाई और सब शरीक हुए,असर के बाद आपने एक खुतबा दिया, जिसमे आपने आने का मक़सद बयान किया,*
*▣_हर बिन यज़ीद ने कहा कि हमे खुतूत और वफूद की कोई खबर नही,*
*"_आपने 2 थैले जो खुतूत से भरे हुए थे उन लोगों के सामने उड़ेल दिए,*
*▣_ हर बिन यज़ीद ने कहा कि बहरहाल हम इन खुतूत के लिखने वाले नही हैं, हमे अमीर की तरफ से ये हुक्म मिला कि हम आपको उस वक़्त तक न छोड़े जब तक इब्ने ज़ियाद के पास कूफ़ा न पहुंचा दे,,*
*"_हज़रत हुसैन रज़ि. ने जवाब दिया, इससे तो मौत बेहतर है,*
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*※_ 30-हर बिन यज़ीद का ऐतराफ़. ※*
*▣_हर बिन यज़ीद ने हज़रत हुसैन रज़ि. से कहा कि ,,मुझे आपके कि़ताल का हुक्म नही दिया गया है बल्कि मैं आपसे उस वक़्त तक जुदा न होऊं जब तक आपको कूफ़ा न पहुंचा दु, इसीलिए आप ऐसा कर सकते है कि कोई ऐसा रास्ता अख्तियार करें जो ना कूफ़ा पहुंचाए न मदीना, यहां तक कि मैं इब्ने ज़ियाद को खत लिखूं और आप भी यज़ीद को या इब्ने ज़ियाद को लिखे, शायद अल्लाह ताला मेरे लिए कोई ऐसा मुखलिस पैदा कर दे कि मैं आपके मुक़ाबले और आपकी इज़ा से बच जाऊ,*
*▣_इसीलिए हज़रत हुसैन रज़ि. ने अजी़ब और क़ादसिया के रास्ते से बाईं जानिब चलना शुरू कर दिया और हर बिन यज़ीद भी लश्कर के साथ चलता रहा, इस दौरान हज़रत हुसैन रज़ि. ने तीसरा खुतबा दिया,*
*▣_हर बिन यज़ीद कुछ तो पहले से अहले बैत का अहतराम दिल मे रखता था कुछ आपके खुतबो से मुतास्सिर हो रहा था, ※*
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*※ _31-तिरमह बिन अदी का मशवरा _※*
*▣_ इसी हाल में 4 आदमी कूफ़ा से हज़रत हुसैन रज़ि. के मददगार पहुंचे जिनका सरदार तिरमह बिन अदी था, हर बिन यज़ीद ने चाहा कि उन्हें गिरफ्तार करे या कूफ़ा वापस कर दें, मगर हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरमाया कि:__ये मेरे मददगार और रफ़ीक़ हैं, इनकीं ऐसी ही हिफाज़त करूँगा जैसी अपनी जान की, हर बिन यज़ीद ने उनको इजाज़त दे दी,”*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने इन लोगों से कूफ़ा का हाल दरयाफ्त किया, उन्होंने बताया कि,” कूफ़ा के बड़े बड़े सरदारों को बड़ी बड़ी रिश्वतें दे दी गई है, अब वो सब आपके मुखालिफ है, अलबत्ता अवाम के कुलूब आपके साथ हैं,*
*_मगर इसके बावजूद जब मुक़ाबला होगा तो तलवारे उनकी भी आपके मुक़ाबले पर आएंगी,*
*▣_मैं देखता हूँ आपके साथ तो कोई कुव्वत और जमात नही, मैं कूफ़ा से निकलने से पहले इतना बड़ा लश्कर देख चुका हूं जो इससे पहले मेरी आँख ने न देखा था,*
*"_मैं आपको खुदा की क़सम देता हूं आप एक बालिश्त भी उनकी तरफ न बढ़े ,आप मेरे साथ चले, आपको अपने पहाड़ आजा में ठहराऊंगा जो निहायत महफूज़ किला है, फिर आजा और सलमि दोनो पहाड़ी क़बाइल के लोग आपकी मदद को आ जाएंगे,*
*"_इस वक़्त अगर आपकी राय मुक़ाबले की ही है तो मैं आपके लिए 20 हज़ार बहादुर सिपाहियों के जिम्मा लेता हूँ,*
*▣_ हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरमाया _अल्लाह ताला आपकी क़ौम को जज़ाए खैर दे, मगर हमारे और हर बिन यज़ीद के दरमियान एक बात तय हो चुकी है, अब उसके पाबंद हैं और हमे कुछ पता नही की हमारे साथ क्या होने वाला है,”*
*▣_ तिरमह बिन अदी रुखसत हो गए और अपने साथ सामाने रसद ले कर दोबारा आने का वादा कर गए, और फिर आए भी मगर रास्ते मे हज़रत हुसैन रज़ि. की शहादत की गलत ख़बर सुनकर लौट गए, ※*
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*※ 32-हज़रत हुसैन रज़ि. का ख्वाब ※*
*▣_ नस्र बनी मुक़तल पर पहुंच कर आपको ज़रा गनूदगी हुई तो “इन्ना लिल्लाह”कहते हुए बेदार हुए, आपके साहबज़ादे अली अकबर रज़ि. ने सुना तो घबराकर सामने आए, पूछा अब्बा जान क्या बात है?*
*"_आपने फरमाया :-मैंने ख्वाब में देखा कोई घुड़सवार मेरे पास आया और उसने कहा कि कुछ लोग चल रहे है और मौत उनके साथ चल रही है,इससे मैं समझा कि ये हमारी मौत की खबर है,”*
*"_साहबज़ादे ने अर्ज़ किया कि क्या हम हक़ पर नही है?*
*"_फरमाया:- क़सम उस जा़त की जिसकी तरफ सब बन्दगाने खुदा का रूजु है बिला शुब्हा हम हक़ पर हैं,”*
*▣_अर्ज़ किया-फिर हमें क्या डर है जब कि हम हक़ पर मर रहे हैं,”*
*"_हज़रत हुसैन रज़ि. ने उन्हें शाबाशी दी,फरमाया:-अल्लाह ताला तुम्हे जज़ाए खैर अता करे तुमने अपने बाप का सही हक़ अदा किया,”*
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*※ 33-असहाबे हुसैन रज़ि. का इरादाए क़िताल और हज़रत हुसैन रज़ि. का जवाब कि मै क़िताल नही करूँगा_※*
*▣_मक़ामे नेनवी पर एक सवार हर बिन यज़ीद के लिए एक खत ले कर आया जिसमे लिखा था कि जिस वक्त तुम्हे ये मेरा खत मिले तुम हुसैन रज़ि. पर मैदान तंग कर दो, और उनको ऐसे खुले मैदान की तरफ ले जाओ जहां पानी न हो, और मैंने क़ासिद को हुक्म दिया है कि जब तक मेरे इस हुक्म की तामील न कर दो तुम्हारे साथ रहेगा,"*
*▣_हर बिन यज़ीद ने ये खत हज़रत हुसैन रज़ि. को भी सुना दिया कि इस वक़्त मेरे सर पर जासूस मुसल्लत है, मैं इस वक़्त कोई मसलहत नही कर सकता,*
*▣_उस वक़्त ज़ुबैर बिन अलक़ीन रज़ि. ने अर्ज़ किया कि:- हर आने वाली घड़ी एक मुश्किलात में इज़ाफ़ा कर रही है और हमारे लिए इस लश्कर से कि़ताल करना आसान है बनिस्बत जो इसके बाद आएगा,"*
*"_ हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरमाया:- मैं कि़ताल में पहल नही करना चाहता,"*
*"_ज़ुबैर रज़ि. ने कहा कि :-आप कि़ताल मे पहल न करे बल्कि हमे उस बस्ती में ले जाये जो हिफाज़त की जगह हो और दरियाए फरात के किनारे पर हो, इस पर अगर ये लोग हमें वहां जाने से रोके तो हम कि़ताल करे,"*
*▣_ आपने पूछा :-ये कौनसी जगह है?कहा गया,"अक़र् है,"*
*"_आपने फरमाया ,"मैं अक़र् से पनाह मांगता हूं,"*
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*※ 34-अम्र बिन साद का लश्कर और पानी बंद करने का हुक्म ※*
*▣_इब्ने ज़ियाद ने अम्र बिन साद को मजबूर करके फौज के साथ मुक़ाबले के लिए भेज दिया, अम्र बिन साद ने आकर हज़रत हुसैन रज़ि. से कूफ़ा आने की वजह पूछी,*
*"_आपने सारा किस्सा बयान किया और फरमाया :-अगर अब भी उनकी राय बदल गयी है तो तो मैं वापस जाने के लिए तैयार हूं,*
*▣_अम्र बिन साद ने इब्ने ज़ियाद को इस मज़मून का खत लिखा कि हुसैन (रज़ि.)वापस जाने को तैयार हैं,*
*"_इब्ने ज़ियाद ने जवाब दिया कि :- हुसैन रज़ि. के सामने सिर्फ एक बात रखो की यज़ीद के हाथ पर बैत करे, जब वो ऐसा करे तो फिर हम गौर करेंगे कि उनके साथ क्या मामला किया जाए,"*
*"_और अम्र बिन साद को हुक्म दिया कि उनपर पानी बन्द कर दो।*
*▣_और पानी बंद कर दिया गया, ये वाक़िया शहादत से 3 दिन पहले का है, यहां तक कि जब ये सब हज़रात प्यास से परेशान हो गए तो हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपने भाई अब्बास बिन अली रज़ि. को 30 प्यादों के साथ पानी लेने भेजा,*
*"_पानी लाने पर अम्र बिन साद की फौज से मुक़ाबला भी हुआ, मगर 20 मशके पानी भर लाए, इसके बाद अम्र बिन साद के पास बात चीत का पैगाम भेजा,*
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*※_ 35-हज़रत हुसैन रज़ि. का इरशाद की 3 बातों में से कोई एक इख्तियार कर_ ※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि -हमारे बारे में आप 3 सूरतों में से कोई इख्तियार कर लो,*
*1-मैं जहां से आया हुं वहीं वापस लौट जाऊं,*
*2- या मैं यज़ीद के पास पहुंच जाऊं और खुद उससे अपना मामला तै कर लूं,*
*3- या मुझे मुसलमानों की किसी सरहद पर पहुंचा दो जो हाल वहां के आम लोगों का होगा मैं उसी में बसर कर लूं,*
*(बाज़ उलमा ने आखरी दो सूरतों का इनकार किया है)*
*▣_अम्र बिन साद ने ये सुनकर फिर इब्ने ज़ियाद के पास खत लिखा कि -अल्लाह ताला ने जंग की आग बुझा दी और मुसलमानों का कलमा मुत्तफ़िक़ कर दिया,*
*"_मुझे हज़रत हुसैन रज़ि. ने 3 सूरतों का इख्तियार दिया है और ज़ाहिर है इनमे आपका मक़सद पूरा होता है,और उम्मत की इसमें सलाह और फलाह है,*
*※ 36-इब्ने ज़ियाद का शर्तों को क़ुबूल करना और शिमार का इनकार_※*
*▣_ इब्ने ज़ियाद भी अम्र बिन साद के इस खत से मुतास्सिर हुआ और कहा कि :- ये खत एक ऐसे आदमी का है जो अमीर की इताअत भी चाहता है और अपनी क़ौम की आफ़ियत का भी ख्वाहिशमंद है, हमने इसे क़ुबूल कर लिया,"*
*▣_शिमर ज़िलजोशन ने कहा कि:- क्या आप हुसैन (रज़ि.) को मोहलत देना चाहते हैं कि कुव्वत हासिल कर के फिर तुम्हारे मुक़ाबले पर आए, वो अगर आज तुम्हारे हाथ से निकल गए तो फिर कभी उन पर काबू न पा सकोगे,*
*"_आप उन्हें मजबूर करें कि वो आपके पास आए फिर चाहे आप सज़ा दें या माफ करे,"*
*▣_इब्ने ज़ियाद ने शिमर की राय क़ुबूल कर के अम्र बिन साद को इसी मज़मून का खत खुद शिमर के हाथ भेजा और ये हिदायत दी कि:- अगर अम्र बिन साद हुक्म की तामील फ़ौरन न करे तो उसे क़त्ल कर दिया जाए और उसकी जगह तुम खुद लश्कर के अमीर हो,"*
*▣_शिमर को रवाना होने से पहले खयाल आया कि हज़रत हुसैन रज़ि. के साथियों में उसके फुफ़िज़ाद भाई भी हैं, इब्ने ज़ियाद से उनके लिए अमान लिया और रवाना हो गया,*
*▣_9मुहर्रम की तारीख को जब शिमर खत लेकर पहुंचा तो अम्र बिन साद सब समझ गया कि ये सब सूरत शिमर की वजह से पेश आई है, कहा कि तुमने बड़ा ज़ुल्म किया, मुसलमानों का कलमा मुत्तफ़िक़ हो रहा था उसको खत्म कर के क़त्ल व कि़ताल का बाज़ार गर्म कर दिया,"*
*▣_जब हज़रत हुसैन रज़ि. को ये पैगाम पहुंचाया गया तो आपने इसको क़ुबूल करने से इनकार कर दिया कि इस ज़िल्लत से मौत बेहतर है,*
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*※_ 37-हज़रत हुसैन रज़ि. का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखना ※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु अपने खेमें में बैठे थे कि इसी हालात में कुछ ऊंघ आकर आंख बंद हो गई कि एक आवाज़ के साथ बेदार हुए,*
*▣_ आपकी हमशीरा हज़रत ज़ैनब रज़ि. दौड़ी आई तो फरमाया कि, मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा, फरमाया कि अब हमारे पास आने वाले हो,*
*▣_ हमशीरा ये सुनकर रोने लगी, हज़रत हुसैन रज़ि. ने उन्हें तसल्ली दी,*
*"_इसी हालात में शिमर लश्कर ले कर सामने आ गया और बिला मोहलत, क़िताल का एलान सुनाया,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने एक रात की मोहलत मांगी कि मैं आज की रात वसीयत और नमाज़ और दुआ व इस्तग़फ़ार कर सकूं,*
*"_शिमर ने मशवरा कर के मोहलत दे दी,*
*※ 38- हज़रत हुसैन रज़ि. की तक़रीर ※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपने अहले बैत और असहाब को जमा किया और एक खुतबा दिया जिसमें हम्द व सना ,दुरूद व सलाम के बाद फरमाया कि,*
*“_मैं समझता हूं कि कल हमारा आखरी वक़्त है, मैं आप सबको खुशी से इजाज़त देता हूँ कि सब इस रात की तारीकी़ में मुतफर्रिक हो जाओ और जहां पनाह मिले चले जाओ और मेरे अहले बैत में से एक का हाथ पकड़ लो और मुख्तलिफ इलाकों में फैल जाओ, क्योंकि दुश्मन मेरा तलबगार है, वो मुझे पाएगा तो दूसरों की तरफ इल्तिफ़ात न करेगा,”*
*▣_ ये तक़रीर सुनकर आपके भाई, औलाद, भाइयों की औलाद और अब्दुल्लाह बिन जाफर रज़ि. की औलाद ,बनु अकी़ल सब एक आवाज़ हो कर बोले, “वल्लाह हम हरगिज़ न जाएंगे, हमे अल्लाह ताला आपके बाद बाक़ी ना रखे,”※*
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*※_39-अहले बैत को वसीयत _※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपनी हमशीरा हज़रत ज़ैनब रज़ि. और अहले बैत को वसीयत की:-*
*“_मैं तुम्हे खुदा की क़सम देता हूं कि मेरी शहादत पर तुम न कपड़े फाड़ना, और सीना कुबि वगैरह हरगिज़ न करना, आवाज़ से रोने और चिल्लाने से बचना,”*
*▣_ये वसीयत कर के आप और तमाम असहाब शबे तहज्जुद और दुआ ब इस्तग़फ़ार में मशगूल हो गए,*
*▣_ये आशूरा की रात थी और सुबह को यौमे आशूरा और रोज़े जुमा था,*
*※_ 40-हर बिन यज़ीद हज़रत हुसैन रज़ि. के साथ_※*
*▣_सुबह नमाज़ से फारिग होते ही अम्र बिन साद लश्कर ले कर सामने आ गया, हज़रत हुसैन रज़ि. के साथ उस वक़्त 72 असहाब थे, 30 सवार थे और 40 प्यादे थे ,आपने भी मुक़ाबले के लिए सफबन्दी फरमाई,*
*▣_अम्र बिन साद ने अपने लश्कर को 4 हिस्सों में तक़सीम कर के हर हिस्से का एक अमीर बनाया था, उनमे एक हिस्से का अमीर हर बिन यज़ीद था, (जो सबसे पहले एक हज़ार का लश्कर लेकर भेजा गया था,और हज़रत हुसैन रज़ि. के साथ साथ चल रहा था,और उनके खुतबों से मुतास्सिर हो चुका था,उसके दिल अहले बैत अतहार की मोहब्बत का जज़्बा बेदार हो चुका था,)*
*▣_अपना घोड़ा दौड़ाकर हज़रत हुसैन रज़ि. के लश्कर में आ मिला और अर्ज़ किया:- मुझे अंदाज़ा नही था कि ये लोग आपके खिलाफ इस हद तक पहुंच जाएंगे ,अगर मैं जानता तो हरगिज़ आपको ना रोकता ,अब मेरी सज़ा यही है कि मैं आपके साथ कि़ताल करता हुआ अपनी जान दे दूं,“ और ऐसा ही हुआ,*
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*※ 41-दोनो लश्करों का मुकाबला और हज़रत हुसैन रज़ि. का खिताब ※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. घोड़े पर सवार हुए और आगे बढ़कर बा आवाज़ बुलंद फरमाया, “लोगों मेरी बात सुनो, जल्दी न करो, ताकि मैं हक़ नसीहत कर दूं जो मेरे ज़िम्मे है और ताकि मैं अपने यहां आने की वजह बता दूं,फिर अगर तुम मेरा उज़्र क़ुबूल करो और मेरी बात को सच्चा जानो और मेरे साथ इंसाफ करो तो इसमें तुम्हारी फलाह है व सआदत है और फिर तुम्हारे लिए मेरे कि़ताल का कोई रास्ता नही, और अगर मेरा उज़्र क़ुबूल न करो तो तुम सब मिलकर मुक़र्रर करो अपना काम और जमा कर लो अपने शरीक़ों को कि न रहे तुमको अपने काम मे शुब्हा ,फिर कर गुज़रो मेरे साथ और मुझे मोहलत न दो,*
*(ये वही अल्फ़ाज़ हैं जो हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से कहे थे)*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. के ये अल्फ़ाज़ बहनों और औरतों के कानों में पड़े तो जब्त न कर सकी, रोने की आवाज़ें बुलंद हो गई,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपने भाई अब्बास रज़ि. को भेजा कि इनको नसीहत कर के खामोश कराए, और उस वक़्त फरमाया:-*
*“_अल्लाह ताला इब्ने अब्बास पर रहम फरमाए, उन्होंने सही कहा था कि औरतों को साथ न ले जाओ,”*
*▣_हम्द व सना के बाद फरमाया , “ऐ लोगों!तुम मेरा नसब देखों मैं कौन हूँ,फिर अपने दिलों में गौर करो कि क्या ये तुम्हारे लिए जाइज़ है कि तुम मुझे क़त्ल करो?*
*"_क्या मैं तुम्हारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबजा़दी का बेटा नही हूं ?क्या मैं उस बाप का बेटा नही हु जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चचाज़ाद भाई वासी उल मोमिनीन बिल्लाह था ? क्या सय्यदुल शोहदा हज़रत हमजा़ रज़ि. मेरे बाप के चाचा नही? क्या जाफर तैयार मेरे चाचा नही?*
*▣_क्या तुम्हें ये हदीस मशहूर नही पहुंची कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे और मेरे भाई हसन को सैयदा शबाब अहलल जन्नत और अपनी आंखों की ठंडक फरमाया ?*
*"_अगर तुम्हें मेरी बात का यकीन नही तो तुम्हारे अंदर ऐसे लोग मौजूद है जिनसे इसकी तस्दीक हो सकती है, क्या ये चीज़े तुम्हारे लिए मेरा खून बहाने से रोकने के लिए काफी नही है, मुझे बताओ कि मैंने किसी को क़त्ल किया है कि जिसके क़सास में मुझे क़त्ल कर रहे हो, या मैंने किसी का माल लुटा है या किसी को ज़ख्म दिया है,”*
*▣_इसके बाद हज़रत हुसैन रज़ि. ने कूफ़ा के बड़े सरदार लोगों का नाम लेकर पुकारा,“ ऐ शीश बिन रबी,ऐ हिजाज़ बिन जहरा, ऐ क़ैस बिन असस, ऐ ज़ैद बिन हारिस क्या तुम लोगों ने मुझे बुलाने के लिए खुतूत नही लिखे?*
*▣_ये सब लोग मुकर गए कि हमने नही लिखे, हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरमाया, “मेरे पास तुम्हारे खुतूत मौजूद हैं, इसके बाद फरमाया:-*
*“_ऐ लोगों अगर तुम मेरा आना पसंद नही करते तो मुझे छोड़ दो, मैं किसी ऐसी ज़मीन में चला जाऊंगा जहां मुझे अमान मिले,”*
*▣_क़ैस बिन असस ने कहा कि, “आप अपने चचाज़ाद भाई इब्ने ज़ियाद के हुक्म पर क्यों नही उतर आते, वो फिर आपके भाई हैं आपके साथ बुरा सुलूक नही करेंगे,”*
*"_हज़रत हुसैन रज़ि. ने फरमाया:-“_मुस्लिम बिन अकील रज़ि. के कत्ल के बाद भी तुम्हारी यही राय है ? वल्लाह मैं इसको क़ुबूल नही करूँगा”*
*▣_इसके बाद हज़रत ज़ुबैर बिन अलक़ीन रज़ि. ने नसीहत की कि अपनी इस हरकत से बाज़ आ जाओ जालिमो अब भी होश में आओ, फातिमा रज़ि. का बेटा सुमैया के बेटे (इब्ने ज़ियाद) से ज़्यादा मुहब्बत व इकराम का मुस्तहिक़ है,” ※*
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*※ 42-शिमर का पहला तीर ※*
*▣_जब गुफ़्तगू तवील होने लगी तो शिमर ने पहला तीर चला दिया,*
*▣_जब हर बिन यजीद ने खिताब किया तो उनपर भी तीर फेके गए,*
*▣_इसके बाद तीरंदाज़ी का सिलसिला शुरू हो गया, दुश्मनो के भी काफी आदमी मारे गए, हज़रत हुसैन रज़ि. के रफका़ भी बाज़ शहीद हो गए,*
*▣_घमासान की जंग हुई,घोड़े छोड़ के प्यादे आ गए, अब दुश्मनो ने खेमों में आग लगाना शुरू कर दिया,*
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*※ 43- घमासान में नमाज़े ज़ुहर का वक़्त ※*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. के अक्सर असहाब शहीद हो चुके थे और दुश्मनो के दस्ते हज़रत हुसैन रज़ि. के क़रीब पहुंच चुके थे,*
*"_अबु शमामा सादी ने अर्ज़ किया कि ,_मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो मैं चाहता हुं कि आपके सामने क़त्ल किया जाऊं, लेकिन दिल ये चाहता है कि ज़ुहर का वक़्त हो चुका है, ये नमाज़ अदा करके परवरदिगार के सामने जाऊं,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. ने आवाज़ बुलंद कर के फरमाया, “जंग मुल्तवी करो यहां तक कि हम नमाज़ पढ़ लें,”*
*"_ऐसी घमासान जंग में कौन सुनता और अबू शमामा इसी हाल में शहीद हो गए,*
*▣_उसके बाद हज़रत हुसैन रज़ि. ने अपने चंद असहाब के साथ नमाज़े ज़ुहर सलातुल ख़ौफ़ के मुताबिक अदा की, नमाज़ के बाद फिर क़िताल शुरू हुआ,हर कोई चाहता था कि मैं हज़रत हुसैन रज़ि. के सामने पहले शहीद हो जाऊं, इसीलिए हर शख्स निहायत शिद्दत ब शुजा'त से मुक़ाबला कर रहा था,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. के बड़े साहबज़ादे हज़रत अली अकबर रज़ि. ये शेर पढ़ते हुए आगे बढ़े:- (तर्जुमा) “_मैं हुसैन बिन अली रज़ि. का बेटा हूं क़सम है रब्बूल बैत की हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़रीबतर हैं,”*
*▣_कमबख्त मुर्राह बिन मुन्काज़ ने उनको नेजा मारकर गिरा दिया और उनकी लाश के टुकड़े टुकड़े कर दिए,*
*"_ अम्र बिन साद ने हज़रत क़ासिम बिन हसन रज़ि. के सर पर तलवार मारी, हज़रत हुसैन रज़ि. ने दौड़कर उनको संभाला और अम्र पर तलवार से हमला किया जिससे कुहनी से उसका हाथ कट गया, आपने अपने भतीजे की लाश को उठाया और अपने बेटे और दूसरे अहले बैत की लाशों के पास लिटा दिया,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. तक़रीबन तन्हा बेयार मददगार रह गए लेकिन उनकी तरफ बढ़ने की किसी को हिम्मत न थी ,हज़रत हुसैन रज़ि. के कत्ल और उसके गुनाह को अपने सर कोई लेना नही चाहता था,*
*"_यहां तक कि क़बीला कुण्दह का एक शकी़ उल क़ल्ब मलिक बिन नसीर आगे बढ़ा और हज़रत हुसैन रज़ि. के सर पर तलवार से हमला किया, आप शदीद ज़ख्मी हो गए, अपने छोटे बेटे अब्दुल्लाह रज़ि. को बुलाया और अपनी गोद मे बैठा लिया,*
*"_बनी असद के एक बदनसीब ने उनको भी तीर मार कर शहीद कर दिया, हज़रत हुसैन रज़ि. ने उस मासूम बच्चे का खून लेकर ज़मीन पर बिखेर दिया और दुआ की:- या अल्लाह ! तू ही इन जा़लिमो से हमारा इन्तेक़ाम ले”*
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*※ 44-हज़रत हुसैन रज़ि. की शहादत ※*
*▣_उस वक़्त आपकी प्यास हद तक पहुंच चुकी थी, आप पानी पीने के लिए दरिया ए फरात के क़रीब तशरीफ़ ले गए, ज़ालिम हुसेन बिन नमीर ने आप के मुंह पर निशाना कर के तीर फेका जो आपको लगा और दहन मुबारक से खून जारी हो गया,*
*""इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजिऊन,*
*▣_शिमर 10 आदमियों को लेकर हज़रत हुसैन रज़ि. की तरफ बढ़ा ,शदीद प्यास और ज़ख्मों के बावजूद आप उनका दिलेराना मुकाबला कर रहे थे और जिस तरफ आप बढ़ते ये भागते नज़र आते,*
*"_शिमर ने जब ये देखा कि हज़रत हुसैन रज़ि. के कत्ल करने से हर शख्स बचना चाहता है तो आवाज़ दी कि सब एक साथ हमला करो, इस पर बहुत से बदनसीब आगे बढ़े, नैज़ों और तलवारों से एक साथ हमला किया और ये इब्ने रसूलुल्लाह खैरे खलकुल्लाह फिल अर्ज़ जालिमो का दिलेराना मुकाबला करते हुए शहीद हो गए,*
*"_इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजिऊन,*
*▣_शिमर ने खोला बिन यज़ीद से कहा कि इनका सर काट लो, मगर उसका हाथ कांप गया, फिर शकी बदबख्त सननान बिन अनस ने काम अंजाम दिया,*
*"_आपकी लाश को देखा तो 33 ज़ख्म नैज़ों ,34 ज़ख्म तलवारों के थे,*
*"_फ़ा रज़ियल्लाहु अन्हुम व अर्ज़ह वर्ज़ूकना हुब्बा व हब मिन वालीदाह,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ि. और अहले बैत के क़त्ल से फारिग हो कर ये ज़ालिम हज़रत अली असगर जेनुल अबिदीन रज़ि. की तरफ मुतवज्जह हुए,*
*"_शिमर ने उनको भी क़त्ल करना चाहा, हमीद बिन मुस्लिम ने कहा, तुम बच्चे को क़त्ल करते हो जब कि वो मरीज़ भी है, तो शिमर ने उन्हें छोड़ दिया,*
*▣_अम्र बिन साद ने कहा कि औरतों के खेमो के पास कोई न जाए और इस मरीज़ बच्चे को कोई न छेड़े ,*
*"_इब्ने ज़ियाद का हुक्म था कि क़त्ल के बाद लाश को घोड़ों कि टापों से रौंदा जाए, उन जा़लिमो ने ये भी कर डाला।।*
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*※_ 45-हज़रत हुसैन रज़ि. और उनके रफका के सर मुबारक इब्ने ज़ियाद के दरबार मे_※*
*▣_जंग के खात्मे पर मक़तूलीन की शुमार की गई तो हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के असहाब में 72 हज़रात शहीद हुए और अम्र बिन साद के लश्कर के 88 सिपाही मारे गए, हज़रत हुसैन रज़ि. और उनके रफका़ को 2 दिन बाद दफन किया गया,*
*▣_खोला बिन यज़ीद और हमीद बिन मुस्लिम इन हज़रात के सरों को लेकर कूफ़ा रवाना हुए और इब्ने ज़ियाद के सामने पेश किया,इब्ने ज़ियाद ने सबको जमा कर के सरों को सामने रखा और एक छड़ी से हज़रत हुसैन के रज़ि. के दहन मुबारक को छूने लगा, ज़ैद बिन अर्क़म रज़ियल्लाहु अन्हु से रहा नही गया,और बोल उठे:-*
*“_कि छड़ी को इन मुबारक होंठों से हटा लें ,क़सम है उस ज़ात की जिसके सिवा कोई माबूद नही के मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा है इन होंठों को बोसा देते हुए,”ये कह कर रो पडे,*
*"_इब्ने ज़ियाद ने कहा कि तुम अगर बूढ़े न होते तो मैं तुम्हारी गर्दन को उड़ा देता,*
*▣_हज़रत ज़ैद बिन अर्क़म रज़ि. ये कहते हुए बाहर आ गए कि:-*
*“_ऐ क़ौमे अरब!तुमने सैयदुन्निसा फात्मा के बेटे को क़त्ल कर दिया और मरजाना क बेटे को अपना अमीर बना लिया,वो तुम्हारे अच्छे लोगों को क़त्ल करेगा और शरीरों को गुलाम बनाएगा,तुम्हे क्या हुआ जो इस ज़िल्लत पर राजी हो गए,”*
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*※ 46-बक़िया अहले बैत कूफ़ा में_, ※*
*▣_अम्र बिन साद 2 रोज़ बाद बाक़ी अहले बैत को लेकर कूफ़ा पहुंचा ,और सबको इब्ने ज़ियाद के सामने पेश किया, इब्ने ज़ियाद ने हज़रत अली असगर रज़ि. को भी क़त्ल करने का इरादा किया तो हज़रत अली असगर रज़ि. ने कहा कि मेरे बाद इन औरतों का कौन कफील होगा ?*
*▣_इधर हज़रत ज़ैनब रज़ि. से उनकी फूफी उनको लिपट गयी और कहने लगी:-“_ऐ इब्ने ज़ियाद ! क्या अभी तक हमारे खून से तेरी प्यास नही बुझी, मैं तुझे खुदा की क़सम देती हूं, इनको क़त्ल करे तो हमको भी इनके साथ क़त्ल कर दे,”*
*"_अली असगर रज़ि. ने फरमाया:-“_ऐ इब्ने ज़ियाद !अगर तेरे और इन औरतों के दरमियान कोई क़राबत (रिश्तेदारी) है तो इनके साथ किसी सालेह मुत्तक़ी मुसलमान को भेजना ,जो इस्लाम की तालीम के मुताबिक इनकीं रफाक़त करे,”*
*"_ये सुनकर इब्ने ज़ियाद ने कहा:-“_अच्छा इस लड़के को छोड़ दो कि ये खुद अपनी औरतों के साथ जाए,”*
*▣_इसके बाद इब्ने ज़ियाद ने एक नमाज़ के बाद खुतबा दिया जिसमें हज़रत हुसैन रज़ि. हज़रत अली रज़ि. पर सब व शितम किया, उस मजमे में एक नाबीना सहाबी अब्दुल्लाह बिन अफीफ अज़दी रज़ि. थे, वो खड़े हो गए और कहा:-“_ऐ इब्ने ज़ियाद! तू कज़ाब बिन कज़ाब है, तुम अम्बिया की औलाद को क़त्ल करते हो और सिद्दिक़ीन सी बातें बनाते हो,”*
*"_इब्ने ज़ियाद ने उन्हें गिरफ्तार करना चाहा लेकिन उनके क़बाइल के लोग खड़े हो गए तो उनकों छोड दिया,*
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*※ 47-सर मुबारक को कूफ़ा के बाजारों में फिराया गया ※*
*▣_ इब्ने ज़ियाद की शका़वत ने इसी पर बस नही किया बल्कि हुक्म दिया की हज़रत हुसैन रज़ि. के सर मुबारक को एक लकड़ी पर रख कर कूफ़ा के बाजारों और गली कूचों में घुमाया जाए,,*
*"_इसके बाद मूलके शाम यज़ीद के पास भेज दिया गया,और साथ ही औरतों और बच्चों को भी रवाना कर दिया गया,*
*▣_इनाम के लालच में हर बिन क़ैस यज़ीद के पास फतेह की खबर ले कर पहुंचा और मैदाने कर्बला की तफसील बयान की,*
*"_ये हाल सुनकर यज़ीद की आंखों से आंसू बह निकले और कहा:- मैं तुमसे इतनी ही इताअत चाहता था कि बगैर क़त्ल किये गिरफ्तार कर लो,अल्लाह ताला इब्ने सुमैया (इब्ने ज़ियाद)पर लानत करे, उसने इनको क़त्ल करा दिया, खुदा की कसम मैं वहां होता तो मैं माफ कर देता,अल्लाह ताला हुसैन रज़ि पर रहम फरमाए,”*
*▣_ सर मुबारक जिस वक्त यज़ीद के सामने रखा गया तो यज़ीद के हाथ मे एक छड़ी थी और हज़रत हुसैन रज़ि. के दांतों पर छड़ी फेर कर अशआर पढ़ने लगा:-*
*“_हमारी क़ौम ने हमारे लिए इंसाफ न किया तो हमारी खून चाकां तलवारों ने इंसाफ किया, जिन्होंने ऐसे मर्दों के सर फाड़ दिए हो हम पर सख्त थे और वो ताल्लुक़ात क़ता करने वाले ज़ालिम थे,”*
*▣_हज़रत अबू बर्ज़ा अस्लमी रज़ियल्लाहु अन्हु भी वही मौजूद थे, आपने कहा कि:-“_ऐ यज़ीद! अपनी छड़ी हज़रत हुसैन रज़ि. के दांतों पर लगाता है और मैंने देखा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इनको बोसा देते थे,”*
*"_ऐ यज़ीद! क़यामत के रोज़ तू आएगा तो तेरी शफ़ाअत इब्ने ज़ियाद ही करेगा और हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु आएंगे तो उनके शफी’ मुहम्मद मुस्तुफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम होंगे,”*
*_ये कह कर अबू बर्ज़ा रज़ि. मजलिस से निकल गए,*
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*※_ 48-यज़ीद के घर मातम_※*
*▣_जब यज़ीद की बीवी हिंदाह बिन्त अब्दुल्लाह ने ये सुना कि हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को क़त्ल कर दिया गया और उनका सर मुबारक लाया गया है तो वो चादर ओढ़ कर बाहर निकल आई और कहने लगी,*
*"_ऐ अमीरुल मोमीनून ! क्या इब्ने बिन्ते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ ये मामला किया गया है,”*
*"_उसने कहा:- खुदा इब्ने ज़ियाद को हलाक करे उसने जल्दी की और क़त्ल कर डाला,*
*"_ हिंदाह सुनकर रो पड़ी,*
*◈_यज़ीद ने कहा कि हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने ये कहा था कि मेरा बाप यज़ीद से और मेरी माँ यज़ीद की माँ से और मेरे दादा रसूलल्लाह ﷺ यज़ीद के दादा से बेहतर हैं,*
*◈__इनमे पहली बात कि मेरा बाप बेहतर है या उनका इसका फैसला तो अल्लाह ताला करेगा, वो दोनो वहां पहुंच चुके हैं और अल्लाह ही जानता है कि उसने किसने हक़ में फैसला किया है,*
*"_ और दूसरी बात कि उनकी वालिदा मेरी मां से बेहतर है तो मैं कसम खाता हूं कि बेशक सही है उनकी वलीदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा मेरी वालिदा से बेहतर हैं,*
*"_रही तीसरी बात उनके दादा से मेरे दादा बेहतर हैं तो ये ऐसी बात है कि कोई मुसलमान जिसका अल्लाह और यौमे आख़िरत पर ईमान है इसके ख़िलाफ़ नहीं कह सकता, उनकी ये सब बातें सही और दुरूस्त थीं मगर जो आफत आई वो उनकी समझ की वजह से आई,*
*▣_इसके बाद औरतें बच्चे यज़ीद के सामने लाये गए और सर मुबारक मजलिस में रखा हुआ था, हज़रत हुसैन रज़ि. की दोनों साहबज़ादियाँ फातिमा और सकीना रज़ियल्लाहु अन्हुमा की नज़र अपने वालिद माजिद के सर पर पड़ी तो बेसाख्ता रोने लगी के आवाज़ निकल गई, उनकी आवाज़ सुनकर यज़ीद की औरतें भी चिल्ला उठी और यज़ीद के घर मे एक मातम बरपा हो गया,*
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*※ (49)-अहले बैत की मदीना वापसी _※*
*"▣_ बाज़ रिवायत में है कि यज़ीद शुरू में हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के क़त्ल पर राज़ी था और उनका सर मुबारक लाया गया तो ख़ुशी का इज़हार किया, इसके बाद जब यज़ीद की बदनामी सारे आलमे इस्लाम में फ़ैल गई और वो सब मुसलमानो में मबगूज़ (क़ाबिले नफ़रत) हो गया तो बहुत नादिम हुआ और कहने लगा, काश मै तकलीफ़ उठा लेता और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने साथ अपने घर में रखता और उनको अख़्तियार दे देता कि जो वो चाहें करें,*
*"▣_ अगरचे इसमे मेरे इक़्तिदार को नुकसान ही पहुंचता, क्यूँकी रसूलुल्लाह ﷺ का और उनका उनकी क़राबत का यही हक़ था, अल्लाह ताला इब्ने मरजाना पर लानत करे, उसने मजबूर कर के क़त्ल कर दिया हालांकि उन्होंने कहा था कि मुझे यजीद के पास जाने दो या किसी सरहदी मुका़म पर पहुंचा दो मगर उस नालायक ने कुबूल ना किया और उनको क़त्ल कर के सारी दुनिया के मुसलमानों ने मुझे मबगूज़ कर दिया, उनके दिलो में मेरी अदावत का बीज बो दिया, हर नेक व बद मुझसे बुग्ज़ रखने लगा,*
*▣_इसके बाद अहले बैत को हिफाज़त के साथ मदीना की तरफ रवाना कर दिया गया,*
*▣_हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके असहाब के कत्ल की खबर जब मदीना पहुंची तो मदीना में कोहराम मच गया, मदीना के दरों दीवार रो रहे थे और जब अहले बैत के बकि़या नफूस मदीना पहुंचे तो मदीना वालों के जख्म ताज़ा हो गए ।*
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*※50-शहादत के वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा गया※*
*▣_बहीकी़ ने दलाइल में बासनद रिवायत लिखी हैं कि ,हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक रात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा कि दोपहर का वक़्त है,आप परागन्दा बाल परेशान हाल हैं, आपके हाथ में एक शीशी है जिसमे खून है,*
*"_ इब्ने अब्बास रज़ि. अन्हु फरमाते हैं कि मैने अर्ज़ किया कि इसमें क्या है?*
*"_फरमाया-हुसैन का खून है, मैं अल्लाह ताला के सामने पेश करूँगा,”*
*"_हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि. ने उसी वक़्त लोगों को ख़बर दे दी कि हुसैन रज़ि. अन्हु शहीद हो गए,*
*“_इस ख्वाब के चंद रोज़ बाद शहादत की खबर पहुंची और हिसाब लगाया गया तो ठीक वही वक़्त और वही दिन आपकी शहादत का था,*
*▣_तिर्मिज़ी ने सुलमी से रिवायत किया है कि वो एक रोज़ उम्मे सलमा रज़ि. अन्हा के पास गए तो रो रही थी, मैंने पूछा तो फरमाया, “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में इस तरह देखा है कि आपके सर मुबारक और दाढ़ी मुबारक पर मिट्टी पड़ी हुई है,”*
*"_मैंने पूछा कि ये क्या हाल है?*
*"_फरमाया की “मैं अभी हुसैन के क़त्ल पर मौजूद था”*
*▣_अबु नईम ने दलाइल में हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के क़त्ल पर मैंने जिन्नात को रोते देखा है,*
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*※ _51-हमारा अमल क्या होना चाहिए ※*
*◈_अगर हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ात व सिफ़ात का ज़िक्र आएगा तो हम बिला शुब्हा सर झुका लेंगे, और उनके नक्शे कदम पर सर के बल चलने को भी ईमान व सआदत समझेंगे,*
*◈_ और यज़ीद और उसके क़बाइर व मिसाल बा उयूब सामने आएंगे तो हम असल हक़ीक़त को समझ कर खामोशी इख़्तेयार करने को माकूल जज़्बा समझेंगे,*
*※ _अब उसका मामला अल्लाह मामला अल्लाह ताला के साथ है हमारे साथ नही, ※*
*⚀_ हज़रत मौलाना क़ारी तैयब साहब _,*
*※ 52-वाक़िया ए कर्बला का रंज व आलम_※*
*▣_हर कलमागो चाहे शिया हो या सुन्नी ,सबको इस दहशतनाक और दर्द अंगेज़ वाक़िए से बे इंतेहा रंज व अलम है,*
*"_कोई नही जो हज़रत हुसैन रज़ि. की मज़लूमियत से मगमूम न हो, तक़रीबन 1374 साल गुज़रने के बावजूद इस वाक़िए को कोई भूल नही पाया इसकी याद ताज़ा अपने सीनों में रहती है,*
*※_53-इज़हारे गम के तरीके में फर्क ※*
*▣_अहले सुन्नत वल जमात इस दर्दनाक वाक़यात को अपने सीने में रखने के बावजूद एक बहादुर साहिबे वक़ार इंसान की तरह संजीदगी को हाथ से जाने नही देते,*
*"_जबकि इसके खिलाफ शिया लोगों ने इस रंज व गम का इज़हार करने के लिए सुन्नत से मुंह मोड़ लिया और 10 वी मुहर्रम को इज़हारे गम का वो तरीक़ा इख्तियार कर लिया जो नाजाइज़ और हराम है,*
*▣_जिनसे मुसलमानों के अक़ाइद फ़ासिद होते हैं, शिया लोगों के कमज़ोर तबियत के रहनुमा अपने फायदे की खातिर हक़ को छिपाते हैं और आख़िरत के नताइज़ को नज़र अंदाज़ करते हैं,*
*"_ अफसोस ये है कि आज बहुत से हमारे सुन्नी भाई भी इनकीं पैरवी करते हैं और अपनी आख़िरत खराब कर रहे हैं,*
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*※_54-ताजियादारी के मुतालिक अहले सुन्नत का फैसला ※*
*▣_हज़रत शाह अब्दुल अजीज रह. मुहद्दिस देहलवी फतावा आजिज़ी मतबुआ मुज़तबै ,सफा 74 पर लिखते है:-*
*“_ताजियादारी बिदअत है और बिदअते शिया है और बिद’अते शिया इसमें शामिल होने वालों को खुदा की लानत में गिरफ्तार कर देती है, और उसके फ़राइज़ और नवाफिल भी बारगाहे इलाही में मक़बूल नही होते,*
*▣_मर्सिया ख्वानी की मजलिस में ज़ियारत और गिरयाज़ारी की नियत से जाना भी जाइज़ नही क्योंकि वहां कोई ज़ियारत नही है जिसके वास्ते कोई आदमी जाए और ताज़िया लकड़ियों की जो बनाई गई है ये ज़ियारत के का़बिल नही बल्की मिटाने के क़ाबिल है,*
*®_(फतावा अजी़ज़ी मतबुआ मुज़तबै सफा 73)*
*▣_ताज़िये के ताबूत की ज़ियारत करना और उस पर फातेहा पढ़ना और मर्सिया पढ़ना और किताब सुनना और फरियाद करना और रोना, सीना पीटना, इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के मातम में अपने आपको ज़ख्मी करना ये सब चीजें शरन नाजाइज़ है,*
*®_(फतावा अजी़ज़ी मतबुआ मुज़तबै सफा 155)*
*▣_हम मुसलमानों का फ़र्ज़ है कि ताज़िये के जुलूस में शिरकत से परहेज़ करें और अपने अहल व अयाल को भी बचाएं, हर मुसलमान को इस बिदअत व जहालत से रोकना हम सबका फ़र्ज़ है,*
*(अल्लाह तमाम अहले ईमान को हक़ की समझ अता फरमाए, आमीन या रब्बुल आलमीन, )*
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*※_ ताज़िया और अलम ※*
*▣_माहे मुहर्रम में ताज़िया मय अलम के निकालना और उसके साथ मर्सिया पढ़ना ,जुलूस के साथ शरीक होंना और चढ़ावा चढ़ाना और नज़रे हुसैन की सबील लगाना ,उसका पीना और पिलाना और उसका सवाब समझना, ये सब अफ़आल बिद्दत और नाजाइज़ है और रवाफिज़ का श’आर है, इनमे शिरकत भी नाजाइज़ है,*
*®_(फतावा मेहमुदिया, 2/44)*
*※ ताज़िये के सामने लाठी चलाना और खेल तमाशा※*
*▣_मुहर्रम के महीने में ताजियों के जुलूस के सामने लाठियां चलाना और दूसरे खेल तमाशे जो खेले जाते हैं, शर'न बेअसल और नाजाइज़ है, ये रवाफिज़ का तरीका है, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से साबित नही,*
*®_(फतवा मेहमुदिया, 2/45)*
*※_ ताज़िये की मन्नत ※*
*▣_ताज़िये की मन्नत दुरुस्त नही, जिन बड़ों ने इसकी मन्नत मानकर बनाना शुरू किया वो गलती पर थे और इस काम की वजह से गुनाहगार हुए और आपको इसकी इत्तेबाअ करना जाइज़ नही, ताज़िये वगैरह हरगिज़ न बनाए, क़तअन तर्क कर दीजिए,*
*"_ये अक़ीदा रखना की ताज़िया नही बनाएंगे तो कोई नुक़सान जानी माली पहुंचेगा ,ऐसे अक़ाइद से ईमान सालिम नही रहता,*
*▣_ताज़िये बनाना और उस पर नज़र नियाज़ चढ़ाना ,उससे मन्नत मानना हराम व शिर्क है, सदक़ा खैरात जो कुछ करना हो शरीयत के मुताबिक महज़ खुदा के लिए कर दिया जाए, ताज़िये पर चढ़ाने और उससे मन्नत मानने और गैरुल्लाह के नाम पर खाना खिलाने से वो खाना भी नाजाइज़ हो जाता है, इसका सवाब नही होता बल्कि गुनाह होता है,*
*※_ इसाले सवाब और इस्लाम के खिलाफ अफ़आल※*
*▣_अय्यामे मुहर्रम में मजलिसे मुनअक़द करना, इमामो के नाम का खिचड़ा पकाना शर्बत पिलाना, अपनी औलाद को इमामो का फ़क़ीर बनाना (फकीरी पहनाना), ये सब अफ़आल तालीमें इस्लाम के खिलाफ है और अल्लाह ताला और उसके सच्चे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नाराज़गी का सबब है, इन सबसे तौबा लाज़िम है,*
*▣_इसाले सवाब के लिए कुछ खाना गरीब मिस्कीन को खिलाकर या नक़द देकर, या क़ुरआने पाक पढकर या कोई इबादत कर के मुर्दों को सवाब पहुंचाना बगैर किसी तारीख व हैयत के इलतज़ाम के शर’न दुरुस्त है,*
*®_ (फतावा मेहमुदिया, 2/46)*
*※_ पंजतन पाक का मिसदाक़ _※*
*▣_हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, हज़रत अली, हज़रत फातिमा, हज़रत हसन और हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम को शामिल करके पंजतन पाक कहना, अगर पंजतन पाक का ये मतलब है कि इन सबका मक़ाम व दर्जा मुत्तहिद है तो ये गलत है,*
*®_ ( फतावा मेहमुदिया, 2/47)*
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*▣ क़ातिलाने हुसैन रज़ि. का इबरत्नाक अंजाम ▣*
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*▣_इमाम ज़हरी फरमाते है कि जो लोग क़त्ले हुसैन रज़ि. में शामिल थे उनमे से एक भी नही बचा जिसको आख़िरत से पहले दुनिया मे सज़ा न मिली हो, कोई क़त्ल किया गया, किसी का चेहरा सख्त सियाह हो गया,या मसख हो गया, या चंद रोज़ में ही मिल्क सल्तनत छीन ली गई और ज़ाहिर है कि ये इनके आमाल की असली सज़ा नही ,बल्कि उसका एक नमूना है जो लोगों को इबरत के लिए दुनिया मे दिखा दिया गया,*
*▣ 1-क़ातिले हुसैन रज़ि. अंधा हो गया ▣*
*"_इब्ने जोजी़ रह. ने रिवायत किया है कि एक बूढ़ा आदमी हज़रत हुसैन रज़ि. के कत्ल में शामिल था वो दफ़अतन नाबीना हो गया तो लोगों ने सबब पूछा, उसने कहा मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्वाब में देखा कि आस्तीन चढ़ाए हुए हैं, हाथ मे तलवार है और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने चमड़े का वो फर्श है जिसपर किसी को क़त्ल किया जाता है और उस पर क़ातिलाने हुसैन रज़ि. में से 10 आदमियों की लाशें ज़िबह की हुई पड़ी है,*
*▣_उसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे डांटा और खूने हुसैन रज़ि. की एक सलाई मेरी आँखों मे लगा दी, सुबह जब उठा तो मैं अंधा था, ( असाफ )*
*▣ 2-मूंह काला हो गया _▣*
*"_इब्ने जौज़ी रह. ने नक़ल किया है कि जिस शख्स ने हज़रत हुसैन रज़ि. के सर मुबारक को अपने घोड़े की गर्दन में लटकाया था, उसके बाद उसे देखा गया कि उसका मुंह काला तारकोल की तरह हो गया है लोगों ने पूछा कि तुम सारे अरब में खुशरूह आदमी थे तुम्हे क्या हुआ?*
*"_उसने कहा कि जिस रोज़ मैंने ये सर घोड़े की गर्दन में लटकाया जब ज़रा सोया तो देखा दो आदमी मेरे बाज़ू पकड़ते हैं और मुझे एक दहकती हुई आग पर ले जाते है, और इसी हालात में चंद रोज़ के बाद मर गया,*
*▣ 3-आग में जल गया ▣*
*"▣_इब्ने जौज़ी रह. ने सादी से नक़ल किया है कि उन्होंने एक शख्स की दावत की, मजलिस में ये ज़िक्र चला कि हज़रत हुसैन रज़ि. के कत्ल में जो भी शामिल हुआ उसको दुनिया मे भी जल्द सज़ा मिल गई, उस शख्स ने कहा बिल्कुल गलत है मैं खुद उनके क़त्ल में शामिल था मेरा कुछ भी नही बिगड़ा,*
*▣_ये शख्स मजलिस से उठकर घर गया, जाते ही चिराग को बत्ती दुरुस्त करते हुए उसके कपड़ों में आग लग गयी,और वहीं जलभूनकर रह गया,*
*"_सादी कहते हैं कि मैने खुद उसको सुबह देखा तो कोयला हो चुका था,*
*▣_ 4-तीर मारने वाला प्यास से तड़प तड़प कर मर गया ▣*
*▣"_जिस शख्स ने हज़रत हुसैन रज़ि. को तीर मारा और पानी पीने नही दिया उस पर अल्लाह ताला ने ऐसी प्यास मुसल्लत कर दी कि किसी तरह प्यास बुझती न थी पानी कितना ही पिया जाए, प्यास से तड़पता रहता था, यहां तक कि उसका पेट फट गया और मर गया,*
*▣_ 5-हलाकते यज़ीद _▣*
*"▣_शहादते हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद यज़ीद को भी एक दिन भी चैन नसीब न हुआ, तमाम इस्लामिक मुमालिक में खूने शोहदा का मुतालबा और बगावतें शुरू हो गई, उसकी जिंदगी उसके बाद 2 साल 8 माह और एक रिवायत में 3 साल 8 माह से ज़्यादा नही रही, दुनिया मे भी अल्लाह ताला ने उसको ज़लील किया और इसी ज़िल्लत के साथ हलाक हो गया,*
*▣ 6 कूफ़ा पर मुख्तार का तसल्लुत और क़ातिलाने हुसैन रज़ि. की इबरतनाक हलाकत _▣*
*▣_क़ातिलाने हुसैन रज़ि. पर तरह तरह की आफात का एक सिलसिला तो था ही ,शहादत के वाक़या से 5 साल बाद ही 66 हिजरी में मुख्तार ने क़ातिलों से क़सास लेने का इरादा किया तो आम मुसलमान उसके साथ हो गए और थोड़े ही अरसे में उसको ये कुव्वत हासिल हो गई कि कूफ़ा और इराक पर उसका तसल्लुत हो गया,*
*▣_उसने ऐलाने आम कर दिया क़ातिलाने हुसैन रज़ि. के सिवा सबको अमन दिया जाता है और क़ातिलों की तफ्तीश और तलाशी पर पूरी कुव्वत लगा दी जाती है और एक एक को गिरफ्तार कर के कत्ल किया, एक रोज़ में 248 आदमी इस जुर्म में क़त्ल किये गए, उसके बाद खास लोगों की तलाश और गिरफ्तारी शुरू हो गई,*
*▣_अम्र बिन हिजाज़ प्यास और गर्मी में भागा, प्यास की वजह से बेहोश हो कर गिर पड़ा और ज़िबह कर दिया गया,_सिमर ज़िलजोशन जो हज़रत हुसैन रज़ि. के बारे में सबसे ज़्यादा शकी और सख्त था उसको क़त्ल कर के लाश कुत्तों के सामने डाल दी गई,_अब्दुल्लाह बिन उसेद, मालिक बिन रशीद, हमाल बिन मालिक का मुहासबा कर के सबको क़त्ल कर दिया, मालिक बिन बशीर के दोनों हाथ और दोनो पैर काट कर मैदान में डाल दिए तड़प तड़प कर मर गया,*
*▣_उस्मान बिन खालिद और बशीर बिन शामित ने मुस्लिम बिन अकील रज़ि. के कत्ल में इआनत की थी ,इनको क़त्ल कर के जला दिया गया,_अम्र बिन साद जो हज़रत हुसैन रज़ि. के मुकाबले पर लश्कर की कमान कर रहा था, उसको क़त्ल कर के उसका सर मुख्तार के सामने लाया गया, मुख्तार ने उसके बेटे हफ़सा को भी कत्ल कर के कहा,*
*“अम्र बिन साद का क़त्ल तो हुसैन रज़ि. के बदले में है और हफ़सा का क़त्ल अली बिन हुसैन रज़ि. के बदले में और हक़ीक़त ये है कि फिर भी बराबरी नही हुई, अगर मैं 3 चौथाई क़ुरैश को क़त्ल कर दूं तो हज़रत हुसैन रज़ि. की एक उंगली का भी बदला नही हो सकता”*
*▣_हकीम बिन तुफैल जिसने हज़रत हुसैन रज़ि. को तीर मारा था उसका बदन तीरों से छलनी कर दिया गया, ज़ैद बिन रफद को तीर और पत्थर बरसाकर मारा गया फिर जला दिया गया,सलाम बिन अनस जिसने सर मुबारक काटने का अक़दाम किया था कूफ़ा से भाग गया,उसका घर मुँहदीम कर दिया गया,*
*▣_क़ातिलाने हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का ये इबरतनाक अंजाम मालूम कर के बेसाख्ता ये आयात ज़ुबान पर आई:-“तर्जुमा- :- अज़ाब ऐसा ही होता है और आख़िरत का अज़ाब इससे बड़ा है, काश वो समझ लेते_,"*
*▣_अब्दुल मलिक बिन उमेरेशी का बयान है कि मैने कूफ़ा के कसर् इमारत हज़रत हुसैन रज़ि. का सर मुबारक अब्दुल्लाह बिन ज़ियाद के सामने एक ढाल पर रखा हुआ देखा, फिर उसी कसर् में अब्दुल्लाह बिन ज़ियाद का सर मुख्तार के सामने देखा फिर उसी कसर में मुख्तार का सर कटा हुआ मोअसिब बिन ज़ुबैर के सामने देखा,*
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*※ हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने किस मक़सद के लिए जान दी ※*
*▣_आप पहले पढ़ चुके हैं हज़रत हुसैन रज़ि. ने अहले बसरा को जो खत लिखा था,जिसके चंद जुमले ये है,“_आप लोग देख रहे हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत मिट रही है,और बिद्दत फैलाई जा रही है, मैं तुम्हे दावत देता हूं कि कितबुल्लाह और सुन्नते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाज़त करो और उसके अहकाम की तन्फीज़ के लिए कोशिश करो,”(कामिल इब्ने असीर, 4/9)*
*▣_फ़र्ज़ुक शायर के जवाब में जो कलेमात कूफ़ा के रास्ते मे आपने इरशाद फरमाया उसके चंद जुमले ये है:-"_अगर तक़दीर इलाही हमारी मुराद के मुवाफिक होती है तो हम अल्लाह का शुक्र करेंगे और हम शुक्र अदा करने में भी उसकी इआनत तलब करते हैं कि अदाए शुक्र की तौफ़ीक़ दी और अगर तक़दीर इलाही मुराद में हाइल हो गई तो उस शख्स का कोई कुसूर नही जिसकी नियत हक़ की हिमायत हो और जिसके दिल मे खुदा का ख़ौफ़ हो, (इब्ने असीर,)*
*▣_मैदान जंग में खुतबे के ये अल्फ़ाज़ जब साहबज़ादे अली अकबर ने कहा था कि, अब्बा जान क्या हम हक़ पर नही हैं? आपने फरमाया,” क़सम है उस ज़ात की जिसकी तरफ सब बन्दगाने खुदा का रुजू है बिला शुब्हा हम हक़ पर हैं,*
*▣_अहले बैत के सामने आपके आखरी इर्शादात के आपके ये जुमले पड़े:-“मै अल्लाह ताला का शुक्र अदा करता हुं राहत में भी और मुसीबत में भी,या अल्लाह मैं आपका शुक्र अदा करता हु की आपने हमे शराफ़ते नुबूवत से नवाजा और हमें कान आंख और दिल दिए जिससे हम आपकी आयात समझे और दीन की समझ आता फरमाई ,हमे आप शुक्र गुज़ार बंदों में दाखिल फर्मा लीजिए,”*
*▣_इन खुतबात और कलिमात को सुनने पढ़ने के बाद भी क्या किसी मुसलमान को ये शुबहा हो सकता है कि हज़रत हुसैन रज़ि. की यह हैरत अंगेज़ क़ुरबानी अपनी हुकूमत और इक़्तेदार के लिए थी,बड़े ज़ालिम हैं वो लोग जो उस मुक़द्दस हस्ती की अज़ीमुश्शान क़ुरबानी को उनकी तसरिहात के खिलाफ बाज़ दुनियावी इज़्ज़त और इक़्तेदार की खातिर क़रार देते हैं, हक़ीक़त वहीं है जो शुरू में लिख चुका हूं कि हज़रत हुसैन रज़ि. की सारी क़ुरबानी सिर्फ इसीलिए थी,*
*▣_किताब व सुन्नत के कानून को सही तौर पे रिवाज दें,*
*◈_इस्लाम के निजाम अदल को अज़ सरे नो क़ाइम करें,*
*◈_इस्लाम मे खिलाफत नुबूवत के बजाए मुलुकीयत ब आमरियात की बिद्दत का मुकाबला करें,*
*◈_हक़ के मुकाबले में न ज़ोर व ज़ार की नुमाइश से मरूब हों और न जान माल और औलाद का ख़ौफ़ उस रास्ते मे हाइल हों,*
*◈_हर ख़ौफ़, मुसीबत, मशक़्क़त, में हर वक़्त अल्लाह को याद रखे,और इसी पर हर हाल में तवक़्क़ल और एतेमाद हो और बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी उसके शुक्र गुज़ार बंदे साबित हों,*
*▣_कोई है जो जिगर गोशाए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस पुकार को सुने और उनके मिशन को उनके नक़्शे क़दम पर अंजाम देने के लिए तैयार हो,उनके अख़लाक़ हँसना की पैरवी को अपनी ज़िंदगी का मक़सद बनाले,*
*“◈_ या अल्लाह हम सब को अपनी और अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके असहाब रज़ियल्लाहु अन्हुम व अहले बैत अतहर की मुहब्बते कामिला और इत्तेबा ए कामिल नसीब फरमाए,*
*⚀•हवाला:➻┐शहादते हुसैन रजियल्लाहु अन्हु, ( मजमुआ इफादात)*
◈
◰ ◱ ◴ ◵ ◶ ◷ ◸ ◹ ◺ ◸ ◹ ◺ ◶ ◷ ◸ ◹ ◺ ◸
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