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╭ *🕌﷽🕌* ╮

          *▓ मसाइल- ए -क़ुर्बानी ▓* ▦══─────────────══▦            
             *❂ फजा़इले क़ुर्बानी ❂*         
★__ हज़रत ज़ैद बिन अकरम रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से सहाबा किराम रिज़वानुल्लाहि आज़मईन ने दरयाफ्त किया -यह कुर्बानी क्या है ?
आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया -कुर्बानी तुम्हारे बाप हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है।
सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने पूछा -हमारे लिए इसमें क्या सवाब है ?
आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया -एक बाल के बदले एक नैकी है।
ऊन के मुताल्लिक फरमाया- इसके एक बाल के बदले भी एक नैकी है । *(मिश्कात शरीफ 129)*
★_ हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:- कुर्बानी से ज्यादा कोई दूसरा अमल नहीं है इल्ला ये कि रिश्तेदारी का पास किया जाए_," *( तबरानी )*
★_ कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी करना बहुत बड़ा अमल है । हदीस शरीफ में है कि कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी से ज्यादा कोई चीज अल्लाह ताला को महबूब नहीं और कुर्बानी करते वक्त खून का जो क़तरा जमीन पर गिरता है वह गिरने से पहले अल्लाह ताला के यहां मकबूल हो जाता है_," *( मिश्कात 123 )*
*आपके मसाईल और उनका हल -जिल्द 4 सफा 163 _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
  *❂ क़ुर्बानी किस पर वाजिब है और किस पर नहीं -❂*         
★_ चंदू सूरतों में कुर्बानी करना वाजिब है और चंद में नहीं :-
१_किसी शख्स ने कुर्बानी की मन्नत मानी हो तो उस पर कुर्बानी करना वाजिब है ।
२_किसी शख्स ने मरने से पहले कुर्बानी की वसीयत की हो और इतना माल छोड़ा हो कि उसके तिहाई माल से उसकी तरफ से कुर्बानी की जा सके तो उसकी तरफ से कुर्बानी करना वाजिब है।
३_ जिस शख्स पर सदका़ ए फितर् वाजिब है उस पर कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी करना भी वाजिब है ।
४_जिस शख्स के पास रिहायशी मकान ,खाने पीने का सामान, इस्तेमाल के कपड़ों और बाकी इस्तेमाल की दूसरी चीजों के अलावा साडे 52 तोला चांदी की मालियत का नक़द रूपया, माले तिजारत या दीगर सामान हो उस पर कुर्बानी करना वाजिब है।
"_ मसलन एक शख्स के पास दो मकान है एक मकान उसकी रिहाइश का और दूसरा खाली है, तो उस पर कुर्बानी वाजिब है जबकि उसी खाली मकान की कीमत साडे 52 तोला चांदी की मालियत के बराबर हो।
या मसलन एक मकान में वह खुद रहता है दूसरा मकान किराए पर उठाया हो तो उस पर भी कुर्बानी वाजिब है अलबत्ता अगर उसका ज़रिया ए मास यही मकान का किराया है तो यह भी जरूरियाते जिंदगी में शुमार होगा और उस पर कुर्बानी करना वाजिब नहीं ।
या मसलन किसी के पास दो गाड़ियां हैं एक आम इस्तेमाल की है और दूसरी जायद है तो उस पर भी कुर्बानी है । या मसलन किसी के पास दो प्लॉट है एक मकान बनाने के लिए हैं और दूसरा जायद है तो अगर उसके दूसरे प्लॉट की कीमत साडे 52 तोला चांदी कीमत के बराबर हो तो उस पर कुर्बानी वाजिब है।
★__ औरत का महरे मुअजल अगर इतनी मालियात का हो तो उस पर भी कुर्बानी वाजिब है , या सिर्फ वालदेन की तरफ से दिया गया ज़ेवर और इस्तेमाल से जायद कपड़े निसाब की मालियत को पहुंचते हो तो उस पर भी कुर्बानी वाजिब है ।
★_एक शख्स मुलाजिम है उसकी माहाना तनख़ाह से उसके अहलो अयाल की गुज़र बसर हो सकती है उस पर कुर्बानी वाजिब नहीं जबकि उसके पास कोई और मालियात ना हो।
★_ एक शख्स के पास पैदावार की जमीन है जिस की पैदावार से उसकी गुज़र बसर होती है वो ज़मीन उसकी जरूरियात में समझी जाएगी ।
★_एक शख्स के पास हल जोतने के लिए बेल और दूधारी गाय भैंस के अलावा और मवेशी इतने हैं कि उनकी मालियात निसाब को पहुंच जाए तो उस पर कुर्बानी करना वाजिब है ‌।
★_५_ एक शख्स साहिबे निसाब नहीं ना कुर्बानी उस पर वाजिब लेकिन उसने शॉक से कुर्बानी का जानवर खरीद लिया तो कुर्बानी वाजिब है।
★_६_ मुसाफिर पर कुर्बानी वाजिब नहीं ।
"_सही काॅल के मुताबिक बच्चे और मजनून पर कुर्बानी वाजिब नहीं चाहे वह मालदार हो।      
★__ चांदी के निसाब भर मालिक हो जाने पर कुर्बानी वाजिब है ।
★_कुर्बानी साहिबे निसाब पर हर साल वाजिब है ।
★_जकात में निसाब पर साल गुजरना शर्त है लेकिन कुर्बानी के वाजिब होने के लिए साल गुजरना शर्त नहीं बल्कि कोई शख्स कुर्बानी के दिन साहिबे निसाब हो गया तो उस पर कुर्बानी वाजिब होगी ।
★_बर सरे रोजगार साहिबे निसाब बालिग लड़के लड़कियां सब पर कुर्बानी वाजिब हैं चाहे अभी उनकी शादी ना हुई हो ।
★_एक ही घर में बाप बेटे बेटियां बीवी अगर साहिबे निसाब हो तो हर एक पर अलग-अलग कुर्बानी वाजिब है ।
★_मकरूज अगर कर्ज अदा करने के बाद साडे 52 तोला चांदी की मालियत हाजाते असलिया से जायद मौजूद हो तो कुर्बानी वाजिब है ।
★_अगर कुर्बानी के दिन गुजर गए तो गफलत या किसी और उजर् से कुर्बानी ना कर सका तो कुर्बानी की कीमत फुकरा मसाकीन पर सदका़ करना वाजिब है लेकिन कुर्बानी के ३ दिनों में जानवर की कीमत सदका़ कर देने से यह वाजिब अदा ना होगा ।
★_साहिबे निसाब गुजिश्ता जितने सालों की (जबकि साहिबे निसाब था और कुर्बानी नहीं की) कुर्बानी वाजिब थी और अदा नहीं की तो उन सालों का हिसाब करके (एक हिस्से की कीमत जितनी बनती है) वो रकम किसी फकीर पर सदका करना वाजिब है ।
★_गुंजाइश हो तो अपने मरहूम बुजुर्गों की तरफ से और हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की तरफ से जरूर कुर्बानी की जाए।
"_ लेकिन अगर साहिबे निसाब है पहले अपनी तरफ से कुर्बानी करें और दूसरी कुर्बानी मरहूम बुजुर्गों और हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की तरफ से अलग करें।
★_ जिस पर कुर्बानी वाजिब नहीं अगर वह भी कुर्बानी करे तो उसे भी पूरा सवाब होगा ।
"_अगर किसी आदमी ने कुर्बानी की नियत से बकरा लिया और फिर कुर्बानी से पहले ही बेच दिया तो इस्तगफार करते हुए उस रकम का सदका करना वाजिब है, और अगर कुर्बानी उस पर वाजिब थी ( साहिबे निसाब था) तो दूसरा जानवर खरीदकर कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी करें ।       
* आपके मसाइल और उनका हल जिल्द 4 सफा-१७३ _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
         *❂ क़ुर्बानी का वक्त ❂*         
★__ बकरा ईद की दसवीं तारीख से लेकर 12 वीं तारीख शाम (सूरज गुरुब होने से पहले ) तक कुर्बानी का वक्त है, इन दिनों में जब चाहे कुर्बानी कर सकते हैं लेकिन पहला दिन अफज़ल है फिर दूसरा ।
_इन 3 दिनों के दौरान रात के वक्त कुर्बानी करना भी जाइज़ तो है लेकिन बेहतर नहीं ।
★_शहर में नमाजे ईद से पहले कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं अगर किसी ने ईद से पहले जानवर जिबह कर लिया तो यह गोश्त का जानवर हुआ कुर्बानी का नहीं, अलबत्ता देहात में जहां ईद की नमाज नहीं होती ईद के दिन सुबह सादिक तुलु हो जाने के बाद कुर्बानी करना दुरुस्त है ।
अगर शहरी आदमी खुद तो शहर में मौजूद है मगर कुर्बानी का जानवर देहात में भेज दे और वहां सुबह सादिक के बाद क़ुर्बानी हो जाए तो दुरुस्त है।
★_ अगर इन 3 दिनों के अंदर मुसाफिर अपने वतन पहुंच गया या उसने कहीं अक़ामत की नियत कर ली और वह साहिबे निसाब है तो उसके जिम्मे कुर्बानी वाजिब होगी ।
★_जिस शख्स के जिम्मे कुर्बानी वाजिब है उसके लिए इन दिनों में कुर्बानी का जानवर जिबह करना लाजिम है , अगर इतनी रकम सदका़ खैरात कर दे तो कुर्बानी अदा नहीं होगी और यह शख्स गुनहगार होगा ।
★_जिस शख्स पर कुर्बानी वाजिब थी और इन ३ दिनों में कुर्बानी नहीं की तो उसके बाद कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं ऐसे शख्स को तौबा इस्तगफार करते हुए कुर्बानी के जानवर की मालियत सदका़ करना चाहिए।
*आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा 165 _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*            
*❂ किसी दूसरे की तरफ से नियत करना ❂*         
★_क़ुरबानी में नियाबत जाइज़ है यानी जिस शख्स के ज़िम्मे क़ुरबानी वाजिब है अगर उसकी इजाज़त से या हुक्म से दूसरे शख्स ने उसकी तरफ से क़ुरबानी कर दी तो जाइज़ है,लेकिन अगर किसी शख्स के हुक्म के बगैर उसकी तरफ से क़ुरबानी की तो क़ुरबानी नही होगी ,इसी तरह अगर किसी शख्स को उसके हुक्म के बगैर शरीक़ किया गया (हिस्से में) तो किसी की भी क़ुरबानी जाइज़ नही होगी,
★_आदमी के ज़िम्मे अपनी औलाद की तरफ से क़ुरबानी करना ज़रूरी नही, अगर औलाद बालिग है और मालदार हो तो खुद करे, इसी तरह मर्द के ज़िम्मे बीवी की तरफ से क़ुरबानी करना लाज़िम नही,अगर बीवी साहिबे निसाब हो तो उसके लिए अलग क़ुरबानी का इंतज़ाम किया जाए,
★_जिस शख्स को अल्लाह ने तौफ़ीक़ दी हो वो अपनी वाजिब क़ुरबानी के अलावा अपने मरहूम वालिदैन और दीगर बुज़ुर्गों की तरफ से भी क़ुरबानी करे,इसका बड़ा अजरो सवाब है,लेकिन पहले अपनी वाजिब क़ुरबानी की जाए,
★_हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भी हम पर बड़े एहसानात और हुक़ूक़ हैं,अल्लाह ताला ने गुंजाइश दी हो तो आप स.अ. की तरफ से भी क़ुरबानी की जाए,मगर अपनी वाजिब क़ुरबानी पहले लाज़िम है,उसको छोड़ना जाइज़ नही,
★_क़ुरबानी का जानवर ज़िबह करते वक़्त ज़बान से नियत के अल्फ़ाज़ पढ़ना ज़रूरी नही,बल्कि दिल मे नियत करना काफी है,और जो दुआए हदीस पाक में मंक़ूल है अगर किसी को याद हो तो उनका पढ़ना मुस्तहब है,।
* आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा 166_,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
       *❂ कुर्बानी किन चीजों की जाइज़ है-❂*         
★_ १_ बकरी बकरा भैड दुंबा भैंस भैंसा ऊंट ऊंटनी की कुर्बानी दुरुस्त है इनके अलावा किसी और जानवर की कुर्बानी दुरुस्त नहीं ।
★_२_बडे जानवर भैंस ऊंट में अगर 7 आदमी शरीक होकर कुर्बानी करें तो भी दुरुस्त है मगर ज़रुरी है कि किसी का हिस्सा सातवें हिस्से से कम ना हो और यह भी शर्त है कि सभी की नियत क़ुर्बानी या अक़ीके की हो सिर्फ गोश्त खाने के लिए हिस्सा रखना मकसूद ना हो ,अगर एक आदमी की नियत भी सही ना हो तो किसी की भी कुर्बानी सही ना होगी।
★_३_किसी ने कुर्बानी के लिए बड़ा जानवर खरीदा और खरीदते वक्त यह नियत थी कि दूसरे लोगों को भी शरीक कर लेंगे और बाद में दूसरों का हिस्सा रख लिया तो यह दुरुस्त है । लेकिन अगर बड़ा जानवर खरीदते वक्त दूसरे लोगों को शरीक करने की नियत नहीं थी बल्कि पूरा जानवर अपनी तरफ से कुर्बानी करने की नियत थी मगर अब दूसरों को भी शरीक करना चाहता है तो यह देखा जाएगा कि उस शख्स के जिम्मे कुर्बानी वाजिब है या नहीं ,अगर कुर्बानी वाजिब है तो दूसरों को भी शरीक तो कर सकता है मगर बेहतर नहीं , और अगर उसके जिम्मे कुर्बानी वाजिब नहीं थी तो दूसरों को शरीक करना दुरुस्त नहीं।
★_४_ अगर कुर्बानी का जानवर गुम हो गया और उसने दूसरा जानवर खरीद लिया फिर इत्तेफाक से पहला भी मिल गया तो अगर उस शख्स के जिम्मे कुर्बानी वाजिब थी तब तो सिर्फ एक जानवर की कुर्बानी उसके जिम्मे होगी और अगर कुर्बानी वाजिब नहीं थी तो दोनों जानवरों की कुर्बानी लाजिम होगी ।
★_५_बकरा बकरी अगर 1 साल से कम उम्र के हो चाहे एक ही दिन कम हो तो उसकी कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं।
★_६_ बड़  जानवर भैंस पूरे 2 साल की हो तो कुर्बानी दुरुस्त होगी इससे कम उम्र की हो तो दुरुस्त नहीं।
★_७_ ऊंट पूरे 5 साल का हो तो कुर्बानी दुरुस्त है ।
★_८_भेड़ या दूंबा अगर 6 महीने से ज्यादा का हो और इतना मोटा ताजा हो कि अगर पूरे 1 साल वाले भेड़ दुंबों के दरमियान में छोड़ा जाए तो फर्क मालूम ना हो तो उस की कुर्बानी करना दुरुस्त है और अगर फर्क मालूम हो तो कुर्बानी दुरुस्त नहीं ।
★__९_ जो जानवर अंधा या काना हो उसकी एक आंख की तिहाई रोशनी या तिहाई से ज्यादा जाती रही हो , या एक कान तिहाई या तिहाई से ज्यादा कट गया हो तो उसकी कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं।
★_१० _जो जानवर इतना लंगड़ा हो के सिर्फ 3 पांव से चलता हो, चौथाई पांव ज़मीन पर रखता ही नहीं या रखता हो मगर उससे चल नहीं सकता तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त नहीं । और अगर चलने में चोथाई पांव का सहारा तो लेता है मगर लंगड़ा कर चलता है तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त है।
★_११_ अगर जानवर इतना दुबला हो कि उसकी हड्डियों में गोश्त तक ना रहा हो तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त नहीं ।अगर ऐसा दुबला ना हो तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त हैं लेकिन जानवर जितना मोटा फरबा हो उसी क़दर क़ुर्बानी अच्छी है ।
★_१२_ जिस जानवर के दांत बिल्कुल ना हो या ज्यादा दांत झड़ गये हो उसकी कुर्बानी दुरुस्त नहीं ।
★_१३_जिस जानवर के पैदाइशी कान ना हो उसकी कुर्बानी दुरुस्त नहीं । अगर कान तो हो मगर छोटे हो तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त है ।
★_१४_जिस जानवर के पैदाइशी तौर पर सींग ना हो उसकी कुर्बानी दुरुस्त है और अगर सींग थे मगर टूट गए तो अगर सिर्फ ऊपर से खोल उतरा है अंदर का गूदा बाकी है तो कुर्बानी दुरुस्त है और अगर जड़ ही से निकल गए हो तो उसकी कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं।
★_१५_ खस्सी जानवर की कुर्बानी जायज़ बल्कि अफजल है।
★_१६_ जिस जानवर के खारिश हो तो अगर खारिश का असर सिर्फ जिल्द तक महदूद है तो उसकी कुर्बानी करना दुरुस्त है और अगर खारिश का असर गोश्त तक पहुंच गया हो और जानवर उसकी वजह से लाचार और कमजोर हो गया है तो उसकी कुर्बानी दुरुस्त नहीं।    
★__१७_ अगर जानवर खरीदने के बाद उसमें कोई ऐब ऐसा पैदा हो गया जिसकी वजह से उसकी कुर्बानी दुरुस्त नहीं तो अगर यह शख्स साहिबे निसाब है और कुर्बानी वाजिब है तो उसकी जगह तंदूरुस्त जानवर खरीदकर कुर्बानी करें और अगर उस शख्स के जिम्मे कुर्बानी वाजिब नहीं तो वह उसी जानवर की कुर्बानी करें ।
★_१८_ जानवर पहले तो सही सालिम था मगर जिबह करते वक्त जो उसको लिटाया तो उसकी वजह से उसमें कुछ ऐब पैदा हो गया तो उसका कोई हर्ज नहीं उसकी कुर्बानी दुरुस्त है।
★_१९_ गाबन (हामला) जानवर की कुर्बानी जायज़ है अगर पेट का बच्चा जिंदा निकले तो उसको भी जिबह कर लिया जाए ,मुर्दा निकले तो उसका खाना दुरुस्त नहीं उसको फेंक दिया जाए।
★_२०_ कुर्बानी के जानवर के अगर जिबह करने से पहले बच्चा पैदा हो गया या जिबह करते वक्त उसके पेट से जिंदा बच्चा निकल आया तो उसको भी जिबह कर दिया जाए ।       
*आपके मसाईल और उनका हल - जिल्द ४, सफा-१६९ _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
           *❂ क़ुर्बानी के हिस्सेदार ❂*         
★__ बड़ा जानवर में सात हिस्सेदार हो सकते हैं लेकिन अगर हिस्सेदार कम हो तो भी कुर्बानी हो जाएगी लेकिन उनमें से हर एक का हिस्सा एक से कम ना हो यानी हिस्से पूरे होना चाहिए। मसलन एक भैंस के 2 हिस्सेदार हो तो एक हिस्सेदार को 3 हिस्से और दूसरे हिस्सेदार को चार हिस्से या एक हिस्सेदार को एक हिस्सा और दूसरे हिस्सेदार को छ: हिस्से ( यह नहीं कि साढे तीन -तीन हिस्से करें हिस्से पूरे होनी चाहिए )
★_मुश्तरिक खरीदे हुए बकरे भेड़ दुंबे की कुर्बानी दुरुस्त नहीं। मसलन तीन चार आदमियों ने मिलकर एक बकरा खरीद कर कुर्बानी कर दी ,कुर्बानी का एक हिस्सा एक ही आदमी की जानिब से हो सकता है, अलबत्ता अगर कोई एक शख्स पूरा एक हिस्सा अपनी जानिब से या किसी को सवाब पहुंचाने के लिए किसी दूसरे की तरफ से कुर्बानी करें तो सही होगा।
★_ जानवर जिबह हो जाने के बाद कुर्बानी के हिस्से तब्दील करना जायज़ नहीं ।
* आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा-१९३ _,*
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                    *▓ क़ुर्बानी ▓*             
               *❂ क़ुर्बानी के आदाब ❂*         
★__ कुर्बानी खुद अपने हाथ से ( औरतें भी) जिबह करना मुस्तहब है लेकिन जो शख्स जिबह करना नहीं जानता हो या किसी वजह से जिबह ना करना चाहता हो उसे जिबह करने वाले के पास मौजूद रहना बेहतर है।
★_ कुर्बानी का जानवर जिबह करते वक्त जुबान से नियत के अल्फाज पढ़ना जरूरी नहीं बल्कि दिल में नियत कर लेना काफी है और बाज़ दुआएं जो हदीसे पाक में मंक़ूल है उन्हें अगर किसी को याद हो तो उनका पढ़ना मुस्तहब है ।
★_कुर्बानी के जानवर को चंद रोज पहले पालना अफजल है। कुर्बानी के जानवर का दूध निकालना या उसके बाल काटना जायज़ नहीं अगर किसी ने ऐसा कर लिया तो दूध और बाल या उनकी कीमत सदका़ करना वाजिब है ।
★_कुर्बानी से पहले छुरी को खूब तेज करें और एक जानवर को दूसरे जानवर के सामने जिबह ना करें ।जिबह के बाद खाल उतारने और गोश्त के टुकड़े करने में जल्दी ना करें जब तक पूरी तरह जानवर ठंडा ना हो जाए।
★_ कुर्बानी के जानवर को क़िब्ला रुख होना मुस्तहब है लेकिन जिस तरह भी जिबह करने में सहूलियत हो कोई हर्ज नहीं ।
★_कुर्बानी दाएं हाथ से करें बाएं हाथ से कुर्बानी करना खिलाफे सुन्नत होगा , अलबत्ता कोई उजर् हो तो किया जा सकता है ।
★_ मशीनी जिबह ( जो मशीन के ज़रिए जिबह किया गया हो) को अहले इल्म ने सही करार नहीं दिया है।
★_ जिबह करने के वक्त "_बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर_" कहना ज़रूरी है अगर कोई मुसलमान जिबह करते वक्त "_बिस्मिल्लाह अल्लाहु अकबर" कहना भूल जाए तो जिबह तो हलाल है लेकिन अगर कोई जानबूझकर बिस्मिल्लाह नहीं पड़े तो उसका जिबह हलाल नहीं और जिस शख्स को मालूम हो कि यह हलाल नहीं उस शख्स का खाना भी हलाल नहीं ।
*आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा २०० _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
         *❂ कुर्बानी का गोश्त ❂*         
★__ कुर्बानी का गोश्त अगर कई आदमियों के दरमियान मुस्तरिक हो तो उसको अटकल से तक़सीम करना जायज नहीं है बल्कि खूब एहतियात से तोडलकर बराबर हिस्से करना दुरुस्त है। हां अगर किसी के हिस्से में सर और पांव लगा दिया जाए तो उसके वजन के हिस्से में कमी जायज़ है ।
★_ कुर्बानी का गोश्त खुद खाएं दोस्त अहबाब में तक़सीम करें, गरीब मसाकीन को दें और बेहतर यह है कि इसके 3 हिस्से किए जाए एक अपने लिए, एक दोस्त अहबाब अजीज़ो अकारिब को हदिया देने के लिए और एक जरूरतमंद नादारों में तक़सीम करने के लिए ।
अगर किसी ने तिहाई हिस्से से भी कम है खैरात किया बाक़ी सब खा लिया ,अज़ीज़ो अका़रिब को दे दिया तब भी गुनाह नहीं ।
★_कुर्बानी की खाल अपने इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं किसी को हदिया कर सकते हैं लेकिन अगर उसको बैच दिया तो उसकी रक़म को खुद इस्तेमाल ना करें बल्कि किसी गरीब पर सदका कर देना वाजिब है ।
★_कुर्बानी की खाल की रक़म मस्जिद की मरम्मत या किसी और नेक काम में लगाना जायज़ नहीं बल्कि किसी गरीब को उसका मालिक बनाना जरूरी है।
★_ कुर्बानी की खाल या उसकी रक़म किसी ऐसी जमात या अंजुमन को देना दुरुस्त नहीं जिसके बारे में यह अंदेशा हो कि मुस्तहिकीन को नहीं देंगे खुद के प्रोग्रामों में खर्च करेंगे ।
★_कुर्बानी की खाल या उसकी रकम किसी ऐसे इदारे, मदरसे को देना जो वाकई मुस्तहिकी़न में तक़सीम करते हैं ।
★_कुर्बानी के जानवर का दूध निकाल कर इस्तेमाल करना या उसके बाल उतारना दुरुस्त नहीं अगर इसकी जरूरत हो तो इसकी रक़म सदका़ कर देना चाहिए ।
★_कुर्बानी के जानवर की झोल रस्सी भी सदका कर देना चाहिए।
★_ कुर्बानी का गोश्त कसाब को उजरत में देना जायज नहीं ।
★_इसी तरह कुर्बानी की खाल की रक़म को इमाम या मौज्जिन की उजरत में देना भी दूरुस्त नहीं।
* आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा-१६९ _,*
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                     *▓ क़ुर्बानी ▓*             
              *❂ चंद गलतियों की इस्लाह ❂*         
★__ बाज़ लोग यह गलतियां करते हैं कि ताक़त ना होने के बावजूद शर्म की वजह से कुर्बानी करते हैं कि लोग यह कहेंगे कि उन्होंने कुर्बानी नहीं की , महज़ दिखावे के लिए कुर्बानी करना दुरुस्त नहीं जिससे वाजिब फौत हो जाए।
★_ बहुत से लोग महज़ गोश्त खाने की नियत से कुर्बानी की नियत कर लेते हैं ,अगर इबादत की नियत ना हो उसको सवाब नहीं मिलेगा और अगर ऐसे लोगों ने किसी और के साथ हिस्सा रखा तो किसी की भी कुर्बानी नहीं होगी।
★_बाज़ लोग यह समझते हैं कि घर में एक कुर्बानी हो जाना काफी है इसलिए लोग ऐसा करते हैं कि एक साल अपनी तरफ से कुर्बानी कर ली, एक साल बीवी की तरफ से , एक साल लड़के की तरफ से एक साल लड़की की तरफ से कर दी , एक साल मरहूम वालदैन की तरफ से कर दी ।
 खूब अच्छी तरह याद रखना चाहिए कि घर के जितने लोगों पर कुर्बानी वाजिब है (जिसके पास साडे 52 तोला चांदी की मालियत है ) उनमें से हर एक की तरफ से कुर्बानी करना वाजिब है ।
मसलन मियां बीवी दोनों साहिबे निसाब है दोनों की तरफ से दो कुर्बानियां लाजिम है। इसी तरह अगर बाप बेटा दोनों साहिबे निसाब है तो चाहे एक साथ इकट्ठे रहते हैं मगर हर एक की तरफ से अलग अलग कुर्बानी वाजिब है।
★_ बाज़ लोग की यह समझते हैं कि कुर्बानी उमर भर में एक बार कर लेना काफी है ,यह ख्याल बिल्कुल गलत है जिस तरह जकात और सदका़ ए फितर् हर साल वाजिब होता है इसी तरह साहिबे निसाब पर कुर्बानी हर साल वाजिब होती है ।
★_कुछ लोग बड़े जानवर में हिस्सा रख लेते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि जिन लोगों का हिस्सा अपने साथ रखा है वह कैसे लोग हैं यह बड़ी गलती है। अगर सात हिस्सेदारों में से एक भी बेदीन हो या उसने कुर्बानी की नियत नहीं की बल्कि महज गोश्त खाने की नियत हो सब की कुर्बानी बर्बाद हो जाएगी , हिस्सा लेते वक्त हिस्सेदारों का इंतखाब अहतयात से करना चाहिए ।
*आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा १७० _,*
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                    *▓ क़ुर्बानी ▓*             
           *❂ कुर्बानी की शरई हैसियत ❂*         
★__ कुर्बानी एक अहम इबादत और शआरे इस्लाम है । ज़माना ए जाहिलियत में भी इसको इबादत समझा जाता था मगर बुतों के नाम पर कुर्बानी करते थे । इसी तरह आज भी दूसरे मजाहिबों में कुर्बानी मजहबी रस्म के तौर पर अदा की जाती है । मुशरिकीन और ईसाई बुतों के नाम पर या मसीह के नाम पर कुर्बानी करते हैं।
★_ सूरह कौसर में अल्लाह ताला ने अपने रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को हुक्म दिया है कि जिस तरह नमाज अल्लाह ताला के सिवा किसी की नहीं हो सकती इसी तरह कुर्बानी अल्लाह ताला के नाम पर होना चाहिए ।
★_दूसरी एक और आयत में इसी मफहूम को दूसरे उनवान से बयान फ़रमाया है , बेशक मेरी नमाज और मेरी कुर्बानी और मेरी जिंदगी और मेरी मौत अल्लाह के लिए हैं जो तमाम जहानों का पालने वाला है ।
★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने हिजरत से 10 साल मदीना तैय्यबा मे क़याम फरमाया हर साल बराबर कुर्बानी की । *( तिर्मिज़ी )*
★_इससे मालूम हुआ की कुर्बानी सिर्फ मक्का मुअज़्ज़मा में हज के मौके पर ही वाजिब नहीं बल्कि हर शख्स पर हर शहर में वाजिब होगी बशर्ते की शरीयत ने कुर्बानी के वाजिब होने की जो शराइत बयान किए हैं वह पाई जाए । नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम मुसलमानों को इसकी ताकीद फरमाते थे इसलिए जम्हूर उलेमा ए इस्लाम के नजदीक कुर्बानी वाजिब है । *( शामी )*
* आपके मसाईल और उनका हल जिल्द 4 सफा- १७१ _,*
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                     *▓ क़ुर्बानी ▓*             
      *❂ क़ुर्बानी के मुतफर्रिक मसाइल ❂*   
★_ फिक़हा में तशरीह है कि हैवानात की उमर में वाकिफ लोगों के क़ौल का एतबार होगा ना वाकिफ का नहीं ।
★_ कुर्बानी के जानवर के दांतों का मैयार यह है जानवर घास खा सकता हो तो उसकी कुर्बानी जायज़ है वरना नहीं क्योंकि दांतों से मक़सूद यही है।
★_ दुंबे की दुम का ऐतबार नहीं अगर पूरी भी कटी हो तो भी कुर्बानी जायज़ है ।
★_ जानवर उधार या किस्तों पर खरीद कर कुर्बानी करना जायज़ है ।
★_मकरूज़ पर निसाब से कर्ज अदा करने के बाद अगर निसाब में कमी नहीं आती निसाब कामिल बाकी रहता हो तो कुर्बानी वाजिब है ।
★_नीचे लिखी सूरतों में कुर्बानी के जानवर का दूध और गोबर इस्तेमाल में लाना और उससे नफा हासिल करना जायज़ है:-
१_ जानवर घर का पालतू हो ,
२_ जानवर घर का फालतू नहीं लेकिन जानवर को खरीदते वक्त कुर्बानी की नियत ना हो ।
३_जानवर कुर्बानी की नियत से तो खरीदा है लेकिन बाहर चरकर गुज़र ना करता हो बल्कि घर में ही चारा खाता हो ।
★_कुर्बानी के गोश्त का फरोख्त करना नाजायज़ है।
★_कुर्बानी के गोश्त की हड्डियां गोश्त पकाने से पहले या बाद में फरोख्त करना जायज़ नहीं।
★_ कुर्बानी के जानवर का बहता हुआ खून भी उसी तरह नापाक है जिस तरह किसी और जानवर का। खून के अगर मामूली छींटे पड़ जाएंगे तो मजमूई तौर पर ₹1 के सिक्के की चौड़ाई से कम हो तो नमाज हो जाएगी वरना नहीं , अलबत्ता जो खून गोश्त पर लगा हुआ होता है वह नापाक नहीं । *( आपके मसाईल और उनका हल)*
★_कुर्बानी का गोश्त और खाल काफिर को देना जायज़ है ।  
★_बैंक या इंश्योरेंस का मुलाजिम या कोई भी ऐसा शख्स कुर्बानी में शरीक हो जिसकी कुल या अक्सर आमदनी हराम हो उसकी शिरकत से किसी की भी कुर्बानी सही नहीं होगी ।
★_हराम माल पर कुर्बानी वाजिब नहीं ।
★_कुर्बानी के शरीक को जिबह की उजरत लेना जायज़ नहीं।
★_ कुर्बानी करने का इरादा हो या ना हो कुर्बानी के गोश्त से पहले कुछ ना खाना मुस्ताहब है। यह हुक्म सिर्फ 10वी जि़ल हिज्जा के लिए खास है ।
★_अशरा ए जि़लहिज्जा में जिस शख्स पर कुर्बानी वाजिब है वह हजामत ना करें और नाखून ना काटे ।शर्त यह है कि जेरे नाफ और बालों की सफाई और नाखून काटे हुए 40 रोज़ ना गुज़रे हों, अगर 40 रोज़ गुज़र गए हो तो उमूरे मज़कूरा की सफाई वाजिब है।  
* अहसनुल फतावा- जिल्द-७,* _,*
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                     *▓ क़ुर्बानी ▓*               
      *❂ चंद अहम सवालात के जवाबात ❂* 
*☞ कुर्बानी के लिए जानवर खरीद कर बेच दिया _,*       
*★_ एक शख्स ने मालदार होने के वक्त बकरा कुर्बानी की नियत से खरीदा लेकिन कुर्बानी के दिन आने से पहले गरीब हो गया ,अब वह शख्स उस बकरे को बेचकर उसकी कीमत अपने काम में ला सकता है या नहीं, या उस बकरे की कुर्बानी वाजिब है, मुताबिक शरई हुकम क्या होगा ?*
☞_ अगर कुर्बानी के अखीर दिन वह शख्स साहिबे निसाब ना हो तो उसके जि़म्में कुर्बानी वाजिब नहीं उस बकरे को बेच करके उसकी कीमत अपने काम में खर्च करना दुरुस्त है और अगर कुर्बानी के अखीर दिन में भी वह शख्स साहिबे निसाब हो जाए तो उस पर कुर्बानी वाजिब होगी चाहे बकरे की करें या और की ।
*❂ हदिया किये हुए जानवर में कुर्बानी की नियत ❂*
*★_ जिस पर कुर्बानी वाजिब नहीं गुरबत की वजह से वह अगर कुर्बानी का जानवर खरीद लेता है तो उस पर कुर्बानी वाजिब हो जाती है, इसी तरह अगर बगैर खरीदें उसको किसी ने हदिया या सदक़े के तौर पर जानवर दे दिया और उसने दिल में कुर्बानी की नियत कर ली, तो क्या फिर भी उस पर कुर्बानी वाजिब हो जाती है ?*
☞ इस तरह उस पर कुर्बानी वाजिब नहीं होती ।
* फतावा महमूदिया जिल्द- 17 ,सफा नंबर 317- 318 _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
               
*✦ चंद सवालात के जवाबात ✦*
*❂ गाबन जानवर की कुर्बानी ❂* 
       
*☞ एक शख्स ने एक जानवर की कुर्बानी की नियत की थी इत्तेफाक से वह गाबन हो गई अब उस हामला को कुर्बानी कर दिया जाए या नहीं ? या बच्चा पैदा होने के बाद किया जाए या आइंदा साल किया जाए ? या सदका़ कर दिया जाए ?*
★_ अगर महज़ नियत की थी नजर (मन्नत) नहीं मानी थी तो उससे उस पर इस मखसूस जानवर की कुर्बानी लाज़िम नहीं हुई , उसको अख्तियार है चाहे कुर्बानी करें या ना करें ,अब करें या फिर बाद में करें, या बाद कुर्बानी सदका कर दे या जो दिल चाहे करें ।
➡ जो जानवर करीबतुल विलादत हो और जिसके जिबह करने से बच्चा मर जाने का अंदेशा हो उसका जिबह करना मकरूह है।
* फतावा महमूदिया ,जिल्द 17 ,सफा नंबर 322 _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
               
*✦ चंद सवालात के जवाबात ✦*
*❂ किसी की तरफ से बगैर इजाजत कुर्बानी ❂*
*☞ जैद सफर में था इसके वालिद ने उसकी तरफ से बगैर उसकी इजाजत के कुर्बानी की इस ख्याल से कि जब वह सफर से वापस आएगा तो उससे कुर्बानी के पैसे ले लूंगा । जब वह सफर से वापस आया तो वालिद ने लड़के से कहा कि मैंने तेरी तरफ से कुर्बानी कर दी थी, उसने कहा अच्छा किया और उसने कुर्बानी की कीमत दे दी , बाप बेटा दोनों अलहदा अलहदा रहते थे ।तो उस लड़के की कुर्बानी दुरुस्त होगी या नहीं?
उसकी कुर्बानी की वजह से दूसरे (हिस्सेदार) की कुर्बानी में कोई नुक्स तो नहीं आया ?
★__ जबकि बेटे की तरफ से पहले से इजाजत नहीं थी खुद ही कुर्बानी कर दी इस भरोसे पर कि बाद में पैसे ले लेंगे तो उसकी तरफ से कुर्बानी सही नहीं होगी अगरचे उसने पैसे दे दिए हो ।
अगर बड़े जानवर में उसकी तरफ से हिस्सा लिया था तो किसी भी शरीक़ की कुर्बानी अदा नहीं हुई। सबके जिम्मेमें लाज़िम है कि अपनी कुर्बानी की कीमत सदका करें ।
* फतावा महमूदिया ,जिल्द 17 ,सफा नंबर 322 _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
*❂ चंद अहम सवालात के जवाबात- ❂*
*❂मैयत की तरफ से कुर्बानी ❂*
*☞ अगर जिंदा आदमी अपना हिस्सा तो ना ले और मैयत की तरफ से हिस्सा ले तो ऐसा करना दुरुस्त है या अपना हिस्सा भी ले और मैयत की तरफ से भी ले तब करना दुरुस्त है ?*
★__ अगर जिंदा आदमी साहिबे निसाब है तो उसको अपना हिस्सा लेना वाजिब है अगर नहीं लेगा तो गुनहगार होगा और फिर उसकी कीमत का सदका करना वाजिब होगा ।
ताहम मैयत की तरफ से हिस्सा लेगा तो उसका सवाब मैयत को पहुंच जाएगा ।
★_अगर मैयत ने वसीयत की है तो एक तिहाई तरका से हिस्सा लेकर कुर्बानी करना वाजिब है, अगर वसीयत नहीं की तो वाजिब नहीं।
★_अगर कोई वारिस बालिग हो और अपने रुपए से हिस्सा लेकर मय्यत को सवाब पहुंचा दे तो शर्अन दुरुस्त है ।
*❂ नर और मादा में किस की कुर्बानी अफज़ल है ❂*
*☞ नर की कुर्बानी अफज़ल है या मादा की _,*
★_ अगर क़ीमत और गोस्त में बराबर हो तो मादा की कुर्बानी अफज़ल है -
*(शामी- 5 /205 )*    
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा-३२२-३४० _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात,*
*❂ सातवां हिस्सा अफज़ल है या बकरा ❂*
*☞ बड़े जानवर में सातवां हिस्सा लेकर कुर्बानी करना बेहतर है या बकरे की कुर्बानी बेहतर है ?*
★__ मुस्तकिल बकरे की कुर्बानी अफज़ल है जबकि इसकी कीमत बड़े जानवर के सातवें हिस्से के बराबर हो या ज्यादा हो ।
*(दुर्रे मुख्तार 5 /205 )*      
*❂ 6 शरीकों ने एक हिस्सा हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए किया ❂*
*☞अगर चंद शख्स मिलकर सातवां हिस्सा हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के नाम करें तो करना दुरुस्त है या नहीं ??*
*या एक ही शख्स उस हिस्से की कीमत अदा करें तब दुरुस्त है ??*
★_ एक शख्स कीमत अदा करें तब भी दुरुस्त हैं सब हिस्सेदार मिलकर करें तब भी दुरुस्त है ।
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा ३४२ _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*     
  *☞ चंद अहम सवालात के जवाबात,*   
*❂ एक कुर्बानी के हिस्से का सवाब कई लोगों को पहुंचाना ❂*         
*☞ जे़द एक कुर्बानी अपनी तरफ से करता है और एक अपने वालदेन दादा दादी नाना नानी गर्ज़ मुताद्दिद अमवात की तरफ से करता है तो क्या इस तरह कुर्बानी दुरुस्त होगी??*
*_ और इन लोगों को एक कुर्बानी का सबको सवाब पहुंच जाएगा??*
★_ इस तरह कुर्बानी दुरुस्त हो जाएगी और सवाब भी सबको पहुंच जाएगा । हजरत नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने एक कुर्बानी का सवाब पूरी उम्मत को पहुंचाया है।
*( शामी -5 /208)*
        *❂ कुर्बानी में वलीमा ❂*         
*☞ ज़ैद ने अपने लड़के की शादी की और 11 जि़लहिज्जा को वह वलीमा करता है इस तरह कुर्बानी के जानवर में एक हिस्सा वलिमा की नियत से लेता है शर'न इसकी इजाजत है या नहीं ??*
*और किसी हिस्सेदार की कुर्बानी खराब तो नहीं होगी??*
★_ वलीमा मसनूना की नियत से कुर्बानी के जानवर में हिस्सा लेने में किसी भी हिस्सेदार की कुर्बानी बातिल नहीं होगी जिस तरह की अकी़के की नियत से हिस्सा लेने से बातिल नहीं होती ।
*(शामी- 5 /208)*
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा-४२२ _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
               
*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात_,*
*❂ खिदमत गुजारों को कुर्बानी का गोश्त देना ❂*
*☞ मुताद्दिद जगहों पर यह दस्तूर है कि कसाई नाई धोबी भंगी वगैरह भी कुर्बानी का गोश्त मांगते हैं और उनको दिया भी जाता है अगर ना दिया जाए तो वह समझते हैं कि हमारा हक मार लिया और बहुत नाराज होते हैं तो शर'अन अब इसका क्या हुक्म है , इनको देना सही है या नहीं ?*
★_ यह हकक़तुल खि़दमत समझना भी गलत है और इस तरह देना भी मना है अगर इस तरह दे दिया है तो जिस कदर दिया है उसकी कीमत सदका कर दी जाए ।
*( शामी- 5 /209)*
★_ बगैर हकक़तुल खिदमत के किसी को भी देने में कोई मुज़ायका नहीं ।

*❂ कुर्बानी का गोश्त फरोख्त करना ❂*
*☞ कुर्बानी करने वाला अपनी कुर्बानी के गोश्त को फरोख्त कर सकता है या नहीं ?*
*अगर उसने खुद कुर्बानी ना की दूसरों के यहां से गोश्त आया हो तब क्या हुकुम है ?*
★_अपनी कुर्बानी का गोश्त फरोख्त करना मकरूह है अगर फरोख्त कर दिया तो कीमत सदका करना वाजिब है ।
अगर गोश्त किसी दूसरे शख्स ने कुर्बानी का दिया हो तो उसको फरोख्त करना दुरुस्त है ।      
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा-४३६ _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
            
*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात_,*
*❂ कुर्बानी के गोश्त से इसाले सवाब और मरुजा फातिहा ❂*  
*☞ इंडिया में बाज़ लोगों के यहां यह दस्तूर है के मुर्दों की रुहों को इसाले सवाब का यानी फातिहा के लिए कुर्बानी के गोश्त से तो मुर्दों को फातिहा नहीं दिलाते हैं बल्कि कहते हैं कि जिस शख्स के नाम से कुर्बानी होती है उसको इस गोस्त का सवाब मिलेगा इसलिए अलग से गोश्त मंगवा कर बाद पकाने के मुर्दों की फातिहा दिलाते हैं , यह जाहिल रस्म काबिले तर्क व बिद'अत है या नहीं ??*
*_अवाम का यह कहना है कि कुर्बानी का सवाब जिसके नाम कुर्बानी की गई उसको मिल गया सब रूहों को नहीं मिलेगा और ना ही इस कुर्बानी वाले गोश्त से मिलेगा इसलिए अलग खरीदते हैं ?*
★_ अवाम का यह अक़ीदा और ख्याल गलत और बातिल है, जिसने कुर्बानी की उसको तो उसका सवाब मिला ही है गोश्त को खुदा वास्ते देने का सवाब मुस्तकिल है ,कुर्बानी की वजह से इसमें कमी नहीं आती ।
★_ तरीका़ ए मरूजा पर यानी खाना सामने रखकर उस पर फातिहा पढ़ना भी शर'अन बेअसल और बिद'अत है ,उसका तर्क करना जरूरी है ।
*( राहे सुन्नत -२७५ )*
★_ भव्य इल्तजा़म ,तारीख व हैयत वगैरह के जब भी तौफीक हो गला खाना कपड़ा नगद रुपया वगैरह जो भी देना चाहें दे कर या नमाज़ रोज़ा क़ुरान दुआ पढ़कर सवाब पहुंचाया जा सकता है ।
★_ जिस चीज की फकीर मिस्कीन को ज्यादा ज़रूरत हो उस चीज को देने से ज्यादा सवाब मिलता है ।
*( वल्लाहु आलम )*      
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा-४३७ _,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात ,*         
  *❂चर्म कुर्बानी या उसकी कीमत का वालिद या औलाद को देना _,❂*
*☞ कुर्बानी की खाल अपने वालिद या औलाद को देना कैसा है ?*
*_या उसकी कीमत अपने वालिद या औलाद को देना कैसा है जबकि वह गरीब हों ?*
★__ जिस तरह कुर्बानी का गोश्त इनको देना सही है उसी तरह कुर्बानी की खाल भी इनको देना सही है। *( शामी- 5 /209)*
:__ लेकिन कुर्बानी की खाल को फरोख्त करके उसकी कीमत देना जायज़ नहीं। क़ीमत ऐसे शख्स को दें दे जिसको जकात दे सकते हैं। वालिद या औलाद को जकात देना दुरुस्त नहीं ।कुर्बानी की खाल की क़ीमत का भी सदका़ करना वाजिब है । *(शानी -5/ 205)*
*❂ कुर्बानी का खून और हड्डियों का क्या हुक्म है ❂*
*☞ कुर्बानी के खून का क्या हुक्म है। यूं ही छोड़ दिया जाए ?? इसके अहतराम का क्या तरीका़ है??*
*"_ कुर्बानी की हड्डियों का क्या करना चाहिए ?*
★__ शरीयत ने कुर्बानी के खून के अहतराम करने का हुक्म नहीं किया, जिस तरह दूसरे जिबह का खून नापाक है उसी तरह कुर्बानी का खून भी नापाक और नजिस है । यूंही छोड़ दिया जाए या गड्ढे में मिट्टी डालकर दबा दिया जाए । हड्डियों को दफन कर दिया जाए ।
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा 481_,*
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               *▓ क़ुर्बानी ▓*             
              
*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात_,*
  *❂ ज़िलहिज्जा के रोज़े और कुर्बानी से खाने की इब्तिदा ❂*  
*☞ जि़लहिज्जा की नवी तारीख का एक रोजा है या दो रखना चाहिए ??*
*"_और 10 तारीख को क्या ज़रूरी है कि रोज़ा कुर्बानी के गोश्त से खोला जाए ?* 
★__ एक जि़लहिज्जा से नौ जि़लहिज्जा तक रोज़े रखने का बहुत सवाब है और नौ जि़लहिज्जा का रोजे़ का इन सबसे ज्यादा अजर है ।
★_मुस्ताहब यह है कि १० ज़िलहिज्जा को खाने की इब्तिदा अपनी कुर्बानी से करें इससे पहले ना खाएं लेकिन इससे पहले खाना भी मक़रूह या नाजायज नहीं है ।
  *❂ गल्ती से एक ने दूसरे की कुर्बानी ज़िबह की ❂*

*☞ दो आदमियों ने कुर्बानी के लिए दो बकरियां खरीदी मगर इन में कोई शिनाख्त ऐसी नहीं थी कि दोनों अपनी अपनी बकरियों को पहचान सके ??*
*"_ यह शिनाख्त तो थी मगर भूल गए और दोनों ने एक दूसरे की बकरी की कुर्बानी कर दी ,बाद में मालूम हुआ कि किसी ने भी अपनी बकरी की कुर्बानी नहीं की बल्कि हर एक ने दूसरे की बकरी की कुर्बानी की है ।ऐसी सूरत में क्या दोनों को दोबारा कुर्बानी लाज़िम होगी ??*
★_ नहीं बल्कि दोनों की कुर्बानी हो गई । *(शामी -5 /210)*
    
* फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा 499 _,*
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*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात_,*
*❂ दो रकात निफ्ल और बाल नाखून ना तराशने से कुर्बानी का सवाब ❂*          

*☞ जैद ने अपने खुतबे में कहा कि किसी शख्स में कुर्बानी की इस्तेतात ना हो अगर वह ईद उल अज़हा की नमाज़ के बाद घर पर 2 रकात नमाज़ पढ़े और हर रकात में सूरह फातिहा के बाद सूरह कौसर पड़े तो उसको कुर्बानी के बराबर सवाब मिलता है ??*
*"_इसी तरह सर के बाल और नाखून ना तराशे तो कुर्बानी के बराबर सवाब मिलता है । यह कहां तक असलियत रखता है ???*

★__ इस तरह 2 रकात पढ़ने से कुर्बानी का सवाब मैंने किसी किताब में नहीं देखा । अलबत्ता नाखून और बाल के मुताल्लिक बाज़ उल्मा से ऐसा सुना है और हदीस में कुर्बानी करने वालों के लिए उसको मुस्तहब क़रार दिया गया है , 
हदीस मुबारक से मालूम होता है कि कुर्बानी करने वाले शख्स के लिए मुस्तहब है कि वह ज़िल हिज्जा के पहले अशरे में बाल और नाखून ना काटे ।

*📘फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा-486 _,*
      ▦══─────────────══▦
*☞ चंद अहम सवालात के जवाबात_,*
 *❂ कुर्बानी के जानवर की रस्सी का सदका़ करना ❂*          
*☞ कुर्बानी के जानवर को जिस रस्सी या जंजीर से बांधा है उसका सदका करना जरूरी है तो बजाय जंजीर के अगर उसकी कीमत अदा कर दी जाए तो दुरुस्त है या नहीं ??*

★_रस्सी या जंजीर का सदका करना मुस्तहब है फर्ज नहीं । कीमत अदा करने से उसका तो सवाब होगा लेकिन रस्सी के सदके का सवाब ना होगा।

➡ कुर्बानी के जानवर को अगर मय रस्सी खरीदा है तो( रस्सी जो जानवर के साथ आई है) उसको सदका कर दिया जाए । (अगर बगैर रस्सी के खरीदा है ) और अपनी रस्सी में उसको रखा है तो उसको सदका करने का हुक्म नहीं है ।

*📘 फतावा महमूदिया जिल्द 17 सफा-499 _,*
      ▦══─────────────══▦
             *❂ आदाबे कुर्बानी ❂*          
★__ १_ जानवर को जिबह करने से पहले चारा खिलाएं पानी पिलाएं भूखा प्यासा रखना मकरूह है ।
२_ जानवर को जिबह करने ले जाते वक्त घसीट कर ले जाना मकरूह है ।
३_आसानी से गिराए बेजा सख्ती करना मकरूह है।
४_ क़िब्ला रुख बाईं करवट लिटाएं कि जान आसानी से निकले इसके खिलाफ करना मकरूह है।

★_५_ चार पैरों में से 3 बांधें,
६_ छुरी तेज़ रखें कुंधी छुरी से जिबह करना मकरूह है ।
७_छुरी को तेज़ करना हो तो जानवर से छुपाकर तेज़ करें जानवर के सामने छुरी तेज़ करना मकरूह है ।
८_जानवर को लेटाने से पहले छुरी तेज कर ले बाद में छुरी तेज़ करना मकरूह है । हदीस शरीफ में है कि एक शख्स एक जानवर को पछाड़ कर छुरी तेज़ करने लगा ।यह देखकर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया तुम बकरे को एक से ज़्यादा मौत देना चाहते हो ।
९_एक जानवर के सामने दूसरे जानवर को जिबह ना करना मकरूह है ।
१०_ लेटाने के बाद फोरन जिबह करें बेफायदा देर करना मकरूह है 

★_ ११_सख्ती से जिबह ना करें कि सर अलग हो जाए ।  
१२_गर्दन के ऊपर से जिबह करना मकरू है ,मना है क्योंकि इसमें जानवर को जा़यद अज़ जरूरत इज़ा रसानी है ।
१३_जिबह के बाद जानवर सर्द होने से पहले गर्दन अलग ना करें और ना चमड़ा उतारें कि यह मकरूह है ।

*"_ऊपर जो आदाब व अहकाम लिखे गए हैं कुर्बानी के जानवर के साथ मखसूस नहीं बल्कि हर जिबह के लिए हैं ।*

*📘 हिदाया , दुर्रे मुख्तार, शामी _,*
      ▦══─────────────══▦
               *▓ क़ुर्बानी ▓*              
       *❂ तरतीब ए कुर्बानी ❂*          

★__ कुर्बानी का जानवर अपने हाथ से जिबह करें अगर खुद ना कर सकें तो दूसरे से जिबह कराएं। जानवर प्यासा ना हो क़िब्ला रुख लिटाएं और यह आयत पढ़ें :-

*←إِنِّى وَجَّهْتُ وَجْهِىَ لِلَّذِى فَطَرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ حَنِيفًا ۖ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ (6:79)*
*←قُلْ إِنَّ صَلَاتِى وَنُسُكِى وَمَحْيَاىَ وَمَمَاتِى لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ (6:162)*
*←لَا شَرِيكَ لَهُۥ ۖ وَبِذَٰلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا۠ أَوَّلُ ٱلْمُسْلِمِينَ (6:163)*

*★_तर्जुमा:-* मैंने मुतवज्जह किया अपने मुंह को उसी की तरफ जिसने बनाए आसमान और जमीन सबसे यकसूं हो कर और मैं नहीं हूं शिर्क करने वालों में से बेशक मेरी नमाज़ और मेरी कुर्बानी और मेरा जीना और मरना अल्लाह ताअला ही के लिए है जो पालने वाला सारे जहां का है उसके लिए कोई शरीक नहीं है और मैं उसी का हुक्म किया गया हूं और मैं मुसलमानों में से हूं ।

*_اللهم منك ولك_,*

(अल्लाहुम्मा मिनका वा लक ) फिर बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर कहकर जिबह करें ।

*★_कुर्बानी के बाद की दुआ :-* जिबह करने के बाद यह दुआ पढ़े :- 

*◆←اللهم تقبله منی كماتقبلة من حبيبك محمد وخليلك إبراهيم عليهما السلام*

*★_तर्जुमा:-* ऐ अल्लाह इस कुर्बानी को मुझसे क़ुबूल फरमा जैसा कि आपने कुबूल किया अपने हबीब सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम और अपने खलील हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से ।
*★__कुर्बानी के बाद की दुआ का सबूत:-* _मिश्कात शरीफ बाबुल फिल अज़हिया में सही मुस्लिम की रिवायत से हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा की हदीस जिक्र की है कि आप हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने एक सियाह रंग का सींगों वाला मैंडा जिबह फरमाया फिर यह दुआ पढ़ी ।

*■←بسم الله اللهم تقبل من محمد و آل محمد ومن امة محمد_,*

*📘मसाइले कुर्बानी _,*
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