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✭﷽✭
        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

  *☞_ खाने पीने की इस्लामी तालीम -1_,*
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*✪_ फरमाया रहमते कायनात, फखरे मोजुदात, अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने कि:-*
*◈_ 1- खाने की बरकत है खाने से पहले और खाने के बाद वुजू करना (यानी हाथ धोना, कुल्ली करना)_,*
 *®__(तिर्मिज़ी शरीफ़),*
 
*✪⇨ खाने से पहले हाथ धो लीजिए, तहारत या नजा़फत का तकाज़ा है कि खाने में पढ़ने वाले हाथों की तरफ से तबीयत मुतमइन हो,*       

*◈2- बिस्मिल्लाह पढ़कर खाओ_," ®_(बुखारी, मुस्लिम शरीफ)*

*✪⇨ हदीस की दुआ:- “ बिस्मिल्लाही वा अला बरकतिल्लाह” पढ़कर खाना शुरू करें, और अगर भूल जाए तो याद आने पर “बिस्मिल्लाहि अव्वल्हु वा अख़िरहु” कह लीजिए, याद रखें जिस खाने पर खुदा का नाम नहीं लिया जाता उसे शैतान अपने लिए जायज़ कर लेता है,*

*◈ 3- दायें हाथ से खाओ_," ® (बुखारी शरीफ)*

*◈ 4- हमेशा सीधे हाथ से खाओ, जरूरत पड़ने पर बाएं हाथ से भी मदद ले सकते हैं,*
*◈ 5- अपने सामने से खाओ (यानी बरतन के चारो तरफ हाथ न मारो, अपनी तरफ से खाओ)_,"*
*®_ (तिर्मिज़ी, बुखारी शरीफ)* 

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*✪_ 6- बाएं हाथ से हरगिज़ ना खाएं, न पिएं क्यूंकी बाएं हाथ से शैतान खाता पीता है_," ® (मुस्लिम शरीफ)*

*◈ 7- जो शख्स किसी बरतन में खाना खाए फिर उसे साफ करें तो उसके लिए बरतन इस्तगफार करता है_," ® इब्ने माजा,*
      
*◈ 8- जब तुम्हारे हाथ से लुकमा गिर जाए तो (तिनका वगेरा) लग जाए तो उसको हटाकर लुकमा खा लो और शैतान के लिए मत छोड़ो, जब खाने से फारिग हो जाओ तो हाथ धोने से पहले अपनी उन्लियां चाट लो, तुम्हें मालूम नहीं खाने के कौनसे हिस्से में बरकत हे_," ® (मुस्लिम शरीफ)*

*◈ 9- बर्तन के दरमियान से ना खाओ बल्कि किनारों से खाओ क्यूंकी दरमियान में बरकत नाजिल होती हे_," ® (तिर्मिज़ी शरीफ़)*

*◈10- प्लेट में अपनी तरफ के किनारे से खाएं, दूसरे की तरफ से ना खाए_,"*

*✪_11- आपस में एक साथ मिल कर खाया करो और अल्लाह का नाम लेकर खाओ क्यूंकि इसमे तुम्हारे लिए बरकत हे, *®_(अबू दाऊद शरीफ)*

*◈12- जब खाना खाने लगो तो जूते उतार दो, इससे तुम्हारे क़दमों को आराम मिलेगा, (दार्मी)*

*◈13- पानी को ऊंट की तरह एक सांस में मत पियो बल्की 2-3 सांस में पियो,*

*◈14- और जब पीने लगो तो "बिस्मिल्लाह" कहो और जब पीकर मुंह से बरतन हटाओ तो "अल्हम्दुलिल्लाह" कहो, ® (तिर्मिज़ी शरीफ)*

*◈15- दस्तर ख्वान उठाने से पहले न उठो,*
*◈16- अगर किसी दूसरे शख्स के साथ खाना खा रहे हो तो जब तक वो खाता रहे, अपना हाथ न रोको अगरचे पेट भर चुका हो ताकी उसे शर्मिंदगी ना हो, अगर खाना छोड़ना भी हो तो उज्र कर दो,*
 *® (इब्ने माजा)*

*✪_17- मश्कीज़े में मूँह लगाकार मत पियो, ®(बुखारी शरीफ)*
*⇨ लोटा, घड़ा, सुराही, बोतल वगेरा को मुंह लगा कर पीना भी इसी मुमानत में दाखिल हे, और आजकल के मशरूबात (पेप्सी या शरबत वगेरा) भी इसी मुमानत में दाखिल है, ग्लास में डाल कर पियें,*

*◈18- बर्तन में ना सांस लो, ना फूंक मारो,® (तिर्मिज़ी शरीफ)*
*"_- खाने पीने की चीज़ पर फूंक ना मारो, अंदर से आने वाला साँस गंदा और ज़हरीला होता है,*

*◈19- खड़े होकर मत पियो, ®(तिर्मिज़ी शरीफ)*
 *◈ 20- बर्तन में फटी टूटी जगह मुंह ना लगा कर पियो,® अबू दाऊद,*

*◈ 21- जलता उबलता खाना जिससे हाथ मुंह जले और ज़बान जले, उसके खाने से मना फरमाया है और फरमाया है कि ऐसे खाने को थोड़ी देर ढाँक कर रख दिया जाए, जब उसकी वो हरारत खत्म हो जाए तब उसे खाने का इरादा करें,*
*→आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया, ऐसा करना बरकत का बहुत बड़ा ज़रिया है और ये बात सही है, इसका तजुर्बा होता रहता है,* 
   
*✪_ 22- खाने के लिए टेक लगाकार न बेठे, खाकसारी के साथ उकडू बेठें या दो जानूं होकर बेठे या एक घुटना बिछाकर और एक खड़ा करके बेठे, (बुखारी शरीफ,)*

*◈24- हमारे प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम टेक लगाकर नहीं खाते थे, (बुखारी शरीफ),*

*◈ 25- तीन उंगलियों से खाएं और ज़रुरत हो तो छुंगली छोड़कर चार उंगलियों से काम लें और उंगलियां जड़ों तक सानने से परहेज़ करे,*

*◈ 26- निवाला न ज़्यादा बड़ा लें और न ज़्यादा छोटा और एक निवाला निगलने के बाद ही दूसरा निवाला लें,*

*◈ 27- रोटी से हरगिज़ उंगलियां साफ न करें ये बड़ी बे अदबी और रिज़्क की तोहीन है,*
*◈ 28- रोटियों को झाड़ने और फटकारने से भी परहेज़ करें,*

*◈ 29- खाने में भी ऐब न निकालें, पसंद हो तो खाएं, पसंद न हो तो छोड़ दें, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने कभी किसी खाने में ऐब नहीं लगाया, दिल को भाया तो खा लिया, पसंद न आया तो छोड़ दिया, ®( बुखारी शरीफ),*

*◈30- खाने के दरमियान ठाठा मारने और बहुत ज़्यादा बात करने से परहेज़ करे,* 

*✪_ 31- बिला ज़रूरत खाने को ना सूंघे, ये बूरी आदत है, खाने के दरमियान बार बार इस तरह मुंह ना खोले कि चबता हुआ खाना नज़र आए और न बार बार मुंह में उंगली डाल कर दांतो में से कुछ निकालें, इससे दस्तरख्वान पर बेठने वालों को घिन आती है,*

*◈ 32- खाना भी बेठकर खाए और पानी भी बेठकर पिये, अलबत्ता अगर ज़रूरत पड़ने पर फल वगेरा खड़े होकर खा सकते हैं और जरूरत पड़ने पर पानी भी पी सकते हैं,*

*◈ 33- प्लेट में जो कुछ रह जाए अगर शोरबा है तो पी लो, वरना उंगली से चाटकर प्लेट साफ कर लें,*

*◈ 34- पानी 3 सास में ठहर ठहर कर पियें, इससे पानी भी जरूरत के मुताबिक़ पिया जाता है और आसूदगी भी हो जाती है और एक बारगी पूरे बरतन का पानी पेट में उड़ेलने से कभी कभी तकलीफ भी हो जाती है,*

*◈35- फल वगेरा खा रहे हों तो एक साथ 2-2 अदद या 2-2 काशे न उठायें,*

*✪_ 36- लोटे की टोटी या सुराही या इसी तरह की दूसरी चीजों से पानी ना पियें, ऐसे बर्तन में पानी लेकर पियें जिसमें पीते वक्त पानी नजर आए ताकी कोई गंदगी या मुजिर चीज़ पेट में ना जाए,*

*◈37- खाने से फारिग होकार ये दुआ पड़े, -“अल्हम्दुलिल्ला हिल्लज़ी अतमना वा सकाना वा जा अलना मुस्लिमीन,”*
*→तर्जुमा - हमदो सना उस खुदा के लिए जिसने हमें खिलाया और जिसने हमें पिलाया और जिसने हमें मुसलमान बनाया,”® (अबू दाऊद शरीफ)*

*◈ 38- जिसकी दावत की गई और उसने कुबूल ना की तो उसने अल्लाह तआला की और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की नफरमानी की, ® (अबू दाऊद शरीफ)*

*◈ 39- और जो शख्स बगेर दावत के (खाने के लिए) दाखिल हो गया वो चोर बनकर अंदर गया और लुटेरा बनकर निकला, ® (अबू दाऊद शरीफ)*

           *📓 मदनी माशरा -35,*
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 ✭﷽✭
        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

    *☞_मजलिस की इस्लामी तालीम-_,*
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*✪__फरमाया मुअल्लिमे इंसानियत सरवरे कायनात ﷺ ने कि :-*
*✪"_(1)_ मजलिसें अमानत है यानि मजलिस में जो बात सुनें उनका दूसरी जगह नक़ल करना अमानतदारी के ख़िलाफ़ है और गुनाह है _," (अबू दाउद - 4868)*

*✪"_(2)_ किसी को उसकी जगह से उठा कर खुद ना बेठ जाओ, और बेठने वालों को चाहिए कि आने वालों को जगह देने के लिए मजलिस कुशादा कर लें _," (बुखारी- 6270)*

*✪"_(3)_ जब मजलिस में तीन आदमी यूं तो एक को छोड़ कर आहिस्ता से दो आपस में बातें ना करें क्यूंकि इससे तीसरे को रंज होगा_," (बुखारी - 6288)*
*"_किसी ऐसी जुबान में बात करना जिसको तीसरा आदमी नहीं जानता वो भी इसी हुक्म में है_,"*

*✪"_(4)_ किसी शख्स के लिए हलाल नहीं कि दो शख्सों के दरमियान बगेर उनकी इजाज़त के बेठ जाएं _," (तिर्मिज़ी- 2752)*

*✪"_(5)_मजलिस में सब लोग मुतफ़र्रिक न बेठें बल्की मिल मिल कर बेठें_," (अबू दाउद- 4823)*

*✪_(6)_ जब कोई मुसलमान भाई तुम्हारे पास आए तो जगह होने के बावजूद उसके इकराम के लिए ज़रा सा खिसक जाओ _, (बहीकी़)*

*"◈_(7)_ हर चीज़ का सरदार होता है और मजलिसों की सरदार वो मजलिस है जिसमें क़िब्ला रु हो कर बैठा जाए _," (तबरानी)*

*"◈_(8)_ जब कोई शख़्स किसी का सलाम लाए तो यूं जवाब दो:- "_ वा अलैका वा अलैहिस्सलाम“ (अबू दाऊद)*

*"◈_ (9)_ मरीज़ की अयादत की तकमील ये है कि उसकी पेशानी पर हाथ रख दिया जाए, और तुम्हारे आपस के सलाम की तकमील ये है कि मुसाफा कर लिया जाए, ( तिर्मिज़ी )*

*"◈_ (10)- जब दो मुसलमान मुलाक़ात के वक्त़ आपस में मुसाफा करें तो जुदा होने से पहले उनकी बख़्शीश कर दी जाती है _," ( तिर्मिज़ी )*  

           *📓 मदनी माशरा -36,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞_छींक और जमाई के वक़्त इस्लामी तालीम_,*
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*✪"_फ़रमाया मुअल्लिमे अख़लाक़ ﷺ ने कि:-*
*"_(1)_ जब तुममें से किसी को छींक आए तो चाहिए कि "अल्हम्दुलिल्लाह" कहे, और जवाब में उसका साथी "या-रहम'कल्लाह" कहे और छींकने वाला "याह-दी‌ कुमुल्लाह व युस्लिहु बा लकुम” कहे_, (बुखारी -6224)*

*✪"_(2)_ हमारे प्यारे रसूल ﷺ को जब छींक आती थी तो हाथ या कपड़े से चेहरा मुबारक ढ़ांक लेते थे और छींक की आवाज़ बुलंद न होने देते थे_," (तिर्मिज़ी -2745)*

*✪"_(3)_ और फ़रमाया हुज़ूर अकरम ﷺ ने कि जब तुमको जमाई आए तो मूँह पर हाथ रख कर रोक लो क्योंकि जमाई के सबब मुंह खुल जाने से शैतान दाख़िल हो जाता है _," (अबू दाऊद- 5026)*

*✪"_(4)_ और एक हदीस में है क जमाई आए तो "हा" की आवाज़ न निकलो, इससे शैतान हंसता है _," (अबू दाउद -6233)* 

           *📓 मदनी माशरा -37,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞__औरतों और लड़कियों के लिए मखसूस इस्लामी तालीम :-*
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*✪_ (1)_ मर्दों से अलहैदा हो कर चले,*
*✪"_(2)_ रास्ते के दरमियान से न गुज़रे बल्की किनारों पर चलें_,"*
*✪"_(3)_ चाँदी के ज़ेवर से काम चलाना बेहतर है,*
*✪"_(4)_ जो औरत शान (बड़ाई) ज़ाहिर करने के लिए सोने का ज़ेवर पेहनेगी तो अज़ाब होगा _," (अबू दाऊद -4238)*

*✪"_(5)_ औरत को अपने हाथ में मेहंदी लगाते रहना चाहिए _," (अबू दाऊद)*
*✪"_(6)_फरमाया रसूलुल्लाह ﷺ ने कि औरत की खुश्बू ऐसी हो जिसका रंग ज़ाहिर हो और खुश्बू ना आए (यानी बहुत मामूली खुश्बू हो)_, (तिर्मिज़ी -2786)*

*✪"_(7)_ बारीक कपड़े ना पहने, अगर दुपट्टा बारीक हो तो उसके नीचे मोटा कपड़ा लगा लें _," (अबू दाऊद -4116)*
*✪"_(8)_बजने वाला ज़ेवर ना पहने_," (अबू दाउद)*
*✪"_(9)_ जो औरतें मर्दो की शक्ल व सूरत अख्त्यार करें उन पर अल्लाह की लानत है, (अबू दाऊद -4097)*

           *📓 मदनी माशरा -38,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞_इस्तिन्जे के मुतल्लिक़ इस्लामी आदाब :*
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*✪_ फरमाया खातिमुन नबिययीन ﷺ ने कि:-*
*"✪_(1)_ जब पाखाना जाओ तो पेशाब के मुक़ाम को दाहिने हाथ से न छुओ, और इस्तिंजा दाहिने हाथ से साफ न करो _," (तिर्मिज़ी -15)*
*"✪_(2)_ बड़ा इस्तिंजा तीन पत्थरों (या तीन ढेलों) से करो, इसके बाद पानी से धोओ_," (अबू दाऊद)*

*"✪_(3)_ जब पाखाना जाओ तो क़िब्ला रुख हो कर और क़िब्ला की तरफ को पुश्त कर के ना बेठो_," (बुखारी -144)*
*"✪_(4)_ जब पेशाब करने का इरादा करो तो उसके लिए (मुनासिब) जगह तलाश कर लो_" (अबू दाऊद)*
*"_ मसलन पर्दे का ध्यान करो और हवा के रुख पर ना बेठो,*

*"✪_(5)_ ठहरे हुए पानी में जो जारी ना हो पेशाब ना करो _," (बुखारी -238)*
*"_जेसे तालाब, हौज़ वगेरह_,"*
*✪"_(6)_ गुसलखाने में पेशाब न करो क्योंकि अक्सर वसवसे इससे पैदा होते हैं _," (अबू दाऊद -27)*

*✪"_(7)_किसी सुराख में पेशाब न करो_," (अबू दाऊद -29)*
*✪"_(8)_पाखाना करते हुए आपस में बातें न करो_," (मुसनद अहमद)*

*✪_ (9)_ पानी के घाटो पर, रास्ते में, साया की जगहों में ( जहां लोग उठते बैठते हों) पाखाना ना करो _," ( अबु दाऊद -26)*
*✪"_(10)_ बिस्मिल्लाह कह कर पाखाने में दाखिल हो, क्योंकि बिस्मिल्लाह जिन्नात की आंखों और इंसानों की शर्म की जगहों के दरमियान आड़ है _," (तिर्मिज़ी)*
*✪"_(11)_लीद और हड्डियों से इस्तिंजा न करो_," (तिर्मिज़ी -18)*

*✪"_(12)_ नदी, नहर के घाट पर, आम रास्तों पर और साया दार मुक़ामात पर कजा़ ए हाजत के लिए न बेठो, इससे दूसरों लोगों को तकलीफ भी होती है और अदब व तहज़ीब के भी खिलाफ है,*

*✪"_(13)_ जब पाखाना जाना हो तो जूता पहन कर और सर को टोपी वगेरा से ढांक कर जाएं और जाते वक़्त ये दुआ पढ़िए :-*
 *"_अल्लाहुम्मा इन्नी आउजु़बिका मिनल खुबुसी वल खबाईस_," (बुखारी -142, व मुस्लिम)*
*"_(तर्जुमा) खुदाया तेरी पनाह चाहता हूं शैतानो से, उन शैतानों से भी जो मुजक्कर है और उनसे भी जो मोन्निस है_,"*

*✪"_(14)_ और जब पाखाने से बाहर आएं तो ये दुआ पढ़िए:-*.
*"_अलहम्दु लिल्लाहिल लज़ी अज़हबा अननिल अज़ा वा अफानी_," (इब्ने माजा -301)*
*"_(तर्जुमा) खुदा का शुक्र है जिसने मुझसे तकलीफ दूर फरमाई है और मुझे आफियात बख्शी_,"*

           *📓 मदनी माशरा -38,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

  *☞__मुतफ़र्रिक इस्लामी आदाब :*
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*✪_ (1)_ अकड़ अकड़ कर इतराते हुए न चलो, (कुरान शरीफ, बनी इस्राइल -37)*
*"✪_(2)_ कोई मर्द औरतों के दरमियान ना चले, (अबू दाऊद - 5273)*
*"✪_(3)_ बीच में एक दिन छोड़ कर कंघा किया करो यानि रोज़ाना कंघे का शगल पसंद नहीं फरमाया, ( तिर्मिज़ी -1756)*

*"✪_ (4)_ अल्लाह तआला को सफाई सुथराई पसंद है लिहाज़ा अपने घरों से बाहर जो जगह खाली पड़ी है उनको साफ रखा करो, (तिर्मिज़ी -2799)*
*"✪_(5)_ उस घर में (रहमत के) फरिश्ते दाखिल नहीं होते जिसमें कुत्ता (या जानदार की तस्वीर) हो, (बुखारी - 5960)*

*"✪_(6)_ जब किसी का दरवाज़ा खटखटाओ और अंदर से पूछे कौन है तो ये ना कहो के मैं हूं बल्की अपना नाम बता दो, (बुखारी -6250)*
*✪"_(7)_छुप कर किसी की बात ना सुनो, (मुस्लिम -2536)*
*✪"_(8)_ जब किसी को खत लिखो तो शुरू में अपना नाम लिख दो, (अबू दाऊद -5134)*

*"✪_ (9)_ जब किसी के घर जाओ तो पहले इजाज़त ले लो फिर अंदर जाओ_, (बुखारी -6246)*
*"✪_(10)_और इजाज़त से पहले अंदर नज़र भी ना डालो_," (बुखारी -6241)*
*"✪_(11)_तीन बार इजाज़त मांगो, अगर इजाज़त ना मिले तो वापस हो जाओ_," (बुखारी - 6245)*
*"✪_(12)_ और इजाज़त लेते वक्त़ दरवाज़े के सामने खड़े ना हों बल्की दाएं बाएं खड़े हो जाओ _," (अबू दाऊद -5174)*

*"✪_(13)_ अपनी वालिदा के पास जाना हो तो भी इजाज़त ले कर जाओ _," (मालिक)*
*✪"_(14)_किसी की चीज़ मज़ाक़ में ले कर ना चल दो_," (अबू दाऊद -5003)*

*✪"_(15)_नंगी तलवार (जो नियाम से बाहर हो) दूसरे शख्स के हाथ में ना दो_," (अबू दाऊद-2588)*
*"_इसी तरह चाकू छुरी वगेरा खुली हुई किसी को ना पकड़ाओ, अगर ऐसा करना पड़े तो उसके हाथ में दस्ता दो,*
*✪"_(16)_ ज़माने को बुरा मत कहो क्यूँकी उसका उलट फैर अल्लाह ही के कब्ज़े में है_, (मुस्लिम - 5862)*
*✪"_(17)_ हवा को बुरा मत कहो_," (अबू दाऊद - 5097)*
 *✪"_(18)_ बुखार को बुरा कहना मना है _," (इब्ने माजा)*

*✪_ (19)_ जब छोटे बच्चे की ज़ुबान चलने लगे तो उसे पहले "ला इलाहा इल्लल्लाह" कहलवाओ_," (हिस्ने हसीन)*
*"✪_(20)_ और सात साल का हो जाए तो नमाज़ सिखाओ और नमाज़ पढ़ने का हुक्म दो और जब औलाद दस साल की हो जाए तो उनको नमाज़ ना पढने पर मारो और उनके बिस्तर अलग अलग कर दो_,"( तिर्मिज़ी -407)*

*"✪_(21)_ जब शाम का वक्त हो जाए तो अपने बच्चों को (बाहर निकलने से) रोक लो क्यूंकि उस वक्त शयातीन फैल होते हैं _,"*
*"✪_(22)_ और रात को अल्लाह का नाम ले कर दरवाज़ा बंद कर दो क्योंकि शैतान बंद दरवाज़े को नहीं खोलता और मशकीजो़ को तस्मों से बांध दो,*
*✪"_(23)_ और अल्लाह का नाम ले कर अपने बरतनो ढांक दो, अगर ढ़ांकने को कुछ भी ना मिले तो कम से कम बरतन के ऊपर एक लकड़ी ही रख दो_," (बुखारी -5250)*

*✪"_ (24)_ एक रिवायत में बर्तनों के ढ़कने और मश्कीज़ो को तस्मा लगाने की वजह ये इरशाद फरमाई है कि साल भर में एक रात ऐसी है जिसमे वबा नाज़िल होती है, (यानी उमूमी मर्ज़, ताऊन वगेरा) ये वबा ऐसे बरतन पर गुज़रती है जिस पर ढक्कन ना हो या ऐसे मशकीज़े पर जो तस्मे से बंधा हुआ ना हो तो उस वबा का कुछ हिस्सा जरूर उस बरतन और मशकीज़े में नाज़िल हो जाता है _," (मुस्लिम -5255)*

*✪"_(25)_ जब रात को लोगों का चलना फिरना बंद हो जाए (यानी रास्ता और गली कूचो में आमद व रफत बंद हो जाए) तो ऐसे वक्त में बाहर कम निकलो, अल्लाह जल शानहू इंसानों के अलावा अपनी दूसरी मख़लूक में से जिसे चाहते हैं छोड़ देते हैं, (यानी शयातीन को घूमने की आज़ादी दे दी जाती है) जिस वजह से वो फैल जाते हैं _," (मुसनद अहमद, मुस्तदरक हाकिम- 1584)*
 *✪"_(26)_किसी का हदिया हक़ीर ना जानो_,"* 

           *📓 मदनी माशरा -41,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞_ औलाद की परवरिश इस तरह कीजिए,*
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*✪_(1)- औलाद को खुदा का इनान समझिए :-*

*✪⇨ औलाद को खुदा का इनाम समझिए, उनकी पैदाईश पर खुशियां, एक दूसरे को मुबारक बाद दीजिए, खैरो बरकत की दुआओं के साथ इस्तक़बाल किजिये और खुदा का शुक्र अदा कीजिए कि उसने आपको अपने एक बंदे की परवरिश की तौफीक़ बख्शी और मौक़ा फराहम फरमाया कि आप अपने पीछे अपने दीन व दुनिया का जांनशीन छोड़ जाएं _,"*

*✪_(2)-औलाद न हो तो खुदा से दुआ कीजिए:-*

*✪"_औलाद न हो तो खुदा से सालेह औलाद के लिए दुआ कीजिए, जिस तरह खुदा के बरगुजी़दा पैगंबर हजरत ज़कारिया अलैहिस्सलाम ने सालेह औलाद की दुआ फरमाई:-*
*"_ (तर्जुमा) मेरे रब! तू अपने पास से मुझे पाक बाज़ औलाद अता फरमा, बेशक तू दुआ का सुनने वाला है_," ( सूरह आले इमरान -34)*

 *✪⇨ औलाद के लिए सिर्फ खुदा ही से दुआएं मांगें, बाज़ लोग शिर्क में मुब्तिला हो जाते हैं और गैरुल्लाह के दरो की ठोकरें खाते फिरते हैं, ये बहुत बड़ी ज़हालत है,*

*✪_3- औलाद की पैदाईश को बोझ न समझो:-*
*⇨औलाद की पैदाइश पर कभी दिल तंग ना हो, मा'शी तंगी या सहत की खराबी या किसी और वजह से औलाद की पैदाइश पर कुढ़ने या उसे अपने हक़ में एक मुसीबत समझने से सख्त परहेज़ कीजिए,*

*✪_4- औलाद को कभी जा़या ना किजिये:-*
*⇨ औलाद को ज़ाया करना भयानक ज़ुल्म है, पैदा होने से पहले या पैदा होने के बाद औलाद को ज़ाया करना बदतरीन संगदिली, भयानक ज़ुल्म, इंतेहाई बुज़दिली और दोनो जहाँ की तबाही है,*

*✪"_ अल्लाह तआला का इरशाद है:- (तर्जुमा)_ वो लोग इंतेहाई घाटे में हैं जिन्होंने अपनी औलाद को ना समझी में अपनी हिमाकत से मौत के घाट उतार दिया_," (अल अनआम -140)*

*✪"_ (तर्जुमा) और अपनी औलाद को फ़क़रो फ़ाक़े के खोफ़ से क़त्ल न करो, हम उनको भी रिज़्क़ देंगे और हम ही तुम्हें भी रिज़्क़ दे रहे हैं, हक़ीक़त ये है कि औलाद का क़त्ल करना बहुत बड़ा गुनाह है _,"*

*✪"_ एक बार एक सहबी ने दरियाफ्त किया- या रसूलल्लाह ﷺ सबसे बड़ा गुनाह क्या है? फरमाया - शिर्क, पूछा- उसके बाद? फरमाया- तुम अपनी औलाद को इस डर से मार डालो कि वो तुम्हारे साथ खाएगी _," (बुखारी- 6001)*

*✪_ (5) - विलादत वाली औरत के पास अल्लाह का कलाम पढकर दम कीजिये:-*
*⇨ ऐसे वक्त में फिजूल और शिरकिया कामों से बचें और आयतुल कुर्सी, सूरह आराफ की 2 आयतें (55-56), सूरह फलक़ और सूरह नास पढकर दम कीजिये,*

*✪_ ( 6) - नव मोलूद (नवजाद) के दांये कान में अज़ान या बांये कान में अक़ामत कहिये:-*
*✪"_ विलादत के बाद नहला धुला कर दांये कान में अज़ान और बांये कान में अक़ामत कहिए, जब हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की विलादत हुई तो नबी करीम ﷺ ने उनके कान में अज़ान और अक़ामत फरमाई _," (तबरानी)*

*✪"_ और नबी करीम ﷺ ने ये भी फरमाया कि जिसके यहां बच्चे की विलादत हो और वो बच्चे के दांये कान में अज़ान और बांये कान में अका़मत कहे तो बच्चा "उम्मुल सिबियान" की तकलीफ से महफूज़ रहेगा_ ," (अबू याला, इब्ने सुन्नी)*

*✪"_ पैदा होते हुए बच्चे के कान में खुदा और रसूल का नाम पहुंचाने में बड़ी हिकमत है, अल्लामा इब्ने क़य्यिम रह. अपनी किताब "तोहफा अल वदूद" में फरमाते हैं- इसका मतलब यह है कि इंसान के कान में सबसे पहले अल्लाह ताला की अज़मत और किबरिया की आवाज़ पहुँचे और जिस शहादत को वो शऊरी तौर पर अदा करने के बाद इस्लाम में दाख़िल होगा उसकी तलक़ीन पैदाइश के दिन ही से की जाए,*

*✪"_ अज़ान और अक़ामत का दूसरा फ़ायदा ये भी है कि शैतान जो घात में होता है और चाहता है कि पैदा होते ही इंसान को आज़माइश में मुब्तिला कर दे, अज़ान सुनते ही भाग जाता है और शैतान की दावत से पहले बच्चे को इस्लाम और इबादत ए इलाही की दावत दे दी जाती है _,"* 

*✪_( 7)- नव-मोलूद के लिए किसी मर्दे सालेह से तहनीक करवाए:-*
*⇨ तहनीक कहते हैं खजूर वगेरा को चबाकर खूब नरम करके बच्चों के तालु में लगाने को, अज़ान व अक़ामत के बाद किसी नेक मर्द या औरत से खजूर चबवा कर बच्चे के तालु में लगवाएं और बच्चे के लिए खैरो बरकत की दुआ करवाएं_,"*

*✪"_ हज़रत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं अब्दुल्लाह बिन ज़ुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु जब पैदा हुए तो मैंने उनको नबी करीम ﷺ कि गोद में दिया, आप ﷺ ने खुर्मा मंगवाया और चबा कर लुआब मुबारक अब्दुल्लाह बिन ज़ुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु के मुंह में लगा दिया, और खुरमा उनके तालु में मला और खैरो बरकत की दुआ फरमाई _," (मुस्लिम -5616)*

*✪"_ हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि नबी करीम ﷺ के यहाँ बच्चे लाये जाते थे, आप ﷺ उनकी तहनीक फरमाते और उनके हक़ में खैरो बरकत की दुआ करते_," (मुस्लिम - 5619)*

*✪ _(8)-बच्चे के लिए बेहतर नाम तजवीज़ करें:-*
*⇨बच्चे के लिए अच्छा सा नाम तजवीज़ कीजिये जो या तो पैगंबरो के नाम पर हो या खुदा के नाम से पहले अब्द लगा कर तर्कीब दिया गया हो, जेसे अब्दुल्लाह, अब्दुर्रहमान वगेरा, नबी करीम ﷺ का इरशाद है, क़यामत के रोज़ तुम्हें अपने नामो से पुकारा जाएगा, इसलिए बेहतर नाम रखा करो_," (अबू दाउद,- 4948)*

*✪"_ और नबी करीम ﷺ का ये भी इरशाद है कि खुदा को तुम्हारे नामो में से अब्दुल्लाह और अब्दुर्रहमान सबसे ज़्यादा पसंद है और आप ﷺ ने ये भी फरमाया कि अंबिया के नामों पर नाम रखो_, (मुस्लिम - 5597- 5598) और (मुस्लिम 5587) में है कि आप ﷺ ने फरमाया - मेरे नाम पर नाम रखो, मेरी कुन्नियत पर मत रखो_,"*

 *✪_(9)-बच्चे का गलत नाम रखा हे तो बदल कर अच्छा नाम रखिये:-*
*⇨अगर कभी ला इल्मी में गलत नाम रख दिया हो तो उसको बदल कर अच्छा नाम रख दीजिए, नबी करीम ﷺ गलत नाम को बदल दिया करते थे, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की एक साहबजा़दी का नाम आसिया था, आप ﷺ ने बदल कर जमीला रख दिया _," (अबू दाउद - 4952)*

*✪_(10)_ बच्चे का अकीक़ा कीजिये और मुंडे हुए बालों के बराबर सोना या चाँदी खैरात कीजिये:-*
*✪"_ सातवे दिन अकीक़ा कीजिये, लड़के की तरफ से दो बकरे और लड़की की तरफ से एक बकरा कीजिए, लेकिन लड़के की तरफ से दो बकरे करना ज़रूरी नहीं है, एक बकरा भी कर सकते हैं, और बच्चे के बाल मुंडवा कर उसके बराबर सोना या चाँदी खैरात कीजिए,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है- सातवे रोज़ बच्चे का नाम तजवीज़ किया जाए और उसके बाल उतरवा कर उसकी तरफ से अकीक़ा किया जाए _," (तिर्मिज़ी)*

*✪"_ सातवें दिन खतना भी करा दीजिए, लेकिन किसी वजह से ना कराएं तो सात साल के अंदर अंदर जरूर कराएं, खतना इस्लामी श'आर है,*

*✪"_(11)_बच्चा जब बोलने लगे तो सबसे पहले कलमा सिखाइए :-*
*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- जब तुम्हारी औलाद बोलने लगे तो उसको "ला इलाहा इल्लल्लाह" सिखा दो, और जब दूध के दांत गिर जाएं तो नमाज़ का हुक्म दो_," (इब्ने सुन्नी)* 

*✪__(12)_ मां बच्चों को अपना दूध भी पिलाएं:-*
*"_ मां पर बच्चे का हक़ है, क़ुरान ने औलाद को मां का यही अहसान याद दिला कर मां के साथ गैर मामूली हुस्ने सुलूक की ताकीद की है, मां का फर्ज़ ये है कि बच्चे को अपने दूध के एक एक क़तरे के साथ तोहीद का दर्स, रसूलल्लाह ﷺ का इश्क़ और दीन की मुहब्बत भी पिलाए और इस मेहनत को उसके क़ल्ब व रूह में बसाने की कोशिश करे*

*✪"_ परवरिश की ज़िम्मेदारी बाप पर डाल कर अपना बोझ हल्का न कीजिए बल्की इस खुश गवार दीनी फरीज़े को अंजाम दे कर रूहानी सुकून और सरवर महसूस कीजिये,*

*✪"_(13)_ बच्चों को डराने से परहेज़ कीजिए:-*
*✪"_ बच्चों को डराने से परहेज़ कीजिए, इब्तिदाई उमर का ये डर सारी ज़िंदगी ज़हन व दिमाग पर छाया रहता है और ऐसे बच्चे बिल उमूम ज़िंदगी में कोई बड़ा कारनामा अंजाम देने के लायक़ नहीं रहते,*

*✪"_ औलाद को बात बात पर डांटने और बुरा भला कहने से सख्ती के साथ परहेज़ कीजिये और उनकी कोताहियों पर बेजा़र होने और नफरत का इज़हार करने के बजाए हिकमत व सोज़ के साथ उनकी तरबियत करने की मुहब्बत आमेज़ कोशिश कीजिये, और अपने तर्ज़े अमल से बच्चों के ज़हन पर ये खौफ बहरहाल गालिब रखिए कि उनकी कोई खिलाफे शरा बात आप हरगिज़ बर्दाश्त ना करेंगे _,"*

*✪_(14)_ औलाद के साथ हमेशा नरमी का बर्ताव कीजिये:-*
*"✪_ औलाद के साथ हमेशा शफ़क़त, मुहब्बत, नरमी का बर्ताव कीजिये और हस्बे ज़रुरत व हैसियत उनकी ज़रुरियात पूरी कर के उनको ख़ुश रखने और इता'त व फरमाबरदारी के जज़्बात उभारिये,*

*✪"_ एक बार हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने अहनफ़ बिन क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा- कहिए औलाद के सिलसिले में क्या सुलूक होना चाहिए? अहनफ बिन क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - अमीरुल मोमिनीन! औलाद हमारे क़ुलूब का समरा है, कमर की टेक है, हमारी हैसियत उनके लिए ज़मीन की तरह है जो निहायत नरम और बेज़रर है और हमारा वजूद उनके लिए साया फगुन आसमान की तरह है और हम उन्हीं के ज़रीये बड़े बड़े काम अंजाम देने की हिम्मत करते हैं _,"*

*✪"_ पस अगर वो आपसे कुछ मुतालबा करें तो उनको खूब दीजिए और अगर कभी गिराफ्ता दिल हों तो उनके दिलों का गम दूर कीजिए, नतीजे में वो आपसे मुहब्बत करेंगे, आपकी पदराना कोशिशों को पसंद करेंगे और कभी उन पर ना का़बिल बर्दाश्त बोझ ना बने कि वो आपकी जिंदगी से उकता जाएं और आपकी मौत के ख्वाहां हों, आपके करीब आने से नफरत करें*

*✪"_ हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ये हकीमाना बातें सुनकर बहुत मुतास्सिर हुए और फरमाया - अहनफ! खुदा की क़सम जिस वक्त़ आप मेरे पास आकर बेठे, मैं यज़ीद के खिलाफ गुस्से में भरा बेठा था, फिर जब हजरत अहनफ तशरीफ ले गए तो हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु का गुस्सा ठंडा हो गया, और यज़ीद से राज़ी हो गए और उसी वक़्त यज़ीद को दो दिरहम और दो सो जोड़ भिजवाये, यज़ीद के पास जब यह तोहफे पहुंचे तो यज़ीद ने यह तोहफे दो बराबर हिस्सों में तक़सीम कर के सौ दिरहम और सौ जोड़ें हज़रत अहनफ रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में भिजवा दिए,*

*✪_ (15)_ छोटे बच्चों से प्यार कीजिए:-*
*✪"_ छोटे बच्चों पर शफक़त का हाथ फैरिए, बच्चों को गोद में लीजिए, प्यार कीजिए और उनके साथ खुश तबई का सुलूक किजिए, हर वक्त तुंद खू और सख्तगीर हाकिम न बने रहिए, इस तर्ज़ अमल से बच्चों के दिल में वाल्देन के लिए मुहब्बत का जज़्बा भी पैदा नहीं होता, उनके अंदर खुद ऐतमादी भी पैदा नहीं होती और उनकी फितरी नशो नुमा पर भी खुशगवार असर नहीं पड़ता,*

*✪"_ एक मर्तबा इक़रा बिन हाबिस रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम ﷺ के पास आए, हुज़ूर ﷺ उस वक़्त हज़रत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को प्यार कर रहे थे, इक़रा रज़ियल्लाहु अन्हु को देख कर ताज्जुब हुआ और बोले या रसूलल्लाह ﷺ आप भी बच्चों को प्यार करते है, मेरे तो दस बच्चे हैं लेकिन मैंने तो कभी किसी को भी प्यार नहीं किया,*

 *✪"_ नबी करीम ﷺ ने इक़रा रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ़ निगाह उठाई और फरमाया:- अगर खुदा ने तुम्हारे दिल से रहमत व शफ़क़त को निकाल दिया है तो मैं क्या कर सकता हूँ_," (बुखारी-5997)*

*✪__(16)_ औलाद को पाकीज़ा तालीम व तरबियत से मुज़य्यन कीजिये:-*
*✪"_ औलाद को पाकीज़ा तालीम व तरबियत से आरास्ता करने के लिए अपनी कोशिश वक्फ़ कर दीजिए और इस राह में बड़ी से बड़ी कुर्बानी से भी दरेग ना कीजिए, ये आपकी दीनी ज़िम्मेदारी भी है, औलाद के साथ अहसान भी और अपनी जा़त के साथ सबसे बड़ी भलाई भी,*

*✪"_क़ुरआन में है :- (तरजुमा सूरह तहरीम-6) _ मोमिनो ! बचाओ अपने आपको और अपने घर वालों को जहन्नम की आग से_,"*
*✪"_ और जहन्नम की आग से बचने का वाहिद रास्ता ये है कि आदमी दीन के ज़रूरी इल्म से वाक़िफ हो और उसकी जिंदगी खुदा और रसूल ﷺ की इता'त व फर्माबरदारी में गुज़र रही हो,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- बाप अपनी औलाद को जो कुछ दे सकता है उसमें सबसे बेहतर अतिया औलाद की अच्छी तालीम व तरबियत है _," (तिर्मिज़ी -1952)*

*✪"_ और आप ﷺ ने ये भी फरमाया कि जब इंसान मर जाता है तो उसका अमल खत्म हो जाता है मगर तीन क़िस्म के आमाल ऐसे हैं कि उनका अजरो सवाब मरने के बाद भी मिलता रहता है, एक ये कि सदका़ जारिया कर जाए, दूसरे ये कि वो ऐसा इल्म छोड़ जाए जिससे लोग फयदा उठायें, तीसरे सालेह औलाद जो बाप के लिए दुआ करती रहे _," (इब्ने माजा)*

*✪_(17)_बच्चो को सात साल का होने पर नमाज़ सिखाएं:-*
*"✪_ बच्चे जब सात साल के हो जाएं तो उनको नमाज़ पढ़ने की तलक़ीन करें और अपने साथ मस्जिद ले जा कर शोक़ पैदा करें और जब वो दस साल के हो जाएं और नमाज़ में कोताही करें तो उन्हें मुनासिब सज़ा भी दीजिए और अपने कौ़ल अमल से उन पर वाज़े कर दीजिए कि नमाज़ की कोताही को आप बर्दाश्त ना करेंगे, बहुत ज़्यादा ना मारें बल्कि मारने में गरमी नरमी दोनों होनी चाहिए,*

*✪"_(18)_ दस साला बच्चों के बिस्तर अलग अलग कर दीजिए:-*
*✪"_बच्चे जब दस साल के हो जाएं तो उनके बिस्तर अलग कर दीजिए और हर एक को अलग अलग चारपाई पर सुलाइये,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - अपनी औलाद को नमाज़ पढ़ने की तलक़ीन करो जब वो सात साल के हो जाएं और नमाज़ के लिए उनको सज़ा दो जब वो दस साल के हो जाएं और इस उम्र को पहुंचने के बाद उनके बिस्तर अलग कर दो_," (अबू दाउद - 490)*

*✪_ (19) - हमेशा बच्चों की तहारत, नजा़फत का ख्याल रखिए:-*
*"⇨ बच्चों को हमेशा साफ सुथरा रखिये, उनकी तहारत, नज़ाफत और गुस्ल वगेरा का ख्याल रखिए, कपड़े भी पाक साफ रखिये, अलबत्ता ज़्यादा बनाव सिंघार और नमूद व नुमाइश से परहेज़ कीजिये,*
*"⇨लड़की के कपड़े भी निहायत सादा रखिये और तड़क भड़क वाले लिबास पहना कर बच्चों के मिज़ाज खराब न कीजिये,*

*✪_ (20)- दूसरों के सामने बच्चो के ऐब बयान न कीजिये:-*
*⇨दूसरो के सामने बच्चों के ऐब न बयान कीजिये और किसी के सामने उनको शर्मिंदा करने और उनकी इज़्ज़ते नफ्स को ठेस पहुंचाने से भी ताक़त के साथ परहेज़ कीजिये,*

*✪_ (21) - बच्चों के सामने बच्चों की इस्लाह से मायूसी का इज़हार ना कीजिये:-*
*⇨ बच्चों के सामने कभी बच्चो की इस्लाह से मायूसी का इज़हार न कीजिये उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए उनकी मामूली अच्छाईयों की भी दिल खोल कर तारीफ कीजिए, हमेशा उनका दिल बढ़ाने और उन में खुद ऐतमादी और हौसला पैदा करने की कोशिश कीजिये ताकि ये कारे गाहे हयात में ऊंचे से ऊंचा मका़म हासिल कर सके,* 

*✪_(22) - बच्चों को दीनी किस्से या क़ुरान खुश अलहानी से पढ़ कर सुनाते रहे:-*
*⇨ बच्चों को नबियों के किस्से, सालेहीन की कहानियां, और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के मुजाहिदाना कारनामे ज़रूर सुनाते रहें,*

*"✪_ तरबियत व तहज़ीब किरदार साज़ी और दीन से शगफ के लिए इसको इंतेहाई ज़रूरी समझिए और बिज्ज़ार मसरुफियतों के बावजूद इसके लिए वक्त़ निकाले, अक्सर व बेश्तर उनको कुरान पाक भी खुश इल्हानी से पढ़ कर सुनाएं और मोका़ बा मोका़ नबी करीम ﷺ की पुर असर बातें भी बताएं और इब्तिदाई उमर ही से उनके दिलों में इश्क़े रसूल ﷺ की तड़प पैदा करने की कोशिश करें,*

*✪_(23)-गरीबों को सदका खैरात अपने बच्चों के हाथो से भी दिलवाइए:-*
*⇨कभी कभी बच्चों के हाथ से ग़रीबों को कुछ खाना या पैसे वगेरा भी दिलवाइए ताकी उनमे गरीबों के साथ सुलूक और सखावत व खैरात का जज़्बा पैदा हो, और कभी कभी ये मोक़ा भी फराहम किजीये कि खाने पीन की चीज़ें बहन भाईयों में खुद ही तक़सीम करें ताकि एक दूसरे के हुकूक का अहसास और इंसाफ की आदत पैदा हो,*

*✪_(24)-बच्चों की बेजा ज़िद पूरी न करें:-*
*⇨बच्चों की बेजा ज़िद पूरी न कीजिए बल्की हिकमत के साथ उनकी ये आदत छुड़ाने की कोशिश करो, कभी कभी मुनासिब सख्ती भी कीजिए, बेजा लाड़ प्यार से उनको ज़िद्दी या खुदसर न बनाएं,*

*✪_(25)_ चीखने चिल्लाने से खुद भी परहेज़ किजिये और बच्चो को भी ताकीद किजिये:-*
*"✪_ तेज़ आवाज़ से बोलने और गला फाड़ कर चीखने चिल्लाने से खुद भी परहेज़ किजिये और उनको भी ताकीद किजिए कि दरमियानी आवाज़ में नरमी के साथ गुफ्तगू करें और आपस में भी एक दूसरे पर चीखने चिल्लाने से सख्ती के साथ बचें ,"*

*✪"_(26)_ बच्चों को अपने हाथ से काम करने की आदत डालिए:-*
*✪"_बच्चो को आदत डालिए कि अपना काम खुद अपने हाथ से करें, उन्हें आलसी, सुस्त और काहिल न बनाएं, बच्चों को जफाकश, मेहनती और मज़बूत कोश बनाएं_,"*

*✪"_(27)_ बच्चों में आपस में लड़ाई होने पर अपने बच्चों की बेजा हिमायत न कीजिए:-*
*✪"_ बच्चो में आपस में लड़ाई हो जाए तो अपने बच्चों की बेजा हिमायत न कीजिये, ये ख्याल रखिये कि अपने बच्चों के लिए आपके सीने में जो जज़्बात है वही जज़्बात दूसरों के सीने में अपने बच्चों के लिए हैं, आप हमेशा अपने बच्चों के कुसूरो पर निगाह रखिए और हर पेश आने वाली ना खुशगवार वाक़िए में अपने बच्चों की कोताही और गलती की खोज लगा कर हिकमत और मुसलसल तवज्जो से उसे दूर करने की पुर सोज़ कोशिश कीजिए,* 

*✪_(28)_ औलाद के साथ हमेशा बराबरी का सुलूक कीजिये:-*
*✪"_ औलाद के साथ हमेशा बराबरी का सुलूक कीजिये और इस मामले में बे ऐतदाली से बचने की पूरी कोशिश कीजिये,*
*✪"_ अगर तब'अन किसी एक बच्चे की तरफ ज़्यादा झुकाव हो तो माजू़री है लेकिन सुलूक व बरताव और लेन देन में हमेशा इंसाफ और मुसावात का लिहाज़ रखिये और कभी किसी के साथ ऐसा इम्तियाजी़ सुलूक ना कीजिये जिसको दूसरे बच्चे महसूस करें*

*✪"_इससे दूसरे बच्चो में अहसासे कमतरी, नफरत, मायूसी और आखिरकार बगावत पैदा होगी और ये बूरे जज़्बात फितरी सलाहियत के परवान चढ़ाने में और अख़लाक़ी और रूहानी तरक़्क़ी के लिए ज़बरदस्त रुकावट है,*

*"✪_(29)_ बच्चों के सामने हमेशा अच्छा अमली नमूना पेश करें:-*
 *✪"_ बच्चों के सामने हमेशा अच्छा अमली नमूना पेश करें, आपकी जिंदगी बच्चों के लिए एक हम वक्त़ ए मुअल्लिम है जिससे बच्चे हर वक्त पढ़ते हैं और सीखते रहते हैं, बच्चों के सामने कभी मज़ाक में भी झूठ ना बोलिए,* 
    
*✪_ (30)_लड़की पैदा होने पर भी खुशी मनाईए:-*
*✪"_ लड़के की तरह लड़की की पैदाईश पर भी उसी तरह खुशी मनाईए जिस तरह लड़कों की पैदाईश पर मनाते हैं, लड़की हो या लड़की दोनो ही खुदा का अतिया है और खुदा ही बेहतर जानता है कि आपके हक़ में लड़की अच्छी है या लड़का, लड़की की पैदाईश पर नाक भो चढ़ाना और दिल शिकस्ता होना इता'त श'आर मोमिन के लिए किसी तरह जे़बा नहीं देता, ये नाशुक्री भी है और खुदा ए अलीम व करीम की तोहीन भी,*

*✪"_ हदीस में है- किसी के यहां लड़की पैदा होती है तो खुदा उसके यहां फरिश्ते भेजता है जो आकर कहते हैं- ए घर वालों ! तुम पर सलामती हो, वो लड़की को अपने परों के साऐ में ले लेते हैं और उसके सर पर हाथ फैरते हुए कहते हैं:-*
*"_ ये कमज़ोर जान है जो एक कमज़ोर जान से पैदा हुई है, जो इस बच्ची की निगरानी और परवरिश करेगा क़यामत तक ख़ुदा की मदद उसके शामिले हाल रहेगी_, (तबरानी)*

*✪"_(31)_ लड़कियों की तरबियत व परवरिश इंतेहाई खुशदिली से कीजिये:-*
*"_लड़कियों की तरबियत व परवरिश खुशदिली, रूहानी मसर्रत और दीनी एहसास के साथ कीजिये और इसके सिले में खुदा से बहिश्ते बरी की आरज़ू कीजिए_,"*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - जिस शख्स ने तीन लडकियों या तीन बहनों की सरपरस्ती की, उन्हें तालीम व तहज़ीब सिखाई और उनके साथ रहम का सुलूक किया, यहां तक ​​कि खुदा उनको बेनियाज़ कर दे, तो ऐसे शख्स के लिए खुदा ने जन्नत वाजिब फरमा दी, इस पर एक शख्स बोला, अगर दो ही हों तो, नबी करीम ﷺ ने फरमाया - दो लड़कियों की परवरिश का भी यही सिला है, हजरत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि आगर लोग एक के बारे में पूछते तो आप ﷺ एक की परवरिश पर भी यही बशारत देते _," (तिर्मिज़ी - 1916)*

*✪_(32)_ लडके लड़कियों के दरमियान यकसां मुहब्बत का इज़हार कीजिये:-*
*"✪_ लड़की को हक़ीर ना जाने, न लड़के को उस पर किसी मामले में तरजीह दीजिए, दोनो के साथ यकसां सुलूक कीजिए, नबी करीम ﷺ का इरशाद है - वो जिसके यहाँ लड़की पैदा हुई और उसने जाहिलियत के तरीक़े पर उसे ज़िंदा दफ़न नहीं किया और ना उसे हक़ीर जाना और ना लड़के को उसके मुक़ाबले में तर्जीह दी और ज़्यादा समझा तो ऐसे आदमी को ख़ुदा जन्नत में दाख़िल करेगा _,"(अबू दाउद - 5146)*

*"✪_(33)_ जायदाद में लड़की का मुकर्ररह हिस्सा पूरी खुश दिली से दीजिए:-*
*✪"_ जायदाद में लड़की का मुक़र्ररह हिस्सा पूरी ख़ुश दिली और अहतमाम के साथ दीजिये, ये ख़ुदा का फ़र्ज़ करदा हिस्सा है, इसमें कमी बेशी करने का किसी को अख़्त्यार नहीं, लड़की का हिस्सा देने में हीले करना या अपनी सवाब दीद के मुताबीक कुछ दे दिला कर मुत्मइन हो जाना इता'त श'आर मोमिन का काम नहीं है, ऐसा करना खयानत भी है और खुदा के दीन की तोहीन भी_*

*✪"_ इन तमाम (33) अमली तदबीरों के साथ साथ निहायत सोज़ और दिल की लगन के साथ औलाद के हक़ में दुआ भी करते रहें, खुदा ए रहमान व रहीम से तवाक्को़ है कि वो वालदेन के दिल की गहराइयों से निकली हुई पुर सोज़ दुआएं ज़ाया न फरमायेगा_,"* 

           *📓 मदनी माशरा -68,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞_अज़्दवाजी ज़िंदगी इस तरह गुज़ारिए,*
          ▪•═════••════•▪
*✪_इस्लाम जिस आला तहज़ीब व तमद्दुन का दाई है वो उसी वक़्त वजूद में आ सकता है जब हम एक पाकीज़ा मा'शरा तामीर करने में कामयाब हों और पाकीज़ा मा'शरे की तामीर के लिए ज़रूरी है कि आप खानदानी निज़ाम को ज़्यादा से ज़्यादा मज़बूत और कामयाब बनाएं'*

*✪"_ खानदानी जिंदगी का आगाज़ शोहर और बीवी के पाकीज़ा अज़्दवाजी ताल्लुक़ से होता है और इस ताल्लुक़ की खुशगवारी और मज़बूती उसी वक्त मुमकिन है जब शोहर और बीवी दोनों ही अज़्दवाजी जिंदगी के आदाब व फराइज़ से बखूबी वाकिफ होंगे और उन आदाब व फ़राइज़ को बजा लाने के लिए दिलसोज़ी, खुलूस और यकसूई के साथ कोशिश भी करते हों,*

*✪"_(1)_ बीवी के हुक़ूक़ कुशादा दिली से अदा कीजिए:-*
*"बीवी के साथ अच्छे सुलूक की ज़िंदगी गुज़ारें, उसके हुक़ूक़ कुशादा दिली के साथ अदा कीजिये और हर मामले में अहसान और ईसार का तरीक़ा अख्तियार कीजिए, अल्लाह ता'ला का इरशाद है- "और उनके साथ भले तरीक़े से ज़िंदगी गुजारें_," और नबी करीम ﷺ ने हज्जतुल विदा के मोके़ पर हिदायत फरमाई,*

*✪"_लोगों सुनों ! औरतों के साथ अच्छे सुलूक से पेश आओ, क्योंकि वो तुम्हारे पास कैदीयों की तरह हैं, तुम्हें उनके साथ सख्ती का बर्ताव करने का कोई हक़ नहीं, सिवाय उस सूरत में कि जब उनकी तरफ से कोई खुली हुई नाफरमानी सामने आए, अगर वो ऐसा कर बेठें तो फिर ख्वाबगाहों में उनसे अलहैदा रहो और उन्हें मारो तो ऐसा न मारना कि कोई शदीद चोट आए, और फिर जब वो तुम्हारे कहने पर चलने लगे तो उनको ख्वाह मख्वाह सताने के बहाने ना ढूंढो,*

*✪"_ देखो सुनो! तुम्हारे कुछ हुकूक तुम्हारी बिवियों पर है और तुम्हारी बिवियों के कुछ हुकूक तुम्हारे ऊपर हैं, उन पर तुम्हारे हुकूक ये हैं कि वो तुम्हारे बिस्तरों को उन लोगों से ना रुंदवाएं जिनको तुम नापसंद करते हो और तुम्हारे घरों में ऐसे लोगों को हरगिज़ न घुसने दे जिनका आना तुम्हें नागवार हो और सुनो उनका तुम पर ये हक़ है कि तुम उन्हें अच्छा खिलाओ और अच्छा पहनाओ,*

*✪_(2)_ जहां तक ​​हो सके बीवी से खुश गुमान रहिए:-*
*"_ जहां तक ​​हो सके बीवी से खुश गुमान रहे और उसके साथ निबाह करने में तहम्मुल, बुर्दबारी और आला ज़रफी का तरीक़ा अख्त्यार कीजिये, अगर उसमे शकल सूरत या आदात व अखलाक़ या सलीका़ और हुनर ​​के ऐतबार से कोई कमज़ोरी भी हो तो सब्र के साथ उसको बर्दाश्त कीजिए और उसकी खूबियों पर निगाह रखते हुए फय्याजी़, दरगुज़र, ईसार और मसलिहत से काम लीजिये,*

*✪"_ अल्लाह ताला का इरशाद है- "और मसालिहत खैर ही खैर है," और मोमिन को हिदायत की गई है - "फिर अगर वो तुम्हें (किसी वजह से) नपसंद हो तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसंद ना हो, मगर खुदा ने उसमें तुम्हारे लिए बहुत कुछ भलाई रख दी हो _," (सूरह अन निसा -19)*

*"✪_ इसी मफहूम को नबी करीम ﷺ ने एक हदीस में यूं वाज़े फरमाया है- कोई मोमिन अपनी मोमिना बीवी से नफ़रत न करे, अगर बीवी की कोई आदत उसे नापसंद है तो हो सकता है कि दूसरी ख़सलत उसको पसंद आ जाए_ " (मुस्लिम - 3645)*

*✪"_ हक़ीक़त ये है कि हर ख़ातून में किसी ना किसी पहलू से कोई कमज़ोरी ज़रूर होगी और अगर शोहर किसी ऐब को देखते ही उसकी तरफ़ से निगाहे फेर ले और दिल बुरा कर ले तो फिर किसी ख़ानदान में घरेलु ख़ुशगवारी मिल ही ना सकेगी। हिकमत का तरीक़ा यही है कि आदमी दरगुज़र से काम ले और खुदा पर भरोसा रखते हुए औरत के साथ खुश दिली से निबाह करने की कोशिश करे, हो सकता है कि खुदा उस औरत के वास्ते से मर्द को कुछ ऐसी भलाइयों से नवाजे़ जिन तक मर्द की कोताहे नज़र न पहुंच रही हो,*

*✪"_ मसलन औरत में दीन व ईमान और सीरत व अख़लाक़ की कुछ ऐसी ख़ूबियाँ हो जिनकी वजह से पूरे ख़ानदान के लिए रहमत साबित हो, या उसकी ज़ात से कोई ऐसी नेक औलाद वजूद में आ जाए जो एक आलम को फ़ायदा पहुंचाने और रहती ज़िंदगी तक के लिए बाप के हक़ में सदक़ा ज़ारिया बने और उसे जन्नत से क़रीब करने में मददगार साबित हो या फ़िर उसकी क़िस्मत से दुनिया में ख़ुदा मर्द को कुशादा रोज़ी और ख़ुश हाली से नवाज़े,*

*✪"_ बहरहाल औरत के किसी जा़हिरी ऐब को देख कर सब्र के साथ अज़्दवाजी ताल्लुक़ को बरबाद न कीजिए बल्की हकीमाना तर्ज़ अमल से धीरे-धीरे घर की फिज़ा को ज़्यादा से ज़्यादा खुशगवार बनाने की कोशिश कीजिये,*

*✪_(3)_ बीवी के साथ अफु व करम का तरीक़ा अख्त्यार कीजिये:-*
*✪"_ बीवी के साथ अफु व करम का तरीक़ा अख्त्यार कीजिये और बीवी की कोताहियों, नादानियों और सरकशियों से चश्म पोशी कीजिये, औरत अक़ल व समझदारी के ऐतबार से कमज़ोर और निहायत ही जज़्बाती होती है, इसलिये सब्र व सुकून, रहमत व शफक़त और दिल सोजी़ के साथ उसको सुधारने की कोशिश कीजिये और सब्र व ज़ब्त से काम लेते हुए निबाह कीजिए _,*

*✪"_ अल्लाह ताला का इरशाद है - "_मोमिनो ! तुम्हारी बाज़ बीवियां और बाज़ औलाद तुम्हारे दुश्मन हैं, सो उनसे बचते रहो और अगर तुम अफु व करम, दरगुज़र और चश्म पोशी से काम लो तो यक़ीन रखों कि खुदा बहुत ही ज़्यादा रहम करने वाला है _," (सूरह तगाबुन - 14)*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - औरतों के साथ अच्छा सुलूक करो, औरत पसली से पैदा की गई है और पसलीयों में सबसे ज़्यादा ऊपर का हिस्सा टेढ़ा है, उसको सीधा करोगे तो टूट जाएगी और अगर उसे छोड़े रहो तो टेढ़ी ही रहेगी, पस औरतों के साथ अच्छा सुलूक करो _," (बुखारी व मुस्लिम)* 

*✪_(4)_ बीवी के साथ खुश अख़लाक़ी का बरताव करें:-*
*"✪_ बीवी के साथ खुश अख़लाक़ी का बरताव कीजिये और प्यार व मुहब्बत से पेश आइये, नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- कामिल ईमान वाले मोमिन वो हैं जो अपने अख़लाक़ में सबसे अच्छे हों और तुममे सबसे अच्छे लोग वो हैं जो अपनी बिवियों के हक़ में सबसे अच्छे हैं _," (इबने माजा - 1977)*

*"✪_ अपनी ख़ुश अख़लाक़ी और नरम मिज़ाजी को जांचने का असली मैदान घरेलु ज़िंदगी है, घर वालों ही से हर वक़्त का वास्ता रहता है और घर की बेतकल्लुफ़ ज़िंदगी में ही मिज़ाज और अख़लाक़ का हर रुख सामने आता है, और ये हक़ीक़त है कि वोही मोमिन अपने ईमान में कामिल है जो घर वालों के साथ खुश अखलाकी़, खंदा पेशानी और मेहरबानी का बरताव रखे, घर वालों की दिलजोई करे और प्यार व मुहब्बत से पेश आए,*

*✪"_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि मैं नबी करीम ﷺ के यहां गुडियों से खेलती थी और मेरी सहेलियां भी मेरे साथ खेलतीं, जब नबी करीम ﷺ तशरीफ लाते तो सब इधर उधर चुप जातीं, आप तमाम को ढूंढ ढूंढ कर एक एक को मेरे पास भेजते ताकी मेरे साथ खेलें, (मुस्लिम -6287)* 
        
*✪_(5)_ पूरी फराख दिली के साथ रफीका़ ए हयात की ज़रूरियात फराहम कीजिये:-*
*"_पूरी फराख दिली के साथ रफीका़ ए हयात की जरुरियात फराहम कीजिये और खर्च में भी तंगी न कीजिए,*

*"✪_ अपनी मेहनत की कमाई घर वालों पर खर्च करके सुकून व मसर्रत महसूस किजिये, खाना कपड़ा बीवी का हक़ है और इस हक़ को फराख दिली और कुशादगी के साथ अदा करने के लिए दौड़ धूप करना शोहर का इंतेहाई खुशगवार फरीजा़ है, इस फ़रीज़ा को खुले दिल से अंजाम देने से ना सिर्फ़ दुनिया में ख़ुशगवार अज़़्दवाजी ज़िंदगी की नियामत मिलती है बल्की मोमिन आख़िरत में भी अजरो इनाम का मुस्तहिक़ बनता है,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - एक दीनार तो वो है जो तुमने खुदा की राह में खर्च किया, एक दीनार वो है जो तुमने किसी गुलाम को आज़ाद कराने में खर्च किया, एक दीनार वो है जो तुमने किसी फ़कीर को सदका़ में दिया, और एक दीनार वो है जो तुमने अपने घर वालों पर खर्च किया, इनमे सबसे ज़्यादा अजरो सवाब उस दीनार के खर्च करने का है जो तुमने अपने घर वालों पर खर्च किया_," (रियाजु़ल सालेहीन)*

*✪_(6)_बीवी को दीनी तालीम दीजिए:-*
*✪"_ बीवी को दीनी अहकाम और तहज़ीब सिखाएं, दीन की तालीम दें, इस्लामी अखलाक़ से आरास्ता कीजिए और उसकी तरबियत और सुधार के लिए हर मुमकिन कोशिश करें ताकी वो एक अच्छी बीवी, अच्छी मां और खुदा की नेक बंदी बन सके और अपने मंसबी फ़राइज़ को बा हुस्न व ख़ूबी अदा कर सके_,*

*✪"_ अल्लाह ताला का इरशाद है - (सूरह तहरीम -6) ईमान वालों ! अपने आपको और अपने घर वालों को जहन्नम की आग से बचाओ_,"*

*✪"_ नबी करीम ﷺ जिस तरह बाहर तबलीग में मसरूफ रहते थे, उसी तरह घर में भी इस फरीज़े को अदा करते रहते, इसी की तरफ इशारा करते हुए कुरान करीम ने नबी ﷺ की बीवियों को खिताब किया है: - (सूरह अल अहज़ाब- 33) और तुम्हारे घरो में जो ख़ुदा की आयतें पढ़ी जाती हैं और हिकमत की बातें सुनाई जाती हैं उन्हें याद रखो _,"*

*✪"_ क़ुरआन में नबी करीम ﷺ के वास्ते से मोमिनो को हिदायत की गई है - "और अपने घर वालों को नमाज़ की ताकीद कीजिये और खुद भी इसके पूरे पाबंद रहे _," (सूरह ताहा- 132)*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- जब कोई मर्द रात में अपनी बीवी को जगाता है और वो दोनो मिल कर दो रका'त नमाज़ पढ़ते हैं तो शोहर का नाम ज़िक्र करने वालों में और बीवी का नाम ज़िक्र करने वालों मे लिख लिया जाता है _," (अबू दाउद - 1309)* 

*✪_ (7)_ कई बीवियां हो तो सबके साथ बराबरी का सुलूक कीजिये:-*
*✪"_ अगर कई बीवियां हो तो सबके साथ बा्राबरी का सुलूक कीजिये, नबी करीम ﷺ बीवियों के साथ बराबरी का बड़ा अहतमाम फरमाते, सफर पर जाते तो कुरआ डालते और कुरआ में जिस बीवी का नाम आता उसे साथ ले जाते _,*

*✪"_हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:- अगर किसी शख़्स की दो बीवियां हो और उसके साथ इंसाफ़ और बराबरी का सुलूक न किया तो क़यामत के रोज़ वो शख़्स इस हाल में आयेगा कि उसका आधा धड़ गिर गया होगा _," (तिर्मिज़ी - 1141)*

*✪"_इंसाफ और बराबरी से मुराद मामलात और बरताव में मुसावात बरतना है, रही ये बात कि किसी एक बीवी की तरफ दिल का झुकाव और मुहब्बत के जज़्बात ज़्यादा हो तो ये इंसान के बस में नहीं है और इस पर खुदा के यहां कोई गिरफ्त ना होगी _,"*

*✪_(8)_ बीवी निहायत खुश दिली से शोहर की इता'त करे:-*
*✪"_निहायत खुश दिली से अपने शोहर की इता'त कीजिये और इस इता'त में मसर्रत और सुकून महसूस कीजिये, इसलिए कि ये खुदा का हुक्म है और जो बंदी खुदा के हुक्म की तामील करती है वो अपने खुदा को खुश करती है ,*

*"✪_क़ुरआन मजीद में है :- नेक बीवियां शोहर की इता'त करने वाली होती है_,"*
*"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है- कोई औरत शोहर की इजाज़त के बगेर रोज़ा ना रखे_," (अबू दाऊद -2458)*

*"✪_ शोहर की इता'त और फ़रमा बरदारी की अहमियत वाज़े करते हुए नबी करीम ﷺ ने औरत को तम्बीह किया है: दो क़िस्म के आदमी वो हैं जिनकी नमाज़ उनके सरो से ऊंची नहीं उठती, उस गुलाम की नमाज़ जो अपने आका़ से फरार हो जाए जब तक कि लौट ना आए और उस औरत की नमाज़ जो शोहर की नाफरमानी करे जब तक कि शोहर की नाफरमानी से बाज़ ना आ जाए _," ( अत्तरगीब व तरहीब)* 
*✪_( 9) अपनी आबरू और असमत की हिफाज़त का एहतेमाम कीजिए:-*
*⚀ _अपनी आबरू और असमत की हिफाज़त का एहतेमाम कीजिए और उन तमाम बातों और कामों से दूर रहिए जिनसे दामने अस्मत पर धब्बा लगने का अंदेशा हो,*

*✪"_ खुदा की हिदायत का तकाज़ा भी यही है और अज़्दवाजी जिंदगी को खुश गवार बनाने के लिए भी इंतेहाई ज़रूरी है, इसीलिए कि अगर शौहर के दिल मे इस तरह का कोई शुबहा ,शक पैदा हो जाए तो फिर औरत की कोई खिदमत, इता'त और भलाई शौहर को अपनी तरफ माइल नही कर सकती ,और इस मामले में मामूली कोताही से भी शौहर के दिल मे शैतान शुबहा ,शक डालने में कामयाब हो जाता है,*

*⚀_ लिहाज़ा इंसानी कमज़ोरी को निगाह में रखते हुए इंतेहाई अहतयात कीजिए, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पाक इरशाद है:- “औरत जब पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ ले, अपनी आबरू की हिफाज़त कर ले, अपने शौहर की फरमाबरदार रहे ,तो वो जन्नत में जिस दरवाज़े से चाहे दाखिल हो जाए”_," ( अत तरगीब व तरहीब )*

*✪_(10)-शौहर की इजाज़त के बगैर घर से बाहर न जाइए,*
*⚀_ शौहर की इजाज़त और मर्जी के बगैर घर से बाहर ना जाएं और ना ऐसे घरों में जाएं जहां शौहर आपका जाना पसंद ना करे और ना ऐसे लोगों को अपने घर में आने की इजाज़त दें जिनका आना शौहर को नागवार हो,*

*✪_ हज़रत मा'ज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया- खुदा पर ईमान रखने वाली औरत के लिए ये जाइज़ नही की वो अपने शौहर के घर मे किसी ऐसे शख्स को आने की इजाज़त दे जिसका आना शौहर को नागवार हो और वो घर से ऐसी सूरत में निकले जबकि उसका निकलना शौहर को नागवार हो और शौहर के मामले में किसी दूसरे का कहा ना माने, ( अत तरगीब व तरहीब )*

*⚀ _ यानी शौहर के मामले में शौहर की मर्ज़ी और इशारे पर ही अमल कीजिए और उसके खिलाफ हरगिज़ दूसरे के मशवरों को ना अपनाए, _,* 

*✪●• (11) -हमेशा अपने क़ौल व अमल और अंदाज़ व अतवार से शौहर को खुश रखने की कोशिश कीजिए,:-*
*⚀ _ कामयाब अज़्दवाजी ज़िंदगी का राज़ भी यही है,और खुदा की रज़ा और जन्नत के हुसूल का रास्ता भी यही है,*

*⚀ _ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पाक इरशाद है:-"_जिस औरत ने भी इस हाल में इंतेक़ाल किया कि उसका शौहर उससे राज़ी और खुश था तो वो जन्नत में दाखिल होगी_" ( तिर्मिज़ी शरीफ )*

*⚀ _ और नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:-"_जब कोई आदमी अपनी बीवी को जिंसी ज़रूरत के लिए बुलाए और वो न आए और इस बिना पर शौहर रात भर उससे खफा रहे तो ऐसी औरत पर सुबह तक फरिश्ते लानत करते हैं"_,( बुखारी शरीफ- 5193 )*

*✪●_ (12) -अपने शौहर की रफाक़त की क़दर कीजिए:-*
*"✪_अपने शौहर की रफाक़त की क़दर कीजिए, अपने शौहर से मुहब्बत कीजिए और उसकी रफाक़त की क़द्र कीजिए, ये ज़िन्दगी की ज़ीनत का सहारा और राहे हयात का अज़ीम मुईन व मददगार है, खुदा की इस अज़ीम नियामत पर खुदा का भी शुक्र अदा कीजिए,और इस नियामत की भी दिल व जान से क़द्र कीजिए_,*

*⚀ _नबी करीम ﷺ ने एक मौक़े पर इरशाद फरमाया:-"_निकाह से बेहतर कोई चीज़ मोहब्बत करने वालों के लिए नही पाई गई"*
*↳®ا بن ما جا 1847*

*⚀_ हज़रत सफिया रज़ि. को आप ﷺ से बे इंतिहा मोहब्बत थी ,चुनांचे जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बीमार हुए ,तो इन्तेहाई हसरत के साथ बोलीं "_काश आप ﷺ के बजाय मैं बीमार हो जाती_"*
*"_ नबी करीम ﷺ की दूसरी बीवियों ने इस इज़हारे मुहब्बत पर ताज्जुब से उनकी तरफ देखा तो नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया :-"_दिखावा नही है, बल्कि सच कह रही है_",*
*↲® الاصلبۃ _,* 

*✪_(13)-शौहर का एहसान मान कर उसकी शुक्र गुज़ार रहिए,*
*⚀ _ शौहर का अहसान मानें, उसकी शुक्र गुज़ार रहे, आपका सबसे बड़ा मोहसिन आपका शौहर ही है, जो हर तरह आप को खुश रखने में लगा रहता है, आपकी हर ज़रूरत को पूरा करता है और आपको आराम पहुंचा कर आराम महसूस करता है,*

*✪_ हज़रत अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया :-"_तुम पर जिनका अहसान है उनकी नाशुक्री से बचो ,तुममे की एक अपने माँ बाप के यहां काफी दिनों तक बिन ब्याही बैठी रहती हैं,फिर खुदा उसको शौहर अता फरमाता है, फिर खुदा उसको औलाद से नवाज़ता है(इन तमाम एहसानात के बावजूद)अगर कभी किसी बात पर शौहर से खफा होती है तो कह उठती है कि मैंने तो तुम्हारी तरफ से कोई भलाई देखी ही नही, ( अल अदब अल मुफर्रिद )*

*⚀_ नाशुक्र गुज़ार और एहसान फरामोश बीवी को तंबीह करते हुए नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया, "_खुदा क़यामत के रोज़ उस औरत की तरफ नज़र उठाकर भी न देखेगा जो शौहर की नाशुक्र गुज़ार होगी,हालांकि औरत किसी वक़्त भी शौहर से बेनियाज़ नही हो सकती_," (नसाई )*

*✪_(14) -शौहर की खिदमत कर के खुशी महसूस कीजिए_,*
*⚀ _ शौहर की खिदमत कर के खुशी महसूस कीजिए और जहां तक हो सके खुद तकलीफ उठाकर शौहर को आराम पहुंचाए और हर तरह उसकी खिदमत कर के उसका दिल अपने हाथ मे लेने की कोशिश कीजिए,*

*⚀ _ हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने हाथ से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कपड़े धोती,सर में तेल लगाती ,कंघा करती, खुशबू लगाती,और यही हाल दूसरी सहाबिया ख्वातीन का भी था,*

*⚀ _एक बार नबी करीम सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:-"_किसी इंसान के लिए ये जायज़ नही की वो किसी दूसरे इंसान को सजदा करे, अगर इसकी इजाज़त होती तो बीवी को हुक्म दिया जाता कि वो अपने शौहर को सजदा करे,*
*"_शौहर का अपनी बीवी पर अज़ीम हक़ है, इतना अज़ीम हक़ कि अगर शौहर का सारा जिस्म ज़ख्मी हो और बीवी शौहर के ज़ख्मी जिस्म को ज़ुबान से चाटे तब भी शौहर का हक़ अदा नही हो सकता"_,( मुसनद अहमद )* 

*✪_(15)- शौहर के घर बार और माल व असबाब की हिफाज़त कीजिए,*
*⚀_शादी के बाद शौहर के घर को अपना घर समझें और शौहर के माल को शौहर के घर की रौनक बढ़ाने ,शौहर की इज़्ज़त बनाने और उसके बच्चों का मुस्तक़बिल संवारने में हिकमत और किफायत व सलीके से खर्च कीजिए, शौहर की तरक़्क़ी और खुशहाली को अपनी तरक़्क़ी और खुश हाली समझिए,*

*⚀ _और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नेक बीवी की खूबियों को बयान करते हुए फरमाया:-"_ मोमिन के लिए ख़ौफ़े खुदा के बाद सबसे ज़्यादा मुफीद और बाइसे खैर नियामत नेक बीवी हैं, कि जब वो उससे किसी काम को कहे तो वो खुश दिली से अंजाम दे, और जब वो उस पर निगाह डाले तो वो उसको खुश कर दे और जब वो उसके भरोसे पर क़सम खा बैठे तो वो उसकी क़सम पूरी कर दे और जब वो कहीं चला जाए तो उसके पीछे अपनी इज़्ज़त व आबरू की हिफाज़त करे और शौहर के माल व असबाब की निगरानी में शौहर की खैर ख्वाह और वफादार रहे_,*
*( इब्ने माजा-१८५७_)*

*✪_(16) -शौहर को कमाने का और बीवी को खर्च करने का सवाब मिलता है_,*
*⚀_ हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायात है की नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- "_जब औरत अपने (शौहर) के खाने में खर्च करे और बिगाड़ का तरीका इख़्तेयार करने वाली न हो तो उसको खर्च करने की वजह से सवाब मिलेगा, और जो खजांची है (जिसके पास रक़म या माल मौजूद रहता है,अगरचे ये मालिक नही है मगर उस माल में से मालिक के हुक्म के मुताबिक जब अल्लाह की राह में खर्च करेगा तो ) उसको भी उसी तरह सवाब मिलता है (जैसे मालिक को मिला)_,"*

*⚀_ गर्ज़ एक माल से तीन शख्सों को सवाब मिलेगा,1-कमाने वाला, 2-उसकी बीवी जिसने सदक़ा किया, 3-उसका खजांची (जिसने माल निकाल कर दिया),*
*"_और एक कि वजह से दूसरे के सवाब में कोई कमी नही होगी यानी सवाब बंटकर नही मिलेगा बल्कि हर एक को अपने अमल का पूरा सवाब दिया जाएगा_,( मिशकात, बुखारी , मुस्लिम )*

*⚀_ बहुत सी औरतें तबीयत की कंजूस होती हैं अगर शोहर किसी गरीब को देना चाहता है तो बुरा मानती हैं और मुंह बनाती हैं, अगर उनके पास कुछ रखा हो और शौहर किसी को देने के लिए कहे तो बुरे दिल से निकाल कर देती हैं, मालूम होता है कि जैसे रुपए के साथ कलेजा निकल आ रहा है, भला ऐसा करके अपना सवाब खोने से क्या फायदा ?* 

*✪_(17)-सफाई बगैरह का भी पूरा पूरा एहतेमाम कीजिए_,*
*⚀_सफाई,सलीक़ा और आराइश व ज़ेबाइश का भी पूरा पूरा एहतेमाम कीजिए,घर को भी साफ सुथरा रखिए और हर चीज़ को सलीके से सजाइये और सलीके से इस्तेमाल कीजिए,*

*⚀_साफ सुथरा घर ,करीने से सजे हुए साफ सुथरे कमरे,घरेलू कामो में सलीक़ा और बनाव सिंगार की हुई बीवी की पाकीज़ा मुस्कुराहट से न सिर्फ घरेलू ज़िंदगी प्यार मुहब्बत और खैरो बरकत से मालामाल होती है बल्कि एक बीवी के लिए अपनी आख़िरत बनाने और खुदा को खुश करने का भी यही ज़रिया है,*

*⚀ _एक बार बेगम उस्मान बिन मज़उन रज़ियल्लाहु अन्हा से हज़रात आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा की मुलाक़ात हुई तो आपने देखा कि बेगम उस्मान निहायत सादा कपड़ो में है और कोई बनाव सिंगार भी नही किया है तो हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा को बड़ा ताज्जुब हुआ और उनसे पूछा:-"_बीबी! क्या उस्मान कही बाहर सफर पे गए हुए हैं?*
*"_ इस ताज्जुब से अंदाज़ा कीजिए कि सुहागिनों का अपने शौहर के लिए बनाव सिंगार करना कैसा पसंदीदा काम है,*

*⚀_एक बार एक सहाबिया रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुई, वो अपने हाथों में सोने के कंगन पहने हुए थी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको पहनने से मना फरमाया तो कहने लगी,*
*"_या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !अगर औरत शौहर के लिए बनाव सिंगार न करेगी तो उसकी नज़र से गिर जाएगी_," *( नसाई )* 

*⚀_ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुमानत और फिर बाद में सुकूत से पता चलता है कि अगरचे सोने का इस्तेमाल औरतों के लिए जाइज़ है मगर चुकी ये ऐश पसंदी और ताईश तक पहुंचाता है,इसीलिए सोने का इस्तेमाल बतौर ऐश पसंदी और मुफाखरत के मकरूह है, लेकिन अगर बनाव सिंगार शौहर के लिए है तो जाइज़ है,*

           *📓 मदनी माशरा -82,*
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        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞वालदेन के साथ सुलूक इस तरह कीजिए*
          ▪•═════••════•▪
*✪_ (1) मां बाप के साथ हुस्ने सुलूक को दोनो जहां की स'आदत समझें:-*
*"_ मां बाप के साथ अच्छा सुलूक कीजिए और इस हुस्ने सुलूक की तौफीक़ को दोनो जहां की स'आदत समझें, खुदा के बाद इंसान पर सबसे ज्यादा हक़ मां बाप ही का है, मां बाप के हक़ की अहमियत और अज़मत का अंदाजा इससे कीजिये कि क़ुरान पाक में जगह जगह मां बाप के हक़ को खुदा के हक़ के साथ बयान किया और खुदा की शुक्र गुजा़री के साथ साथ मां बाप की शुक्र गुजा़री की ताकीद की हे,*

*→"और आपके रब ने फैसला फरमा दिया है कि तुम खुदा के सिवा किसी की बंदगी ना करो और वाल्देन के साथ नेक सुलूक करो," (सूरह बनी इसराईल, 23)*

*✪_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं, मैने नबी करीम ﷺ से पुछा, "कौनसा अमल खुदा को सबसे ज़्यादा महबूब है?" नबी करीम ﷺ ने फरमाया, “वो नमाज़ जो वक़्त पर पढ़ी जाए,” मैने फिर पुछा, “इसके बाद कौनसा अमल खुदा को सबसे ज़्यादा महबूब है?” फरमाया,“माँ बाप के साथ हुस्न सुलूक,.....,”( बुखारी, 5970, व मुस्लिम)*

*✪_ हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं, एक शख़्स ने नबी करीम ﷺ से पुछा, “या रसूलुल्लाह! मां बाप का औलाद पर क्या हक़ है? इरशाद फरमाया, “मां बाप ही तुम्हारी जन्नत है और मां बाप ही दोज़ख” (इब्ने माजा, 3662)*
*✪"_ (यानी इनके साथ नेक सुलूक करके तुम जन्नत के मुस्तहिक़ होंगे और उनके हुकूक को पामाल करके तुम जहन्नम का ईंधन बनोगे)*

*✪_ (2)_ वाल्दैन के शुक्रगुजा़र रहिये:-*
*✪_ मोहसिन की शुक्रगुजारी और अहसानमंदी शराफत का अव्वलीन तकाज़ा है और हक़ीक़त ये है कि हमारे वजूद का सबब वाल्दैन हैं, फिर वाल्दैन ही की परवरिश और निगरानी में हम पलते बढ़ते और शऊर को पहचानते हैं, और जिस गैर मामूली कुर्बानी, बेमिस्ल जांनफ़सानी और इंतेहाई शफ़क़त से हमारी सरपरस्ती फ़रमाते ही उसका तक़ाज़ा है कि हमारा सीना उनकी अक़ीदत व अहसानमंदी और अज़मत व मुहब्बत से सरशार हो और हमारे दिल का रेशा उनका शुक्र गुज़ार हो, यही वजह है कि खुदा ने अपनी शक्रगुजा़री के साथ साथ वाल्दैन की शुक्रगुजा़री की ताकीद फरमाई है,*

*✪_ मां बाप को हमेशा खुश रखने की कोशिश कीजिये और उनकी मर्ज़ी और मिज़ाज के खिलाफ कभी कोई ऐसी बात ना कहिए जो उनको नागवार हो बिलखुसूस बुढ़ापे में जब मिज़ाज चिड़चिड़ा हो जाता है और वाल्दैन कुछ ऐसे मुतालबे करने लगते हैं वह जो तवक़को के खिलाफ होते हैं, उस वक्त भी हर बात को खुशी खुशी बर्दास्त किजिए और उनकी किसी बात से उकता कर जवाब में कोई ऐसी बात हरगिज़ ना कीजिये जो उनको नागवार हो और उनके जज़्बात को ठैस लगे,*

*✪_अगर उनमें से एक या दोनो तुम्हारे सामने बुढा़पे को पहुंचें तो उनको उफ तक ना कहो, ना उनको झिड़कियां दो,” ( बनी इसराईल, 23)*

*✪"_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया,“खुदा की खुश्नुदी वालदेन की खुश्नुदी में है और खुदा की नाराज़ी वालदेन की नाराज़ी में है,”( तिर्मिज़ी 1899)*

 *✪_ हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु का ब्यान है कि एक आदमी अपने माँ बाप को रोता हुआ छोडकर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की खिदमत में हिजरत पर बैत करने के लिए हाज़िर हुआ तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया:-“जाओ अपने मां बाप के पास वापस जाओ और उनको उसी तरह खुश करके आओ जिस तरह तुम उन्हें रुलाकर आए हो,” (अबू दाऊद, 2528)*

*✪_ दिल व जान से मां बाप की खिदमत किजिए, अगर आपको खुदा ने इसका मौक़ा दिया है तो, दर असल ये इस बात की तौफीक़ है कि आप खुद को जन्नत का मुस्तहिक़ बना सकें और खुदा की खुशनुदी हासिल कर सकें, मां बाप की खिदमत ही से दोनो जहां की भलाई, सा'दत और अज़मत हासिल होती है और आदमी दोनों जहां की आफतो से महफूज़ रहता है,*

*✪_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया,“_जो आदमी ये चाहता है कि उसकी उमर दराज़ी की जाये और उसकी रोज़ी में कुशादगी हो, उसे चाहिए कि अपने माँ बाप के साथ भलाई करे और सिलाह रहमी करे,” (तरगीब व तरहीब, 16)*

*✪_ और नबी करीम ﷺ का इरशाद है:-“_वो आदमी ज़लील हो, फिर ज़लील हो, फिर ज़लील हो, लोगो ने पुछा, “_ऐ ख़ुदा के रसूल ﷺ, कौन आदमी ?*
*"_आप ﷺ ने फरमाया,"_ वो आदमी जिसने अपने मां बाप को बूढ़ापे की हालत में पाया, दोनो को पाया या किसी एक को, और फिर (उनकी खिदमत करके) जन्नत में दाखिल न हुआ,”(मुस्लिम, 6510‌)*

*✪_ एक मोक़े पर आप ﷺ ने वाल्देन की ख़िदमत को जिहाद जैसी अज़ीम इबादत पर भी तर्ज़ीह दी, और एक सहबी को जिहाद में जाने से रोक कर वालदेन की खिदमत की ताक़ीद फ़रमाई, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं," एक शख्स नबी करीम ﷺ के पास जिहाद में शरीक़ होने की ग़र्ज़ से आया, नबी करीम ﷺ ने उससे पुछा," _तुम्हारे माँ बाप ज़िंदा है," उसने कहा, जी हाँ ज़िंदा है,*
*"_इरशाद फरमाया,"_जाओ और उनकी खिदमत करते रहो, यही जिहाद है," (बुखारी, मुस्लिम, 6504)*

*✪_ मां बाप का अदब व अहतराम कीजिये और कोई बात ऐसी या हरकत न कीजिये जो उनके अहतराम के खिलाफ हो, हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु ने एक बार एक आदमी को देखा, एक से पूछा ये दूसरे तुम्हारे कौन हैं ? उसने कहा, मेरे वालिद है, आपने फरमाया,“_देखो! ना उनका नाम लेना, ना कभी उनसे आगे आगे चलना और ना कभी उनसे पहले बेठना," (अल अदबुल मुफ़र्रिद, 44)*

*✪_(3)_ वालदैन के साथ आजिज़ी और इंकसारी से पेश आएं:-*
*✪_और आजिज़ी और नर्मी से उनके सामने बिछे रहो" (सूरह, बनी इसराईल, 24)*

*✪_ आजीजी़ से बिछे रहने का मतलब ये है कि हर वक़्त उनके मर्तबे का लिहाज़ रखो और कभी उनके सामने अपनी बढ़ाई न जताओ और ना उनकी शान में गुस्ताखी करो,*

*✪_वालिद से मुहब्बत किजिये और उसको अपने लिए स'आदत व अजरे आखिरत समझिए,*

*✪_हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम फरमाते हैं:-”जो नेक औलाद भी माँ बाप पर मुहब्बत भरी एक नज़र डालती है उसके बदले खुदा उसको एक हज मक़बूल का सवाब बख्शता है, ”*
*"लोगो ने पुछा, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! अगर कोई एक दिन में सौ बार इसी तरह रहमत व मुहब्बत की नज़र डालें? आप ﷺ ने फरमाया,"जी हां! खुदा (तुम्हारे तसव्वुर से) बहुत बड़ा और (तंगदिली जेसे ऐबों से) बिल्कुल पाक है _," (मिश्कात)* 

*✪_(4)_ मां बाप की दिलो जान से इता'त कीजिए:-*
*✪_ माँ बाप की दिलो जान से इता'त किजिए, अगर वो ज़्यादती भी कर रहे हों तब भी ख़ुशनूदी से इता'त किजिये और उनके अज़ीम अहसानात को पेशे नज़र रख कर उनके वो मुतालबे भी ख़ुशी ख़ुशी पूरे किजिये जो आपके ज़ोक और मिज़ाज पर गिरां हो बशर्ते कि वो दीन के खिलाफ ना हों,*

*✪_ हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया:-“_जिस आदमी ने इस हाल में सुबह की कि वो उन हिदायात व अहकाम में खुदा का इता'त गुज़ार रहा, जो उसने मां बाप के हक में नाजि़ल फरमाये है, तो उसने इस हाल में सुबह की कि उसके लिए जन्नत के दो दरवाज़े खुले हुए हों और अगर मां बाप में से कोई एक हो तो जन्नत का एक दरवाज़ा खुला हुआ है,*

*✪_और जिस शख्स ने सुबह की इस हाल मे कि मां बाप के बारे में खुदा के भेजे हुए अहकामात व हिदायात से मुंह मोडे़ हुए है तो उसने इस हाल मे सुबह की कि उसके लिए दोज़ख के दो दरवाज़े खुले हुए हैं, और अगर मां बाप में से कोई एक है तो दोज़ख का एक दरवाज़ा खुला हुआ है,*

*✪_ उस आदमी ने पुछा, ऐ खुदा के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर मां बाप उसके साथ ज्यादती कर रहे हों तब भी?फरमाया,:"हाँ अगर ज़्यादती कर रहे हो तब भी, अगर ज़्यादती कर रहे हो तब भी, अगर ज़्यादती कर रहे हो तब भी,"*
*®_ मिशकात,* 

*✪_(5)_ मां बाप को अपने माल का मालिक समझें और उन पर दिल खोल कर खर्च कीजिए:-*
*✪_ क़ुरान पाक में है:- (तर्जुमा) लोग आपसे पूछते हैं, हम क्या खर्च करें? जवाब दीजिए कि जो माल भी तुम खर्च करो, उसके अववलीन हक़दार वाल्दैन हैं_" (सूरह, अल-बकराह, 215)*

*✪_ एक बार नबी करीम ﷺ के पास एक आदमी आया और अपने बाप की शिकायत करने लगा कि वो जब चाहते हैं मेरा माल ले लेते हैं,नबी करीम ﷺ ने उस आदमी के बाप को बुलवाया, लाठी टेकता हुआ एक बूढ़ा कमज़ोर शख़्स हाज़िर हुआ, आप ﷺ ने उस बूढे शख़्स से तहक़ीक़ फरमाई, तो उसने कहना शुरू किया,:-*
*“_खुदा के रसूल सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम! एक ज़माना था जब ये कमज़ोर और बेबस था और मुझमें ताक़त थी, मैं मालदार था और ये खाली हाथ था, मैंने कभी इसको अपनी चीज़ लेने से नहीं रोका, आज मै कमज़ोर हूं और ये तंदुरुस्त व क़वी है, मैं खाली हाथ हूं और ये मालदार है, अब ये अपना माल मुझसे बचा बचा कर रखता है_,"*

*✪_ बुढ़े की ये बात सुनकर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम रो पड़े और बूढ़े के लडके की तरफ मुखातिब होकर फरमाया:-"तू और तेरा माल तेरे बाप का है,"*

*✪_( 6)_ मां बाप अगर गैर मुस्लिम हो तब भी उनके साथ सुलूक कीजिए:-*
*✪_ मां बाप अगर गैर मुस्लिम हो तब भी उनका अदब, अहतराम और उनकी खिदमत बराबर करते रहें, अलबत्ता अगर वो शिर्क व मा'सियत का हुक्म दें तो उनकी इता'त से इनकार कर दीजिए और उनका कहा हरगिज़ ना मानिए,*

*"→(तरजुमा), और अगर मां बाप दबाव डाले कि मेरे साथ किसी को शरीक बनाओ जिसका तुम्हें कोई इल्म नहीं है तो हरगिज़ उनका कहना ना मानो और दुनिया में उनके साथ नेक बरताव करते रहो_," (सूरह लुकमान, 15)*

*✪_ हज़रत अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के अहद मुबारक में मेरे पास मेरी वालिदा आई और उस वक्त वो मुशरिका थी, मैने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से अर्ज़ किया कि मेरे पास मेरी वालिदा आई है और वो इस्लाम से मुत्नफ्फिर (नफ़रत करने वाली) है, क्या मैं उनके साथ सुलूक करूं? आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया,“_हां तुम अपनी मां के साथ सिलाह रहमी करती रहो,” ( बुखारी, 5978)*

*✪_(7)_ मां बाप के लिए बराबर दुआ करते रहिए:-*
*✪_ माँ बाप के लिए बराबर दुआ करते रहें और उनके अहसानात को याद करके खुदा के सामने गिड़गिड़ाए और इंतेहाई दिलसोज़ी और कल्बी जज़्बात के साथ उनके लिए रहम व करम की दरख्वास्त किजिये ।*

*✪_अल्लाह ता'ला का इरशाद है:-“_और दुआ करो कि परवरदिगार! इन दोनो पर रहम फरमा, जिस तरह इन दोनों ने बचपन में परवरिश फरमाई थी_,”(सूरह बनी इसराईल,24)*

*✪_ यानि ए परवरदिगार! बचपन की बेबासी में, जिस ज़हमत व जांनफ़सानी और शफ़क़त व मुहब्बत से इन्होंने मेरी परवरिश की और मेरे ख़ातिर अपने ऐश को क़ुर्बान किया! परवरदिगार अब ये बुढ़ापे की कमज़ोरी और बेबसी में मुझसे ज्यादा खुद रहमत व शफक़त के मोहताज़ है, खुदाया! मैं इनका कोई बदला नहीं दे सकता, तू ही इनकी सरपरस्ती फरमा और इनके हाले ज़ार पर रहम की नज़र कर।*

*✪_ (7)_मां की खिदमत का खुसूसी ख्याल रखिये, -,*
*✪_ मां तब'अन ज़्यादा कमज़ोर और हस्सास होती है और आपकी खिदमत और सुलूक की निस्बतन ज़्यादा जरूरतमंद भी, फिर मां के एहसानात और कुर्बानियां भी बाप के मुकाबले में कहीं ज़्यादा है, इसलिए दीन ने मां का हक़ ज्यादा बताया है और मां के साथ सुलूक की खुससी तरगीब दी है,*

*✪_कुरान पाक में इरशाद है-:- (तर्जुमा ):-“और हमने इंसान को मां बाप के साथ भलाई करने की ताकीद की, उसकी मां तकलीफ उठा उठाकर उसे पेट में लिए लिए फिरी और तकलीफ ही से जना, और पेट में उठाने और दूध पिलाने की ये (तकलीफदह) मुद्दत तीस महीने है।” (सूरह अल अहकाफ,15)*

*✪_हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: एक शख्स नबी करीम ﷺ की खिदमत में आया और पूछा:-“_ऐ खुदा के रसूल सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम! मेरे नेक सूलूक का सबसे ज्यादा मुस्तहिक़ कौन है?आप ﷺ ने फरमाया,“तेरी माँ,” उसने पूछा, फिर कौन? आप ﷺ ने फरमाया, “तेरी माँ,” उसने पूछा, फिर कौन?इरशाद फरमाया,"तेरी माँ",उसने कहा, फिर कौन? तो आप ﷺ ने फरमाया, "तेरा बाप _," (बुखारी, 5971 )*
,*
*✪_ हज़रत जाहिमा रज़ियल्लाहु अन्हु नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए और कहा, "या रसूलुल्लाह ﷺ! मेरा इरादा है कि मैं आपके हमराह जिहाद में शिरकत करूं और इसीलिये आया हूं कि आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से इस मामले में मशवरा लूं (फरमाइए क्या हुक्म हे?) नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने उनसे पुछा: “तुम्हारी वाल्दा (ज़िंदा) हैं? जाहिमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, "जी हाँ (जिंदा है)"*
*"_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया, “फिर जाओ और उन्हीं की खिदमत में लगे रहो क्योंकि जन्नत उन्हीं के क़दमों में है,”*
*®_ इब्ने माजा, 2781,*

*✪_हज़रत उवेश रहमतुल्लाह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के दोर में मौजूद थे मगर आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की मुलाक़ात का शर्फ़ हासिल न कर सके, उनकी एक बूढ़ी माँ थी, दिन रात उन्हीं की खिदमत में लगे रहते थे, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के दीदार की बड़ी आरज़ू थी और कौन मोमिन होगा जो इस तमन्ना में न तडपता होगा कि उसकी आंखें दीदारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से रोशन हो,*

*✪_ चुनांचे हजरत उवेश रहमतुल्लाह ने आना भी चाहा लेकिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने मना फरमाया, फ़रीज़ा ए हज की भी उनके दिल में बड़ी आरज़ू थी लेकिन जब तक उनकी वाल्दा ज़िंदा रही उनकी तन्हाई के ख़याल से हज नहीं किया और उनकी वफ़ात के बाद ही ये आरज़ू पूरी हो सकी,*

*✪_(9)- रजाई मां के साथ भी हुस्ने सुलूक कीजिये:-*
*✪_रजाई मां के साथ भी अच्छा सुलूक कीजिये, उसकी खिदमत कीजिये और अदब व अहतराम से पेश आइए,*

*✪_ हज़रत अबू तुफ़ैल रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं, मैंने जोराना के मक़ाम पर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को देखा कि आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम गोश्त तक़सीम फरमा रहे हैं, इतने में एक औरत आई और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के बिल्कुल करीब पहुंच गई, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने उनके लिए अपनी चादर बिछा दी, वो उस पर बैठ गई,*

*✪_( 10)- मां बाप वफ़ात के बाद भी हुस्न सुलूक के हक़दार हैं:-*
*✪_ वाल्दैन की वफ़ात के बाद भी उनका ख़याल रखिए और उनके लिए मगफिरत दुआएं बराबर करते रहें,*

*✪_ कुरान पाक ने मोमिन को ये दुआ सिखायी हे :-*
*"_ رَبَّنَا اغْفِرْ لِي وَلَوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِينَ يَوْمَ يَقُومُ الْحِسَابُ_,"*
*"_( तर्जुमा):- “परवर्दीगर मेरी मगफिरत फरमा और मेरे वाल्दैन की और सब ईमान वालों को उस रोज़ माफ फरमा दे जबकी हिसाब क़ायम होगा।” ( सूरह इब्राहिम, 41)*

 *✪_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया,*
*“_जब कोई आदमी मर जाता है तो उसके अमल की मोहलत खत्म हो जाती है, सिर्फ 3 चीज़ें ऐसी है जो मरने के बाद भी फायदा पहुंचती रहती है, एक- सदका़ ए जारिया, दूसरा- उसका फैलाया हुआ इल्म जिससे लोग फ़ायदा उठाये, तीसरी - वो सालेह औलाद जो उसके लिए दुआए मगफिरत करती रहे,*
*®_ इब्ने माजा, 242,*

*✪_(11)- वाल्दैन की की हुई वसियत को पूरा कीजिये:-*
*✪_वाल्दैन के किए हुए अहदो पैमान और वसीयत को पूरा कीजिए, मां बाप ने अपनी जिंदगी में बहुत से लोगो से कुछ वादे किए होंगे, अपने खुदा से कुछ अहद किया होगा, किसी को कुछ माल देने का वादा किया होगा, उनके जिम्मे किसी का कोई क़र्ज रह गया होगा और अदा करने का मौक़ा ना पा सके होंगे, मरते वक्त कुछ वसीयत की होंगी आप अपने अपने इमकान भर इन सब कामों को पूरा कीजिये,*

*✪_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि हज़रत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी करीम ﷺ से अर्ज़ किया:- या रसूलुल्लाह! मेरी वाल्दा ने नज़र मानी थी लेकिन वो नज़र पूरी करने से पहले वफ़ात पा गई, क्या मै उनकी तरफ से नज़र पूरी कर सकता हूँ ? नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:- क्यों नहीं! तुम जरूर उनकी तरफ से नज़र पूरी करो,*
*®_ बुखारी, 2761 ,*

*✪_(12)_बाप के दोस्तों और मां की सहेलियों के साथ भी हुस्ने सुलूक करते रहिए:-*
 *✪_बाप के दोस्तो और मां की सहेलियों के साथ भी हुस्ने सुलूक करते रहें, उनका अहतराम कीजिए, उनको अपने मशवरे में अपने बुज़ुर्गो की तरह शरीक़ रखिए, उनकी राय और मशवरो की ताज़ीम कीजिए_,"*

*✪_ एक मोके़ पर नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:- सबसे ज़्यादा नेक सुलूक ये है कि आदमी अपने वाल्देन के दोस्त अहबाब के साथ भलाई करे _," (मुस्लिम -6513)*

*✪_ एक बार हज़रत अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु बीमार हुए और मर्ज़ बढ़ता ही गया, यहाँ तक कि बचने की कोई उम्मीद ना रही, तो हज़रत युसूफ बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु दूर दराज से सफर कर के उनकी अयादत के लिए तशरीफ ले गए, हज़रत अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें देखा तो ताज्जुब से पुछा तुम यहाँ कहा? यूसुफ बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा मै यहां महज़ इसलिए आया हूं कि आपकी अयादत करूं क्योंकि वालिद बुजुर्गवार से आपके तल्लुक़ात बड़े गहरे थे _," (मुसनद अहमद -6/450)*

*✪_हज़रत अबू बरदा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि मैं जब मदीना आया तो मेरे पास अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाये और कहने लगे, अबू बरदा रज़ियल्लाहु अन्हु! तुम जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आया हूँ मैंने कहा मैं तो नहीं जानता कि आप क्यों तशरीफ़ लाए हैं*
*"_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, मैंने नबी करीम ﷺ को फ़रमाते सुना है कि जो शख़्स क़ब्र में अपने बाप के साथ नेक सुलूक करना चाहता है उसे चाहिए कि बाप के मरने के बाद बाप के दोस्त अहबाब के साथ अच्छा सुलूक करे_,"*
 *"_ और फिर फरमाया- भाई मेरे बाप हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु और आपके वालिद में गहरी दोस्ती थी, मैं चाहता हूँ कि उस दोस्ती को निबाहुं और उसके हुक़ूक़ अदा करूं _," (इब्ने हिबान, तरगीब व तरहीब, 34)*  

*✪_(13)- मां बाप के रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करते रहिए:-*
*✪_ माँ बाप के रिश्तेदारों के साथ भी बराबर नेक सुलूक करते रहें और उन रिश्तों का पूरी तरह पास व लिहाज़ रखिये, उन रिश्तों से बेनियाज़ी और बेपरवाही दर असल वाल्दैन से बेनियाज़ी है,*

*✪_ नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया है कि,“_तुम अपने आबा व अजदाद से हरगिज़ बेपरवाही न बरतो, माँ बाप से बेपरवाही बरतना खुदा की नाशुकरी है,”*

*✪_(14)_मां बाप से सुलूक में कोताही हो जाए तो मायूस ना हों:-*
*✪_अगर जिंदगी में खुदा न ख्वास्ता मां बाप के साथ सुलूक करने और उनके हुक़ूक़ अदा करने में कोई कोताही हो गई तो फिर भी खुदा की रहमत से मायूस ना हों, मरने के बाद उनके हक़ में बराबर खुदा से दुआ ए मगफिरत करते रहें, उम्मीद है कि खुदा आपकी कोताही से दरगुज़र फरमाये और आपका शुमार अपने सालेह बंदो में फरमा दें,*

*✪_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:- “अगर कोई बंदा ए खुदा जिंदगी में मां बाप का नाफरमान रहा और वाल्दैन में से किसी एक का या दोनो का इस हाल में इंतक़ाल हो गया तो अब उसे चाहिए कि वो अपने वाल्दैन के लिए बराबर दुआ करता रहे और खुदा से उनकी बख्शीश की दुआ करता रहे, यहां तक ​​कि खुदा उसको अपनी रहमत से नेक लोगो में लिख दे,'* 

           *📓 मदनी माशरा -96,*
┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
        ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

           *☞__ लिबास हो तो ऐसा हो _"*
          ▪•═════••════•▪
*✪_(1)_शर्म व हया और सतर पोशी वाले लिबास पहनिये :-*
*"_लिबास ऐसा पहनिए जो शर्म व हया, गैरत व शराफत और जिस्म की सतरपोशी और हिफाज़त के तक़ाज़ों को पूरा करे और जिससे तहज़ीब व सालिका़ और ज़ीनत व जमाल का इजहार हो_,"*

*"✪__ क़ुरान पाक में खुदा ताला ने अपनी इस नियामत का जिक्र करते हुए इरशाद फरमाया- (सूरह आराफ- 26):-*
 *"_ ऐ औलादे आदम! हमने तुम पर लिबास नाज़िल किया है कि तुम्हारे जिस्म के क़ाबिले शर्म हिस्सों को ढ़ांके और तुम्हारे लिए ज़ीनत और हिफाज़त का ज़रिया भी हो_,"*

*✪_"_ लिबास का मक़सद ज़ीनत व आरा'ईश और मौसमी असरात से हिफ़ाज़त भी है लेकिन अव्वलीन मक़सद काबिले शर्म हिस्सों की सतर पोशी है, खुदा ने शर्म व हया इंसान की फितरत में पैदा फरमाई है, यही वजह है कि जब आदम अलैहिस्सलाम और हज़रत हव्वा अलैहिस्सलाम से जन्नत का लिबास फ़ाख़ीरा उतरवा लिया गया तो वो जन्नत के दरख़तों के पत्तों से अपने जिस्मो को ढ़ांकने लगे*

*✪_"_ इसलिये लिबास में इस मक़सद को सबसे मुक़द्दम समझिए और लिबास ऐसा मुंतख़ब कीजिये जिससे सतर पोशी का मक़सद बा ख़ूबी पूरा हो सके, साथ ही इसका भी अहतमाम रहे कि लिबास मोसमी असरात से जिस्म की हिफ़ाज़त करने वाला भी हो और ऐसा सलीक़े का लिबास हो जो ज़ीनत व जमाल और तहज़ीब का भी ज़रिया हो, ऐसा ना हो कि उसे पहन कर आप कोई अजूबा या खिलौना बन जाए और लोगों के लिए हंसी और दिल्लगी का मोजू मुहय्या हो जाए,*

*✪_"_ लिबास पहनते वक्त़ ये सोचिए कि वो नियामत है जिसे खुदा ने सिर्फ इंसानों को नवाजा़ है, दूसरी मखलूका़त इससे महरूम है, इस इम्तियाज़ी बख्शिश व इनाम पर खुदा का शुक्र अदा किजिये और इस इम्तियाज़ी इनाम से सरफराज़ होकर कभी खुदा की नाशुक्री और नाफरमानी का अमल ना कीजिये, लिबास खुदा की एक ज़बरदस्त निशानी है, लिबास पहनें तो इस अहसास को ताज़ा कीजिये और जज़्बाते शुक्र का इज़हार उस दुआ के अल्फाज़ में कीजिए जो नबी करीम ﷺ ने मोमिनों को सिखाई है,*  

*✪_(2)_बेहतरीन लिबास तक़वा का लिबास है:-*
 *✪__ बेहतरीन लिबास तक़वा का लिबास है, तक़वा के लिबास से बातिनी पाकीज़गी मुराद है और जा़हिरी परहेज़गारी का लिबास भी, यानी ऐसा लिबास पहनिए जो शरीयत की नज़र में परहेज़गारों का लिबास हो, जिसमें किब्र व गुरूर का इज़हार ना हो, जो ना औरतों के लिए मुशाबहत का ज़रिया हो मर्द से और न मर्दो के लिए औरतों से मुशाबहत का _,"*

*✪__ ऐसा लिबास पहनिये जिसको देख कर महसूस हो सके कि लिबास पहनने वाला कोई खुदा से डरने वाला और भला इंसान है और औरतें लिबास में उन हुदूद का लिहाज़ करे जो शरीयत ने उनके लिए मुकर्रर की है और मर्द उन हुदूद का लिहाज़ करे जो शरीयत ने उनके लिए मुक़र्रर की है'*

*✪_(3)_ कपडे दाहिनी तरफ से पहनिए:-*
*✪_ जब तुम (कपड़े) पहनों और जब तुम वजू करो तो दाहिनी तरफ से शुरू किया करो_,"*
 *®_ (इबने माजा-402)*  

*✪_(4)_नया कपडा पहनें तो कपडे का नाम ले कर खुशी का इज़हार कीजिये और हुजूर अकरम ﷺ की पढ़ी जाने वाली दुआ पढिये:-*
*"✪_ नया लिबास पहनें तो कपड़े का नाम ले कर खुशी का इज़हार कीजिये कि खुदा ने अपने फ़ज़ल व करम से ये कपड़ा इनायत फरमाया और शुक्र के जज़्बात से सरशार हो कर नया लिबास पहनने की वो दुआ पढ़िए जो नबी करीम ﷺ पढा़ करते थे _,"*

*✪"_हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ जब कोई नया कपड़ा, अमामा, कुर्ता या चादर पहनते तो उसका नाम ले कर फ़रमाते:-*
*"_अल्लाहुम्मा लकल हम्दू अन्ता कसौतनिहि अस'अलुका मिन खैरीही व खैरी मा सुनिआ लहु, वा आ'उजुबिका मिन शर्रिही व शर्री मा सुनिआ लहु_,"*
 *®_(अबू दाऊद - किताबुल लिबास -4020)*

 *✪"_ (तरजुमा):- खुदाया तेरा शुक्र है तूने मुझे ये लिबास पहनाया, मैं तुझसे इसकी खैर का ख्वाहां हूं और जिस चीज़ के लिए बनाया गया है उसकी खैर तलब करता हूं और मैं अपने आपको तेरी पनाह में देता हूं, इस लिबास की बुराइयों से और इसके मक़सद के उस बुरे पहलू से जिसके लिए ये बनाया गया है _,"*

*✪"_ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया - जो शख़्स नए कपड़े पहने अगर वो गुंजाइश रखता हो तो अपने पुराने कपड़े किसी गरीब को खैरात में दे, और नए कपडे पहनते वक़्त ये दुआ पढ़िए :-*
*"_अलहम्दु लिल्लहिल्लज़ी कसानी मा उवारी बिहि अवराती वा अ'तजम्मलु बिही फी हयाति_,"*
*✪_ (तर्जुमा) - सारी तारीफ और हम्द उस खुदा के लिए है जिसने मुझे ये कपड़े पहनाए, जिससे मैं अपनी सतर पोशी करता हूं और जो इस जिंदगी में मेरे लिए हुस्न व जमाल का भी ज़रिया है _,"*

*✪_ जो शख्स भी नया लिबास पहनते वक्त़ ये दुआ पढेगा, खुदा ता'ला उसे जिंदगी में भी और मौत के बाद भी अपनी हिफाज़त और निगरानी में रखेगा_,"*
 *®_ (इब्ने माजा - किताबुल लिबास -3557)* 

*✪_(5)_कपड़े पहनते वक्त़ सीधी जानिब का ख्याल रखिए और कपड़े पहनने से पहले जरूर झाड़ लीजिए:-*
*"✪_ क़मीज़, कुर्ता, शेरवानी और कोट वगेरा पहनें तो पहले सीधी आस्तीन पहनें और इसी तरह पायजामा वगेरा पहनें तो पहले सीधे पैर में पांयचा डाले_,"*

*✪"_ नबी करीम ﷺ जब क़मीज़ पहनते तो पहले सीधे हाथ सीधी आस्तीन में डालते और फिर उल्टा हाथ उलटी आस्तीन में डालते, इसी तरह जब आप ﷺ जूता पहनते तो पहले सीधा पाँव सीधे जूते में डालते फिर उल्टा पाँव उलटे जूते में डालते और जूता उतारते वक़्त पहले उल्टा पाँव जूते में से निकालते फिर सीधा पाँव निकालते _,"*

*✪"_ कपड़े पहनने से पहले जरूर झाड़ लिजिये, हो सकता है कि उसमें कोई मुजी जानवर हो और खुदा ना ख्वास्ता कोई तकलीफ पहुंचाये, नबी करीम ﷺ एक बार जंगल में अपने मोजे पहन रहे थे, पहला मोजा पहनने के बाद जब आप ﷺ ने दूसरा मोजा पहनने का इरादा फरमाया तो एक कौवा झपटा और वो मोजा उठा कर उड़ गया और काफी ऊपर ले जा कर उसे छोड़ दिया_,"*
*"_ मोजा जब ऊंचाई से नीचे गिरा तो गिरने की चोट से उसमे से एक सांप निकल कर दूर जा पड़ा, ये देख कर आप ﷺ ने खुदा का शुक्र अदा किया और इरशाद फरमाया- हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि जब मोजा पहनने का इरादा करे तो उसे झाड़ लिया करे _," (तबरानी)*

*✪_(6) लिबास सफ़ेद पहनिये:-*
*✪"_ लिबास सफ़ेद पहनिये, सफ़ेद लिबास मर्दो के लिए पसंदीदा है, नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- "सफ़ेद कपड़े पहना करो, ये बेहतरीन लिबास है, सफ़ेद कपड़ा ही ज़िंदगी में पहनना चाहिए और सफ़ेद कपड़ों में मुर्दो को दफन करना चाहिए_," (तिर्मिज़ी - 994)*

*✪"_ एक और मौक़े पर आप ﷺ ने इरशाद फरमाया:- "सफेद कपड़े पहना करो, इसलिए कि सफेद कपड़ा ज़्यादा साफ सुथरा रहता है और इसी में अपने मुर्दो को कफनाया करो _," (इब्ने माजा)*

*✪"_,ज्यादा साफ सुथरा रहने से मुराद ये है कि अगर उस पर ज़रा सा दाग धब्बा भी लग जाए तो फोरन मेहसूस हो जाएगा और आदमी फोरन धो कर साफ कर लेगा, रंगीन कपड़ा होगा तो उस पर दाग धब्बा जल्द नज़र ना आएगा और जल्दी धोने की तरफ तवज्जो न होगी _,"*
*✪"_ सही बुखारी में है कि नबी करीम ﷺ सफेद लिबास पहना करते थे (बुखारी - 5827) यानी आप ﷺ ने खुद भी सफेद लिबास पसंद किया और उम्मत के मर्दो को भी इसी को पहनने की तरगीब दी_,"* 

*✪_ (7)_पायजामा और लुंगी वगेरा टखनों से ऊंचा रखिये :-*
*"✪_ जो लोग गुरुर व तकब्बुर में अपना पायजामा और लुंगी वगेरा लटकाते हैं, नबी करीम ﷺ की नज़र में वो नाकाम और नामुराद लोग हैं और सख़्त अज़ाब के मुस्तहिक़ हैं,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- तीन क़िस्म के लोग ऐसे हैं कि खुदा ता'ला क़यामत के दिन ना तो उनसे बात करेगा ना उनकी तरफ नज़र फरमाएगा और ना उनको पाक व साफ कर के जन्नत में दाखिल करेगा बल्की उनको इंतेहाई दर्दनाक अज़ाब देगा_,"*
*"_ हज़रत अबुज़र गिफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु ने पुछा- या रसूलल्लाह! ये नाकाम व नामुराद लोग कौन हैं ? इरशाद फरमाया-एक जो गुरुर और तकब्बुर में अपना तेहबंद टखनों से नीचे लटकाता है, दूसरा वो है जो अहसान जताता है और तीसरा वो शख्स है जो झूठी क़स्मो के सहारे अपनी तिजारत को चमकाना चाहता है _," (मुस्लिम -किताबुल ईमान- 293)*

*✪"_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु अपना एक वाक़िया बयान फरमाते हैं - मैं एक बार मदीना मुनव्वरा में जा रहा था कि मैंने अपने पिछले से ये कहते हुए सुना :- अपना तेहबंद ऊपर उठा लो कि इससे आदमी ज़ाहिरी नजा़फत से भी महफ़ूज़ रहता है और बातिनी नज़ासत से भी, मैंने गर्दन फैर कर जो देखा तो नबी करीम ﷺ थे, मैंने अर्ज किया- या रसूल्लाह!ये तो एक मामूली सी चादर है, भला इसमें क्या तकब्बुर और गुरूर हो सकता है?*
*"_नबी करीम ﷺ ने फरमाया - क्या तुम्हारे लिए मेरी इत्तेबा जरूरी नहीं है, मैंने नबी करीम ﷺ के अल्फाज़ सुने तो फौरन मेरी निगाह आप ﷺ के तेहबंद पर पड़ी, मैंने देखा कि आप ﷺ का तेहबंद निस्फ पिंडली तक ऊंचा है _, "*
 *®_(सुनन नसाई- शमाईल तिर्मिज़ी)*

*✪_(8)_मर्द रेशमी कपड़ा ना पहनें:-*
*"✪_मर्द रेशमी कपड़ा ना पहनें ये औरतों का लिबास है और नबी करीम ﷺ ने मर्दों को औरतों का सा लिबास पहनने और उनकी सी शक्ल व सूरत बनाने से सख्ती के साथ मना फरमाया है,*

*"✪_हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते है कि नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- रेशमी लिबास न पहनो कि जो इसको दुनिया में पहनेगा वो आख़िरत में इसको ना पहन पाएगा_,"*
 *"_®_ बुखारी किताबुल लिबास -5830, मुस्लिम किताबुल लिबास -5410,*

*✪"_ एक बार नबी करीम ﷺ ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया- इस रेशमी कपड़े को फाड़ कर और इसके दुपट्टे बना कर इनको फातिमाओं में तक़सीम कर दो_,"*
 *®_ मुस्लिम किताबुल लिबास -5422,*
*"✪_ फ़ातिमाओं से मुराद ये तीन का़बिले अहतराम ख़्वातीन हैं:- (1)_ फ़ातिमा ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा नबी करीम ﷺ की प्यारी बेटी और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़ोजा मोहतरमा, (2)_ फ़ातिमा बिन्ते असद, हज़रत अली की वालिदा मोहतरमा, (3)_फातिमा बिन्ते हमज़ा, हज़रत अमीर हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह ﷺ के चाचा की बेटी_,"*

*"✪_ इससे यह भी मालूम हुआ कि ख़्वातीन के लिए रेशमी कपड़ा पहनना पसंद है, इसीलिये आप ﷺ ने हुक्म दिया कि ख़्वातीन के दुपट्टे बना दो वर्ना कपडा तो दूसरे कामों में भी आ सकता है,*

*✪_औरतें बारीक कपड़े ना पहनें कि जिससे बदन झलके, चुस्त लिबास भी ना पहनें कि बदन की बनावट नज़र आए :-*
*"✪_ औरतें एसे बारीक कपड़े न पहनें जिसमें से बदन झलके और न ऐसा चुस्त लिबास पहनें जिसमें से बदन की साख्त और ज़्यादा पुर कशिश हो कर नुमाया हो और वो कपड़े पहन कर भी नंगी नज़र आए_,"*

*"✪_ नबी करीम ﷺ ने ऐसी आबरू बा खता औरतों को इबरतनाक अंजाम की खबर दी है:-*
*"_ वो औरतें भी जहन्नमी हैं जो कपड़े पहन कर भी नंगी रहती हैं, दूसरों को रिझाती है और खुद दूसरों पर रीझती है, उनके सर नाज़ से बख्ती ऊंटों के कोहन की तरह टेढ़े हैं, ये औरतें ना जन्नत में आएंगी और ना जन्नत की खुश्बू पाएंगी, हलांकी जन्नत की खुश्बू बहुत दूर से आती है _,"*
 *®_बुखारी, किताबुल लिबास -5582,*

*"✪_ एक बार हज़रत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा बारीक कपड़े पहने हुए नबी करीम ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुई, वो सामने आईं तो आपने फोरन मुंह फेर लिया और फरमाया- असमा! जब औरत जवान हो जाए तो उसके लिए जाइज़ नहीं कि मुंह और हाथ के अलावा उसके जिस्म का कोई हिस्सा नज़र आए _,"*
 *®_ अबू दाउद, किताबुल लिबास -4104,*

*"✪_ तहबंद और पायजामा वगेरा पहनने के बाद भी ऐसे अंदाज से लेटने और बैठने से बचें जिसमें बदन खुल जाने या नुमाया हो जाने का अंदेशा हो, नबी करीम ﷺ का इरशाद है:-*
*"_ एक जूता पहन का न चला करो और तहबंद में एक जानू उठा कर उकडू न बेठो और बाएं हाथ से न खाओ और चादर पूरे बदन पर इस अंदाज से ना लपेटो कि काम काज करने या नमाज़ वगेरा पढ़ने में भी हाथ ना निकल सके और ना चित लेट कर एक पांव को दूसरे पांव पर रखो (कि इस तरह सतर पोशी में बे अहतयाति का अंदेशा है)_,"*
 *®_ (मुस्लिम, किताबुल लिबास)* 

*✪_(10)_ लिबास में मर्द व औरत एक दूसरे का रंग ढंग ना अपनाएं ;-*
*✪"_ लिबास में औरतें और मर्द एक दूसरे का सा रंग ढंग ना अख्त्यार करें, नबी करीम ﷺ न उन मर्दों पर लानत फरमाई है जो औरतों का सा रंग ढंग अख्त्यार करें और उन औरतों पर भी लानत फरमाई है जो मर्दों का सा रंग ढंग अख्त्यार करें_," (बुखारी, किताबुल लिबास -5885)*

*✪"_ एक बार हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से किसी ने ज़िक्र किया कि एक औरत है जो मर्दों के से जूते पहनती है, तो आप रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया- रसूलुल्लाह ﷺ ने ऐसी औरतों पर लानत फरमाई है जो मर्द बनने की कोशिश करती है _," (अबू दाउद -4099)* 

*✪_(11)_ ख़्वातीन दुपट्टा ओढ़े रहने का अहतमाम रखे और इससे अपने सर और सीने को छुपाए रखे_,"*
*"✪_ दुपट्टा ऐसा बारीक न ओढ़े जिससे सर के बाल नज़र आए, दुपट्टे का मक़सद ही ये है कि इससे ज़ीनत को छुपाया जाए, क़ुरान पाक में खुदा ता'ला का इरशाद है:- और अपने सीनों पर अपने दुपट्टे के आँचल डाले रखें _," (अन नूर-31)*

*"✪_ एक बार नबी करीम ﷺ के पास मिस्र की बनी बारीक मलमल की चादर आई, आपने उसमें से कुछ हिस्सा फाड़ कर दहिया कलबी को दिया और फरमाया इसमे से एक हिस्सा फाड़ कर तुम अपना कुर्ता बना लो और एक हिस्सा अपनी बीवी को दुपट्टा बनाने के लिए दे दो मगर उनसे कह देना कि इसके नीचे एक और कपड़ा लगा लें ताकी जिस्म की साख्त अंदर से न झलके _," (अबू दाऊद - 4116)*

*"✪_ किताब व सुन्नत की सरीह हिदायात को पेशे नज़र रख कर अहकामे इलाही के मक़सद को पूरा कीजिये और चार गिरह की पट्टी को गले का हार बना कर खुदा और रसूल के अहकाम का मज़ाक न उड़ाएं, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि जब ये हुक्म नाज़िल हुआ तो औरतों ने बारीक कपड़े छोड़ कर मोटे कपड़े छाँटे और उनके दुपट्टे बनाये _," (अबू दाउद - 4102)* 

*✪_ (12)_लिबास हमेशा अपनी वुसअत और हैसियत के मुताबिक पहनें :-*
*✪"_ लिबास हमेशा अपनी वुस्अत और हैसियत के मुताबिक़ पेहने, ना ऐसा लिबास पेहने जिससे फ़ख़र व नुमाइश का इज़हार हो और आप दूसरों को हक़ीर समझ कर इतरायें, और अपनी दौलत मंदी की बेजा नुमाइश करे' और न ऐसा लिबास पेहने जो आपकी वुस'अत से ज़्यादा क़ीमती हो और आप फ़िज़ूल खर्ची के गुनाह में मुब्तिला हों _,"*

*"✪_ और ना ऐसे शिकस्ता हाल बने रहें कि हर वक़्त आपकी हालत सवाल बनी रहे और सब कुछ होने के बावजूद आप मेहरूम नज़र आएं बल्कि हमेशा अपनी वुस्अत व हैसियत के लिहाज़ से मोजू बा सलीका़ और साफ सुथरे कपडे पेहने,*

*✪"_ बाज़ लोग फटे पुराने और मेले कुचेले कपड़े पहन कर शिकस्ता हाल बने रहते हैं और इसको दीनदारी समझते हैं, इतना ही नहीं बल्कि वो उन लोगों को दुनियादार समझते हैं जो साफ सुथरे सलीक़े के कपड़े पहनते हैं हालांकी दीनदारी का ये तसव्वुर सरासर ग़लत है, हज़रत अबुल हसन आमी साज़ली रह. एक बार निहायत ही उम्दा लिबास पहने हुए थे, किसी शिकस्ता हाल सूफी में उनके इस ठाट बाट पर एतराज़ किया कि भला अल्लाह वालों को ऐसा लिबास पहनने की क्या ज़रूरत है?हजरत साज़ली रह.ने जवाब दिया- भाई ये शान व शोकत, अज़मत व शान वाले खुदा की हम्द व शुक्र का इज़हार है और तुम्हारी ये शिकस्ता हाली सूरते सवाल है, तुम जुबाने हाल से बंदो से सवाल कर रहे हो _,"*

*"✪_ एक शख़्स ने नबी करीम ﷺ से कहा, या रसूलल्लाह ﷺ! मैं चाहता हूं मेरा लिबास निहायत उम्दा हो, सर में तेल लगा हुआ हो, जूते भी नफीस हो, इसी तरह उसने बहुत सी चीज़ों का ज़िक्र किया, यहां तक ​​कि उसने कहा कि मेरा जी चाहता है मेरा कोड़ा भी निहायत उम्दा हो, नबी करीम ﷺ उसकी गुफ्तगू सुनते रहे, फिर फरमाया - "ये सारी ही बातें पसंदीदा है और खुदा इस लतीफ ज़ोक को अच्छी नजर से देखता है _," (मुस्तद्रक अहमद)*

*✪_"_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं, मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से दरियाफ़्त किया, या रसूलुल्लाह ﷺ! क्या यह तकब्बुर और गुरूर है कि मै नफीस और उम्दा कपड़े पहनूं, आप ﷺ ने इरशाद फरमाया- नहीं बल्कि यह तो खूबसूरती है और खुदा इस खूबसूरती को पसंद फरमाता है _," (इब्ने माजा)"* 

*✪_(13)_ पहनने, ओढ़ने और बनाव सिंघार करने में भी ज़ोक का पूरा ख्याल रखिए:-*
*"✪__पहनने और बनाव सिंघार करने में भी ज़ोक और सलीक़े का पूरा खयाल रखिए, गिरेबान खोले खोले फिरना, उलटे सीधे बटन लगाना, एक पायचा चढ़ाना और एक नीचा रखना और एक जूता पहने चलना या उलझे हुए बाल रखना, ये सब ही बातें ज़ोक और सलीक़े के ख़िलाफ हैं _,"*

*"✪__ एक दिन नबी करीम ﷺ मस्जिद में तशरीफ रखते थे कि इतने में एक शख्स मस्जिद में आया जिसके सर और दाढ़ी के बाल बिखरे हुए थे, नबी करीम ﷺ ने अपने हाथ से उसकी तरफ इशारा किया जिसका मतलब ये था कि जाकर अपने सर के बाल और दाढ़ी को संवारो, चुनांचे वो शख्स गया और बालों को बना संवार कर आया तो आप ﷺ ने इरशाद फरमाया:- क्या ये ज़ीनत व आराइश इससे बेहतर नहीं कि आदमी के बाल उलझे हुए हों ? ऐसा मालूम होता है कि गोया वो शख्स शैतान है _," (मिश्कात)*

*"✪__ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया कि एक जूता पहन कर कोई न चले या दोनो पहन कर चलो या दोनो उतार कर चलो_, (तिर्मिज़ी - 1774)*
*"✪__और इसी हदीस की रोशनी में उल्मा ए दीन ने एक आस्तीन और एक मोज़ा पहनने की भी मुमानत फरमाई है_,"*

*"✪__ जूता पहनते वक़्त पहले दाहिने पाँव में जूता डालो, और जब जूते उतारो तो पहले बाँया पाँव निकालो_," (बुखारी -5856)*  

*✪_(14)_ सुर्ख और ज़ोक रंग, बर्क़ पोशाक और नुमाइशी सियाह और गेरूवा कपड़े पहनने से भी परहेज़ कीजिये:-*
*"✪_ सुर्ख और ज़ोक रंग, बर्क़ पोशाक और नुमाइशी काले और गेरूवा कपडे पहनने से भी परहेज़ कीजिए, सुर्ख और शोख रंग और ज़ौक पोशाक औरतों ही के लिए मुनासिब है और उनको भी हुदूद का ख़याल रखना चाहिए, रहे नुमाइशी लम्बे चौड़े जुब्बे या काले और गेरूवा कपड़े पहन कर दूसरों के मुक़ाबले में अपनी बरतरी दिखाना और अपना इम्तियाज़ जताना तो ये सरासर किब्र व गुरूर की अलामत है,*

*"✪_इसी तरह ऐसे अजीब व गरीब और मुज़ाहका खेज़ कपड़े भी ना पहनें जिसके पहनने से आप ख्वाह मख्वाह अजूबा बन जाएं और लोग आपको हंसी और दिल्लगी का मोजू़ बना लें_,"*

*✪_(15)_ हमेशा सादा और बा वका़र और महज़ब लिबास पहनें:-*
*✪_ हमेशा सादा और बा वका़र और महज़ब लिबास पहनें और लिबास पर हमेशा ऐतदाल के साथ खर्च कीजिए, लिबास में ऐश पसंदी और ज़रुरत से ज़्यादा नज़ाकत से परहेज़ कीजिए,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- ऐश पसंदी से दूर रहो, इसलिए कि खुदा के प्यारे बंदे ऐश परस्त नहीं होते_," (मिश्कात)*
*"✪_ और नबी करीम ﷺ ने ये भी इरशाद फरमाया कि जिस शख़्स ने वुस्अत और कुदरत के बावजूद महज़ खाकसारी और आजिज़ी की गर्ज़ से लिबास में सादगी अख्त्यार की तो खुदा उसको शराफत और बुज़ुर्गी के लिबास से आरास्ता फरमाएगा_," ( अबू दाऊद -2481)*

*✪"_ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम एक दिन बैठे दुनिया का ज़िक्र फरमा रहे थे, तो नबी करीम ﷺ ने फरमाया - लिबास की सादगी ईमान की अलामतों में से एक अलामत है_," (अबू दाऊद)*

*✪"_ एक बार नबी करीम ﷺ ने फरमाया - खुदा के बहुत से बंदे जिनकी ज़ाहिरी हालत निहायत मामूली होती है बाल परेशान और गुबार में अटे हुए कपड़े मामूली और सादा होते हैं लेकिन खुदा की नज़र में उनका मर्तबा इतना बुलंद होता है कि अगर वो किसी बात पर क़सम खा बैठे तो खुदा उनकी क़सम को पूरा ही फरमा देता है, इस क़िस्म के लोगों में से एक बरा बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु भी हैं _," (तिर्मिज़ी - 3854)* 

*✪_(16)_नादारो को लिबास पहनाइए :-*
*✪_"खुदा की इस नियामत का शुक्र अदा करने के लिए उन नादारो को भी पहनाएं जिनके पास तब ढ़ांकने के लिए कुछ ना हो _,"*

*✪__ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- "जो शख्स किसी मुसलमान को कपडे पहना कर उसकी तन पोशी करेगा तो खुदा ता'ला क़यामत के रोज़ जन्नत का सब्ज़ लिबास पहना कर उसकी तन पोशी फरमाएगा _," (तिर्मिज़ी -2449)*

*✪_"_ और आप ﷺ ने ये भी फरमाया कि किसी मुसलमान ने अपने मुसलमान भाई को कपड़े पहनाए तो जब तक वो कपड़े पहनने वाले के बदन पर रहेंगे, पहनाने वाले को खुदा अपनी निगरानी और हिफाज़त में रखेंगा_," (तिर्मिज़ी - 2484)* 

*✪_(17)_ अपने खादिमों को भी अपनी हैसियत के मुताबिक़ अच्छा लिबास पहनाइए:-*
*✪"_ अपने उन नौकरों और खादिमों को भी अपनी हैसियत के मुताबिक़ अच्छा लिबास पहनाएं जो शब व रोज़ आपकी खिदमत में लगे रहते हैं _,"*

*✪"_ नबी करीम ﷺ ने फरमाया: लौंडी और गुलाम तुम्हारे भाई हैं, खुदा ने उनको तुम्हारे कब्ज़े में दे रखा है, पस तुममें से जिस किसी के कब्ज़े व तसर्रूफ़ में खुदा ने किसी को दे रखा है तो उसे चाहिए कि उसको वही खिलाए जो वो खुद खाता है और उसे वेसा ही लिबास पहनाएं जो वो खुद पहनता है और उस पर काम का इतना ही बोझ डाले जो उसकी सहारे से ज़्यादा ना हो, और अगर वो उस काम को ना कर पा रहा हो तो खुद उस काम में उसकी मदद करें _,"*
 *®_बुखारी व मुस्लिम)*

           *📓 मदनी माशरा -113,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

           *☞__ तहारत और नज़ाफत _"*
                    ▪•═════••════•▪
*✪_तहरात व नज़ाफ़त:- ख़ुदा ने उन लोगों को अपना महबूब क़रार दिया है जो तहारत और पाकीज़गी का पूरा अहतमाम करते हैं और नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- "तहारत और पाकीज़गी आधा ईमान है_," (मुस्लिम-533)*

*"✪_ यानि आधा ईमान तो यह है कि आदमी रूह को पाक व साफ रखे और आधा ईमान ये है कि आदमी जिस्म की सफाई और पाकी का ख़्याल रखे, रूह की तहारत व नजा़फत ये है कि उसे कुफ्र व शिर्क और मा'सियत व ज़लालत की नजासतो से पाक कर के सालेह अक़ाइद और पाकीज़ा अख़लाक़ से आरास्ता किया जाए _,"*

*✪"_ और जिस्म की तहारत व नज़ाफ़त ये है कि उसे ज़ाहिरी ना-पाकियों से पाक व साफ़ रख कर नज़ाफ़त और सलीके के आदाब से आरास्ता किया जाए,*

*✪"_ तहरत व नज़ाफत के आदाब :-*
*"_(1)_ सो कर उठने के बाद हाथ धोए बगैर पानी के बरतन में हाथ ना डालें, क्या मालूम सोते में आपका हाथ कहां कहां पड़ा हो,*

*✪"_(2)_ गुस्ल खाने की ज़मीन पर पेशाब करने से परहेज़ कीजिये बिलखुसूस जब गुस्ल खाने की ज़मीन कच्ची हो_,"* 

*✪_ (3)_ ज़रुरियात से फरागत के लिए न क़िब्ला रुख़ बेठिये और न क़िब्ला की तरफ़ पीठ कीजिये, फ़रागत के बाद ढेले और पानी से इस्तिंजा कीजिये या सिर्फ पानी से तहारत हासिल कीजिये, लीद हड्डी और कोयले वगेरा से इस्तिंजा ना कीजिये और इस्तिंजा के बाद साबुन या मिट्टी से खूब अच्छी तरह हाथ धो लीजिए _,"*

*✪_(4)_ जब पेशाब पाखाने की ज़रूरत हो तो खाना खाने न बेठिये, फरागत के बाद खाना खाएं,*

*✪_(5)_ खाना वगैरा खाने के लिए दांया हाथ इस्‍तेमाल कीजिये, वज़ू में भी दांया हाथ से काम लीजिये और इस्तिंजा और नाक वगैरा साफ करने के लिए बायां हाथ इस्‍तेमाल कीजिये,*

*✪_(6)_ नरम जगह पर पेशाब कीजिये ताकी छींटे न उड़े, और हमेशा बैठ कर पेशाब कीजिये, हां अगर ज़मीन बैठने के लायक़ ना हो या कोई और वाक़ई मजबूरी हो तो खड़े हो कर पेशाब कर सकते हैं लेकिन आम हालात में ये बड़ी गंदी आदत है जिससे सख्ती के साथ परहेज़ करना चाहिए*

*✪_(7)_ नाक साफ करने या बलगम थूकने के लिए अहतयात के साथ उगालदान इस्तेमल कीजिये या लोगों की निगाह से बच कर अपनी ज़रुरियात पूरी कीजिये,*

*✪_(8)_ बार बार नाक में उंगली डालने और नाक की गंदगी निकालने से परहेज़ कीजिए, अगर नाक साफ करने की ज़रूरत हो तो लोगों की निगाह से बचकर अच्छी तरह इत्मिनान से सफाई कर लीजिए,*

*✪_(9)_ वज़ू काफ़ी अहतम के साथ कीजिये और अगर हर वक़्त मुमकिन ना हो तो अक्सर बा वज़ू रहने की कोशिश करें, जहाँ पानी मयस्सर ना हो तयम्मुम कर लिया कीजिये, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कह कर वज़ू शूरू कीजिये और वज़ू के बाद ये दुआ पढ़िए:-*
*"_अशहदु अल्ला'इलाहा इल्लल्लाहु वाहदहु ला शरीका लहू वा अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु वा रसूलुहु अल्लाहुम्मज अलनी मिनत तव्वाबीना वजअलनी मिनल मुत'तहरीन_,"*
*®_ (तिर्मिज़ी, 55)*
*"✪_ (तर्जुमा)_ मै गवाही देता हूं कि खुदा के सिवा कोई मा'बूद नहीं, वो यकता है और उसका कोई शरीट नहीं, और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद ﷺ खुदा के बंदे और उसके रसूल हैं, खुदाया! मुझे उन लोगों में शामिल फरमा जो बहुत ज़्यादा तौबा करने वाले और बहुत ज़्यादा पाक व साफ रहने वाले हैं_,"*

*"✪_ और वजू से फारिग हो कर ये दुआ पढ़िए:-*
*"_सुब्हानाकल्ला हुम्मा वबिहमदिका अश'हदु अल्ला'इलाहा इल्ला अन्ता अस्तगफिरुका वा अतुबु इलैका_,"*
 *®_ (नसाई),*
*✪"_(तरजुमा)_ खुदाया तू पाक व बरतर है अपनी हमदो सना के साथ, मैं गवाही देता हूं कि कोई मा'बूद नहीं मगर तू ही है, मैं तुझसे मग्फिरत का तालिब हूं और तेरी तरफ रुजु करता हूं _,"*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है: क़यामत के रोज़ मेरी उम्मत की निशानी ये होगी कि उनकी पेशानियां और वज़ू के आ'ज़ा नूर से जगमगा रहे होंगे पस जो शख़्स अपने नूर को बढ़ाना चाहे बढ़ाए _,"*
 *®_(बुखारी व मुस्लिम - 580)*

*✪_(10)_ पाबंदी के साथ मिसवाक कीजिये:-*
*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है कि अगर मुझे उम्मत की तकलीफ़ का ख़याल न होता तो मैं हर वज़ू में उनको मिसवाक करने का हुक्म देता_," (अबू दाउद - 46)*

*✪"_एक मर्तबा आप ﷺ के पास कुछ लोग आए जिनके दांत पीले हो रहे थे, आप ﷺ ने देखा तो ताकीद फरमाई कि मिसवाक किया करो_,"*

*"✪_(11)_ हफ़्ते में एक बार तो ज़रूर गुस्ल कीजिए, जुमा के दिन गुस्ल का अहतमाम किजिये और साफ़ सुथरे कपड़े पहन कर जुमा की नमाज़ में शिरकत कीजिए:-*

*✪"_ नबी करीम ﷺ ने फरमाया - अमानत की अदायगी आदमी को जन्नत में ले जाती है, सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने पुछा - या रसूलुल्लाह ﷺ! अमानत से क्या मुराद है? फरमाया - नापाकी से पाक होने के लिए गुस्ल करना, इससे बढ़ कर खुदा ने कोई अमानत मुकर्रर नहीं की है, पस जब आदमी को नहाने की हाजत हो जाए तो गुस्ल कर ले_,"*

*✪_(12)_ ना-पाकी की हालत में ना मस्जिद में जाएं और ना मस्जिद में से गुज़रिए और अगर कोई सूरत मुमकिन ना हो तो फिर तयम्मुम कर के मस्जिद में जाएं और गुज़रिए:-*

*✪"_(13)_ बालों में तेल डालने और कंघा करने का भी अहतमाम कीजिए, ढाड़ी के बड़े हुए बे ढ़ंगे बालों को दुरुस्त कर लीजिए, आंखों में सूरमा भी लगाएं, नाखून तराशने और साफ रखने का भी अहतमाम कीजिये और बंदगी और ऐतदाल के साथ मुनासिब जै़बो ज़ीनत का अहतमाम कीजिये,*

*"✪_(14)_ रुमाल में बलगम थूक कर मलने से सख्ती के साथ परहेज़ कीजिये, जब तक कि कोई मजबूरी ना हो,*

*"✪_(15)_ मुंह में पान भर कर इस तरह बातें ना किजिये कि मुखातिब पर छींटे उड़े और उसे तकलीफ हो, इसी तरह अगर तम्बाकु और पान कसरत से खाते हो तो मुंह साफ रखने का भी इंतेहाई अहतमाम कीजिये और इसका भी लिहाज़ रखिए कि बात करते वक्त अपना मुंह मुखातिब के क़रीब ना ले जाएं,*
*✪"_(16)_ छींकते वक्त मूंह पर रूमाल रख लीजिए ताकि किसी पर छींटे न पड़े, छींखने के बाद अल्हम्दुलिल्लाह (तमाम तारीफ अल्लाह के लिए है) कहिये, सुनने वाला "यर हमकल्लाह (खुदा आप पर रहम फरमाये ) कहे और इसके जवाब में "यहदीकुमुल्लाह" (खुदा आपको हिदायत बख्शे) कहिए,*

*✪"_(17)_ खुश्बू का कसरत से इस्तेमाल कीजिए, नबी करीम ﷺ खुश्बू को बहुत पसंद फरमाते थे, आप ﷺ सो कर उठने के बाद जब ज़रुरियात से फ़ारिग़ होते तो ख़ुशबू ज़रूर लगाते,* 

           *📓 मदनी माशरा -116,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

        *☞_ सेहत इस तरह संभालिये _"*
          ▪•═════••════•▪
*✪_ (1)__सहत इस तरह संभालिये:-*
*"✪_ सहत खुदा की अज़ीम नियामत भी है और अज़ीम अमानत भी, सहत की क़द्र कीजिये और उसकी हिफाज़त में कभी लपरवाही न बरते, एक बार सहत बिगड़ जाती है तो फिर बड़ी मुश्किल से बनती है, जिस तरह हक़ीर दीमक बड़े बड़े कुतुबखानों को चाट कर तबाह कर डालती है, इसी तरह सहत के मामले में मामूली सी खयानत और हकी़र बीमारी ज़िंदगी को तबाह कर डालती है_,"*

*✪"_ सहत के तक़ाज़ों से गफलत बरतना और उसकी हिफाज़त में कोताही करना बेहसी भी है और खुदा की नाशुक्री भी, अक़ल व दिमाग की नशो नुमा, फजा़इल अखलाक़ के तक़ाज़े और दीनी फ़राइज़ को अदा करने के लिए जिस्मानी सहत बुनियाद की हैसियत रखती है, कमज़ोर और मरीज़ जिस्म में अक़ल व दिमाग भी कमज़ोर होते हैं _,"*

*✪"_ हमेशा खुश व खुर्रम हश्शाश बश्शाश और चाक चोबंद रहें, खुश बाशी खुश अखलाकी़, मुस्कुराहट और जिंदादिली से जिंदगी को आरास्ता, पुर कशिश और सहतमंद रखिए, गम गुस्सा, रंज व फिक्र, हसद व जलन, बदख्वाही, तंगनज़री, मुर्दादिली और दिमागी उलझनों से दूर रहें, ये अखलाकी़ बीमारियां और ज़हनी उलझने मैदे को बुरी तरह मुतास्सिर करती है और मैदे का फसाद सहत का बद्तरीन दुश्मन है,*

*✪"_ एक बार नबी करीम ﷺ ने एक बुढ़े शख्स को देखा कि वो अपने दो बेटों का सहारा लिए हुए उनके बीच में घिसटते हुए जा रहा है, आप ﷺ ने पूछा - इस बुढ़े को क्या हो गया है? लोगों ने बताया कि उसने बैतुल्लाह तक पैदल चलने की नज़र मानी थी, नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:- खुदा इससे बेनियाज़ है कि ये बुढ़ा खुद को अज़ाब में मुबतिला करे और उस बुढ़े को हुक्म दिया कि सवार हो कर अपना सफर पूरा करो _," ( मुस्लिम -4247)*

*✪_(2)_ अपने जिस्म पर बर्दाश्त से ज़्यादा बोझ ना डालिए:-*
*✪"_ जिस्मानी क़ुव्वतों को जा़या न कीजिये, जिस्मानी क़ुव्वतों का ये हक़ है कि उनकी हिफाज़त की जाए और उनसे उनकी बर्दाश्त के मुताबिक ऐतदाल के साथ काम लिया जाए,*

*✪"_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- उतना ही अमल करो जितना कर सकने की तुम्हारे अंदर ताक़त हो, इसलिए कि खुदा नहीं उकताता यहां तक कि तुम खुद ही उकता जाओ_, "(बुखारी)*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- मोमिन के लिए मुनासिब नहीं है कि वो अपने को ज़लील करें, लोगो ने पूछा- मोमिन भला केसे अपने आपको ज़लील करता है? इरशाद फरमाया- अपने आपको ना का़बिले बर्दाश्त आज़माइश मे डाल देता है _," (तिर्मिज़ी)* 

*✪_(3)_ जफाकशी और बहादुरी की ज़िंदगी गुजा़रिये :-*
*✪"_ हमेशा सख़्त कोशी, जफ़ाकशी, मेहनत मशक्कत और बहादुरी की ज़िंदगी गुज़ारें, हर तरह की सख़्तियाँ झेलने और सख़्त से सख़्त हालात का मुक़ाबला करने की आदत डालिए और सख़्त जान बन कर सादा और मुजाहिदाना ज़िन्दगी गुज़ारने का अहतमाम कीजिए, आराम तलब, सहल अंगार, नज़ाकत पसंद, कामिल, ऐश परस्त, पस्त हिम्मत और दुनिया परस्त ना बनिए,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ जब हज़रत मा'ज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन का गवर्नर बना कर भेजने लगे तो हिदायत फरमाई कि मा'ज़! अपने को ऐश परस्ती से बचाए रखना, इसलिए कि खुदा के बंदे ऐश परस्त नहीं होते_,"(मिश्कात)*

*✪"_ और हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया - सादा ज़िंदगी गुज़ारना ईमान की अलामत है _," (अबू दाउद)*
*"✪_ नबी करीम ﷺ हमेशा सादा और मुजाहिदाना ज़िंदगी गुज़ारते थे और हमेशा अपनी मुजाहिदाना क़ुव्वत को महफ़ूज़ रखने और बढ़ाने की कोशिश फ़रमाते थे, आप ﷺ तैरने में भी दिलचस्पी रखते थे इसलिए कि तैरने से जिस्म की बेहतरीन वर्ज़ीश होती है,*

*"✪_ हज़रत उक़बा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते है कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया - तीर चलाना सीखो, घोड़े पर सवार हुआ करो, तीरंदाजी करने वाले मुझे घोड़ों पर सवार होने वालों से भी ज्यादा पसंद है और जिसने तीरंदाज़ी सीख कर छोड़ दी उसने खुदा की नियामत की क़द्र नहीं की _," (अबू दाउद -2513)*

*✪_(4)_ ख़्वातीन भी सख्त कोशी और मेहनत मशक्कत की जिंदगी गुज़ारें:-*
*✪"_ ख़्वातीन भी सख़्त कोशी और मेहनत मशक्कत की ज़िंदगी गुज़ारें, घर के काम काज अपने हाथों से करें, चलने फिरने और तकलीफ़ बर्दाश्त करने की आदत डालें, आराम तल्बी, सुस्ती और ऐश पसंदी से परहेज़ करें।*

*✪"_ और औलाद को भी शुरू से सख्त कोश, ज़फाकश और सख्त जान बनाने की कोशिश करें, घर में मुलाजिम हो तब भी औलाद को बात बात में मुलाजिम का सहारा लेने से मना करें, और आदत डालें कि बच्चे अपना काम खुद अपने हाथ से करें*

*✪"_ सहाबिया औरतें अपने घर का काम अपने हाथ से करती थीं, बावर्ची खाने का काम खुद करतीं, चक्की पीस्ती, पानी भर कर लाती, कपड़े धोती, सीने पिरोने का काम करती, और मेहनत मशक्कत की ज़िंदगी गुज़ारती और ज़रुरत पड़ने पर मैदान जंग में ज़ख़्मियों की मरहम पट्टी करने और पानी पिलाने का नज़म भी संभाल लेती,*

*✪"_ इससे खवातीन की सेहत भी बनी रहती है, अख़लाक़ भी सेहतमंद रहते हैं और बच्चे पर भी इसके अच्छे असरात पड़ते हैं, इस्लाम की नज़र में पसंदीदा बीवी वही है जो घर के काम काज में मसरूफ़ रहती हो और जो शब व रोज़ इस तरह घरेलू ज़िम्मेदारियों में लगी रहती है कि उसके चेहरे बशरे से मेहनत की थकन भी नुमाया रहे और बावर्ची खाने की सियाही और धूएं का मलगजापन (मटमेला पन) भी ज़ाहिर हो रहा हो, नबी करीम ﷺ का इरशाद है कि मैं और मलगजे गालों वाली औरत क़यामत के दिन इस तरह होंगे _ ," आप ﷺ ने शहादत की उंगली और बीच की उंगली को मिलाते हुए फरमाया_,"*

*✪_ (5)_ सुबेह जल्दी उठने की आदत डालें:-*
*"✪_ सुबेह जल्दी उठने की आदत डालें, सोने में ऐतदाल का ख्याल रखें, न इतना कम सोयें कि जिस्म को पूरी तरह आराम व सुकून ना मिल सके और आ'ज़ा में थकान और शिकस्तगी रहे और ना इतना ज्यादा सोयें कि सुस्ती और काहिली पैदा हो,*

*"✪_ रात को जल्दी सोने और सुबेह जल्दी उठने की आदत डालिए, सुबेह उठ कर खुदा की बंदगी बजा लाएं, और चमन या मैदान में टहलने और तफरीह करने के लिए निकल जाएं, सुबेह की ताज़ा हवा सेहत पर बहुत अच्छा असर डालती है,*

*✪"_ रोज़ाना अपनी जिस्मानी कु़व्वत के लिहाज़ से मुनासिब और हल्की फुल्की वार्ज़िश का भी अहतमाम कीजिए, नबी करीम ﷺ बाग की तफ़रीह को पसंद फ़रमाते थे और कभी कभी ख़ुद भी बागो में तशरीफ़ ले जाते थे, आप ﷺ ने इशा के बाद जागने और गुफ्तगु करने की मुमानत फरमाई और फरमाया- इशा के बाद वही शख्स जाग सकता है जिसे कोई दीनी गुफ्तगु करनी हो या फिर घर वालों से ज़रूरत की बातचीत करनी हो,*

*✪_(6)_ ज़ब्ते नफ़्स की आदत डालिए:-*
*"✪_ नफ़्स को का़बू में रखने की आदत डालिए, जज़्बात ख्यालात, ख्वाहिशात और शेहवत पर काबू रखिए, अपने दिल को बहकने, ख्यालात को मुंतशिर होने और निगाहों को आवारा होने से बचाइए,*

*✪"ख्वाहिशात की राह रवि और नज़र की आवारगी से दिलों दिमाग, सुकून व आफियत से महरूम हो जाते हैं और ऐसे चेहरे जवानी के हुस्नो जमाल, मलाहत व कशिश और मरदाना सिफात की दिलकशी से मेहरूम हो जाते हैं और फिर वो जिंदगी के हर मैदान में पस्त हौसला और बुज़दिल साबित होते हैं,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है: आंखों का ज़िना बदनिगाही और ज़ुबान का ज़िना बेहयाई की गुफ्तगू है, नफ़्स तक़ाज़े करता है और शर्मगाह या तो उसकी तसदीक़ कर देती है या तकज़ीब?*

*✪"_ किसी हकीम दाना ने कहा - मुसलमानो! बडदकारी के करीब ना फटको, उसमें तीन खराबियां हैं: - आदमी के चेहरे की रौनक और कशिश जाती रहती है, आदमी पर फक़् व अफलास की मुसीबत नाज़िल होती है और उसकी उम्र कोताह हो जाती है _,"* 

*✪__(7)_ नशा आवर चीज़ों से बचिए:-*
*✪__नशा आवर चीज़ों से बचिए, नशा आवर चीज़ दिमाग को भी मुतास्सिर करती है और मैदे को भी, शराब तो खैर हराम है ही इसके अलावा भी जो नशा लान वाली चीज़ है उनसे भी परहेज़ कीजिए,*

*✪_(8)_ हर काम में ऐतदाल और सादगी का लिहाज़ रखिए:-*
*✪_ हर काम में ऐतदाल और सादगी का लिहाज़ रखिए, जिस्मानी मेहनत में, दिमागी काविश में, अज़्दवाजी़ ताल्लुक़ में, खाने पीने में, सोने और आराम करने में फ़िकर मंद रहने और हंसने में, तफ़रीह में और इबादत में, रफ़्तार व गुफ्तार में, गर्ज़ हर चीज़ में ऐतदाल रखिये और इसको खैर व खूबी का सर चश्मा तसव्वुर कीजिये,*

*✪__ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- खुश हाली में मियाना रवि क्या ही खूब है, नादारी में ऐतदाल की रविश क्या ही भली है और इबादत में दरमियानी रविश क्या ही बेहतर है _," (मुसनद बिज्ज़ार, कंजु़ल उम्माल)*  

*✪_(9)_खाना वक्त पर खाइये:-*
*"✪_ खाना हमेशा वक्त पर खाएं, पुर खोरी से बचिए, हर वक्त मुंह चलाते रहने से परहेज़ कीजिये, खाना भूख लगने पर ही खायें और जब कुछ भूख बाक़ी हो तो उठ जाएं, भूख से ज्यादा तो हरगिज़ न खायें,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - मोमिन एक आंत में खाता है और काफिर सात आंत में खाता है_," (तिर्मिज़ी-1818)*

*✪"_ सहत का दारोमदार मैदे की सहतमंदी पर है, मैदा बदन के लिए हौज़ की मानिंद है और रगें उस हौज से सैराब होने वाली है, पस अगर मैदा सही और तंदूरस्त है तो रगें भी सहत से सैराब हो कर लोटेंगी और अगर मैदा ही खराब और बीमार है तो रगें बीमारी चूस कर लोटेंगी _," (मिश्कात)*

*✪"_ कम खोरी की तरगीब देते हुए नबी करीम ﷺ ने ये भी फरमाया - एक आदमी का खाना दो आदमियों के लिए काफी है _," (तिर्मिज़ी -1820)* 

*✪_ (10)_हमेशा सादा खाना खाइये :-*
*"✪_हमेशा सादा खाना खाइये, बगैर छने हुए आटे की रोटी खाइये, ज़्यादा गरम खाने से भी परहेज़ कीजिये, मसाले, चटखारो और ज़रुरत से ज़्यादा लज्ज़त तल्बी से परहेज़ कीजिये, ऐसी गिज़ाओं का अहतमाम कीजिये जो जल्द हज़म और सादा हो और जिनसे जिस्म को सहत और तवानाई मिले, महज़ लज्ज़त तल्बी और ज़ुबान के चटखारो के पीछे ना पड़िए,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ बगैर छने आटे की रोटी पसंद फरमाते, ज़्यादा पतली और मैदे की चपाती पसंद ना फरमाते, गरम खाने के बारे में कभी फरमाते कि खुदा ने हमें आग नहीं खिलाई है और कभी इरशाद फरमाते, गरम खाने में बरकत नहीं होती ,*

*✪"_ आप गोश्त पसंद फ़रमाते और खास तौर पर दस्त, गर्दन और पीठ का गोश्त रगबत से खाते, दर हक़ीक़त जिस्म को कु़व्वत बख्शने और मुजाहिदाना मिज़ाज के लिए गोश्त एक अहम और लाज़मी गिजा़ है और मोमिन का सीना हर वक्त मुजाहिदाना जज़्बात से आबाद रहना चाहिए,*

*✪__(11)_खाना इत्मिनान से और चबा कर खाइये:-*
*✪"_ खाना निहायत इत्मिनान व सुकून के साथ खूब चबा चबा कर खाइए, गम व गुस्सा, रंज और घबराहट की हालत में खाने से परहेज़ कीजिये,*

*"✪_खुशी और ज़हनी सुकून की हालत में इत्मिनान साथ जो खाना खाया जाता है वो जिस्म को क़ुव्वत पहूंचाता है और रंज व फिक्र और घबराहट में जो खाना निगला जाता है वो मैदे पर बड़ा असर डालता है और इससे जिस्म को खातिर ख्वाह कुव्वत नहीं मिल पाती*

*"✪_ दस्तर ख़्वान पर ना तो बिलकुल अफसरदा और गमज़ादा हो कर बेठे और ना हद से बड़ी हुई खुश तबीयत का मुज़ाहिरा करें कि दस्तर ख़्वान पर क़हक़हे बुलंद होने लगें, खाने के दौरान क़हक़हे लगाना बाज़ औकात जान के लिए खतरे का बा'इस बन जाता है, दस्तर ख्वान पर ऐतदाल के साथ हंसते बोलते रहें, खुशी और निशात के साथ खाना खायें और खुदा की दी हुई नियामतों पर उसका शुक्र अदा कीजिये और जब बीमार हों तो परहेज़ भी पूरे अहतमाम से कीजिये,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ के दस्तर ख़्वान पर जब कोई मेहमान होता तो आप ﷺ बार बार उससे फरमाते जाते, खाइये, खाइये, जब मेहमान खूब सैर हो जाता और बेहद इंकार करता, तब आप ﷺ अपने इसरार से बाज़ आते, यानि आप ﷺ निहायत खुश गवार फिज़ा और खुशी के माहौल में मुनासिब गुफ्तगू करते हुए खाना तनावुल फरमाते*

*✪_(12)_ दोपहर के खाने के बाद थोड़ी देर क़ैलुला कीजिये:-*
*✪_ दोपहर का खाना खाने के बाद थोड़ी देर क़ैलुला कीजिये और रात का खाना खाने के बाद थोड़ी देर चहल क़दमी कीजिये और खाना खाने के फौरन बाद कोई सख़्त क़िस्म का दिमागी या जिस्मानी काम हरगिज़ न कीजिये,*

*✪_ इसका मतलब ये नहीं है कि क़ैलुला पाँच घन्टे का हो बल्की थोड़ी देर आराम कर के अपने काम पर लग जाओ_,"* 

*✪_(13)_ आंखों की हिफ़ाज़त का पूरा अहतमाम कीजिये:-*
*"✪_आंखो की हिफ़ाज़त का पूरा अहतमाम कीजिये और तेज़ रोशनी से आंखें न लड़ाइये, सूरज की तरफ़ निगाहें जमा कर न देखिये, ज़्यादा मद्धम या तेज़ रोशनी में न पढ़िये, हमेशा साफ और मुत'अदल रोशनी में मुताल'आ कीजिये, ज्यादा जागने से भी परहेज़ कीजिये, धूल गुबार से आँखों को बचायें, आँखों में सुरमा लगायें और हमेशा साफ रखने की कोशिश करें,*

 *✪"_ खैती, बागों और सब्जा़ ज़ारो में सैर व तफ़रीह कीजिये, सब्ज़ा देखने से निगाहों पर अच्छा असर पड़ता है, आँखों को बदगुमानी से बचाइए, इससे आंखें बे रौनक हो जाती हैं और सहत पर भी बुरा असर पड़ता है,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ ने फरमाया:- तुम्हारी आँखों का भी तुम पर हक है, मोमिन का फ़र्ज़ है कि वो खुदा की इस नियामत की क़द्र करे, इसको खुदा की मर्ज़ी के मुताबिक इस्तेमाल करे, इसकी हिफाज़त और सफ़ाई का अहतमाम रखे, वो सारी तदबीरें अख्त्यार करें जिनसे आंखें को फायदा पहुंचे और उन बातों से बचा रहे जिनसे आंखों को नुक़सान पहुंचता हो, इसी तरह जिस्म के दूसरे आजा और कु़वा की हिफ़ाज़त का भी ख्याल रखिए, नबी करीम ﷺ का इरशाद है :- लोगो! आंखों में असमद सुर्मा लगाया करो सुर्मा आंखों के मेल को दूर करता है और बालों को उगाता है _," (तिर्मिज़ी -1757)* 

*✪_ (14)_दांतो की सफाई और हिफाज़त का अहतमाम कीजिये_,"*
*✪"_दंतो की सफाई और हिफाज़त का अहतमाम कीजिये, दांतों के साफ रखने से फरहत हासिल होती है और हाज़मे पर अच्छा असर पड़ता है और दांत मज़बूत भी रहते हैं, मिस्वाक की आदत डालिए मंजन वगैरा का भी इस्तेमाल रखिये, पान या तम्बकु वगेरा की कसरत से दांतो को खराब न कीजिये_,"*

*"✪_ खाने के बाद भी दांतों को अच्छी तरह साफ कर लिया कीजिए, दांत गंदे रहने से तरह तरह की बीमारियां होती है, इसीलिये नबी करीम ﷺ का मामूल था कि जब नींद से बेदार होते तो मिस्वाक से अपना मुंह साफ फरमाते_," (बुखारी- 245, मुस्लिम-593)*

*"✪_हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है हम नबी करीम ﷺ के लिए वजू का पानी और मिस्वाक तैय्यार रखते थे, जिस वक्त भी खुदा का हुक्म होता आप ﷺ उठ बैठते थे और मिस्वाक करते थे, फिर वजू कर के नमाज़ अदा फरमाते थे_," (मुस्लिम)*

*✪"_हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते है कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया - मैं तुम लोगो को मिस्वाक करने के बारे में बहुत ताकीद कर चुका हूँ_," (नसा'ई)*
*✪"_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया - मिस्वाक मुंह को साफ करने वाली और खुदा को राज़ी करने वाली है_," (नसाई)*

*✪"_ आप ﷺ का इरशाद है - अगर मैं अपनी उम्मत के लिए शाक न समझता तो मैं हर नमाज़ के वक्त मिस्वाक करने का हुक्म देता_," (नसा'ई)*
*✪"_ एक बार आप ﷺ से मिलने के लिए कुछ मुसलमान खिदमत में हाजिर हुए, उनके दांत साफ न होने की वजह से पीले हो रहे थे, आप ﷺ की नज़र पड़ी तो फरमाया - तुम्हारे दांत पीले क्यों नज़र आ रहे है ? मिस्वाक किया करो _," (मुसनद अहमद)*

*✪_(15)_बोल व बराज़ (पेशाब पाखाने) की हाजत हो तो फौरन हाजत पूरी कीजिये:-*
*"✪_बोल व बराज़ की हाजत हो तो फौरन हाजत पूरी कीजिये, इन ज़रूरियात को रोकने से मैदे और दिमाग पर निहायत बुरे असरात पड़ते हैं,*

*"✪_(16)_ तहारत व नज़ाफत का पूरा अहतमाम कीजिये:-*
*"✪_ पाकी, तहारत और नज़ाफ़त का पूरा अहतमाम कीजिये, क़ुरान हकीम में है: ख़ुदा उन लोगों को अपना मेहबूब बनाता है जो बहुत ज़्यादा पाक व साफ़ रहते हैं _," (तौबा-108 )*

*✪"_ और नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- "सफ़ाई और पाकीज़गी आधा ईमान है _,(मिश्कात)*

*"✪_ सफाई और पाकीज़गी की इसी अहमियत के पेशे नज़र नबी करीम ﷺ ने तहारत के तफ़सीली अहकाम दिए हैं और हर मामले में तहारत व नज़ाफ़त की ताकीद की है, खाने पीने की चीजों को ढांक कर रखिए, उन्हें गंदे होने से बचायें और मक्खियों से हिफाज़त कीजिये, बर्तनों को साफ सुथरा रखिये, लिबास और लेटने बैठने के बिस्तरों को पाक साफ रखिये, उठने बैठने की जगहों को साफ सुथरा रखिए, जिस्म की सफाई के लिए वजू और गुस्ल का अहतमाम कीजिये,*

*"✪_ जिस्म और लिबास और ज़रूरत की सारी चीज़ों की सफाई और पाकीज़गी से रूह को भी सरवर व निशात हासिल होता है और जिस्म को भी फरहत और ताज़गी मिलती है और बा हैसियत मजमुई इंसानी सहत पर इसका निहायत ही खुशगवार असर पड़ता है,*

*✪"_ एक मर्तबा नबी करीम ﷺ ने हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु से पुछा - कल तुम मुझसे पहले जन्नत में कैसे दाख़िल हो गए? बोले- या रसूलुल्लाह ﷺ! मैं जब भी अज़ान कहता हूं तो दो रकात नमाज़ ज़रूर पढ़ लेता हूं और जिस वक्त भी वजू टूटता है फौरन नया वज़ू कर के हमेशा वजू के साथ रहने की कोशिश करता हूं _,"*

*✪"_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया - हर मुसलमान पर खुदा का ये हक़ है कि हर हफ्ते में एक दिन गुस्ल किया करे और अपने सर और बदन को धोया करे_,*
 *®_ (बुखारी -898)* 

           *📓 मदनी माशरा -128,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

        *☞_ रास्ता इस तरह चलिए _"*
          ▪•═════••════•▪
*✪_(1)_दर्मियानी चाल चलिये:-*
*"✪_ रास्ते में दर्मियानी चाल चलिये, न इतना झपट कर चलिये के ख्वामख्वाह लोगो के लिए तमाशा बन जायें और ना इतने मस्त हो कर रेंगने की कोशिश कीजिये कि लोग बीमार समझ कर बीमार पुरसी करने लगें_,*
*"_ नबी करीम ﷺ क़दम लम्बे लम्बे रखते और क़दम उठा कर रखते, क़दम घसीट कर कभी न चलते,*

*"✪_ (2)_ वका़र और नीची निगाह से चलें :-*
*"✪_ अदब व वका़र के साथ नीचे देखते हुए चलें और रास्ते में इधर उधर हर चीज़ पर निगाह डालते हुए न चलें, ऐसा करना संजीदगी और तहज़ीब के खिलाफ है,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ चलते वक्त अपने बदन मुबारक को आगे की तरफ झुका कर चलते जैसे कोई बुलंदी से पस्ती की तरफ उतर रहा हो, आप ﷺ वकार के साथ ज़रा तेज़ चलते और बदन को चुस्त और सिमटा हुआ रखते और चलते हुए दांऐं बांऐं न देखते,*

*✪"_(3)_खाकसारी के साथ दबे पांव चलिये:-*
*✪"_ खाकसारी के साथ दबे पांव चलिये, अकड़ते हुए न चलिये, ना तो आप अपनी ठोकर से ज़मीन को फाड़ सकते हैं और ना पहाड़ो की ऊंचाई को पहुंच सकते हैं, फिर भला अकड़ने की क्या गुंजाइश है_,"* 

*✪_(4)_ हमेशा जूते पहन कर चलें :-*
*"✪_ हमेशा जूते पहन कर चलें, नंगे पाँव चलने फिरने से परहेज़ कीजिए, जूतों के ज़रीये पाँव काँटे कंकर और दूसरी तकलीफ़ दह चीज़ो से भी महफ़ूज़ रहता है और मुज़ी जानवरों से भी बचा रहता है,*

*✪"_नबी करीम ﷺ ने फरमाया - अक्सर जूते पहने रहा करो, जूता पहनने वाला भी एक तरह का सवार होता है_,"*
 *®_ (अबू दाउद -4133)*

*"✪_ (5)_ रास्ता चलने में तहज़ीब व वका़र का भी लिहाज़ रखिए:-*
*✪"_ रास्ता चलने में हुस्ने ज़ोक और तहज़ीब व वका़र का भी लिहाज़ रखिए, या तो दोनो जूते पहन कर चलें या दोनों जूते उतार कर चलिये, एक पाँव नंगा और एक पाँव में जूता पहन कर चलना बड़ी मजा़हिका खैज़ हरकत है, अगर वाक़ई कोई मजबूरी ना हो तो इस बदज़ोक़ी और बे तहज़ीबी से सख्ती के साथ बचने की कोशिश करें,*

*✪"_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है- एक जूता पहन कर कोई ना चले या तो दोनों जूते पहन कर चलें या दोनों उतार कर चलें _,"*
 *®_(तिर्मिज़ी - 1774)* 

*✪_(6)_ चलते वक्त अपने कपड़ों को समेट कर चलिए:-*
*"✪_ चलते वक्त अपने कपड़ों को समेट कर चलें ताकि उलझने का खतरा न रहे, नबी करीम ﷺ चलते वक्त तेहबंद उठा कर समेट लेते,*

*✪"_(7)_ हमेशा बे तकल्लुफी से अपने साथियो के साथ चलें:-*
*"✪_ हमेशा बे तकल्लुफी से अपने साथियो के साथ चलिये, आगे चल कर अपनी इम्तियाज़ी शान न जतायें, कभी कभी बे तकल्लुफी में अपने साथियों का हाथ हाथ में ले कर भी चलिये, नबी करीम ﷺ साथियों के साथ चलने में कभी अपनी इम्तियाज़ी शान ज़ाहिर ना होने देते, अक्सर आप सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के पीछे पीछे चलते और कभी बे तकल्लुफी में अपने साथियों का हाथ पकड़ कर भी चलते,*
*✪_(8)_ रास्ते का हक़ अदा करने का भी अहतमाम कीजिये:-*
*✪"_ रास्ते का हक़ अदा करने का भी अहतमाम कीजिए, रास्ते में रुक कर या बैठ कर आने जाने वालों को तकने से परहेज़ कीजिये और अगर कभी रास्ते में रुकना या बैठना पड़े तो रास्ते का हक़ अदा करने के लिए 6 बातों का ख्याल रखिए :-*

*"_(1)_निगाहें नीची रखिए,*
*"_(2)_ तकलीफ देने वाली चीज़ों को रास्ते से हटा दीजिए,*
*"_(3)_सलाम का जवाब दीजिए,*
*"_(4)_ नेकी की तलकीन कीजिये और बुरी बातों से रोकिये,*
*"_(5)_भूले भटको को रास्ता दिखाइए,*
*"_(6)_और मुसिबत के मारे हुओं की मदद कीजिए,*

 *"✪_(9)_ रास्ते में हमेशा अच्छे लोगों का साथ पकड़िए,*
*✪"_ रास्ते में हमेशा अच्छे लोगों का साथ पकड़िये, बुरे लोगों के साथ चलने से परहेज़ कीजिये,* 

*✪_(10)_ रास्ते में मर्द और औरत मिल जुल कर ना चलें:-*
*"✪_ रास्ते में मर्द और औरत मिल जुल कर ना चलें, औरतों को बीच रास्ते से बच कर किनारे किनारे चलना चाहिए और मर्दों को चाहिए कि उनसे बच कर चलें,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ ने फरमाया (जिसका मफहूम है) कि गारे में अटे हुए और बदबुदार सड़ी हुई कीचड़ में लिथड़े हुए सुवर से टकरा जाना गवारा किया जा सकता है लेकिन ये गवारा करने की बात नहीं है कि किसी मर्द के शाने किसी अजनबी औरत से टकराएं _,"*

*"✪_(11)_ औरतें पर्दे का मुकम्मल अहतमाम करें:-*
*✪"_ शरीफ़ औरतें जब किसी ज़रूरत से रास्ते पर चलें तो बुर्का या चादर से अपने जिस्म, लिबास और ज़ीनत की हर चीज़ को खूब अच्छी तरह छिपाए और चेहरे पर नक़ाब डाले रहें _,"*

*"✪_(12)_ औरतें रास्ते में इन चीज़ों से बचे :-*
*"✪_(1)_ कोई ऐसा ज़ेवर पहन कर न चले जिसमें चलते वक़्त झंकार पैदा हो,*
*"_(2)_ दबे पांव चलें ताकी उसकी आवाज़ अजनबियों को अपनी तरफ मुतवज्जा न करे,*
*"_(3)_ औरतें फैलने वाली खुश्बू लगा कर रास्ते पर ना चलें, ऐसी औरतों के बारे में नबी करीम ﷺ ने निहायत सख़्त अल्फाज़ फरमाये हैं _,"* 

*✪_(13)_घर से निकलें तो आसमान की तरफ निगाह उठा कर ये दुआ पढ़िए:-*
*"✪_ घर से निकलें तो आसमान की तरफ निगाह उठा कर ये दुआ पढ़िए:-*
*"_बिस्मिल्लाही तवक्कलतु अलल्लाहि अल्लाहुम्मा इन्नी आउज़ुबिका मिन अन नज़िल्ला अव नुज़ल्ला व अन नधिलला अव नुधल्ला अव नज़लमा अव युज़लमा अलैना अव नजहला अव युजहला अलैना_,*
 *®_ मुसनद अहमद, तिर्मिज़ी -3427)*

*"✪_ (तर्जुमा)_ खुदा ही के नाम से (मैंने बाहर क़दम रखा) और उसी पर मेरा भरोसा है, खुदाया मैं तेरी पनाह चाहता हूं इस बात से कि हम लगजिश खा जाएं या कोई दूसरा हमें डगमगा दे, हम खुद भटक जाएं या कोई और हमें भटका दे, हम खुद किसी पर ज़ुल्म कर बैठे या कोई और हम पर ज़्यादती करें या हम खुद नादानी पर उतर आएं या कोई दूसरा हमारे साथ जहालत का बरताव करें।*

*"✪_(14)_बाजा़र में जाएं तो ये दुआ पढ़िए:-*
*"✪_ हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया - जो शख्स बाज़ार में दाखिल होते हुए ये दुआ पढ ले, खुदा उसके हिसाब में दस लाख नेकियां दर्ज फरमाएगा, दस लाख खताएं माफ फरमा देगा और दस लाख दर्जात बुलंद कर देगा:-*
*"_ला इलाहा इल्लल्लाहु वाहदहु ला शरीका लहू लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु युहयी वा युमीतु वा हुवा हययि ला यमुतु बियादिहिल खैरु व हुवा अला कुल्ली शैयइन क़दीर_,"*
 *®_ (तिर्मिज़ी -3429)*

*✪"_(तर्जुमा)_ खुदा के सिवा कोई माबूद नहीं, वो यकता है, उसका कोई शरीक़ नहीं, इक़तिदार उसी का है वही शुक्र और तारीफ का मुस्तहिक़ है, वही जिंदगी बख्शता है और वही मौत देता है, वही जिंदा जावेद है, उसके लिए मौत नहीं, सारी भलाई उसी के क़ब्ज़े कुदरत में है और वो हर चीज़ पर क़ादिर है _,"* 

           *📓 मदनी माशरा -135,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

          *☞_ सफर इस तरह कीजिए _"*
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*✪_(1)_ सफर जुमेरात के दिन शुरू करें:-*
*"✪_ सफर के लिए ऐसे वक्त रवाना होना चाहिए कि कम से कम वक्त खर्च हो और नमाजो़ के मौक़े का भी लिहाज़ रहे, नबी करीम ﷺ खुद सफर पर जाते या किसी को रवाना फरमाते तो आम तौर पर जुमेरात के दिन को मुनासिब ख्याल फरमाते ,*

*"✪_(2)_सफ़र तन्हा न कीजिये:-*
*"✪_ सफर तन्हा ना कीजिये, मुमकिन हो तो कम से कम तीन आदमी साथ लीजिए, इससे रास्ते में समान वगेरा की हिफ़ाज़त और दूसरी ज़रुरियात में भी सहुलत रहती है और आदमी बहुत से खतरों से भी महफूज़ रहता है,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ ने फरमाया - अगर लोगों को तन्हा सफर करने की वो खराबियां मालूम हो जाएं जो मैं जानता हूं तो कोई सवार रात में तन्हा सफर ना करे_," (बुखारी- 2998)*

*✪_(4)_ सवारी जब हरकत में आए तो ये दुआ पढ़िए:-*
*"✪_ सफर के लिए रवाना होते वक्त जब सवारी पर बैठ जाएं और सवारी हरकत में आए तो ये दुआ पढ़िए:- सुबहानल्लजी़ सखखर लना हाजा़ वमा कुन्ना लहु मुक़रिनीन वा इन्ना इला रब्बीना ला मुनक़लीबून _," (मुस्लिम, तिर्मिज़ी) )*
*"✪_(तर्जुमा) पाक व बरतर है वो खुदा जिसने इसको हमारे बस में कर दिया हालांकि हम इसको का़बू में करने वाले ना थे, यक़ीनन हम अपने परवर्दीगार की तरफ लौट जाने वाले हैं _,"*

*"✪_(5)_ रास्ते में दूसरों की सहुलत और आराम का भी खयाल कीजिए:-*
*"✪_ रास्ते में दूसरों की सहुलत और आराम का भी ख्याल रखिए, रास्ते के साथियों का भी हक़ है, कुरान में है :- और पहलुओं के साथी के साथ हुस्ने सुलुक करो, पहलुओं के साथियों से मुराद हर ऐसा आदमी है जिससे कहीं भी किसी वक्त आपका साथ हो जाए,*

*"✪_ सफर के दौरान की मुख्तसर रफाक़त का भी ये हक़ है कि आप अपने रफीक़ सफर के साथ अच्छे से अच्छा सूलूक करें और कोशिश करें कि आपके किसी कौ़ल व अमल से उसको कोई जिस्मानी या ज़हनी अजियत न पहुंचे,*

*"✪_ फरमाया कि सफर में जिसके पास अपनी ज़रूरत से ज्यादा खाने पीने की चीज़ हो तो उन लोगों का ख्याल करें जिनके पास अपना तोशा ना हो_," (मुस्लिम)* 

*✪_(6)_ सफर पर रवाना होते वक्त और वापसी पर दो रकात पढ़िए:-*
*✪"_सफ़र के लिए रवाना होते वक़्त और वापस आने पर दो रकात शुक्राने के निफ़्ल पढ़िए, नबी करीम ﷺ का यही अमल था,*

*✪"_(7)_ रात को कहीं महफूज़ मुका़म पर क़याम कीजिए:-*
 *"✪_ रात को कहीं क़याम करना पड़े तो महफूज़ मुकाम पर क़याम कीजिए, जहां चोर डाकू से भी आपकी जान व माल महफूज़ हो और मुजी़ जानवरों का भी कोई ठिकाना ना हो_,*

*✪"_(8)_ सफर की ज़रूरत पूरी होने पर जल्दी वापस हो जाएं:-*
*"✪_सफ़र की ज़रूरत पूरी होने पर घर वापस आने में जल्दी कीजिए, बिला ज़रुरत घूमने फिरने से परहेज़ कीजिए,*

*"✪_ सफर अज़ाब का एक टुकड़ा है तुम्हें नींद से और खाने पीने से रोकता है, लिहज़ा जब वो काम पूरा हो जाए जिसके लिए गए थे तो जल्दी घर वापस हो जाओ _,(मुस्लिम - 4971)*

*✪_(9)_ सफर से वापसी पर बगैर इत्तेला घर में ना आए:-*
*"✪_ सफर से वापसी पर यकायक बगैर इत्तेला, रात को घर में न आयें, पहले से इत्तेला दीजिए, वर्ना मस्जिद में दोगाना निफ्ल अदा कर घर वालों को मौक़ा दीजिए कि वो अच्छी तरह से आपके इस्तक़बाल के लिए तैयार हो सकें,*

*"✪_ आप ﷺ की आदते शरीफा थी कि जब सफर से वापस तशरीफ लाते तो चाश्त के वक्त मदीना में दाखिल होते और पहले मस्जिद में जा कर दो रकाते पढ़ते, फिर ज़रा देर लोगों की मुलाक़ात के लिए वही तशरीफ फरमा रहते _," (अबू दाउद -2781)*

*"✪_(10)_ सफर में कोई साथी हो तो उनके आराम का ख्याल रखिए:-*
*"✪_ सफर में अगर जानवर साथ हो तो उसके आराम का भी खयाल रखिए और अगर कोई सवार हो तो उसकी ज़रुरियात और हिफाज़त का भी अहतमाम कीजिए, आपका ड्राइवर हो तो उसके आराम का ख्याल कीजिए चाहे वो मुशरिक ही क्यूं ना हो,*

*✪"_(11)_ सफर में मज़कूरा चीज़ें साथ रखिए :-*
*"✪_जाड़े के मौसम में जरूरी बिस्तर वगैरा साथ रखिए और मेज़बान को बेज़ा परेशानी में मुब्तिला न कीजिए, सफर में पानी का बर्तन लोटा और जा-नमाज़ और क़िब्ला नुमा आला साथ रखिए, ताकी इस्तिंजा वज़ू नमाज़ और पानी पीने की तकलीफ ना हो _,"* 

*✪_(12)_ चंद आदमी हों तो एक को अपना अमीर मुक़र्रर फरमा लीजिये :-*
*"✪_ चंद आदमी सफर कर रहे हों तो एक को अपना अमीर मुक़र्रर फरमा लीजिए, अलबत्ता हर शख्स अपना टिकट, ज़रूरत भर रक़म और दूसरा ज़रूरी सामान अपने क़ब्ज़े में रखे,*

*"✪_ और फरमाया कि सफर में अपने साथियों का सरदार वो है जो उनका खिदमत गुज़ार हो, जो शख्स खिदमत में आगे बढ़ गया किसी अमल के ज़रिये उसके साथी उससे आगे नहीं बढ़ सकेंगे, हां अगर कोई शहीद हो जाए तो वो आगे बढ़ जाएगा _," (बहीकी़)*

*"✪_सफर में जिन लोगों के पास कुत्ता या घंटी हो तो उनके साथ रहमत के फरिश्ते नहीं होते_, (अबू दाउद - 2555)*
 
*"✪_ आज कल मोबाइल में म्यूजिक की घंटी भी इस मसले में शामिल है,*

    
*✪_(13)_ किसी को सफर पर रुखसत करें तो कुछ दूर तक साथ जाएं:-*
*"✪_ जब किसी को सफर पर रुखसत करें तो कुछ दूर उसके साथ जाएं, रुखसत करते वक्त उससे भी दुआ की दरख्वास्त करें और उसको भी दुआ देते हुए रुखसत कीजिए,*

*"✪_(14)_ कोई सफर से वापस आए तो उसका इस्तक़बाल कीजिये:-*
*"✪_ जब कोई सफर से वापस आए तो उसका इस्तक़बाल कीजिये और इज़हार ए मुहब्बत के अल्फाज़ कहते हुए ज़रूरत और मोके़ का लिहाज़ करते हुए मुसाफा कीजिये या मुआनका़ भी कीजिये_,"*

           *📓 मदनी माशरा -143,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

  *☞_ तिलावत क़ुरान इस तरह कीजिए _"*
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*✪_(1)_कुरान की तिलावत दिल लगा कर कीजिए:-*
*"✪_ क़ुरआन मजीद की तिलावत ज़ौक व शौक़ के साथ दिल लगा कर कीजिये और ये यक़ीन रखिए कि क़ुरान मजीद से शगफ (मुहब्बत) खुदा से शगफ है, नबी करीम ﷺ ने फरमाया:- मेरी उम्मत के लिए सबसे बेहतर इबादत कुरान की तिलावत है_,"*

*"✪_(2)_अक्सर वक्त़ तिलावत में मशगूल रहे और कभी नहीं उकताएं:-*
*"✪_ नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया - अल्लाह ता'ला का इरशाद है जो बंदा क़ुरान की तिलावत में इस क़दर मशगूल हो कि वो मुझसे दुआ माँगने का मौक़ा ना पा सके तो मैं उसको बगैर माँगे ही मांगने वालों से ज़्यादा दूंगा _," (तिर्मिज़ी - 2926)*

*"✪_ और नबी करीम ﷺ ने फरमाया - बंदा तिलावत क़ुरान ही के ज़रिये ख़ुदा का सबसे ज़्यादा क़ुर्ब हासिल करता है _," (तिर्मिज़ी - 2911)*

*"✪_ और आप ﷺ ने तिलावत क़ुरान की तरगीब देते हुए ये भी फरमाया - जिस शख़्स ने क़ुरान पढ़ा और वो रोज़ाना उसकी तिलावत करता रहता है, उसकी मिसाल ऐसी है जैसे मुश्क़ से भरी हुई थैली कि उसकी ख़ुशबू चारो तरफ़ महक रही है और जिस शख़्स ने क़ुरान पढ़ा लेकिन वो उसकी तिलावत नहीं करता तो उसकी मिसाल ऐसी है जेसे मुश्क से भरी हुई बोतल कि उसको डाट लगा कर बंद कर दिया गया है _," (तिर्मिज़ी - 2865)* 

*✪_(3)_ क़ुरान पाक की तिलावत महज़ तलबे हिदायत के लिए कीजिये:-*
*"✪__ क़ुरान करीम की तिलावत महज़ तलबे हिदायत के लिए हो ना कि लोगों पर अपनी ख़ुश अल्हानी का सिक्का जमाने के लिए और अपनी दीनदारी की धाक बिठाने के लिए, इससे सख्ती के साथ परहेज़ कीजिए, ये इंतेहाई घटिया मक़ासिद हैं और इन अगराज़ से क़ुरान की तिलावत करने वाला क़ुरान की हिदायत से मेहरूम रहता है बल्कि जहन्नम में दाखिल हो जाता है,*

*"✪__(4)_ तिलावत से पहले तहारत व नज़ाफ़त का पूरा अहतमाम कीजिये:-*
*"✪__ तिलावत से पहले तहारत और नज़ाफत का पूरा अहतमाम कीजिये, बगैर वज़ू क़ुरान मजीद छूने से परहेज़ कीजिये और पाक साफ जगह पर बैठ कर तिलावत कीजिये,* 

*✪_(5)_ तिलावत के वक्त़ दिल में आजीज़ी हो:-*
*"✪_ तिलावत के वक़्त क़िब्ला रुख़ दोज़ानू हो कर बैठे और गर्दन झुका कर इंतेहाई तवज्जो, यक्षुई, दिल की आमदगी और सलीक़े से तिलावत कीजिए,*

*"✪_ अल्लाह ता'ला का इरशाद है:- (तर्जुमा) किताब जो हमने आपकी तरफ़ भेजी बरकत वाली है, ताकी वो उसमे गौर व फ़िक्र करें और अक़ल वाले इससे नसीहत हासिल करें _," (सूरह साद - 29)*

 *"✪_(6)_ तजवीद व तर्तील का हत्तल वसा ख्याल रखिये:-*
*"✪_ तजवीद और तर्तील का भी जहां तक हो सके लिहाज़ रखिए, हरूफ ठीक ठीक अदा कीजिए और ठहर ठहर कर पढ़िए, नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- अपनी आवाज़ और अपने लेहजे से कुरान को आरास्ता करो_,"(अबू दाउद)*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:- "क़ुरान पढ़ने वाले से क़यामत के रोज़ कहा जाएगा, जिस तरह ठहराव और खुश अलहानी के साथ तुम दुनिया में बना संवार कर कुरान पढ़ा करते थे, उसी तरह कुरान पढ़ो और हर आयत के सिले में एक दर्जा बुलंद होते जाओ तुम्हारा ठिकाना तुम्हारी तिलावत की आखिरी आयत के क़रीब है_'' ( तिर्मिज़ी - फज़ाइले क़ुरान 2914)*

*✪_(7)_ क़ुरान दरमियानी आवाज़ से पढ़िए:-*
*"✪_ ना ज़्यादा ज़ोर से पढ़िए और ना बिलकुल ही आहिस्ता बल्की दरमियानी आवाज़ में पढ़िए, खुदा की हिदायत है :-*
 *"_(तर्जुमा) और अपनी नमाज़ में ना तो ज़्यादा ज़ोर से पढ़िए और ना बिलकुल ही धीरे धीरे बल्की दोनो के दरमियान का तरीक़ा अख्त्यार कीजिये_," (सूरह बनी इसराईल -110)*

*"✪_(8)_तहज्जुद की नमाज़ में क़ुरान पढ़िए :-*
*✪"_ यूं तो जब भी मौक़ा मिले तिलावत कीजिए लेकिन सहर के वक्त़ तहज्जुद की नमाज़ में भी कुरान पढ़ने की कोशिश कीजिये, ये तिलावते कुरान की फजी़लत का सबसे ऊंचा दर्जा है और मोमिन की ये तमन्ना होनी चाहिए कि वो तिलावत का ऊंचे से ऊंचा मर्तबा हासिल करें,*

*✪_(9)_ तीन दिन से कम में क़ुरान ख़त्म ना करें:-*
*"❀_ तीन दिन से कम में क़ुरान शरीफ़ ख़त्म करने की कोशिश ना करें, नबी करीम ﷺ ने फरमाया:- "जिस शख्स ने तीन दिन से कम में क़ुरान पढ़ा उसने क़त'अन क़ुरान को नहीं समझा_," (तिर्मिज़ी -2949)*

*"✪_(10)_ क़ुरान की वक़'त व अज़मत का एहसास रखिये:-*
*"❀_क़ुरान की अज़मत व वक़्त का अहसास रखिए और जिस तरह ज़ाहिरी तहारत और पाकी़ का लिहाज़ किया है, उसी तरह दिल को भी गंदे ख्यालात, बुरे जज़्बात और नापाक मक़ासिद से पाक कीजिए, जो दिल गंदे और नजिस ख्यालात और जज़्बात से आलूदा है उसमे ना क़ुरान पाक की अज़मत व वक़'त बैठ सकती है और ना वो क़ुरान के मुआरिफ़ व हक़ाइक़ ही को समझ सकता है,*

*"❀_ हज़रत इकरमा रज़ियल्लाहु अन्हु जब क़ुरान शरीफ खोलते तो अक्सर बेहोश हो जाते और फरमाते ये मेरे जलाल व अज़मत वाले परवर्दीगार का कलाम है,* 

*✪_(11)_ कुरान तदब्बुर व तफक्कुर के साथ पढ़िए:-*
*"❀_ ये समझ कर तिलावत कीजिये कि रुए ज़मीन पर इंसान को अगर हिदायत मिल सकती है तो सिर्फ इसी किताब से, और इसी तसव्वुर के साथ इसमे तफक्कुर व तदब्बुर कीजिये और इसके हक़ाइक़ और हिकमतों को समझने की कोशिश कीजिये, फर फर तिलावत ना कीजिए बल्कि समझ कर पढ़ने की आदत डालिए और इसमें गौर व फिक्र करने की कोशिश कीजिये,*

*❀"_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाया करते थे कि "अल क़ारिआ" और "अल क़द्र" जैसी छोटी छोटी सूरतों को सोच समझ कर पढना इससे ज़्यादा बेहतर समझता हूं कि "अल बक़राह" और "आले इमरान" जेसी बड़ी बड़ी सूरतें फर फर पढ़ जाऊं और कुछ न समझूं_,"*

*"✪_(12)_ क़ुरान के अहकाम पर अमल की नियत से क़ुरान पढ़िए:-*
*"❀_ इस अज़्म के साथ तिलावत कीजिए कि मुझे इसके अहकाम के मुताबिक अपनी जिंदगी बदलनी है और इसकी हिदायत की रोशनी में अपनी जिंदगी बनानी है और फिर हिदायत मिले तो इसके मुताबिक अपनी जिंदगी को ढालने और कोताहियों से जिंदगी को पाक करने की मुसलसल कोशिश कीजिये,*

*"❀_ क़ुरान आईने की तरह आपका हर हर दाग और हर हर धब्बा आपके सामने नुमाया कर के पेश कर देगा, अब ये आपका काम है कि आप दाग धब्बो से अपनी ज़िंदगी को पाक करें,* 

*✪_ (13)_ क़ुरानी आयात से असर लेने की कोशिश कीजिये:-*
*"❀_ तिलावत के दौरान क़ुरान की आयात से असर लेने की भी कोशिश करें, जब रहमत, मगफिरत और जन्नत की ला ज़वाल नियामतों के तज़किरे पढ़े तो ख़ुशी और मसर्रत से झूम उठिए और जब ख़ुदा के गैज़ व गज़ब और अज़ाबे जहन्नम की होलनाकियों का तज़कीरा पढ़े तो बदन काँपने लगे आँखे बे अख्त्यार बह पड़े और दिल तौबा और नदामत की कैफियत से रोने लगे,*

*"❀_ जब मोमिन सालेहीन की कामरानियों का हाल पढ़े तो चेहरा दमकने लगे और जब क़ौमो की तबाही का हाल पढ़े तो गम से निढ़ाल नज़र आएं, वईद और डरावे की आयात पढ़ कर काँप उठिए और बशारत की आयात पढ़ कर रूह शुक्र के जज़्बात से सरशार हो जाए,*

*"✪_(14)_ तिलावत के बाद दुआ फरमाइए :-*
*"❀_ तिलावत के बाद दुआ फरमाइए, हजरत उमर रजियाल्लाहु अन्हु की एक दुआ के अल्फाज़ ये हैं:-*
 *"_(तर्जुमा)_ खुदाया मेरी जुबान तेरी किताब में से जो कुछ तिलावत करे, मुझे तोफीक दे कि मैं उसमे गौर व फिक्र करूं, खुदाया! मुझे इसकी समझ दे, मुझे इसके मफहूम मा'नी की मा'रफत बख्श और इसके अजाइबात को पाने की नज़र अता कर और जब तक जिंदा रहूं मुझे तोफीक दे कि मैं इस पर अमल करता रहूं, बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है,*

*"❀_ हजरत मौलाना इलियास साहब रह. फरमाते थे कि क़ुरान पढ़ने के बाद यह दुआ कीजिए कि ऐ अल्लाह इस कुरान में मेरे हिस्से की जो हिदायत है मुझे अता फरमा _,"*
 *®_(हज अराफात 1429 हिजरी)*

           *📓 मदनी माशरा -159,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

  *☞_ मरीज़ की अयादत इस तरह कीजिए _"*
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*✪_(1)_मरीज की अयादत जरूर कीजिए:-*
*"✪_ मरीज़ की अयादत ज़रूर कीजिए, अयादत की हैसियत महज़ यही नहीं है कि वो इज्तिमाई ज़िंदगी की एक ज़रुरत है या बाहमी ताउन और गम ख़्वारी के जज़्बे को उभारने का एक ज़रिया है बल्कि ये एक मुसलमान पर दूसरे मुसलमान भाई का दीनी हक़ है और खुदा से मुहब्बत का एक लाज़मी तका़जा़ है, खुदा से ताल्लुक़ रखने वाला, खुदा के बंदो से बे- ताल्लुक़ नहीं हो सकता, मरीज़ की गमख्वारी, दर्दमंदी और ताउन से गफलत बरतना दर असल खुदा से गफलत है,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है, (इसमे अल्लाह ता'ला ने अपने मिलने का पता बताया है):- क़यामत के रोज़ खुदा फरमाएगा, ऐ आदम के बेटे! मैं बीमार पड़ा और तूने मेरी अयादत नहीं की? कहेगा - परवरदिगार! आप सारी कायनात के रब भला मैं आपकी अयादत कैसे करता, खुदा कहेगा - मेरा फलां बंदा बीमार पड़ा तो तूने उसकी अयादत नहीं कि अगर तू उसकी अयादत को जाता तो तू मुझे वहा पता यानि तू मेरी खुशनुदी और रहमत का मुस्तहिक क़रार पाता _," (मुस्लिम - 6556)* 

*✪_(2)_ एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर 6 हुकूक हैं:-*
*"❀_ और नबी करीम ﷺ ने फरमाया - एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर 6 हुक़ूक़ हैं - पूछा गया या रसूलल्लाह! वो क्या हैं?*

*"❀_ फरमाया:- (1)_ जब तुम मुसलमान भाई से मिलो तो उसको सलाम करो,*
*"_(2)_ जब वो तुम्हें दावत के लिए मद्ऊ करे तो उसकी दावत क़ुबूल करो,*
*"_(3)_ जब वो तुमसे नेक मशवरे का तालिब हो तो उसकी खैर ख्वाही करो और नेक मशवरा दो,*
*"_(4)_ जब उसको छींक आए और वो अल्हम्दुलिल्लाह कहे तो उसके जवाब में कहो यरहमकल्लाह,*
*"_(5)_ जब वो बीमार पड़ जाए तो उसकी अयादत करो,*
*"_(6)_और जब वो मर जाए तो उसके जनाज़े के साथ जाओ_,*
 *®_ (तिर्मिज़ी -2736)"*

*"❀_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया: जब कोई बंदा अपने मुसलमान भाई की अयादत करता है या उससे मुलाक़ात के लिए जाता है तो एक पुकारने वाला आसमान से पुकारता है तुम अच्छे रहे, तुम्हारा चलना अच्छा रहा तुमने अपने लिए जन्नत में ठिकाना बना लिया _,"*
 *"_®_( तिर्मिज़ी -2008)* 

*✪_(3)_ मरीज़ को सहलाएं और तसल्ली बख्श कलमात कहिए:-* 
*"❀_मरीज़ के सरहाने बैठ कर उसके सर या बदन पर हाथ फैरें और तसल्ली व तशफी के कलमात कहें, ताकी उसका ज़हन आखिरत के अजरो सवाब की तरा्फ मुतवज्जह हो और बे सबरी और शिकवा शिकायत का कोई कलमा उसकी जुबान पर ना आए,*

*"❀_हजरत आयशा बिन्ते सा'द रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती है कि मेरे वालिद ने अपना क़िस्सा सुनाया कि मै एक बार मक्का मुकर्रमा मे सख़्त बीमार पड़ा, नबी करीम ﷺ मेरी अयादत के लिए तशरीफ लाए, तो मैने पूछा - या रसूलल्लाह ﷺ ! मै काफी माल छोड रहा रहा हुं और मेरी सिर्फ एक ही बच्ची है, क्या मै अपने माल में से दो तिहाई की वसीयत कर जाऊं और एक तिहाई बच्ची के लिये छोड़ दुं _,* 

*"❀_ फरमाया- नही, मैने कहा- आधे माल की वसीयत कर जाऊं और आधा लडकी के लिये छोड़ जाऊं ? फरमाया - नहीं, तो मैने अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह ﷺ फिर एक तिहाई की वसीयत कर जाऊं? फरमाया - हां एक तिहाइ की वसीयत कर जाओ और एक तिहाई बहुत है,*

*"❀_इसके बाद नबी करीम ﷺ ने अपना हाथ मेरी पेशानी पर रखा और मेरे मुंह पर, और पेट पर फैरा, फ़िर दुआ की- ऐ अल्लाह! सा'द को शिफ़ा अता फ़रमा और इसकी हिजरत को मुकम्मल फ़रमा दे, इसके बाद से आज तक जब कभी ख़याल आता है तो नबी करीम ﷺ के दस्ते मुबारक की ठंडक अपने जिगर मे महसूस करता हुं _,"*
 *®_(मुस्लिम-4209)* 

*"❀_ हजरत जाबिर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम ﷺ (एक बुढ़ी खातून) उम्मे साईब की अयादत को आये, उम्मे साईब रज़ियल्लाहु अन्हा बुखार की शिद्दत में कांप रही थीं, पुछा क्या हाल है? खातून ने कहा, खुदा इस बुखार को समझे इसने घैर रखा है, ये सुन कर नबी करीम ﷺ ने फरमाया - "बुखार को बुरा भला ना कहो, ये मोमिन के गुनाहों को इस तरह साफ़ कर देता है जेसे आग की भट्टी लोहे के जंग को साफ़ कर देती है _,* *®_(मुस्लिम -6870)* 

*✪_ (4)_मरीज़ के पास जाइए, हाल पुछिए, सेहत की दुआ कीजिए:-*
*"❀_ मरीज़ के पास जा कर उसकी तबियत का हाल पूछिये और उसके लिए सेहत की दुआ कीजिये, नबी करीम ﷺ जब मरीज़ के पास पहुँचते तो पुछते:- कहिए तबियत कैसी है? फिर तसल्ली देते और फरमाते - घबराने की कोई बात नहीं है, खुदा ने चाहा तो ये मर्ज़ जाता रहेगा और ये मर्ज़ गुनाहों से पाक होने का ज़रिया साबित होगा _,"*

 *❀"_ और तकलीफ की जगह पर सीधा हाथ फेरते और ये दुआ फरमाते:-*
*"_अल्लहुम्मा अज़हीबिल बासा, रब्बिन नासी , अश्फिही वा अन्ता शाफी , ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाऊका, शिफ़ाअन ला युगादिरू सक़मा,*
*❀"_( तर्जुमा) खुदाया ! इस तकलीफ़ को दूर कर दे , ऐ इन्सानों के रब इसको (मरीज़ को) शिफा अता फरमा, तू ही शिफा देने वाला है , तेरे सिवा कोई शिफा की तवक्को़ नही है, ऐसी शिफा बख़्श कि बीमारी का नाम व निशान ना रहे_,*

*✪_ (5)_मरीज़ के पास ज़्यादा देर ना बैठिये, शोर व शगब भी ना कीजिये:-*
*"❀_मरीज़ के पास ज़्यादा देर तक ना बेठिये और न शोर व शगब कीजिये, हां अगर मरीज़ आपका कोई बे तकल्लुफ दोस्त या अज़ीज़ है और वो खुद आपको देर तक बिठाये रखने का ख्वाहिश मंद हो तो ज़रूर आप उसके जज़्बात का अहतराम कीजिये,*

*"❀_हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ख़ुद फ़रमाते है कि मरीज़ के पास ज़्यादा देर तक न बैठना और शोर व शग़ब ना करना सुन्नत है_,"*

*"✪_(6)_ मरीज़ के मुताल्लिक़ीन से भी मरीज़ का हाल पूछिये:-*
*❀"_मरीज़ के घर वालों से भी मरीज़ का हाल पूछिये और हमदर्दी का इज़हार कीजिये और जो खिदमत और ता'वुन कर सकते हों, ज़रूर करें, मसलन डॉक्टर को दिखाना, हाल कहना, दवा वगैरा लाना और अगर ज़रूरत हो तो माली इमदाद भी कीजिये,*

*✪_(7)_गैर मुस्लिम मरीज़ की अयादत के लिए भी जाएं:-*
*"❈_ गैर मुस्लिम मरीज़ की अयादत के लिए भी जाएं और मुनासिब मौक़ा पा कर हिकमत के साथ उसे दीन ए हक़ की बात करे, बीमारी में आदमी खुदा की तरफ निस्बतन ज़्यादा मुतवज्जा होता है और कुबुलियत का जज़्बा भी बिल उमूम ज़्यादा बेदार होता है ,*

*"✪_(8)_मरीज़ के घर पहुंचने के बाद इधर उधर ताकने से बचिए:-*
*"❈_ मरीज़ के घर अयादत के लिए पहुँचे तो इधर उधर ताकने से परेज़ कीजिये और अहतयात के साथ इस अंदाज़ से बैठिए कि घर की ख़्वातीन पर निगाहें ना पड़े,*

*✪_ (9)_ ऐलानिया फिस्क व फिजू़र में मुब्तिला रहने वालों की अयादत न कीजिये:-*
*"❈_ जो लोग ऐलानिया फिस्क व फिजूर में मुब्तिला हो और निहायत बेशर्मी और ढिटाई के साथ खुदा की नफरमानी कर रहे हों, उनकी अयादत के लिए ना जाएं_,"*

*✪"_ (10)_मरीज़ से अपने लिए दुआ करवायें:-*
*"❈_ मरीज़ की अयादत के लिए जाएँ तो मरीज़ से भी अपने लिए दुआ कराएं, इब्ने माजा में है कि जब तुम किसी मरीज़ की अयादत को जाओ तो उससे अपने लिए दुआ की दरख्वास्त करो, मरीज़ की दुआ ऐसी है जैसे फरिश्तों की दुआ (यानी फरिश्ते खुदा की मर्ज़ी पा कर ही दुआ करते हैं और उनकी दुआ मक़बूल होती है)*

           *📓 मदनी माशरा -166,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

      *☞_ मेज़बानी इस तरह कीजिए _"*
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*✪_(1)_मेहमान की आमद पर खुशी का इज़हार कीजिए:-*
*"❀_मेहमान के आने पर खुशी और मुहब्बत का इज़हार कीजिये और निहायत खुशदिली, वुस्अत क़लबी और इज्ज़त व इकराम के साथ उसका इस्तक़बाल कीजिये, तंगदिली, बेरुखी और कुढ़न का इज़हार हरगिज़ ना कीजिये,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - जो लोग खुदा और यौमे आखिरत पर यक़ीन रखते हैं, उन्हें अपने मेहमान की खातिर तवाज़ो करनी चाहिए_,"*
*®_(बुखारी- 6018 व मुस्लिम)*

*"❀_ खतिर तवाज़ो करने में सारी ही बातें दाखिल हैं जो मेहमान के एजाज़ व इकराम, आराम व राहत, सुकून व मसर्रत और तस्कीनी जज़्बात के लिए हों, खंदा पेशानी और खुश अखलाकी़ से पेश आना, हंसी खुशी की बातों से दिल बहलाना, इज्ज़त व इकराम के साथ बैठने लेटने का इंतज़ाम करना, अपने मोअज्जिज़ दोस्तों से तार्रुफ़ और मुलाक़ात कराना, उसकी ज़रुरियात का लिहाज़ रखना, निहायत ख़ुशदिली और फ़राखी के साथ खाने पीने का इंतज़ाम करना और ख़ुद बा नफ़सी नफ़ीस ख़ातिर मदारत में लगे रहना,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ के पास जब मोअज्जिज़ महमान आते तो आप ﷺ ख़ुद बा नफ़सी नफ़ीस उनकी ख़ातिरदारी फरमाते, जब आप ﷺ मेहमान को अपने दस्तरख्वान पर खाना खिलाते तो बार बार फरमाते- और खाइये, और खाइये, जब मेहमान खूब आसूदा हो जाता और इनकार करता तब आप ﷺ इसरार से बाज़ आते,* 

*✪_(2)_ मेहमान के आने पर सबसे पहले सलाम दुआ कीजिए और खैरियत मालूम कीजिए:-*
*"✪_ मेहमान के आने पर सबसे पहले उससे सलाम दुआ कीजिये और खैरियत व आफियत मालूम कीजिये, क़ुरान में है:- (सूरह ज़ारियात- 24-25) "_क्या आप (ﷺ) को इब्राहीम अलैहिस्सलाम के मोअज्जिज़ मेहमानों की हिकायत भी पहुंची है कि जब वो उनके पास आए तो आते ही सलाम किया, इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जवाब में सलाम किया_,*

*✪"_(3)_ दिल खोल कर मेहमान की खातिर तवाज़ो कीजिये और हस्बे हैसियत अच्छी चीज़ पेश करें:-*
*"✪_दिल खोल कर मेहमान की खातिर तवाज़ो कीजिए और जो अच्छे से अच्छा मयस्सर हो मेहमान के सामने पेश कीजिए,*

*"✪_ नबी करीम ﷺ ने मेहमान की ख़ातिर दारी पर जिस अंदाज़ से उभारा है उसका नक़्शा खींचते हुए हज़रत अबू शरीह रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:- मेरी इन दो आँखों ने देखा और दो कानो में सुना जबकि नबी करीम ﷺ ये हिदायत दे रहे थे, "जो लोग खुदा और यौमे आखिरी पर ईमान रखते हो, उन्हें अपने मेहमानों की खातिर तवाज़ो करनी चाहिए, मेहमान के इनाम का मौक़ा पहली शब व रोज़ है _," (बुखारी- 6019 व मुस्लिम)* 

*✪_(4)_ मेहमान के आते ही उसकी जरूरतों का अहसास कीजिये:-*
*"❀_ मेहमान के आते ही उसकी ज़रूरतों का अहसास कीजिए, रफा हाजत के लिए पूछिए, मुंह हाथ धोने का इंतज़ाम कीजिए, ज़रूरत हो तो गुस्ल का इंतज़ाम भी कीजिए, खाने पीने का वक्त ना हो जब भी मालूम कर लीजिए और इस खुश उसलूबी से कि मेहमान तकल्लुफ़ में इंकार ना करे, जिस कमरे में बैठने और ठहरने का नज़्म हो वो मेहमान को बता दीजिए,*

*"✪_(5)_ हर वक़्त मेहमान के पास धरना मारे बैठे न रहिये:-*
*"❀_ हर वक़्त मेहमान के पास धरना मारे बैठे ना रहे और इसी तरह रात गए तक मेहमान को परेशान न कीजिए ताकि मेहमान को आराम करने का मौक़ा मिले और वो परेशनी मेहसूस न करे,*

*✪_(6)_ मेहमानों के खाने पीने पर मसर्रत मेहसूस कीजिये, तंगदिली, कुढ़न और कोफ्त मेहसूस ना कीजिये:-*
*"❀_ मेहमान ज़हमत नहीं बल्कि रहमत और ख़ैर व बरकत का ज़रिया होता है और ख़ुदा जिसको आपके यहाँ भेजता है उसका रिज्क़ भी उतार देता है, वो आपके दस्तर ख़्वान पर आपकी क़िस्मत का नहीं खाता अपनी क़िस्मत का खाता है और आपके एजाज़ व इकराम में इज़ाफ़ा का बाइस बनता है,*

*"✪_(7)_ मेहमान की इज्ज़त व आबरू का लिहाज़ रखिए:-*
*"❀_मेहमान की इज्ज़त व आबरू का भी ख्याल रखिए और उसकी इज़्ज़त व आबरू को अपनी इज़्ज़त व आबरू समझिए, आपके मेहमान की इज्ज़त पर कोई हमला करे तो उसको अपनी इज़्ज़त व हमियत के खिलाफ चेलेंज समझिए,*

*"❀_ क़ुरान में है कि जब लूत अलैहिस्सलाम के मेहमानों पर बस्ती के लोग बद नियति के साथ हमला आवर हुए तो वो मुदाफत के लिए उठ खड़े हुए और कहा - ये लोग मेरे मेहमान हैं इनके साथ बद सुलूकी कर के मुझे रुसवा न करो, इनकी रुसवाई मेरी रुसवाई है _," (अल हिज्र-68-69)*

*✪_(8)_ तीन दिन तक इंतेहाई शोक़ और वलवले से मेज़बानी के तक़ाज़े पूरे कीजिये :-* 
*"❀_ तीन दिन तक की ज़ियाफ़त मेहमान का हक़ है और हक़ अदा करने में मोमिन को इंतेहाई फराख दिल होना चाहिये, पहला दिन ख़ुसूसी खातिर तवाज़ो का है, इसलिये पहले रोज़ मेहमान नवाज़ी का पूरा अहतमाम कीजिये, बाद के दो दिनों मे अगर वो गैर मामूली अहतमाम ना रह सके तो कोई मुजा़यका नहीं,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है- और मेहमान नवाजी़ तीन दिन तक है, उसके बाद मेज़बान जो कुछ करेगा वो उसके लिए सदका़ होगा_," (बुखारी- 6019 व मुस्लिम)* 

*"✪_(9)_ मेहमान की खिदमत को अपना अखलाक़ी फ़र्ज़ समझे:-*
*"❀_ मेहमान की खिदमत को अपना अखलाक़ी फ़र्ज़ समझे और मेहमान को मुलाज़िमो या बच्चों के हवाले करने के बजाय ख़ुद उसकी ख़िदमत और आराम के लिए कमर बस्ता रहें, नबी करीम ﷺ मोअज्जिज़ मेहमानों की मेहमान नवाज़ी खुद फ़रमाते थे,*
  
*✪_ (10)_ खाना खाने के लिए जब हाथ धोयें तो पहले मेज़बान धोये फिर मेहमान के हाथ धुलवायें:-*
*"❀_ खाना खाने के लिए जब हाथ धुलवाएं तो पहले खुद हाथ धो कर दस्तर ख्वान पर पहुंचे और फिर मेहमान के हाथ धुलवाए,*
*"❀_ इमाम मालिक रह. ने जब यही अमल किया तो इमाम शाफई रह. ने इसकी वजह पूछी तो फरमाया- खाने से पहले तो मेज़बान को पहले हाथ धोना चाहिए और दस्तर ख्वान पर पहुंच कर मेहमान को खुश आमदीद कहने के लिए तैयार हो जाना चाहिए और खाने के बाद मेहमानों के हाथ धुलवाने चाहिए और सबके बाद मेज़बान को हाथ धोने चाहिए, हो सकता है कि उठते उठते कोई और आ पहुंचे,*

*"✪_(11)_ दस्तर ख्वान पर खुर्द नोश का सामान और बर्तन वगैरा ज़्यादा रखिए:-*
*"❀_ दस्तर ख्वान पर खुर्द नोश का सामान और बर्तन वगैरा मेहमानों की तादाद से कुछ ज़्यादा रखें, हो सकता है कि खाने के दौरान कोई और साहब आ जाएं और फिर उनके लिए इंतजाम करने को दौड़ना भागना पड़े, और अगर बर्तन और सामान पहले से मौजूद होगा तो आने वाला भी सुबकी (शर्मिंदगी) के बजाए मसर्रत और इज्ज़त अफजा़ई मेहसूस करेगा,*

*✪_(12)_ मेहमान के लिए ईसार से काम लीजिए:-*
*"❀_ मेहमान के लिए ईसार से काम लीजिये, खुद तकलीफ़ उठा कर उसे आराम पहुंचाइए, एक मर्तबा नबी करीम ﷺ की खिदमत में एक शख्स आया और बोला, हुजूर! मैं भूख से बेताब हूं, आप ﷺ ने अपनी किसी बीवी के यहां कहलवाया, खाने के लिए जो कुछ मौजूद हो भेज दो, जवाब आया, उस खुदा की क़सम जिसने आप ﷺ को पैगंबर बना कर भेजा है यहां तो पानी के सिवा और कुछ नहीं है,*

*"❀_ फिर आप ﷺ ने दूसरी बीवी के यहां कहलवा भेजा, वहां से भी यही जवाब आया, यहां तक कि आप ﷺ ने एक एक कर के सब बीवियों के यहां कहलवाया और सबके यहां से इसी तरह का जवाब आया, अब आप ﷺ अपने सहाबियों की तरफ़ मुतवज्जह हुए और फरमाया- आज रात के लिए इस मेहमान को कौन क़ुबूल करता है, एक अंसारी सहाबी रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा- या रसूलल्लाह ﷺ! मै क़ुबूल करता हूं,*

*"❀_ अंसारी उस मेहमान को अपने घर ले गए और घर जा कर बीवी को बताया, मेरे साथ ये रसूलुल्लाह ﷺ के मेहमान हैं उनकी खातिरदारी करो, बीवी ने कहा- मेरे पास तो सिर्फ बच्चों के लायक़ खाना है, सहाबी ने कहा- बच्चों को किसी तरह बहला कर सुला दो और जब मेहमान के सामने खाना रखो तो किसी बहाने से चिराग बुझा देना और खाने पर मेहमान के साथ बैठ जाना ताकि उसे ये मेहसूस हो कि हम भी खाने में शरीक़ है, इस तरह मेहमान ने तो पेट भर खाया और घर वालों ने सारी रात फाक़े से गुज़ारी,*

*"❀_ सुबह जब ये सहाबी नबी करीम ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुए तो आप ﷺ ने देखते ही फरमाया: तुम दोनों ने रात अपने मेहमान के साथ जो हुस्ने सुलूक किया वो खुदा को बहुत ही पसंद आया_,"*
 *®_(बुखारी व मुस्लिम -5359)* 

*✪_(13)_ अगर मेहमान किसी मोके़ पर मेज़बान से बेमुरव्वती करे तब भी मेज़बान फय्याजी़ का सूलूक करे:-*
*"❀_ अगर आपके मेहमान ने कभी किसी मौके पर आपके साथ बेमुरव्वती और रूखेपन का सुलूक किया हो, तब भी आप उसके साथ निहायत फराख दिली, वुस'त ज़र्फ़ और फैयाजी़ का सुलूक कीजिए,*

*"❀_ हज़रत अबुल अहविस जशमी रज़ियल्लाहु अन्हु अपने वालिद के बारे में बयान करते हैं कि एक बार उन्होंने नबी करीम ﷺ से पुछा- अगर किसी के पास मेरा गुज़र हो और वो मेरी ज़ियाफ़त और मेहमानी का हक़ अदा ना करे, और फिर कुछ दिनों के बाद उसका गुज़र मेरे पास हो तो क्या मैं उसकी मेहमानी का हक़ अदा करुं या उस (की बेमुरव्वती और बेरुखी) का बदला उसे चखाऊं ?*

*"❀_ नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया - नहीं बल्की तुम बहर हाल उसकी मेहमानी का हक़ अदा करो_,"*
 *®_ (मिश्कात बाब अल-ज़ियाफ़त)*

*✪_(14)_ मेहमान से अपने हक मे खैर व बरकत की दुआ के लिए दरख्वास्त कीजिये :-*
*"❀_ मेहमान से अपने हक़ में खैर व बरकत की दुआ के लिए दरख्वास्त कीजिये, बिल खुसूस अगर मेहमान नेक, दीनदार और साहिबे फ़ज़ल हो,*

*"❀_ अब्दुल्ला बिन बसर रजियाल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी करीम ﷺ मेरे वालिद के यहां मेहमान ठहरे, हमने नबी करीम ﷺ के सामने हरिया पेश किया, आप ﷺ ने ठोडा सा तनावुल फरमाया, फ़िर हमने खजूरें पेश की, आप ﷺ ये खजूरें खाते वे और गुठलियां शहादत की अंगुली और बीच की अंगुली में पकड़ पकड़ कर फ़ैंकते जाते थे,*

*"❀_ फिर पीने के लिये कुछ पेश किया, आप ﷺ ने नोश फरमाया और अपनी दाईं तरफ बेठने वाले के आगे बढ़ा दिया, जब आप ﷺ तशरीफ ले जाने लगे तो वालिद मोहतरम ने आप ﷺ की सवारी की लगाम पकड़ ली और दरख्वास्त की कि हुजूर ﷺ हमारे लिये दुआ फ़रमायें, और नबी करीम ने दुआ फरमाई- (तर्जुमा) खुदाया! तूने इनको जो रिज़्क दिया है उसमे बरकत फ़रमा, इनकी मगफिरत फरमा और इन पर रहम फरमा _,"* 
*®_ (मुस्लिम -5328)* 

           *📓 मदनी माशरा -174,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

     *☞_हम मेहमानी किस तरह करें _"*
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*✪_(1)_ मेहमान मेज़बान के लिए या उसके बच्चों के लिए कुछ तोहफा ले लिया करे :-*
*"❀_ किसी के यहां मेहमान बन कर जाएं तो हस्बे हैसियत मेज़बान या मेज़बान के बच्चों के लिए कुछ तोहफे तहा'इफ लेते जाएं और तोहफे मे मेज़बान के ज़ोक और पसंद का लिहाज़ कीजिये, तोहफों और हदियों के तबादले से मोहब्बत और ताल्लुक़ के जज़्बात बढ़ते है 'और तोहफा देने वाले के दिल में गुंजा'इश पेदा होती है,* 

*"✪_(2)_ मेहमान बगैर ज़रूरत तीन दिन से ज़्यादा ना ठहरे:-* 
*"❀_ जिसके यहां भी मेहमान बन कर जाएं कोशिश करें कि तीन दिन से ज़्यादा न ठहरें, इला ये कि ख़ुसूसी हालात हों और मेज़बान ही शदीद इसरार करे,* 

*"❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - मेहमान के लिए जाइज़ नहीं कि वो मेज़बान के यहां इतना ठहरे कि उसको परेशानी मे मुब्तिला कर दे_,"* *®_( बुखारी-6135),* 

*"❀_ और सही मुस्लिम मे है कि मुसलमान के लिये जाइज़ नहीं कि वो अपने भाई के यहां इतना ठहरे कि उसको गुनाहगार कर दे,* 
*"_लोगों ने कहा- या रसूलुल्लाह ﷺ! गुनाहगार कैसे करेगा? फरमाया - इस तरह कि वो उसके पास इतना ठहरे कि मेज़बान के पास ज़ियाफत के लिए कुछ ना रहे _,"* 

*✪_ (3)_ हमेशा दूसरों के ही मेहमान ना बनिए:-*
*"❀_ हमेशा दूसरों के ही मेहमान न बनें, दूसरों को भी अपने यहां आने की दावत दीजिए और दिल खोल कर खातिर तवाज़ो कीजिए,*

*"✪_(4)_ मौसम के लिहाज़ से ज़रूरी सामान ले कर जाएं:-*
*"❀_मेहमानी में जाएं तो मौसम के लिहाज़ से ज़रूरी सामान और बिस्तर वगैरा ले कर जाएं, जाड़े में खास तौर पर बगैर बिस्तर के हरगिज़ ना जाएं, वर्ना मेज़बान को ना क़ाबिल तकलीफ होगी और ये हरगिज़ मुनासिब नहीं कि मेहमान मेज़बान के लिए वबाले जान बन जाए,* 

*✪_ (5)_ मेज़बान की ज़िम्मेदारियों का भी लिहाज़ रखिए:-*
*"❀_ मेज़बान की मसरूफियात और ज़िम्मेदारियों का भी लिहाज़ रखिये और इसका अहतमाम कीजिये कि आपकी वजह से मेज़बान की मसरूफियात मुतास्सिर ना हो और ज़िम्मेदारियों में खलल न पड़े,*

*"✪_(6)_ मेज़बान से तरह तरह के मुतालबे ना कीजिये:-*
*"❀_ मेज़बान से तरह तरह के मुतालबे ना कीजिये, वो आपकी ख़ातिर मदारत और दिलजोई के लिए अज़ ख़ुद जो अहतमाम करें उस पर मेज़बान का शुक्रिया अदा कीजिये और उसको किसी बेजा मशक्कत में ना डालिए,*

*✪_(7)_ मेज़बान के घर की ख़्वातीन से ( गैर मेहरम है तो) गुफ्तगू वगैरा ना करें:-*
*"❀_ अगर आप मेज़बान की ख़्वातीन के लिए गैर मेहरम है तो मेज़बान की गैर मौजूदगी में बिला वजह उनसे गुफ्तगु ना कीजिए ना उनकी आपस की गुफ्तगू पर कान लगायें और इस अंदाज से रहे कि आपकी गुफ्तगु और तर्ज़ अमल से उनको कोई परेशानी भी ना हो और किसी वक्त बेपर्दगी भी ना होने पाए,*

*"✪_(8)_ अगर मेज़बान के साथ ना खाना हो तो अच्छे अंदाज में माज़रत करें:-*
*"❀_ और अगर किसी वजह से आप मेहमान के साथ ना खाना चाहें या रोजे से हों तो निहायत अच्छे अंदाज में माज़रत करें और मेज़बान के लिए खैर व बरकत की दुआ मांगें,*

*"❀_ जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आने वाले मोअज्जिज़ मेहमानों के सामने पुर तकल्लुफ खाना रखा और वो हाथ खींचते ही रहे तो हज़रत ने दरख़्वास्त की - आप हज़रात खाते क्यों नहीं? जवाब में फरिश्तो ने हज़रत को तसल्ली देते हुए कहा- आप नागवारी ना मेहसूस फ़रमायें दर असल हम खा नहीं सकते, हम तो सिर्फ आपको एक लायक़ बेटे के पैदा होने की खुश खबरी देने आए हैं,*

*✪__(9)_ मेज़बान के लिए खैर व बरकत की दुआ कीजिये:-*
*"❀_ जब किसी के यहां दावत में जाएं तो खाने पीने के बाद मेज़बान के लिए कुशादा रोज़ी, खैर व बरकत और मग्फिरत व रहमत की दुआ कीजिये,*

*"❀_ हज़रत अबुल हैसम बिन तैहान रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी करीम ﷺ और आप ﷺ के सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की दावत की, जब आप लोग खाने से फ़रिग हुए तो नबी करीम ﷺ ने फरमाया - अपने भाई को सिला दो, सहाबा किराम ने नबी करीम ﷺ से पुछा- सिला क्या दें ? या रसूलुल्लाह ﷺ !*

*"❀_फरमाया- जब आदमी अपने भाई के यहां जाए और वहां खाए पिए तो उसके हक़ में खैर व बरकत की दुआ करे, ये उसका सिला है_,"*
 *®_ (अबू दाउद - 3853)*

*"❀_ नबी करीम ﷺ एक बार हज़रत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु के यहाँ तशरीफ़ ले गए, हज़रत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने रोटी और ज़ेतून पेश किया, आप ﷺ ने तनावुल फरमाया और ये दुआ फरमाई- (तर्जुमा) तुम्हारे यहां रोजे़दार रोज़ा इफ्तार करें, नेक लोग तुम्हारा खाना खाएं और फरिश्ते तुम्हारे लिए रहमत व मग्फिरत की दुआ करें _,"*
 *®_ (अबू दाउद -3854)*

           *📓 मदनी माशरा -178,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞_अमन वाला सोना अमन वाला जागना_"*
          ▪•═════••════•▪
*✪__(1)_ शाम का अँधेरा छा जाने लगे तो बच्चों को घर बुला लीजिए:-*
*"❀_ जब शाम का अंधेरा छा जाने लगे तो बच्चों को घर में बुला लीजिए और बाहर ना खेलने दीजिए, हां जब रात का कुछ हिस्सा गुज़र जाए तो निकलने की इजाज़त दे सकते हैं, अहतयात इसी में है कि किसी सख्त ज़रूरत के बैगर बच्चों को रात में घर से ना निकलने दें,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है -" जब शाम हो जाए तो छोटे बच्चों को घर में रोके रखो, इसलिए कि उस वक्त शयातीन (ज़मीन) में फैल जाते हैं, अलबत्ता जब घड़ी भर रात गुज़र जाए तो बच्चों को छोड़ सकते हो_," (बुखारी - 5623)*

*"✪_(2)_ शाम होते ही ये दुआ पढ़िए:-*
*"❀_ जब शाम हो जाये तो ये दुआ पढ़िये, नबी करीम ﷺ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को यही दुआ पढने की तलकीन फरमाया करते थे:-*
*"❀_अल्लाहुम्मा बिका अमसयना वा बिका असबाहना वा बिका नाहया वा बिका नमूतु वा इलयकन नुशूर_,"*
 *"❀_ खुदाया! हमने तेरी ही तौफीक़ से शाम की और तेरी ही मदद से सुबह की, तेरी ही इनायत से जी रहे हैं और तेरे ही इशारे पर मर जाएंगे और अंजाम कार तेरे ही पास उठकर हाजिर होंगे _, "*
 *®_ तिर्मिज़ी- 3391,* 

*✪_ (3)_ मगरिब की अज़ान के वक़्त ये दुआ पढ़िये:-* 
*"❀_ इलाहुम्मा इन्ना हाज़ा इक़बालु लयलिका वा इदबारू नहारिका वा असवातु दुआतिका फगफिरली _, ( तिर्मिज़ी-530)* 
*"❀_ खुदाया ! ये वक़्त है तेरी रात के आने का, तेरे दिन के जाने का और तेरे मोज़िनो की पुकार का, पस तू मेरी मगफिरत फ़रमा दे _,"* 

*"👉🏻_ नोट- किताब "मोमिन का हथियार" मे दी गई सुबह व शाम की दुवाओं का अहतमाम किजिये, किताब आप लिंक से डाउनलोड कर सकते है,*

*👇🏻 मोमिन का हथियार+ अल्लाह की पनाह ( मोमिन का क़िला)*
https://drive.google.com/file/d/0B2E60cf5hyGARF9BX1BjUHlCa00/view?usp=drivesdk&resourcekey=0-td65q-I7MqSeR6zR7RyAqQ

*👇🏻 नई किताब मोमिन का हथियार (इज़ाफ़ा शुदा),*
https://drive.google.com/file/d/18e56q8uTHXHvOlT3ZJ1iitRBk8stK_GN/view?usp=sharing

*👇🏻 मोमिन का हथियार ( हिन्दी मे किताब)*
https://drive.google.com/file/d/0B2E60cf5hyGAa1NkbVYwN2xmdTg/view?usp=sharing&resourcekey=0-aQa8LPi60H_fkJtiA73YFw

*"✪_ (4) _ इशा की नमाज़ से पहले सोने से परहेज़ कीजिये :-* 
*"❀_ इशा की नमाज़ पढ़ने से पहले सोने से परहेज़ कीजिये, इस तरह अकसर इशा की नमाज क़ज़ा हो जाती है और क्या ख़बर कि नींद की इस मौत के बाद ख़ुदा बंदे की जान वापस क़रता है या फ़िर हमेशा के लिए ही ले लेता है, नबी करीम ﷺ इशा से पहले कभी ना सोते थे, "* 

*"✪_(5)_ रात होते ही घर में रोशनी ज़रूर कीजिये :-* 
*"❀_ रात होते ही घर में रौशनी ज़रूर कर लीजिये, नबी करीम ﷺ ऐसे घर में सोने से परहेज़ फ़रमाते जिसमे रोशनी ना की होती,*

*✪_ (6)_ रात में जल्दी सोने और सहर में जल्दी उठने की आदत डालिए:-*
*"❀_ रात गए तक जागने से परहेज़ कीजिए, शब में जल्दी सोने और सहर में जल्दी उठने की आदत डालें, नबी करीम ﷺ का इरशाद है - इशा की नमाज़ के बाद या तो ज़िक्र इलाही के लिए जागा जा सकता है या फिर घर वालों से ज़रूरत की बात करने के लिए,*

*"✪_(7)_ रात को जागने और दिन में नींद पूरी करने से परहेज़ कीजिये:-*
*"❀_ रात को जागने और दिन में नींद पूरी करने से परहेज़ कीजिये, खुदा ने रात को आराम व सुकून के लिए पैदा किया है और दिन को सो कर उठने और ज़रुरियात के लिए दौड़ धूप करने का वक़्त क़रार दिया है,*

*"❀_ जो लोग आराम तल्बी और सुस्ती की वजह से दिन में खर्राटे लेते हैं, या ऐशो इशरत और गुनाह के कामों में मुब्तिला होने के लिए रात भर जागते हैं, वो कुदरत की हिकमतों का खून करते हैं और अपनी सहत और ज़िंदगी को बर्बाद करते हैं, दिन में पहरों तक सोने वाले अपने दिन के फ़राइज़ में भी कोताही करते हैं और जिस्म व जान को भी आराम से मेहरूम रखते हैं, इसलिए कि दिन की नींद रात का बदल नहीं बन पाती,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ ने तो इसको भी पसंद नहीं फरमाया कि आदमी रात भर जाग कर खुदा की इबादत करे और अपने को ना-का़बिले बर्दाश्त मशक्कत में डाले,*

*"❀_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से एक बार नबी करीम ﷺ ने पूछा - कहा ये बात जो मुझे बताई गई है सही है कि तुम पाबन्दी से दिन में रोज़े रखते हो और रात भर नमाज़ पढ़ते हो ? हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - जी हां बात तो सही है, नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया- नहीं ऐसा ना करो, कभी रोज़ा रखो और कभी खाओ पियो, इसी तरह सोओ भी और उठ कर नमाज़ भी पढ़ो, क्योंकी तुम्हारे जिस्म का भी तुम पर हक़ है, तुम्हारी आंखों का भी तुम पर हक है_," (बुखारी - 1253)* 

*✪_(8)_ ज़्यादा आरामदह बिस्तर ना इस्तेमाल कीजिये:-*
*"❀_ ज़्यदा आरामदह बिस्तर नि इस्तेमाल कीजिए, दुनिया में मोमिन को आराम तलबी और ऐश पसंदी से परहेज़ करना चाहिए, मोमिन को जफ़ाकश, सख़्त कोश और मेहनती होना चाहिए, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि नबी करीम ﷺ का बिस्तर चमड़े का था, जिसमें खजूर की छाल भरी हुई थी _," (शमाइल तिर्मिज़ी)*

*"❀_ हज़रत हफ्सा रज़ियल्लाहु अन्हा से किसी ने पूछा, आपके यहां नबी करीम ﷺ का बिस्तर कैसा था? फरमाया: एक टाट था जिसको दोहरा कर के हम नबी करीम ﷺ के नीचे बिछा दिया करते थे, एक रोज़ मुझे ख्याल आया कि अगर इसको चोहरा कर के बिछा दिया जाए तो ज़रा ज़्यादा नरम हो जाएगा, चुनांचे मैंने उसे चोहरा कर के बिछा दिया,*

*"❀_ सुबह को आप ﷺ ने दरियाफ्त फरमाया: रात मेरे नीचे क्या चीज़ बिछाई थी? मैंने कहा - वोही टाट का बिस्तर था, अलबत्ता रात मैंने उसे चोहरा कर के बिछा दिया था कि कुछ नरम हो जाए, नबी करीम ﷺ ने फरमाया - नहीं, उसे दोहरा ही रहने दिया करो, रात बिस्तर की नरमी तहज्जुद के लिए उठने में रुकावट बनी _," (शमाईल तिर्मिज़ी)*

*"❀_ नबी करीम ﷺ एक बार चटाई पर सो रहे थे, लेटने से आप ﷺ के जिस्म मुबारक पर चटाई के निशानात पड़ गए, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं - मैं ये देख कर रोने लगा, नबी करीम ﷺ ने मुझे रोते देखा तो फरमाया क्यों रो रहे हो? मैंने अर्ज़ किया - या रसूलुल्लाह ﷺ ये क़ैसरो किसरा तो रेशम और मखमल के गद्दो पर सोयें और आप ﷺ बोरिये पर, नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया: ये रोने की बात नहीं है, उनके लिए दुनिया है और हमारे लिए आखिरत है _,"* 

*✪_ (9)_ सोन से पेहले वज़ू कर लीजिये और पाक साफ़ हो कर सोएं :-* 
*"❀_ सोने से पहले वज़ू करने का भी अहतमाम कीजिये और पाक साफ़ हो कर सोएं, अगर हाथो में चिकनाई वगैरा लगी हो तो हाथों को खूब अच्छी तरह धो कर सोएं,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है - "_जिसके हाथ मे चिकनाई वगैरा लगी हो और वो उसे धोए बगैर सो गया और उसे कोई नुक़सान पहुंचा (यानि किसी जानवर ने काट लिया) तो वो अपने आप ही को मलामत करे (कि धोए बगैर क्यूं सो गया था) ?)"* 
*®_ तिर्मिज़ी -1859,* 

*"❀_ नबी करीम ﷺ का मामूल था कि सोने से पहले आप ﷺ वज़ू फरमाते और अगर कभी इस हाल मे सोने का इरादा फरमाते कि गुस्ल की हाजत होती तो नापाकी के मुक़ाम को धोते और फिर वज़ू कर के सो रहते _,"* 
*®_(बुख़ारी - 288)*

*✪_(10)_सोने के वक़्त घर का दरवाज़ा बंद कीजिये, बरतन ढाँकिये, चराग बुझा दीजिये:-*
*"❀_सोने के वक्त घर का दरवाज़ा बंद कर लीजिए, खाने पीने के बरतन ढ़ांक दीजिए, चराग या लाइट वगैरा बुझा दीजिए और अगर आग जल रही हो तो उसे भी बुझा दीजिए,*

*"❀_ एक बार मदीना मुनव्वरा में रात के वक्त किसी के घर में आग लग गई तो नबी करीम ﷺ ने फरमाया - आग तुम्हारी दुश्मन है जब सोया करो तो आग बुझा दिया करो _," (तिर्मिज़ी -1813)*

*"✪_(11)_सोते वक्त बिस्तर के क़रीब ये चीजें रख लीजिए:-*
*'❀_ सोते वक़्त बिस्तर पर और बिस्तर के क़रीब ये चीज़ें ज़रूर रख लीजिए, पीने का पानी और गिलास, लोटा, लाठी, रोशनी के लिए माचिस या टॉर्च, मिस्वाक, तोलिया वगैरा और अगर आप कहीं मेहमान हों तो घर वालों से बैतुल खला वगैरा ज़रूर मालूम कर लीजिए, हो सकता है कि रात में किसी वक्त ज़रूरत पेश आ जाए और ज़हमत हो,*

*"❀_ नबी करीम ﷺ जब आराम फरमाते तो आपके सरहाने 7 चीज़ें रखी रहतीं, तेल की शीशी, कंघा, सुरमा दानी, क़ैंची, मिसवाक, आईना और लकड़ी की एक छोटी सी सीख जो सर वगैरा खुजाने के काम में आती ,* 

*✪_(12)_सोने के वक्त कपड़े वगैरा पास रखिए और उठते ही झाड़ लीजिए:-*
*"❀_ सोने के वक्त़ अपने जूते और कपड़े वगैरा पास ही रखिये कि जब सो कर उठे तो तलाश ना करने पड़े और उठते ही जूते में पैर ना डालें, इसी तरह कपडे भी बगैर झाड़े ना पहनें, पहले झाड़ लीजिए हो सकता है कि जूते या कपड़े में कोई मूज़ी जानवर हो और खुदा ना ख्वास्ता वो आपको तकलीफ पहुंचा दे,*

*"✪__(13)_सोने से पहले बिस्तर झाड़ लीजिये:-*
*"❀_सोने से पहले बिस्तर अच्छी तरह झाड़ लो और अगर कभी सोते से किसी ज़रूरत के लिए उठें और फिर आ कर लेटें तब भी बिस्तर को अच्छी तरह झाड़ लें।"*

*"❀_ नबी करीम ﷺ ने फरमाया- "_और जब कोई शब में बिस्तर से उठे और फिर बिस्तर पर जाए तो अपनी लुंगी के किनारे से तीन बार उसे झाड़ दें, इसलिये कि वो नहीं जानता कि उसके पीछे बिस्तर पर क्या चीज़ आ गई है _,"*
 *®_(तिर्मिज़ी, अबू दाउद -5050)*  

*✪_(14)_ जब बिस्तर पर पहुँचे तो ये दुआ पढ़िये:-* 
*"✪_ जब बिस्तर पर पहुँचे तो ये दुआ पढ़िये, नबी करीम ﷺ के खास खादिम हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते है कि जब आप ﷺ बिस्तर पर तशरीफ़ ले जाते तो ये दुआ पढते:-* 

*"✪_ अलहम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अत'अमना वा सक़ाना वा कफ़ाना वा अवाना फकुम मिम्मन ला काफी लहू वाला मुअविया _,"* 

*"✪_(तर्जुमा)_ शुक्र व तारीफ खुदा ही के लिए है जिसने हमें खिलाया, पिलाया और जिसने हमारे कामों मे भरपूर मदद फरमाई और जिसने हमें रहने बसने को ठिकाना बख्शा, कितने ही लोग है जिनका ना कोई मुईन व मददगर और ना कोई ठिकाना देने वाला _,"* 

*✪_(15)_ बिस्तर पर पहुंचने पर क़ुरान पाक का कुछ हिस्सा ज़रूर पढ़िये:-* 
*"❀_ बिस्तर पर पहुंचने पर क़ुरान पाक का कुछ हिस्सा ज़रूर पढ़ लीजिये, नबी करीम ﷺ सोने से पेहले क़ुरान पाक का कछ हिस्सा ज़रूर तिलावत फरमाते, नबी करीम ﷺ का इरशाद है :-* 
*"_ जो शख़्स अपने बिस्तर पर आराम करने के वक़्त किताबुल्लाह की कोई सूरत पढता है तो ख़ुदा ता'ला उसके पास एक फ़रिश्ता भेजता है, जो हर तकलीफ़दह चीज़ से उसके बेदार होने तक उसकी हिफ़ाज़त करता है ख्वाह वो किसी भी वक़्त नींद से बेदार हो _,(अहमद)* 

*"❀_ और आप नबी ﷺ ने फरमाया:- जब आदमी सोने के लिए अपने बिस्तर पर पहु'चता है तो उसी वक़्त एक फरिश्ता और शैतान उसके पास आ पहुचते हैं, फरिश्ता उससे कहता है:- अपने आमाल कर खात्मा भलाई पर करो और शैतान कहता है - अपने आमाल का खात्मा बुराई पर करो, फ़िर अगर वो आदमी खुदा का ज़िक्र कर के सोया तो फ़रिश्ता रात भर उसकी हिफ़ाज़त करता है _,"* 

*"❀_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि नबी करीम ﷺ जब बिस्तर पर तशरीफ ले जाते तो दोनो हाथ दुआ माँगने की तरह मिलाते और क़ुल हुवल्लाहु अहद और कुल आउज़ू बिरबबिल फलक़ और क़ुल आउज़ू बिरब्बिन नास की सूरतें तिलावत फरमा कर हाथों पर दम फरमाते और जहाँ तक हाथ पहुँचता अपने जिस्म पर फैर लेते, सर, चेहरे और जिस्म के अगले हिस्से से शुरु फरमाते और आप ﷺ तीन मर्तबा ये अमल फरमाते _,"* 
*®_ (शमा'इल तिर्मिज़ी)*

*✪_(17)_ सोते वक़्त दांया हाथ दांये रुखसार के नीचे रख कर दांयी करवट पर लेटिये:-*
*"❀_ जब सोने का इरादा करें तो दांया हाथ अपने दांये रुखसार के नीचे रख कर दांयी करवट पर लेटे, हज़रत बराआ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जब नबी करीम ﷺ आराम फरमाते तो अपना दांया हाथ दांये रुखसार के नीचे रखते और ये कलमात पढ़ते:- रब्बी क़ीनी अज़ाबका यवमा तब'असु इबादका_,"*
 *"❀_(तर्जुमा) खुदाया! मुझे उस रोज़ अपने अजा़ब से बचा, जिस रोज़ तू अपने बंदों को अपने हुजूर उठा हाज़िर करेगा_,"*
*"❀_ हिसने हसीन में है कि आप ﷺ ये कलमात तीन बार पढ़ते,*

*"✪_(18)_ पट लेटने और बांयी करवट पर सोने से परहेज़ कीजिये:-*
*"❀_ पट लेटने और बांयी करवट पर सोने से परहेज़ कीजिए, हज़रत या'ईश रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद फरमाते हैं कि मैं मस्जिद में पेट के बल लेटा हुआ था कि किसी साहब ने मुझे अपने पाँव से हिलाया और कहा - इस तरह लेटने को खुदा नापसंद फरमाता है, अब जो मैंने देखा तो वो नबी करीम ﷺ थे_,"*
 *®_ (अबू दाउद -5040)*

*✪_(19) _ सोने का इंतेज़ाम ऐसी जगह रखिये जहां ताज़ा हवा पहुँचती हो:-* 
*"❀_ सोन के लिए ऐसी जगह का इंतखाब कीजिये जहां ताज़ा हवा पहुंचती हो, ऐसे बंद कमरों मे सोने से परहेज़ कीजिये जहां ताज़ा हवा का गुज़र ना होता हो,* 

*"✪__(20)_ मुंह लपेट कर ना सोइये :-* 
*"❀_ मुंह लपेट कर न सोयें, इस तरह सोने से सहत पर बुरा असर पडता है, चेहरा खोल कर सोने की आदत डालिये, ताकी आपको ताज़ा हवा मिलती रहे,* 

*"✪__(21)_ बगैर मुंडेर वाली छत पर सोने से परहेज़ कीजिये :-*
*"❀_ ऐसी खुली छतों पर सोने से परहेज़ कीजियें जहां कोई मुंडेर या जंगला वगैरा ना हो और छत से उतरते वक्त़ अहतमाम कीजिये कि ज़ीने पर पांव रखने से पहले आप रोशनी का इंतेज़ाम कर लें, बाज़ अवक़ात मामूली गल्ती से काफ़ी तकलीफ़ उठानी पड़ती है,*  

*✪_(22)_ सख्त सर्दी के बावजूद भी कमरे में अंगीठी जला कर ना सोयें:-* 
*"❀_ कैसी ही सख्त सर्दी पड़ रही हो, कमरे मे अंगीठी जला कर ना सोयें, आग जलने से बंद कमरों में जो गैस पैदा होती है वो सहत के लिए इंतेहाई मुज़िर है बल्की बाज़ अवक़ात तो इससे जान का खतरा पैदा हो जाता है और मौत वाक़े हो जाती है,* 

*"✪_ (23)_ सोने से पहले ये दुआ पढ़ लिया कीजिये:-* 
*"❀_हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ सोने से पहले ये दुआ पढ़ लिया करते :-* 
*"_ बिस्मिका रब्बी वा ज़आतू जंबी वा बिका अरफउहु इन अमसकता नफ़सी फरमहा वा इन अरसलतहा फाहफज़हा बिमा तहफजु़ बिही इबादकस सालिहीन _,"(बुखारी व मुस्लिम)* 
*"❀_(तर्जुमा) ऐ मेरे रब! तेरे ही नाम से मैने अपना पहलू बिस्तर पर रखा और तेरे ही सहारे मै इसको बिस्तर से उठाउंगा, अगर तू रात ही में मेरी मेरी जान कब्ज़ करे तो उस पर रहम फ़रमा, और अगर तू उसे छोड़ कर मजी़द मोहलत दे तो उसकी हिफ़ाज़त फ़रमा जिस तह तू अपने नेक बंदो की हिफाज़त करता है _,"* 

*"❀_ अगर ये दुआ याद ना हो तो मुख्तसर दुआ ये है :-* 
*"_ अल्लाहुम्मा बिस्मिका अमुतु वा आहया _, (बुखारी व मुस्लिम)* 
*"❀_( तर्जुमा) खुदाया! मै तेरे ही नाम से मौत की आगोश में जाता हूं और तेरे ही नाम से ज़िंदा उठुंगा _,"*  

*✪_(24)_ रात के आखरी हिस्से में उठने की आदत डालिये :-* 
*"❀_ रात के आखरी हिस्से में उठने की आदत डालिये, नफ्स की तरबियत और खुदा से ताल्लुक़ पैदा करने के लिए आखरी शब में उठना और खुदा को याद करना ज़रूरी है, खुदा ने अपने मेहबूब बन्दो की यही इम्तियाज़ी ख़ूबी बयान फ़रमाई है कि रातों को उठ कर ख़ुदा के हुज़ूर रुकू और सुजूद करते हैं और अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं _,"* 

*"❀_ नबी करीम ﷺ का मामूल था कि आप अव्वल रात में आराम फरमाते और अखीर शब में उठ कर खुदा की इबादत में मशगूल हो जाते,*

*✪_(25)_ नींद से बेदार होने पर दुआ पढ़िये :-* 
*"❀_अल्हम्दुलिल्लाहिल्लज़ी अहयाना बअदा मा अमातना व इलैयहिन नुशूर _,"(बुखारी व मुस्लिम)* 

*"❀_ (तर्जुमा)_ शुक्र व तारीफ खुदा ही के लिए है जिसने हमें मुर्दा कर देने के बाद ज़िन्दगी से नवाजा़ और उसी के हुज़ूर उठ कर हाज़िर होना है _,"* 

*✪_(26)_ अच्छा ख्वाब देखने पर खुदा का शुक्र अदा कीजिये:-*
*"❀_ जब कोई अच्छा ख्वाब देखे तो खुदा का शुक्र अदा कीजिये और उसको अपने हक़ में बशारत समझिए, नबी करीम ﷺ का इरशाद है - अब नबुवत में बशारतों के सिवा कुछ बाक़ी नहीं रहा, लोगों ने पूछा, बशारत से क्या मुराद है? फरमाया-अच्छा ख्वाब _," (बुखारी)*

*"❀_ और आप ﷺ ने ये भी फरमाया कि तुम में जो ज़्यादा सच्चा है उसका ख्वाब भी ज़्यादा सच्चा होगा, और आप ﷺ ने ये हिदायत भी फरमाई कि जब कोई अच्छा ख्वाब देखो तो खुदा की हम्द व सना करो और उसको बयान करो और दोस्त से भी बयान करो _,"*

*"❀_ नबी करीम ﷺ जब कभी कोई ख़्वाब देखते तो सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम से बयान फ़रमाते और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम से भी फ़रमाते कि अपना ख्वाब बयान करो, मैं उसकी ताबीर दूंगा_," (बुखारी)*

*"✪_(27)_ अपने जी से घढ़ कर झूठे ख्वाब कभी बयान ना किजिये:-*
 *"❀_अपने जी से घढ़ कर झूठे ख्वाब कभी बयान ना कीजिये, हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु अन्हु का बयान है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया - "जो ख्वाब देखे बगैर अपनी जानिब से घढ़ घढ़ कर बयान करेगा उसको ये सज़ा दी जाएगी कि जो के दो दानों में गिरह लगाये और वो ऐसा कभी ना कर सकेगा _," (बुखारी)* 

*✪_(28)_ अगर नापसंदीदा ख्वाब देखें तो किसी से बयान ना कीजिये और खुदा की पनाह मांगिए:-*
*"❀_जब कभी खुदा ना ख्वास्ता कोई ना पसंदीदा और डरावना ख्वाब देखो तो हरगिज़ किसी से बयान ना कीजिए और उस ख्वाब की बुराई से खुदा की पनाह मांगिए, खुदा ने चाहा तो उसके शर से महफूज रहेंगे_,*

*"❀_ हज़रत अबू सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि मै नागवार ख्वाबों की वजह से अकसर बीमार पड़ जाया करता था, एक रोज़ मैंने हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु से शिकायत की तो आप रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुझे नबी करीम ﷺ की ये हदीस सुनाई:- "अच्छा ख्वाब खुदा की जानिब से होता है, अगर तुममे से कोई अच्छा ख्वाब देखे तो अपने मुखलिस दोस्त के सिवा किसी और से ना बयान करें और कोई ना पसंदीदा ख्वाब देखें तो क़त'अन किसी को ना बताएं बल्कि जागते ही "आऊजु़ बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम" पढ़ कर तीन बार बांई जानिब थुथकार दें और करवट बदल लें, तो वो ख्वाब के शर से महफूज़ रहेगा _,"*
 *®_ (रियाज़ुस सालेहीन, मुस्लिम)*

*✪_(29)_ ख्वाब सुनाने वाले को अच्छी ताबीर दीजिये और उसे हक़ में दुआ कीजिये :-*
*"❀_ जब कभी कोई ख़्वाब सुनाए तो उसकी अच्छी ताबीर दीजिये और उसके हक़ मे दुआ कीजिये, एक आदमी ने एक बार नबी करीम ﷺ से अपना ख्वाब बयान किया, तो आप ﷺ ने फरमाया - बेहतर ख्वाब देखा है, और बेहतर ताबीर होगी _,"* 

*"❀_ नबी करीम ﷺ आम तौर पर फजर की नमाज़ के बाद पालती मार कर बैठ जाते और लोगों से फरमाते जिसने जो ख्वाब देखा हो बयान करो, और सुनने से पहले ये अल्फ़ाज़ फ़रमाते:- इस ख़्वाब की भलाई तुम्हे नसीब हो और इसकी बुराई से तुम मेहफूज़ रहो, हमारे हक़ में खैर और हमारे दुश्मनों के लिए वबाल हो और हम्द व शुक्र खुदा ही के लिए है जो तमाम आलमों का रब है,*

*"✪_(30)_ परेशान कुन ख्वाब देख कर घबराहट मेहसूस हो तो ये कलमात पढिये और अपने बच्चों को भी ये दुआ याद करा दीजिये :-* 
*"❀_ कभी ख्वाब में डर जाएं या कभी परेशान कुन ख्वाब देख कर परेशान हो जाएं तो खौफ और परेशानी दूर करने के लिए ये दुआ पढ़िये और अपने होशियार बच्चों को भी ये दुआ याद करायें _,"* 

*"❀_ हजरत अब्दुल्लाह बिन अमरू बिन आस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब कोई ख्वाब मे डर जाता या परेशान हो जाता तो नबी करीम ﷺ उसकी परेशानी दूर करने के लिए यह दुआ तलक़ीन फरमाते* 
*"_ आउज़ु बिकलिमातिल लाहित ताममती मिन गज़ाबिहि वा इक़ाबिही वा शररी इबादिही वा मिन हमाज़ातिश शयातीनी वा अंयाहज़ुरून _,"* 
*®_ अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)* 

*"❀_(तर्जुमा) मै खुदा ही के कलिमात कामिला की पनाह मांगता हूं उसके गज़ब व गुस्से से, उसकी सज़ा से, उसके बंदो की बुराई से, शयातीन के वसवसों से और इस बात से कि वो मेरे पास आएं_,"* 

*✪__(31)_ सोने के वक़्त दरूद शरीफ कसरत से पढ़िये:-* 
*"❀_ सोन के वक़्त दरूद शरीफ़ कसरत से पढ़िये, तवक़्क़ो है कि ख़ुदा ता'ला नबी करीम ﷺ की ज़ियारत से मुशर्रफ फ़रमायें, हज़रत यज़ीद फ़ारसी रह. कुरान पाक लिखा करते थे, एक बार आपको ख्वाब में नबी करीम ﷺ का दीदार नसीब हुआ, हजरत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु हयात थे,* 

*"❀_ हजरत यज़ीद ने उनसे ज़िक्र किया तो हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनको नबी करीम ﷺ की ये हदीस सुनाई कि जिसने ख़्वाब में मुझे ( ﷺ को) देखा उसने वाक़ई मुझी को देखा, इसलिये कि शैतान मेरी सूरत में नहीं आ सकता_,"* 
*"_ फिर पूछा- तुमने ख्वाब में जिस ज़ात को देखा है उसका हुलिया बयान कर सकते हो ?*

*"❀_ हज़रत यज़ीद ने कहा - आप ﷺ का बदन और आप ﷺ का क़द व क़ामत इंतेहाई मुतवाज़न था, आप ﷺ का रंग गंदुमी माईल बा सफ़ेदी था, आँखे सुरमगी, हंसता ख़ुबसूरत गोल चेहरा, निहायत उभरी हुई डाढ़ी जो पूरे चेहरे का इहाता की हुई थी, और सीने पर फैली हुई थी _,"* 

*"❀_ हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया - अगर तुम नबी करीम ﷺ को ज़िन्दगी मे देखते तब भी इससे ज़्यादा हुलिया ना बयान कर सकते (यानि तुमने जो हुलिया बयान किया वो वाक़ई नबी करीम ﷺ का ही हुलिया है )* *"_®_ शमाईल तिर्मिज़ी,*

           *📓 मदनी माशरा -200,*
┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

*☞_ हुक़ूक़ुल इबाद और हमारा इस्लामी माशरा"*
          ▪•═════••════•▪
*✪_(1)_ वक्फ के मालों में खयानत करना किसी शख्स का माल मारने से ज़्यादा सख्त है:-*
*"❀_ जो हज़रात किसी मस्जिद या किसी दूसरी वक़्फ़ शुदा जायदाद के मुतवल्ली हैं, या किसी मदरसे के मुहतमीम हैं, उनको अपने आमाल का जाइज़ा लेना सख़्त ज़रूरी है, जब वक़्फ़ का माल क़ब्ज़े में होता है और आम तौर से चंदे की रक़म आती रहती है, उन सबको वक्फ करने वाले की शर्तो के मुताबिक़ और चंदा देने वालों की मुतय्यन मद के मुताबिक ही खर्च करना लाज़िम है,*

*"❀_ बहुत से लोग दानिस्ता तौर पर इस बारे में खौफे आखिरत से बेनियाज़ हो कर ऐसी हरकत कर गुज़रते हैं जो उनके लिए आखिरत का वबाल और अजाब बनती चली जाती है, आखिरत की जवाबदही का यक़ीन ना हो तो नफ्स और शैतान खयानत करवा ही देते हैं*

*"❀_ बहुत सी जगह इसकी भी खिलाफ वरजी़ की जाती है कि जिन हज़रात को खौफे खुदा नहीं वक्फ के बहुत से अमवाल अपनी औलाद या दिगर खानदान के किसी अफराद पर या अपनी जा़त पर बिला इस्तेहक़ाक़ शरई खर्च कर जाते हैं, इस क़िस्म की ख़यानत और मसाजिद व मदारिस के अमवाल का गबन किसी शख्स ए वाहिद का माल मारने से भी ज्यादा शदीद है क्योंकि शख्स ए वाहिद से माफ़ी माँग लेना या अदा कर देना आसान है लेकिन उमूमी चंदा या आम मुस्तहक़ीन की ख़यानात करने के बाद तलाफ़ी करना दुशवार तरीन घाटी है, अगर अल्लाह तौबा की तोफ़ीक दे दे तो अहले हुक़ूक़ ना मालूम होने की वजह से उन तक हुकूक पहुंचाने का कोई रास्ता नहीं पा सकता,*

*"❀_ महज़ याद दहानी और तज़कीर के तौर पर ये बातें लिख दी गई है, जो खैर ख्वाही पर मुबनी है और इजमाली तौर पर इशारा किया गया है, जो हज़रात मुब्तिला हों अपना अपना जाइजा लें और अपना अंजाम सोच कर उस माल में तसर्रूफ करें जो उनका ज़ाती नहीं है, दूसरों पर खर्च करने के लिए अल्लाह ताला ने उनको अमीन बनाया है,* 

*✪_ (2)_ यतीम का माल खाना अपने पेटों में आग भरना है:-*
*"❀_ सबको मालूम है कि यतीम का माल खाना और उसूल शरीयत की खिलाफ वरजी़ करते हुए अपनी मिल्क में लेना या अपने ऊपर या अपनी औलाद के ऊपर खर्च कर देना सख्त गुनाह है और हराम है,*

*"❀_ क़ुरान मजीद में इरशाद है:-(तर्जुमा सूरह अन-निसा आयत 10) _ बेशक जो लोग नाहक़ यतीमो का माल खाते हैं बस यही बात है कि वो अपने पेटों में आग भर रहे हैं और अंकरीब जलती हुई आग में दाखिल होंगे_,"*

*"❀_ जो लोग यतीम खाने के नाम से इदारे लिए बैठे हैं और वो या उनके सफीर चंदा करते हैं वो लोग इस आयत के मज़मून पर गौर कर लें और अपना हिसाब इसी दुनिया में कर लें, शर'अन जितना हक़क़ुल खिदमत ले सकते हैं उससे ज्यादा तो नहीं ले रहे हैं? खूब गौर फरमा लें, अगर कोई गबन किया है तो उसकी तलाफी यौमे आखिरत से पहले कर लें,*

*"❀_ और बहुत से लोग ये समझते हैं कि यतीम का माल खाने का गुनाह उन्हीं लोगों को हो सकता है जो यतीम खाने चला रहे हैं, लेकिन दर हक़ीक़त घर घर यतीमों का माल खाया जाता है, जब किसी शख्स की वफ़ात हो जाती है उसकी नाबालिग औलाद लड़के हों ये लड़कियां सब यतीम होते हैं, शरई उसूल के मुताबिक़ मीरास तक़सीम नहीं कि जाती या चाचा या बड़े भाई के कब्ज़े में मरने वाले की रक़म और जायदाद जो कुछ होता है उनमें से थोड़ा बहुत बगैर हिसाब उन बच्चों पर खर्च करते रहते हैं और बाज़ लोग तो उनके मुस्तहीकी़न पर कुछ भी खर्च नहीं करते और पूरी जायदाद पर कब्ज़ा कर लेते हैं और अपने नाम या अपनी औलाद के नाम कर देते हैं,*

*"❀_ जब ये यतीम बच्चे बालिग होते हैं तो बाप की मीरास में से उनको कुछ नहीं मिलता, ये सब यतीम का माल खाने में दाखिल है, अगर किसी ने बहुत हिम्मत की और मरने वाले की जायदाद और माल तक़सीम ही कर दिया तो उसमें मरने वाले की बीवी और बच्चों को कुछ नहीं देते, ये सब बेवा और यतीम का माल खाने में शामिल है,*

*✪_(3)_ बीवी भी मरहूम शौहर के माल की हिस्सेदार है:-*
*"❀_ बहुत से दीनदारी के मुद्दई मरने वाले भाई की जायदाद से उसकी बीवी को हिस्सा नहीं देते बल्कि उसे मजबूर करते हैं कि तू हमारे साथ निकाह कर ले, वो बेचारी मजबूरन निकाह कर लेती है और ये समझते हैं कि हमने शरीयत की पासदारी कर ली, हालांकी निकाह कर लेने से उसके शोहर की मीरास से जो शर'अन हिस्सा उसे मिलता, उसको दबा लेना फिर भी हलाल नहीं होता,*

*"❀_ बहुत से लोग कहते हैं कि अगर औरत को जायदाद में से हिस्सा दे दिया गया तो हमारी ज़मीन का हिस्सा दूसरे खानदान में चला जाएगा, अगर चला ही गया तो क्या हुआ, बेवा औरत का माल मारने और आखिरत के अज़ाब से तो बच जाएंगे_,"*

*✪_.(4)_ भाईयों का बहनों को वरसा की रक़म ना देना खुदा से बगावत करना है :-*
*"❀_ हमारे इलाक़ों में रिवाज़ है कि मय्यत के तर्का में उसकी लड़कियों को हिस्सा नहीं देते बल्कि भाई ही दबा लेते हैं जो सरासर जुल्म करते हैं और हराम खाते हैं, बाज़ लोग कहते हैं कि वो अपना हक मांगती नहीं है और माफ करने से माफ भी कर देती हैं,*

*"❀_ वाज़े रहे कि हक़ ना मांगना दलील इस बात की नहीं कि उन्होंने अपना हक़ छोड़ दिया है और जैसी झूठी माफ़ी होती है उसका कुछ ऐतबार नहीं है क्योंकि वो जानती है कि हमको मिलना तो है ही नहीं लिहाज़ा माफ़ ही कर देती है श और अपना हक तलब करने से खामोश रहते हैं,*

*"❀_ अगर उनका हिस्सा बांट कर उनके सामने रख दिया जाए कि लो ये तुम्हारा हिस्सा है और जायदाद की आमदनी जितनी भी उनके हिस्से की जो उनको दे जाए और इसके बावजूद माफ कर दे तो माफी का ऐतबार होगा, मजबूरन रस्मी माफी का ऐतबार नहीं*

*"❀_ बाज़ लोग नफ़्स को यूँ समझा लेते हैं कि ज़िन्दगी भर उनको उनके ससुराल से बुलायेंगे, बच्चों समेत आयेंगी, खायेंगी पियेंगी, इससे उनका हक़ अदा हो जायेगा, ये सब खुद फरेबी है, अव्वल तो उन पर इतना खर्च नहीं होता जितना मीरास में उनका हिस्सा निकलता है, दूसरे सिला रहमी करना है तो अपने पैसे से करो, पैसा उनका और अहसान आपका कि हमने बहनों को बुलाया है और खर्च किया है, ये क्या सिला रहमी हुई? तीसरे उनसे मामला करो क्या इस सौदे पर वो राज़ी है? एक तरफा फैसला कैसे फरमा लिया?
*✪_(5)_ महर बीवी का हक़ है जो रसमन माफ करने से माफ नहीं होता:-*
*"❀_ इसी तरह महर को भी समझो कि रस्मी तौर पर बीवी के माफ कर देने से माफ नहीं होता जब तक कि वो अपने नफ्स की खुशी से माफ न कर दे, अगर उसने ये समझ कर ज़ुबानी तौर पर माफ कर दिया कि माफ करो या न करो मिलता तो है ही नहीं तो इस माफी का कुछ ऐतबार नहीं है,*

*"❀_ कुरान शरीफ में इरशाद है :- (सूरह अन- निसा -4, तर्जुमा) तो अगर तुम्हारी बीवियां नफ्स की खुशी से कुछ महर छोड़ दें तो तुम उसे मरगूब और खुश गवार समझे हुए खाओ _,"*

*"❀_ इस बारे में भी यही सूरत करें कि उनका महर उनके हाथ में दे दें, फिर वो अपनी खुशी से बख्श दें, उसको बे तकल्लुफ कुबूल कर लें _,"*

*✪_ (6)_ शादी की जाने वाली लड़की के मेहर पर वली (वालिद वगैरा) का क़ब्ज़ा कर लेना बगैर रज़ामंदी के दुरुस्त नहीं:-*
*"❀_लड़कियों की शादी कर दी जाती है और उनका मेहर वली या दूसरा कोई वली वसूल कर लेता है, वसूल कर लेना और उसकी मिल्कियत जानते हुए महफूज़ रखना ये तो ठीक है लेकिन लड़की से पूछे बगैर उसके माल को अपने तसर्रुफ में लाना और अपना ही समझ लेना फिर उसे कभी भी ना देना या ऊपर के दिल से झूठा माफ़ी करा लेना ये हलाल नहीं _,*

*"❀_ बाज़ लोग कहते हैं कि साहब शादी में जो हमने खर्च किया है उसके बदले ये रक़म हमने वसूल कर ली या जहेज़ में लगा दी, हालांकी वालिद या कोई वली रिवाजी खर्चे करता है, उमूमन ये सब कुछ नाम के लिए होता है और बहुत से काम शरीयत के खिलाफ भी होते हैं, गाना बजाना और रंडी के नाच रंग होते हैं, जहेज़ भी दिखावे के लिए दिया जाता है, सब जानते हैं कि खिलाफे शरा और दिखावे के लिए तो अपना माल खर्च करना भी हराम है, फिर बेज़ुबान लड़की का माल इस तरह खर्च करना कैसे हलाल हो सकता है?*

*"❀_ जो कुछ खर्च करें शरीयत के मुनाफिक़ खर्च करें और वो भी अपने माल से ना कि लड़की के मेहर से, उसके माल से खर्च करना उसकी इजाज़त के बगैर जुल्म है, और ये भी समझ लेना चाहिए कि शर'अन शादी में कोई खर्चा नहीं है, इजाब व कुबूल से निकाह हो जाता है, इसके बाद रुखसत कर दो, सवारी का खर्च शौहर देगा जो अपनी बीवी को ले जाएगा, लड़की या उसके वली के जिम्मे कुछ भी खर्चा नहीं आता।*

*"❀_ यूं कहने वाले भी मिलते हैं कि हमने पैदाइश से लेकर आज तक खर्च किया है वो हमने वसूल किया, ये भी जाहिलाना जवाब है, क्योंकि शर'अन आप पर उसकी परवरिश वाजिब थी इसलिए आपने अपना वाजिब अदा किया जिसकी अदायगी अपने माल से वाजिब थी, उसका बदला वसूल करना खिलाफे शरीयत है बल्कि खिलाफे मुहब्बत है और खिलाफे शफक़त भी, गोया आप जो कुछ उसकी परवरिश पर खर्च करते आए हैं वो एक सौदा बाज़ी है,*
   
*✪_ (7)_ बगैर बुलाए किसी की दावत में पहुंच कर खाना हलाल नहीं:-*
*"❀_ बगैर बुलाए किसी दावत में खाना हलाल नहीं है, अगर मुरव्वत और लिहाज़ की वजह से कोई मना ना करे तो इसका कोई एतबार नहीं, इस खामोशी को इजाज़त समझ लेना सरीह गलती है खुद फरेबी है, अगर कोई शख्स चार आदमी बुलाए और पांचवा भी साथ चला जाए और साहिबे खाना लिहाज़ में कुछ ना कहे तो जा़यद आदमी का खाना हराम है,*

*"✪_(8)_ मज़ाक में किसी की चीज़ ले कर सच मुच रख लेना भी जुल्म है:-*
*"❀_ बाज़ लोग मजाक में किसी की चीज़ ले कर चल देते हैं और फिर सच मुच रख लेते हैं, हालांकी जिसकी मिल्कियत होती है वो खुशी से उसको देने पर राज़ी नहीं होता, लिहाज़ा इस तरह लेना हराम है ,*
  
*✪_(9) _मय्यत की मालियत में तर्का तक़सीम किए जाने से पहले कोई खर्च ना कीजिये:-*
*"❀_उमूमन रिवाज़ है के किसी के मर जाने पर उसके माल से फुक़रा और मसाकीन की दावत करते हैं और उसके कपड़े वगैरा खैरात की नियत से दे देते हैं, हालांकी तर्का तक़सीम किए बगैर ऐसा करना दुरुस्त नहीं,*

*"❀_ क्योंकि अव्वल तो सब वारिस बालिग नहीं होते और जो बालिग हों उन सबका मोजूद होना ज़रूरी नहीं, उनमे बहुत से सफर में या मुलाज़मतों पर परदेस में होते हैं, मुश्तरक माल में सबकी इजाज़त के बगैर खर्च करना दुरुस्त नहीं है और रस्मी तौर से रिवाजी़ इजाज़त का ऐतबार नहीं है,*

*"❀_ माल तक़सीम कर के हर एक वारिस का हिस्सा उसके हवाले कर दो, फिर वो अपनी खुशी से जो चाहें ईसाले सवाब के लिए शरीयत के मुताबिक बिला रियाकारी के खर्च कर दे और ये बात खूब अच्छी तरह समझ लें कि नाबालिग की इजाज़त शर'अन मो'तबर नहीं है अगरचे वो अपने नफ्स की खुशी से इजाज़त दे दे* 
*✪_ (10)_ मक़रूज़ मोरिस का क़र्ज़ अदा किए बगैर माल पर क़ब्ज़ा करना मरने वाले पर ज़ुल्म करना है :-*
*"❀_ बहुत से वारिसीन मरने वाले के कर्जे अदा नहीं करते, खुद ही सब दबा कर बैठ जाते हैं, ये मरने वाले पर जुल्म है कि वो बेचारा कर्ज़ों की अदायगी ना होने की क़ीमत से आखिरत में पकड़ा जाएगा और अपने ऊपर भी ज़ुल्म है कि गैर के माल पर क़ाबिज़ हो गए, शरीयत का क़ानून ये है कि तर्का से अव्वलन कफन दफ़न के अख़राजात किए जाएं, फिर उसके क़र्ज़ अदा किए जाएं फिर बाक़ी माल में से 1/3 के अंदर उसकी वसीयत नाफिज़ की जाए,*

*"❀_ (अगर उसने वसियत की हो) और 2/3 माल वारिसों को शरीयत के मुताबिक दे दिया जाए, अगर क़र्ज़ तर्के से ज़्यादा या तर्के के बराबर हो तो किसी वारिस को कुछ भी ना मिलेगा, ये शरीयत का उसूल है, होता ये है कि अगर क़र्ज़ अदा कर भी दिए तो मरने वाले की वासियत नाफिज़ नहीं करते, मरने वाले को अख्त्यार है कि कर्ज़ों से जो माल बचे उसके 1/3 में वसियत कर सकता है, जब मरने वाला वसियत कर दे तो वारिसों पर उसकी वसियत नाफ़िज़ करना वाजिब है, उसकी वसियत के बाद जो माल बचे उसको आपस में तक़सीम करें,*

*"❀_ अलबत्ता 1/3 से ज़्यादा में वसियत नाफ़िज़ करना वाजिब नहीं है, और जो वसियत ख़िलाफ़े शरियत हो उसका नाफ़िज़ करना जाइज़ नहीं है,*

*✪_(11)_बहुत से लोग मुरीद हो कर भी गाफिल हैं:-*
*"❀_ मुरीद होने की ज़रुरत क्या है? उमूमन लोग इस ज़रुरत ही से ना वाक़िफ़ हैं, दूसरों की देखी देखी रिवाजी़ तौर पर मुरीद हो जाते हैं, और कुछ लोग ये समझते हैं कि क़यामत के दिन पीर साहब हमारी शिफारिश कर देंगे, इससे ज़्यादा किसी चीज़ का तसव्वुर पीरों के हाथ पर बैत करने वालों में उमूमन नहीं पाया जाता, भला है अमल खिलाफे शरीयत तो पीर क्या शिफारिश कर सकते हैं?*

*"❀_ मुरीद होते वक़्त जो किसी शेख़ के हाथ पर बैत है, उसे तौबा करना लाज़िम है और हुकूक़ुल्लाह और हुकूक़ुल इबाद की अदायगी की जाए, अगर मुरीद हुए और फ़राइज़ का अहतमाम ना किया, गुनाहों से ना बचे और हलाल व हराम की तमीज ना की, हराम माल कमाते रहे, या हराम जगह खर्च करते रहे, या लोगों के हुकूक दबाते रहे, या माल मारते रहे तो ऐसी मुरीदी वाली तौबा सच्ची नहीं है,*

*"❀_ शेख के हाथ पर तौबा के बाद हुकूकुल्लाह व हुकूकुल इबाद की अदायगी की तरफ तवज्जो ना होने का बाइस ये भी है कि उमूमन बहुत से पीर जो अपने बाप दादा की गद्दियां संभाले बेठे हैं, खुद ही फिक्रे आखिरत से खाली है, खालिस दुनियादार है, माल जमा करने को मक़सदे जिंदगी बना रखा है, पीरी मुरीदी भी एक धंधा है जो कस्बे माल का बहुत बड़ा ज़रिया है, ऐसे लोगों की सोहबत से फिक्रे आखिरत के बजाए दुनिया की मुहब्बत ही में इज़ाफ़ा होता है,*

*"❀_ मुरीद होने का इरादा करें तो अव्वल लाज़िम है के ऐसा मुर्शिद तलाश करें जो शरीयत का पाबंद हो और आखिरत का फ़िक्र मंद हो, दुनियादार ना हो, दुनिया से मुहब्बत ना रखता हो, गुनाहों से बचता हो और उसके पास बैठने से आखिरत की फिक्र बढ़ती हो और गुनाह छूटते हों, नेकियों की रगबत होती हो, हराम से बचने की तरफ और हुकूकुल इबाद की अदायगी की तरफ तबीयत चलती हो और फ़राइज़ व शर'ई अहकाम की तरफ रा्गबत होती हो,*

*"❀_ अगर कोई शैख मुरीद करता हो लेकिन फ़राइज़ व हुक़ूक़ का ख़याल न रखता हो, उसकी ज़िन्दगी गुनाहों वाली हो तो इस काबिल नहीं है कि उससे मुरीद हों, उस शख़्स से दूर भागना वाजिब है,* 
           *📓 मदनी माशरा -212,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

         *☞_ क़बीरा और सगी़रा गुनाह _,*
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*✪_(1)_कबीरा गुनाह कौनसे है?*

*"❀_ अल्लामा कुरतुबी रह. ने अपनी तफ़सीर (जिल्द-3 सफ़ा 159) में हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से नक़ल किया है कि कबीरा गुनाह वो है जिस पर दोज़ख के दाखिले की या अल्लाह के गुस्से की या लानत की या अजा़ब की वईद आयी हो,*

*"❀_ और हजरत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से ये कौ़ल भी नक़ल किया है कि कबीरा गुनाह 700 के क़रीब है, साथ ही उनका ये मक़ुला भी नक़ल किया है कि जब इस्तगफ़ार होता रहे तो कबीरा कबीरा नहीं रहता है बल्की वो महू हो जाता है (मिटा दिया जाता है बशरते कि इस्तगफार सच्चे दिल से हो, जुबानी जमा खर्च न हो) और सगीरा पर इसरार (अड़ा) रहे तो फिर वो सगीरा नहीं रहता, बा्ल्की बड़ कर कबीरा बन जाता है _,* 

*"❀_ हाफिज ज़हबी रह. ने अपनी किताब में 70 गुनाह लिखे है और उनके बारे जो वईदें है वो भी दर्ज की हैं, इजमाली तौर पर हम हाफ़िज़ ज़हबी रह. की किताब से कबीरा गुनाहों की फेहरिस्टू लिखते है;-* 

*"❀_(1)_ शिर्क और शिर्क के अलावा वो अक़ा'इद व आमाल जिनसे कुफ्र लाज़िम आता है (कुफ्र व शिर्क की कभी मगफिरत ना होगी )* 
*"❀_(2)_ किसी जान को जान बूझकर क़त्ल करना,* 
*"❀_(3)_ जादु करना,* 
*"❀_(4)_ फ़र्ज़ नमाज़ को छोडना या वक़्त से पहले पढ़ना,* 
*"❀_(5)_ ज़कात ना देना,*

*"❀_(6)_ बिला ज़रूरी शरई रमज़ान मुबारक का कोई रोज़ा छोड़ना या रमज़ान मुबारक का रोज़ा रख कर बिला उज्र तोड़ देना _,"*
*"❀_(7)_ हज फ़र्ज़ होते हुए हज किये बगैर मर जाना,*
*"❀_(8)_ वाल्दैन को तकलीफ देना और उन उमूर में उनकी नाफ़रमानी करना जिसमें फ़रमाबरदारी वाजिब है,*
*"❀_(9)_रिश्तेदारों से क़ता ताल्लुक़ करना,*
*"❀_(10)_ ज़िना करना,*

*"❀_(11)_ ग़ैर फ़ितरी तरीक़े पर औरत से जिमा करना या किसी मर्द या लड़के से अगलाम करना,*
*"❀_(12)_ सूद का लेन देन करना या सूद का कातिब या शाहिद बनना,*
*"❀_(13)_ ज़ुल्म से यतीम का माल खाना,*
*"❀_(14)_ अल्लाह पर या उसके रसूल ﷺ पर झूठ बोलना,*
*"❀_(15)_ मैदाने जिहाद से भागना,*

*"❀_(16)_ जो इक़्तिदारे आला पर हो उसका रैयत को धोखा देना और ख़यानत करना,*
*"❀_(17)_तकब्बुर करना,*
*"❀_(18)_ झूठी गवाही देना या किसी का हक़ मारा जा रहा हो तो जानते हुए गवाही ना देना,*
*"❀_(19)_ शराब पीना या कोई नशे वाली चीज़ खाना पीना,*
*"❀_(20)_ जुवा खैलना_,"*

*"❀_(21)_ किसी पाक दामन औरत को तोहमत लगाना,*
*"❀_(22)_माले गनीमत में ख़यानत करना,*
*"❀_(23)_चोरी करना,*
*"❀_(24)_डाका मारना,*
*"❀_(25)_ झूठी क़सम खाना,*

*"❀_(26)_ किसी भी तरह से ज़ुल्म करना (मार पीट कर हो या ज़ुल्मन माल लेने से हो या गाली गलोच करने से हो),*
*"❀_(27)_टैक्स वसूल करना,*
*"❀_(28)_ हराम माल खाना या पीना या पहनना या खर्च करना,*
*"❀_(29)_ ख़ुद कुशी करना या अपना कोई उज्व काट लेना,*
*"❀_(30)_झूठ बोलना,*

*"❀_(31)_रिशवत लेना,*
*"❀_(32)_ औरतें को मर्दों की या मर्दों का औरतों की मुशाबहत अख़्तियार करना,(जिसमे दाढ़ी मूंढ़ना भी शामिल है)*
*"❀_(33)_ अपने अहलो अयाल में फ़हश काम या बेहयाई होते हुए दूर करने की फ़िक्र ना करना,*
*"❀_(34)_ तीन तलाक दी हुई औरत के पुराने शोहर का हलाला करवाना और उसके लिए हलाला कर के देना, इसको दिमागी चालाकी कहां जाता है,*
*"❀_(35)_ बदन या कपड़ो में पेशाब से परहेज़ ना करना,*  

*✪__(36)_दिखावे के लिए आमाल करना,*
*"❀_(37)_ दुनिया कमाने के लिए इल्मे दीन हासिल करना और इल्मे दीन को छिपाना,*
*"❀_(38)_खयानत करना,*
*"❀_(39)_ किसी के साथ सुलुक कर के अहसान जताना,*
*"❀_(40)_तक़दीर को झुठलाना,*

*"❀_(41)_ लोगों के ख़ुफ़िया हालात की टोह लगाना, जलन रखना और कोसना,*
*"❀_(42)_ चुगली करना,*
*"❀_(43)_लानत करना,*
*"❀_(44)_ धोखा देना और जो वादा किया उसको पूरा ना करना,*
*"❀_(45)_ काहिन और मुंजिम ( गैब की खबरें बताने वाले ) की तस्दीक़ करना,*

*"❀_(46)_ शौहर की नाफ़रमानी करना,*
*"❀_(47)_ तस्वीर बनाना या घर में लटकाना,*
*"❀_(48)_किसी की मौत पर नोहा करना, मुंह पीटना, सर मुंडवाना, हलाकत की दुआ करना,*
*"❀_(49)_ सरकशी करना अल्लाह का बागी होना, मुसलमानों को तकलीफ देना*
*"❀_(50)_क़ानून शरई के खिलाफ़ फैसला करना,*

*✪_(51)_ मखलूक़ पर दस्त दराज़ी (ज़ुल्म) करना,*
*"❀_(52)_पड़ौसी को तक़लीफ देना,*
*"❀_(53)_ मुसलमानों को तकलीफ देना और उनको बुरा कहना,*
*"❀_(54)_ खास कर अल्लाह के नेक बंदो को बुरा कहना,*
*"❀_(55)_ टखनों पर या उससे नीचे कोई कपड़ा पहना हो लटकाना,*

*"❀_(56)_ मर्दों को रेशम और सोना पहनना,*
*"❀_(57)_ गुलाम का आक़ा से भाग जाना,*
*"❀_(58)_ ग़ैरुल्लाह के लिए ज़िबह करना,*
*"❀_(59)_ जानते बूझते हुए अपने बाप को छोड़ कर किसी दूसरे को बाप बना लेना, यानि ये दावा करना का फलां मेरा बाप है हालांकि वो उसका बाप नहीं,*
*"❀_(60)_फसाद के तौर पर लड़ाई झगड़ा करना,*

*"❀_(61)_ ( बा वक्त़ हाजत ) बचा हुआ पानी दूसरों को ना देना,*
*"❀_(62)_ नाप तोल में कमी करना,*
*"❀_(63)_अल्लाह की गिरफ़्त से बे ख़ौफ़ हो जाना,*
*"❀_(64)_औलिया अल्लाह को तकलीफ देना,*
*"❀_(65)_नमाज़ बा जमात का अहतमाम ना करना,*

*"❀_(66)_ बगैर उज़रे शरई नमाज़ जुमा छोड़ना,*
*"❀_(67)_ ऐसी वसीयत करना जिससे किसी वारिस को नुक़सान पहूंचाना मक़सूद हो,*
*"❀_(68)_ मकर करना और धोखा देना,*
*"❀_(69)_ मुसलमानों के पोशीदा हालात की टोह लगाना और उनकी पोशीदा चीज़ों पर दलालत करना,*
 *"❀_(70)_ किसी सहाबी को गाली देना,* 

   
*✪_ सगीरा व कबीरा गुनाहों के बयान में अल्लामा ज़ैनुल दीन इब्ने नजीम हनफ़ी साहब बहर रा'इक़ ने मजी़द कबीरा गुनाहों की फ़ेहरिस्त दी है, जो हाफ़िज़ ज़हबी की फ़ेहरिस्त से ज़्यादा है, मसलन:-*
*"❀_(71)_ किसी ज़ालिम का मददगार बनना, कुदरत होते हुए भलाई का हुक्म और बुरी बातों से रोकना,*
*"❀_(72)_ जादू सीखना और सिखाना या उस पर अमल करना,*
*"❀_(73)_कुरान को भूल जाना,*
*"❀_(74)_ किसी हैवान (जानदार) को ज़िंदा जलाना,*
*"❀_(75)_अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद हो जाना,*

*"❀_(76)_ मुर्दार या खिन्ज़ीर बग़ैर इज़्तिरार के खाना,*
*"❀_(77)_ सगीरा गुनाहों पर इसरार करना,*
*"❀_(78)_ गुनाहों पर मदद करना और उन पर आमादा करना,*
*"❀_(79)_ गाने का पेशा अख़्तियार करना,*
*"❀_(80)_ लोगों के सामने नंगा होना,*

*"❀_(81)_नाचना,*
*"❀_(82)_दुनिया से मुहब्बत करना,*
*"❀_(83)_ हामीलीन क़ुरान और उलमा किराम के हक़ में बदगुमानी करना,*
*"❀_(84)_ अपने अमीर के साथ बगावत करना,*
 *"❀_(85)_ किसी के नसब में ता'न करना,* 

*✪_(86)_ गुमराही की तरफ दावत देना,*
*"❀_(87)_ अपने भाई की तरफ हथियार से इशारा करना,*
*"❀_(88)_ अपने गुलाम को खस्सी करना या उसके आजा़ में से कोई उज़्व काट देना,*
*"❀_(89)_ किसी मोहसिन की नाशुक्री करना,*
*"❀_(90)_ हरम में इलहाद करना (दीने हक़ से फिर जाना)*

*"❀_(91)_ नरद (एक खेल है जिसे तख्त नरद भी कहते हैं, चौसर, शतरंज) खेलना और वो खेल खेलना जिसकी हुरमत पर उम्मत का इज्मा है,*
*"❀_(92)_ भांग पीना (हीरोइन इसी के हुक्म में है)*
*"❀_(93)_ किसी मुसलमान को काफिर कहना,*
*"❀_(94)_बीवियों के दरमियान अद्ल इंसाफ ना करना,*
*"❀_(95)_ मश्त ज़नी (हस्त मेथुन) करना*

*"❀_(96)_ हालते हैज़ में जिमा करना,*
*"❀_(97)_ मुसलमानों के मुल्क में महँगाई हो जाए तो खुश होना,*
*"❀_(98)_ जानवर के साथ बद फाली करना,*
*"❀_(99)_ आलिम का अपने इल्म पर अमल ना करना,*
*"❀_(100)_ खाने को ऐब लगाना,*
*"❀_(101)_ बिना दाढ़ी वाले हसीन लड़के की तरफ देखना,*
*"❀_(102)_ किसी के घर में बिला इजाज़त नज़र डालना और बिला इजाज़त अंदर चले जाना,*

           *📓 मदनी माशरा -223,*
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                          *✪_ सगीरा गुनाह:-*
*❀_(1) _जहाँ नज़र डालना हराम हो वहाँ देखना,*
*"❀_(2)_ बीवी के सिवा किसी का शेहवत से बोसा लेना या बीवी के सिवा किसी को शेहवत से छूना,*
*"❀_(3)_अजनबिया के साथ खिलवत में रहना,*
*"❀_(4)_ सोने चाँदी के बर्तन इस्तेमाल करना,*
*"❀_(5)_ किसी मुसलमान से तीन दिन से ज़्यादा क़ता ताल्लुक़ करना यानी सलाम कलाम बंद रखना,*

*"❀_(6)_ किसी नमाज़ी का नमाज़ पढ़ते हुए अपने अख़्तियार से हँसना,*
*"❀_(7)_ खड़े हो कर पेशाब करना,*
*"❀_(8)_ मुसीबत पर नोहा करना और मुंह पीटना (या गिरेबान फाड़ना और जाहिलियत की दुहाई देना)*
*"❀_(9)_ मर्द को रेशम का कपड़ा पहनना,*
*"❀_(10)_तकब्बुर की चाल चलना,*

*"❀_(11)_फासिक़ के साथ बैठना,*
*"❀_(12)_ मकरूह वक्त़ में नमाज़ पढ़ना,*
*"❀_(13)_ मस्जिद में नजासत दाखिल करना या पागल को या बच्चे को मस्जिद में ले जाना, जिसके जिस्म या कपड़े पर नजासत होने का गालिब गुमान हो,*
*"❀_(14)_ पेशाब पाखाना के वक्त़ क़िब्ला की तरफ मुंह करना या पुश्त करना,*
*"❀_(15)_ तन्हाई में बिला वजह शर्मगाह को खोलना,*
         
*✪_ (16)_ लगातार निफ़्ली रोज़े रखना जिसके बीच में अफ़तार ना हो,*
*"❀_(17)_ जिस औरत से ज़िहार (मर्द का अपनी बीवी को माँ या बहन या उन औरतों को तश्बीह देना जो शर'न उस पर हराम है) किया हो कफारा देने से पहले उससे सोहबत करना,*
*"❀_(18)_ किसी औरत का बगैर शोहर और मेहरम के सफर करना,*
*"❀_(19)_ किसी दूसरे खरीदार से ज़्यादा क़ीमत दिलवाने के लिए माल के दाम ज़्यादा लगा देना जबकि खुद खरीदारी का इरादा ना हो,*
*"❀_(20)_ ज़रुरत के वक्त़ महँगाई के इंतज़ार में गल्ला रोकना,*

*"❀_(21)_किसी मुसलमान भाई की बै पर बै करना (सौदे पर सौदा करना) या किसी की मंगनी पर मंगनी करना,*
*"❀_(22)_ बाहर से माल लाने वालो से शहर से बाहर ही सौदा कर लेना (ताकि सारा माल अपना हो जाए और फिर दाम चढ़ा कर बेचें)*
*"❀_(23)_ जो लोग देहात से माल लायें उनका माल अपने क़ब्ज़े में कर के महँगा बेचना,*
*"❀_(24)_ अज़ाने जुमा के वक़्त खरीद फरोख्त करना,*
*"❀_(25)_ माल का ऐब छुपा कर बेचना,*

*"❀_(26)_ शिकार या मवेशी की हिफ़ाज़त की ज़रूरत के बगैर कुत्ता पालना,*
*"❀_(27)_ मस्जिद में हाज़िरीन की गर्दनों को फाँद कर जाना,*
*"❀_(28)_ ज़कात की अदायगी फ़र्ज़ हो जाने के बाद अदायगी में ताख़ीर करना,*
*"❀_(29)_ रास्ते में ख़रीद फरोख्त या किसी ज़रूरत के लिए खड़ा होना जिससे राहगीरों को तकलीफ हो, या रास्ते में पेशाब पाखाना करना (साए और धूप में जहां लोग इकट्ठा बैठते हों और पानी के घाट पर पेशाब पाखना करना भी इसी मुमा'नत में दाख़िल है)*
*"❀_(30) _बा हालते जनाबत अज़ान देना या मस्जिद में दाखिल होना या मस्जिद में बैठना,*

*✪_(31)_ नमाज़ में कोख पर हाथ रखना और कपड़े वगैरा से खैलना,*
 *"❀_(32)_ नमाज़ में गर्दन मोड़ कर दांये बांये देखना,*
*"❀_(33)_ मस्जिद में दुनिया की बातें करना, और ऐसा काम करना जो इबादत नहीं है,*
*"❀_(34)_ रोज़ेदार को बोसो किनार करना अगर अपने नफ़्स पर इत्मिनान न हो,*
*"❀_(35)_ घटिया माल से ज़कात देना,*

*"❀_(36)_ ज़िबाह करने के आख़िर तक (पूरी गार्डन) काट लेना,*
*"❀_(37)_ बालिग औरत का अपनी वली की इजाज़त के बिना निकाह करना,*
*"❀_(38)_ एक से ज़्यादा तलाक़ देना,*
*"❀_(39)_ हैज़ के ज़माने में तलाक देना,*
*"❀_(40)_ जिस तहर (हैज से पाकी) में जिमा किया हो उसमें तलाक़ देना,*

*"❀_(41)_औलाद को लेने देने मे किसी एक को तरजीह देना, इला ये कि इल्म या इस्लाह की वजह से तरजीह दे,*
*"❀_(42)_ क़ाज़ी को मुद्दई और मुद्दई अलैहा के दरमियान बराबरी न करना,*
*"❀_(43)_ जिसके माल में गालिब हराम हो हदिया कुबूल करना और उसका खाना खाना और उसकी दावत कुबूल करना,*
*"❀_(44)_ किसी की ज़मीन में बिना इजाज़त के चलना,*
*"❀_(45)_ इंसान या किसी हैवान का मुसला करना (यानी हाथ पांव नाक काट देना)*
        
*✪_(46)_ नमाज़ पढ़ते हुए तस्वीर पर सजदा करना या ऐसी सूरत में नमाज़ पढ़ना कि नमाज़ के सामने तस्वीर हो,*
*"❀_(47)_ हंसी मज़ाक़ या तारीफ़ मे ज़्यादती करना,*
*"❀_(48)_बच्चे को वो लिबास पहनाना जो बालिग के लिए जा'इज़ ना हो,*
*"❀_(49)_ पेट भरने के बाद भी खाते रहना,*
*"❀_(50)_ मुसलमान से बदगुमानी करना,*

*"❀_(51)_ लहू व लईब की चीज़ सुनना,*
*"❀_(52)_ गीबत सुन कर खामोश रहना (गीबत करने वाले को मना ना करना)*
*"❀_(53)_ ज़बरदस्ती इमाम बनना (जबकि मुक़तदियो को उसकी इमामत गवारा न हो और उसकी ज़ात में दीनी ऐतबार से कोई कुसूर हो)*
*"❀_(54)_ ख़ुत्बे के वक्त बातें करना,*
*"❀_(55)_ मस्जिद की छत पर या मस्जिद के रास्ते में नजासत डालना,*
*"❀_(56)_ दिल में ये नियत रखते हुए किसी से कोई वादा कर लेना कि पूरा नहीं करुंगा,*
*"❀_(57)_काफिर को सलाम करना,*
*"❀_(58)_ गुस्सा करना (हां अगर दीनी ज़रूरत से हो तो जा'इज़ है)*

*"❀_ आम तौर से जिन कबीरा व सगीरा गुनाहों में लोग मुब्तिला हैं वो हमने ज़िक्र कर दिया है, अगर दीगर अहादीस शरीफ़ा पर नज़र डाली जाए तो बहुत से और गुनाह भी सामने आ जाएंगे _,"*
 *®_(इस्लाही बयान, सफ़ा 9-100)* 

           *📓 मदनी माशरा -227,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

   *☞_ इस्लाम में सलाम की अहमियत_,*
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*✪_ (1)_ मुसलमान भाई से मुलाक़ात होने पर 'अस्सलामु अलैकुम' कहिये,*
*"❀_जब किसी मुसलमान भाई से मुलाक़ात हो तो अपने ताल्लुक़ और मसर्रत का इज़हार करने के लिए 'अस्सलामु अलैकुम' कहिए,*

 *"❀_ क़ुरआने पाक की सूरह अल-अन'आम:आयत 54 में है:- “( तर्जुमा) ऐ नबी! जब आपके पास वो लोग आये जो हमारी आयातों पर ईमान लाते हैं तो उनसे सलाम कहिये “अस्सलामु अलैकुम_”*

*"❀_ इस आयत में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को खिताब करते हुए बिलवास्ता उम्मत को ये उसूली तालीम दी गई है कि मुसलमान जब भी मुसलमान से मिले तो दोनों ही जज़्बाते मुहब्बत व मसर्रत का तबादला करें और इसका बेहतरीन तरीक़ा ये है कि एक दूसरे के लिए सलामती और आफियत की दुआ करें,*
*"❀_ एक "अस्सलामु अलैकुम" कहे तो दूसरा जवाब में "वा अलैकुम अस्सलाम" कहे, सलाम बाहमी उल्फत व मुहब्बत बढ़ाने और इस्तवार करने का ज़रिया है,*

*"❀_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का इरशाद हे:-“तुम लोग जन्नत में नहीं जा सकते जब तक कि मोमिन नहीं बन सकते और तुम मोमिन नहीं बन सकते जब तक कि एक दूसरे से मुहब्बत ना करो, मैं तुम्हें वो तदबीर क्यों ना बता दूं जिसको अख्तियार करके तुम आपस में एक दूसरे से मुहब्बत करने लगो, आपस में सलाम को फ़ैलाओ_”*
*®_(अबू दाऊद-5193)*
        
*✪_(2)- हमेशा इस्लामी तरीके पर सलाम कीजिए:-*
*❀_हमेंशा इस्लामी तरीके पर सलाम किजिए, हमेशा किताबो सुन्नत के बताए हुए ये अल्फ़ाज़ ही इस्तेमाल किजिए, इनको छोड़ कर कोई सोसाइटी के राइज किए हुए (हाय, हैलो,, ) अल्फ़ाज़ व अंदाज़ को अख़्तियार ना कीजिए,*

*❀_ इस्लाम का बताया हुआ ये अंदाज़े ख़िताब निहायत सादा, बा मा'नी और पुर असर भी है और सलामती व आफ़ियत की बेहतरीन दुआ भी,*

*❀_ आप जब अपने किसी भाई से मिलते हुए "अस्सलामु अलैकुम" कहते हैं तो इसके मा'नी ये होते हैं कि खुदा तुमको हर क़िस्म की सलामती और आफ़ियत से नवाज़ें, ख़ुदा तुम्हारे जान माल को सलामत रखे, घर बार को सलामत रखे, अहलो अयाल और मुताल्लिक़ीन को सलामत रखे, दीन ईमान को सलामत रखे, दुनिया भी सलामत रहे और आखिरत भी, खुदा तुम्हें उन सलामतियों से भी नवाजे़ जो मेरे इल्म में है और उन सलामतियों से भी नवाजे़ जो मेरे इल्म में नहीं है, मेरे दिल में तुम्हारे लिए खैर ख्वाही, मुहब्बत व खुलूस और सलामती व आफ़ियात के इंतेहाई गहरे जज़्बात हैं, इसलिए तुम मेरी तरफ से कभी कोई अंदेशा महसूस ना करना, मेरे तर्जे अमल से तुम्हें कोई दुख ना पहुंचेगा,*

*❀_ सलाम के लफ़्ज़ पर "अलिफ़ लाम" दाख़िल करके अस्सलामु अलैकुम कह कर आप मुखातिब के लिए सलामती और आफ़ियत की सारी दुआएं समेट लेते हैं,*

*❀_आप अंदाज़ा कीजिए अगर आप यह अल्फ़ाज़ ज़बान से निकालें तो मुखातिब की मुलाक़ात पर क़लबी मसर्रत का इज़हार करने और खुलूस व मुहब्बत, ख़ैर ख़्वाही और वफ़ादारी के जज़्बात को ज़ाहिर करने के लिए इससे बेहतर अल्फ़ाज़ क्या हो सकते हैं,*

*❀_ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का इरशाद हे:- “अस्सलाम खुदा के नामों में से एक नाम हे, जिसको खुदा ने ज़मीन में (ज़मीन वालो के लिए) रख दिया हे, पस 'अस्सलाम' को खूब फैलाओ,*
*®_(अल अदब अल मुफर्रिद, बाब अस्सलाम, 989)* 

*✪_ (3)- हर मुसलमान को सलाम कीजिए, चाहे पहले से तार्रूफ हो या नहीं हो:-*
*❀_ हर मुसलमान को सलाम कीजिए चाहे पहले से तार्रुफ़ और ताल्लुक़ात हो या नहीं हो, रब्त और तार्रुफ़ के लिए इतनी बात बिल्कुल काफी है कि वो आपका मुसलमान भाई है और मुसलमान के दिल में मुहब्बत व खुलूस और खैर ख्वाही और वफ़ादारी के जज़्बात होना ही चाहिए,*

*❀_ एक शख़्स ने नबी करीम ﷺ से पूछा: ”_ इस्लाम का बेहतरीन अमल कौनसा है? ''*
*"_आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया-"गरीबों को खाना खिलाना और हर मुसलमान को सलाम करना, चाहे तुम्हारी उससे जान पहचान हो या ना हो, _"*
 *®(बुखारी, मुस्लिम)*

*✪_(4)_ घर में दाखिल होने पर घर वालों को सलाम कीजिए,*
*❀_जब आप अपने घर में दाखिल हों तो घर वालों को सलाम कीजिए,*

*❀_(तर्जुमा)_"जब तुम अपने घर में दाखिल हुवा करो तो अपने (घर वालों) को सलाम किया करो, दुआ खैर खुदा की तरफ से तालीम की हुई बड़ी ही बा बरकत और पाकीज़ा है, _"*
 *®_(कुरान, अन-नूर,: 61)*

*❀_हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि मुझे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ताकीद फ़रमाई कि,” प्यारे बेटे ! जब तुम अपने घर में दाखिल हुआ करो तो पहले घर वालों को सलाम किया करो, ये तुम्हारे लिए और तुम्हारे घर वालों के लिए खैर व बरकत की बात है,"*
 *®_(तिर्मिज़ी)*

*❀_इसी तरह जब आप किसी दूसरे के घर जाएं तो घर में दाखिल होने से पहले सलाम कीजिए, सलाम के बगैर घर के अंदर ना जाएं,*

*❀_(तर्जुमा )_ऐ मोमिनों! अपने घरों के सिवा दूसरों के घरों में दाखिल ना हुवा करो जब तक कि घर वालों की रज़ा ना ले लो, और घर वालों को सलाम ना कर लो, ”*
 *®_(कुरान, अन-नूर, 27)*

*❀_हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास जब फरिश्ते मोअज्जिज मेहमानों की हैसियत से पहुंचे तो उन्होंने आकार सलाम किया और इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जवाब में उनको सलाम किया,*
*✪_(5)_ छोटे बच्चों को भी सलाम कीजिए,*
*❀_ छोटे बच्चों को भी सलाम कीजिए, ये बच्चों को सलाम सिखाने का बेहतर तरीक़ा भी है और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की सुन्नत भी,*

*❀_ हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु बच्चों के पास से गुजरे तो उनको सलाम किया और फरमाया:-"नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम भी ऐसा ही करते थे,"*
*®_( बुखारी, मुस्लिम)*

*❀_ और हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ख़त में भी बच्चों को सलाम लिखते थे,*
*®_(अल-अदबुल मुफर्रिद)*

*✪_ (6)- ख्वातीन मर्दों को सलाम कर सकती हैं और मर्द भी ख्वातीन को सलाम कर सकते हैं:-*

*"❀_ हज़रत अस्मा अंसारिया रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि मै अपनी सहेलियों के साथ बैठी हुई थी कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम का हमारे पास से गुज़र हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने हम लोगों को सलाम किया,*
 *®_(अल-अदबुल मुफर्रिद, 1047)*

*"❀_ हज़रत उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि मै नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुई, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम उस वक्त गुस्ल फरमा रहे थे, मैंने आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को सलाम किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने दरियाफ्त फरमाया- कौन हो? मैंने कहा, उम्मे हानी हूं, फरमाया: खूब! खुश आमदीद,*
 *®_( तिर्मिज़ी, 2734)* 

*✪_(7)_ सलाम करने मे कभी बुख्ल ना कीजिये,* 
*❀_ ज्यादा से ज़्यादा सलाम करने की आदत डालिये और सलाम करने में कभी बुख्ल ना कीजिये, आपस में ज्यादा से ज्यादा सलाम किया कीजिये, सलाम करने से मुहब्बत बढ़ती है और खुदा हर दुख और नुक़सान से महफूज़ रख़ता है,*

*❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:-"_ मै तुम्हे ऐसी तदबीर बताता हूं जिसको अख्त्यार करने से तुमारे माबीन दोस्ती और मुहब्बत बढ़ जायेगी, आपस में कसरत से एक दूसरे को सलाम किया करो,”* 
*®_( तिर्मीज़ी, 2688),*

 *❀_ हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी करीम ﷺ के सहाबा बहूत ज़्यादा सलाम किया करते थे, सलाम की कसरत का हाल ये था कि अगर किसी किसी वक़्त आप ﷺ के साथी किसी दरख्त की ओट में हो जाते और फ़िर सामने आते तो फिर सलाम करते,* 

*"❀_और आप ﷺ का इरशाद है,:”_ जो शख्स अपने मुसलमान भाई से मिले तो उसको सलाम करे और अगर दरख्त या दीवार या पत्थर बीच में ओट बन जाए और वो फिर उसके सामने आए तो उसको फिर से सलाम करे,_"* *®_(अल-अदबुल मुफर्रद, 1010),* 

*❀_ हजरत तुफेल रजियल्लाहु अन्हु कहते है कि मै अक्सर हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की ख़िदमत में हाज़िर होता और आपके हमराह बाज़ार में जाया करता, पस जब हम दोनो बाज़ार जाते तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जिसके पास से भी गुज़रते उसको सलाम करते चाहे वो कोई कबाड़ी होता चाहे कोई दुकानदर होता चाहे कोई गरीब और मिस्कीन होता, गर्ज़ कोई भी होता आप उसको सलाम ज़रूर करते,* *"_एक दिन मै आपकी खिदमत में आया तो आपने फरमाया चलो बाजार चले, मैंने कहा, हजरत बाज़ार जाकर क्या कीजिएगा, आप ना तो किसी सौदे की खरीदारी के लिए खड़े होते हैं न किसी माल के बारे में मालूमत करते हैं, ना मोल भाव करते है, ना बाज़ार की महफिलों में बैठते हैं, आइये यहीं बैठ कर कुछ बात चीत करें,* 
*"_हजरत ने फरमाया:- ए अबू बतन! (तोंद वाले) हम तो सिर्फ़ सलाम करने की गर्ज़ से बाज़ार जाते हैं कि हमें जो मिले हम उसको सलाम करें_"* *®_(अल-अदबुल मुफ़र्रीद, 1002)*

*✪_(8)_ मुसलमान को सलाम करना उसका हक़ तसव्वुर कीजिए,*
*❀_सलाम अपने मुसलमान भाई का हक़ तसव्वुर दीजिए और इस हक़ को अदा करने में फराख दिली का सबूत दीजिए, सलाम करने में कभी बुख्ल ना कीजिए,*

*❀_नबी करीम ﷺ का इरशाद है कि, ''_एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान पर ये हक़ है कि जब मुसलमान भाई से मिले तो उसको सलाम करे, ''*
 *®_( मुस्लिम, 5650)*

*❀_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि सबसे बड़ा बख़ील वो है जो सलाम करने में बुख्ल करे, ”*
 *®_(अल-अदबुल मुफर्रिद, 2042)*

*✪_(9)- सलाम करने मे हमेशा पहल कीजिये,* 
*❀_ सलाम करना मे हमेशा पहल कीजिये और खुदा ना ख्वास्ता अगर किसी से अनबन हो तो सलाम करने और सुलह सफ़ाई करने मे पहल कीजिये,* 

*❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है,:-" वो आदमी खुदा के ज़्यादा क़रीब है जो सलाम करने मे पहल करता है,"* 
*®_ (अबू दाऊद, 5197),*
 
*❀ _ और आप ﷺ ने फरमाया:-"_ किसी मुसलमान के लिए ये बात जाइज़ नहीं कि वो अपने मुसलमान भाई से 3 दिन से ज़्यादा तक क़ता ताल्लुक़ किये रहे कि जब दोनों मिलें तो एक इधर कतरा जाए और दूसरा उधर, उनमें अफ़ज़ल वो है जो सलाम में पहल करे,”*
*®_(अल- अदबुल मुफर्रद, 980),* 

*❀_ नबी करीम ﷺ से किसी ने पुछा कि जब आदमी एक दूसरे से मिले तो उन दोनों मे से कौन पहले सलाम करे?*
*"_फरमाया,:"_जो उन दोनों मे खुदा के नज़दीक ज़्यादा बेहतर हो,"* 
 *®_(तिर्मिज़ी, 2694)* 

*✪_(10)-हमेशा ज़बान से अस्सलामु अलैकुम ऊंची आवाज़ से कह कर सलाम कीजिए,*
*❀_ हमेंशा ज़बान से अस्सलामु अलैकुम कह कर सलाम कीजिए और ऊंची आवाज़ से सलाम कीजिए ताकि वो शख़्स सुन सके जिसको आप सलाम कर रहे हैं, अलबत्ता अगर कहीं ज़बान से अस्सलामु अलैकुम कहने के साथ साथ हाथ या सर से इशारा करने की ज़रूरत हो तो कोई मुज़ा'अका नहीं,*

*❀_ मसलन आप जिसको सलाम कर रहे हैं वो दूर है और ख्याल है कि आपकी आवाज उस तक न पहुंच सकेगी या कोई बेहरा है, ऐसी हालत में इशारा कर सकते हैं,*

*❀_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जब किसी को सलाम करो तो अपना सलाम उसको सुनाओ इसलिए कि सलाम खुदा की तरफ से निहायत पाकीज़ा और बरकत वाली दुआ हे, ''*
 *®_(अल-अदबुल मुफर्रिद, 1005)*

*❀_ हज़रत अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा बिन्त यज़ीद फरमाती हैं कि एक दिन नबी करीम ﷺ मस्जिद के पास से गुज़रे वहां कुछ औरतें बैठी हुई थीं तो आप ﷺ ने उनको अपने हाथ के इशारे से सलाम किया,*
 *®_(तिर्मिज़ी, 2697)*

*❀_ मतलब ये है कि नबी करीम ﷺ ने ज़बान से अस्सलामु अलैकुम कहने के साथ-साथ हाथ के इशारे से भी सलाम किया, इस बात की ता'ईद इस रिवायत से होती है जो अबू दाऊद में है,*

 *❀_ हज़रत अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं नबी करीम ﷺ हमारे पास से गुज़रे तो हमें सलाम किया, इसलिये सही बात ये है कि सलाम ज़बान से ही किजिए अलबत्ता कहीं ज़रूरत हो तो हाथ या सर का इशारा भी कर सकते हैं उस वक़्त भी ज़बान से अल्फ़ाज़ अदा करना चाहिए,*

*✪_ (11)- अपने बड़ो को और चलने वाला बैठने वालों को और थोड़े लोग ज़्यादा लोगों को सलाम में पहल करे:-*
*❀_ अपने बड़ो को सलाम करने का अहतमाम कीजिए, जब आप पैदल चल रहे हों और कुछ लोग बैठे हों तो बैठने वालों को सलाम कीजिए, और जब आप किसी छोटी टोली के साथ हों और कुछ ज़्यादा लोगों से मुलाक़ात हो जाये तो सलाम करने में पहल कीजिये,*

*❀_नबी करीम ﷺ का इरशाद है:-"छोटे शख़्स बड़े को, चलने वाला बैठे हुए को और थोड़े अफ़राद ज़्यादा लोगो को सलाम करने में पहल करे,"*
 *®_ (अल-अदबुल मुफर्रिद, 1001)*

*✪⇨(12)_ सवारी वाला पैदल चलने वालो और राह में बैठे हुए लोगो को सलाम करे,*
*❀_अगर आप सवारी पर चल रहे हों तो पैदल चलने वालों और राह में बैठे हुए लोगों को सलाम कीजिए,*

*❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है -"_सवारी पर चलने वाले पैदल चलने वालों को और पैदल चलने वाले बैठे हुए लोगों को और थोड़े आदमी ज़्यादा आदमियों को सलाम करने में पहल करे,"*
 *®_ (अल-अदबुल मुफर्रिद, 1000)*

*✪_(13)- किसी के यहां मिलने जाएं तो पहुंचते ही सलाम कीजिये:-*
*❀_ किसी के यहां मिलने जायें, या किसी की बेठक या नशिस्त गाह में पहुँचे, या किसी मजमा के पास से गुज़रे या किसी मजलिस में पहुँचे तो पहुंचते वक़्त भी सलाम कीजिये और जब वहां से रूखसत होने लगें तब भी सलाम कीजिये,*

*❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है, ” जब तुम किसी मजलिस मे पहुंचो तो सलाम करो और और जब वहा से रूखसत होने लगो तो फिर सलाम करो और याद रखो कि पहला सलाम दूसरे सलाम से ज़्यादा मुस्तहिक अजर नहीं है,( कि जाते वक्त तो आप सलाम का बड़ा अहतमाम करें और जब रुखसत होने लगें तो सलाम ना करें और रुखसती सलाम को कोई अहमियत ना दें)”*
*®_ तिर्मीज़ी, 270,*

*✪_ (14)_ किसी के वास्ते से भी सलाम पहुंचा सकते हैं:-*
*"❀_ अगर अपने किसी बुज़ुर्ग या अज़ीज़ और दोस्त को किसी दूसरे के ज़रिये सलाम कहलवाने का मौका हो या किसी के ख़त में सलाम लिखवाने का मौक़ा हो तो इस मौके से ज़रूर फायदा उठाएं और सलाम कहलवाएं,*

 *”❀_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने मुझसे फरमाया: आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) जिब्राइल अलैहिस्सलाम तुमको सलाम कह रहे हैं, मैने कहा 'वा अलैहि अस्सलाम वा रहमतुल्लाह''*
*®_(बुखारी, 6249 व मुस्लिम)*

*✪__ (14)_मजलिस में जाएं तो पूरी मजलिस को सलाम कीजिए:-*
*"❀_ मजलिस में जाएं तो पूरी मजलिस को सलाम कीजिए, मखसूस तौर पर किसी का नाम ले कर सलाम ना कीजिए,*

*❀_ एक दिन हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु मजलिस में थे कि एक सा'इल आया और उसने आपका नाम लेकर सलाम किया, हज़रत ने फरमाया, खुदा ने सच फरमाया और रसूलुल्लाह ﷺ ने तबलीग का हक़ अदा कर दिया,*
*"_ और फिर आप घर तशरीफ ले गए, लोग इंतजार में बैठे रहे कि आपके फरमाने का मतलब क्या है? खैर जब आप बाहर आए तो हजरत तारिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा: (हजरत हम आपकी बात का मतलब नहीं समझे)*

*"❀_तो फरमाया: नबी करीम ﷺ का इरशाद है कि क़यामत के क़रीब लोग मजलिसों में लोगों को मखसूस करके सलाम करने लगेंगे, ”*
 *®_(अल-अदबुल मुफ़र्रीद, 1049)*

*✪_(15)-सोए हुए लोगों के पास इस तरह सलाम कीजिए कि जागने वाला सुनले और सोने वाला बेदार न हो:-*
*❀_ अगर आप किसी ऐसी जगह पहुंचे जहां कुछ लोग सो रहे हों तो ऐसी आवाज़ में सलाम कीजिए कि जागने वाले सुनले और सोने वालों की नींद में खलल ना पड़े,*

*❀_हज़रत मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हम नबी करीम ﷺ के लिए कुछ दूध रख लिया करते थे, जब आप ﷺ कुछ रात गए तशरीफ लाते तो आप ﷺ इस तरह सलाम करते थे कि सोने वाला जागे नहीं और जागने वाला सुनले, पस नबी करीम ﷺ तशरीफ लाए और हस्बे मामूल सलाम किया_,"*
 *®_( तिर्मिज़ी, 2719 )* 

*✪_(16)- सलाम का जवाब निहायत खंदा पेशानी से दीजिये:-*
*❀_सलाम का जवाब निहायत खुशदिली और खंदा पेशानी से दीजिए, ये मुसलमान भाई का हक़ है, इस हक़ को अदा करने में कभी बुख्ल ना दिखाइए,*

*❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है मुसलमान पर मुसलमान के 5 हक़ हैं,*
*1- सलाम का जवाब देना,*
*2-मरीज़ की अयादत करना,*
*3- जनाज़े के साथ जाना,*
*4 - दावत क़ुबूल करना,*
*5-छींक का जवाब देना,*
 *®_( मुस्लिम, 565)* 

*✪_(17)_सलाम का जवाब पूरा दीजिये:-*
 *❀_सलाम के जवाब में 'वा अलैकुम अस्सलाम' कहने पर ही इक़्तफ़ा न कीजिए बल्की 'वा रहमतुल्लाहि व बरकातुहू का इज़ाफ़ा कीजिए,*

*❀_कुरान पाक की सूरह निसा, आयत 86 में है:- ''जब कोई तुम्हें दुआ सलाम करे तो उसको इसके लिए बेहतर दुआ दो या फिर वही अल्फ़ाज़ जवाब में कह दो_,''*

*❀_ हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है के नबी करीम ﷺ तशरीफ फरमा थे कि एक आदमी आया और उसने आकर 'अस्सलामु अलैकुम' कहा, आप ﷺ ने सलाम का जवाब दिया और फरमाया,:" 10 यानी 10 नेकियां मिली ) ''*

*❀_फिर एक दूसरा आदमी आया और उसने 'अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाह' कहा, आप ﷺ ने सलाम का जवाब दिया और फरमाया, "20 ( यानी बीस नेकियां मिली)"*

*❀_इसके बाद एक तीसरा आदमी आया और उसने आकर कहा:' अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाहि वा बरकातुहू,' आप ﷺ ने जवाब दिया और फरमाया, "30 (यानी इसको तीस नेकियां मिली)"*
 *®_(तिर्मिज़ी, 2689 )* 

*✪_(17)_जब किसी से मुलाक़ात हो तो सबसे पहले ''अस्सलामु अलैकुम'' कहिए:-*
*❀_जब किसी से मुलाक़ात हो तो सबसे पहले अस्सलामु अलैकुम कहिए सीधे ही गुफ्तगु शुरू करने से परहेज़ कीजिए, जो बात चीत करनी हो सलाम के बाद कीजिए,*

*❀_ नबी करीम ﷺ का इरशाद है:-"जो कोई सलाम से पहले कुछ बात करने लगे उसका जवाब ना दो,"*
 *®_ (तिर्मिज़ी,)*

*❀_जब मुलाक़ात के वक़्त अपने भाई को सलाम कर लिया और (ज़रा देर को) दरमियान में दरख़्त या पत्थर या दीवार की आड़ आ गई, फ़िर उसी वक़्त दोबारा मुलाक़ात हो गई तो दोबारा सलाम करे',*
 *®_(अबू दाऊद, 5200)*

*❀_ यानी ये ना सोचे कि अभी आधा मिनट ही तो सलाम को हुआ है इतनी जल्दी दूसरा सलाम क्यों करूं,*
      
*✪_ (19)- इन हालात में सलाम करने से परहेज़ कीजिये,*

*❀ 1- जब लोग कुरान व हदीस पढ़ने पढ़ाने या सुनने मे मसरूफ हों,*
*★2- जब कोई खुतबा देने और सुनने में मसरूफ हों,*
*★3- जब कोई अज़ान या तकबीर कह रहा हो,*
*★4- जब किसी मजलिस में किसी दीनी मोजू पर गुफ्तगु हो रही हो या कोई किसी को दीनी अहकाम समझा रहा हो,*
*★5- जब उस्ताद पढ़ाने में मसरूफ़ हो,*
*★6- जब कोई कजा़ए हाजत के लिए बैठा हो,*

*❀_ और इन हालात में न सिर्फ सलाम करने से परहेज़ कीजिए बल्की अपनी बे ताल्लुक़ी और रूहानी अज़ियत का इज़हार भी हिकमत के साथ कीजिए,*

*❀_1- जब कोई फिस्क व फ़िज़ूर और ख़िलाफ़े शरा लहू लईब और ऐश व तर्ब में मुब्तिला होकर दीन की तोहीन कर रहा हो,*

*❀ 2- जब कोई गाली गलोच, बेहुदा बकवास, झूठी सच्ची गैर संजीदा बातें और फहश मज़ाक करके दीन को बदनाम कर रहा हो,*

*❀ 3- जब कोई खिलाफे शरीयत अफ़्कार व नज़रियात की तब्लीग कर रहा हो और लोगों को दीन से हटाने और बिदअत व बेदीनी अख़्तियार करने पर उभार रहा हो,*

*❀ 4- जब कोई दीनी अका़इद व श'आर की बेहुरमती कर रहा हो और शरीयत के उसूल व अहकाम का मज़ाक उड़ा कर अपनी अंदरुनी खबासत और मुनाफक़त का सबूत दे रहा हो,*

*✪_(20)- गैर मुस्लिम को सलाम करने की ज़रूरत पेश आये तो अस्सलामु अलैकुम ना कहें:-* 
*❀_ गैर मुस्लिम को सलाम करने की ज़रूरत पेश आये तो अस्सलामु अलैकुम ना कहो बल्की आदाब अर्ज़, तसलीमत वगैरा क़िस्म के अलफाज़ इस्तेमाल कीजिये, और हाथ और सर से भी ऐसा कोई इशारा ना कीजिये जो इस्लामी अक़ीदे और इस्लामी मिज़ाज के खिलाफ हो,* 

*"✪_(21) जिस मजलिस मे मुस्लिम और गैर मुस्लिम दोनों जमा हों तो वहां सलाम कीजिये,*
*“❀_जब किसी मजलिस में मुस्लिम और गैर मुस्लिम दोनों जमा हों तो वहां सलाम कीजिये,*

*“❀_ नबी करीम ﷺ एक बार ऐसी मजलिस के पास से गुज़रे जिसमे मुस्लिम और मुशरिक सब ही शरीक़ थे तो आप ﷺ ने उन सबको सलाम किया, ”* *®_ तिर्मिज़ी, 2706,*

*✪_(21)- सलाम के बाद मुहब्बत और मसर्रत के इज़हार के लिए मुसाफ़ा कीजिए,*

*❀_ नबी करीम ﷺ खुद भी मुसाफा फरमाते थे और आप ﷺ के सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम भी आपस में मिलते तो मुसाफा करते, आप ﷺ ने सहाबा किराम को मुसाफा करने की ताकीद फरमाई और उसकी फजी़लत और अहमियत पर मुख्तलिफ अंदाज में रोशनी डाली,*

*❀_हज़रत कतादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से दरियाफ़्त किया:- क्या सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम में मुसाफ़ा करने का रिवाज था? हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया,:"जी हाँ था,"*
 *®_( तिर्मिज़ी, 2729)*

*❀_ हज़रत हुज़ैफ़ा बिन यमान रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं 'नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया:-'जब दो मोमिन मिलते हैं और सलाम के बाद मुसाफा के लिए एक दूसरे का हाथ अपने हाथ में लेते हैं तो दोनों के गुनाह इस तरह झड़ जाते हैं, जिस तरह दरख्त से (सुखे) पत्ते,''*
 *®_(तबरानी)*

*❀_हज़रत अब्दुल्ला बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं नबी करीम ﷺ ने फरमाया, "_मुकम्मल सलाम ये है कि मुसाफा के लिए हाथ भी मिलाये जायें,"*
 *®_( तिर्मिज़ी, 2730 )* 

*✪_(22)_ कोई दोस्त या बुज़ुर्ग सफ़र से वापस आये तो मुआनका़ (गले मिलना) भी कीजिए,*
*❀_ कोई दोस्त अज़ीज़ या बुज़ुर्ग सफ़र से वापस आये तो मुआनका़ भी कीजिए,*

*❀_ हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु जब मदीना आए तो नबी करीम ﷺ के यहां पहुंच कर दरवाज़ा खटखटाया, आप ﷺ अपनी चादर घसीटते हुए दरवाज़े पर पहुंचे, उनसे मुआनका़ किया और पेशानी को बोसा दिया,'*
 *®_(तिर्मिज़ी, 2732)*

*❀_हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि जब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम आपस में मिलते तो मुसाफ़ा करते और अगर सफ़र से वापस आते तो मुआनका़ भी करते,*
 *®_(तबरानी,)* 

*✪_ (23)- गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग, गुड नाईट के अल्फ़ाज़ इस्तेमाल ना किजिये:-* 
*"❀_ ये जो बाज़ कौमों में गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग, गुड नाईट के अल्फाज़ इस्तेमाल किए जाते है' उनमे अववल तो सलामती के माने को पूरी तरह अदा करने वाला कोई लफ़्ज़ नहीं है, बल्की इसमे कोई दुआ है ही नहीं,* 

*"❀_ इस्लाम ने मुलाक़ात का जो तरीका बताया है वो हर लिहाज़ से कामिल है, गैरो का तरीक़ा अख्त्यार करना और उनके रिवाज़ के मुताबिक कलमात मूंह से निकालना मना है, जो लोग अंग्रेजों के तरीके पर गुड मॉर्निंग वगैरा कहते हैं या अरबों के रिवाज के मुताबिक' सुबहा अल खैर' या' मसा अल खैर' कहते है इससे परहेज़ करना लाज़िम हे,*

 *"❀_ दुनिया की मुख़्तलिफ़ कौमों में मुलाक़ात के वक़्त मुख़्तलिफ़ अलफ़ाज़ कहने का रिवाज है लेकिन इस्लाम में जो सलाम के अलफ़ाज़ मशरु किए गए है उनसे बड़कर किसी के यहां भी कोई ऐसा कलमा मरूज नहीं जिसमे इजहारे मुहब्बत भी हो, और अल्लाह ताला से मुहब्बत भी हो और अल्लाह ताला से दुआ भी हो कि आपको अल्लाह ताला हर क़स्म की और हर तरह की आफात और मसाइब से महफूज़ रखे,* 

*❀_ लफ्ज सलाम जहां' अपना खास माने रखता है वही अल्लाह ताला के पाक नामों मे से भी है, शराहे हदीस ने फरमाया है कि एक मानी ये है कि अल्लाह ताला जो सलामती देने वाला है तुम्हे उसके हिफ्ज़ व अमान मे देता हुं, वो तुम्हे हमेशा सलामत रखे,* 
*®_(इस्लाही मज़ामीन, 178,)*

           *📓 मदनी माशरा -242,*
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           ☜█❈ *मदनी - माशरा*❈ █☞

    *☞_ रंज गम के हालात कैसे गुज़ारें_,*
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*✪_ (1)_ मसाइब व तक़लीफ को सब्र व सुकून के साथ बर्दाश्त कीजिए ◐*

*❖_मसाइब व तक़लीफ को सब्र व सुकून के साथ बर्दाश्त कीजिए, कभी हिम्मत ना हारिए और रंज व गम को कभी ल हद्दे ऐतदाल से ना बढ़ने दीजिए ,*

 *❖_ दुनिया की जिंदगी में कोई भी इंसान रंज व गम, मुसीबत व तकलीफ, आफत या नाकामी और नुक़सान से बेखौफ और मामून नहीं रह सकता ।*

*❖_ अलबत्ता मोमिन और गैर मोमिन के किरदार में यह फर्क तो ज़रूर होता है कि गैर मोमिन रंज व गम के हुजूम में परेशान होकर होशो हवास खो बैठता है मायूसी का शिकार होकर हाथ पैर छोड़ देता है और बाज़ औका़त गम की ताब ना ला कर खुदकुशी कर लेता है।*

*❖_ और मोमिन बड़े से बड़े हादसे पर भी सब्र का दामन हाथ से नहीं छोड़ता और सब्र का पेकर बनकर चट्टान की तरह जमा रहता है, वह सोचता है कि यह जो कुछ हुआ तक़दीर ए इलाही के मुताबिक हुआ, खुदा का कोई हुक्म हिकमत वह मसलिहत से खाली नहीं और यह सोच कर कि खुदा जो कुछ करता है अपने बंदे की बेहतरी के लिए करता है, यक़ीनन उसमें खैर का पहलू होगा, मोमिन को ऐसा रूहानी सुकून व इत्मिनान हासिल होता है कि गम की चोट में लज्जत आने लगती है और तक़दीर का यह अकी़दा हर मुश्किल को आसान बना देता है।*

*❖_ क़ुरआने करीम का मे अल्लाह ताला का इरशाद है :- जो मसाईब भी रूए जमीन में आते हैं और जो आफतें भी हम पर आती हैं वह सब इससे पहले कि हम उन्हें वजूद में लाएं एक किताब में (लिखी हुई महफूज और तयशुदा) है ,इसमें कोई शक नहीं कि यह बात खुदा के लिए आसान है ताकि तुम अपनी नाकामी पर गम ना करते रहो !( सूरह हदीद , 22-23)*

*❖_ यानी तकदीर पर ईमान लाने का एक फायदा यह है कि मोमिन बड़े से बड़े गम को भी कजा़ व तकदीर का फैसला समझकर अपने गम का इलाज पा लेता है और परेशान नहीं होता वह हर मामले की निस्बत अपने मेहरबान खुदा की तरफ करके खैर के पहलू पर निगाह जमा लेता है और सब्र व शुक्र करके हर शर में से अपने लिए खैर निकालने की कोशिश करता है,*

*❖_ नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का इरशाद है:-* *“_ मोमिन का मामला भी खूब ही है वह जिस हाल में भी होता है खैर ही समेटता है अगर वह दुख बीमारी और तंग दस्ती से दो चार होता है तो सुकून के साथ बर्दाश्त करता है और यह आजमाइश उसके हक़ में खैर साबित होती है और अगर उसको खुशी और खुशहाली नसीब होती है तो शुक्र करता है और यह खुशहाल