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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -01* _✸
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*❥➾ मिसाली औरत बनने के सुनेहरी उसूल :-*

*❧"_ नबी करीम ﷺ ने तीन बुनियादी असबाब बयान फरमाये हैं जिनके बाइस हर औरत बुलंद मर्तबे पर फा'इज़ हो सकती है,*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! इस्लाम मियां बीवी के ताल्लुक़ को बड़ी अहमियत देता है और उसे निहायत मज़बूत और पायेदार बनाने का ख़्वाहिश मंद है क्योंकि ख़ानदान की यक़ीनी और इत्तेहाद का इन्हिसार इसी ताल्लुक़ की मज़बूती पर है और ख़ानदान के आपस के इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक ही से इज्ज़त व अहतराम के लायक़ नसल पैदा होती है,*

*❧"_ मैं पूरे भरोसे से कहता हूं कि जो औरत नबी करीम ﷺ के बयान करदा असबाब को मज़बूती से थाम लेगी, वो अपने घर को खुश बख्ती और मसर्रत का सरचश्मा बना देगी और अपने खाविंद के साथ निहायत खुश व खुर्रम ज़िंदगी बसर करेगी,*

*❧"_ यहां हर औरत को ये भी जान लेना चाहिए कि असबाब को अख्त्यार ना करने के नतीजे में औरत को गम और तकलीफ की तल्खी झेलना पड़ेगी और उसका घर दुखो और गमों का निशाना बन जाएगा, लिहाजा इन असबाब पर अच्छी तरह गोर व फ़िक्र करो और इनका मतलब समझने की कोशिश करो, फिर अपना जाइज़ा लो, अगर तुमने इन असबाब को मज़बूती से थाम लिया तो ये तुम पर अल्लाह तआला का फ़ज़ल व करम है और अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो ये तुम्हारे लिए नसीहत है और नसीहत मोमिनात को नफा देती है _,"*
 
   *®_Ref:- मिसाली औरत -18,*
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              *✍ Haqq Ka Daayi ,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -02* _✸
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*❥➾ शोहर को खुश करने वाली औरत :-*

*❧"_पहली बात जो रसूले करीम ﷺ ने इरशाद फरमाई है, उसका मक़सद ये है कि तुम अपने ख़ाविंद की मुहब्बत पा लो और वो तुम्हारे साथ हम आहंग हो जाए, यक़ीनन हर अकलमंद इन्सान का मक़सद और ख्वाहिश अख़लाक़ी कमाल का हुसूल है, चाहे वो मर्द हो या औरत,*

*❧"_इस्लाम इंसान को रूहानी, अक़ली, बदनी और अखलाकी़ कमाल के हुसूल की तालीम देता है, मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! तुम्हें अपने ज़ाहिरी हुस्न व जमाल के अहतमाम के लिए अल्लाह तआला की हलाल करदा जा'इज़ चीज़ें मेहंदी और असमद सुरमा लगाना चाहिए और ज़ेवरात पहनने चाहिए क्योंकि बेहतरीन औरत वो है जिसकी तरफ उसके ख़ाविंद की एक नज़र पड़ते ही उसकी आँखों से ख़ुश बख़्ती झलकने लगे,*

*❧"_आदमी हुसूल ए माश के लिए घर से निकलता है तो वो मेहनत की वजह से जिस्मानी तोर पर थक जाता है और बाज़ औक़ात अपने काम की मशक्कत की वजह से दिमागी थकावट का शिकार भी हो जाता है और बड़ी शिद्दत से घर लोटने का इंतज़ार करता है ताकि थकावट से चूर जिस्म को आराम व सुकून मिल सके,*

*❧"_ लिहाज़ा जब वो दिन भर की मशक्कत के बाद घर में दाखिल होता है और अपनी बीवी के बरताव में कोई खुश कुन पहलू नहीं देखता तो इसका मतलब ये होता है कि वो अपने खाविंद से ताल्लुक़ात के पहले ही मरहले में नाकाम हो गई है, तो वो यक़ीनन घुटन और तंगी महसूस करेगा और इसके इज़हार के लिए तरह तरह के बहाने तलाश करेगा, कभी किसी बात पर खफा होगा कभी किसी काम पर नाराज़गी का इज़हार करेगा,*
 
   *®_Ref:- मिसाली औरत -19,*
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              *✍ Haqq Ka Daayi ,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -03* _✸
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*❥➾ शौहर को खुश करने वाली औरत -2,*

*❧"_ इसके बर अक्स जब वो घर वापस आने पर अपनी बीवी को ऐसी हालत में देखे जिससे वो खुश हो जाए और उसका दिल झूम उठे तो वो बहुत जल्दी ज़हनी परेशानियों और जिस्मानी थकावट को भूल जाएगा, लिहाज़ा बीवी से खाविंद की मुहब्बत बढ़ाने के अस्बाब में से ये भी है कि खाविंद जब बीवी की तरफ देखे तो वो उसे मसरूर कर दे, वाक़िया ये है कि महबूब को दिलकश हालत और हुस्न व जमाल के आलम में देखना, दिल में मुहब्बत रासिख करने का बड़ा मुआस्सिर वसीला है _ ,"*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! खाविंद के घर आने से पहले पहले अपनी हालत का जायज़ा लो, अपने लिबास को बा गोर देखो और अपने दिल से पूछो क्या मेरा खाविंद मुझे इस हालत में देख कर खुश होगा? हर औरत इस सवाल का जवाब खूब जानती है, बिला शुबहा हर आदमी ख़ूबसूरत चीज़ों से फितरी तोर पर मुहब्बत करता है, सिवाय उस शख्स के जिसने अपनी फितरत को मस्ख कर डाला हो और वो क़बीह और ख़बीस चीज़ों के हुसूल में लगा रहता है,*

*❧"_ जब खाविंद अपने घर में दाखिल हो कर अपनी बीवी को निहायत हसीन व जमील सूरत में देखता है तो वो अपनी बीवी से मुहब्बत और उसकी तरफ रग़बत महसूस करता है, वो अपने लिए बीवी के बनाव सिंगार का अहतमाम मेहसूस करता है,*

*❧"_ इसके बर अक्स बाज़ ख्वातीन खाविंद के आ जाने के बाद भी घरेलु काम काज, मसलन - खाना पकाने, कपड़े धोने या सफाई सुथराई में लगी रहती है, उन्हें चाहिए कि वो तमाम कामों से खाविंद की आमद से पहले पहले ही फारिग हो जाएं अगरचे इसके लिए उन्हें कुछ ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी और इज़ाफ़ी थकावट भी बर्दाश्त करनी होगी, अगर वो ऐसा कर लें तो इस इज़ाफ़ी मेहनत और मशक्कत का सिला उनको बहुत खुशगवार मिलेगा _,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -19,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -04* _✸
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*❥➾ खाविंद को घर में खुशी नसीब ना हो तो उस पर शैतान के वसवसे बहुत जल्द गलबा पा लेंगे और शैतान लईन के रास्ते पर चलने वालियों को खाविंद की आंखों के सामने खूबसूरत मुजय्यन कर के पेश करेगा और बीवी को उसकी नज़र में गिरा देगा,*

*❧”_ प्यारी इस्लामी बहनो! जब भी तुम्हारा खाविंद तुम्हारी तरफ देखे तो उसे तुम्हारे होंठों पर दिलकश मुस्कुराहट नज़र आनी चाहिए, अगरचे इस मुस्कुराहट पर एक लम्हे से ज्यादा वक्त नहीं लगता लेकिन खाविंद के दिल में उसकी याद हमेशा ताज़ा रहती है,*

*❧"_ यकीनन तुम्हारी मुस्कराहट घर को खुशियों से भर देगी और ये दिन भर मेहनात व मशक्कत के बाद खाविंद को हासिल होने वाला सबसे ज़्यादा राहत बख्श पहलू होगा,*

*❧"_ प्यारी इस्लामी बहनो! अपने शोहर के सामने तुम्हारे चेहरे के खूबसूरत तास्सुरात दर हक़ीक़त तुम्हारे खूबसूरत लिबास और ज़ेवरात से कहीं ज़्यादा अहमियत रखते हैं क्योंकि जब खाविंद बीवी की तरफ देखता है तो बीवी के चेहरे पर दिलकश मुस्कुराहट और खुश गवार तास्सुरात, जुबान के मीठे बोल से कहीं ज़्यादा गहरे असरात छोड़ते हैं,*

*❧"_ यक़ीनन खाविंद को बहुत जल्दी अहसास होगा कि उसकी बीवी निहायत बेलोस होकर किसी माली फायदे की गर्ज़ से पाक, हकी़की़ और सच्ची मुस्कुराहट के साथ उसका इस्तकबाल कर रही है और कह रही है- तुम्हारे आने से मैं बहुत खुश हूं और तुम्हें देख कर बड़ी मसरूर हूं, उस वक्त शोहर को ये कहना मुनसिब होगा- तुम्हारी ये मुस्कुराहट आखिरत में नेकियों का बाइस बन जाएंगी क्योंकि ये मुस्कुराहट भी उन सदका़त में से है जिन्हें तुम अपने नामा आमाल में दर्ज करा रही हो_,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -20,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -05* _✸
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*❥➾ खाविंद की फरमाबरदार औरत:-*

*❧"_ मेरी प्यारी मोमिना बहनो! हर खाविंद दिल की गहराइयों से चाहता है कि उसके घर में खुश नसीबी का राज हो और उसके घर के अफराद में आपस में खुशियों और शादमनियों का बसेरा हो, लेकिन वो चीज़ जो इस खुश बख्ती को तबाह कर देती है, खुशियों को भगाती और गमों को दावत देती है, वो औरत का अपने खाविंद के साथ इस तरह पेश आना है जैसे वो खाविंद के हम पल्ला और उससे बेहतर है_,"*

*❧"_ और वो सिर्फ अपनी राय को अहम समझती है और खाविंद की इता'त सिर्फ इस मामले में करती है जो उसकी मर्ज़ी और ख्वाहिश के मुताबिक हो, वो हमेशा खाविंद से ये चाहती है कि वो उसकी ख्वाहिश की तकमील करता रहे और उससे ये उम्मीद रखती है कि जिन चीजों की वो आदी हो चुकी है, उन्हें हरगिज़ ना भूले और जिन बातों और कामों से उसे शगफ (दिलचस्पी) है, वो उनका जरूर ख्याल रखे,*

*❧"_ ऐसी बीवी अपने इसी अंदाजे फिक्र से अपना घर बरबाद कर लेती है, हंसते बसते घर को उजाड़ देती है और अगर औलाद हो तो उसे आवारा और बदकार बना देती है,*

*❧"_ एक अक़लमंद और ज़हीन औरत वो है जो अपने घर में झगड़े का सबब और उसकी बरबादी का बाइस बनने वाली चीज़ को पहले ही भांप लेती है, जिस बात से उसका खाविंद ख़फा होता हो वो उससे गुरेज़ करती है, अगर औरत इस शऊर से बेहरावर ना हो तो वो अपनी अज़्दवाजी ज़िंदगी की नियामत को अज़ाब में बदल डालती है,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -21,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -06* _✸
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*❥➾ प्यारी इस्लामी बहनो! शादी एक अज़ीम हिकमत, निहायत बुलंद पाया समाजी मक़सद और बक़ा ए नस्ल का वसीला है, यह इबादत में से एक अहम इबादत है जिसके जरिए से हर मुसलमान मर्द और औरत को अल्लाह ताला का क़ुर्ब हासिल होता है, लिहाज़ा हम ये कह सकते हैं कि शादी मर्द और औरत पर अल्लाह ताला की नियामतों में से एक बड़ी नियामत है,*

*❧"_इस्लाम में शादी का असल मक़सद मियां बीवी के दरमियान आपसी मुहब्बत पैदा करना है, इरशादे बारी ता'ला है -(रोम - 21/30) "_और ये भी उसकी निशानियों में से एक निशानी है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिंस से बिवीयां पैदा की ताकी तुम उनसे सुकून हासिल करो और उसके तुम्हारे दरमियान मुहब्बत और रहमत पैदा कर दी, बिला शुबहा इसमे उन लोगों के लिए अज़ीम निशानियां है जो गोर व फ़िक्र करते हैं _, "*

*❧"_ इस मुहब्बत व उल्फ़त को क़ायम व दायिम रखने और आपसी अज़्दवाजी ज़िंदगी को ख़ुश उसलूबी से बरक़रार रखने के लिए अल्लाह तआला ने मियां बीवी के एक दूसरे पर हुक़ूक़ मुक़र्रर फ़रमाये हैं, अल्लाह तआला फरमाते हैं:- (अल बकरा-228) "और दस्तूर के मुताबिक औरतों के मर्दों पर वैसे ही हुकूक हैं जैसे मर्दों के औरतों पर हैं और मर्दों के लिए उन पर एक दर्जा और फजी़लत है _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -21,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -07* _✸
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*❥➾ खाविंद के बीवी पर हुक़ूक़ में से हम एक हक़ का तज़किरा कर रहे हैं, इस हक़ की अदायगी से औरत अपने रब की जन्नत हासिल कर सकती है और दुनिया व आखिरत में सुर्खरू हो सकती है, वो हक़ ये है कि औरत को अपने ख़ाविंद की इता'त श'आर बीवी होना चाहिए,*

*❧"_ जो खाविंद उसके हुक़ूक़ का पासदार हो, उसका इस्तेहक़ाक़ है कि वो अपनी बीवी से हमेशा पाकीज़ा और मीठी बात सुने और बीवी को हर वक्त अपनी हाजात व ज़रूरियात पूरी करने वाली पाए, मेरी प्यारी मोमिना बहनो ! खाविंद के लिए तुम्हारी इता'त ही अज़्दवाजी ज़िंदगी की कामयाबी की ज़मानत है,*

*❧"_ जिस क़दर ख़ाविंद को ये अहसास व शऊर होगा कि तुम उसका ये अज़ीम हक़ बाख़ूबी अदा कर रही हो, उसी क़दर वो तुम्हारी इज्ज़त करेगा और उसके दिल में तुम्हारी मुहब्बत बढ़ेगी, नबी करीम ﷺ ने मोमिन औरतों को ये तालीम दी है कि जन्नत का रास्ता अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की इता'त के बाद खाविंद की इता'त से शुरू होता है,*

*❧"_ आओ जरा इस हदीस शरीफ पर गोर करें:- हजरत हुसैन बिन मोहसिन बा रिवायत करते हैं कि उनकी फूफी अपने किसी काम से नबी ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुई, जब वो अपने काम से फारिग हो गईं तो नबी अकरम ﷺ ने उनसे दरियाफ्त फरमाया - क्या तुम शादी शुदा हो? उन्होंने अर्ज़ किया- जी हाँ, आप ﷺ ने पुछा - तुम्हारा उसके साथ सुलूक और रवय्या कैसा है? उन्होंने अर्ज़ किया - मैं उसकी खिदमत और इता'त गुजा़री मे कोई कसर नहीं छोड़ती, सिवाय उस चीज़ के जो मेरे बस में ना हो, आप ﷺ ने फरमाया- अच्छा ये बताओं कि तुम उसकी नज़र में कैसी हो? क्यूंकी बेशक वो तुम्हारी जन्नत और जहन्नम है _,"*
 *®- मुसनद अहमद- 6/419, मुस्तद्रक हाकिम- 2/189, हदीस- 2769,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -23,*
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                  ✸_ *क़िस्त -08* _✸
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*❥➾_रसूलल्लाह ﷺ के इस इरशाद पर अच्छी तरह गोर किजिये:- "वो तुम्हारी जन्नत और जहन्नम है," यानि अगर तुम उसकी इता'त करोगी तो तुम्हारे लिए जन्नत का सबब बन जाएगा, आप ﷺ की मुराद ये है कि जन्नत के हुसूल के दूसरे असबाब की तरह ये भी तुम्हारे लिए जन्नत के हुसूल का सबब है, जिस तरह लोग अल्लाह की खुशनूदी और उसकी जन्नत तक पहुंचने के लिए दीगर असबाब अख्त्यार करते हैं*

*❧"_ और सहाबिया की इस बात पर भी गौर कीजिए -," मैं उसकी इता'त और खिदमत में कोई कसर नहीं छोड़ती_," मेरी इस्लामी बहनो! तुम्हें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि शोहर को राज़ी करने और उसके दिल को खुशी से मामूर करने के लिए तेरी कोशिश और मेहनत उन उमूर में से है जिसका हर मर्द अपनी बीवी से तलबगार रहता है _,"*

*❧"_ तुम्हारे दरमियान बसा औक़ात लड़ाई झगड़ा और इख्तिलाफ भी रुनुमा हो सकता है, उस वक्त तुम्हारी ज़िम्मेदारी ये है कि तुम उस झगड़े को खत्म करो और सुलह सफाई के लिए हर मुमकिन मोअस्सिर तरीक़ा अख्त्यार करो, यक़ीनन ये भी मुमकिन है कि इस लड़ाई में आप सही हो और कभी इसके बर अक्स खाविंद सही होगा लेकिन ऐसे मोके़ पर तुम्हारी जिम्मेदरी ये है कि तुम ये एहसास करो के खाविंद किसी ऐसी हिकमत की बिना पर तुम्हारी गलती की ताईद नहीं कर रहा जो तुम्हें मालूम नहीं,*

*❧"_ इस क़िस्म के मोको़ पर तुम्हें खाविंद के गुस्से और जोश को ठंडा और इख्तिलाफ को रफा दफा करना चाहिए और फिर कुछ देर बाद जब उसका दिल मुत्मइन और गुस्सा ठंडा हो जाए तो तो तुम अपनी राय और मोक़िफ की वजाहत कर दो कि तुम्हारा असल मक़सद आपस में खैर और भलाई का था, लड़ाई झगड़ा मकसूद ना था, बेशक वो तुम्हारा शरीक़ हयात है जिससे तुम बेपरवाह नहीं हो सकती, लड़ाई झगड़े के बाद जब तबियत संभल जाए और दिल पर सुकून हो जाए, उस वक्त इस्लाह की कोशिश किस क़दर मोअस्सिर होती है _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -24,*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -09* _✸
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*❥➾ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! जब तुम अपने ख़ाविंद की हर बात मानोगी और उसके हर हुक्म को बजा लाओगी तो तुम भी अपने ख़ाविंद से अपनी हर आरजू पूरी करवाने पर क़ादिर हो जाओगी, तुम सोचती हो कि तुम्हारा खाविंद तुम्हें खुश व खुर्रम रखे और तुम्हारी ज़िंदगी को ख़ुशियों से मालामाल कर दे, तुम्हारी ये ख्वाहिश बेजा नहीं मगर तुम इस मक़सद में कैसे कामयाब हो सकती हो जबकी तुम्हें अपने शोहर का दिल मोह लेने और उसकी पसंद पर गालिब आने का फन भी नहीं आता_,"*

*❧"_ मेरी मोमिना बहनो! नबी करीम ﷺ ने औरतों के लिए चंद ऐसे आला औसाफ बयान फरमाए हैं जिनके साथ वो जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो सकती है, आप ﷺ ने फरमाया - जब औरत पांच नमाज़े (बा क़ायदा) अदा कर ले और रमज़ानुल मुबारक के रोज़ रखे और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे तो वो (क़यामत के रोज़) जन्नत में जिस दरवाज़े से चाहेगी दाख़िल हो जाएगी _," (मुसनद अहमद- 1/191, सही इब्ने हिबान -9/471)*

*❧"_लिहाजा़ खाविंद की इता'त उन असबाब में से एक सबब है जो तुम्हें जन्नत में दाखिल करा देंगी_,"*

*❧"_ बेशक बेहतीन औरत वो है जो अपने खाविंद को ये एहसास दिला दे कि वो उसके नज़दीक बहुत अज़ीम है और उसे अपने ख़ाविंद की उसी तरह ज़रुरत है जैसे (ज़िंदा रहने के लिए) उसे खाने और पीने की ज़रूरत होती है_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -24*
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                  ✸_ *क़िस्त -10* _✸
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*❥➾ बिला शुबहा अफ़ज़ल औरत वो है जो अपने खाविंद के हुक़ूक़ की पासदारी करे और उसके लिए किसी तंबीह और वजा़हत की ज़रूरत पेश न आए,*

*❧"_बेहतरीन औरत बाखूबी जानती है कि उसके खाविंद से भी गलती सरज़द हो सकती है क्योंकि वो गलतियों से मासूम नहीं है लेकिन वो अपनी ज़हानत और होशियारी से अपने खाविंद को संभाल लेती है और अपने घर में पैदा होने वाली मुश्किलात का हल निकाल लेती है _,"*

*❧"_ अच्छी बीवी की एक खूबी ये है कि वो खाविंद से होने वाली गलतियों की इस्लाह के लिए मुनसिब वक्त और मोआस्सिर तरीक़ा अपनाती है, बेहतरीन बीवी कुशादा दिल होती है, लिहाज़ा वो खाविंद की बेशुमार खामियों और ऐबों को नज़र अंदाज़ कर देती है, जब तक मामले की नोइयत शदीद नागवारी, परेशानी और खौफ तक न पहुंच जाए,*

*❧"_ अच्छी बीवी की ये खूबी है कि वो जानती है कि उसके खाविंद ने उससे मुहब्बत की वजह से शादी की है, इसलिए वो ये बात कभी नहीं भूलती कि उसके खाविंद ने उससे शादी इस शऊर व अहसास के तहत की है कि उसे बीवी की शदीद ज़रुरत है अगरचे बाज़ औका़त उनके दरमियान इख़्तिलाफ़े राय और लड़ाई झगड़ा भी हो जाए _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -26*
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                  ✸_ *क़िस्त -11* _✸
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*❥➾ बेहतरीन औरत अपने खाविंद के पसंदिदा उमूर पूरे करने के लिए कोशिश करती है, अगरचे उनसे कुछ उसे नापसंद भी हों मगर वो खाविंद से अपने प्यार के इज़हार के लिए उसके सारे अहकाम पूरे करती है_,*

*❧"_ अच्छी बीवी में ये खूबी भी होती है कि वो हर लड़ाई और इख्तिलाफ के बाद अपना मुहासबा करती है और अपने से सवाल करती है :- मेरे खाविंद ने जो कुछ कहा और जो कुछ किया, आखिर उसकी वजह क्या थी? और मैने क्या कोताही की थी कि मामला इस क़दर बिगड़ गया ?*

*❧"_ इस तरह वो किसी दूसरे के बताने से पहले ही अपने ऐबों और गलतियों का खोज लगाने की कोशिश करती है, इस खुद अहतसाबी के बाद वो फिर अपने आपसे सवाल करती है कि क्या उस वक्त खाविंद से तकरार करने के बजाए खामोश रहना मुनासिब नहीं था? क्या उससे ठंडे लेहजे में बात करना ज़्यादा मोजू़ नहीं था?*

*❧"_इस उसलूब के साथ बेहतरीन औरत अपने शोहर के साथ यूं पेश आती है गोया कि वो किसी हाल में भी उससे बेनियाज़ और बेपरवाह नहीं है_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -31*
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              *✍ Haqq Ka Daayi ,*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -12* _✸
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*❥➾_मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! अब मैं तुम्हें एक अहम वाक़िया सुनाता हूं जिसमें तुम्हारे लिए बहुत से क़ीमती सबक चमक रहे हैं, तुम इन बातों को हमेशा के लिए अपना दस्तूरे अमल बना लो,*

*❧"_ जब असमा बिन खारजा ने अपनी बेटी की शादी की तो शबे उरुसी उसके पास गया और कहने लगा:- प्यारी बेटी ! अगरचे तुम्हें अज़्दवाजी आदाब सिखाने का हक़ औरतों ही को ज़्यादा है (मगर उनकी गैरमौजूदगी में अब मुझे ही ये फ़र्ज़ अदा करना पड़ रहा है क्यूंकी) तुम्हें आदाब सिखाना बहुत ज़रूरी है _,"*.

*❧"_ प्यारी बेटी! अपने खाविंद की खादिमा बन कर रहना, इस तरह वो तुम्हारा गुलाम और खादिम बन जाएगा, उससे इतनी क़रीब न होना कि वो तुमसे उकता जाए और उससे इतनी दूर भी न रहना कि तुम उसके लिए बोझ बन जाओ और उसके साथ यूं रहना जेसे मैंने तुम्हारी मां से कहा था :-*

*❧"_ मेरी गलतियों पर मुझे माफ करती रहना, तुम्हें मेरी दायमी मुहब्बत मिलेगी और जब मैं जोशे गज़ब से जल रहा हूँ तो मेरे साथ तकरार ना करना, मुझे कभी ढोल की थाप की तरह चोट न लगाना क्यूंकी तुम्हें नहीं मालूम कि खाविंद की जुदाई केसी ज़ालिम चीज़ है, मैंने देखा है कि जब दिल में मुहब्बत और नफरत इकट्ठी हो जाए तो मुहब्बत जल्दी खत्म हो जाती है _,"*

*❧"_ इसी तरह हम अक्सर देखते हैं कि खाविंद से गलती हो जाती है और बात तलाक़ तक पहुंच जाती है, इस हालत में अगर बीवी सब्र व सबात का मुजा़हिरा करे, अपनी नापसंदगी, नफरत और बुग्ज़ व कीने का इज़हार ना करे तो खाविंद बहुत जल्द नादिम हो जाएगा और अपनी गलती मेहसूस कर लेगा _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -32*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -13* _✸
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*❥➾ अब दर्ज़े जेल वाक़िया पढ़ कर एक और नसीहत पर गोर कीजिये:- जिस लम्हे अब्दुल्लाह बिन अजलान के दिल पर शैतान गालिब आ गया और गेज़ व गज़ब उसकी अक़ल को खा गया तो उसने अपनी बीवी को तलाक़ दे दी, लेकिन जब उसकी बीवी ने उसके गैज़ व गज़ब का जवाब खामोशी और पुर सुकून वका़र के साथ दिया और उसके साथ लड़ाई झगड़े से गुरेज़ किया तो उसे अपनी लग्ज़िश का अहसास हो गया,*

*❧"_ वो अपनी बीवी से बड़ी मुहब्बत करता था, लिहाज़ा अपने फेल पर सख़्त नादिम और निहायत गमगीन हुआ, अपने सदमे के इज़हार के लिए उसने कुछ शेर कहे, हम उनमें से सिर्फ दो अश'आर (तर्जुमा) दर्ज करते हैं:-*
 *"_ मैंने (शैतान की) फरमा बरदारी करते हुए हिंद को तलाक़ दे दी, फिर मैं उसकी जुदाई पर बहुत नादिम हुआ (और अब) आंखों से आंसुओं की झड़ी लगी है, गोया आंख के गोशों से मोती गिर रहे हैं _,"*

*❧"_ हमने कितने ही ऐसे शोहर देखे हैं जो जोश व गज़ब में या किसी नई मुहब्बत की तलाश में तलाक दे बैठते हैं और अपनी बीवी से पैमाने वफा तोड़ देते हैं, हालांकी इस्लाम की नज़र में उनका ये फेल हरगिज़ का़बिले क़दर नहीं है, बल्की ये तो अखलाक़ व मुरववत के भी खिलाफ है, ये औरत की ज़िम्मेदारी है कि वो घर में पैदा होने वाली हर मुश्किल का हल हिकमत व दानाई से निकाले ताकी उसका घर आबाद रहे, बर्बाद न होने पाए,*

*❧"_ मेरा खयाल है कि अज़्दवाजी जिंदगी खुशगवार बनाने का सलीका़ और घरों को आबाद रखने का सही तरीक़ा बिल्कुल वाज़े हो गया है, अब हम आगे के हिस्से में बेहतरीन औरतों के दीगर औसाफ व खसाइल का बयान करेंगे, इंशा अल्लाह* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -33*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -14* _✸
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*❥➾ खाविंद की गैर मौजूदगी में इफ्फत व अस्मत की हिफाज़त:-*

*❧"_ मुसलमान औरत का अपना खाविंद पर ये हक़ है कि वो उसे बददायनत ना समझे और उसकी खामियों और लग्ज़िशों की टोह में ना रहे, इसके बर अक्स खाविंद का बीवी पर ये हक़ है कि वो उसकी गैर मोजूदगी में अपनी इफ्फत व अस्मत की हिफाज़त करे*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! इस्लाम तुम्हारे खाविंद की गैर मौजूदगी में घर से निकलने की इजाज़त नहीं देता, जब तक खाविंद घर से बाहर क़दम रखने की इजाज़त ना दे, घर से हरगिज़ ना निकलो, जब तुम उसकी रजा़मंदी के बगेर घर से निकलोगी और उसे अपनी गैर मौजूदगी की बिना पर इसका इल्म नहीं होगा तो तुम गुनाहों में मुब्तिला होने और अपनी इफ्फत व अस्मत को बैगर शऊर व अहसास ज़ाया करने की कोशिश करोगी,*

*❧"_ अगर खाविंद तुम्हें अपनी गैर मौजूदगी में घर से बाहर निकलने की इजाज़त दे दे तो तुम्हें अपने तमाम मामलात में अल्लाह ताला की निगरानी का भरपुर अहसास रखना चाहिए, ये एहसास बेहद ज़रूरी है हत्ताकी तुम अपने घर लोट आओ,*

*❧"_ बिला शुबहा बेहतीन औरत हर वक़्त ये ख़याल रखती है कि जिस क़दर वो अपनी इज़्ज़त व नामूस की हिफाज़त करेगी, उसी क़दर उसे अल्लाह ताला की मुहब्बत हासिल होगी और उसका खाविंद उसका अदब व अहतराम करेगा और उसकी फजी़लत का मुअतरिफ ( इकरार करने वाला) होगा _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -34*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -15* _✸
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*❥➾ इसके बर अक्स ऐसी आशिक मिज़ाज आवारा औरत जो घर से निकल कर खाविंद की बेखबरी में, अपनी शर्म और हया और इज्ज़त तार तार कर देती हैं, वो अपने रब को क्या जवाब देगी जिसने उसका हर हर अमल लिख रखा है और उसके हर फैल की हर आन निगरानी कर रहा है, वो जो जुमला भी बोलती है उसे नामा आमाल में लिख दिया जाता है और क़यामत के दिन उसे नश्र कर दिया जाएगा _,"*

*❧"_ इफ्फत व अस्मत की हिफाज़त का मतलब ये है कि तुम अपने खाविंद की गैर मौजूदगी में किसी भी अजनबी को अपने घर में दाखिल होने की इजाज़त न दो, जनाब तमीम बिन सलमा रह. बयान करते हैं कि हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु हज़रत अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु के घर किसी काम से आए मगर हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को घर में मौजूद न पाया तो वापस चले गए,*

*❧"_ दोबारा आए तो हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़िर भी मौजूद न थे, लिहाज़ा वापस तशरीफ़ ले गए, इस तरह दो या तीन फेरे लगाये, जब हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए तो उनको कहा- जब तुम्हें काम हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा से था तो मेरे घर क्यों नहीं गए?यानी तुम अपनी ज़रुरत की चीज़ फातिमा रजियल्लाहु अन्हा से तलब कर लेते,*
*"_ इस पर हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया- हमें औरतों के पास उनके ख़ाविंदों की इजाज़त के बगैर जाने से मना किया गया है_,"*

*❧"_ ये उस मुबारक दौर की बात है जब मर्द हज़रात गैर औरतों के पास उनके खाविंदों की गैर मौजूदगी में जाने से हया करते थे, आज के दौर में जो हालात है वो सबको मालूम है, आज अजनबी मर्द दूसरे के घरों में खाविंदों की गैर मौजूदगी में बड़ी रगबत से जाते हैं, इस तर्जे अमल की वजह ये है कि उनके दिलों से हया और अल्लाह का खौफ खत्म हो गया है _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -35*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -16* _✸
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*❥➾ प्यारी इस्लामी बहनों! तुम बेहतरीन औरत बन जाओ और खाविंद की गैर मौजूदगी में उसके हक़ की इस तरह हिफाज़त करो जिस तरह उसकी मौजूदगी में करती हो, उसका माल ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल ना करो जिसका उसने तुम्हें अमीन बनाया है, इस अमानत में खयानात न करो वरना तुम्हें हसरत व नदामत का सामना करना पड़ेगा _,"*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनों! अगर तुम्हें देख कर तुम्हारे खाविंद को फरहत व सरवर हासिल होता है और जब वो तुम्हें कोई हुक्म देता है तो तुम उसकी इता'त करती हो और अगर तुम उसकी मौजूदगी और गैर मौजूदगी में उसके हक़ की हिफाज़त करती हो तो तुम यक़ीनन मिसाली और मोअज्जिज़ खवातीन के आली मर्तबे के क़रीब पहुंच गई हो, यक़ीनन बेहतरीन औरतों को ऐसा ही होना चाहिए,*

*❧"_ एक दफ़ा का ज़िक्र है कि एक दिन क़ाज़ी शरीह इमाम सामी रह. को मिले तो इमाम सामी रह.ने उनसे उनके घरेलू हालात दरियाफ्त किए, क़ाज़ी शरीह कहने लगे- मैंने गुज़िश्ता बीस बरसों में अपने घर वालों में ऐसी कोई चीज़ नहीं देखी जो मुझे गुस्सा दिलाए और नाराज़ कर दे, इमाम सामी रह. ने यह सुन कर ताज्जुब से पूछा - यह कैसे मुमकिन है?*

*❧"_ क़ाज़ी शरीह ने तफ़सील बताई और कहा - जब मैं पहली रात अपनी बीवी के पास गया तो उसका महसूर कुन हुस्न देख कर दंग रह गया, मैंने दिल में सोचा - मुझे वज़ू करके इस नियामत पर अल्लाह ता'ला के शुक्र के लिए दो रका'त निफ्ल पढ़ना चाहिए, चुना़चे मैंने निफ्ल पढ़ी और सलाम फैरा तो देखा कि मेरी बीवी भी मेरे साथ ही निफ्ल पढ़ रही थी, उसने भी मेरे साथ ही सलाम फैरा,*

 *"_जारी अगले पार्ट में______,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -36*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -17* _✸
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*❥➾ जब मेरे घर से अज़ीज़ो अक़ारिब और दोस्त अहबाब रुख़सत हो गए तो मैं उसके पास गया और उसकी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया, वो बोली - अबू उमैया! ज़रा ठहरिये, फिर वो कहने लगी - सब तारीफें अल्लाह ही के लिए है, मैं उसी की तारीफ बयान करती हूं और उसी से मदद मांगती हूं और मुहम्मद ﷺ और आपकी आल पर दरूद भेजती हूं, मैं एक अजनबी हूं, मुझे आपके अखलाक़ का इल्म नहीं है, आप अपनी पसंद और ना पसंद की बातें बताएं ताकि मैं आपकी पसंद की बातों पर अमल कर सकुं और नापसंदीदा बातों से गुरेज़ करूं,*

*❧"_ बिला शुबहा आपकी क़ौम में आपके लिए रिश्ते बहुत थे और मेरी क़ौम में भी मेरे हम पल्ला नोजवान मोजूद थे लेकिन अल्लाह तआला जब किसी काम का फैसला फरमाता है तो वो हो कर रहता है, ये अल्लाह ही का अमर है कि हमारी शादी हो गई है, अब आप अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ या तो मुझे उम्दा तरीक़े से बसा लें या अहसान करते हुए आज़ाद कर दें, मैं इन्ही अल्फाज़ पर अपनी बात ख़त्म करती हूँ और अल्लाह ता'अला से अपने और आपके गुनाहों की बख़्शीश की तालिब हूँ,*

*❧"_ क़ाज़ी शरीह कहते हैं:- ए शामी! अल्लाह की क़सम! मेरी दुल्हन ने उस मोक़े पर मुझे भी तक़रीर पर मजबूर कर दिया, मैंने कहा - तमाम तारीफें अल्लाह ही के लिए है', मैं उसी की हम्द बयान करता हूं और उसी से मदद व नुसरत का तलबगार हूं और मैं नबी करीम ﷺ और आपकी आल पर दरूद भेजता हूं, बेशक तुमने बड़ी दानिश मंदाना बातें की हैं, इन पर साबित क़दम रहोगी तो तुम्हें उनके मुताबिक बड़ा अच्छा सिला मिलेगा और अगर तुमने उनकी खिलाफ वर्जी की तो यही बातें तुम्हारे खिलाफ हुज्जत व दलील बन जाएंगी _,"*

*❧"_ मुझे ये ये बातें पसंद है और फलां फलां काम नापसंद है', तुम मेरी जो अच्छी बात देखो, उसे आगे बयान कर सकती हो और जो खामी देखो, उसे पोशिदा ही रखना, उसने पूछा - आप मेरे मायके वालों के साथ मेल मिलाप किस हद तक पसंद करेंगे?*

 *"_ बाक़ी अगले पार्ट में जारी _____,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -38*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -18* _✸
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*❥➾ उसने दरियाफ्त किया - आप किन पड़ोसियों को घर में आने की इजाज़त देना पसंद करते हैं ताकि मैं उन्हें आने की इजाज़त दूं और किन का दाखिला आप नापसंद करते हैं ताकी मैं भी उनसे खबरदार रहुं और घर में दाखिल होने की मुमानत कर दूं ? मैंने कहा - फलां लोग बड़े नेक और सालेह हैं, (उन्हे इजाज़त दे देना) और फलां अच्छे लोग नहीं हैं (उन्हे मना कर देना)*

*❧"_ जनाब शरीह कहते हैं - मैंने उसके साथ अरमानों भरी रात गुज़ारी, फिर उसकी रफाक़त में एक साल बीत गया, इस दौरान में मुझे उसकी कोई नापसंदीदा बात नज़र नहीं आई, एक दिन मैं अदालत से वापस आया तो मैंने अपनी सास को घर में मौजूद पाया, सास ने मुझसे पूछा- तुमने अपनी बीवी को केसा पाया ?*

*❧"_ मैंने कहा - मेरी बीवी बहुत अच्छी है, उसने कहा- अल्लाह की क़सम! मर्द अपने घर में नाज़ नखरे वाली बीवी से बढ़ कर कोई बुरी चीज़ नहीं लाते, इसलिए बा वक्त़ ज़रूरत उसे अदब सिखाना और उसके अखलाक दुरुस्त रखने के लिए उसकी तहज़ीबी तरबियत ज़रूर करना,*

*❧"_ शरीह कहते हैं - मेरी ये बीवी बीस साल मेरे साथ रही और उसे किसी मामले में मुझे सज़ा देने या डांटने की ज़रुरत पेश नहीं आई, सिवाय एक मरतबा के और दर हक़ीक़त उसमें भी मैं ही क़सूरवार था_ ,"*
*❧"_यकीनन! मिसाली खवातीन को ऐसा ही होना चाहिए_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -39*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -19* _✸
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*❥➾ जनाब आमिश ने एक हसीन व जमील नोजवान औरत से शादी की जबकी वो खुद खुश शक्ल ना थे, उन्होंने एक दिन खुश हो कर कहा- इंशा अल्लाह मैं और तुम जन्नत में जाएंगे, उसने पूछा- आपको इसका इल्म केसे हुआ ? कहने लगे- मैं अल्लाह का शुक्र अदा करता हूं कि मुझे तुम जैसी हसीन व जमील बीवी अता की है, तुम मेरी बदसूरती पर सब्र करती हो, लिहाज़ा शाकिर और साबिर अफराद जन्नत में जाएंगे,*

*❧"_ हिजाज ने इब्ने क़रिया से कहा- शादी के बारे में तुम्हारी क्या राय है? उन्होंने जवाब दिया- मैं दुनिया में सबसे ज्यादा खुश नसीब शख्स, सबसे ज्यादा खुश व खुर्रम, सबसे पाकीज़ा और उम्दा ज़िंदगी गुजारने वाला शख्स हूं' जिसे अल्लाह ताला ने मुसलमान, अलमबरदार, इफ्फत व अस्मत वाली, हसीन व जमील, नरम दिल वी् नरम मिज़ाज, सफाई पसंद और इता'त गुज़ार बीवी अता की है _,"*

*❧"_ ख़ाविंद कोई अमानत उसके हवाला करे तो वो उसे अमानतदार पाये, उस पर तंगदस्ती के दिन आये तो उसे क़नात पसंद पाये, वो उसके पास मोजूद ना हो तो उसे अपनी इज़्ज़त व नामूस की हिफाज़त करने वाली पाये, उसका खाविंद हमेशा खुश हाल और आसूद नज़र आए, उसका हमसाया सलामती के साथ रह रहा हो, उसका गुलाम अमनो अमान में हो, उसकी औलाद साफ सुथरी दिखाई दे, जिसके हिल्म वी बुर्दबारी ने उसकी तुर्श रुई को छिपा दिया हो, उसके दीन ने उसकी अक़ल व दानिश को ज़ीनत बख्शी हो,*

*❧"_ तो यह औरत एक महकते हुए गुलदस्ते और समर बार खजूर की तरह है, उस शख्स के लिए जो उसकी महक से लुत्फ अंदोज़ और उसके फल से लज्ज़त आशना हो, ये औरत उस मोती की तरह है जिसमे अभी सुराख ना किया गया हो और उसका असली हुस्न व जमाल बाक़ी हो, ये औरत उस मुश्क की तरह है जिसकी महक को छेड़ा ना गया हो, रात को तहज्जुद गुज़ार, दिन को रोजे़दार, हमेशा हंसती मुस्कुराती नज़र आने वाली, खुशहाली देखे तो अल्लाह का शुक्र बजा लाए और तंगदस्ती में मुब्तिला हो तो सब्र करे, जिस शख्स को अल्लाह ताला ऐसी बीवी अता कर दे, वो दुनिया व आखिरत में कामयाब व कामरान हो गया,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -40*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -20* _✸
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*❥➾ _अमीरुल मोमिनीन उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु के नज़दीक बेहतरीन औरत की ख़ूबियाँ:-*
*❧"_हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं -( मिसाली औरत की ख़ूबियाँ ये हैं) मुसलमान हो, अक़लमंद हो, शर्म व हया की पैकर, संजीदा और बा वक़ार, नर्म मिज़ाज, ज़्यादा मुहब्बत करने वाली, ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाली, मसा'इब व आफत में खाविंद की मददगार और खाविंद को मुश्किल के हवाले न करने वाली हो, लेकिन ऐसी औरतें बहुत कम हैं _,"*

*"❥➾_हज़रत अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु के नज़दीक अफ़ज़ल औरत के औसाफ़:-*
*❧"_हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं - बेहतरीन औरत वो है जिसकी महक ख़ुश गवार हो, खाना पाकीज़ा हो, (पैसा) ख़र्च करे तो मियाना रवी अख्त्यार करे, संभाल कर रखे तो भी ऐतदाल और मियाना रवी को हाथ से ना जाने दे, ऐसी औरत अल्लाह के कारकुनो में से है और अल्लाह का कारकुन कभी ज़लील, रूसवा और नामुराद नहीं होता,*

*❥➾"_ एक आराबी के नज़दीक बेहतरीन औरत के खसाइल:-*
*❧"_ एक आराबी से बेहतरीन औरतों के औसाफ पूछे गए तो उसने कहा- औरतों में अफ़ज़ल औरत वो है कि जब खड़ी हो तो सबसे लंबी हो, बेठे तो सबसे अज़ीम और पुर वका़र दिखाई दे, बात करे तो सबसे सच्ची हो, गुस्सा आए तो हलीम व बुर्दबार बन जाए, हंसी आए तो खूबसूरत मुस्कुराहट बिखेर दे, कोई चीज़ पकाए तो गुरबा में बांटे, जो अपने खाविंद की इता'त शआर हो, अपने घर में ठहरी रहे, अपनी कौम में मोअज्जिज़ व मुहतरम हो, अपनी ज़ात में आजिज़ व हक़ीर हो, ज़्यादा मुहब्बत करने वाली, ज़्यादा बच्चे जनने वाली हो और उसका हर काम लायक़े तारीफ हो,*

*❧"_ मेरी इस्लामी बहनो!बेहतरीन औरत की खूबियां सीखो और उन सिफात पर गोर व फिक्र करो जो अल्लाह ताला ने कुरान मजीद में बयान फरमाई है, कुरान तुम्हारे लिए अब्दी हिदायत, जिंदगी का दस्तूर, नूरे मुबीन और फुरक़ाने हमीद है, मजी़द बरां नबी करीम ﷺ के इरशादात, सल्फे सालेहीन, सहाबा किराम और ताबईन आज़म के फरामीन की रोशनी में बेहतरीन औरत के औसाफ पर गोर कीजिए, फिर अपना जायज़ा लो और अपने दिल से पूछो - क्या मेरे अंदर ये खूबी मौजूद है? क्या मैंने ये तरीक़ा अपनाया है? तुम इन सिफात को अख़्त्यार किए हुए हो तो अल्लाह तआला का शुक्र करो कि उसने तुम्हें तौफीक अता फरमाई और अगर तुम इन सिफात से महरूम हो तो ये तुम्हारे लिए नसीहत है और नसीहत मोमिनात को नफा देती है,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -41*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -21* _✸
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*❥➾ अल्लाह ताला के अज़ाब से डरने वाली औरत:-*

*❧"_ अल्लाह तआला से डरने और ख़ौफ़ खाने में जहन्नम का डर, जब्बार के ख़ौफ़ से गिर्या व ज़ारी और क़हार के हुक़ूक़ में कोताही पर नदामत का इज़हार शामिल है, यही वो काबिले तारीफ़ ख़ौफ़ है जो इंसान को उसकी महबूब चीज़ यानी जन्नत के हुसूल में कामयाबी और जहन्नम से निजात दिलाता है,*

*❧"_अल्लाह ताला का डर उन मोमिन औरतों की सिफत है जिनके दिल अल्लाह ताला का ज़िक्र सुन कर नरम हो जाते हैं और जो अपने ऐबों और गुनाह याद कर के रोने लगती हैं,*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! आज मुसलमान औरतों का ये हाल हो गया है कि जब वो मौत का तज़किरा या जन्नत और जहन्नम का ज़िक्र सुनती है तो ना कोई नसीहत पकड़ती हैं बल्की "जन्नत और जहन्नम" दो ऐसे अल्फाज़ हैं जिनकी तरफ वो ध्यान देना भी गवारा नहीं करतीं,*

*❧"_ उनकी ये हालत इसीलिए है कि उनके दिलों से खोफे इलाही खत्म हो चुका है, दुनिया को हासिल करना उनका अव्वलीन मक़सद बन गया है और यही उनका मुबल्लिग इल्म है, वो दुनिया की चका चोंध से धोखा खा गई हैं और उसे हासिल करने में मगन हो कर हलाक हो गई हैं, दुनिया और आखिरत में नाकाम व नमुराद हो गई है और ये बहुत बड़ा खसारा है*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -42*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -22* _✸
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*❥➾ पहले ज़माने में मोमिन औरतें निहायत मुत्तकी़, परहेज़गार, नेकियों पर कारबंद, इल्म की मुतलाशी और अल्लाह ताला से बहुत डरने वाली होती थीं, उनके आंसु खोफे इलाही से बहते रहते और उनके क़दम तवील निफली नमाज़े पढ़ने और रहमान की इता'त वाले आमाल बजा लाने से सूज जाते थे,*

*❧"_ उन्होंने ज़िंदगी के मिलने वाले मोको़ से भरपुर फायदा उठाया और बहुत अज़ीम कामयाबी उनका मुकद्दर बन गई, वो दुनिया की रंगीनियों में गाफ़िल नहीं हुई और ये चंद रोज़ा हक़ीरी दुनिया उनको क़ब्र के जज़ा व सज़ा वाले तवील अरसे में अल्लाह तआला के सामने जवाबदह होने और हशर के दिन नंगे पाँव नंगे बदन खड़े होने से गाफिल कर भी कैसे सकती थी,*

*❧"_ मेरी प्यारी मोमिना बहनों! उन्‍होंने बाखूबी जान लिया था कि हर आने वाली चीज़ क़रीब है, मौत अपनी बेहोशियों समेत आने वाली है, कब्र अपनी होल्नाकियो के साथ बहुत क़रीब है, क़ब्रो से जी उठने का वक्‍त आने वाला है, क़यामत अपनी तमाम होलनाकियों समेत बरपा होने वाली है, उस वक्त़ हर मुसलमान औरत याद करेगी कि किस तरह निजात पाने वालियां अल्लाह के खोफ के सबब से निजात पा गई, और नाकाम व नामुराद होने वाली खवातीन, खोफे इलाही से गफलत की वजह से खसारे का शिकार हो गई,*

*❧"_ उनकी आंखों से हिजाब हटा दिया गया तो उन्होंने अपने बुरे आमाल देखे, जबकी हमारा रब हम सबको पुकार कर कह रहा है:-(सूरह - क़ाफ़-22) "यक़ीनन तू उससे गफ़लत में था तो हमने ( तेरी आंखों से) तेरा पर्दा हटा दिया, चुनांचे आज तेरी निगाह बहुत तेज़ है _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -42*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -23* _✸
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*❥➾ सल्फे सालेहीन में से एक बुज़ुर्ग यज़ीद रक़ाशी अपने नफ़्स को मुखातिब कर के कहा करते थे :- ऐ यज़ीद! तेरा भला हो, मौत के बाद तेरी नमाज़े कौन पढ़ेगा? मरने के बाद तेरी तरफ से रोज़े कौन रखेगा? फ़ौत हो जाने के बाद तेरी तरफ से रब को कौन राज़ी करेगा?*

*❧"_ लोगों! तुम अपनी बाक़ी जिंदगी में अपने गुनाहों पर रोते क्यों नहीं? जिस शख्स के पीछे मौत लगी हो, कब्र जिसका घर हो, मिट्टी जिसका बिस्तर हो, ज़हरीले कीड़े जिसके साथी हो और उसके साथ साथ वो क़यामत की होलनाकियों का मुंतज़िर भी हो, उसका हाल क्या होगा? फिर आप खूब रोते थे,*

*❧"_ खौफे इलाही बहुत बड़ी मता है, हर सच्चे मुसलमान का दिल इसकी आरज़ू करता है और उसके वसीले से अपनी इस्लाह करता है, हज़रत उबई बिन काब रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है - कुरान सुन्नत को थाम लो क्योंकि जो शख्स कुरान व सुन्नत को थाम लेता है और रहमान के ज़िक्र पर खौफे इलाही की वजह से उसके आंसू बह निकलते हैं, जहन्नम की आग नहीं छू सकती,*

*❧"_ और जो शख्स सिराते मुस्तकीम पर चलता है और जिक्रे इलाही के वक्त खोफे इलाही से उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं, उसकी मिसाल उस दरख्त जैसी है जिसके पत्ते खुश्क हो चुके हो, जब तेज़ हवा चलती है तो उसके सारे पत्ते झड़ जाते हैं, इस तरह उस शख्स के गुनाह अल्लाह के खौफ के बाइस झड़ जाते हैं,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -43*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -24* _✸
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*❥➾_हज़रत इब्ने मलिका रह. फ़रमाते हैं - मैंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमरु रज़ियल्लाहु अन्हु को नमाज़ की हालत में रोते हुए देखा तो मैंने पूछा- आप क्यों रो रहे हैं? उन्होंने कहा - क्या तुम ख़सियत ए इलाही पर ताज्जुब कर रहे हो? फिर चांद की तरफ इशारा कर के फरमाया - अल्लाह के खोफ से तो चांद भी रोता है _," (अबू नईम -1/145)*

*"❧_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनों! जब जमादात भी खौफे इलाही से रो देते हैं तो क्या ये मंजर तुम्हें अल्लाह के खौफ से रोने की दावत नहीं देता?*

*"❧_ खौफे इलाही का बहुत बड़ा अजरो सवाब है, हजरत काब अहबार के इस इरशाद पर गौर कीजिये, वो फरमाते हैं- अपने वज़न के बराबर सोना सदका़ व खैरात करने की निस्बत मुझे अल्लाह के खौफ से इस तरह रोना ज़्यादा पसंद है कि मेरे आंसु मेरे रुखसरों पर बहने लगे, उस ज़ात की कसम जिसके हाथ में काब की जान है! जो मुसलमान अल्लाह के खौफ से रोता है यहां तक कि उसके चंद आंसू ज़मीन पर गिर पड़ते हैं तो उसे जहन्नम की आग कभी नहीं छुएगी यहाँ तक कि आसमान से नाज़िल होने वाली बारिश के क़तरे जहाँ से आए थे, वहीँ लोट जायेंगे और वो कभी भी नहीं लोटेंगे _," (अबू नईम- 5/401, अहयाउल उलूम अल गजा़ली- 4/160)*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो ! तुम्हारे दिल में खौफे इलाही का मौजूद होना इस बात की दलील है कि तुम्हारा दिल ईमान का गहवारा है, इस्लाम से मा'मूर है और तक़वा से मुज़य्यन है_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -46*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -25* _✸
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*❥➾ आपकी रहनुमाई के लिए चंद अलामात बयान की जाती हैं:-*
*❧"_ अल्लाह के ख़ौफ़ का इज़हार तुम्हारी ज़ुबान से होगा, तुम्हारी ज़ुबान झूठ बोलने और गीबत करने से रुक जाएगी और ज़िक्रे इलाही, पाकीज़ा नेक और नफ़ामंद कलाम, क़ुरान मजीद की तिलावत और मुफ़ीद इल्म के मुज़ाक़रे में मशगूल हो जाएगी,*
*❧"_ खौफे इलाही तुम्हारे दिल से भी अयां हो जाएगा, क्या तुमने सच्चे दिल से मुसलमान बहनों के खिलाफ दुश्मनी, बुग्ज़, नफरत और हसद का जज़्बा निकाल कर उनकी भलाई, खैर ख़्वाही और शफ़क़त व मुहब्बत के जज़्बात बेदार कर लिए हैं या नहीं?*

*❧"_ अल्लाह का खौफ़ तुम्हारी आँखों से भी ज़ाहिर हो जाएगा, यानि तुम हराम चीज़ों की तरफ़ नहीं देखोगी, दुनिया की रानाइयों पर ललचाई हुई नज़र डालोगी न दुनिया में बक़ा व क़याम पसंद करोगी बल्की तुम दुनिया को इबरत पकड़ने और नसीहत हासिल करने के लिए देखोगी और तुम्हें अल्लाह की मुलाक़ात की तड़प और जन्नत के हुसूल का शौक होगा,*

*❧"_ तुम्हारे क़दम ये हक़ीक़त अयां कर देंगे कि तुम्हें अल्लाह का खौफ है या नहीं, यानि तुम उस जगह नहीं जाओगी जिसकी निसबत तुम्हें मालूम हो कि वहां अल्लाह की नाफरमानी की जाती है और तुम वहां जा कर गुनाह मे मुलव्विस हो जाओगी,*
*❧"_ तुम्हारे हाथ भी ये बात वाज़े कर देंगे, मतलब ये कि तुम हराम ख़बीस और गंदी चीज़ लेने के लिए हाथ नहीं बढ़ाओगी, बल्कि अल्लाह की इता'त और रज़ामंदी वाली चीज़ो की तरफ़ बढ़ाओगी,*

*❧"_ नेक आमाल करने के बाद तुम्हारा ज़मीर भी यही हक़ीक़त उजागर करेगा, क्या तुमने नेक अमल अल्लाह की रज़ा और उसके सवाब के हुसूल के लिए किया है या लोगों को दिखाने और उनसे वाह वाह कराने के लिए? क्या तुम अपने आमाल में रियाकारी और निफाक़ से डरती हो? तुममें अल्लाह का खौफ़ होगा तो तुम यक़ीनन आमाले हसना बेहतर से बेहतर पुर अंजाम देने की कोशिश में लगी रहोगी और पारसाई के ज़ाम में कभी मुब्तिला नहीं होगी,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -48*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -26* _✸
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*❥➾ मेरी प्यारी मोमिना बहनो! मिसाली खातून बनने के लिए तुम्हें अपने रब से डरना चाहिए, खोफे इलाही के कई वसीले हैं, उनमे से चंद एक ये है:-*
*❧"_(1)_ गुनाहों से तौबा करने से पहले अचानक मौत आ जाने का खौफ,*
*❧"_(2)_ हुकूक ए इलाही कमा हक़ अदा करने में अपनी कमज़ोरी और ज़ौफ़ का खौफ़, क्योंकि हुकूक़ुल्लाह बहुत से है (और इंसान कमज़ोर है)*
*"_(3)_मौत के वक्त़ रुसवा होने का खौफ,*
*❧"_(4)_तेरे पोशिदा और मखफी आमाल पर अल्लाह तआला के मुत्तल'आ (वाक़िफ) होने का खौफ जबकी तुम इससे गाफिल हो,*

*❧"_(5)_बुरे अंजाम और इबरतनाक खात्मे का खौफ,*
*❧"_(6)_ दिल की नरमी का खत्म हो जाना और उसके पत्थर बन जाने का खौफ,*
*❧"_(7)_ सिराते मुस्तकी़म से हट जाने का खौफ,*
*❧"_(8)_अल्लाह ताला की नियामतों की कसरत से गुरूर व तकब्बुर में मुब्तिला होने का खौफ,*

*❧"_(9)_अल्लाह को भूल कर गैरुल्लाह की इता'त में मशगूल हो जाने का खौफ,*
*❧"_(10)_ दुनिया ही में अज़ाबे इलाही में गिरफ़्तारी का खौफ़,*
*❧"_(11)_मौत की बेहोशियों और तकालीफ का खौफ,*
*❧"_(12)_ मुनकर व नकीर के सवालात का खौफ,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -49*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -27* _✸
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*❥➾ (13)_ अज़ाबे क़ब्र का खोफ़,*
*"❧_(14)_ क़यामत की होलनाकियों का खोफ,*
*"❧_(15)_अल्लाह ताला के सामने खड़े होने का खोफ,*
*❧"_(16)_ हर छोटी बड़ी अज़ीम व हक़ीर चीज़ के बारे में सवाल का खोफ़,*

*"❧_(17)_पुल सिरात और उसकी तेज़ धार का खोफ,*
*❧"_(18)_ जहन्नम के शोलों और वहशत नाकियों का खोफ,*
*"❧_(19) नियामतों से आरास्ता जन्नत और अब्दी बादशाही से महरूमी का खोफ,*
*❧"_(20)_अल्लाह रब्बुल इज्ज़त के चेहरे अक़दस की ज़ियारत से महरूमी का खोफ़,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! जनाब फकी़ह समरकंदी रह. का इरशाद सुनिए, वो फरमाते हैं, जो शख्स नेक काम करे उसे चार बातों से खोफ खाने की ज़रूरत है:-*
*"❧_(1)_ नेक अमल के कुबूल न होने का खोफ क्युंकी अल्लाह तआला फरमाते है,"_ बिला शुबहा अल्लाह मुत्तकियो से (आमाल) क़ुबूल करता है _," (सूरह माइदा -27)*
*❧"_(2)_ रियाकारी का खोफ क्यूंकि अल्लाह तआला फरमाते हैं, "हालांकी उनको यही हुकम दिया गया था कि वो बंदगी को अल्लाह के लिए खालिस कर के उसकी इबादत करें _, ( अल बैयिनाह- 98)*

*❧"_ (3)_ आमाल की वसूली और हिफाज़त का खोफ - अल्लाह ताला फरमाते हैं,"_ जो शख्स (वहां) एक नेकी ले कर आए तो उसके लिए दस गुना (सवाब) होगा, (अल अनआम-160),*
*"_इस तरह अल्लाह तआला ने आमाल को आख़िरत के दिन लाने की शर्त लगा दी,*
*❧"_(4)_ इता'त व फरमाबरदारी में रुसवाई का खोफ इसलिए कि बंदे को ये इल्म नहीं कि सही इता'त की है या नहीं? इरशादे बारी ता'ला है - "_ और मुझे (इसकी) तोफीक़ मिलना अल्लाह की मदद के सिवा मुमकिन नहीं, मैंने उस पर भरोसा किया और उसी की तरफ रुजू करता हूं _," (हूद- 88)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -50*
        
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -28* _✸
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*❥➾ अल्लाह ताला की मती व इबादत गुज़ार औरत:-*

*❧"_सल्फ़ सालेहीन के अहद मुबारक में मोमिन औरतों ने बेहतरीन औरत के मर्तबे तक पहुँचने के लिए जो बुनियादी काम किए उनमें से एक तज़किया नफ़्स भी है, तज़किया नफ़्स से मुराद नेक आमाल अंजाम देने और हलाक़ करने वाले गुनाहों से इज्तिनाब कर के दिल में ईमान को मज़बूत बनाना है,*

*❧"_हज़रत हफ्सा बिंते सिरीन रह. ने जो जलीलुल क़द्र ताब'ई हज़रत मुहम्मद बिन सिरीन रह. की हमशीरा थी, बारह साल की उम्र में क़ुरान मजीद पढ़ लिया था जबकि उनकी वफात नब्बे साल की उम्र में हुई,*
 .
*❧"_ जनाब हिशाम बिन हस्सान रह. कहते हैं कि हजरत हफ्सा अपनी मस्जिद (घर में नमाज़ की जगह) में दाखिल होती तो जुहर और असर की नमाज़ अदा करतीं, फिर जब तक अल्लाह चाहता वो ज़िक्र करती रहती थीं, फिर वो किसी ज़रूरी काम या क़ेलुला ही के लिए निकलती थीं,*

*❧"_ जनाब हबीब अज़मी की ज़ोजा मोहतरमा अपने ख़ाविंद को रहमान की फ़रमा बरदारी के कामों की तरगीब दिलाया करती थीं और वो अपनी ज़ोजा को नेक आमाल का शोक़ दिलाते थे, एक रात वो उठीं तो देखा कि उनका ख़ाविंद सोया हुआ है, उन्होंने सेहरी के वक्त उन्हें जगाया और कहा- हज़रत उठिये! रात खत्म हो गई और दिन चढ़ आया है जबकि आपका रास्ता और सफर बहुत लंबा है, रास्ते का सामान बहुत थोड़ा है, नेक लोगों के काफिले हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं और हम पीछे रह गए हैं _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -53*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -29* _✸
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*❥➾ खुशहाली में शुक्र गुजा़री:-*
*❧"_इस्लाम में शुक्र का मक़ाम व मर्तबा बहुत बुलंद है, बाज सल्फे सालेहीन ने तो शुक्र को निस्फ ईमान क़रार दिया है, इमाम इब्ने क़य्यिम रह. कहते हैं कि शुक्र की हक़ीक़त ये है कि अल्लाह तआला की निआमत का इज़हार बंदे की जुबान से ऐतराफ और तारीफ़ की शक्ल में हो और उसका दिल अल्लाह ताला के अहसानात व इनामात की मुहब्बत से सरशार हो कर गवाही दे, उसके आजा़ फरमाबरदारी और इता'त के ज़रिए से उसका इजहार करें,*

*❧"_ ए मुसलमान बहनो ! तुम्हारा क्या हाल है? क्या तुम अल्लाह की हर नियामत पर शुक्र अदा करती हो? अल्लाह ताला की तरफ से शुक्र गुज़ार अफराद के लिए एक बहुत बड़ी खुश खबरी ये है कि अल्लाह ताला उनकी नियामतों में इज़ाफ़ा फरमा देता हैं, अल्लाह तआला का इरशाद है - अगर तुम शुक्र करोगे तो यक़ीनन में तुम्हें मजी़द (नियामतें) अता करूंगा,*

*❧"_ तुम्हें ये बात हमेशा याद रखना चाहिए कि अल्लाह ताला की हर नियामत अता होने पर तुम्हारे जिम्मे अल्लाह का हक़ पहले से बढ़ जाता है, जनाब जाफर बिन मुहम्मद कहते हैं:- अल्लाह ताला अपने बंदे को जो नियामत भी अता करता है जिसका ऐतराफ वो अपने दिल से और उसका शुक्र ज़ुबान से करता है तो अल्लाह तआला का हक़ मजी़द बढ़ जाता है,*

*❧"_ मुसलमान औरत के लिए अल्लाह तआला की अता करदा नीयामतों में से सबसे बड़ी नियामत कोनसी है?*मुसलमान औरत के लिए हासिल शुदा नियामतों में सबसे बड़ी नियामत इस्लाम है,*
*"_ जनाब खालिद बिन मअदान बयान करते हैं कि उन्‍होने अब्दुल मलिक बिन मरवान को ये कहते हुए सुना - बंदा जो कलमात कहता है, उनमे अल्‍लाह ताला को सबसे ज्‍यादा महबूब अदा ए शुक्र का ये बलीग जुमला है:- अल्हम्दुलिल्ला हिल्लज़ी अन'अमा अलैना वा हदाना लिल इस्लाम _," (तरजुमा) सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिए हैं जिसने हम पर नियामातें बरसाई और हमें इस्लाम की हिदायत अता की,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -63*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -30* _✸
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*❥➾ मेरी मुसलमान बहनो! तुम रोज़ाना अल्लाह ताला की दो नियामतों के दरमियान ज़िंदगी बसर कर रही हो, एक तुम्हारे वो गुनाह जिन पर अल्लाह ने पर्दा डाला हुआ है और तुम बेखौफ हो गई हो कि तुम्हें उनकी वजह से कोई आर दिलायेगा, दूसरी ये कि अल्लाह ने लोगों के दिलों में तुम्हारे लिए प्यार और मुहब्बत भर दी है, हालांकी तुम्हारे अमल ऐसे नहीं, तुम अल्लाह की अता करदा नियामतों और नवाजिशों का शुक्र कैसे अदा करोगी?*

*❧"_ एक शख्स ने जनाब अबु हाज़िम से पूछा - ए अबु हाज़िम आंखों का शुक्र क्या है? अबू हाज़िम फरमाते हैं - आंखो का शुक्र ये है कि अगर तुम उनसे कोई भलाई की बात देखो तो उसे बयान कर दो और अगर उनसे कोई बुराई देखो तो उसकी पर्दापोशी करो,*

*❧"_ उसने सवाल किया - हाथों का शुक्र क्या है? आपने फरमाया- उनके साथ ना जाइज़ और हराम चीज़ मत पकड़ो और अल्लाह का हक़ मत रोको, उसने दरियाफ्त किया- कानों का शुक्र क्या है? फरमाया- अगर उनसे अच्छी बात सुनो तो याद कर लो और अगर बुरी बात सुनो तो दफा कर दो,*

*❧"_ उसने पूछा- पेट का शुक्र क्या है? फरमाया- उसका शुक्र ये है कि उसका ज़ेरे हिस्सा खाने के लिए हो और बालाई हिस्सा इल्म के लिए हो, उसने पूछा - शर्मगाह का शुक्र क्या है? फरमाया उसका शुक्र अल्लाह ता'ला के इस इरशाद पर अमल करना है - (तर्जुमा) सिवाय अपनी बीवियों या कनीज़ो के जिनके मालिक उनके दाएं हाथ हुए तो बिला शुबहा (उनकी बाबत) उन पर कोई मलामत नहीं, फिर जो शख्स उनके अलावा (कोई राह) तलाश करे तो ऐसे ही लोग हद ने गुज़रने वाले हैं _,"*

*❧"_ उसने पूछा- टांगों का शुक्र क्या है? उन्होंने फरमाया- जब तुम किसी ज़िंदा शख्स के अमल को देख कर उस पर रश्क करो तो तुम अपने क़दम उस क़िस्म के अमल करने के लिए इस्तेमात करो, और जब तुम किसी मरने वाले के बुरे आमाल नापसंद करो तो तुम अपने क़दम उस जैसे अमल करने से रोक दो, इस तरह तुम अल्लाह के शुक्र गुज़ार बन जाओगे_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -64*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -31* _✸
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*❥➾ लेकिन जिस शख्स ने अपनी जुबान से शुक्र अदा किया मगर अपने तमाम आ'जा़ से शुक्र गुजारी ना की तो उसकी मिसाल उस शख्स जैसी है, जिसके पास एक चादर हो और उसने उसका एक कोना पकड़ा लिया हो मगर उसे ओढ़ा ना हो तो उसे वो चादर गर्मी, सर्दी, औलो, बर्फबारी और बारिश से नहीं बचा पाएगी,*

*❧"_ इमाम गजली रह. ने हमारे लिए शुक्र की कई ऐसी सूरतें बयान की है जिनका मुसलमान औरत के दिल में शायद ख्याल भी ना गुज़रा हो, वो फरमाते हैं:-*
*❧"_ बंदे का पे दर पे नियामतों के हुसूल पर हया करना भी शुक्र है, अदा ए शुक्र में अपनी कोताही का एतराफ व शऊर भी शुक्र है, क़लील शुक्र गुजा़री का उज्र पेश करना भी शुक्र है, अल्लाह ता'ला के अज़ीम इल्म की मारफत और उसकी पर्दापोशी की मारफत भी शुक्र है, ये ऐतराफ कि अल्लाह ताला की नियामतें बगैर किसी इस्तेहक़ाक़ के, सिर्फ उसके फ़ज़ल व करम से अता हो रही है, ये भी शुक्र है, इस बात का इल्म कि अल्लाह ता'ला की नियामतों और उसके फ़ज़ल व करम का शुकर अदा करना भी एक नियामत है, ये भी शुक्र है, अल्लाह की नियामतों में आजिज़ी और इंकसार अख्तियार करना भी शुक्र है, नियामत के हुसूल का सबब बनने वालों का शुक्रिया अदा करना भी शुक्र है, नियामत को अच्छे तरीक़े से क़ुबूल करना और थोड़ी चीज़ों को ज़्यादा समझना भी शुक्र है,*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! तुम्हें इस बात पर शुक्र अदा करना चाहिए कि अल्लाह ता'ला ने तुम्हें मुसलमान और मोमिन औरतों में शुमार फरमाया, तुम्हें इसलिये भी अल्लाह का शुक्र करना चाहिए कि उसने तुम्हें सेहत, माल, खाविंद और औलाद अता फरमाई, तुम्हें अल्लाह का शुक्र करने की ज़रूरत है कि उसने तुम्हें गमों, दुखों और बीमारियों से महफूज़ रखा,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -70*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -32* _✸
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*❥➾_ मुसीबत में सब्र करने और अपने रब के हर फैसले पर राज़ी रहने वाली खातून:-*
*❧"_ मेरी मुसलमान बहनों ! सब्र निस्फ ईमान, रहमान की खुशनूदी का बाइस और जन्नत के हुसूल का सबब है, तुम्हारे रब ने तुम्हें सब्र करने का हुक्म दिया है, इरशादे बारी ता'ला है- "ऐ ईमान वालो ! तुम सब्र और नमाज़ के साथ मदद मांगो _,"*

*❧"_ और तंगदस्ती और तकलीफ में और लड़ाई के वक्त़ सब्र करने वाले, वोही लोग सच्चे हैं और वोही लोग परहेज़गार हैं, मेरी मुसलमान बहनो! अगर तुम सब्र करने वाली औरतों में शामिल हो जाओ तो अल्लाह ता'ला तुम्हारे लिए अपनी मुहब्बत वाजिब कर देगा, और अल्लाह ताला तुम्हें अज़ीम अजरो सवाब अता करेगा,*

*❧”_ मेरी मोमिन बहनों! यह बात हमेशा याद रखना चाहिए की अल्लाह ताला तुम्हारे ईमान के मुताबिक तुम्हारी आज़माइश करता है तुम्हारा ईमान बहुत मज़बूत है तो तुम्हारी आज़माइश भी सख्त होगी और तुम्हारा दीन व ईमान कमज़ोर है तो अल्लाह ता'ला तुम्हारी आज़माईश भी हल्की करेगा_,"*

*❧"_ हज़रत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु का इरशाद सुनिये, वो कहते हैं कि मैंने अर्ज़ किया - ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! लोगों में सबसे सख़्त आज़माइश किसकी होती है ? आप ﷺ ने फरमाया - अंबिया किराम की, फिर उन लोगों की जो उनसे रुतबे में कम हों और फिर उन अफराद की जो उनके बाद अफ़ज़ल हो, आदमी की आज़माइश उसके दीन के मुताबिक होती है, उसका दीन व ईमान मज़बूत हो तो उसकी आज़माईश भी होता है और अगर उसका ईमान कमज़ोर हो तो उसकी आज़माईश भी उसी निस्बत होती रहती है (हत्ताकी एक वक्त़ ऐसा आता है) वो ज़मीन पर गुनाहों से पाक साफ हो कर चलता है_," ( तिर्मिजी- 2398, सुनन इब्ने माजा -4023, मुसनद अहमद -1/172)* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -72*
        
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -33* _✸
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*❥➾ मोमिन मर्द और मोमिन औरत की उसके बदन, औलाद और माल में मुसलसल आज़माइश होती रहती है हत्ताकी वो अल्लाह ताला से इस हाल में मुलाक़ात करता है कि उसका कोई गुनाह बाक़ी नहीं रहता सब आज़माइश की वजह से माफ हो चुके होते हैं,*

*❧"_अगर तुम ये सवाल करो कि अल्लाह तआला मोमिन औरत की उसके मक़ाम व मरतबा की वजह से आफियात व सलामती में क्यों नहीं रखता? तो इसका जवाब ये है कि बेशक अल्लाह तआला मोमिना को उसके गुनाहों से पाक साफ करना चाहता है लेकिन जब उसकी नेकियां उस मक़सद के लिए काफी नहीं होती तो उसका रब उसे गुनाहों से पाक करने के लिए आज़माइश में मुब्तिला कर देता है,*

*❧"_ हज़रत अबु सईद ख़ुदरी और हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुम भी इतना कहते हैं कि हमनें रसूलुल्लाह ﷺ को फ़रमाते हुए सुना - मोमिन शख़्स को जो भी तकलीफ़, ठकावत, बीमारी या गम पहुंचता है या कोई फ़िक्र व परेशानी लाहिक़ होती है तो उसके ज़रिए से भी उसके गुनाह माफ कर दिए जाते हैं*

*❧"_ मेरी प्यारी मोमिना बहनो! यक़ीनन तुम्हें अपनी जिंदगी में आज़माइश का सामना करना पड़ेगा, कभी ये आज़माइश तुम्हारे जिस्म व जान से होगी, कभी खाविंद से कभी औलाद और वाल्देन और दीगर अजी़जो़ अक़ारीब के बारे में होगी, इस मोक़े पर तुम्हारे ईमान की कुव्वत ज़ाहिर होगी क्योंकि अल्लाह तआला ने तुम्हारे ईमान का इम्तिहान लेने ही के लिए आज़माइश में डाला है, क्या तुम सब्र कर के ज़मीन और आसमान के रब से अज़ीम अजरो सवाब हासिल करती हो या उसकी क़ज़ा व क़द्र पर शिकवा व शिकायत का इज़हार करती हो,*

*❧"_ बेशाक अल्लाह ताला अपने नेक बंदो को आज़माता है ताकी उनके हालात, उनके आमाल और उनके नामा आमल को बुरे आमाल से पाक कर के दुरुस्त कर दे,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -73*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -34* _✸
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*❥➾ मेरी मोमिन बहनो! ईमान में सब्र का वही मुका़म है जो सर का बदन में है, जो सब्र नहीं करता उसका कोई ईमान नहीं, लिहाज़ा आज़माईश पर सब्र करना, खुद को जजा़ फजा़ से रोकना और जुबान को शिकवा शिकायत करने से बाज़ रखना दुनियावी सफ़र में मोमिन औरत का ज़ादे राह (रास्ते का खर्च) है ताकी वो आख़िरत में बेहतरीन औरतों की सफ़ में शामिल हो सके,*

*❧"_ सब्र के फायदो में से एक फायदा ये भी है कि ये मुसलमान औरत को जन्नत का वारिस बना देता है, अब एक वाक़िआ सुनिए और उस पर गौर व फिक्र कीजिये, जनाब अता बिन अबी रबाह कहते हैं कि उनको हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - क्या मैं तुम्हें एक जन्नती ख़ातून न दिखाऊं ? मैंने कहा - ज़रूर दिखायें,*

*❧"_ उन्होंने कहा- ये सियाह रंग की औरत नबी करीम ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुई, कहने लगी- ए अल्लाह के रसूल! मुझे मिर्गी के दौरे पड़ते हैं और मेरा सतर खुल जाता है, लिहाज़ा अल्लाह से दुआ करें कि मेरी ये तकलीफ दूर हो जाए, रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया - अगर तुम चाहो तो सब्र करो तो तुम्हें जन्नत मिल जाएगी और अगर तुम चाहो तो मैं अल्लाह ता'ला से दुआ कर देता हूं, वो तुम्हें आफियत अता फरमा देगा ?*

*❧"_ उसने कहा- मैं सब्र करूंगा, उसने फिर कहा- मैं बे पर्दा हो जाती हूं, आप अल्लाह से दुआ कर दें कि मैं बेपर्दा न होने पाऊं, बस आपने उसके लिए यह दुआ कर दी_,"*
*(सही बुखारी - 5652, सही मुस्लिम - 2576)*

*❧"_ गौर कीजिये ! किस तरह उस अज़ीम खातून ने जन्नत में दाखिले के लिए बीमारी पर सब्र अख्त्यार किया, तुम भी जान लो कि दुनिया में आज़माईश पर सब्र करना जन्नत में दाखिले की ज़मानत है,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -85*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -35* _✸
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*❥➾ मेरी प्यारी मोमीना बहनो! बेशक बेहतरीन औरत हमेशा अल्लाह ताला की क़ज़ा व क़द्र पर राज़ी रहती है, वो जानती है कि ख़ैर इसी में है और कज़ा व क़द्र पर इज़हारे नाराज़ी में शर है, अब हाल ये है कि अक्सर मुसलमान औरतें अच्छी तक़दीर पर तो खुशी का इज़हार करती है मगर इसके बर अक्स अगर उनको कोई मांमला अपनी तवक्को़आत के खिलाफ नज़र आए तो वो मायूस हो जाती है, ये उनके ईमान की कमज़ोरी है और इसकी वजह अल्लाह ता'ला की तक़दीर पर अदमे एतमाद है,*

*❧"_लिहाज़ा अगर तुम "ख़ैरुन निसा" का मर्तबा पाना चाहती हो तो इसका तरीक़ा यही है कि ख़ुशहाली में अल्लाह की तक़दीर पर राज़ी और शुक्र करने वालियों में से हो जाओ और तंगी और मुसीबत में सब्र करते हुए अल्लाह की तक़दीर पर राज़ी होने वाली औरतों में से हो जाओ,*

*"❧_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु ये फ़रमाते थे, मैं एक अंगारा चाट लूं और वो मेरी जुबान जला दे या बाक़ी रहने दे, ये मेरे लिए इससे ज़्यादा मेहबूब है कि मैं किसी वाक़ई हो जाने वाली चीज़ के बारे में कहूं - काश ये ना होती! या किसी वाक़ई ना होने वाले अमर् पर जुबान से ये कहूं - काश! ये काम हो जाता_,"*

*"❧_ इस्राइली रिवायत में बयान किया जाता है कि अल्लाह ताला ने दाऊद अलैहिस्सलाम की तरफ वही की, ऐ दाऊद ! एक तेरी चाहत है और एक मेरी चाहत व इरादा है, होगा वही जो मैं चाहूंगा, इसलिये अगर तुमने मेरी चाहत को तस्लीम कर लिया तो मैं तुम्हें तुम्हारी चाहत के लिए काफी हो जाउंगा और अगर तुमने मेरी चाहत को तस्लीम ना किया तो मैं तुम्हें तुम्हारी चाहत के हुसूल में थका दूंगा, फिर भी होगा वही जो मैं चाहूंगा_, "* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -86*
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                  ✸_ *क़िस्त -36* _✸
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*❥➾ हजरत फुजे़ल बिन अयाज़ रह. ने एक शख्स को किसी से अपनी आज़माइश का शिकवा करते सुना तो फरमाया- तुम रहीम व करीम ज़ाते इलाही का शिकवा उससे कर रहे हो जो तुम पर रहम नहीं करता और वो खुद भी एक मख़लूक है_,"*

*❧"_ बाज़ असलाफ किराम का कौ़ल है :- जो शख्स नाज़िल होने वाली मुसिबत का शिकवा करता है गोया वो अपने रब का शिकवा करता है_,"*
*"_ हां ! अगर तुम डॉक्टर को अपनी बीमारी की तफ़सीलात बताओ तो ये शिकवा नहीं है, क्यूँकी ये उन मामलात में से है जो अल्लाह ता'ला ने बंदो के दरमियान जाइज़ रखे हैं और ऐसे उमूर अख्त्यार करना जाइज़ है,*

*❧"_ दर हक़ीक़त शिकवा ये है कि उस शख़्स के सामने अल्लाह की नाज़िल करदा आज़माईश की शिकायत और तकलीफ़ का इज़हार करना जो उसे दूर करने की ताक़त व हिम्मत ही नहीं रखता, अब अगर कोई औरत अपनी सहेली या पड़ोसन के पास बेठ कर अपनी बीमारी और आज़माईश का तज़किरा करे और वो उसके हाल पर अफसोस का इज़हार करे और कहे कि तुम बहुत अच्छी खातून हो मगर मैं तुम्हारी मुसीबत में तुम्हारे काम नहीं आ सकती_,"*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो ! बस इसी गिला गुजा़री का नाम शिकवा है, सल्फे सालेहीन फरमाते थे - चार चीज़ें जन्नत के खजा़नों में से हैं:- (1) मुसीबत को छिपाना (2) सदका़ व खैरात को पोशीदा रखना (3) फ़क़र व फ़ाक़े को मख़्फ़ी रखना और (4) तकलीफ़ को छिपाना _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -87*
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                  ✸_ *क़िस्त -37* _✸
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*❥➾ "मेरी मुसलमान बहनो! क़ाज़ी शरीह ने एक शख़्स को अपना गम सुनाते हुए देखा तो उसके हाथ पकड़ लिए और फरमाया- ऐ भतीजे! अल्लाह के सिवा किसी से शिकवा करने से बचो क्योंकि तुम जिससे भी शिकवा करोगी वह दो हाल से खाली ना होगा, वो तेरा दोस्त होगा या दुश्मन, दोस्त तो तेरे गम से ग़मगी़न होगा मगर तुझे कोई फायदा नहीं पहुंचा सकेगा और दुश्मन तेरी मुसीबत सुन कर खुश होगा_,*

*❧"_ मेरी ये आंखें देखो, अल्लाह की कसम! मैंने गुजि़श्ता 15 साल से इस आंख से किसी शख्स को नहीं देखा और मैंने आज तक किसी को इस बारे में बताया भी नहीं, क्या तुमने अल्लाह के एक नेक बंदे का ये कौ़ल नहीं सुना- बेशक मैं अपनी परेशानी और ग़म का शिकवा अल्लाह ही से करता हूं, अल्लाह लोगो के लिए (अपनी) रहमत से जो (जिन चीज़ों के) दर खोल दे तो उन्हें कोई बंद करने वाला नहीं और जिसे वो बंद कर दे, उसके बाद कोई उसे खोलने वाला नहीं और वो गालिब और हिकमत वाला है _,"*

*❧"_ और एक शायर ने सच ही कहा है - मैं अल्लाह की तक़सीम पर राज़ी हूं और मैंने अपना मामला अपने खालिक़ के सुपुर्द कर दिया है, बेशक उसने गुज़िश्ता उम्र में जो मुझ पर करम व अहसान किया और बाक़ी जिंदगी में भी अगर उसने चाहा तो फ़ज़ल व करम ही से नवाजे़गा_,"*

*❧"_ लिहज़ा आओ! ला इलाहा इल्लल्लाह कह कर अपने ईमान की तजदीद करो, अपनी हर मुसिबत व आज़माईश पर अल्लाह से सवाब की उम्मीद रखो, ख़बरदार! अल्लाह के किसी फ़ैसले और तक़दीर पर हरगिज़ ये अल्फाज़ ना कहना- काश ऐसा ना होता ! बिला शुबहा तोफीक़ और दुरुस्ति अल्लाह ही अता फरमाता है _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -89*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -38* _✸
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*❥➾ आजीज़ी और तवाज़ो अख्त्यार करने वाली औरत:-*
*"❧_ मोमिना औरत अल्लाह की जन्नत के हुसूल के लिए अपने तमाम मामलात में आजीजी़ और तवाजो़ अख्त्यार करती है, नियामतों का हुसूल और दुनियावी जिंदगी की आसा'इश उसे मुतकब्बिर और मगरूर नहीं बनाती बल्कि वो हर हाल में आजिज़ व इंकसार का इज़हार करती है,*

*"❧_मेरी मुसलमान बहनो! जो औरत तवाज़ो अख्तियार करना चाहती है, उसे रसूलुल्लाह ﷺ की पेरवी करनी चाहिए और जो आप ﷺ की पेरवी को पसंद न करें, वो बहुत बड़ी जाहिल है और क़यामत के दिन उसका अंजाम बहुत दर्दनाक होगा, रसूलुल्लाह ﷺ की पेरवी किए बगैर दुनिया और आखिरत में बुलंदी और नेकनामी का हुसूल ना मुमकिन है,*

*"❧_ हज़रत इब्ने अबु सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत अबु सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा - लोगों ने ये जो रंग बिरंगे कपड़े पहनने, तरह तरह के खाने और मशरूबात इस्तेमाल करने और आला सवारियां रखनी शुरू कर दी है, उनके बारे में आपका क्या ख्याल है?*

*"❧_ तो उन्होंने फरमाया- ए भतीजे ! अल्लाह के लिए खाओ, अल्लाह के लिए पियो, उसकी इता'त के लिए पहनो, उनमे से किसी चीज़ में भी तुमने फख्र व गुरूर, रियाकारी या शोहरत का हुसूल मक़सद बनाया तो वो गुनाह और इसराफ होगा, अपने घर में वही खिदमात सर अंजाम दो जो रसूलुल्लाह ﷺ अपने घर में अंजाम देते थे*

*"❧_ आप बकरी का दूध दोह लेते थे, अपना जूता खुद मरम्मत कर लेते थे, कपडो को खुद टांका लगा देते थे, अपने खादिम के साथ बेठ कर खा लेते थे, बाज़ार से खरीदारी बा नफ्स नफीस करते थे, हर अमीर व गरीब के साथ मुसाफा करते और हर मिलने वाले छोटे बड़े को सलाम करने में पहल करते थे, आप दावत कुबूल फरमाते और दावत में पेश की जाने वाली किसी चीज़ को हकी़र नहीं समझते थे,*

*"❧_ आप ﷺ निहायत नरम मिज़ाज, मिलनसार, मुनव्वर और कुशादा चेहरे वाले थे, शख्सियत में बड़ी महकमी थी मगर शिद्दत न थी, और ज़िल्लत व रुसवाई से पाक तवाज़ो अख्त्यार करते थे, इसराफ से दूर, निहायत सखी और नरम दिल थे_,"(अल अहया -3/356)* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -91*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -39* _✸
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*❥➾ नबी करीम ﷺ ने तवाज़ो के फ़ज़ा'इल सिखाते हुए फरमाया- जो शख़्स अल्लाह के लिए तवाज़ो अख्त्यार करता है, अल्लाह उसे बुलंद मुका़म अता कर देता है, इमाम नववी रह. इस हदीस की शरह करते हुए फरमाते हैं कि इसकी दो सूरतें हैं - (1) अल्लाह उसे दुनिया में बुलंद कर दे, यानि उसकी तवाज़ो के सबब लोगों के दिलों में उसका मुका़म व मर्तबा बढ़ा दे, (2)_ये भी मुमकिन है कि इससे मुराद आखिरत का सवाब हो और दुनिया में तवाजो़ के बाइस अल्लाह उसे आखिरत में बुलंद मुका़म अता कर दे,*

*❧”_ मेरी मुसलमान बहनो! जलीलुल क़द्र सहाबा किराम ने ये अखलाक़े हसना रसूलुल्लाह ﷺ से सीखे और फिर उन्हें अपने अखलाक़ का हिस्सा बना कर अपनी सीरत को आरास्ता कर लिया,*

*❧"_ एक दिन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने लोगों को मस्जिद में जमा होने का हुक्म दिया, जब काफ़ी लोग जमा हो गए तो मिम्बर पर तशरीफ़ फरमा हुए, अल्लाह ता'ला की हम्दो सना बयान की, नबी करीम ﷺ पर दरूद भेजा, फिर फरमाया :-*
*❧"_लोगों मैंने खुद को इस हाल में देखा है कि मैं खानदान बनू मख़ज़ूम में अपनी खालाओं के ऊंट चराया करता था, उसके बदले में वो मुझे एक लप खजूर या किशमिश दे दिया करती थी और मैं उसी पर पूरा दिन बसर कर लेता था और (क्या बताऊं) वो कैसा दिन होता था? ये फरमा कर मिंबर से उतर आए,*

*❧"_ हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- ए अमीरुल मोमिनीन! आपने अपने नफ्स को ज़लील करने के सिवा कुछ नहीं फरमाया, तो उन्होंने फरमाया- इब्ने औफ ! तेरा भला हो, मेरे दिल में ख्याल आया, मेरा नफ्स मुझे कहने लगा - आप तो अमीरुल मोमिनीन हैं, आपसे अफ़ज़ल और आ'ला और कौन हो सकता है? पस मैंने चाहा कि अपने नफ्स को उसकी औका़त याद दिला दूं_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -93*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -40* _✸
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*❥➾ जलीलुल क़द्र सहाबी ए रसूल हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की तवाज़ो की हक़ीक़त और तवाज़ो की असल जिससे हर मुसलमान को आरास्ता होना चाहिए, के मुतल्लिक़ फरमाते हैं:-*
*"_ तवाज़ो की असल बुलंदी ये है कि तुम मजलिस में उस हक़ीर तरीन जगह पर राज़ी हो जाओ जहाँ नफ़्स बेठना पसंद न करता हो, बाज़ लोग जूतों वाली जगह बेठ जाते है, हालांकी उनके दिल तकब्बुर व गुरूर से भरे होते हैं, वो ऐसा इसलिए करते हैं कि लोग कहें कि ये शख्स बड़ा मुतावाज़े है_,"*

*"❧_आप फ़रमाते थे- तवाज़ो की अलामा्त ये है के तू लोगों के दरमियान अपनी नेकी और तक़वा का तज़किरा सुनना पसंद न करे,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! अब तुम दरियाफ्त करोगीं की मैं रब्बुल आलमीन के लिए तवाजो़ अख्त्यार करना चाहती हूं मगर तवाजो़ अख्त्यार करने वालों की कोनसी सिफात हैं जिन्हें मैं अख्त्यार करूं?*
*"_मैं बताता हूं कि आजिजी़ व इंकसारी अख़्त्यार करने वाली औरत ये बात पसंद नहीं करती कि कोई शख्स उसके सामने खड़ा हो जबकी बाक़ी लोग बेठे हो अगरचे वो उनसे मुका़म व मरतबा में बुलंद ही हो _,*

*"❧_ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि आप ﷺ ने फ़रमाया - जो शख़्स किसी जहन्नमी को देखना चाहता हो, वो ऐसे शख्स को देख ले जो बेठा हो और (उसकी इज़्ज़त के इज़हार के लिए) लोग उसके सामने खड़े हों_," (अल अहया - 3/344)*
 *"_ आपके इरशाद का मतलब ये है कि जो शख्स अपने गुरुर व तकब्बुर की नुमाईश करें और अपने से कम हैसियत लोगों पर अपनी बरतरी जतलाने के लिए उन्हें अपने सामने खड़ा कर के गुफ्तगु करे, ऐसा शख्स यक़ीनन मुतकब्बीर है,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -99*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -41* _✸
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*❥➾ तवाज़ो अख़्त्यार करने वाली ख़ातून की एक सिफ़त ये भी है कि वो ये पसंद नहीं करती कि कोई शख़्स उसके अहतराम और हैबत की बिना पर उसके पीछे पीछे चले, इसलिए सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अपने पीछे पीछे लोगों का चलना सख़्त नापसंद करते थे, लेकिन हमारा हाल क्या है? ये हम सब पर खूब रोशन है,*

*❧"_ आजिज़ी व इंकसार वाली औरत की एक खूबी ये है कि वो दूसरों के ईमान और हुस्ने अमल की वजह से उनकी ज़ियारत करती है मगर खुद अपने बारे में किसी गुरूर का शिकार नहीं होती, वो अपनी निस्बत यही समझती है कि मेरा आमाल नाम नेकियों से खाली है,*

*❧"_ ऐसी औरत जिसके तर्ज़े अमल से दूसरी औरतों को दीनी फायदा पहुंचता है, उसे दूसरी खवातीन से ज़रूर मिलना चाहिए, ये औरत दूसरी औरतों की ज़ियारत नहीं करती तो इसका ये तर्ज़े अमल तवाजो़ के खिलाफ है जो तकब्बुर के ज़मरे में आता है*

*❧"_ मुतावाज़ा औरत की खूबी ये भी है कि कोई भी मामूली मुसलमान औरत उसके पास आ बेठे तो वो कोई आर मेहसूस नहीं करती और वो यह बात भी पसंद नहीं करती कि कोई औरत उससे हैबत मेहसूस करे,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -100*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -42* _✸
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*❥➾ मुतावाज़ा ख़ातून में ये सिफत भी होती है कि वो खुद ताक़त के मुताबिक घरेलु काम काज करती है, हमारे लिए नबी करीम ﷺ की सीरत तैयबा जिंदगी के हर शोबे में रहनुमाई का चिराग है, आप अपने घर वालों का हर मुमकिन काम बा नफ़्स नफ़ीस कर देते थे,*

*❧"_ मुतावाज़ा औरत की एक ख़ुसूसियत है ये है कि वो अपने लिबास में किसी शोखी और बरतरी का इज़हार करती है ना किसी पुराने कपडे देख कर कोई तंगी महसूस करती है,*

*❧”_ मेरी मुसलमान बहनो! उम्दा और नए कपड़ों की मज़म्मत मक़सूद नहीं बल्कि असल बात यह है कि जो शख्स नए कपड़े पहन कर फूला ना समाए और अपने दिल को तकब्बुर और खुद पसंदी से बर्बाद कर ले तो यह अमल यक़ीनन ही का़बिले मज़म्मत है, जनाब बकर बिन अब्दुल्लाह मजनी रह. फरमाते हैं शाहाना लिबास पहनों मगर आपके दिलों को खसियते इलाही से मार डालो _,"*

*❧"_ हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया - क्या वजह है कि तुम मेरे पास रहबाना लिबास पहन कर आते हो, हालांकी तुम्हारे दिल भुखे भेड़ियों जेसे हैं? बादशाहों जैसे लिबास ज़ेब तन करो मगर आपने दिलों को खौफे इलाही से मामूर रखो !* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -101*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -43* _✸
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*❥➾ मुतावाज़ा और अल्लाह ताला की उस वही के मुताबिक़ अमल करती हैं जिसमें अल्लाह ता'ला ने अपने नबी ﷺ को तकब्बुर से इज्तिनाब और तवाज़ो अख्त्यार करने का हुक्म दिया, जो औरत तवाज़ो को अपनी सीरत का जोहर बनाएगी, वो दुनिया व आखिरत की खैर व भलाई से सुर्खरू हो जाएगी और अल्लाह ता'ला की बारगाह में उसका शुमार बेहतरीन औरतों में होगा _,*

*"❧_ जब औरत अल्लाह ता'ला के लिए तवाज़ो अख्त्यार करेगी अल्लाह ता'ला उसकी उम्र, माल और औलाद में बरकत डाल देगा, उसे पहुंचने वाली तकलीफ दूर कर देगा और लोगों की नज़र में उसे मोअज्जिज़ व मुहतरम बना देगा, वो जहां भी जाएगी निहायत मोअज्जिज़ व मुहतरम क़रार पाएगी,*

*"❧_तवाज़ो ईमान का श'आर है, जब मुसलमान औरत आजीजी़ और इंकसार अख़्तर करेगी तो श'आर ए ईमान की हामिल बन जाएगी और वो लोगों की ख़ुशनूदी से पहले अल्लाह ता'ला की रज़ा हासिल कर लेगी_,"*

*"❧_ झूठी और बातिल शोहरत से गुरेज़ मुसलमान औरत की ख़ास ख़ूबी है, यही वजह है कि मुसलमान औरत तवाज़ो और अल्लाह के लिए आजीज़ी व इंकसार का शेवा अख्त्यार कर के रियाकारी और गुरूर व तकब्बुर के मक़ामात से दूर रहती है क्योंकि यही मज़मूम ख़सा'इल है जो बिल आखिर झूठी शोहरत और बातिल बरतरी की नमूद व नुमाइश का मुतालबा करते हैं ताकि लोगों को खुश करके उनका तक़र्रूब हासिल किया जा सके, तवाजो़ की खूबी अख्त्यार कर के मुसलमान औरत इस मुहलिक मर्ज़ से निजात हासिल कर लेती है, अल्लाह ताला हम सबको गुरूर की लानत से महफूज़ और तवाजो़ की खूबी से सरफराज़ फरमाये*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -102*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -44* _✸
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*❥➾_मुसलमान औरत जब अपने रब के लिए तवाजो़ अख्त्यार करती है और ये हक़ीक़त जान लेती है कि वो अपने हर हाल और हर मामले में अपने खालिक़ व मालिक की मोहताज है तो वो अल्लाह ताला की रहमत और फ़ज़ल व करम की छांव में नियामतों भरी ज़िंदगी गुज़ारती है,*
*"_ लेकिन जब वो तकब्बुर करेगी तो उसे जलद एहसास हो जाएगा कि उसका रब उससे सख्त नाराज़ और गज़बनाक है,*

*"❧_मुसलमान औरत तवाजो़ के ज़ेवर से आरास्ता हो कर दुनिया में सआदत व सियादत के हामिल खुश नसीब तबक़े में शामिल हो जाती है क्यूंकी अल्लाह ता'ला तवाजो़ अख्त्यार करने वालों को बुलंद मुका़म अता करता है और तकब्बुर करने वालों को पस्त और हकी़र कर देता है,*

*"❧_ एक शायर ने क्या खूब कहा है :- "खूबसूरत लिबास पहन कर फख्र व गुरूर से हरगिज़ न चलो क्योंकि तुम पानी और मिट्टी से पैदा किए गए हो और अल्लाह ताला की हम पर अज़ीम नियामतें और उसका बड़ा अहसान और फ़ज़ल व करम है, ज़माना मतलून मिज़ाज है, ये कभी एक डगर पर नहीं रहता, किसी शख्स के सारे दिन एक जैसे नहीं रहते, मैंने ऐश परस्तो की क़ब्रें देखीं तो मुझे उनमें कोई चमक दमक और रानाई नज़र नहीं आई, हालांकी वो मज़े से पहले बड़ी चमक दमक और ऐश व इशरत वाले लोग थे _,"*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! अब तक हम खैरुन निसा की सिफात में से एक सिफत का तज़किरा कर रहे थे, हम अल्लाह ताला से दुआगो हैं कि वो तुम्हें ये सिफत अपनाने की तौफीक दे और तुम्हें तवाजो़ अख्त्यार करने वालों में शामिल फरमा दे, यक़ीनन अल्लाह ताला अपने इरादे और मशियत पर खूब का़दिर है _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -104*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -45* _✸
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*❥➾_शर्म व हया वाली:-बेहतरीन औरत तौबा करने वाली और शर्म व हया वाली होती है क्यूंकी वो हया करने वालियों में से है,*
*"_ मेरी प्यारी मुसलमान बहनो! हया बड़ी अज़ीमुश शान ख़ूबी है, हया मोमिन, पाक दामन, ताहिरा और शरीफ़ औरतों की सिफत है, अल्लाह ता'ला ने तुम्हें हया की ताकीद फरमाई है,*

*❧"_ पस अगर मुसलमान औरत हया वली न हो तो मोमिनात में से नहीं है क्यूंकि जिसमें हया ना हो उसका कोई ईमान नहीं होता, हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया - हया ईमान से है और ईमान जन्नत में होगा _, (जामिआ तिर्मिज़ी, मुसनद अहमद)*

*❧"_ जब तुम इस का़बिले तारीफ सिफत को अपना लोगी तो तुम्हारी सीरत व किरदार और तुम्हारे तमाम मामलात में हर तरह की भलाई आ जाएगी, हया मुसलमान औरत को बूरे अफ'आल से रोकती है और बुरे अखलाक से महफूज रखती है क्योंकी हया का जज़्बा सरासर खैर ही खैर है _,*

*❧"_इसीलिये जनाबे रसूलल्लाह ﷺ ने फरमाया है- हया सिर्फ खैर ही खैर लाती है_, (सही बुखारी, सही मुस्लिम)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -169*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -46* _✸
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*❥➾_मुसलमान औरत को अल्लाह तआला से हक़ीक़ी हया करनी चाहिए, उसे अपने सर और जो चीज़ें उसमें हैं (आंखे, कान, नाक) उनकी हिफ़ाज़त करनी चाहिए, पेट के अंदर जाने वाली खुराक़ और जो चीज़ पेट के अंदर (दिल) है, उसका ख्याल रखना चाहिए,*

*❧"_ हया की तीन सूरतें हैं - (1) अल्लाह ताला से हया, (2) लोगों से हया और (3) मुसलमान औरत का खुद अपने आपसे हया करना, तीनों सूरतों का एक वक्त में मौजूद होना ज़रूरी है ताकि हया की शान मुकम्मल हो जाए,*

*❧"_ जो ख़ातून अल्लाह ताला से तो हया करे मगर लोगों से ना करे तो इसका मतलब ये है कि उसने लोगों को ज़लील व हक़ीर समझा, और जो लोगों से हया करे लेकिन अल्लाह ता'ला से ना करे तो उसने अल्लाह ता'ला की शान और मरतबा कम समझा, जो लोगों से हया करे मगर अपने नफ्स से ना करे तो उसने अपने नफ्स को हक़ीर व कमतर बना दिया, जिसका नफ्स उसके नज़दीक हकी़र व ज़लील हो, वो अखलाकी़ इकतीदार और उम्दा औसाफ का हामिल नहीं हो सकता,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -170*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -47* _✸
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*❥➾_ मेरी इस्लामी बहनो! अल्लाह ताला से हया का मतलब यह है कि तुम अपनी जुबान हर बुराई मसलन गीबत चुगली झूठ दूसरी मुसलमान औरतों से मज़ाक, गंदी और बद अखलाकी़ वाली बातों से महफूज़ रखो ।*

*❧"_ अल्लाह ता'ला से हया करने का मफहूम ये भी है कि तुम अपनी नज़र हराम चीज़ देखने से महफूज़ रखो, मुसलमान औरतों के ऐबों और खामियों की टोह लगाने से मुकम्मल इज्तिनाब करो, सिर्फ हलाल और जाइज़ चीज़ें ही देखो_,"*

*❧"_ अल्लाह से हया का मतलब ये है कि तुम अपनी टांगे तोहमत और शुकूक व शुबहात के मका़मात और इमकानात से दूर रखो, तुम्हारे क़दम सिर्फ सिराते मुस्तकी़म ही पर चलने चाहिए, अल्लाह से हया के माने ये भी है कि तुम अपने कान लहु व ल'इब, बेहूदगी और बेहयाई की बात सुनने से महफूज़ रखो, हां अपने रब का कलाम (कुरान मजीद) जरूर सुनिए और वो चीज़ सुनिए जिसमें अल्लाह की मुहब्बत व रज़ा हो,*

*❧"_ अल्लाह से हया करने का मतलब ये है कि तुम अपने पेट में सिर्फ हलाल चीज़ डालो और हराम चीज़ खाने पीने से बचो, अल्लाह ताला से हया का मतलब ये है कि तुम आखिरत और अल्लाह की मुलाक़ात याद रखो_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -171*
        
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -48* _✸
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*❥➾_ लोगों से हया का मतलब ये है कि लोगों को तकलीफ़ ना दी जाए और जो चीज़े उनको पसंद ना हो, वो ना की जाएं, कोई ऐसा काम भी ना करो जो हुस्ने अखलाक़ के खिलाफ हो,*

*❧"_ अपने नफ़्स से हया का मतलब ये है कि अल्लाह ता'ला के अज़ीम अहसानात और नियामतों की फ़रावानी के बावजूद उसकी इता'त श'आरी में अपनी कोताही पर नादिम रहो,*

*❧"_ हया के कई उस्लूब और बहुत सी किस्में हैं, हया की एक क़िस्म गुनाह से हया है, ये वो शऊर व एहसास है जो तुम्हें गुनाह करने के बाद लाहिक़ होता है और तुम अपने दिल में शर्मशार होते हो, एक जज़्बा हया अहसासे कोताही में है और वो यह है कि अगर तुम नेकी करके मेहसूस करो कि इसका हक़ पूरी तरह अदा नहीं हुआ तो तुम नदामत मेहसूस करो,*

*❧"_ खुलासा कलाम ये है कि हया मुसलमान औरत का ज़ेवर है, जब मुसलमान औरत हया से महरूम हो जाए तो फिर वो जो चाहे करे, यक़ीनन अल्लाह ता'ला उसके आमाल का बदला देगा, अमल अच्छा होगा तो जज़ा और बुरा होगा तो सज़ा मिलेगी _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -172*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -49* _✸
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*❥➾ _सिलह रहमी करने वाली औरत:-*
*❧"_ इस्लाम मुकम्मल जा़ब्ता ए हयात है, इसका मक़सद एक ऐसा मा'शरा तशकील देना है जिसके लोग आपस में मददगार और एक दूसरे के ज़िम्मेदार हों, सिलाह रहमी उन अज़ीम उमूर और आला सिफात में से है जिनके साथ अच्छी मुसलमान ख़ातून मुतसिफ़ होती है, मुसलमान औरत अपने रब के हुक्म की तामील करती है और क़यामत वाले दिन अज़ीज़ व अक़ारिब के हुकूक के बारे में बाज़ पुर्सी से डरते हुए सिलाह रहमी करती हैं*

*"❧_ नबी करीम ﷺ ने सिलाह रहमी की तालीम दी है और हमें सिखाया है कि जब मुसलमान मर्द और औरत अल्लाह की जन्नत हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें सिलाह रहमी के तक़ाज़े तमाम व कमाल पूरे करने चाहिए, रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया- ऐ लोगों ! सलाम को फेलाओ, खाना खिलाओ, सिलाह रहमी करो और रात को नमाज़ पढ़ो जबकि लोग सोए हुए हों (युं) तुम जन्नत में सलामती से दाखिल हो जाओगे _," ®_( जामिया तिर्मिज़ी -2485)*

*❧"_सलाम आम करो यानी तुम किसी को जानते हो या नहीं जानते, सबको बा कसरत सलाम करो, अपने माबीन सलाम गालिब कर दो और इसे अपना खुसूसी श'आर बना लो, मुलाक़ात के वक्त, मजलिसों में, गलियों और बाजा़रों में और अपने दस्तर ख्वानो पर गर्ज़ कि हर जगह सलाम करने का इल्तिज़ाम करो,*

*❧"_ रात के वक्त नमाज़ पढ़ो, क्योंकि रात का वक्त ऐसा वक्त होता है कि लोग उसकी बरकात व हसनात से गाफिल हो जाते हैं, जो शख्स इस वक्त नमाज़ पढ़ता है, वो रब्बुल आलमीन की बरगाह में अजरो सवाब का मुस्तहिक़ बन जाता है क्योंकि इस वक्त़ नमाज़ पढ़ना रियाकारी और शोहरत तल्बी से पाक होता है, तुम जन्नत में सलामती से दाखिल हो जाओगे _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -108*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -50* _✸
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*❥➾_ मेरी मुसलमान बहनों! जब तुम सिलाह रहमी करोगी तो अल्लाह ता'ला तुम्हारा रिज्क़ फराख कर देगा और तुम्हारी नसल में बरकत देगा,*
*"_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया- जो ये चाहता है कि उसका रिज्क़ फराख और उमर दराज़ कर दी जाये तो उसे सिलाह रहमी करना चाहिए_," (सहीह मुस्लिम -2557)*

*❧"_ अल्लाह ता'ला ने सिलाह रहमी करने वाले से वादा किया है कि वो उसे आखिरत में अपनी रहमत से नवाजे़गा और जो क़ता रहमी करेगा अल्लाह ता'ला उसे अपनी रहमत से मेहरूम कर देगा, हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजियाल्लाहु अन्हु भी कहते हैं कि मैंने रसूलल्लाह ﷺ को ये फ़रमाते हुए सुना- अल्लाह ता'ला ने इरशाद फरमाया है - मैं रहमान हूं और ये रिश्तेदारी (रहम) है, मैंने ये नाम अपने नाम से रखा है जो इसे जोड़ेगा मै उसे (अपनी रहमत से) जोड़ दूंगा और जो इसे तोड़ेगा मै उसे काट कर रख दूंगा _," (सुनन अबी दाऊद 1694, व जामिया तिर्मिज़ी)*

*❧"_ सिलाह रहमी में ये बात भी शामिल है कि अपने वाल्देन के अज़ीज़ो अक़ारीब के साथ नेक सुलूक का हद दर्जे अहतमाम करो, हज़रत मालिक बिन रबी'आ सा'दी रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि हम रसूलुल्लाह ﷺ की खिदमत में बैठे थे कि आपके पास बनू सलमा क़बिले का एक शख्स आया, उसने सवाल किया - ए अल्लाह के रसूल! क्या मेरे वालदेन की वफात के बाद कोई ऐसी नेकी बाक़ी रह गई है जिसकी बदौलत मै अपने वालदेन के साथ हुस्ने सुलूक करूं ?*

*❧"_ रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया - हां! उनके लिए दुआए खैर करना, उनके लिए बख्शीश तलब करना, उनके बाद उनके वादों और वसियत को पूरा करना, उनके ऐसे रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करना जिनके बगैर सिलाह रहमी मुकम्मल ना होती हो और उनके दोस्तों की इज्ज़त करना_," (सुनन अबी दाऊद -5142, सुनन इब्ने माजा -3664)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -111*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -51* _✸
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*❥➾ मेरी मुसलमान बहनो! बहुत मुमकिन है कि तुम बाज़ रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करो मगर वो तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव करें, तुम उन्हें अच्छी बात कहो और नेक काम की तरगीब दो लेकिन वो तुम्हारे साथ घटिया तरीक़े से पेश आएं, तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि तुम क़ता रहमी करो और उससे अपने ताल्लुक़ात ख़त्म कर दो? नहीं, हरगिज़ नहीं, ये बात इस तरह नहीं है,*

*"❧_ इसी सिलसिले में एक हदीस सुनिये! हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक शख़्स ने रिसालत मा'ब ﷺ से कहा - ए अल्लाह के रसूल! मेरे कुछ रिश्तेदार ऐसे हैं कि मैं उनको जोड़ता हूं' मगर वो मुझसे ताल्लुक़ तोड़ते हैं, मैं उनसे हुस्ने सुलूक करता हूं लेकिन वो मुझसे बुराई के साथ पेश आते हैं, (लिहाज़ा मैं क्या करूं?)*

*"❧_ आप ﷺ ने इरशाद फरमाया- अगर मामला ऐसा ही है जिस तरह तुम कहते हो तो गोया तुम उन्हें गरम राख खिला रहे हो, जब तक तुम अपनी ये सिफत बरक़रार रखोगे, अल्लाह का एक फरिश्ता तुम्हारी मदद करता रहेगा_," (सहीह मुस्लिम, 2558 व मुसनद अहमद -2/484)*

*"❧_ इस हदीस का मतलब ये है कि हर चंद तुम अपने रिश्तेदारों के साथ अहसान व करम का सुलूक कर रहे हो और नेकी, वफा व मुरव्वत और अहसान के साथ अच्छे बर्ताव की वजह से गोया उन्हें गरम राख खिला रहे हो, उनको उनका बूरा अमल ज़लील व रुसवा कर रहा है और तेरे लिए अल्लाह का एक फरिश्ता उनकी तक़ालीफ और जहालत तुझसे मुसलसल दूर कर रहा है,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -113*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -52* _✸
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*❥➾_ ख़ैरुन निसा यानी सबसे अच्छी, मिसाली ख़ातून बनने के लिए लाज़िम है कि तुम बुरा सुलूक और क़ता ताल्लुक़ करने वाले रिश्तेदारों के साथ भी सिला रहमी करो, इस हुस्ने सूलूक से तुम अल्लाह की बारगाह में मोअज्जिज़ ख़्वातीन में शुमार हो जाओगी _,"*

*❧"_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया- बराबर की नेकी करने वाला हक़ीक़ी सिलाह रहमी करने वाला नहीं है बल्की असली सिलाह रहमी करने वाला वो है जो ताल्लुक़ तोड़ने वाले अज़ीज़ो अक़ारीब से रिशतेदारी जोडे,*

*❧"_ इमाम तय्यबी रह. फरमाते हैं- इस हदीस का मतलब ये है कि सिलाह रहमी की हक़ीक़त ये नहीं है कि सिलाह रहमी करने वाला किसी के नेक सुलूक के जवाब में उसके साथ नेक सूलूक करे, दर हक़ीक़त मुसावी हुस्ने सुलूक करने वाला आदमी ही नहीं है बल्की असल आदमी तो वो है जो सखावत करे और फ़ज़ल व अहसान से काम ले _," (जामिआ तिर्मिज़ी -1908, मुसनद अहमद -2/163)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -115*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -53* _✸
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*❥➾ _खैर के कामों में सबक़त ले जाने वाली खातून:-*
*"❧_ वो मुसलमान औरत जो शर्फ व मंजिलत और खैरुन निसा का मर्तबा हासिल कर लेती है, वो दर हक़ीक़त ऐसी औरत है जो हर का़बिल इस्तेता'त नेक काम करती है और नेकी के कामों में दूसरों पर सबक़त ले जाती है_,"*

*❧"_ कुराने करीम ने नेकी के दायरे में ऐसे आमाल में मुक़ाबला करने की तरगीब दिलाई है जो अल्लाह ता'ला की खुशनूदी तक पहुंचाते हैं और जन्नत से सरफराज़ करते हैं, इसके बर अक्स अगर मुक़ाबला फानी दुनिया का माल व मता जमा करने में हो तो इस क़िस्म के मुक़ाबले की क़ुरान मजीद और नबी करीम ﷺ ने शदीद मज़म्मत की है,*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! क़ुरान मजीद तुम्हें नेकुकार बनाने, नेकी की जजा़ और इस्लामी माशरे पर नेकी के असरात बता कर हुस्ने अमल की दावत देता है, ज़रा अल्लाह ता'ला के इस इरशाद पर गौर कीजिये:-*
*"_ और हर एक के लिए एक सिम्त है जिस तरफ़ वो मुंह फ़ैरता है, लिहाज़ा तुम नेकियों में एक दूसरे से आगे बढ़ो_," (सूरह अल बक़राह- 148)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -117*

               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -54* _✸
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*❥➾ क़ुरान मजीद ने हमें इस अम्र की तरगीब दिलाई है और ख़ैर की तरफ़ पूरी कुव्वत से दावत दी है क्योंकि ज़िन्दगी गैर मामून है और उम्र ना मालूम है जबकी ख़ातमा बहरहाल लाज़मी है, जो काम आज तुम्हारे लिए मुमकिन है वो कल तुम्हारे लिए ना मुमकिन बन सकता है, आज (दुनिया) अमल की जगह है और कोई हिसाब किताब नहीं है जबकी कल (आखिरत में) सिर्फ हिसाब होगा और अमल करने का कोई इमकान नहीं होगा_,"*

*❧"_ भलाई के कामों में जल्दी करना और उसमे सबक़त ले जाना, उन असबाब में से है जिनके ज़रिये अल्लाह ता'ला ने ज़कारिया अलैहिस्सलाम के अहवाल ठीक कर दिए और इन्हीं असबाब की बदौलत उनके लिए उनकी ज़ोजा मोहतरमा की इस्लाह की और उनकी दुआ कुबूल फरमाई,*,

*❧"_ मेरी मोमीना बहनो! जब फुर्सत और मौक़े से फायदा ना उठाया जाए तो वो हसरत व नदामत का बाइस बन जाता है, मुमकिन है आज तुम्हारे हाथों में कुछ असबाब मौजूद हों लेकिन वो कल मयस्सर ना आ सकें, पस जल्दी करो, आज और अभी नेकी की फसल बोनी शुरू कर दो ताकि कल फुर्सत बख्श फसल काट सको, हक़ ये है कि कल पर नज़र रखने वाले के लिए कल बहुत क़रीब है,*

*❧"_ एक दाना शायर कहता है :- हर लम्हे और हर वक्त नेकी के मौके़ मुहय्या नहीं होते लिहाज़ा जो नहीं मौका़ मिले नेक काम करने में जल्दी करो, मुबादा नेक काम ना मुमकिन हो जाए_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -118*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -55* _✸
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*❥➾ मेरी इस्लामी बहनो! क्या अल्लाह ताला की बरगाह ए आली से अपनी राह में खर्च करने, गुस्सा पी जाने और लोगों को माफ कर देने वालों की तारीफ, नेकी के कामों में आगे बढ़ने की दावत नहीं है? क्या अल्लाह तआला की जानिब से मगफिरत व बख्शीश के हुसूल के लिए फोरन कोशिश करने का हुक्म, खैर और भलाई के उमूर में सबक़त करने की ताकीद नहीं है? और क्या जन्नत में दाखिला नेक कामों में मुसाबक़त करने पर मोक़ूफ नहीं है_,"*

*❧"_ खैर और भलाई के काम में शुमार हैं जिनमे मुसलमान औरत को सबक़त ले जाने की तमन्ना दामनगीर होती है, मसलन - दुखी मुसलमान औरतों के दुख दूर करना, खैर में मुसाबक़त है, गरीब मुसलमान औरतों के क़र्ज़ अदा करना, भलाई में मुसाबक़त है, खाना खिलाना और भूखों की भूख मिटाना, खैर में मुकाबला करना है,*

*"❧_मुसलमान बहनों की ज़रुरियात पूरी करने में जल्दी करना भी खैर में मुसाबक़त है, गुस्सा पी जाना और अच्छे अख़लाक़ अपनाना भी नेकी में मुसाबक़त है, क़ुरान मजीद हिफ़्ज़ करना और उसकी तिलावत करना भी खैर में मुसाबक़त है, अल्लाह ता'ला का ज़िक्र और उसकी तस्बीह बयान करना भी भलाई के कामो में मुसाबक़त है,*

 *"❧_ नेकी के काम बताना भी कारे खैर में पेश क़दमी है, तालिबे इल्म को इल्म सिखाना और खुद सीखना भी नेकी में आगे बढ़ना है, सलाम फैलाना और सिलाह रहमी करना भी नेकी में मुसाबक़त है, रात को नमाज़ पढना जबकी लोग सोये हुए हों, सुन्नतो और नवाफिल की पाबंदी करना भी खैर में मुसाबक़त करना है,*

*"❧_ नेकी के काम बेशुमार और उसके तरीक़े मुताद्दिद हैं, तुम्हें हमेशा और हर हाल में नेक अमल करना चाहिए, मौत आने से पहले नेकी के कामों में जल्दी करनी चाहिए और खैर व भलाई के कामों में सबक़त ले जाने वाली औरत, अल्लाह ताला के नज़दीक ख़ैरून निसा यानी बेहतरीन औरत में से एक है _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -120*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -56* _✸
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*❥-_दुनिया में जा़हिदा और आखिरत की तालिब औरत :-*
*❧"_ वो औरत जो दुनिया की उन तमाम बेकार बातों से किनारा कर ले जो उसे आखिरत में कोई फायदा ना दे और अल्लाह के यहां अजरो सवाब पर क़ल्बी ऐतमाद रखे, बस इसी का नाम जुहद और इस खातून का तोसिफी नाम जा़हिदा है_,"*

*❧"_ ये जरूरी नहीं कि जा़हिदा औरत फकी़र या मिसकीना ही हो बल्की वो मालदार भी हो सकती है क्योंकि औरत का किसी चीज़ का मालिक होने के बावजूद उससे बेनियाज़ रहना यक़ीनन जुहद है, जुहद के मानी ये नहीं कि तुम किसी चीज़ के मालिक ना हो बल्की फिल हक़ीक़त जुहद ये है कि कोई चीज़ तुम्हारी ज़ात की मालिक ना हो (वो तुम पर गलबा और तसल्लुत हासिल ना कर ले)*

*"❧_ अल्लाह ताला के इस इरशाद पर गौर कीजिए, तुम पर जुहद की हक़ीक़त खुल जाएगी :-*
*❧"_(तर्जुमा- सूरह अल क़सस -28:77)_और जो कुछ अल्लाह ने तुझे दिया है, उससे आखिरत का घर तलाश कर और दुनिया में भी अपना हिस्सा मत भूल और (लोगों से) इस तरह अहसान कर जैसे अल्लाह ताला ने तुम पर अहसान किया है और ज़मीन में फसाद ना कर_,"*

*❧"_ नबी करीम ﷺ सारी मख्लूक़ से बढ़ कर जा़हिद थे मगर इसके बवजूद आप हासिल शुदा नियामत ठुकराते ना मफकू़द (जो हासिल नहीं) चीज़ के लिए कोई तकल्लुफ करते थे, जो लिबास मयस्सर होता पहन लेते और जुहद व इबादत के नाम पर लोगों से अलग थलग होने वाले को सख्ती से डांटते और ना पसंद फ़रमाते थे_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -122*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -57* _✸
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*❥➾ _ सल्फे सालेहीन, ताब'ईन और दीगर बुज़ुर्गो के बेशुमार इरशादात से ज़ुहद और जा़हिदो की सिफात व ख़ुसूसियात बिलकुल वाज़े है, आओ ज़रा गोर व फ़िक्र से इनका जायज़ा लें:-*

*❧"_ इमाम हसन बसरी रह. से कुछ लोगो ने कहा- जुहद तो लिबास में है, ( आदमी कीम़ती लिबास ना पहने बल्कि सादा कपड़े पहन कर रहे) बाज़ अफराद ने कहा कि ज़ुहद खाने पीने में है, कुछ और लोग बोले कि ज़ुहद फलां फलां चीज़ में है, इस पर हज़रत हसन बसरी रह. ने फरमाया तुमने कोई काम की बात नहीं की, जा़हिद तो वह है जो किसी को देखकर कहे, यह मुझसे अफ़ज़ल और बेहतर है _,"*

*❧"_ इस तारीफ से जाहिर होता है कि जा़हिद से मुराद मुतावाजे़ होना है, यानि ऐसा फर्द जो लोगों के सामने अपने आपको कमतर और उनको अपने से बेहतर समझे_,"*

*❧"_ हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. ने इमाम हसन बसरी रह. को खत लिखा कि मुझे मुख्तसर नसीहत कीजिये - हज़रत हसन बसरी रह. ने जवाब में लिखा- तेरी इसलाह करने वाला दुनिया में ज़ुहद है, ज़ुहद का दारोमदार यक़ीन पर है, यकीन गोर व फिक्र से हासिल होता है और गोर व फिकर इब्रत आमोजी़ पर मोकूफ है, जब तुम गोर व फिक्र करोगे तो दुनिया तुम्हें इस का़बिल नहीं मिलेगी कि तुम उसकी खातिर अपनी जान बेचो बल्कि उसकी हिका़रत की वजह से तुम उसे इस का़बिल समझोगे कि तुम उसे नापसंद करो क्यूंकी दुनिया आज़माइश का घर है _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -122*
   
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -58* _✸
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*❥➾_अल्लाह ताला का इरशाद है, (आले इमरान-14-15):-*
*❧"_लोगों के लिए ख़्वाहिशाते नफ़्स की मुहब्बत मुज़य्यन कर दी गई, यानि औरतों से, बेटों से, सोने और चाँदी के जमा किए हुए ढेरों से, निशान लगे (उम्दा) घोडो से, मवेशियों और खैती से, ये सब दुनियावी ज़िंदगी का सामान है और अच्छा ठिकाना अल्लाह ही के पास है, कह दीजिए: क्या मैं तुम्हें इनसे बेहतर चीज बताऊं? परहेज़गारों के लिए उनके रब के पास बागात हैं जिनके नीचे नैहरे बहती हैं, वो उनमें हमेशा रहेंगे और वहां उनके लिए पाकीज़ा बीवियाएं होंगी और उन्हें अल्लाह की रज़ा हासिल होगी और अल्लाह अपने बंदो पर खूब नज़र रखने वाला है_,"*

*❧"_ खूब जान लो कि अगर तुमने दुनिया की हिर्स की और आखिरत को भुला दिया तो अल्लाह ता'ला अंक़रीब तुम्हें दुनिया में तुम्हारी चाहत की चीज़ अता कर देगा मगर आखिरत में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं होगा, अपने अज़ीम परवरदीगार का ये फरमान सुनिए (बनी इस्राईल,- 18-20):-*

*❧"_ जो कोई जल्दी वाली चीज़ (दुनिया) चाहे तो हम इसी दुनिया में जिसके लिए चाहें जिस क़दर चाहें जल्द अता कर देते हैं, फिर हम उसके लिए जहन्नम ठहरा देते हैं, जिसमें वो मज़मूम और धुतकारी हुई हालत में दाखिल होगा, और जो आखिरत चाहे और उसके लिए पूरी कोशिश करें जबकी वो मोमिन हो तो यही लोग हैं जिनकी कोशिश का़बिले क़दर है, हम हर एक को आपके रब की अता से नवाज़ते हैं, उनको भी और उनको भी और तेरे रब की अता (किसी से) रोकी हुई नहीं _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -126*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -59* _✸
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*❥➾_ मेरी इस्लामी बहनो! तुम्हारे लिए ज़ुहद का हक़ीक़ी मतलाब यही है कि तुम किसी से भी कुछ ना माँगो, ख़्वाह वो तुम्हारा खाविंद हो या वालिद बिलखुसूस इस सूरत में जबकि वो तकलीफ़ और मशक्कत उठाये बगैर कुछ देने की ताक़त ना रखता हो ,*

*"❧_ मेरी इस्लामी बहनो! तुम्हारा जुहद यही है कि तुम दुनिया को अपना मक़सदे हयात ना बनाओ बल्कि दुनिया तो दर हक़ीक़त आखिरत ही के हुसूल का एक ज़रिया है, तुम्हारे जुहद का एक तक़ाजा़ ये भी है कि तुम उन औरतों में शामिल होने से गुरेज़ करो जिन्हे अल्लाह की नियामतों ने फ़कीर व मोहताज मुसलमान औरतों से गाफिल कर दिया है,*

*❧"_ उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का हाल देखो कि वो केसी ज़ाहिदा थीं? हज़रत मुआविया बिन सुफियान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे हुक्मरानी में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की खिदमत में 80 हज़ार दिरहम भेजे, वो रोज़े से थीं और उनके कपड़े भी खासे पुराने थे मगर उन्‍होनें ये बड़ी रक़म उस वक्‍त फुक़रा और मसाकीन में तक़सीम कर दी और कुछ भी बचा कर ना रखा,*

*❧"_ उनकी ख़ादिमा ने कहा- ऐ उम्मुल मोमिनीन! आपने दो दिरहम का गोश्त भी न ख़रीदा कि आप उससे रोज़ा अफ़्तार कर लेतीं, उन्होंने फरमाया - प्यारी बेटी! अगर पहले याद दिलाती तो मैं ख़रीद लेती (अब तो कुछ बचा ही नहीं),*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनों! गोर कीजिये, उम्मुल मोमिनीन रोज़े से थीं, लज़ीज़ खाने की हाजत भी थी मगर उन्होंने किसी तरह ज़ाती ज़रूरियात को भुला दिया और फुक़रा और मसाकीन की ज़रुरियात पूरी करने पर सारी रक़म सर्फ कर दी _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -127*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -60* _✸
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*❥➾ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का ये अमल सिर्फ़ फ़ुक़रा व मसाकीन को याद रखने, उनके दिलों को ख़ुशियों से मामूर करने और अल्लाह से मगफिरत के हुसूल की कोशिश की वजह से था क्यूंकी उन्होंने रसूलल्लाह ﷺ को फरमाते हुए सुना था :-*

*❧"_ अल्लाह को सबसे मेहबूब वो शख्स है जो लोगों को ज़्यादा नफा पहुंचाने वाला हो और अल्लाह को मेहबूब तरीन अमल, मोमिन को खुशी मुहैय्या करना, उसका दुख दर्द दूर करना या उसका क़र्ज़ अदा करना या उसकी भूख मिटाना है और मुझे अपने भाई की जरूरत के लिए उसके साथ चलना मस्जिद में दो माह के ऐतकाफ से ज़्यादा महबूब है और जो कोई मुसलमान अपने भाई की ज़रूरत के लिए उसके साथ चला यहां तक कि उसकी ज़रूरत पूरी हो जाए तो अल्लाह ताला उसके क़दमों को साबित रखेगा जिस दिन लोगों के क़दम फिसल रहे होंगे _," (क़ज़ा अल हवाइज़ इब्ने आबिद दुनिया-36)*

*❧"_अल्लाह की क़सम! जा़हिदा का काम अपनी ज़ात पर दूसरी मुसलमान औरतों को तर्जीह देना है, वो खुदगर्ज़ी से काम नहीं लेती और न अपने आप पर फ़ख़र व गुरूर से इतराती हैं जेसा कि आज कल की औरतें कर रही है, मेरी मुसलमान बहनो! आओ अपना ज़ाइद माल कपड़े और खाना मोहताज व ज़रूरतमंद मुसलमान औरतों को सदका़ दे दो _,"*

*❧"_हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:- दुनिया को क़यामत वाले दिन स्याह व सफ़ेद बिखरे बालो और नीली आँखो वाली बुढिया के रूप में निहायत बद शकल बना कर लाया जाएगा, उसके दाँत बाहर निकले होंगे, वो लोगो को झाँक कर देखेंगी तो कहा जायेगा: क्या तुम इसे जानते हो? सब लोग कहेंगे हम इसकी मार्फत से अल्लाह की पनाह मांगते हैं, तो कहा जाएगा यही वो दुनिया है जिसके लिए तुमने आपस में क़त्ल व गारत की, क़ता रहमी की, इसके हुसूल के लिए तुमने आपस में बुग्ज़ और हसद रखा और तुम धोके में पड़े रहे, फिर उसे जहन्नम में फ़ैंक दिया जाएगा तो वो पुकार कर कहेगी:ऐ मेरे रब ! मेरे पेरुकार और साथी कहां हैं ? अल्लाह ता'ला फरमाएगा: इसके पेरुकारों और साथियों को भी इसके साथ मिला दो _," ( ज़ुहद इब्ने आराबी -४६)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -128*

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                  ✸_ *क़िस्त -61* _✸
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*❥➾ मामलात में मुताहम्मिल मिज़ाज औरत (बर्दाश्त करने वाली औरत):-*
*❧"_ बेहतरीन औरत अपने अक़वाल और अफ़वाल (कथनी और करनी) और जुमला मामलात में बुर्दबार और मुतहम्मिल मिज़ाज (बर्दाश्त करने वाली) होती हैं, और ये कोई अनोखी बात नहीं है क्यूँकि बुर्दबारी और तहम्मुल तमाम फ़ज़ाइल में बुलंदतरीन दर्ज़ा रखता है, बुर्दबारी निहायत पाकीज़ा और क़ाबिले तारीफ़ सिफ़ात में से है, इस ख़ूबी के ज़रिये से अल्लाह ता'ला ने इंसान को हैवानात से मुमताज़ किया है _,"*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो! इस ज़माने में लोग माद्दी ज़िंदगी की दौड़ में लगे हुए हैं और रब्बानी तालीमात छोड़ चुके हैं, इसलिए मोजूदा दौर में निहायत ख़तरनाक बीमारियां और बहुत सी वबाएं फैल गई हैं जो गुज़िश्ता ज़माने में बिलकुल नहीं थीं, इन बिमारियों में एक अख़लाक़ी बीमारी भी है, यानी गुस्से में आना और अपने मामले को दानिशमंदी और इत्मिनान से कंट्रोल ना करना,*

*❧"_ कितने ही घर गुस्से की वजह से उजड़ गए, कितनी ही औरतें महज़ खाविंद के गुस्से की बिना बगैर किसी गुनाह के तलाक़ याफ्ता हो जाती है, कितने ही लोग हैं जो गुस्से की वजह से अक़ल से खाली और बेकार हो जाते हैं और कितनी औलादें हैं जो गज़ब की बिना पर घरों से निकाल कर आवारा बना दी जाती हैं,*

*❧"_ मगर बेहतीन औरत बुर्दबारी की फ़ज़ीलत ख़ूब जानती है, इस ख़ूबी से अपनी शख्सियत को आरास्ता करती है, इसके मुताबिक अमल करती है, इस सिफ़ात की बिना पर उसे दुनियां में लोगों की तारीफ़ नसीब होती है और आखिरत में उसे अपने रब की तरफ से तारीफ व तोसीफ हासिल होगी _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -129*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -62* _✸
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*❥➾_ मेरी मुसलमान बहनो! जब मोमिना औरत गुस्से और गज़ब के मौके पर बुर्दबारी का मुजा़हिरा करती है तो सब लोगों को इल्म हो जाता है कि वह किस क़दर अक़लमंद है, इसलिए जब मुसलमान औरत लोगों के सामने गुस्से के वक्त बुर्दबारी का मुजा़हिरा नहीं करती तो वो उसे मजनून और कम अक़ल क़रार देते हैं _,"*

*❧"_ बुर्दबारी के फ़ज़ाइल व समरात में गुनाहों से बचना और गंदी और बुरी जगहों पर जाने से परहेज़ करना भी शामिल है, बुर्दबारी का एक बड़ा फ़ायदा ये भी है कि तुम्हें अहले ख़ैर की मुहब्बत व मुआवनत हासिल होगी, जबकी फाहिशा, बद ज़ुबान और फाजीरा सिर्फ बद दुआएं ही हासिल करेंगी और लोग उससे दूर हो जाएंगे और कोई भी उसके क़रीब नहीं फटकेगा_,"*

*❧"_ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि बुर्दबार शख़्स को अपनी बुर्दबारी का पहला फ़ायदा ये होता है कि तमाम लोग जाहिल के ख़िलाफ उसके मददगार बन जाते हैं _,"*

*❧"_ बुर्दबारी की एक बहुत बड़ी फजी़लत ये है कि अल्लाह ता'ला और उसके रसूल ﷺ बुर्दबारी को पसंद करते हैं, रसूलुल्लाह ﷺ ने अब्द क़ैस क़बीले के एक शख़्स से फरमाया था- बेशक तेरी दो ख़ूबियों को अल्लाह और उसके रसूल पसंद करते हैं, बुर्दबारी और वका़र व संजीदगी _,"*
 *"_(सही मुस्लिम - 18, जामिया तिर्मिज़ी -2011)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -132*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -63* _✸
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*❥➾ दूसरो की जरूरत पूरी करने वाली औरत:-*
*❧"_ दौरे हाज़िर में नफ़्सा नफ़्सी की वजह से हर जगह "मैं मैं" की आवाज़ गूंज रही है जबकी बेहतरीन औरत वो है जो दूसरे मुसलमान बहन भाइयों के मुफादात और ज़रुरियात पूरी करने की भरपूर कोशिश करती है, लोगों की हाजात व ज़रूरियात पूरी करने से ला मुहाला अता व बख्शीश की राह खुलती हैं और अहले इस्लाम के माबीन ता'ऊन और बाहमी जिम्मेदारियों का अहसास मजबूत होता है,*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो! जब तुम अपनी मुसलमान बहनों की हाजात व ज़रूरियात पूरी करने की कोशिश करोगी और तुम्हारा मक़सद सिर्फ अल्लाह ता'ला की रज़ा, सवाब का हुसूल और बहनों का दिल खुश करना होगा तो अल्लाह ताला की मगफिरत और रहमत के बहुत क़रीब हो जाओगी _,"*

*❧"_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम ﷺ से रिवायत करते हैं कि आप ﷺ ने फ़रमाया - जिसने किसी मोमिन की दुनियावी मुसीबतों में से कोई मुसीबत दूर की, अल्लाह ता'ला क़यामत के दिन की तकालीफ़ में से उसकी तकालीफ़ और मुसीबत दूर कर देगा..और अल्लाह उस वक्त तक बंदे की मदद करता रहता है जब तक वो अपने भाई की मदद करता रहता है_,"*
 *"®_(सही मुस्लिम -2899, जामिया तिर्मिज़ी -1930)*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -139*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -64* _✸
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*❥➾_ इमाम हसन बसरी रह. फरमाते हैं:- मुझे हाजतमंद मुसलमानों की कोई ज़रूरत पूरी करना एक हज़ार रका'त नमाज़ पढ़ने से ज़्यादा मेहबूब है और किसी भाई की हाजत रवाई मुझे दो माह के ऐतकाफ से ज़्यादा पसंदीदा है _,"*

*❧ "_ इमाम इब्ने हिबान रह. फरमाते हैं:- जरूरतमंदों की हाजते पूरी करने का अदना तरीन फायदा ये है कि खिदमत गुज़ार शख्स लोगों की तारीफ का मुस्तहिक़ बन जाता है और भाई ज़रूरियात के वक्त ही पहचाने जाते हैं, जिस तरह घर वाले फ़क़रो फ़ाक़े में आजमायें जाते हैं क्यूँकी ख़ुश हाली में तो हर कोई दोस्त होता है और बदतरीन भाई वो है जो कड़े वक़्त और ज़रुरत की घड़ी में साथ छोड़ जाए _,"*

*❧ "_ हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:- किसी मुसलमान घराने की एक माह, एक हफ़्ते या जितनी देर अल्लाह चाहे किफ़ालत करना और उनकी ज़रुरियात पूरी करना मुझे पे दर पे हज करने से ज़्यादा महबूब है, अपने दीनी भाई को एक दिरहम भरी थाली का तोहफा पेश करना मुझे अल्लाह की राह में दीनार खर्च करने से ज़्यादा मेहबूब है _,"* 

     *®_Ref:- मिसाली औरत -140*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -65* _✸
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*❥➾. मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! हमारे सल्फे सालेहीन ने ज़रुरत मंदों की इमदाद की अहमियत व फ़ज़ीलत को ख़ूब समझा और इसका बेहद अहतमाम किया है, इस सिलसिले में दर्ज़ ज़ेल शानदार मिसालो का मुता'ला कर के उन पर दिलो जान से अमल करें,*

*"❧_ जनाब मुहम्मद बिन इस्हाक बशाना बयान करते हैं कि मदीना मुनव्वरा में कुछ लोग रहते थे लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि उन्हें ज़रुरियात ज़िंदगी कहां से मिल रही है और कौन फराहम कर रहा है? जब हजरत जैनुल आबेदीन बिन हुसैन रह. फौत हो गए तो उनको वो सामाने जिंदगी मिलना बंद हो गया, तब उनको मालूम हुआ कि हजरत जैनुल आबेदीन रह. उन्हे रात के वक्त उनकी ज़रुरियात पहुंचाया करते थे, जब उन्होंने उनकी वफात के बाद उन्हें गुस्ल दिया तो उनकी कमर और कंधो पर बेवाओं और यतीमों के घर साजो सामान के थेले उठा कर ले जाने के निशानात पड़े हुए वे_,"*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! गौर कीजिये, ये नबूवत के घराने का चश्मो चिराग किन लोगों की ज़रुरियात पूरी करने की मशक्कत करता था? मसाकीन बेवाओं और फुक़रा के लिए वो कितनी ज़हमत उठाते थे, उनकी सारी तलब और तड़प ये थी कि बेवाओं, यतीमों और मिस्कीनों के दिल खुशी से भर जाएं _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -141*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -66* _✸
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*❥➾ अल्लाह ता'ला से सच्ची तौबा करने वाली :-*
*❧"_ तौबा जामा लफ़्ज़ बहुत से उमूर की तरफ़ इशारा करता है, इसमें गलतियों और ख़ताओँ से बचाव की तलब है, इसमें गुनाह का एहसास भी है और शर्मशारी से आँसू बहाना भी और ये सब उमूर अल्लाह ता'ला की तरफ रुजू करने के असरात है, ताइबा उस औरत को कहते हैं जो अल्लाह की तरफ तौबा के साथ मुतवज्जा होती है जबकी "अत तव्वाब" अल्लाह ताला है जो अपनी ज़ाते आली पर ईमान लाने वालों की तौबा क़ुबूल करता है,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! तौबा उस "खैरुन निसा" की सिफात में एक अहम सिफत है जो अपने रब का रास्ता पहचान कर उस पर चलती है और तौबा सफरे आखिरत के लिए मुसलमान औरत का जा़दे राह है, क़यामत के दिन जो औरत भी कामयाब होगी वो सच्ची और पक्की तौबा की बदौलत कामयाब होगी,*

*"❧_ ऐसी तौबा जिस्मे गुनाह की तरफ न पलटने का पुख्ता अज़्म होगा, ज़ाया हो जाने वाली उम्र पर शर्मशारी होगी और अपनी इस्लाह का पक्का इरादा होगा, सच्ची और पक्की तौबा वो मता है जो मुसलमान औरत की मौत तक उसके साथ साथ रहती है, इस तरह गोया तौबा मुसलमान औरत की इब्तिदा भी है और उसकी इंतेहा भी!*

 *❧"_ तौबा चंद जुबानी कलामी अल्फाज़ का नाम नहीं है जिन्हें तुम अपनी जुबान से अदा कर लो और उन्हें बार बार दोहरा लो बल्की तौबा चंद मज़बूत उमूर से इबारत है :- (1) मुसलमान औरत गलती और गुनाह पर शर्मिंदगी मेहसूस करे, ( 2)_ गुनाहों को एक दम छोड़ दे और उनसे मुकम्मल इज्तिनाब करे, (3)_ दोबारा कभी भी कोई सगीरा या कबीरा गुनाह न करने का पुख्ता अज़्म करे, गुनाह छोड़ कर नेक आमाल करने लगे हत्ताकी तौबा के बाद उसकी हालत पहले से अफ़ज़ल और बेहतर हो जाए,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -145*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -67* _✸
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*❥➾ अहले अरब से मनकू़ल है कि जल्द बाज़ी शैतान का काम है, अलबत्ता इन 5 बातों में जल्दी करनी चाहिए:-*
*(1)_तौबा में, जब गुनाह कर बेठो,*
*(2)_ जब मेहमान आ जाए तो खाना खिलाने में,*
*(3)_ मय्यत की तजहीज़ व तकफीन में,*
*(4)_बच्ची जवान हो जाए तो उसकी शादी करने में,*
*(5)_ क़र्ज़ की अदायगी में जल्दी करना जबकी उसकी मुद्दत पूरी हो जाए,*

*"❧_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया- अल्लाह की क़सम! बेशक मै एक दिन में सत्तर से ज़्यादा बार अल्लाह से बख़्शीश माँगता हूँ और तौबा करता हूँ_," (सही बुखारी- हदीस 6307)*

*"❧_ हज़रत अगर बिन यसार रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया- ऐ लोगों! अल्लाह से तोबा करो और उससे बख़्शीश तलब करो, बेशक मै एक दिन में सौ मर्तबा तोबा करता हूं_," (सही मुस्लिम, हदीस 2702)*

*"❧_ ऐ मेरी मुसलमान बहनो! ज़रा गोर कीजिए, ये हमारे मासूम रसूल ﷺ हैं जिनके अगले पिछले तमाम गुनाह माफ़ हैं, इसके बवजूद वो अपने रब से एक दिन में 100 मर्तबा बख्शीश तलब करते हैं और तौबा करते हैं, नबी ﷺ का ये अमल मुबारक हमें तौबा में जल्दी करने का अहसास दिलाने के लिए है_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -146*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -68* _✸
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*❥➾ _जानिया औरत की तौबा :-*
*❧"_ हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ये रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ के पास जमहिना क़बीले की एक औरत आई, जो ज़िना की वजह से हामला थी, उसने इल्तिजा की- ए अल्लाह के रसूल! मैंने संगीन गुनाह का इर्तिकाब किया है, लिहाज़ा मुझ पर हद क़ायम फ़रमायें _,"*

*❧"_ नबी करीम ﷺ ने उसके वारिस को बुलाया और फरमाया - इसके साथ अच्छा सुलूक करो, जब ये बच्चे को जनम दे चुके तो मेरे पास ले आना, उसने हुक्म की तामील की, जब बच्चा पैदा हुआ तो उसे ले कर हाज़िर हुआ, फिर नबी करीम ﷺ के हुक्म पर उस औरत के कपड़े अच्छी तरह बांध दिए गए (ताकि उसका सतर ना खुलने पाए) फिर आप ﷺ के हुक्म से उसे रज्म कर दिया गया _,"*

*❧"_ फ़िर आप ﷺ ने उसकी नमाज़ जनाज़ा पढ़ायी, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- ऐ अल्लाह के रसूल! आप उसकी नमाज़ पढ़ेंगे? हालांकी उसने ज़िना किया था? तो नबी करीम ﷺ ने फरमाया- उसने ऐसी शानदार तौबा की है कि अगर मदीना मुनव्वरा के सत्तर (गुनहगारों) में तक़सीम कर दी जाए तो सबको काफी हो जाएगी, क्या तुमने इससे अफ़ज़ल तौबा देखी है कि उसने अल्लाह की खातिर अपनी जान तक कुर्बान कर दी है _,"*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनों! सच्ची तौबा की जज़ा पर गोर कीजिए, ये सिर्फ इसलिए है क्योंकि ये मुसलमान औरत को कुर्बानी देने के लिए ज़बरदस्त तैयारी पर आमादा करती है ताकी वो गुनाहों और खताओं से पाक हो जाए _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -153*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -69* _✸
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*❥➾ _खालिस तौबा आला तरीन इबादत में से है, इसकी बदौलत मुसलमान औरत अपने रब का तक़र्रूब हासिल करती है और उसे वो मुका़म हासिल होता है जो किसी और इबादत से हासिल नहीं होता, उसमें आजीज़ी इंकसार और अल्लाह के लिए खुशू व खुज़ू पाया जाता है, खालिस तौबा का सबसे बड़ा फ़ायदा मुसलमान औरत को ये होता है कि उससे सरज़द होने वाले गुनाह नेकियों में बदल दिए जाते हैं _,"*

*❧"_अल्लाह ताला के इस फ़रमान पर गोर कीजिए:- "_(तरजुमा) मगर जिसने तौबा की और वो ईमान लाया और उसने नेक अमल किया तो यही लोग हैं जिनके गुनाह अल्लाह नेकियों में बदल देगा, और अल्लाह बहुत बख्शने वाला, बड़ा रहम फरमाने वाला है_," ( सूरह फुरका़न -25:70)*

*"❧_ ये आयाते मुकद्दसा नादिम होने और सच्ची तौबा करने वाली औरतों के लिए बहुत बड़ी खुश खबरी है, अज़ीमुल मुरत्तब ताबई हज़रत सईद बिन मुसय्यिब रह. फरमाते हैं:- अल्लाह ता'ला क़यामत के दिन उनके तमाम गुनाह नेकियां में बदल देगा, यानि उन्हें हर गुनाह की जगह एक नेकी देगा_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -153*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -70* _✸
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*❥➾ लेकिन जब अक्सर मुसलमान औरतों का हाल देखा जाता है तो बड़ा अफसोस होता है, बेशुमार खवातीन अपनी उमरे अज़ीज़ गफलत की नज़र कर देती हैं, वो तवील उमर गुज़ार कर ही अल्लाह के हुज़ूर तौबा करती हैं, हालत ये है कि बहुत सी मुसलमान बहने नमाज़ नहीं पढ़ती, रोज़े भी नहीं रखती, अक्सर खवातीन पर्दा भी नहीं करती, तो जब इन बातों पर टोका जाए और अल्लाह ताला के अहकाम की पाबंदी करने की नसीहत की जाए तो अक्सर बहनें ये कहती हैं कि अभी तो हम बहुत छोटी हैं, अभी हमारी उमर ही क्या है, तौबा के लिए अभी बड़ी उमर पड़ी है, लिहाजा तौबा व इस्तगफार के लिए इतनी जल्दी की क्या जरूरत है?*

*"❧_ऐसी ख्वातीन ये नहीं समझती कि जिंदगी नापायादार और ना क़ाबिले ऐतमाद है, हो सकता है वो अपनी उम्मीद के मुताबिक उमर न पा सके, तौबा गले में सांस निकलने तक हो सकती है लेकिन उम्दा सहत की हालत में तौबा करना जबकी अभी जिंदगी की उम्मीद बाक़ी है, उस माली सदक़े की तरह है जो तंदुरुस्ती की हालत में किया जाए, मौत के वक्त तौबा करने की मिसाल उस माली सदक़े जैसी है जो मौत के क़रीब किया जाए,*

*"❧यानी बीमारी में तौबा करने वाला जब अपनी सारी सहत और कुव्वत अपने नफ्स की ख्वाहिशात और दुनियावी लज्ज़तो पर खर्च कर लेता है, फिर जब वो अपनी जिंदगी से मायूस हो जाता है तो तौबा करने लगता है और गुनाह तर्क कर देता है। उस शख्स की तौबा का उस आदमी की तौबा से क्या मुक़ाबला जिसने ऐन जवानी में उस वक्त तौबा कर ली हो जबकि गुनाहों की कुव्वत पूरी तरह बाक़ी थी, लेकिन उसने अपने रब के खौफ और सवाब की उम्मीद पर बूरे काम छोड़ दिए,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -154* * *︾﹀︾﹀︾﹀︾﹀︾﹀︾﹀︾*
               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -71* _✸
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*❥➾_ मेरी मुसलमान बहनो! अब इबरत के लिए चंद ऐसी बदकिस्मत औरतों के आलमे नज़ा की बातें सुनें जिन्होंने अपनी उम्र गुनाहों और शहवात में ज़ाया कर दी थी, वो दुनिया से रुखसत होते वक्त़ बहुत परेशान थीं _"*

*❧"_ उनमे से एक अपना चेहरा पीट रही थी और कह रही थी: हाय अफसोस! मैंने अल्लाह की इता'त व फरमाबरदारी और उसके हक़ की अदायगी में किस क़दर कोताही की_,"*
*"_दूसरी औरत मायूसी और हसरत से रो रही थी और कह रही थी: दुनिया मेरी जिंदगी से खेलती रही और मुझसे मजा़क करती रही हत्ताकी मेरी उम्र खत्म हो गई_,"*

*"❧_ तीसरी खातून ने जब उसकी सांस की डोर कट रही थी ये आखिरी अल्फाज़ कहे: मेरी बहनों! तुम्हारा भला हो अपनी जवानी से धोखा न खाना, तुम्हें दुनिया की जै़बो ज़ीनत कभी धोके में ना डाले जिस तरह उसने मुझे धोके में डाले रखा_,"*

*❧"_ अल्लाह ताला का फरमान है:- और तुम अपने रब की तरफ रुजू करो और उसके फरमाबरदार हो जाओ, इससे पहले कि तुम पर अजा़ब आ जाए, फिर तुम्हारी मदद नहीं की जाएगी और तुम उस बेहतरीन चीज की पैरवी करो जो तुम्हारे रब की तरफ से तुम्हारी तरफ नाजि़ल की गई है, इससे पहले कि तुम पर अचानक अज़ाब आ जाए और तुम्हें उसकी खबर तक न हो, (ऐसा न हो) कि कोई शख्स कहे- हाए अफसोस!उस पर जो मैंने अल्लाह की इता'त करने के हक़ में कोताही की और बिला शुबहा मैं मज़ाक उड़ाने वालों में शामिल रहा, या वो कहे: बेशक अगर अल्लाह मुझे हिदायत देता तो मैं ज़रूर मुत्तक़ियों में से हो जाता, या वो जिस वक्त़ अज़ाब देखे तो ये कहे: काश ! मैं एक बार वापस दुनिया में जा सकूं तो नेकुकारों में से हो जाऊं _," ( सूरह अज़ -ज़ुमर- 54-58)*

*"❧_ बेशाक खैरुन निसा वोही औरत है जो दिन रात, ख़ुफ़िया ऐलानिया अपने रब के हुज़ूर तौबा करती है और अपने गुनाहों पर रोती है अगरचे वो छोटे ही हों, वो अपने रब की इता'त में आजीज़ी और इंकसार की ज़िंदगी बसर करती है और आखिरत में कामयाब हो जाती है, उसका रब उसे अज़ीमुश्शान जन्नत में दाखिल कर देता है, जिसके मेवे क़रीब, नेहरें जारी और तख्त बिछे हुए होंगे, उसमें ऐसी नियामतें है जो ना किसी आंख ने देखी है न किसी कान ने सुनी है और न किसी बशर के दिल में उनका कोई ख्याल गुज़रा है _,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -155*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -72* _✸
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*❥➾_अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ बुलाने वाली :-*
*"❧ _ बेहतरीन औरत तमाम मुसलमान औरतों को हमेशा वो नूरे हिदायत पहुंचाती रहती है जो उनके सीनों को हक़ के लिए खोल देता है और उनके मामलात आसान बना देता है और वो काम खवातीन को सिर्फ अल्लाह की तरफ बुलाने के लिए करती हैं _,"*

*"❧ _ मेरी प्यारी इस्लामी बहनों! "खैरुन निसा" की सिफात में एक खूबी ये भी है कि वो अपनी बहनों की क़ुरान व सुन्नत की तरफ रहबरी करती है जिसमें क़यामत के दिन के अज़ाब से उनकी निजात है, जो औरत "खैरून निसा" का रुतबा पाना चाहती है उसके लिए ज़रूरी है कि वो सबसे पहले अपने घर वालों की इस्लाह के लिए उन्हें नमाज़ क़ायम करने, ज़कात देने, नेकी का हुक्म करने और बुराई से रोकने जैसे इस्लामी श'आर व आदाब की दावत दे_ ,"*

*"❧ _ उसकी ये दावत अल्लाह ताला के इस हुक्म की तामील होगी जो उसने हर मुसलमान मर्द व औरत को अपनी जान और अपने घर वालों को आग से बचाने के लिए दिया है, अल्लाह ताला के इस फरमान पर अच्छी तरह गौर कीजिये:-*
*❧ "_ ऐ ईमान वालों! तुम खुद को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन इंसान और पत्थर हैं, उस पर तुंद मिज़ाज और सख्त गीर फरिश्ते (मुकर्रर) हैं, अल्लाह उनको जो हुक्म दे, वो उसकी नाफरमानी नहीं करते और वो करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है _," (अल तेहरीम -6)*

     *®_Ref:- मिसाली औरत -156*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -73* _✸
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*❥➾_हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु इस (अल-तहरीम- 6) आयत की तफ़सीर करते हुए फरमाते हैं:- अपने आपको और अहलो अयाल को ख़ैर के काम सिखाओ और उन्हें इस्लामी आदाब सिखाओ ताकी तुम सब जहन्नम से बच सको_,"*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो! तुम्हारे खानदान को जन्नत में पहुँचाने में तुम्हारा बहुत अहम किरदार है, इस किरदार से कोई जाहिल या कम अक़ल ही इंकार करेगा, तुम्हें अपने वाल्दैन को रहमान की इता'त व फर्माबरदारी में लगा देना चाहिए और अल्लाह की इबादत, फ़राइज़ की अदायगी और तमाम मामलात में हुक़ुक़ुल्लाह की मार्फत के सिलसिले में उनकी मदद करनी चाहिए,*

*❧"_ अपनी औलाद को खास तोर पर अल्लाह की इता'त करने वाला बनाओ और अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की खुशनूदी के हुसूल पर उनको कमर बस्ता कर दो,*

*❧”_ मेरी मोमिना बहनो! अल्लाह ताला की तरफ बुलाने का मतलब यह है कि तुम अपनी इस्तेता'त के मुताबिक़ मुसलमान औरतों को दीनी मसाईल और रसूलुल्लाह ﷺ की सीरत व किरदार और आप ﷺ के इरशादात से अच्छी तरह रोशनाश कराओ क्योंकि अल्लाह की तरफ बुलाना बहुत बड़ी इबादत, जिहादे अकबर और अज़ीम मुकाम व मर्तबे की बात है,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -157*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -74* _✸
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*❥➾_तुम्हारे लिए उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा की सीरत मुक़द्दसा में बेहतरीन उस्वा मौजूद है जिन्होंने बहुत से शरई अहकाम याद किये और शरई आदाब सीखे, यहां तक कहा गया है: शरीयत के एक चौथाई मसाईल आपसे मनकूल है, आप रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत बड़ी फ़क़ीहा और बहुत सी ख़्वातीन और बहुत से सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम की मुअल्लिमा थी _,"*

*❧"_ हज़रत उरवाह बिन ज़ुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: मैं हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की ख़िदमत में अर्सा दराज़ तक रहा लेकिन मैंने उनसे बढ़ कर किसी को क़ुरानी आयात का आलिम, फ़र्ज़ व सुन्नत का मुहफ़िज़, शैर का पारिख और बयान करने का माहिर, अरबों की जंगों का आलिम, नसब नामा का हाफ़िज़, फ़ैसलो और तिब व हिकमत का रम्ज़ शनास किसी को नहीं देखा,*

*❧"_ मैने उनसे पुछा : खाला जान! आपने तिब कहां से सीखा? उन्होंने फरमाया - मैं कभी बीमार होती तो मेरी लिए दुआ तजवीज़ की जाती या कोई शख्स बीमार होता तो उसके लिए दवा बताई जाती तो मै उसे याद कर लेती थी और लोग जब एक दूसरे को नुस्खे बताते तो मैं उन्हें भी याद कर लेती थी।*

*"❧_ इमाम ज़हरी रह. फरमाते हैं: तमाम औरतों का इल्म हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के इल्म के मुक़ाबले में जमा किया जाए तो आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का इल्म सबसे अफज़ल व आला होगा_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -158*
    
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -75* _✸
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*❥➾ सच बोलने और झूठ से बचने वाली :-*
*"❧_ खैरुन निसा यानी बेहतरीन मुसलमान औरत की मुमताज़ तरीन सिफत ये होती है कि वो सदाक़त की पुर वका़र खूबी से आरास्ता होती है,*

*❧"_ मेरी प्यारी इस्लामी बहनो! अल्लाह ताला ने तुम्हें सच अपनाने और इसकी फजी़लत का हुस्न व जमाल अख्त्यार करने की रगबत दिलाई है और हिसाब वाले दिन तुम्हें बहुत बड़े अजरो सवाब का वादा फरमाया है_,"*
*"❧_अल्लाह ताला का इरशाद है:- "ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो और सच्चे लोगो के साथ हो जाओ _," (सूरह तौबा - 119)*

*❧"_ इसी तरह अल्लाह ताला ने सच बोलने वाली खवातीन को उस जमात में शुमार किया है जिसकी तारीफ की गई है, उस गिरोह में शामिल किया गया है जिसे आखिरत में बुलंद मुका़म अता फरमाया जाएगा और वसी रहमत व मगफिरत से नवाजा़ जाएगा,*
*❧"_ इरशाद होता है :- बेशक मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें, मोमिन मर्द और मोमिन औरतें, फरमाबरदार मर्द और फरमाबरदार औरतें, सच्चे मर्द और सच्ची औरतें, सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें, आजीज़ी करने वाले मर्द और आजीज़ी करने वाली औरतें, सदका़ देने वाले मर्द और सदका़ देने वाली औरतें, रोजे़दार मर्द और रोजे़दार औरतें, अपनी शर्मगाह की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और हिफ़ाज़त करने वाली औरतें और अल्लाह का बाकसरत ज़िक्र करने वाले मर्द और ज़िक्र करने वाली औरतें, इस सबके लिए अल्लाह ने मगफिरत और अजरे अज़ीम तैय्यार कर रखा है _," (अल अहज़ाब-35:33)* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -160*

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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -76* _✸
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*❥➾ जब मुसलमान औरत सच बोलेगी तो उसे सादिका़ के नाम से मौसूम किया जाएगा और जब वो हर वक्त सच बोलती रहेगी और हमेशा सच्चाई की राह अख्त्यार करने की कोशिश करेगी तो वो सिद्दीका़ (इंतेहाई सच्ची) बन जाएगी, सिद्दीका़ उसे कहते है जो हमेशा सच बोले और सदाक़त की राह कभी तर्क ना करे*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो! तुम्हारी इता'त गुजा़री और फरमा बरदारी में सच उसी वक्त जाहिर होगा जब तुम अपनी इता'त में यकी़न और अहसान को यकी़नी बनाओ, तुमसे जिन फ़राइज़ व वाजिबात की अदायगी का मुतालबा किया जाता है, उनमें भी उसी वक्त सच्चाई होगी जब तुम फ़राइज़ व वाजिबात की मुलहिकात और ताबे उमूर में कोताही नहीं करोगी, तो इसके नतीजे में तुम सादिका़ कहलाओगी _,"*

*❧"_ हज़रत अली बिन अबू तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: जो लोगों के साथ तीन सुलूक करें, लोगो पर उसके तीन हक़ वाजिब हो जाते हैं:-(1)_ वो शख्स जो उनसे बात चीत में सच बोले, (2)_ जब वो उसे किसी चीज़ का अमीन बनाए तो उससे खयानत ना करे, (3) और जब उनसे वादा करे तो पूरा करे,*

*"❧_इसी तरह लोगों पर उसके तीन हक़ लाज़िम हो जाते हैं, यानी :-(1)_ लोगो के दिलों में उसकी मुहब्बत का जज़्बा फूट पड़ता है, (2)_ उनकी जुबाने उसकी तारीफ व तोसीफ करती हैं, (3)_ और वो उसकी मदद व इयानत करते हैं _,"* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -163*
      
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                  ✸_ *क़िस्त -77* _✸
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*❥➾ सच की फ़ज़ीलत ये भी है कि सच्चाई तुम्हें हमेशा हलाकतों से बचाएगी जबकी झूठ हलाक कर डालेगा, सच की फ़ज़ीलत ये भी है कि ये दुनिया में बुलंद मर्तबे के हुसूल के यक़ीनी असबाब में से अहम तरीन सबब है, इसीलिये अहले मक्का ने रसूले अकरम ﷺ को बैसत से पहले ही "सादिक़ व अमीन" का लक़ब दे दिया था,*

*"❧_ और हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने वही व रिसालत की इब्तिदा होने पर आपको इन अल्फाज़ में तसल्ली दी थी- बेशक आप सच बोलते हैं (इसलिये अल्लाह ता'ला आपका साथ देगा) जबकी आपकी क़ौम ने ये ऐतराफ़ किया था हमने आपसे कभी झूठ नहीं सुना, यानी हम देखते हैं कि आपके दुश्मनो ने भी आपके सादिक़ होने की गवाही दी और आपके पेरुकार आपकी सच्चाई की गवाही देते थे_,"*

*"❧_ ये कितनी शानदार और अज़ीम गवाही है! सच नेक लोगो का ज़ेवर है, आज़ाद बंदो की ज़ीनत है और सालेहीन व बरगुज़ीदा बंदो का हुस्न व जमाल है, बाज़ लोगो ने लुक़मान हकीम से कहा: क्या आप फलां कबीले के गुलाम नहीं हैं? उन्होंने कहा: क्यों नहीं, मैं उसी कबील से हूं, उनसे पूछा गया - तो फिर आपको ये बुलंद मुका़म केसे मिला? उन्होंने फरमाया - अल्लाह के डर, सच बोलने, अमानत अदा करने और लायानी बातों से इज्तिनाब की बाइस_,"*

*"❧_ सच की फजी़लत ये भी है कि ये गंदगी और बुराइयों से निजात दिलाती है, झूठे को उसके हाल पर छोड़ दो, झूठ बोलने से गूंगा होना बेहतर है_,"*
*"_झूठ की एक नहुसत ये है कि लोग झूठे का ऐतबार नहीं करते अगरचे वो अपनी बात में सच्चा हो_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -164*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -78* _✸
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*❥➾ अल्लाह ता'ला पर तवक्कुल करने वाली :-*

*❧"_ बहतरीन मुसलमान औरत अपने तमाम ममलात में सिर्फ अल्लाह ता'ला पर भरोसा करती है, अपने सारे काम उसी के सुपुर्द करती है और दस्तयाब चीज़ों के बजाए अल्लाह तआला के पास मोजूद नियामतों पर मुक्कम्मल ऐतमाद रखती है,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! समझदार और अक़लमंद औरत के लिए लाज़िम है कि उस जा़ते आली ही पर तवक्कुल करें जिसने सबके लिए रिज़्क की ज़िम्मेदारी ले रखी है क्योंकि तवक्कुल ईमान का निहायत अहम जा़ब्ता और उसूल है, जो इंसान के फ़क़रो फाक़ा को दूर करने का मोआसिर सबब है,*

*"❧_ अल्लाह ताला फरमाते हैं:- (सच्चे) मोमिन सिर्फ वो लोग हैं कि जब अल्लाह का जिक्र किया जाए तो उनके दिल कांप उठते हैं और उनके रूबरू उसकी आयतों की तिलावत की जाए तो वो उनका ईमान बढ़ा देती हैं और वो अपने रब पर तवक्कुल करते हैं _," (अल अनफाल-2:8)*

*"❧_ अल्लाह ताला पर तुम्हारा ऐतमाद जिस क़दर ज़्यादा और भरपूर होगा, उसी क़दर तुम क़यामत के दिन के लिए अपनी नेकियों का ज़ख़ीरा कर लोगे, तुम्हारा ऐतमाद अल्लाह पर रोज़ाना बढ़ेगा तुम्हारी नेकियों का ज़ख़ीरा भी बढ़ेगा, इसके नतीजे में तुम जुर्रत मंदी से शैतान का मुक़ाबला कर सकोगे*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -179*
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                  ✸_ *क़िस्त -79* _✸
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*❥➾ कितनी ही औरते हैं जिन्होंने अपने जज़्बे पर ऐतमाद करते हुए काम शुरू किया तो अल्लाह ने उन्हें गुमराह कर दिया, कितनी ही ऐसी औरतें हैं जिन्होंने अपनी कु़व्वत के बल बूते पर अपना काम शुरू किया तो अल्लाह ने उन्हें बीमार कर दिया, बेशुमार औरतें ऐसी हैं जो अल्लाह की क़ज़ा पर राज़ी न हुईं, अल्लाह पर तवक्कुल न किया तो दुनिया व आख़िरत में नाकाम व नामुराद हो गई,*

*"❧_ बहुत सी औरतों ने अपनी जिंदगी में अपने माल पर भरोसा किया तो अल्लाह ने उन्हें फ़कीर बना दिया, उनके बरअक्स बहुत सी औरतों ने अल्लाह पर तवक्कुल किया तो उनके लिए दुनिया व आखिरत की स'आदत व खुशबख्ती के दरवाज़े खुल गए,*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो! अल्लाह ता'ला का ये फैसला है कि जो औरत उस पर तवक्कुल करेगी, वो उसे काफी हो जाएगा, जो उस पर ईमान लाएगी, वो उसे हिदायत नसीब करेगा, जो सदका करेगी, उसे जजा़ देगा, जो उस पर ऐतमाद करेगी, उसे निजात देगा और जो उसे पुकारेगी, वो उसकी पुकार सुनेगा,*

*"❧_ अल्लाह ताला फरमाता है:- और जो अल्लाह पर ईमान लायेगा, वो उसके दिल को हिदायत दे देगा_, (तगाबुन -11:64)*
*"❧_ और जो अल्लाह पर तवक्कुल करेगा तो वो उसे काफ़ी हो जाएगा, (तलाक-3:65)*
*"❧_ और अल्लाह तबरक व ताला ने फरमाया - अगर तुम अल्लाह को क़र्ज़े हसना दोगे तो वो तुम्हारे लिए बढ़ा देगा, (तगाबुन -17:64)*
*❧"_ और इरशादे बारी ताला है:- और जो शख्स अल्लाह के दीन को मज़बूती से थाम ले तो उसे सीधे रास्ते की हिदायत मिल जाती है _," (आले इमरान -101:3)*

*"❧_ और मुकद्दस जा़त ने फरमाया - ( ऐ नबी) जब मेरे बंदे मेरे बारे में सवाल करें तो बेशक मैं करीब हूं, मैं दुआ करने वाले की दुआ कुबूल करता हूं, जब भी वो मुझसे दुआ करे_," (बक़राह- 186:2)* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -178*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -80* _✸
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*❥➾ मेरी मुसलमान बहनों! हमारे सल्फे सालेहीन के नज़दीक तवक्कुल रिज्क़ की तलाश और उसके लिए कोशिश करने के मनाफी और खिलाफ नहीं था लेकिन बाद वाले लोगो में कुछ ऐसे मुसलमान भी हैं जिन्होंने तवक्कुल का मतलब निहायत गलत समझा है लेकिन जो शख्स दीन ए इस्लाम की तालीमात पर गहरी नज़र रखता है, उसे बा खूबी इल्म हो जाता है कि तवक्कुल किसी हालत में भी रिज्क़ की तलाश और उसकी कोशिश के खिलाफ नहीं है,*

*"❧_ इसमें शक नहीं कि आज के दौर में तवक्कुल गफलत और बेपरवाही की शक्ल अख्त्यार कर गया है, जुहद सुस्ती और बेकारी के हम मानी बन गया हैं, अल्लाह की किफलात व ज़िम्मेदारी का मतलब लोगों के माल पर नज़र रखना समझ लिया गया है,*

*"❧_ मज़कूरा बाला गलत फहमियां इस्लाम की मज़बूत बुनियादों को खोखला कर देने वाली है लेकिन जो शख्स रसूलुल्लाह ﷺ के इरशादात, आप ﷺ की सीरत और आपके तवक्कुल और असबाब अख्त्यार करने के अमल मुबारक का मुताला करेगा, वो हकी़की़ तवक्कुल का मतलब समझ जाएगा,*

*"❧_ अल्लाह पर तवक्कुल करने में सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम और ताबईन के हालात में भी तवक्कुल की वो शान नज़र आती है जिसका सबक़ नबी करीम ﷺ के उस्वा ए हस्ना से मिलता है, कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हे सही तवक्कुल का इल्म नहीं और उन्होंने तवक्कुल और तवाकुल को आपस में खलत मलत कर दिया है, लेकिन हर दौर में उल्मा ए रब्बानी ने इनकी तसीही की है और असल हक़ीक़त को वाज़े किया है,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -180*
         
               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -81* _✸
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*❥➾ जनाब मूसा बिन मुकर्रम फ़रमाते हैं कि एक शख़्स ने हज़रत हसन बसरी रह. से पुछा:- ए अबू सईद! अगर मैं सुबह क़ुरान खोल कर शाम तक तिलावत ही करता रहुं तो मेरा ये अमल कैसा क़रार पायेगा?*
 *"❧_ हजरत हसन बसरी रह. ने फरमाया -सुबह के वक्त तिलावत कर लिया करो और कुछ देर शाम के वक्त क़ुरान पढ़ लिया करो, बाक़ी सारा दिन काम काज और अपना कारोबार किया करो,*

*"❧_ जनाब अबू क़लाला रह. फरमाते हैं:- बाज़ार जाया करो क्योंकि इसमे (करोबार करने से) लोगों से बेपरवाही है और दीन की सलाह भी है,*
*"❧_ जनाब बशर बिन हारिस रह. ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए फरमाया- प्यारे बेटे ! अपनी मां की खिदमत करो, मां की नाफरमानी हरगिज़ ना करना और बाज़ार को लाज़िम पकड़ो ( तिजारत और कारोबार ज़रूर करो ),*

*"❧_ इमाम अब्दुल्ला बिन मुबारक रह. से उनका ये इरशाद मनकू़ल है: अहलो अयाल की भलाई और परवरिश के लिए कोशिश और मेहनत करने से कोई चीज़ अफ़ज़ल और आला नहीं_,"*
*"❧_ इमाम सूफियान सूरी रह. फरमाते हैं - जब तुम अल्लाह की (निफ्ली) इबादत करने लगो तो पहले ये देख लो कि घर में ज़रूरत के मुताबिक गंदुम मौजूद है या नहीं, मौजूद हो तो इबादत कर लो वरना पहले गंदुम तलाश करो (कमा कर लाओ) फिर (निफ्ली) इबादत करो_,"*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनों! नबी करीम ﷺ और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के तवक्कुल का यही हाल था, रोज़ी कमाना आपकी सुन्नत थी, जो शख़्स आपके औसाफ अख्त्यार करना चाहे, उसे आपकी सुन्नत को लाज़िम पकड़ना चाहिए, खैरुन निसा वो मिसाली मुसलमान ख़ातून है जो अपने रब पर तवक्कुल करती है, दूसरे के माल पर नज़र नहीं रखती, अपने रब के ख़ज़ाने पर ऐतमाद करती है और दिगर मुसलमान औरतों के माल व दौलत की तमा नहीं करती, असबाबे ज़रुरत अख्त्यार करती है क्यूँकी वो जानती है कि उसके रब ने जो बीमारी भी नाजि़ल की है, उसकी दवा और इलाज भी मरहमत फरमाया है, खैरुन निसा को दोनो जहानों की कामयाबी मुबारक हो, वो दुनिया में अपने ख़ालिक़ पर ऐतमाद कर के रंज व गम से राहत पाती है और आखिरत में बेमिसाल नियामतों वाली जन्नत और रब्बुल आलमीन की ख़ुशनूदी से सरफ़राज़ होती है,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -182*
         
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -82* _✸
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*❥➾ अपने तमाम आमाल में अल्लाह के लिए मुखलिस :-*
*"❧_ खैरुन निसा अपने तमाम अक़वाल व अफ'आल और अपने रब के साथ तमाम मामलात में मुखलिस होने के अलावा अपने नफ्स और सब लोगों के साथ मुखलिस होती है, बेहतरीन औरत अपने तमाम आमाल व अफ'आल सिर्फ अल्लाह की रज़ा के हुसूल के लिए अंजाम देती हैं, इसलिए वो किसी दिखावे के लिए काम नहीं करती, मख़लूक में से किसी के साथ मुनाफक़त नहीं करती और अपने रब के सिवा किसी से नहीं डरती_,"*

*❧"_ मेरी मुसलमान बहनो! इखलास का मतलब किसी चीज़ का हर दूसरी चीज़ के मिलावट से पाक होना है, जिस तरह तुम कहते हो - मैंने दूध को पानी की मिलावट व आमेज़िश से पाक रखा, इखलास में सलामती और निजात का मफ़हूम भी शामिल है, इखलास में सच्चाई और तहारत के मा'नी भी शामिल है,*

*❧"_इस्लाम में इखलास का मतलब ये है कि अल्लाह ता'ला से तक़र्रुब के हुसूल के लिए हर उस ऐब और नुक्स का खात्मा करना जो तक़र्रुब में रुकावट होता है, लिहाज़ा अकी़दे में भी इखलास शर्त लाज़िम है, इसलिए क़ुरान करीम में एक सूरत सूरह इखलास के नाम से मौसूम है जिसमें अक़ीदे की असासी बातें बयान की गई है, अल्लाह ताला की इबादत के सिलसिले में यानी नमाज़ रोज़ा ज़कात और हज में भी इखलास होना ज़रूरी है, ये तमाम इबादात अल्लाह के कुर्ब के हुसूल और उसके अज़ाब से निजात पाने के जज़बे से अदा की जाएं,*

*❧"_लोगों के साथ इखलास ये है कि ख़रीद फ़रोख़्त, लेन देन और दीगर क़िस्म के मामलात में अल्लाह का ख़ौफ़ मल्हूज़ रखा जाए,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -184*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -83* _✸
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*❥➾ जज़्बा ए इखलास के चंद फजा़इल:-*
*"❧_ इखलास बंदे को हर सख्ती से निजात दिलाता है, उसे हर गम और दुख से बचाता है, उसकी उम्र रिज्क़ और अमल में बरकत का बाइस बनता है, अल्लाह ताला ने हर कामयाबी और फलाह इखलास से वाबस्ता रखी है ,*

*"❧_ जो शख्स महज़ अल्लाह के लिए खालिस अमल करता है, अल्लाह उसे अपनी मुहब्बत अता करता है, अल्लाह ताला सिर्फ वही आमाल कुबूल फरमाता है जो सिर्फ उसी के लिए खुलूस से किए गए हों और उसी की खुशनूदी के लिए किए गए हों,*

*"❧_ इंसान खुलूस की बदौलत वसवसों से बच जाता है, जा़हिद अबू सुलेमान दारानी कहते हैं - जब बंदा अपने आमाल अल्लाह के लिए खालिस कर लेता है तो बहुत से वसवसों और रियाकारी से निजात पा जाता है,*

*❧"_ इखलास की वजह से आदमी बुराई और बेहयाई से बचा लिया जाता है, मुखलिस के दिल से हिकमत व दानाई फूटती है जिसे वो अपनी जुबान से ज़ाहिर करता है, जब बंदा अपना अमल अल्लाह के लिए खालिस कर लेता है तो हिकमत के चश्मे उसके दिल से फूट कर उसकी जुबान पर जारी हो जाते हैं,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -187*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -84* _✸
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*❥➾_ अल्लाह ताला मुखलिस औरत की मदद फरमाता है और उसकी नेकियों में इज़ाफ़ा कर देता है और मुखलिस मुसलमान औरत वो है जो अपनी नेकियां छिपाती है जिस तरह अपनी बुराइयां छिपाती हैं,*

*"❧_ अपना अमल अल्लाह की रज़ा के हुसूल के लिए अंजाम दो लेकिन अमल के लिए पहला क़दम उठाने से पहले तुम्हें ये सोचना समझना चाहिए कि तुम अमल किस के लिए कर रही हो? और तुम्हें इस काम की तरगीब देने का सबब क्या है ?*

*"❧_ हाफिज इब्ने कसीर रह. फरमाते हैं कि अमल की कुबुलियत के दो रुक्न हैं, ज़रूरी है कि अमल अल्लाह के लिए खालिस हो और रसूलुल्लाह ﷺ की शरीयत के मुवाफिक़ हो,*

*"❧मुखलिस औरत अपनी नेकियां हमेशा पोशीदा रखती है, वो अपने नेक आमाल किसी को बताती नहीं क्यूँकी वो जानती है कि अल्लाह ताला उसके तमाम पोशीदा और ऐलानिया कामों से खूब वाक़िफ़ है,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -188*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -85* _✸
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*❥➾ हज़रत हसन बसरी रह. कहते हैं:- एक शख्स ने सारा क़ुरान मजीद सीख लिया लेकिन लोगों को खबर तक ना हुई, बेशक आदमी ने ज़बर्दस्त फ़िक़्हा हासिल कर ली मगर लोगों को इल्म ना हुआ और अल्लाह का एक बंदा अपने घर में तवील नमाज़ पढ़ता है, उसके पास मेहमान भी होते हैं मगर उनको बिलकुल पता नहीं चलता,*

*"❧_ मैंने ऐसे लोग देखे हैं कि रुए ज़मीन पर मौजूद जो अमल वो छिपा कर कर सकते हैं वो उसे उन्होंने ऐलानियां हरगिज़ नहीं किया,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनों! अपने आमाल अल्लाह के लिए खालिस कर लो, जब बात करो तो अल्लाह के लिए करो, कोई अमल करो तो अल्लाह के लिए करो, हर काम अल्लाह की रज़ा के लिए अंजाम दोगी तो अल्लाह के फ़ज़ल व करम से खैरुन निसा के मुका़म व मरतबे पर पहुंच जाओगी,*

*"❧_ हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वो तुम्हें उन खुश बख्त औरतों में शामिल फरमाये, अल्लाह ता'ला यक़ीनन हर चीज़ पर क़ादिर है,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -189*
        
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -86* _✸
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*❥➾ वाल्दैन से हुस्ने सुलूक करने वाली :-*

*"❧_ बेहतरीन औरत जानती है कि जन्नत का रास्ता वाल्दैन की फरमा बरदारी और उनके हुकूक की अदायगी से मिलता है, इसलिए वो उनकी जिंदगी में उनकी फरमा बरदार और उनकी मौत के बाद भी उनके साथ नेकी करने वाली होती है, उनकी जिंदगी में उनके आराम के लिए रातों को जागती है और उन्हें खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करती है अगरचे इसके लिए उसे मशक्कत बर्दाश्त करनी पड़े,*

*"❧_ उनकी वफात के बाद उनके लिए दुआ करती है, उन पर रहम खाती है, उनके लिए अल्लाह ताला से बख्शीश तलब करती है और अपने सजदों में दुआ करती है :-ऐ मेरे रब! इन दोनों पर रहम फरमा जिस तरह इन्होंने बचपन में मेरी तरबीयत व निगाहदाश्त की थी_,"*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! इस्लाम ने तुम पर वाल्दैन की इज्जत व तकरीम, उनके साथ शफक़त व रहमत और हुस्ने सुलूक फ़र्ज़ क़रार दिया है और फरमा बरदार के लिए अजरो सवाब का वादा किया गया है, वाल्दैन ख्वाह काफिर हों फिर भी उनके साथ हुस्ने सुलूक का हुक्म है, जिस आयत में भी अल्लाह ने ताला ने अपनी तोहीद का तज़किरा किया है, उसमे तोहीद के बाद वाल्दैन के साथ हुस्ने सुलूक का हुक्म दिया है क्योंकि अल्लाह के बाद यहीं दो हस्तियां है जो इस दुनिया में तेरे वजूद का सबब हैं,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -191*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -87* _✸
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*❥➾_वालिद ने तुम्हारी तालीम व तरबियत, परवरिश और तुम्हारी खुराक़ व पोशाक के लिए कितनी सख्तियां बर्दाश्त की, दिन रात काम किया, तुम्हें खुश व खुर्रम जिंदगी मुहैय्या करने के लिए सफर किए, उन्होंने रूखी सूखी खाई और मोटा झोटा पहना मगर तुम्हें बेहतीन गिज़ा और उम्दा लिबास मुहैय्या किया, उन्होंने हमेशा मेहनत मशक्कत की ज़िंदगी बसर की तुम्हारी ख़ातिर न जाने किस किस की कैसी कैसी कड़वी कसेली बाते सुनी और ना जाने कितनी राते तुम्हारे लिए जाग कर बसर की,*

*"❧_मगर उनके बर अक्स तुम्हारी ज़िंदगी मीठी नींद में सुहाने ख्वाब देखते और खेलते कूदते बसर हुई और तुम्हें वाल्दैन की तंगी तरशी का अहसास तक नहीं हुआ!*

*"❧_ और मां! तुम्हें क्या मालुम कि मां क्या हस्ती है? उसने तुम्हारे लिए बेमिसाल मशक्कत बर्दाश्त की, तुम्हें अपने पेट में रखा और हमल का बोझ उठाया, फिर तुम्हारी विलादत की तकलीफ़ सही,*

*❧"_ उसने सारी उम्र भूक, प्यास, तकलीफ और थकावत महसूस किए बगैर और तुम्हारी तरफ से किसी बदले और जज़ा के इंतजार के बगैर गुज़ारी, उसकी तुम्हारी मुखलिस ख़ादिमा बन कर जिंदगी गुज़ार दी,*

*"❧_ वो तुम्हारे लिए खाना पकाती थी, कपड़े धोती थी, तुम्हारी बीमारी में रातों को जागती थी, उसका सीना और गोद ही तुम्हारा बिस्तर और बिछौना होता था और उसका दिल तुम्हारे लिए रहमत व शफक़त का खज़ाना था,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -192*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -88* _✸
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*❥➾_ मेरी मुसलमान बहनो! अल्लाह तआला ने तुम्हे वाल्दैन के साथ अच्छा सुलुक करना और उनकी फरमा बरदारी का हुक्म दिया है, अल्लाह तला फरमाते है:-* 
*"_(तर्जुमा) और आपके रब ने फैसला कर दिया है कि तुम उसके सिवा किसी की इबादत ना करो और वाल्दैन से अच्छा सुलुक करो, अगर उन दोनों मे से कोई या दोनो तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जायें तो उफ्फ तक ना कहो, उन्हे हरगिज़ ना झिड़को, उनसे नरम लहजे मे निहायत अदब से बात करो, और उन्के सामने रहमदिली और आजिज़ी के साथ अपना पहलू झुकाये रखो और कहो ऐ मेरे रब! उन दोनों पर रहम फरमा जेसे उन्होंने बचपन मे मेरी परवरिश की_,"(बनी इसराइल - 23-23)* 

*"❧_ उम्मते मुसलिमा के जलीलुल क़द्र आलिम हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:- तीन आयात तीन अहकाम के साथ मुश्तरक बयान हुई है, उनमे से हर एक अपने हम रिश्ता हुक्म के साथ ही क़ुबूल होती है :-* 

*"❧_(1)_ अल्लाह ताला का इरशाद है - और अल्लाह की इता'त करो और अल्लाह के रसूल की इता'त करो, (अल माईदा- 92)* 
*"❧_ लिहाज़ा जो शख्स अल्लाह की इता'त करे और रसूलुल्लाह ﷺ की इता'त ना करे तो उसकी इता'त क़ुबूल नहीं होगी _,* 

*"❧_(2)_ नीज़ अल्लाह ताला का इरशाद है :- और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो _, (अल बकराह - 43)*
*"❧_ चूनांचे जो शख़्स नमाज़ क़ायम करे मगर ज़कात देने से इन्कार करे तो उसकी नमाज़ भी क़ुबूल नहीं होगी_,*

*"❧_(3)_ अल्लाह ता'ला ने मजी़द फ़रमाया - ये कि तू मेरा और अपने वाल्दैन का शुक्र कर (बिल आखिर तुझे) मेरी ही तरफ़ लौटना है_, (लुक़मान -14)* 
*"❧_ इसलिये जो शख्स अल्लाह का शुक्र बजा लाए मगर वाल्दैन का शुक्र गुज़ार ना बने तो उसकी शुक्र गुज़ारी क़ुबूल नहीं होगी_,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -193*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -89* _✸
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*❥➾ रसूलुल्लाह ﷺ ने यही तालीम दी है कि मुसलमान औरत अल्लाह की रज़ा हासिल करने की आरजुमन्द हो तो उसे अपने वाल्दैन की रज़ा हासिल करने की कोशिश करनी चाहिये,* 
*"❧_ हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया - रब की रज़ा वालिद की रज़ा में है और रब की नाराज़गी वालिद की नाराज़गी मे है _,"* 
*®_(जामी'आ तिर्मिज़ी - हदीस 1899, मुस्तदरक हाकिम - हदीस-7249)* 

*"❧_ इस सिलसिले में हमारे सल्फ सालेहीन ने भी हमारे लिए बहुत से पाकीज़ा अक़वाल छोड़े है जिनसे वालदैन के साथ हुस्ने सुलूक की फजी़लत मालूम होती है, चंद अक़वाल दर्जे ज़ेल हैं:-*
*"❧_ ताबइ मकहूल रह. कहते हैं - वाल्दैन से हुस्ने सुलूक कबीरा गुनाहों का कफ्फारा है और आदमी अपने क़बीले में रहते हुए हमेशा अपने बड़ों के साथ नेक सुलूक की कुदरत रखता है _,"* 

*"❧_ जनाब काब बिन अहबार रह. फरमाते है - जो शख्स अपने वाल्दैन का नाफरमान हो बेशक अल्लाह ता'ला उसकी हलाकत व बर्बादी को आजीलाना बना देता है ताकी उसे अज़ाब में जल्दी मुब्तिला कर दे, अल्लाह ताला वाल्दैन के फरमाबरदार की उम्र बढ़ा देता है ताकी उसे नेकी और खैर मे बढ़ा दे और वाल्दैन के साथ नेक सुलुक मे से उन पर बा वक़्त ज़रूरत खर्च कना भी शामिल है,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -194*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -90* _✸
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*❥➾ _ इमाम हसन बसरी रह. कहते हैं:- वाल्दैन की फरमा बरदारी ये है कि तुम उनका हर मारूफ हुक्म बजा लाओ जब तक कि वो अल्लाह की नाफरमानी ना हो, उनकी नाफरमानी ना करो, यानी उनसे ताल्लुक़ तोड़ो ना उनको अपनी खैर व भलाई से महरूम करो,*

*❧"_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक शख्स को दूसरे शख़्स के पीछे पीछे चलते देखा तो पुछा - ये कौन है ? आगे वाले ने कहा- ये मेरे वालिद है, तो हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया- वालिद को उसका नाम ले कर ना बुलाओ, उससे पहले नशिस्त पर मत बैठो और उसके आगे न चलो,*

*"❧_ जनाब वहब बिन मुनब्बा रह. कहते हैं - अल्लाह ता'ला ने मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ वही भेजी - ऐ मूसा! अपने वाल्दैन की इज्ज़त करो क्यूंकी मैं वाल्दैन की इज्ज़त करने वाले की उम्र बढ़ा देता हूं और उसे इज्ज़त करने वाला बेटा अता करता हूं और जो वाल्दैन का नाफ़रमान हो मै उसकी उम्र कम कर देता हूं और उसे नाफ़रमान बैटा देता हूं,*

*"❧_ मेरी मोमिना बहनो! हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक शख़्स को देखा, वो अपनी माँ को अपने कंधो पर बिठा कर तवाफ़ करा रहा था और पूछ रहा था: अम्मा जी! क्या ख़याल है, क्या मैंने आपका हक अदा कर दिया? इस पर हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - नहीं, अभी तो तेरे लिए उसके एक मर्तबा कराहने का हक़ भी अदा नहीं हुआ,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -165*

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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -91* _✸
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*❥➾ कहा जाता है कि एक बेटा बड़ा नेक था, वालिद का निहायत फरमाबरदार था और अपने वालिद की खुशनूदी हासिल करने के लिए बहुत मेहनत करता था, अपनी फरमाबरदारी नेक सुलूक और खिदमत की वजह से फख्र व गुरुर का शिकार हो गया, उसने तुरंग में आ कर अपने वालिद से कहा - अब्बा जान! आपने मेरे बचपन में यक़ीनन मेरी बड़ी खिदमत फरमाई है, अब मैं आपके साथ उससे काई गुना ज़्यादा बेहतर सुलूक करना चाहता हूं, अल्लाह की क़सम! आप जो चीज़ भी मांगेंगे वो आपको मुहय्या करूंगा, चाहे वो कितनी ही मुश्किल और कितनी ही दूर हो, मैं उसे बहर हाल आपकी खिदमत में हाजिर कर के दम लूंगा,*

*❧"_ उस नौजवान का वालिद एक दाना और तजुर्बाकार शख्स था, उसने अपने बेटे के जज़्बात को ठेस पहुंचाना मुनासिब ना समझा, उसने कहा - प्यारे बेटे! मुझे सिर्फ एक रतल सेब की चाह है, बेटे ने कई रतल सेब फौरन वालिद कि खिदमत में हाज़िर कर दिए और कहा- जब आप ये खा लेंगे तो मैं आपको इससे कई गुना ज़्यादा मुहय्या कर दूंगा, मैं आपकी तलब भरपुर तौर पर पूरी कर सकता हूं,*

*"❧_ बाप बोला- मेरी ज़रूरत के लिए बहुत हैं मगर मै छत पर जा कर खाऊंगा, तुम फिल वाक़े मेरे फरमाबरदार हो तो मुझे उठा कर छत पर छोड़ आओ, बेटे ने बाप का हुक्म माना और बाप को अपने कांधो पर सवार किया और छत पर ले गया, उसे एक आरामदह जगह पर बिठा दिया, सेब उसके सामने रख दिए और कहा - अब्बा जान! हस्बे ज़रुरत ले लें, मेरा दिल बड़ा खुश है,*

*"❧_ बाप ने प्लेट से सेब उठाया मगर खाने के बजाय छत से नीचे फैंक दिया, फिर सारे सेब इसी तरह एक कर के फैंक दिए और बेटे को हुक्म दिया कि नीचे जाओ और सारे सेब इकट्ठे कर के दोबारा छत पर ले आओ, बाप ने इसी तरह तीन बार सेब फैंके और बेटा उन्हें वापस ले आया, चोथी मरतबा बेटे के सब्र का पैमाना झलक उठा और चेहरा गुस्से के मारे लाल हो गया,*

*"❧_ बाप ने बेटे के चेहरे पर गुस्सा देखा तो मुस्कुराया, उसके कंधे पर थपकी दी और कहा - प्यारे बेटे! नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं, एक वक्त था कि जब तुम नन्हे से थे, इसी छत से बार बार गेंद फैंका करते थे और मैं लपक कर नीचे जाता था और तुम्हें गेंद वापस ला कर दिया करता था, मुझे हरगिज़ कोई गिरानी महसूस नहीं होती थी बल्कि मेरी खुशी का उथला प्याला तुम्हें खुश होता देख कर ही भर जाता था और मै देर तक मसरूर रहता था,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनो! मां बाप की खिदमत और खातिर में जब तक चाहो और जितना चाहो ज़ोर लगा लो, हक़ ये है कि तुम उनके हुक़ूक़ का दसवा हिस्सा भी अदा नहीं कर सकती, "खैरुन निसा" की सीरत का एक खूबसूरत पहलू ये है कि वो वाल्दैन की खुशी के लिए हर मुमकिन काम अंजाम देती है मगर इसके बावजूद वो उनके हुक़ूक़ की अदायगी में अपनी कोताही के अहसास से डरती रहती है, उसके इसी हुस्ने अमल से उसका रब उससे राज़ी हो जाएगा,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -199*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -92* _✸
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*❥➾ वफादार और अहद की पासदारी करने वाली:-*

*"❧_" खैरुन निसा "लोगों' में सबसे ज़्यादा अपने रब, अपने घर वालों, अपने खाविंद और तमाम अज़ीज़ व अक़ारिब के साथ वफ़ादार रहती है, मिसाली मुसलमान औरत अपने रब के साथ वफ़ा करती है, उसके फ़र्ज़ करदा आमाल अंजाम देती है और जिन कामों से अल्लाह ताला ने मना फरमाया है उनसे दूर रहती है,*

*"❧_ यूं वो हर मुमकिन इता'त कर के अल्लाह ताला का तकर्रूब हासिल करती है, अपने घर वालों की जिंदगी में उनकी खिदमत करती है और उनकी वफात के बाद उनके लिए दुआ कर के उनसे वफा का मुजा़हिरा करती है, अपने खाविंद की ज़िंदगी में उसे पाकीज़ा और महज़ब अल्फाज़ से मुखातिब करती है और उसकी वफ़ात के बाद उसके महासिन का तज़किरा कर के उससे अपनी वफ़ा का सबूत देती है,*

*"❧_ वो सब लोगों के साथ उनके दुख दर्द में शरीक़ होती है और अपने अहद की पासदार होती है, मेरी मोमिना बहनों! वफ़ा परहेज़गर मोमिन औरतों की सिफत होती है,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -201*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -93* _✸
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*❥➾ रसूलल्लाह ﷺ ने वफा की कितनी शानदार मिसाल का़यम फरमाई है - आपने अपने रब से अहद की खूब पासदारी की, मुशरिकीन ने आपको दावते हक़ तर्क करने के लिए जाह व मनसब, ऐश व इशरत और माल व दौलत की पेशकश की मगर आपने उस पेशकश को हिकारत से ठुकरा दिया और अपने रब से अहद के वफादार रहे यहां तक कि आप इसी हाल में अपने रब से जा मिले कि वो आपसे निहायत राज़ी और खुश था,*

*"❧_ नबी करीम ﷺ ने अपनी ज़ोजा मोहतरमा हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से अहद भी ख़ूब निभाया, ज़िंदगी भर उनको कोई तकलीफ़ नहीं पहुंचने दी, उनकी मौत के बाद भी अपना अहद पूरा किया, उन्हें कभी फरामोश नहीं किया, किसी मरहले पर किसी भी मसरूफियत में आपने उन्हें नहीं भुलाया, हमेशा अच्छे अल्फाज़ में याद फरमाते रहे,*

*"❧_ अक्सर औका़त उनकी तारीफ फरमाते थे, उनकी हसीन आदात और अच्छे दिनों को याद करते थे, उनके ईसार और अज़ीम किरदार को याद करते थे, एक दिन सैय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बशरी खास्से के तहत उनकी तरफ़ इशारा करते हुए कहा- वो तो बुढ़िया थीं, अल्लाह ताला ने आपको उनके बदले उनसे बेहतर बीवियां अता कर दी है,*

*"❧_ इस पर नबी करीम ﷺ ने हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की बात की तर्दीद की और हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के फ़ज़ाइल बयान फरमाये, (कि अल्लाह ने मुझे उनसे औलाद दी और वो दुशवारियों में मेरी गमख्वार और मददगार थी') _,"*

*"❧_हत्ताकि हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया- मुझे किसी औरत पर इस क़दर रश्क़ नहीं हुआ जितना हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से हुआ क्यूँकी नबी करीम ﷺ आपको बहुत याद फ़रमाते थे,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -202*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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                  ✸_ *क़िस्त -94* _✸
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*❥➾ "खैरुन निसा" ने वफा की आला मिसाले क़ायम की हैं, खुसूसन अपने शौहरों के साथ उनकी वफा बेनज़ीर है,*

*❧"_ जनाब असमई रह. फरमाते हैं - सुलेमान बिन अब्दुल मलिक और सुलेमान बिन मोहलिब बिन अबू सफराह दमिश्क के क़ब्रिस्तान से गुज़रे, उन्होंने देखा कि एक औरत एक क़ब्र पर बैठी रो रही है, तेज़ हवा चली, उसके चेहरे से बुर्का हट गया, बुर्का क्या था, बादल था जो सूरज जैसे चेहरे से छट गया था,*

*"❧_ हम दोनों को बड़ा ताज्जुब हुआ, हम उसे देखते ही रह गए, इब्ने मोहलिब ने कहा- ए अल्लाह की बंदी! क्या तुम अमीरुल मोमिनीन से शादी करोगी?*

*"❧_ उस ख़ातून ने उन दोनों की तरफ देखा, फिर बड़ी हसरत से क़ब्र की तरफ देखा और कहा- तुम दोनों मुझसे मेरी मुहब्बत और चाहत का हाल पुछते हो तो सुनो, वो तो इस क़ब्र में सो रहा है लेकिन मुझे उससे आज भी पहले की तरह हया आती है, हालांकी जब वो हयात था और मुझ पर सरसरी निगाह भी डालता थी तो मैं उससे शरमा जाती थी_,"*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -205*
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               *बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -95* _✸
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*❥➾_खैरुन निसा में से एक अज़ीम ख़ातून फ़ातिमा बिन्ते अब्दुल मलिक हैं, वो एक बादशाह की बेटी, एक हुक्मरान की बीवी और चार बादशाहों की बहन थी, सुहागरात वो अपने खाविंद के पास इस हाल में पहुंची के रुए ज़मीन के सबसे ज़्यादा क़ीमती सोने के ज़ेवरात और हीरे जवाहरात से लदी हुई थीं,*

*"❧_ जब उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. रुश्द व हिदायत की तरफ पलटे, उन्होंने अपने रब को याद किया और फानी दुनिया का ऐशो इशरत तर्क कर दिया और अपनी बीवी को अख्त्यार दे दिया कि वह अपने खाविंद और अपने ज़ेवरात व जवाहरात में से किसी एक को चुन ले, उस अज़ीम खातून ने अपने ख़ाविंद की चुन लिया और हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. ने अपनी बेगम के तमाम हीरे जवाहरात मुसलमानों के बैतुल माल में जमा करा दिए,*

*”❧_ जब हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. फौत हो गये तो उनकी बेवा फातिमा के पास कुछ घटिया सोच के लोग आए और उनके एक बड़े ने कहा -आपके हीरे जवाहरात बैतूलमाल में बदस्तूर हिफाज़त से मौजूद हैं आप वह ले लें और इस्तिफादा करें, हजरत फातिमा ने ये पेशकश हिका़रत से ठुकरा दी और वो अज़ीमुश्शान बात कही जिसे तारीख के औराक़ ने हमेशा के लिए महफूज़ कर लिया है,*

*"❧_ उन्होंने फरमाया- ये कभी नहीं हो सकता कि मैं अपने शोहर की जिंदगी में तो उनकी इता'त करती रही मगर अब उनके उठ जाने के बाद उनकी नाफरमानी शुरू कर दूं,* 
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -206*
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              *❀ मिसाली - औरत ❀*
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                  ✸_ *क़िस्त -96* _✸
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*❥➾_इमाम गजली रह. फरमाते हैं कि वफा के साथ चंद चीज़ें लाजमी हैं, उनमे से चंद ये हैं:- अल्लाह की रज़ा की खातिर वाल्दैन के साथ तुम्हारी वफा का तकाज़ा ये है कि तुम उनके तमाम दोस्त अहबाब और रिश्तेदारों का ख्याल रखो खुसुसन चाचाओं और खालाओं का,*

*❧"_ वफ़ा का तकाज़ा ये है कि इंसान आम लोगों के साथ भी अपनी तवाज़ो में फ़र्क न आने दे अगरचे ख़ुद उसकी शान व मुकाम बुलंद हो, वफ़ा के लवाज़िम में से ये भी है कि तुम अहबाब की जुदाई पर बेताब हो जाओ, वफ़ा का तका़जा़ ये है कि तुम किसी दोस्त के बारे में चुगली भी ना सुनो, वफ़ा निहायत का़बिले तारीफ खूबी और अज़ीम फ़ज़ीलत है,*

*"❧_ मेरी मुसलमान बहनों! मेरी दुआ है कि अल्लाह ताला तुम्हें अपनी बंदगी के मामलात, घर वालों के मामलात, खाविंद के साथ तुम्हारे सुलूक और तमाम लोगों के साथ मामलात में तुम्हें वफा का जौहर नसीब फरमाये ताकी तुम मिसाली खातून का एजाज़ हासिल कर लो,*

*"❧_ दुनिया के किसी मज़हब और किसी नज़रिए हयात ने औरत को वो अज़मत नहीं बख्शी जो इस्लाम ने अता फरमाई है, ये इस्लामी तालीमात ही का फैजा़न था कि मुसलामानो के माशरे में सैय्यदा खदीजा, सैय्यदा आयशा, सैय्यदा फातिमा, सैय्यदा हफ्सा, सैय्यदा उम्मे सुलेम, सैय्यदा उम्मे अम्मारा, उम्मे आसिम और सैय्यदा राबिया बसरी जैसी अज़मत माब खवातीन पैदा हुई और उनके साया ए अज़मत हसन व हुसैन, इब्ने उमर, इब्ने ज़ुबेर, अब्दुल्लाह बिन अब्बास, अब्दुल्लाह बिन अमरू बिन आस, सईद बिन जुबेर, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़, मुहम्मद बिन कासिम, उक़बा बिन नाफे और तारिक बिन ज़ियाद जैसे अज़ीम उलमा और मुजाहिद दीने इस्लाम तरबियत पाते रहे,*

 *"❧_ ज़माना क़यामत की चाल चल रहा है, अब तक की मालूमा तारीख में कुफ्र व शिर्क की ताक़त इतनी गुमराह कुन तहज़ीब और इस क़दर मोहलिक असलहा से कभी मुसला नहीं हुई जितनी आज है, ये बातिल ताक़ते शमा ए इस्लाम को बुझाने के दरपे हैं और मुस्लिम माशरे में फसाद फैलाती चली जा रही है, इन हालात में मुसलमान खवातीन का किरदार हमेशा से कहीं ज़्यादा अहमियत अख्त्यार कर गया है, यानी वो खुद इस्लामी तालीम का इल्मी पैकर बने और अपने बच्चो में भी इस्लाम की मुहब्बत व तड़प पैदा करें, जब तक हमारी मोहतरम ख़्वातीन अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की सच्ची बंदगी का नमूना व नुमाइंदा नहीं बनेंगी, हमारे यहां कोई मुहम्मद बिन क़ासिम और कोई सलाहुद्दीन अय्युबी पैदा नहीं होगा,*

*★_ अलहम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई_,*
 
     *®_Ref:- मिसाली औरत -207*
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