✭﷽✭
*✭ KHILAFAT E RASHIDA .✭*
*✿_ खिलाफते राशिदा _✿*
▪•═════••════•▪ ★_ खिलाफत का मसला _,*
★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तदफीन की तैयारियां हो रही थी कि एक शख्स ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के पास आकर कहां :-
"_ ऐ उमर ! अंसारी हजरात सक़ीफा बनी सादाह में जमा है और खिलाफत के मसले पर बात कर रहे हैं _,"
यह सुनते ही हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फौरन रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के दरवाज़े पर तशरीफ लाए, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उस वक्त अंदर थे, उन्हें बाहर बुलवाया , वह अंदर कफन दफन की तैयारियों में मशरूफ थे लिहाज़ा कहला भेजा कि मैं इस वक्त मसरूफ हूं ,
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अंदर फिर पैगाम भेजा कि एक खास बात पेश आई है इसलिए बाहर आकर सुन लें, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बाहर तशरीफ लाए, हजरत उमर ने कहा :-
"_ क्या आपको मालूम है सक़ीफा बनी सादाह में अंसार जमा है और खिलाफत के मसले पर बात कर रहे हैं और सुनने में आया है कि वह हजरत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु को खलीफा बनाना चाहते हैं या फिर उनका कहना है कि एक अमीर मुहाजिरीन में से हो और एक अन्सार में से _,"
★_ यह सुनते ही हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को साथ लिया और तेज़ी से सक़ीफा बनी सादाह की तरफ चल पड़े, रास्ते में हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु मिल गए, वह भी उनके साथ हो लिए ,
★_ सक़ीफा बनी सादाह मशहूर अंसारी सहाबी साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु की मिल्कियत थी और बैठक का काम देती थी, अंसारी हजरात वहां जमा होकर आपस के फैसले किया करते थे, आज वहां इस सिलसिले में तक़रीर हो रही थी, हजरत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु तक़रीर में कह रहे थे :-
"_ ऐ गिरोह अन्सार ! दीन में तुम्हें वह बरतरी हासिल है और इस्लाम में तुम्हें फजी़लत हासिल है जो अरब में किसी को नहीं .. तुमने मुश्किल तरीन वक्त में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का साथ दिया जब उनके अपने लोग उनसे दुश्मनी कर रहे थे तुमने मुहाजिरीन की मदद की इस्लाम के दुश्मनों के साथ जिहाद किया, अब अल्लाह ताला ने अपने रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अपने पास बुला लिया इस हाल में कि वह तुमसे बहुत खुश थे लिहाज़ा ख़िलाफत तुम्हारा हक़ है... और किसी का नहीं _,"
★_ हजरत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु की इस तकरीर को अंसार ने पसंद किया ताहम 1- 2 ने यह सवाल किया- अगर मुहाजिरीन ने इस बात को पसंद ना किया तो ?
अंसारी हजरात में से चंद ने इसका यह जवाब दिया- तब हम यह तजवीज़ पेश करेंगे कि एक अमीर हमने से हो और एक अमीर तुम में से हो _,"
★_ हजरत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस तजवीज़ को नापसंद फरमाया... इतने में यह दोनों हजरात वहां पहुंच गए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैं रास्ते में यह सोचता आया था कि वहां जाकर क्या कहूंगा ? अपनी तकरीर का मजमून मैंने सोच लिया था, वहां पहुंचकर मैंने चाहा अपनी तकरीर शुरू करूं, मेरा इरादा भांपकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले - ज़रा सब्र करो पहले मुझे कह लेने दो फिर जो तुम्हारा जी चाहे कहना _,"
★_ फिर उन्होंने तकरीर शुरू की तो वह ऐसी थी कि जो कुछ मैं कहना चाहता था उससे भी ज्यादा बेहतर उन्होंने कह दिया, हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस नाज़ुक मौके पर जो तकरीर की वह यह थी :-
"_ अल्लाह ताला ने अपनी मखलुकात के पास मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को अपना और अपनी उम्मत का निगरां मुकर्रर करके इसलिए मब'ऊस फरमाया था कि सिर्फ उसकी परिस्तिश हो और उसकी वहदानियत हो, हालांकि इससे पहले लोग अल्लाह ताला के सिवा मुख्तलिफ माबूदों की इबादत करते थे, दावा करते थे यह माबूद अल्लाह के यहां उनकी सिफारिश करने वाले हैं और नफा पहुंचाने वाले हैं हालांकि वह पत्थर से तराशे और लकड़ी से बनाए जाते थे,
अल्लाह ताला फरमाता है:-
(तर्जुमा)... और अल्लाह के सिवा एसों की परिस्तिश करते हैं जो ना उनको नफा पहुंचा सकते हैं और ना नुक़सान और वह कहते हैं यह हमारे माबूद अल्लाह के यहां हमारे सिफारिशी हैं _," ( सूरह यूनुस- 10)
"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का यह पयाम अरबों को नागवार हुआ और वह अपने आबाई दीन के तर्क करने पर आमदा ना हुवे, अल्लाह ताला ने आपकी तसदीक़ के लिए मुहाजिरीन अव्वलीन को मखसूस फरमाया, वह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर ईमान लाए उन्होंने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ हर हाल में रहने के लिए बैत का वादा किया और बावजूद अपनी कौम की ईज़ा रसाई और तकजी़ब के उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का साथ दिया हालांकि तमाम लोग उनके मुखालिफ थे और उन पर जुल्म करते थे मगर तमाम लोगों के ज़ुल्म और उनकी साजिशों के बावजूद अपनी कम तादाद से कभी मुतास्सिर और खाइफ नहीं हुए, इस तरह वह पहले लोग हैं जिन्होंने इस ज़मीन में अल्लाह ताला की इबादत की और अल्लाह ताला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पर ईमान लाए , वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के वली और खानदान वाले हैं और उनके बाद इस मनसबे इमारत के के सबके मुकाबले में वही ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं और मैं समझता हूं कि उनके इस हक में सिवाय ज़ालिम के और कोई उनसे झगड़ा नहीं करेगा_,"
"_ अब रहे तुम अंसार ! कोई शख्स दीन में तुम्हारी फजी़लत और इब्तिदाई शिरकत और खिदमत का इनकार नहीं कर सकता, अल्लाह ताला ने अपने दीन और अपने रसूल की हिमायत के लिए तुम्हें पसंद किया और इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम तुम्हारे पास हिजरत करके आए इस वक्त भी उनकी अज़वाज और असहाब तुम्हारे यहां रहते हैं, बेशक मुहाजिरीन के बाद तुम्हारे मुकाबले में हमारी नज़र में किसी और की कद्र व मंज़िलत नहीं है लिहाज़ा मुनासिब होगा कि अमीर हम हों और तुम वज़ीर, हर मामले में तुमसे मशवरा किया जाएगा और बगैर तुम्हारे इत्तेफाक़े राय के हम कोई काम नहीं करेंगे _,"
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की तक़रीर खत्म हुई तो हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन लोगों से कहा :-
"_ ऐ गिरोह अन्सार ! तुम वो लोग हो जिन्होंने सबसे पहले दीन की हिमायत की , अब ऐसा ना करो कि तुम ही दीन में बिगाड़ पैदा करो_,"
हजरत बशीर बिन साद अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी इसी किस्म के अल्फाज़ कहें, ऐसे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोल उठे :-
"_ यह उमर हैं और यह अबू उबैदा है , तुम इनमें से जिसे चाहो अमीर बना लो _,"
यह दोनों हजरात फोरन बोल उठे :-
"_ आपके होते हुए हम हरगिज़ इस मन्सब को कुबूल नहीं करेंगे क्योंकि आप मुहाजिरीन में सबसे बुजुर्ग हैं, गार में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के रफीक़ रहे और नमाज़ की इमामत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के जांनशीन बन चुके हैं .. और नमाज हमारे दीन का सबसे बड़ा रूक्न है, इसलिए आपके होते हुए यह बात किसी को जे़ब नहीं देती कि वह अमीर बने , आप अपना हाथ बैत के लिए बढ़ाएं _,"
★_ अब जोंही हजरत उमर फारूक और हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हुम बैत के लिए आगे बढ़े उनसे भी पहले हजरत बशीर बिन साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने आगे बढ़कर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से बैत कर ली, फिर तो सभी बैत के लिए उठ आए, हर तरफ से लोग आ आकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की बैत करने लगे,
★_ बैत के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और दूसरे हजरात वापस लौटे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तदफीन में शरीक़ हुए, दफन के वक्त यह इख्तिलाफ पैदा हुआ कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को दफन कहां किया जाए ? हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने इस मौके पर फरमाया :-
"_ मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से एक हदीस सुनी है और मैं उसे भूला नहीं हूं, और वह यह है कि अल्लाह किसी नबी की रूह उसी जगह क़ब्ज़ करता है जहां उसे दफन होना पसंद होता है लिहाज़ा तुम भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को यहीं दफन करो _,"
चुंनाचे ऐसा ही किया गया ।
★_ पहले दिन जो बैत हुई थी वह खास लोगों में के मजमे में थी लिहाज़ा दूसरे दिन मस्जिद-ए-नबवी में आम बैत का इंतजाम किया गया, सब मुसलमान जमा हुए, उस मौक़े पर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने मिंबर पर बैठकर खुतबा दिया और फरमाया :-
"_ मैं उम्मीद करता हूं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हम लोगों के बाद तक जिंदा रहेंगे लेकिन अब वह वफात पा गए हैं, बहरहाल अल्लाह ताला ने तुम्हारे सामने एक ऐसा नूर रख दिया है कि जिससे तुम वही हिदायत हासिल कर सकते हो जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से हासिल करते थे, बिला शुब्हा अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथी और गार के रफीक़ हैं, मुसलमानों की सर बराही के लिए तुम में सबसे बेहतर यहीं हैं.. बस खड़े हो जाओ और इनसे बैत करो _,"
★_ यह कहने के बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से अर्ज किया - "_आप मिंबर पर आ जाएं _,"
हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के जिस्म में कोई हरकत ना हुई... उनसे कई बार कहा गया तब वह खड़े हुए.. और फिर मुसलमानों ने उनसे बैत की । उसके बाद उन्होंने लोगों को खुतबा दिया, खलीफा बनने के बाद यह उनका पहला खुतबा था ।
तबक़ात इब्ने सा'द में है कि ऐसा खुतबा फिर किसी ज़ुबान से सुनने में नहीं आया , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने पहले तो अल्लाह की हम्दो सना बयान की, फिर फरमाया :-
"_ लोगों ! मैं तुम्हारा अमीर बनाया गया हूं हालांकि मैं तुमसे बेहतर नहीं .. अगर मैं अच्छा करूं तो तुम मेरी मदद करो और अगर बुरा करूं तो मुझे सीधा करो , सच्चाई एक अमानत है और झूठ खयानत, तुममें जो कमज़ोर है वह मेरे नज़दीक ताक़तवर है जब तक कि मैं उसकी शिकायत दूर ना करूं और तुममे जो ताक़तवर है वह मेरे नज़दीक कमज़ोर है जब तक कि उससे हक़ वसूल ना कर लूं , जो क़ौम जिहाद छोड़ देती हैं अल्लाह ताला उस पर जि़ल्लत मुसल्लत कर देता है और जिस क़ौम में बेहयाई आम हो जाती है अल्लाह ताला उन पर मुसीबत नाज़िल कर देता है, मैं जब तक अल्लाह और उसके रसूल की इता'अत करूं तुम मेरी इता'अत करो और जब मैं अल्लाह ता'ला और उसके रसूल की नाफरमानी करूं तो तुम पर मेरी कोई इता'अत फर्ज़ नहीं, अब नमाज़ के लिए उठो, अल्लाह ताला तुम पर रहम फरमाएं _,"
★_ सीरत और तारीख़ की किताबों में यह जिक्र मिलता है कि कुछ लोगों ने उस दिन हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से बैत नहीं ली थी उनमें एक नाम हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का लिया जाता है, आमतौर पर कहा जाता है कि उन्होंने छह माह तक यानी हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात तक बैत नहीं की और घर में बैठे रहे, फिर 6 माह बाद बैत की... लेकिन यह बात दुरुस्त नहीं ,
★_ मुस्तदरक हाकिम ने हजरत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है :-
"_ जबकि अबू बकर मिंबर पर बैठ गए तो उन्होंने लोगों पर नज़र डाली, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु नज़र ना आए तो उनके बारे में पूछा, इस पर कुछ अंसारी उठे और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को ले आए, उसके बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से बैत कर ली , इमाम हाकिम फरमाते हैं.. यह हदीस सही है , (मुस्तदरक हाकिम )
★_ यह ठीक है कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात के बाद एक बार फिर हजरत अबू बकर की बैत की थी मगर यह दूसरी बेत इस वजह से थी कि विरासत के मामले में जो इल्मी इशकाल हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को था वह भी जाता रहा था, मतलब यह कि खिलाफत के सिलसिले की बैत तो उसी दिन कर ली थी यह दूसरी बैत तज़दीदे बैत थी और इल्मी इशकाल के खत्म होने का खुला ऐलान थी ,
★_ हजरत जुबेर बिन अवाम रजियल्लाहु अन्हु के बारे में भी इसी किस्म की बात कही जाती है लेकिन यह भी दुरुस्त नहीं , हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ ही बैत की थी , ( मुस्तदरक , जिल्द -3 सफा- 66)
★_ इसी तरह हजरत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने भी बैत नहीं की थी.. यह भी गलत है, क्योंकि मुसनद इमाम अहमद में है कि हजरत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने खुशी से बैत की थी, मालूम हुआ कि इस्लाम के दुश्मन लोग ऐसी बातें मशहूर करते हैं, उनकी तरफ कान नहीं धरना चाहिए ।
★_ जिस वक़्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु खलीफा बने वह मुसलमानों के लिए निहायत नाजुक वक्त था, सबसे बड़ा सदमा तो हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात का था इसके अलावा मदीना मुनव्वरा में मुनाफिकों का एक गिरोह मौजूद था यह लोग मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाने का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देते थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हयात मुबारक में भी उन्होंने बार-बार मुनाफक़त दिखाई थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद उन्होंने खुलकर काम करने की ठान ली ,
★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त के हालात का नक्शा इन अल्फ़ाज़ में बयान करते हैं :-
"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात के बाद हम मुसलमानों को ऐसे हालात का सामना करना पड़ा कि अगर अल्लाह ताला अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को अता फरमा कर हम पर एहसान ना करते तो हम हलाक हो जाते _,"
★_ इसी तरह आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं :-
"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद मेरे वालिद पर मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़े एक तरफ मदीना मुनव्वरा में मुनाफिक़ मौजूद थे दूसरी तरफ अरब मुर्तद हो रहे थे _,"
★_ इन हालात में एक अहम मसला यह था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु की क़यादत में एक लश्कर रवाना फरमाया था वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात की वजह से रुक गया था, अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि वह उस लश्कर को रवाना करें या पहले मुर्तद हो जाने वालों की तरफ तवज्जो दें , उस वक्त तमाम सहाबा बहुत घबराए हुए थे
╨─────────────────────❥ *★_लश्करे ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु की रवानगी _,*
★_ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने इन हालात में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को यह मशवरा दिया :-
"_ आप देख रहे हैं हालात क्या हैं, ले देकर अब यही मुसलमान है जो आपके सामने हैं, आप देख ही रहे हैं कि अरब का क्या हाल है ...इसलिए मुनासिब नहीं कि आप इस वक्त इस लश्कर को रवाना फरमाएं _,"
★_ अल्लाह ताला ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खलीफा भी तो किसी आम इंसान को नहीं बनाया था, वह पहाड़ों से भी ज्यादा मज़बूत थे, सब की राय सुनकर बोले :-
"_ क़सम है उस जा़त की जिसके क़ब्जे में मेरी जान हैं , इस लश्कर को भेजने के सिलसिले में अगर मदीना इस तरह खाली हो जाए कि मैं ही अकेला रह जाऊं और दरिंदे और कुत्ते मुझे फाड़ खाएं , तो भी मैं ओसामा को आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म के मुताबिक इस मुहिम पर रवाना करूंगा _,"
★_ अब जब सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को हजरत अबू बकर सिद्दीक का फैसला मालूम हो गया और उन्होंने जान लिया कि खलीफा ए रसूल ऐसा करके रहेंगे तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने इस मौक़े पर यह मशवरा दिया :-
"_ ऐ खलीफा ए रसूल ! इस लश्कर में उम्र रसीदा और तजुर्बा कार सहाबा शामिल है, .. जबकि ओसामा नौजवान हैं, इसलिए बेहतर यह रहेगा कि किसी उम्र रसीदा तजुर्बा कार आदमी को लश्कर का अमीर मुकर्रर फरमा दें _,"
★_ यह राय सुनते ही हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु शदीद गुस्से में आ गए और फरमाया :-
"_ ऐ खत्ताब के बेटे ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने ओसामा को लश्कर का अमीर मुकर्रर फरमाया है और तुम कहते हो मैं उनकी जगह किसी और को अमीर मुकर्रर करूं, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा _,"
★_ यह मशवरा दर असल हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को कुछ दूसरे सहाबा किराम ने दिया था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का फैसला सुनकर उनके पास वापस आए और उन्हें बुरा भला कहा कि उनकी वजह से उन्हें खलीफा ए रसूल की नाराज़गी का सामना करना पड़ा ।
: ★_ अब हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया:-
"_ जिन लोगों को ओसामा के लश्कर में शामिल किया गया था जाने के लिए तैयार हो जाएं उनमें से कोई भी पीछे ना रहे, ... सब लोग मुक़ामे हर्फ में पहुंच जाएं _,"
★_ सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम तैयार होकर वहां पहुंच गए, अब हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु वहां तशरीफ लाए, हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को रवानगी का हुक्म फरमाया, लश्कर रवाना हुआ तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उनके घोड़े की लगाम थामें पैदल चल रहे हैं .. इस सूरते हाल से हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हू परेशान हुए चुंनाचे उन्होंने अर्ज़ किया :-
"_ए खलीफा ए रसूल ! या तो आप भी सवार हो जाएं या मैं घोड़े से उतर जाता हूं _,"
उस वक्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जो जवाब दिया उस पर इंसान जितना भी झूमे कम है, .. आपने फरमाया :-
"_ अल्लाह की क़सम ! ना तुम उतारोगे ना मै सवार हुंगा, क्या हुआ अगर अल्लाह ताला के रास्ते में कुछ देर के लिए मेरे पांव गुबार आलूद हो गए, गाज़ी के हर हर क़दम के बदले 700 नेकियां लिखी जाती हैं _,"
★_ इसके बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :-
"_ अगर तुम ना मुनासिब ना समझो तो उमर को मेरे पास छोड़ जाओ मुझे उनके मशवरे की ज़रूरत होगी _,"
हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह बात खुशी से मान ली, अब हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने लश्कर को रोक कर निहायत अहम और क़ीमती हिदायत दी,
★_ रूखसती के वक्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु से यह भी फरमाया :-
"_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने तुम्हें जैसे हुक्म दिया था वैसे ही करना .. उसकी तामील में ज़र्रा बराबर कोताही ना हो _,"
और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने आखिरी अय्याम में उनसे फरमाया था :- "_ फिलिस्तीन की सरज़मीन में बलक़ा और दारूम के जो इलाक़े हैं इस्लामी लश्कर उनको फतह करते आए _,"
यह लश्कर तीन हजार मुहाजिरीन और अन्सार पर मुश्तमिल था, इसमें से एक हजार सवार फौज थी ,
: ★_ जब यह लश्कर ईसाइयों के लश्कर के सामने आया तो हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे फरमाया :- "_ ए मुजाहिदीन ए इस्लाम ! हमले के लिए तैयार हो जाओ दुश्मन अगर भाग निकले तो उस का पीछा ना करना, आपस में मुत्ताहिद रहो और इत्तेफाक से रहो ... हल्की आवाज़ से बोलो अल्लाह को अपने दिलों में याद करो और तलवारे जब एक बार नियाम से बाहर निकालो तो फिर जब तक तुम अपने दुश्मनों के सर क़लम ना कर दो उनको नियामों में ना रखना _,"
★_ इस तक़रीर के बाद हमला शुरू हुआ उस वक्त हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु अपने वालिद के उस घोड़े पर सवार थे जिस पर जंग करते हुए वह शहीद हुए थे, शदीद लड़ाई के बाद आखिर दुश्मन भाग निकला, उनमें से बेशुमार कत्ल हुए और लश्कर ओसामा कामयाब रहा, इस जंग में एक भी मुसलमान शहीद नहीं हुआ था ।
★_ हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कामयाबी की खबर मदीना मुनव्वरा रवाना फरमाई, मदीना मुनव्वरा में इस खबर से खुशी की लहर दौड़ गई, जब लश्कर मदीना में दाखिल हुआ तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और दूसरे सहाबा समेत मदीना के लोगों ने उसका ज़बरदस्त इस्तक़बाल किया, हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त भी अपने वालिद के घोड़े पर सवार थे और उनके घोड़े के आगे हजरत बुरैदा रज़ियल्लाहु अन्हु परचम उठाएं चल रहे थे और यह वही परचम था जो आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी वफात से चंद रोज़ पहले हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द किया था ।
★_ जब कुछ लोगों ने हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु को अमीर बनाने पर एतराज किया था, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया था :- "_ जिस परचम को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने खोला था मैं उसे किस तरह लपेट दूं _,"
★_ इस वक्त मुसलमानों की खुशी दे पाया थी इस मुहिम का सबसे अच्छा नतीजा यह सामने आया कि क़ैसरे रोम बदहवास हो गया वह इस वक्त हिम्स में था, उसने अपने लोगों से कहा :- "_देखो यह वही लोग हैं जिनसे मैंने तुम्हें खबरदार किया था लेकिन तुमने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया .. अब ज़रा इन अरबों की हिम्मत और जुर्रात तो देखो, एक माह के फासले पर आकर तुम पर हमला कर देते हैं और सही सलामत वापस चल जाते हैं _,"
★_ अरब और शाम की सरहदों पर जो क़बाइल आबाद थे वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात की खबर सुनकर बागी हो गए थे, इस फतह से उन्हें यकी़न हो गया कि मदीना मुनव्वरा में मुसलमानों की बहुत बड़ी तादाद मौजूद है वरना इस क़दर फासले पर लश्कर हरगिज़ रवाना नहीं कर सकते थे, इस ख़याल ने उन पर मुसलमानों की धाक बिठा दी _,"
★_ यह मुहिम माहे रबीउल अव्वल 11 हिजरी में रवाना की गई थी और रवाना होने के बाद वापस आने तक दो माह लगे थे, इस ज़बरदस्त कामयाबी के बाद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही का फैसला फरमाया जो ज़कात का इंकार कर बैठे थे ।
╨─────────────────────❥ *★_ मुंकिरीने जकात से ऐलाने जंग _,*
★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद मदीना के आस-पास आबाद क़बाइल ने ऐलान कर दिया कि हम जकात नहीं देंगे, उन क़बाइल में बनू कनाना , बनू गतफान बनू क़रारा , बनू अबस और जी़बान शामिल थे,
उन्होंने ऐलान किया- हम नमाज़ तो पड़ेंगे लेकिन ज़कात नहीं देंगे _,"
हजरतत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उन क़बाइल के खिलाफ एलान-ए-जंग किया तो एक बार फिर सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम परेशान हुए बगैर ना रह सके ,
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने इस फैसले पर एतराज करते हुए अर्ज किया :- "_आप उन लोगों से किस तरह जिहाद करेंगे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो फरमाया है, मुझे हुक्म दिया गया है कि लोगों से उस वक्त तक क़िताल करूं जब तक कि वह ....ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ... ना कहें लेकिन जब वह कलमा पढ़ लेंगे तो उनके उनकी जाने और उनके माल महफूज हो जाएंगे _,"
★_ इस बात के जवाब में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- "_ नमाज और जकात में फर्ज़ होने के ऐतबार से कोई फर्क नहीं , चुनांचे कुरान मजीद में अक्सर मुक़ामात पर नमाज और जकात का जिक्र एक साथ है, इसके अलावा कुरान में इरशाद है - पस अगर यह लोग तौबा कर लें और नमाज़ पढ़ें और जकात अदा करें तो उन्हें कुछ ना कहो ...,"
★_ इसके अलावा एक दलील यह है कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में ताइफ का एक वफद आया था उसने कहा था हम इस्लाम कबूल करने के लिए तैयार हैं लेकिन हम नमाज़ नहीं पड़ेंगे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने बहुत सख्ती से उनकी बात रद्द फरमा दी थी और फरमाया था - भला वह दीन ही क्या है जिसमें नमाज़ ना हो _,"
सो जब नमाज के बगैर दीन दीन नहीं तो जकात के बगैर भी दीन दीन नहीं _,"
★_ यह जवाब सुनकर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने भी इस बात को दुरुस्त तस्लीम कर लिया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने इस मौके पर फरमाया :- थोड़ी ही देर हुई थी कि मैंने देख लिया, अल्लाह ताला ने अबू बकर का सीना खोल दिया था _,"
★_ जो लोग यह बात करने के लिए आए थे कि हम जकात नहीं देंगे, वह मायूस होकर लौट गए, मदीना मुनव्वरा से रुखसत होते वक्त उन लोगों ने यह बात साफ महसूस कर ली थी कि मदीना मुनव्वरा में इस वक्त बहुत थोड़े मुसलमान बाक़ी है ज्यादातर हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु के लश्कर के साथ जा चुके हैं, चुनांचे उन्होंने अपने क़बीलों को जमा किया सारी सूरते हाल उन्हें बताई कि इस मौके से फायदा उठाना चाहिए ...इस वक्त मदीना मुनव्वरा पर कब्जा करना बहुत आसान काम होगा ।
*★_ इधर यह लोग यह मंसूबा बना रहे थे उधर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने वक्त की नजाकत को महसूस कर लिया और मदीना मुनव्वरा की हिफाज़त में लग गए, पहला काम उन्होंने यह किया कि बड़े-बड़े सहाबा हजरत अली, हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ, हजरत जुबेर बिन अवाम, हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद, हजरत तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुम की सरकर्दगी में मदीना मुनव्वरा के मुख्य रास्तों पर दस्ते मुकर्रर फरमा दिए ,
★_ बाक़ी जो लोग मदीना मुनव्वरा में थे उन पर मस्जिद की हाज़िरी जरूरी क़रार दी ताकि हंगामी हालत में फौरन सबको खबर हो जाए, साथ ही आपने सब लोगों को खबरदार करते हुए फरमाया :- "मुसलमानों ! यह जो वफद यहां से गया है यह तुम्हारी तादाद की कमी को देख कर गया .. यह लोग किसी भी वक्त तुम पर हमला कर सकते हैं , यह है भी आसपास के, इन्हें मदीना मुनव्वरा तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी, हमने उनकी बात नहीं मानी लिहाजा़ यह हमला ज़रूर करेंगे _,"
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का ख्याल बिल्कुल दुरुस्त साबित हुआ, जकात का इन्कार करने वाले क़बाइल ने मदीना मुनव्वरा पर हमला कर दिया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने पहले ही हिफाज़ती दस्ते मुकर्रर फरमा दिए थे, उन्होंने हमले की इत्तेला आपको भेज दी, आपने उन्हें पैगाम भेजा कि अपनी जगह डटे रहो मैं आ रहा हूं , फिर आपने मुसलमानों को साथ लिया और बागियों के मुकाबले में आए, जोरदार जंग हुई , बागी हमले की ताब ना ला सके और भाग निकले,
★_ मुसलमानों ने उनका पीछा किया, बागियों ने ज़ोहस के मुकाम पर पहुंचकर पनाह ली, वहां उनके साथ दूसरे बागी शामिल हो गए, एक बार फिर यह लोग मदीना मुनव्वरा पर हमले के लिए रवाना हुए , इन हमला करने वालों में क़बीला अबस, ज़िबयान, बनु मुर्रह और बनू कनाना वगैरह के लोग शामिल थे ,
★_ दूसरी तरफ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु भी जान चुके थे कि यह लोग फिर हमला करेंगे लिहाज़ा उन्होंने जंग की तैयारी जारी रखी, फौज की बाका़यदा तरबियत की, फिर इससे पहले कि दुश्मन मदीना मुनव्वरा के नज़दीक पहुंचता हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु उनकी तरफ बढ़े, अभी सुबह नहीं हुई थी कि उन पर जा पड़े, वह अभी सोए पड़े थे, मुसलमानों ने उन्हें मारना शुरू किया तो बदहवास होकर भागना शुरू किया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने ज़ुलक़सा के मुका़म पर पहुंचकर दम लिया .. लेकिन बागियों में अब मुक़ाबले की हिम्मत नहीं रही थी ,
★_ आपने हजरत नोमान बिन मक़रन को वहां छोड़ा और फौरन मदीना मुनव्वरा लौट आए, इस्लामी लश्कर की इस शानदार कामयाबी से मुसलमानों में खुशी की लहर दौड़ गई इसका शानदार नतीजा यह निकला कि मुख्तलिफ कबीलों के सरदार अपने अपने क़बीले की ज़़कात लेकर आने लगे .. यानी पहले जकात के इंकारी थे अब खुद लेकर आ गए , इससे मुसलमानों की माली हालत मजबूत हो गई ।
★_ इस दौरान एक वाक़िआ और हुआ, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु जब ज़ुलक़सा से वापस लौट आए तो क़बीला अबस और ज़िबयान ने वहां मौजूद थोड़े से मुसलमानों पर हमला कर दिया और उन्हें धोखे से क़त्ल कर दिया, सिद्दीके अकबर को यह खबर मिली तो क़सम खाई :- जब तक हम इन सभी लोगों से मुसलमानों के नाहक़ खून का बदला नहीं लेंगे चैन से नहीं बैठेंगे _,"
★_ इस दौरान हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हू का लश्कर शानदार फतेह हासिल करने के बाद मदीना मुनव्वरा पहुंच गया, इससे अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को और ज्यादा इतमिनाश नसीब हो गया , आपने हजरत ओसामा रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीना मुनव्वरा में अपना क़ायम मुका़म बनाते हुए उनसे फरमाया :- "_ तुम लोग अब आराम कर लो _,"
फिर आपने खुद एक फौज लेकर ज़ुलक़सा की तरफ रवाना होने का इरादा फरमाया ताकि गद्दार कबीलों को सजा दें और मुसलमानों का इंतका़म ले सकें,
★_ इस पर चंद बड़े सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम ने उनसे अर्ज़ किया :- ए खलीफा ए रसूल ! आप ना जाएं अगर खुदा ना ख्वास्ता आपको कुछ हुआ या आप ज़ख्मी हो गए तो हम लोगों का निज़ाम बाकीऊ नहीं रहेगा, जबकि अगर आप यहां रहेंगे तो इससे दुश्मन पर रौब रहेगा, आप अपने बजाय किसी और को भेज दें _,"
★_ इस मौके पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपसे अर्ज किया :- ए खलीफा ए रसूल ! आप कहां जा रहे हैं.. अपनी जान को खतरे में ना डालें _,"
हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने सहाबा किराम के इसरार के बावजूद खुद ही जाना पसंद फरमाया और ज़ुलकसा की तरफ रवाना हो गए, मुकामें अबरक में पहुंचकर उन लोगों पर हमला किया, उनके सरदार हारीस और ऑफ थे, उन दोनों को शिकस्त दी, बनू अबस और बनू बकर खौफज़दा होकर भागे, आपने चंद दिन अबरक़ में आराम फरमाया फिर आगे बढ़े और बनु ज़िबयान को शिकस्त दी और उनके इलाकों पर कब्जा कर लिया, इस तरह कबीला अबस और ज़िबयान ने जिन मुसलमानों को शहीद किया था, उनसे इंतकाम ले लिया, फिर फतेह का परचम लहराते हुए वापस आए ।
★_ बनू ज़िबयान ,अबस, गतफान और इनके अलावा दूसरे कबीलों की हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के साथ आखरी जंग थी, यह कबीले मदीना मुनव्वरा के क़रीब आबाद थे और आराबे मदीना कहलाते थे, चाहिए तो यह था कि अब यह लोग हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की इता'त क़ुबूल कर लेते, जक़ात की फरज़ियत के भी क़ायल हो जाते और पक्के सच्चे मुसलमान बन जाते लेकिन अब यह मुसलमानों के मुकाबले में जिन लोगों ने नबूवत का दावा किया था उनकी सफो में शामिल हो गए ,
★_ हजरत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु का लश्कर कुछ दिनों तक आराम करने के बाद फिर से ताज़ा दम हो चुका था इसलिए हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबूवत का झूठा दावा करने वालों की तरह तवज्जो फरमाई, आपने इस्लामी फौज को 11 हिस्सों में तक़सीम फरमाया, हर हिस्से का एक सालार मुकर्रर फरमाया , उन लश्करों को रवाना करने से पहले हजरत सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे खिताब भी फरमाया,
★_ इन 11 लश्करों में सबसे पहला लश्कर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु का था, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके लश्कर को तलहिया असदी और मालिक बिन नुवेरा की तरफ रवाना फरमाया, तलहिया ने नबूवत का दावा किया था जबकि मालिक बिन नुवेरा ज़कात का मुंकिर था ,
★_ तलहिया बज़ाखा में ठहरा हुआ था, वह इधर-उधर के कबीलों को मिलाकर मुसलमानों के खिलाफ एक बड़ी जंग की तैयारी में मसरूफ था इसलिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने सबसे पहला लश्कर उसकी तरफ रवाना किया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने लश्कर रवाना करते वक्त हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- तुम पहले क़बीला बनू तै की तरफ जाओ फिर बज़ाखा की तरफ रूख करना वहां से फारिग हो जाओ तो फिर बताह की तरफ रुख करना और जब तुम इस मुहिम से फारिग हो जाओ तो मेरा दूसरा हुकुम आने तक वहीं ठहरना_,"
: ★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु कबीला बनी तै की तरफ रवाना हो गया, आपने अपनी रवानगी से पहले हजरत अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु को क़बीला बनी तै की तरफ रवाना किया, यह मुसलमान हो चुके थे और उस क़बीले के मोअज्जिज़ आदमी थे, उन्होंने क़बीले के लोगों में पहुंचकर कहा :-
"_ देखो ! खालिद बिन वलीद एक लश्कर ज़रार ले कर तुम लोगों की तरफ रवाना हो चुके हैं इसलिए बेहतर यही है कि तुम इस्लाम कबूल कर लो और तलहिया का साथ छोड़ दो वरना इस्लामी फौज तुम लोगों को तबाह व बर्बाद कर देगी _,"
★_ यह सुनकर वह लोग मज़ाक उड़ाने लगे, तब हजरत अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु ने सख्त लहजे में कहा :- तुम हो किस ख्याल में, .. जो शख्स तुम्हारी तरफ लश्कर ले कर आ रहा है वह एक बेहतरीन जंगजू है, मैंने तुम्हें समझा दिया अब तुम जानो तुम्हारा काम जाने _,"
तब उन लोगों ने कहा- अच्छा आप ज़रा हजरत खालिद के लश्कर को हमसे रोके रखें, हमारे जो भाई तलहिया के पास बज़ाखा चले गए हैं हम उन्हें बुला ले वरना हमारे मुसलमान होने की खबर सुनकर तलहिया उन्हें कत्ल करा देगा _,"
★_ हजरत अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह बात मान ली और मुका़में सनहा में आए यहां हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु अपने लश्कर के साथ ठहरे हुए थे, उन्होंने आकर कहा- आप ज़रा 3 दिन तक ठहरे रहे .. इस दौरान बड़े-बड़े जंगजू आकर आपके साथ मिल जाएंगे _,"
और फिर यही हुआ क़बीला बनी तै के वह अफराद जो तलहिया के पास बज़ाखा चले गए थे वापस बुला लिए गए, फिर हजरत अदी रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें लेकर हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुए और उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया, साथ ही वह इस्लामी लश्कर में शामिल हो गए, इस तरह हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु की फौज में एक हज़ार जंगजू लोगों का इज़ाफा हो गया,
इसी तरह क़बीला जदीला भी हजरत अदी रज़ियल्लाहु अन्हु की कोशिश से मुसलमान हो गया और हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु की फौज में एक हज़ार का और इज़ाफ़ा हो गया, इस पर हजरत अदी रज़ियल्लाहु अन्हु की खूब तारीफ हुई ।
★_ इस वाक़िए से पता चलता है कि हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु किस क़दर बसीरत के मालिक थे, यह उन्हीं की हिदायत थी कि पहले क़बीला बनू तै की तरफ जाना .. सिर्फ इस हिदायत की वजह से दो हजार अफराद ना सिर्फ यह कि मुसलमान हो गए बल्कि लश्कर में शामिल भी हो गए, अब खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु बजा़खा की तरफ बढ़े, जहां दुश्मन मुकाबले की ज़बरदस्त तैयारियां कर रहा था ।
╨─────────────────────❥ *★_ तलहिया से मुक़ाबला _,*
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने लश्कर से आगे जासूसी की गर्ज़ से अकासा बिन मोहसिन और हजरत साबित बिन अरकम अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हुम को रवाना किया था, रास्ते में इन दोनों को तलहिया का भाई हिबाल मिल गया इन्होंने उसको क़त्ल कर दिया, तलहिया को इसकी इत्तेला मिली तो वह अपने साथियों को लेकर उनकी तलाश में निकला और इन दोनों हजरात को शहीद कर दिया , हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु जब उस मुकाम पर पहुंचे तो अपने दोनों साथियों की लाशों को देख कर सख्त रंजीदा हुए, अब आगे बज़ाखा का मैदान था, तलहिया के साथ उस वक्त ऐनिया बिन मोहसिन अंसारी अपने कबीले के सात सौ बहादुरों के साथ था, इनके अलावा क़बीला बनू क़ैस और बनू असद भी उसके साथ थे ,
★_ आखिर दोनों लश्कर आमने-सामने आ गए, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने पहले उन्हें इस्लाम की दावत दी, वह ना माने तो जंग शुरु कर दी, जबरदस्त जंग हुई, तलहिया अपने खेमे में था, ऐनिया उसके पास आया और बोला- जंग के बारे में कोई वही आई है या नहीं ?
जवाब में उसने कहा - अभी कोई वही नहीं आई तुम जंग करो मैं वही का इंतजार कर रहा हूं _,"
ऐनिया फिर मैदान-ए-जंग की तरह लौट गया, अपने साथियों को लडाता रहा बाक़ी लश्कर भी जंग की आग में कूद चुका था , मुसलमान पूरे जोश व जज्बे से लड़ते रहे, ऐसे में ऐनीया एक बार फिर तलहिया के पास उसके खेमें में आया - हां ! क्या खबर है जिब्राइल आए या नहीं ?
"_अभी नहीं आए, जंग जारी रखो _," वह फिर मैदान-ए-जंग में लौट गया , आखिर लश्कर में शिकस्त के आसार ज़ाहिर होने लगे, वह परेशान होकर तीसरी बार फिर तलहिया के खेमें में आया और पूछा - वही आई या नहीं ?
"_ हां जिब्राइल आए थे , तलहिया ने फौरन कहा ,
तब फिर उन्होंने क्या कहा ?
उन्होंने कहा है, यह लड़ाई तुम्हारे लिए चक्की का पाट साबित होगी, ऐनिया के लिए यह एक ऐसा वाकि़या होगा जिसे वह कभी फरामोश नहीं करेगा _,"
★_ उस वक्त ऐनिया को एहसास हो गया कि यह शख्स झूठा है , उसने मैदान-ए-जंग में जा कर अपने क़बीले के लोगों से कहा- ऐ बनी फजा़रा तलहिया झूठा है इसलिए भाग चलो _,"
अपने सरदार का हुक्म सुनते ही वह भाग निकले , उनके भाग निकलते ही लड़ाई का रंग बदल गया बाक़ी मुरतद पहले ही हौसला हार चुके थे , वह भागते हुए तलहिया के खेमें तक आए और उससे कहा- अब क्या हुक्म है ?
वह फौरन अपने घोड़े पर सवार हुआ अपनी बीवी को भी सवार कराया, घोड़े को ऐंड लगा कर बोला - तुम लोग भी भाग चलो _,"
★_ इस तरह मुरतद दुम दबाकर भागे, मैदान मुसलमानों के हाथ रहा, तलहिया वहां से भाग कर सीधा शाम पहुंचा, कुछ दिनों बाद उसे मालूम हुआ कि क़बीला असद और गतफान दोनों मुसलमान हो गए तो वह भी मुसलमान हो गया, वह बनू कल्ब में आकर रहने लगा, किसी ने उसके बारे में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को बताया, उन्होंने फरमाया कि अब उसके खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता वह मुसलमान हो गया है _,"
हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत में यह आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और आपके हाथ पर बैत की _,
: ★_ तलहिया की शिकस्त के बाद कबीला बनू असद बनू कैस बनू फज़ारा ने इस्लाम कबूल कर लिया, कबीला बनू आमीर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और बोले :- अब हम नमाज़ भी पढ़ेंगे और जकात भी देंगे_,"
गोया उन लोगों ने भी इता'अत क़ुबूल कर ली,
ऐनिया बिन मोहसिन फजा़री और उसके खास साथियों को गिरफ्तार करके मदीना मुनव्वरा भेज दिया गया, मुर्तदों को इबरत्नाक सज़ा दी गई, फतेह की खबर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को दी गई,
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु बज़ाखा में एक माह तक ठहरे रहे, उधर मैदान-ए-जंग से भागे हुए लोग एक औरत" उम्मे ज़मल" के गिर्द जमा हो गए, उम्मे ज़मल की मां उम्मे क़रफा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के ज़माने में एक लड़ाई में गिरफ्तार होने के बाद कत्ल कर दी गई थी, उम्मे ज़मल मुसलमानों से अपनी मां का बदला लेने पर तुली हुई थी, उसने मुसलमानों से इंतकाम के नाम पर लोगों को अपने गिर्द जमा कर लिया था, इन बागियों को लेकर यह औरत हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के मुकाबले पर निकली, उस वक्त यह अपनी मां के ऊंट पर बैठी थी और बहुत फख्रो गुरूर का आलम उस पर तारी था ,
★_ हजरत खालिद को उसके कूच का इल्म हुआ तो खुद उसके मुकाबले पर निकले, जंग शुरू हुई तो तो मुसलमानों ने उम्मे ज़मल के ऊंट को गैर लिया, इस तरह वह मारी गई, उसके ऊंट की हिफाजत के लिए सो सवार मुकर्रर थे, वह भी इस लड़ाई में मारे गए, इस फतह की खबर भी हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को भेजी गई,
★_ आसपास कुछ और लोग मुसलमानों के खिलाफ साजिशें कर रहे थे, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनकी साजिशों को भी खत्म किया, इन लडाइयों में जो बड़े-बड़े सरदार पकड़े गए, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें मदीना मुनव्वरा भेज दिया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उनके साथ नरमी का सुलूक किया, यहां तक कि ऐनिया ने इस्लाम कबूल कर लिया तो उसे रिहा कर दिया गया, तलहिया भी मुसलमान हो गया था , उसे भी माफ कर दिया गया ।
: ★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने आखिरी दिनों में कुछ लोगों को जक़ात वसूल करने की गर्ज़ से भेजा था, यह लोग क़बीला बनू तमीम में मौजूद थे और वहां जकात वसूल कर रहे थे की आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इंतकाल हो गया , अब इन हजरात में एक इख्तिलाफ पैदा हो गया की आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद ज़कात की रकम का क्या करें, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पास मदीना भेजें या यहीं के लोगों ने तक़सीम कर दें ,
★_ इस कबीले बनू तमीम का एक शख्स मालिक बिन नुवेरह था, वह उनका अहम आदमी था, उसने जकात की रकम मदीना भेजने से इनकार कर दिया जबकि आश हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने जिन लोगों को भेजा था उनका कहना था कि ज़कात की रक़म मदीना मुनव्वरा भेजी जाएगी, बस इस बात पर यह शख्स मुसलमानों के खिलाफ हो गया ।
★_ अभी यह इख्तलाफी मसला हल नहीं हुआ था कि इराक के एक इलाके अल - जजी़रा की एक औरत सुजाह बिन्ते हारिस वहां पहुंच गई, यह नबूवत का दावा कर चुकी थी, उसके साथ एक बड़ा लश्कर था उस लश्कर में इराक के बनू तगल्लुब शामिल थे उनके अलावा कबीला रबिया नमर आयाद और शीबान के तजुर्बे कार लोग शामिल थे, खुद सूजाह बनू तमीम से थी, यानी जिस कबीले का मालिक बिन नुवेरा था, सुजाह का ताल्लुक बनू तमीम के साथ-साथ बनू तगल्लुब से भी था और यह सब लोग ईसाई दें, अब चूंकि ईसाइयों और यहूदियों को इस्लाम से दुश्मनी थी इस लिए यह चालाक औरत उन लोगों को इस्लाम के खिलाफ उभारकर ले आई थी, यूं यह औरत पहले से ही मौक़े की तलाश में थी जोंही इसने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात की खबर सुनी अपना लश्कर लेकर मदीना की तरफ चल पड़ी , कहा जाता है कि ईरान के कुछ लोग भी उसके साथ थे ।
★_ अब यह सीधी मालिक बिन नुवेरा के पास पहुंची, वहां पहले ही जकात की रकम के मामले में इख्तिलाफ हो चुका था लिहाज़ा मालिक बिन नुवेरा अपने कबीले के लोगों के साथ सूजाह के लश्कर में शामिल हो गया, दोनों एक हो गए , मालिक बिन नूवेरा ने सूजाह को मशवरा दिया कि अभी मदीना मुनव्वरा पर हमले का वक्त नहीं है बल्कि अभी आसपास के लोगों को अपनी नबूवत का क़ाइल करें उन्हें साथ में लाएं, इस तरह हमारी ताक़त और बढ़ जाएगी, सुजाह ने मालिक बिन नुवेरा का मशवरा मान लिया ,
╨─────────────────────❥ ★_ मुसेलमा कज़्जाब से मुक़ाबला _,*
★_ उधर यमामा के मुसेलमा कज़्जाब ने भी नबूवत का दावा किया था, उसके साथियों में कसरत ऐसे लोगों की थी जो उसे झूठा समझते थे लेकिन दौलत और इक्तीदार के लिए उसके साथ शामिल हो गए थे, सुजाह के बारे में मुसेलमा कज़्जाब को मालूम हुआ तो वह फिक्र बंद हो गया, उसने सोचा अगर सुजाह मेरे साथ शामिल हो जाए तो हमारी ताक़त में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा हो जाएगा ,
★_ उधर सूजाह को भी यही बात सूझी, चुनांचे दोनों में मुलाकात हुई इस तरह दोनों ने शादी कर ली, अब सूजाह की फौज भी मुसेलमा की फौज में शामिल हो गई , उसके झंडे तले 40 हज़ार फौजी जमा हो गए, शादी के बाद सुजाह अपनी कौम में कुछ जरूरी मामलात निपटाने के लिए चली गई लेकिन फिर वापस ना आ सकी, यह बाद में मुसलमान हो गई थी ।
★_ इधर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु तलहिया को शिकस्त दे चुके थे, उन्हें हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की तरफ से हुक्म मिला कि अब तुम यमामा जाकर मुसेलमा का मुक़ाबला करो ,
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु यह हुक्म पा कर आगे बढ़े तो जकात के कुछ मुंकिरीन अपनी-अपनी जकात लेकर उनकी खिदमत में हाजिर हुए और उन्होंने नए सिरे से इस्लाम कुबूल कर लिया, अलबत्ता मालिक बिन नुवेरा ना आया, वह अभी तक कोई फैसला ना कर पाया था, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु से मुकाबला करने की हिम्मत भी नहीं थी इसलिए उसने अपने लोगों को मुंतसिर कर दिया, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु वहां पहुंचे तो मैदान साफ था, उन्होंने ऐलान कर दिया कि जो लोग नमाज़ पढ़ें , ज़कात दें, उन्हें कुछ ना कहा जाए, जो ऐसा ना करें उन्हें सजा दी जाए , इस्लामी लश्कर के कुछ लोग जब मालिक बिन नुवेरा के इलाके में पहुंचे तो उन्होंने उसे क़त्ल कर दिया क्योंकि उसने ज़कात के बारे में कोई ऐलान नहीं किया था ना ज़कात ले कर हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आया था ।
★_ अब इस्लामी लश्कर यमामा की तरफ बढ़ा, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु से पहले एक लश्कर इकरमा रजियल्लाहु अन्हू की क़यादत में मुसेलमा की तरफ रवाना किया था लेकिन उन्हें हिदायत दी थी कि जाकर अभी हमला ना करें, उनकी मदद के लिए आपने दूसरा लश्कर सरहबील बिन हसना की क़यादत में रवाना फरमाया था ,
★_ हजरत इकरमा रजियल्लाहु अन्हु ने जाते ही मुसेलमा के लश्कर पर हमला कर दिया, सरहबील रज़ियल्लाहु अन्हु के लश्कर का इंतजार ना किया, इस तरह उन्होंने मुसेलमा के लश्कर के हाथों शिकस्त खाई क्योंकि मुसेलमा तो उस वक्त तक बहुत ताकत पकड़ चुका था, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को यह इत्तेला मिली तो आप हजरत इकरमा रजियल्लाहु अन्हू पर बहुत नाराज़ हुए और उन्हें एक दूसरे को मुहाज़ पर जाने का हुक्म फरमाया और हजरत सरहबील रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि वही ठहरें और हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु का इंतजार करें ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का हुक्म पाकर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु यमामा की तरफ बढ़े यहां तक कि हजरत सरहबील रज़ियल्लाहु अन्हु से आ मिले, मुसेलमा उस वक्त यमामा के इलाक़े उक़रबा में डेरा डाले हुए था, तारीख की किताबों में उसकी फौज की तादाद 40 हज़ार से 60 हज़ार तक लिखी है ।
★_ दोनों लश्कर एक दूसरे की तरफ बड़े, ज़बरदस्त जंग शुरू हो गई, मोरखीन ने लिखा है कि इस्लाम में यह सबसे पहली शदीद तरीन लड़ाई थी और इसमें मुर्तदों ने हैरतअंगेज हद तक बहादुरी दिखाई, मुसलमानों को पीछे हटते देखकर उनका हौसला और बढ़ गया लेकिन जल्द ही मुसलमानों ने खुद को संभाल लिया, अब जंग घमासान होने लगी, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी फौज को हुक्म दिया- हर दस्ता अलग अलग होकर लड़े _,"
★_मुसेलमा को उसके मुहाफिज़ों ने चारों तरफ से घेर रखा था और वह पूरी तरह उसकी हिफाज़त कर रहे थे, उस वक्त हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने महसूस कर लिया कि जब तक मुसेलमा और उसका हिफाज़ती दस्ता सलामत है उन लोगों को शिकस्त नहीं दी जा सकती, चुनांचे उन्होंने एक ज़ोरदार नारा लगाया और उस दस्ते पर टूट पड़े उनकी तलवार बिजली की तरह हरकत कर रही थी और मुसेलमा भागने लगा , उसके दस्ते से किसी ने कहा - यह क्या.. मुसेलमा तो भाग रहा है , तू तो हमसे फतेह और कामरानी का वादा करता था , वह फतेह कहां है ?
यह सुनकर भी वह ना रुका, खुद तो भाग रहा था लेकिन अपनी फौज से कह रहा था - अपने हसब नसब के लिए लड़ो _,"उसकी बात का उन पर कहां असर होता जबकि खुद भाग रहा था नतीज़ा यह हुआ कि फौज के पांव उखड़ गए , उनके पीछे एक बहुत बड़ा किला नुमा बाग था, मुसेलमा और उसकी सारी फौज उस बाग में दाखिल हो गई और दरवाज़ा बंद कर लिया ।
★_ उस बाग के गिर्द बहुत मजबूत चारदीवारी थी यह बाग दरअसल मुसेलमा का किला था, मुसेलमा खुद को यमामा का रहमान कहता था इसी तरह उस बाग का नाम भी रहमान बाग था, उस क़िले नुमा बाग का दरवाज़ा बंद होने के बाद मुसलमानों का लश्कर वहां पहुंचा, उन्होंने बाग को घेरे में ले लिया, अब सवाल यह पैदा हुआ कि बाग के अंदर किस तरह दाखिल हों, उस वक्त हजरत बरा बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक अनोखी तजवीज़ पेश की, उन्होंने कहा- मुसलमानों तुम यूं करो कि मुझे मिलकर उठाओ और झूला देकर किले की दीवार से ऊंचा उछाल दो मैं दूसरी तरफ जाकर गिरूंगा और इंशा अल्लाह दरवाजा खोल दूंगा _,"
★_ मुसलमानों ने बार-बार इंकार किया और उन्होंने इसरार किया, आखिर मजबूर होकर मुसलमानों ने उन्हें अपने नेजो़ पर उठाया और ऊपर की तरफ उछाल दिया, यह दीवार के ऊपर से होते हुए बाग के अंदर एन दरवाज़े के पास गिरे, वहां अनगिनत दुश्मन मौजूद थे यह जो उनके ऊपर गिरे तो वह बदहवास हो गए , उन्होंने खयाल किया कि ना जाने उन पर क्या बला आ गिरी, लिहाज़ा घबराकर इधर उधर हो गए, हजरत बरा बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु के लिए इतना मौक़ा ही काफी था उन्होंने फौरन उठकर दरवाज़ा खोल दिया, मुसलमान बाग के अंदर दाखिल हो गए, इस तरह एक बार फिर घमासान की जंग छिड़ गई, लाशों के अंबार लग गए ।
★_ ऐसे में हजरत वहशी रज़ियल्लाहु अन्हु ने दम दिखाया, यह हजरत जुबेर बिन मु'तम के गुलाम थे, गज़वा उहद में उनके हाथों आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के चाचा हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु शहीद हुए थे, उसके बाद यह मुसलमान हो गए थे , यह नेज़ा फैंकने में बहुत माहिर थे और अपनी सारी महारत से काम लेकर इन्होंने ताक कर हजरत हमजा रज़ियल्लाहु अन्हु को नेजा़ मारा था, आज उसी महारत से काम ले कर इन्होंने मुसेलमा कज़्जाब पर नेज़ा फैंका , उस वार से मुसेलमा जहन्नम रसीद हो गया और उसके लश्कर में भग दड़ मच गई , वह सर पर पांव रखकर भागे ।
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने मैदान ए जंग का मुआयना किया और लाशों के ढेर में पड़ी मुसेलमा की लाश को देखकर इतमिनान जाहिर किया, उस रोज़ से उस बाग का नाम मौत का बाग मशहूर हो गया, मुसेलमा के लश्कर के 10 हज़ार से ज़्यादा आदमी मारे गए जबकि मुसलमानों में से 12 सौ शहीद हुए।
★_ मुरतदों के साथ जितनी लड़ाइयां लड़ी गई यह उन सबमे बड़ी और सख्त जंग थी, इस जंग में बड़े-बड़े नामूर सहाबा शहीद हुए लेकिन चूंकि मुसेलमा उस वक्त इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन था और उसके खिलाफ यह फैसलाकुन जंग थी इसलिए उस जंग के बाद मुसलमानों के कदम जजी़रतुल अरब में जम गए ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जो 11 लश्कर तरतीब दिए थे उनमें से एक लश्कर का सालार हजरत अला बिन हज़रमी रज़ियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर किया था उन्हें आपने बहरेन की तरफ रवाना फरमाया था , बहरेन ईरानी हुकूमत का इलाक़ा था यह एक रेगिस्तानी इलाका था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपनी जिंदगी में बहरेन के सरदार मंज़र बिन सादी को खत के जरिए इस्लाम की दावत दी थी इस दावत के नतीजे ने मंजर और बहरेन के सदर मुका़मे हिज्र का गवर्नर मरजबान मुसलमान हो गए थे उनके साथ जितने कबीले आबाद थे उन सब ने भी इस्लाम कुबूल कर लिया था, यह वाक़िआ 8 हिजरी का है।
★_ आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की वफात के फौरन बाद मंज़र बिन सादी का भी इंतकाल हो गया अब दूसरे लोगों की देखा देखी बहरेन के लोग भी इस्लाम से फिर गए , वहां एक सहाबी हजरत जारूद बिन बसर रज़ियल्लाहु अन्हु थे, यह कुछ मुद्दत हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की सोहबत में रहे थे इन्होंने क़बीला अब्दे क़ैस को फिर से इस्लाम कुबूल करने के लिए दावत दी तो उसने इस्लाम कबूल कर लिया, बाक़ी लोग बनु बकर वगैरह मुरतद ही रहे , यही वजह थी कि हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अला बिन हज़रमी रज़ियल्लाहु अन्हु को उकी तरफ रवाना फ़रमाया,
★_ ये उन दिनों की बात है जब हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु यमामा की जंग से फारिग हुए थे, हजरत अला बिन हज़रमी रज़ियल्लाहु अन्हु अपने लश्कर को लिए एक सेहरा से गुजर रहे थे की शाम हो गई, उन्होंने वहीं ठहरने क्या प्रोग्राम बनाया ताकि रात के वक्त सेहरा में रास्ता ना भूल जाएं, अब वहां एक अजीब इत्तेफाक हुआ, जिन ऊंटों पर खाने-पीने का सामान लदा हुआ था वह बिदक कर भाग निकले और मुसलमानों के पास खाने-पीने को कुछ ना रहा, अब तो लश्कर बहुत परेशान हुआ, सेहरा में खुराक ना हो तो जान पर बन जाती है, उन्हें अपनी मौत का यक़ीन सा हो गया एक दूसरे को वसीयते करने लगे, ताहम हजरत अला बिन हज़रमी रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें तसल्ली दी और फरमाया :- ऐ लोगों ! क्या तुम अल्लाह के रास्ते में नहीं हो, यकी़न करो अल्लाह तुम जैसे लोगों को रुसवा और ज़लील नहीं करेगा _,"
★_ इस्लामी फौज जब सुबह की नमाज से फारिग हुई तो दूर से उन्हें पानी की चमक नज़र आई, रेगिस्तान में जब ऐसी चमक नज़र आए तो यही ख्याल किया जाता है कि वहां पानी है लेकिन वहां जाने पर पता चलता है कि रेत की चमक है की पानी की नहीं, इन्होंने भी यही ख्याल किया, ताहम फौज के हर अव्वल दस्ते ने आगे जाकर देखने का फैसला किया, वहां पहुंचे तो वह पानी ही था, अब तो सब के सब बहुत खुश हुए , सब ने पानी पिया गुस्ल किया और पानी अपने मशक़ीजों में भर लिया, सूरज ज़रा बुलंद हुआ तो ऊंट भी इधर उधर से उनके पास आ गए , मुसलमानों की खुशी की इंतिहा ना रही, अब लश्कर ताज़ा दम होकर आगे रवाना हुआ और बहरेन मुकाम पर पहुंच गया ।
★_ बहरेन की फौज के सालार का नाम मुत'म बिन जुबेर था बहरेन के लश्कर की तादाद बहुत ज्यादा थी, एक रात उस लश्कर में शोरगुल की आवाज सुनाई दी, हजरत अला बिन हज़रमी रज़ियल्लाहु अन्हु ने मालूमात हासिल करने के लिए अपने चंद फौजी रवाना किये ,उन्होंने आकर बताया कि ईरानी सिपाही शराब पीकर नशे में शोर मचा रहे हैं, यह सुनते ही हजरत अला रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी फौज लेकर उन पर टूट पड़े, बहरेन का लश्कर बदहवास हो गया, बहुत से कत्ल हो गए, बेशुमार गिरफ्तार हुए और बहूत से भाग निकले, मुत'म भी मारा गया , भागने वाले कश्तियों में सवार होकर दारेन पहुंच गए।
★_ दारेन एक जजी़रा था यहां ईसाई आबाद थे, हजरत अला रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनका पीछा करना चाहा लेकिन मुसलमानों के पास कश्तियां नहीं थी, तब हजरत अला बिन हज़रमी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने मुजाहिदीन से कहा :- मुसलमानों ! कुछ खौफ ना करो, जिस अल्लाह ने तुम्हारी खुश्की में मदद की है वही समंदर में भी तुम्हारी मदद करेगा _,"
★_ इन अल्फ़ाज़ के बाद तमाम लश्कर ने अल्लाह से दुआ की, निहायत आजिज़ी से गिड़गिड़ाए और अपने घोड़े खच्चर और यहां तक कि गधे तक समंदर में डाल दिए, इस तरह इस्लामी लश्कर ने समंदर पार कर लिया और जजी़रा दारेन के साहिल पर पहुंच गए, अल्लामा इक़बाल ने शायद ऐसे ही किसी मौक़े के लिए यह शेर कहा था :-
*"_ दस्त तो दस्त दरिया भी ना छोड़े हमने,*
*"_ बहरे जुल्मात में दौड़ा दिए घोड़े हमने _,"*
★_ अब यहां भागने वालों को भी किसी और तरफ से भागने का रास्ता नहीं था इसलिए वह एक बार फिर मुसलमानों के मुक़ाबले में जम गए, आखिर मुसलमानों को फतह हुई, इस जंग में बेहद माले गनीमत हाथ आया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को फतह की खुशखबरी का पैगाम पहुंचा दिया गया ।
★_ नताइज के ऐतबार से यह जंग यमामा की जंग से ज़्यादा अहम थी इसकी वजह यह थी कि यमामा में सिर्फ एक क़ौम से जंग थी जबकि बहरेन चूंकि खलीज फारस पर वाक़े था और ईरान की हुकूमत के मातहत था इसलिए यह जंग किसी एक क़ौम से नहीं थी बहुत सी क़ौमें यहां थी, उन लोगों में यहूदी ईसाई आतिश परस्त भी थे, जंग का यह नतीज़ा निकाला कि इराक़ की फतह की राह हमवार हो गई ।
╨─────────────────────❥ ★_इराक़ की तरफ इस्लामी लश्कर _,*
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु मुकम्मल तौर पर मुरतदों के खिलाफ कामयाबी हासिल कर चुके तो आपने बेरूनी दुश्मनों की तरफ तवज्जो दी, उस वक्त दो बड़ी ताकतें रोम और ईरान इस्लाम की दुश्मन थी, रोम के लोग ईसाई थे जबकि ईरानी लोग आग को पूजते थे , यह मजूसी कहलाते थे, उस वक्त पूरा शाम रोमी हुकूमत में शामिल था और इराक ईरानी हुकूमत का हिस्सा था, इन दोनों हुकूमतों की सरहदें अरब में मिल जाती थी, यह हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की हिम्मत और जुर्रत थी कि एक ही वक्त में दोनों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की ।
★_ ईरानियों को अपनी ताकत पर बहुत नाज़ था, उनका ख्याल था कि उन्हें कोई शिकस्त नहीं दे सकता, मुसलमानों को तो वह कुछ समझते ही नहीं थे, हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम ने अपनी जिंदगी के आखिरी हिस्से में आसपास के मुल्कों के बादशाहों को खुतूत के ज़रिए इस्लाम का पैगाम भेजा था, एक खत आपने ईरान के बादशाह खुसरो परवेज को भी इरसाल फरमाया था ।
★_ इस बदबख्त ने आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का खत पढ़े बगैर फाड़ दिया था और गुस्से में आकर यमन के गवर्नर को यह पैगाम भेजा था - जिस शख्स ने मुझे यह खत लिखा है उसे गिरफ्तार करके मेरे पास भेज दो_,"
जब हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को यह इत्तेला मिली कि उसने आपका खत टुकड़े टुकड़े कर दिया है तो इरशाद फरमाया :- अल्लाह उसके मुल्क को भी टुकड़े-टुकड़े कर देगा_,"
★_ फिर हुआ यह कि खुसरो परवेज को उसके बेटे ने हुकूमत के लालच में कत्ल कर दिया, उसके बाद ईरानी आपस में लड़ने लगे, उनकी सरहदों पर अरब क़बीले आबाद थे, यह उन पर भी ज़ुल्म और ज्यादतियां करते थे, जब हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु मुरतदों को कुचलने में कामयाब हो गए तो हजरत मुसना बिन हारिसा उनकी खिदमत में हाजिर हुए, उन्होंने खलीफा ए रसूल को ईरान के हालात बताएं, जो जुल्मो सितम वो तोड़ रहे थे उसकी तफसीलात बताइ और खुद उन्होंने ईरान के खिलाफ जो कार्यवाही अब तक की थी उनकी तफसील भी सुनाई और आखिर में मदद की दरख्वास्त की ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक का इरादा पहले ही यह था कि इस्लामी दुश्मन ताकतों के खिलाफ लड़ाई शुरू की जाए चुनांचे आपने हजरत मुसना बिन हारिसा से फरमाया - तुम वापस जाओ और सरहद के क़रीब आबाद सारे अरब क़बीलों को अपने साथ मिलाने की कोशिश करो , हम तुम्हारी मदद के लिए जल्द फौज भेज रहे हैं _,"
: ★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा :- फौरन उबला की तरफ रवाना हो जाओ और मुसलमानों को साथ मिलाकर ईरान के जा़लिम मजूसियों के खिलाफ लड़ाई शुरू करो_,"
हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त यमामा मे थे, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का हुक्म मिलते ही वह 10 हज़ार मुहाजिरीन के साथ इराक़ की तरफ बढे, यह वाक़या १२ हीजरी का है ,
★_ पर इस मौक़े पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को यह हिदायात दी :-
१_ इराक़ की सर ज़मीन पर पहुंचकर लोगों की दिलजोई करें, अल्लाह की तरफ उन्हें दावत दे, अगर उस दावत को क़ुबूल कर लें तो ठीक वरना उनसे जिज़्या तलब करें, जिज़्या देने से भी इनकार करें तो फिर उनसे जंग करें,
२_जो लोग साथ जाने के लिए तैयार ना हो उन पर जबर ना करें,
३_जो लोग मुरतद हो गए थे लेकिन फिर मुसलमान हो गए उनसे किसी किस्म की मदद तलब ना करें,
४_जो मुसलमान पास से गुजरे उन्हें साथ मिला लें,
५_ अपनी जंग का आगाज़ "उबला" से करें ।
★_ यह आखरी हुक्म हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने इसलिए दिया था कि उस ज़माने में शाहे ईरान का सारा जंगी सामान उबला में मौजूद था, गोया उसकी फौजी छावनी थी, यह शहर बंदरगाह भी था इसके ज़रिए अरब और हिंदुस्तान के दरमियान तिजारती ताल्लुका़त क़ायम थे ।
★_ इस्लामी लश्कर इराक़ की तरफ बढ़ा, उस वक्त इराक़ का गवर्नर हुरमुज़ ईरान के बहुत बड़े पहलवानों में शामिल था, यह बहुत ज़ालिम भी था उसके जुल्मों से तंग आकर हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु ने ईरानी सरहदों पर गोरिल्ला कार्यवाही शुरू की थी ।
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु इराक़ की हुदूद में दाखिल हुए तो हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु आठ हज़ार फौज के साथ उनसे आ मिले , अब हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़ौज को तीन हिस्सों में तक्सी़म किया, एक हिस्से का सरदार हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर किया, दूसरे हिस्से का सालार हजरत अदी बिन हातिमताई रज़ियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर किया और तीसरा हिस्सा खुद अपने पास रखा ,
सबसे आगे हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु का लश्कर रवाना हुआ उसके 2 दिन बाद हजरत अदी बिन हातिमताई रज़ियल्लाहु अन्हु का और 3 दिन बाद हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु का लश्कर रवाना हुआ ।
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हुरमुज़ के नाम एक खत भी लिखा जिसमें फरमाया :- तू इस्लाम ले आ महफूज़ रहेगा वरना जिज़्या अदा कर, यह भी मंजूर नहीं तो जंग के लिए तैयार हो जा, मैं तेरी तरफ उन लोगों को ले आया हूं जो मौत को इतना महबूब रखते हैं जितना तुम जिंदगी को _,"
★_ हुरमुज़ को खत मिला, साथ ही उसे मुसलमानी फौज की कार्यवाही की इत्तेला मिली तो उसने ईरान के बादशाह यज़्दगर्द को यह तमाम हालात लिख भेजें फिर अपना लश्कर लेकर तेज़ी से हज़ेर के मुकाम की तरफ बढ़ा, वहां पहुंचकर उसने पानी के पास पढ़ाव डाल दिया, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु का लश्कर वहां पहुंचा तो उन्हें यह परेशानकुन खबर मिली कि हुरमुज़ ने पानी पर कब्ज़ा कर लिया और हमारे पास पानी नहीं है ।
★_ हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने लश्कर के साथ मिलकर अल्लाह से दुआ की, बस फिर क्या था बारिश शुरू हो गई और जल थल हो गया , दोनों फोजें आमने सामने हुई, ज़बरदस्त जंग हुई, मुसलमानों को फतेह हुई , हुरमुज़ मारा गया, हुरमुज़ के मारे जाते ही ईरानी हौसला हार बैठे, वह भाग खड़े हुए और दरिया ए फरात के बड़े पुल पर पहुंचकर दम दिया, उस मुका़म पर बाद में शहर बसरा आबाद हुआ, बेतहाशा माले गनीमत हाथ आया , उनमें एक हाथी भी था, मदीना मुनव्वरा के लोगों ने ज़िंदगी में कभी हाथी नहीं देखा था, यह उनके लिए अजीब जानवर था ।
★_ इस जंग से फारिग होकर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु हीरा की तरफ बढ़े , यह खलीज़ फारस और मदाइन के दरमियान वाक़े है , उधर यज़्दगर्द को ईरानियों की इबरतनाक शिकस्त की खबर मिली तो उसने लश्कर रवाना किया, फिर उसकी मदद के लिए उसके पीछे एक और लश्कर रवाना किया, उन्होंने रास्ते में मिलने वाले क़बाइल को भी साथ मिला लिया, इस तरह उन दोनों लश्करों में मुसलमानों के खिलाफ बहुत से ईसाई शामिल हो गए, उन सब ने मिलकर दलिजा के मुकाम पर पड़ाव डाला, दलिजा दरिया ए दजला और फरात के मिलने की जगह पर वाक़े था ।
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को ईरानियों की तैयारियों की इत्तला मिली तो पूरे साजो सामान के साथ रवाना हो गए, यह जंग आसान नहीं थी, आखिर जंग शुरू हुई और इस्लामी लश्कर को फतह हुई ।
★_ जंग के बाद हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस इलाके के लोगों के साथ बहुत नरम सुलूक किया, उन सब को अमान दे दी ।
★_ उस वक्त ईरानी हुकूमत की तरफ से हीरा का गवर्नर अज़ाज़िया था, उसे इस्लामी लश्कर की आमद का पता चला तो अपना लश्कर लेकर आगे बढ़ा साथ ही उसने अपने बेटे को हुक्म दिया - इस्लामी लश्कर दरिया पार करके इस तरफ आएगा तुम दरिया का पानी काट दो _,"
★_ इस तरह दरिया का पानी खुश्क होता चला गया और इस्लामी लश्कर की कश्तियां जमीन से लग गई, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु अपना एक दस्ता लेकर कश्तियों से उतरे और आजा़जिया के लड़के को क़त्ल कर दिया ।
★_ ऐसे में आजा़जिया को ईरान के शहंशाह के मरने की खबर मिली, उसके हाथ-पांव फूल गए वह भाग निकला, हीरा के लोग क़िला बंद हो गए , इस्लामी लश्कर ने हीरा शहर को घेर लिया, आखिर हीरा के लोग सुलह पर मजबूर हो गए, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक लाख नब्बे हजार दिरहम सालाना जिज़्या पर सुलह की और फतेह की खबर मदीना मुनव्वरा भेज दी ।
★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी जिंदगी में एक बार इत्तेला मिली थी कि दोमता अलीजुंदुल में दुश्मनों की एक बड़ी फौज जमा हो रही है, यहां अकीदर नामी शख्स को क़ैसर की तरफ से दोमता अलीजुंदुल का हाकिम मुकर्रर किया गया था, यह एक अरबी सरदार था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने 9 हिजरी माह शव्वाल में उसके मुकाबले में हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को रवाना फरमाया था ।
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु उसे गिरफ्तार करके मदीना मुनव्वरा ले आए थे और यह मुसलमान हो गया था, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उसे दोमता अलीजुंदुल के लोगों पर मुकर्रर फरमा दिया था, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद यह मुर्तद हो गया था।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उसकी तरफ हजरत अयाज़ बिन गनम रज़ियल्लाहु अन्हु को रवाना फरमाया था, यहां तक कि उस मुहिम में एक साल गुज़र गया लेकिन फतेह ना कर सके, अब उन्होंने खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को मदद का पैगाम भेजा, पैगाम मिलते ही हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ने दोमता अलीजुंदुल का रुख किया, उन्होंने 300 मील का सफर 10 दिन से भी कम मुद्दत में तय किया और दोमता अलीजुंदुल पहुंच गए ।
★_ अकीदर चूंकि पहले ही हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की जंगी सलाहियतों से वाकिफ था इसलिए उसने दूसरे क़बाईल को सुलह का मशवरा दिया उन्होंने इनकार किया तो यह उन से अलग होकर निकल भागा, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को उसके फरार होने की इत्तेला मिली तो उसके पीछे एक दस्ता रवाना करवाया, मुजाहिदीन उसे गिरफ्तार करके लाए ।
★_ अब दुश्मन फौज की सिपहसालारी जोदी नामी सरदार के हाथ में थी उसने अपनी फौज को दो हिस्सों में तक्सीम किया एक हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु की तरह बड़ा तो दूसरा हजरत अयाज़ बिन गनम रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ, ज़बरदस्त जंग हुई, आखिर मुसलमानों को फतह हुई ।
★_ खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु अभी दोमत अलजुंदुल ही में थे कि इराक़ के अरब क़बाइल ने उनकी गैरमौजूदगी में बगावत कर दी, शिकस्त खाए हुए लोग भी उनके साथ शामिल हो गए । हजरत का़अका़अ रज़ियल्लाहु अन्हु अगरचे वहां मौजूद थे लेकिन उनके साथ बहुत थोड़ी फ़ौज थी इसलिए उन्होंने जंग करना मुनासिब न समझा और हजरत खालिद रजियल्लाहू अन्हू का इंतजार करने लगे, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु भी इत्तेला मिलते ही उस तरफ रवाना हो गए, हीरा पहुंचकर उन्होंने बगावत करने वालों के खिलाफ हजरत का़अका़अ रज़ियल्लाहु अन्हु को फौज देकर भेजा, उस जंग में ईरानी सरदार रोजमहर और रोजि़या मारे गए, बगावत की आग भड़काने में यह दोनों आगे थे । यह जंग हसीद के मुकाम पर लड़ी गई ।
★_ उस मुकाम से भागकर ईरानी खनाफस के मुकाम पर जमा हुए इस्लामी लश्कर उस तरफ बढ़ा तो यह लोग वहां से भाग निकले, अब यह लोग एक और मुकाम पर जमा हो गए, उस जगह का सरदार हुज़ैल था, इस्लामी फौज ने उन सब पर कार्यवाही शुरू कर दी ।
★_ यह सारा फितना बरपा करने वाले लोग दरअसल बनू तुगलुब के थे यही लोग दूसरों को जंग पर उभार रहे थे इसलिए हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें सबक सिखाने का पक्का इरादा कर लिया, उन्होंने हसत का़अका़अ और अबु लैला रज़ियल्लाहु अन्हुम को फौज देकर मुख्तलिफ रास्तों पर बनु तुगलुब की तरफ रवाना किया और दोनों के हमले का वक्त बता दिया, फिर खुद भी रवाना हुए, इस तरह बनु तुगलुब पर एक ही वक्त में अचानक तीन तरफ से हमला किया गया, इस अचानक हमले से वह एक दूसरे को खबर भी ना दे सके ।
★_ इन तमाम मुहिमात से फारिग होकर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़राज़ का रुख किया, यह रोमियो का इलाका़ था, रोमियों ने इस्लामी लश्कर को देखा तो उनके गुस्से की हद ना रहे ।
।
╨─────────────────────❥ *शाम की मुहिमात की तैयारियां _,*
★_ फ़राज़ इराक और शाम की सरहद पर दरिया फरात के शुमाली हिस्से में वाक़े था, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु इराक की बगावत को कुचलने के बाद फराज़ पहुंचे, आपने इस्लामी लश्कर को दरिया फरात के किनारे पढ़ाव डालने का हुक्म दिया, अब रमजान का महीना शुरु हो गया, यह पूरा महीना उनका वहीं गुज़रा, फिर 15 ज़िक़ा'दा 12 हिजरी तक दोनों फौजें इसी तरह आमने सामने पड़ी रहीं, दोनों फौजों के दरमियान में दरिया हाइल था।
★_ आखिर रोमियों ने पहल की और दरिया पार करके उस तरफ आ गए और जंग शुरू हो गई, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने लश्कर को हुक्म दिया - "_ दुश्मन की फौज मुंतशिर ना होने दें बल्कि उन्हें चारों तरफ से घेर कर लड़ो _,*
मुसलमानों ने इस पर अमल किया और रोमियो और ईसाइयों के अज़ीम लश्कर दरहम बरहम हो गए ।
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की इन जंगों का ज़माना मोहर्रम 12 हिजरी से सफर 13 हिजरी तक 1 साल 1 माह बनता है, इस मुख्तसर मुद्दत में उनके हाथ पर जो फुतूहात हुई वह जंगों की तारीख में एक अजूबा वाकिया है इन जंगों का दायरा खलीज फारस से लेकर शाम की सरहद तक वसी है ।
★_ फिर ये जंगे किसी एक क़ौम से नहीं लड़ी बल्कि उनमें ईरानी, रोमी और अरब के क़बाइल सब ही शामिल थे, हर मौक़े पर तादाद और असलेह की ज्यादती उन्हें हासिल थी और इस्लामी लश्कर की तादाद हर मौके पर उनके मुकाबले पर बहुत कम रही, और साजो सामान भी बहुत कम था, इन तमाम बातों के बावजूद अल्लाह ताला ने हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ पर इस्लामी लश्कर को अज़ीमुश्शान फुतूहात से नवाजा़, इन तमाम मोरकों में किसी एक में भी मुसलमानों को शिकस्त नहीं हुई ।
★_ लुत्फ की बात यह है कि हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु किसी इलाके़ को फतेह करते ही आगे नहीं चल देते थे बल्कि फतेह किए हुए इलाकों का बाका़यदा बंदोबस्त करते थे वहां का हाकिम मुकर्रर फरमाते थे, लोगों के साथ निहायत अच्छा शुरू किया जाता था, इस्लामी तालीमात से उन्हें रोशनाश कराया जाता था और वह इस्लामी तालिमात और खूबियों के बहुत जल्दी दिलदादा हो जाते थे।
★_ इस लिहाज़ से हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु की दुनिया के नक्शे पर एक अजी़म तरीन फातेह बनकर सामने आए और उन जैसी मिसाल फिर कोई पेश ना कर सका , मुसलमानों पर अल्लाह ने फुतूहात के दरवाज़े खोल दिए थे, उनके हौसले बहुत बुलंद थे उनके लिए शाम की तरफ बढ़ना बहुत आसान हो गया था ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने कैसरे रोम के खिलाफ एलान-ए-जंग से पहले उसके नाम खत रवाना फरमाया, उस खत के ज़रिए आप ने सबसे पहले उसे इस्लाम कबूल करने की दावत दी, उस पैगाम के जवाब में कैसरे रोम ने इस्लाम कबूल करने से इनकार किया ।
★_ तमाम तैयारियां मुकम्मल हो गई तो फौज की रवानगी का वक्त आ गया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने सारे लश्कर को चार हिस्सों में तक़सीम फरमाया, उन चार लश्करों में सबसे बड़ा लश्कर हजरत यज़ीद बिन अबु सुफियान रजियल्लाहु अन्हु का था, दूसरे लश्कर के सालार हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु थे, तीसरा लश्कर हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का था और चौथा लश्कर हजरत शरज़ील रज़ियल्लाहु अन्हु का था।
╨─────────────────────❥ *★_ शाम की मुहिमात _,*
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु यजीद बिन अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु को हुक्म फरमाया - तुम तबूक के रास्ते दमिश्क पहुंचों _,"
हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को फिलिस्तीन के लिए मुकर्रर किया, उन्हें हुक्म दिया - तुम ईला के रास्ते फिलिस्तीन जाओ _," बाक़ी लश्कर भी आपने उनके पीछे ही रवाना फरमा दिए ।
★_ शाम के मुहाज़ पर 12 हजार का लश्कर काफी नहीं हो सकता था, क़ैसर ने बहुत बड़े पैमाने पर तैयारियां की थी इसलिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने भी इस्लामी लश्कर के आगे पीछे लश्कर रवाना करने का सिलसिला जारी रखा, इस तरह इस्लामी लश्कर की तादाद तीस हजार हो गई ।
★_ इस इस्लामी लश्कर से पहले हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को कैसर की तैयारियों के सिलसिले में इत्तेलात मिली तो आपने हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु को तैयमा की तरफ रवाना फरमाया था, तैयमा शाम की सरहद पर वाक़े था , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें रवाना करते वक्त यह हिदायत दी थी - तुम वहां पहुंचकर आसपास के लोगों को साथ मिलाने की कोशिश करो ... और जब तक मेरा हुक्म ना पहुंचे उस वक्त तक जंग ना करो _,"
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने दरअसल उन्हें सरहद की हिफाज़त के लिए पहुंचाया था की क़ैसर की तरफ से हमला हो जाए तो रोकथाम की जा सके, उन्होंने कैसर की फौजों का इतना बड़ा इस्तेमा देखा तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को तफसीलात लिख भेजी, अभी इस्लाम लश्कर वहां नहीं पहुंचा था और हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु इतने बड़े लश्कर को नहीं रोक सकते थे, चुनांचे हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हुक्म भेजा - आगे बढ़ो लेकिन दुश्मन से लड़ते वक्त अंदर तक ना घुसते चले जाना ऐसा ना हो कि दुश्मन तुम्हें पीछे से दबा लें _,"
हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस हुक्म पर तवज्जो ना दी और जोश में आगे बढ़ते चले गए ।
★_ रोमी फौज का अफसर बाहान था उसने इस्लामी लश्कर को बढ़ते देखा तो फौरन अपने लश्कर का रुख तब्दील कर दिया, यह उसकी जंगी चाल थी, हजरत खालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु आगे बढ़ते चले गए और बाहान ने पीछे से उनको घेर लिया, उनके लिए पीछे हटना भी मुमकिन ना रहा, मैदान-ए-जंग से उनके पांव उखड़ गए , मैदान-ए-जंग से पसपा हो गए और मदीना मुनव्वरा के करीब एक मुकाम जवाउलमरूह पर पहुंच गए ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को यह इत्तेला मिली तो उन्हें बहुत रंज पहुंचा, यह वाक़या उस वक्त पेश आया जब हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने 30 हजार का लश्कर सरहदों की तरफ रवाना फरमा दिया था, चारों लश्कर अलग-अलग थे लेकिन उनके सालारो के आपस में राब्ते थे, आपस में मशवरों का सिलसिला बराबर जारी था, कैसर को इन चारों लश्करो का इल्म हो चुका था उसके पास फौज बेशुमार थी इसलिए उसे पूरी तरह यकीन था कि मुसलमान उसका मुकाबला नहीं कर सकेंगे ।
★_ तैयारियों के सिलसिले में क़ैसर खुद हिम्स आया यह शहर शाम की बहुत बड़ी फौजी छावनी थी, उसने भी यहां पहुंचकर अपने लश्कर के 4 हिस्से किए एक लश्कर का सालार अपने भाई को मुकर्रर किया, उस लश्कर की तादाद 90 हज़ार थी उसके मुकाबले में हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का लश्कर था जिनकी तादात साढ़े सात हजार के करीब थी ।
★_ क़ैसर के दूसरे लश्कर की तादाद 60 हज़ार थी उसके मुकाबले में हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु का लश्कर था जिनकी तादाद भी साढ़े सात हजार के करीब थी, तीसरे लश्कर की तादाद 90 हज़ार थी यह लश्कर हजरत यजीद बिन अबी सुफियान रजियल्लाहु अन्हु के मुकाबले में आया जिनकी तादाद भी साढ़े सात हजार थी, कैसर ने चौथा लश्कर हजरत शरज़ील रज़ियल्लाहु अन्हु के मुकाबले पर भेजा ।
★_ मुसलमानों को रोमियो की इन ज़बरदस्त तैयारियों का इल्म हुआ और अपनी कम तादाद का अंदाजा हुआ तो फिक्रमंद हो गए, इन हालात की तफसील मदीना मुनव्वरा भेजी गई, वहां से हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का हुक्म आया :- अब तुम सब अलग-अलग ना लड़ो बल्कि एक जगह जमा हो जाओ ... यानी चार की बजाय अपना एक लश्कर बना लो, अपनी कम तादाद का ग़म ना करो , तुम अल्लाह के दीन के मददगार हो वह ज़रूर तुम्हारी मदद करेगा, तुम सब मिलकर यरमूक में जमा हो जाओ _,"
★_ यरमूक दरअसल एक दरिया का नाम है, यह दरिया जौरान के पहाड़ों से निकलता है, यरमूक का दरिया जहां उर्दुन के दरिया से मिलता है वहां से 30-40 मील के फासले पर वाक़ूसा नामी मुकाम है यह बहुत वसी इलाका़ है तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है, क़ैसर की फौज ने इसी मुकाम पर पड़ाव डाल दिया था, मुसलमान भी दरिया को पार कर के रोमियों के मुक़ाबिल पहुंच गए, गोया अब रोमी तीन तरफ से पहाड़ों में घिरे हुए थे और उनके सामने जो रास्ता था वहां इस्लामी लश्कर पड़ाव डाल चुका था, इस तरह रोमी लश्कर पहाड़ों की इस वादी में घिर कर रह गया ।
★_ यह कु़दरती सूरते हाल देखकर हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु खुश हुए और फरमाया :- मुसलमानों ! तुम्हें मुबारक हो , रोमी लश्कर घेरे में आ गया _,"
★_ दोनों लश्कर 2 माह तक एक दूसरे के आमने सामने पड़े रहे, इस दौरान मामूली झड़पें होती रही पूरी तरह जंग शुरू हो ना हो सकी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को इन हालात की खबर मिली तो आपने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा कि इराक़ में हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना क़ायम मुका़म मुकर्रर करके यरमूक पहुंचे _,
★_ उस वक्त हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ईरान के दारुल हुकूमत मदाइन पर हमले की तैयारी कर रहे थे, खलीफा ए रसूल का हुक्म पा कर आप फौरन यरमूक की तरफ रवाना हो गए ,
★_हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को जो हुक्म भेजा था उसके अल्फाज़ यह थे :- "_तुम रवाना हो जाओ यहां तक कि यरमूक में जो मुसलमान जमा है उनसे जा मिलो क्योंकि वह गमज़दा है और जब तुम वहां पहुंच जाओ तो फिर लश्कर की कमान तुम ही संभालो _,"
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूरी इस्लामी फौज का जायज़ा लिया और उसकी सफबंदी की, एक एक दस्ते के पास खुद गए , उनके सामने पुरजोश तकरीरे की, उस जंग में मुसलमान औरतें भी शामिल थी उन्हें मर्दो कि सफों के पीछे खड़ा किया था, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन औरतों से फरमाया -अगर कुछ मुसलमान मैदान छोड़कर भागे तो उन्हें गैरत दिलाना ... शर्मिंदा करना _,"
★_हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ज़ोहर की नमाज़ के बाद जंग शुरू करना चाहते थे क्योंकि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का यही मामूल था लेकिन रोमियो ने आगे बढ़कर उन पर हमला कर दिया, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने खुद अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और हमला शुरू किया, इस्लामी फौज एक जान होकर आगे बढ़ी और इस क़दर ज़बरदस्त जवाबी हमला किया कि रोमियों के अंदर तक घुसते चले गए ।
★_जंग जारी रही दोनों लश्कर जान तोड़कर लड़ते रहे आखिर रोमियों के पांव उखड़ गए वह बदहवास होकर भागे मुसलमानों ने उनका पीछा किया, अल्लाह हू अकबर के नारों से मैदान-ए-जंग गूंज गया, फतेह की खबर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को भेजी गई , हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बहुत खुश हुए और फरमाया - तमाम तारीफें उस अल्लाह के लिए हैं जिसने मुसलमानों की मदद की और मेरी आंखों को फतह की खुशखबरी से ठंडा कर दिया _," यह वाक़या हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की वफात से 24 दिन पहले का है ।
╨─────────────────────❥ *★_ सिद्दीके अकबर की जांनशीनी _,*
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर की फुतूहात का सिलसिला यहां तक है इसके बाद जो फुतूहात हुई उनका ताल्लुक हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत से है ।
★_ जब सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु की बीमारी की शिद्दत आई तो आपके सामने सबसे अहम मसला यह था कि खलीफा किसे मुकर्रर किया जाए, इस सिलसिले में मशवरे के लिए आपने बड़े-बड़े सहाबा को बुलाया और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के बारे में उनकी राय मालूम की ।
★_ हजरत तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु आए तो उन्होंने कहा :- ए अबू बकर ! आपको मालूम है कि उमर के मिजाज़ में सख्ती है इसके बावजूद आप उन्हें अपना जांनशीन बना रहे हैं कल अपने परवरदिगार को क्या जवाब देंगे ?"
उस वक्त हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु लेटे हुए थे, हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु से ये अल्फाज़ सुनकर आपको गुस्सा आ गया, बोले :- मुझे बिठा दो _,
★_ लोगों ने आप को बिठा दिया, तब आपने फ़रमाया :- क्या मुझे मेरे परवरदिगार से डराते हो ? मैं जब अपने रब से मिलूंगा और वो इस सिलसिले में मुझसे सवाल करेगा तो मैं कहूंगा ए अल्लाह मैंने तेरे बंदों पर एक ऐसे शख्स को मुक़र्रर किया है जो बेहतरीन है _,"
★_ फिर जब सब चले गए तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया :- उमर की जांनशीनी का परवाना लिखें _,", वह कलम दवात लेकर बैठ गए तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया :- लिखो, बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम .. यह वो अहद नामा है जो अबू बकर बिन अबी क़हाफा ने मुसलमानों के लिए लिखवाया _,"
अभी इतना लिखवाया था कि आप पर गशी तारी हो गई ।
★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को पहले से मालूम था, उन्होंने सोचा अगर बेहोशी तवील हो गई और इसी आलम में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की वफात हो गई तो यह परवाना ना मुकम्मल ना रह जाए और मुल्क में कोई फितना ना खड़ा हो जाए चुनांचे खुद ही लिख दिया - मैंने तुम पर उमर बिन खत्ताब को खलीफा मुकर्रर कर दिया है और मैंने इस मामले में तुम्हारी खैर ख्वाही में कोई कमी नहीं की _,"
★_ इतने में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु होश में आ गए आपने पूछा - क्या लिखा? उन्होंने इबारत पढ़ कर सुनाई तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु खुश होकर बोले उठे - अल्लाहु अकबर ! अल्लाह तुम्हें जज़ा अता फरमाए और अब यह लोगों के दरमियान सुना दो _,"
★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की दावत पर सब लोग जमा हो गए हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने खलीफा ए रसूल का हुक्म पढ़कर सुनाया, सब ने इस फरमान को खुशी से क़ुबूल किया, इतने में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु खुद छत पर तशरीफ ले आए और फरमाया :- लोगों मैंने जिस शख्स को खलीफा मुकर्रर किया है मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है ... बल्कि उमर है .. क्या तुम उन्हें क़ुबूल करते हो ? सब ने एक आवाज़ होकर कहा - हमने सुना और इता'त की _,"
★_ इसके बाद हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उन्हें नसीहत फरमाई, नसीहत के बाद फरमाया - मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु की मदद के लिए सब काम छोड़कर मज़ीद फौज इराक़ रवाना करना _," फिर पूछा -जब से मैं खलीफा बना हूं उस वक्त से अब तक मुझे कितना वजीफा मिला है ? हिसाब करके उन्हें बताया गया - 6 हज़ार दिरहम , आपने फरमाया - मेरी फलां ज़मीन फरोख्त करके यह रकम बैतुल माल में जमा करवा दी जाए _,"
★_ उसके बाद फरमाया- मेरे खलीफा बनने के बाद से लेकर अब तक मेरे माल में कितना इजा़फा हुआ है? आपको बताया गया- एक जिंसी गुलाम है जो बच्चों को खिलाता है और तलवारें तेज़ करता है एक ऊंटनी है जिस पर पानी लाया जाता है एक चादर है जिसकी कीमत सवा रुपए के करीब है , यह सुनकर इरशाद फरमाया- मेरी वफात के बाद यह चीज़ें खलीफा ए वक्त को भेज दी जाएं _,"
★_ जब यह चीज़ें हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में पेश की गई तो वह रो पड़े ,... रोते जाते और कहते जाते- ए अबू बकर ! आप अपने जांनशीनों को बहुत मुश्किल में मुबतिला कर गये _,"
★_ फिर आपने अपने घरेलू मामलात के ज़िम्मेदार हजरत मुइकी़ब रज़ियल्लाहु अन्हु से फरमाया - ए मुइक़ीब ! तुम मेरे घर के मुंतज़िम हो, बताओ मेरा और तुम्हारा क्या हिसाब है ? उन्होंने जवाब दिया - मेरे 25 दिरहम आपके ज़िम्में हैं वह मैंने आपको माफ किया, यह सुनकर फरमाया - चुप रहो मेरे तोशा ए आखिरत में कर्ज़ शामिल ना करो _,"
फिर आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को बुलाया और उन्हें हुक्म फरमाया - मुइक़ीब को 25 दिरहम अदा कर दिए जाएं _,"
★_ फिर आपने हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से पूछा - रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को कितने कपड़ों में कफन दिया गया था ? आपको बताया गया - तीन कपड़ों में , हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक्त दो फटे पुराने कपड़े पहने हुए थे उनकी तरफ इशारा करके फरमाया - बस तो फिर मेरे यह दो कपड़े तो हैं ही .. तीसरा कपड़ा बाज़ार से खरीद कर मुझे कफन दे देना _,"
यह सुनकर हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया - अब्बा जान ! हम आपके लिए तीनों नए कपड़े खरीद सकते हैं , आपने फरमाया - बेटी ! नए कपड़ों को ज़रूरत मुर्दों की निस्बत जिंदो को ज़्यादा है _,"
★_ अब अपनी बीवी हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा को वसीयत की - मुझे गुस्ल तुम देना_," वो रो कर कहने लगी - यह मुझसे नहीं होगा , आपने फरमाया - तुम्हारा बेटा अब्दुर्रहमान तुम्हारी मदद करेगा_,"
इसके बाद पूछा- आज कौन सा दिन है ? लोगों ने बताया - आज पीर का दिन है , आपने पूछा- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात कौन से दिन हुई थी ? आपको बताया गया - पीर के दिन , आपने फरमाया - तब मैं उम्मीद करता हूं कि मेरी वफात भी आज ही के दिन होगी ... मेरी कब्र रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कब्र के साथ बनाई जाए _,"
★_ इन वसीयतों से फारिग हुए ही थे कि आप पर मौत के आसार तारी हो गए, हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा उस वक्त हसरत भरे अंदाज में यह शेर पड़ने लगी :- वह पुरनूर सूरत जिसके चेहरे का सदका़ देकर बादलों ने बारिश मांगी... जो यतीमों पर मेहरबान हो और फकी़रों की पनाह हो _,"
हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के कानों में यह शेर पढ़ा तो चौंक उठे, क्योंकि यह शेर शायर ने आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की शान में कहा था , चुनांचे फौरन बोले- यह शान तो सिर्फ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए थी _,"
★_ आखिर मौत की घड़ी आ गई एक बिजली आई और खिलाफत व इमामत का यह आफताब दुनिया से वह रूपोश हो गया, आप के आखिरी अल्फाज यह थे - ए रब तू मुझे मुसलमान उठा और सालेहीन के साथ मेरा हश्र कर _,"
★_ आपकी वफात 22 जमादि अस्सानी 13 हिजरी बरोज़ पीर मगरिब और इशा के दरमियान हुई, रात ही में आपकी अहल्या हजरत असमा बिनते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा ने वसीयत के मुताबिक आप को गुस्ल दिया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने नमाजे़ जनाजा़ पढ़ाई , हजरत उमर , हजरत उस्मान, हजरत तलहा और अब्दुर रहमान बिन अबी बकर रज़ियल्लाहु अन्हुम कब्र में उतरे और आपको नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की कब्र के पहलू में लिटा दिया, इस तरह कि आपका सर हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के शाना मुबारक तक आ गया था, अल्लाहु अकबर ! मरने के बाद भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह अहतराम कि आपके बराबर नहीं लेटे _,
★_ वफात के वक्त आपकी उम्र 63 वर्ष थी आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की उम्र भी वफात के वक्त 63 बरस थी, आपकी खिलाफत की मुद्दत 2 बरस 3 महीने और 11 दिन है, रज़ियल्लाहु अन्हु वा अरज़ाहु ।
╨─────────────────────❥ *★_ खिलाफते सिद्दीकी _,*
★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के पर्दा फरमाने के बाद मुसलमानों के लिए सिद्दीके अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु की वफात पहला बड़ा सदमा था इस सदमे ने मदीना मुनव्वरा की दरो दीवार हिला कर रख दिए, एक लरज़ा छा गया, पूरे जजी़रा ए अरब पर गम तारी हो गया, जो शख्स अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के जितना करीब था उतना ही ज्यादा गमज़दा था, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपकी वफात की खबर सुनने पर यह अल्फाज़ फरमाए - आज खिलाफते नबूवत खत्म हो गई _,"
★_ फिर वहां आए जहां हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की मैयत मौजूद थी, उस मुकाम के दरवाजे पर खड़े होकर आपने फरमाया - ऐ अबू बकर ! अल्लाह तुम पर रहम करे, आप नबी अकरम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के महबूब थे और का़बिले एतमाद साथी थे आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मुशीर और राज़दार थे, आप सबसे पहले इस्लाम लाए, आप सबसे ज्यादा मुखलिस मोमिन थे, आपका यक़ीन सबसे ज्यादा मजबूत था ।
★_ आप सबसे ज्यादा अल्लाह का खौफ करने वाले थे, अल्लाह के दीन के बारे में सबसे ज्यादा बेनियाज़ यानी दूसरों की परवाह करने वाले नहीं थे , रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नज़दीक सबसे ज्यादा बा बरकत साथ देने में उन सबसे बेहतर मुसीबत में सबसे बढ़कर पेश कदमियों में सबसे अफजल और बरतर दर्जे में सबसे ऊंचे और क़ुर्ब के एतबार से आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सबसे ज्यादा क़रीब, आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के सबसे ज्यादा मूशाबा, सीरत और आदात में सबसे मेहरबान और फज़ल में सबसे ज्यादा ऊंचे मर्तबा वाले और हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के नजदीक सबसे ज्यादा मुकर्रम और मु'अतमद थे, पस अल्लाह जल शानहु इस्लाम और अपने रसूल की तरफ से आपको जजा़ ए खैर अता फरमाए ।
★_ आपने आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की तस्दीक़ उस वक्त की जब लोगों ने आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को झूठलाया, इसलिए अल्लाह जल शानहु ने आपको अपने कलाम में सिद्दीक फरमाया , यानी यूं फरमाया, सच्चाई लाने वाले मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम है और उनकी तस्दीक़ करने वाले (अबू बकर) हैं, ( यह सूरह ज़ुमर की आयत 33 की तरफ इशारा है )
आपने हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ उस वक्त गमख्वारी की जब लोगों में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से बुख्ल किया, आप नागवार बातों में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ उस वक्त भी खड़े रहे जब लोग आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से अलग हो गए, आपने सख्तियों में भी हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ सोहबत और रफाक़त का हक अदा किया ।
★_ (हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने आगे फरमाया)_ आप सानी इसनीन ( दो ) और रफीके गार थे और आप पर सकीनत नाजिल हुई , आप हिजरत में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथी थे, आप आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ऐसे खलीफा बने कि खिलाफत का हक अदा कर दिया, उस वक्त खलीफा बने जब लोग मुरतद हो गए, आपने खलीफा का वो हक़ अदा किया जो किसी पैगंबर के खलीफा ने नहीं किया था, आपने उस वक्त चुस्ती दिखाई जबकि दूसरे सुस्त हो गए आपने उस वक्त जंग की जब दूसरे आजिज़ आ गए, आपने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के रास्ते को उस वक्त थामे रखा जब लोग पीछे हट गए थे,
★_आप बिला नजा़ और बिला तफर्रूक़ा ( बगैर झगड़े के ) खलीफा ए हक़ थे, अगरचे इस बात से मुनाफिकीन को गुस्सा था कुफ्फार को रंज था और हासिद कराहत में मुब्तिला थे और बागियों को गुस्सा था (यानी वो लोग आप की खिलाफत से राजी नहीं थे) आप उस वक्त हक़ बात पर अड़े रहे जब लोग मुज़दिल हो गए, आप उस वक्त साबित कदम रहे जब लोग डगमगा गए, आप अल्लाह ताला के नूर ( कुरान ) को लिए आगे बढ़ते रहे यहां तक कि आपकी पेरवी में लोगों ने हिदायत पाई ,
★_ आप की आवाज उन सबसे नीचे थी मगर आप का मर्तबा सबसे ऊंचा था, आपका कलाम सबसे ज्यादा संजीदा था आपकी गुफ्तगू सबसे ज्यादा दुरुस्त थी, आप सबसे ज्यादा खामोश रहने वाले थे, शुजा'अत में सबसे ज्यादा बढ़े हुए थे मामलात को सबसे ज्यादा समझने वाले थे.. और अल्लाह की कसम ! दील के सबसे पहले सरदार थे, आप मोमिनीन के लिए रहीम बाप थे और जिस चीज का लोगों को अंदाजा भी नहीं था वह उन्होंने पा ली, आप काफिरों के लिए आग की मानिंद थे, मोमिनीन के लिए रहमत थे और उनसियत और पनाह की जगह थे, आप किसी से ज़रा नहीं डरे, पहाड़ की मानिंद थे,
★_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपके बारे में फरमाया कि आप दोस्ती और माली खिदमात के एतबार से सबसे ज्यादा अहसान करने वाले थे , आप जिस्मानी एतबार से अगरचे कमजोर थे लेकिन अल्लाह के मामले में क़वि थे, आपमें आजीजी़ बहुत थी आपमें कोई लालच नहीं था, ना मामलात में आप किसी की रियायत करते थे, ताकतवरों से कमजोरों को उनका हक़ दिलाते थे , आप दुनिया से उस वक्त रुखसत हुए जबकि रास्ता हमवार हो गया मुश्किल आसान हो गई मुखालिफ शिकस्त खा गए दीन मजबूत हो गया मुसलमान साबित क़दम हो गए, आपने अपने बाद में आने वालों को थका दिया, आप खैर से कामयाब हुए ।
★_ (हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने आगे फरमाया ) आप इससे बुलंद व बाला है कि आप पर रोया पीटा जाए, आपकी मौत को तो आसमान में महसूस किया जा रहा है, हम सब अल्लाह के लिए हैं उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं, अल्लाह की क़ज़ा पर हम राजी़ हैं हमने अपना मामला उसके सुपुर्द कर दिया, अल्लाह की क़सम ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद आप की मौत जैसा कोई हादसा मुसलमानों पर कभी नाज़िल नहीं हुआ, आप दीन की इज्ज़त जाए पनाह और हिफाज़त गाह थे, अल्लाह आपको अपने नबी से मिला दे और हमें आप के बाद आपके अजर से महरुम और गुमराह ना करें । इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजीऊन _,"
★_ जब तक हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु का यह खुतबा जा़री रहा लोग सुनते रहे, जब आप खामोश हो गए तो लोग बेतहाशा रोने लगे, खूब रोये, फिर सब ने कहा :- ए अली ! आपने सच कहा ।
★_हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के इस खुत्बे में ने उन लोगों के लिए बड़ी इबरत का सामान है जो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के दरमियान इखतिलाफात का झूठा प्रचार करते हैं, क्या कोई अपने मुखालिफ के बारे में इतनी जबरदस्त तारीफ की बातें कह सकता है ?
★_ सैयद आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस मौके पर फरमाया :- ऐ अब्बा जान ! अल्लाह आपको सरसब्ज़ और शादाब रखें आपको आपकी बेहतरीन कोशिशों का बदला दे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के बाद आप की वफात का हादसा सबसे बड़ा हादसा है लेकिन अल्लाह की किताब हमें सब्र का हुक्म करती है, यह सब्र ही आप की वफात का सबसे अच्छा बदला है और मैं उम्मीद करती हूं वह मुझे मेरे सब्र का बदला देगा , ऐ अब्बा जान ! आप अपनी बेटी का आखरी सलाम क़ुबूल कीजिए जिसने आपकी जिंदगी में कभी आपके साथ पर खाश नहीं रखी और आप की वफात पर वह रो पीट नहीं रही _,"
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु अंदर आए तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की लाश को मुखातिब करके फरमाया :-
"_। ए खलीफा ए रसूलल्लाह ! आपने दुनिया से रुखसत होकर कौ़म को सख्त मशक्कत में डाल दिया , आप का सामना करना तो दरकिनार अब तो कोई ऐसा भी नहीं कि आपकी गिर्द ही को पहुंच सके _,"
★_ यह सब कुछ तो इस दुनिया में हो रहा था और दूसरी दुनिया में उस वक्त क्या हो रहा था, इसका अंदाजा लगाने के लिए खुद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की रिवायत यह है कि मैंने एक मर्तबा नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सामने कुरान ए करीम की यह आयत तिलावत की :-
"_ (तर्जुमा) ऐ नफ्से मुतम'इना तू अपने परवरदिगार की तरफ हंसी-खुशी चली आ _," ( सूरह अल फजर)
फिर अर्ज किया - ऐ अल्लाह के रसूल ! यह भी क्या खूब इरशाद ए बारी ताला है _,"
आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया- हां ! अबू बकर ! जब तुम्हें मौत आएगी तो उस वक्त जिब्राइल अमीन तुमसे यही कहेंगे _,"
╨─────────────────────❥ ★_ जमा क़ुरान और फिद्क का मसला _,*
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में जो सबसे अहम काम हुआ वह है कुरान ए करीम का जमा किया जाना, इसकी तफसील भी बहुत दिलचस्प है, जंगे यमामा में तकरीबन 12 सौ मुसलमान शहीद हो गए थे, यह जंग मुसैलमा कज्ज़ाब यानी नबूवत का झूठा दावा करने वाले के खिलाफ लड़ी गई थी, उसमें 39 बड़े सहाबा और हाफ़िज़ ए कुरान भी शामिल थे ।
★_ यह सिर्फ एक जंग की तादाद है दूसरी जंगों में भी सहाबा किराम और कुरान ए करीम के हाफ़िज़ शहीद हुए, इस बात को शिद्दत से महसूस करते हुए हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुए और अर्ज़ किया- ऐ खलीफा ए रसूल ! यमामा की जंग में कुरान के कारी और हाफ़िज़ बहुत शहीद हुए हैं इसलिए अगर आपने क़ुरान जमा करने का इंतजाम ना किया तो डर है कुरान का बड़ा हिस्सा जा़या ना हो जाए _,"
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का अपना एक खास मिज़ाज था और वह यह था कि जो काम हुजूर सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नहीं किया, वह ऐसा कोई काम नहीं करते थे... अपने इस मिज़ाज की बुनियाद पर उन्होंने फरमाया - जिस काम को आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने नहीं फरमाया, मैं वह काम कैसे कर सकता हूं _,"
हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु बोले- यह काम तो खैर का है _," उन्होंने बार-बार कहा, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बार-बार वही जवाब देते रहे,
★_ आखिर अल्लाह ताला ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दिल में यह बात डाली कि यह काम किया जाए, उस वक्त आपने हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया और उनसे फरमाया - तुम जवान और समझदार आदमी हो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कातिबे वही थे इसलिए कुरान को एक जगह जमा कर दो _,"
★_ हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :- अगर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु मुझे एक पहाड़ को उसकी जगह से हटाने का हुक्म देते तो वह हुक्म भी इस काम से मुश्किल महसूस ना होता _," यानी इस काम को पहाड़ अपनी जगह हटाने से भी ज्यादा मुश्किल महसूस किया,
फिर अर्ज़ किया- मैं वह काम कैसे कर सकता हूं जो नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने नहीं किया _,"
★_ आखिर अल्लाह ताला ने उनके दिल में भी यह बात डाली कि यह काम करो, इस तरह उन्होंने इस मुश्किल तरीन काम को शुरू किया ।
★_ क़ुरआने करीम के मुख्तलिफ हिस्से कपड़ों पर खजूरों की छालों पर पत्तों पर लिखे हुए मुख्तलिफ सहाबा किराम के पास मौजूद थे, कुरान मजीद बहुत से सहाबा के सीनों में भी मौजूद था, उन्होंने पूरी एहतियात से तमाम आयात जमा की, जिस जिसके पास आयात महफूज़ थी हासिल की और यह सारा कुरान हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के पास जमा कराया।
★_ इस तरह हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में कुरान मजीद जमा हुआ, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक मर्तबा फरमाया - अल्लाह अबू बकर पर रहमत नाजिल करें कुरान मजीद जमा कराने में उनका अजर सबसे ज्यादा है क्योंकि इस काम की पहल उन्होंने ही की _,"
★_ यहां इस बात की वजाहत भी जरूरी है कि सूरतों के नाम हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम की जिंदगी मुबारक में ही तय हो गए थे, इस बात के सबूत में बहुत से सही अहादीस है, बाज़ औक़ात कई कई आयात एक साथ नाजिल हुई थी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उस वक्त हुक्म देते थे कि फलां आयत फलां सूरत में लिखो फलां आयत फलां सूरत में लिखो ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बाद कुरान मजीद का काम हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के दौर में हुआ, आपने कुरान ए करीम के बहुत से नुस्खे तैयार कराएं यानी हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में वही एक नुस्खा था जो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जमा कराया था, जब बहुत सारे नुस्खे तैयार कर लिए गए तो हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने एक एक नुस्खा एक एक सूबे में भेज दिया ।
★_ मतलब यह कि बुनियादी तौर पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जो कुरान मजीद जमा कराया था उससे मजीद नुस्खे तैयार कराए गए थे फिर यह नुस्खे मुल्क के दूसरे सूबों में भेजे गए थे, इसके साथ ही क़ुरआने करीम की सात क़िराते (लहजे) मुकर्रर किए गए, इस तरह उम्मत को सात क़िरातों पर जमा कर दिया गया, यह वो क़िरातें थी जो आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित थी, उनके अलावा जो क़िरातें थी उनको तर्क कर दिया गया।
जब तक दुनिया में कुरान मजीद पढ्ने वाले कलमागो मौजूद हैं वो इस अज़ीम काम पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के एहसानमंद रहेंगे,... यह उनका ऐसा कारनामा है ।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का एक मामूल यह था कि जब कोई मसला उन्हें पेश आता तो वो अल्लाह की किताब से फैसला करते उसमें मसले का हल ना मिलता तो सुन्नते रसूल में मसले का हल तलाश करते अगर इसमें भी कामयाबी ना होती है तो सहाबा को जमा करते उनसे पूछते कि क्या तुम में से किसी को इसके मुताबिक आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का कोई अमल मालूम है , अगर किसी को मालूम होता तो बता देता, हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह का शुक्र अदा करते, अगर ना मिलता तो फिर सहाबा से इस बारे में मशवारा लिया जाता , जिस बात पर सबका इत्तेफाक हो जाता उसको कुबूल कर लेते और उसी के मुताबिक करने का हुक्म फरमाते,
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में एक मसला फिद्क का पेश आया, इस बारे में आज तक कुछ हजरात बातें करते हैं लिहाज़ा मुनासिब होगा कि यहां इस मसले पर भी रोशनी डाल दी जाए ताकि बात ज़हनों में वाज़े हो जाए।
★_ खैबर की फतेह के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसके माले गनीमत को 36 हिस्सों में तक्सीम किया उनमें 18 हिस्से अपने लिए खास फरमा लिए और बाक़ी हिस्से दूसरे लोगों में तक्सीम कर दिए, इस काम से फारिग होने के बाद आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हजरत महीसा बिन मसूद अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु को दावत ए इस्लाम की गर्ज़ से फिद्क की तरफ रवाना किया, फिद्क के लोगों का सरदार यूशा बिन नून था, उन लोगों ने सुलह की दरखास्त की और ज़मीन देनी मंजूर की , आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इसको क़ुबूल फरमा लिया ।
★_ उस वक्त यह ज़मीन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए मखसूस हो गई , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उससे हासिल आमदनी से गुज़र बसर करते थे उम्माहतुल मोमिनीन रज़ियल्लाहु अन्हुम का खर्चा इससे पूरा होता था ।
★_ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुए, उन्होंने खैबर और फिद्क की जमीनों में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का जो हिस्सा था उसकी विरासत का मुतालबा किया, यानी यह कहां कि यह उनका हक है लेकिन हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया- मैंने आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को फरमाते हुए सुना है कि हमारा कोई वारिस नहीं होगा जो कुछ हम छोड़ जाएंगे सदका़ होगा _,"
★_ इसके अलावा आपने उनसे यह भी फरमाया - आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम जिस काम को जिस तरह करते थे मैं उसे उसी तरह करूंगा _,"
हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बाद यह मामला फिर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में पेश किया, उन्होंने फरमाया - खैबर और फिद्क की जायदादे दोनों रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के लिए वक़्फ थी, यह दोनों आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की जरूरतों के लिए थी अब उनका मामला उसके सुपुर्द है जो खलीफा हो और यह दोनों आज तक उसी हालत और हैसियत में है _,"
★_ यानी हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का फैसला भी वहीं था जो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु का था, अपनी खिलाफत के दौरान हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को यह हक़ हासिल था कि खैबर और फिद्क की आमदनी को अपनी जा़त और अपने बाल बच्चों के लिए मखसूस कर लें लेकिन उन्होंने उसमें से कुछ ना लिया,.. आपको आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का बेहद हेतराम था और अहले बैत से मोहब्बत थी लिहाज़ा उन्होंने उस आमदनी से उन्हीं के अखराजात पूरे किए, अपने अपनी औलाद के लिए कुछ नहीं लिया _,"
★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम उसमें से साल भर का खर्चे अपने और अपने अहलो अयाल के लिए लिया करते थे, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने भी यह मामूल बरक़रार रखा, आपने यह फरमाया- जिसके हाथ में मेरी जान है उसकी क़सम ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रिश्तेदार मुझे इससे ज्यादा अज़ीज़ हैं कि अपने रिश्तेदारों के साथ सिला रहमी करूं _,"
★_ आपने यह भी फरमाया - मैंने सुना है, नबी का कोई वारिश नहीं होता लेकिन इसके बावजूद मैं उन सब की सरपरस्ती करूंगा जिनकी सरपरस्ती आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम किया करते थे और उन सब पर खर्च करूंगा जिन पर आप खर्च किया करते थे_," *( मुसनद अहमद बिन हंबल, सही बुखारी-२, किताबुल फराइज़ )*
★_ बाज़ लोग कहते हैं कि हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा फिद्क के मसले पर आखिर उम्र तक हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु से नाराज़ ही रहीं, इस बारे में अल्लमा इब्ने कसीर ने लिखा है कि ऐसी रिवायत सही नहीं है _," *(अल बिदाया अन निहाया 5/289)*
★_ इस सारे झगड़े को हजरत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह की यह रिवायत खत्म करती है , आप फरमाते हैं :- फ़िद्क रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए था आप उसमें खर्च करते थे और उसी में से बनी हाशिम के फुक़रा पर खर्च करते थे उनकी बिन बियाही लड़कियों के निकाह करते थे , हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक मर्तबा दरखास्त की कि आप फिद्क उनके नाम कर दें तो आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इनकार फरमा दिया _," ( सुनन अबी दाऊद किताबुल फराइज़ )
★_ मतलब यह कि हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने तो वही किया था जो खुद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने किया था, इस पर एतराज कैसा ?
★_ अब इस वाक्य में यह एतराज़ किया जाता है कि अगर हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की जुबान से इरशाद ए नबवी सुनने के बाद इत्मीनान है गया था तो क्या वजह है कि हजरत अली और हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हुम फिर भी मुतालबा करते रहें, इस सवाल का जवाब यह है कि जहां तक वारिस का मामला है इन दोनों हज़रात को भी इत्मीनान था और इस बात का यक़ीन आ गया था कि खैबर और फिद्क वक़्फ हैं लेकिन वह इस बात को जरूरी ख्याल नहीं करते थे कि खुलफा ए वक्त ही उसका मूतवल्ली हो, उनका जा़ती ख्याल था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के क़रीबी रिश्तेदारों को इस का मुतवल्ली होना चाहिए, इसके अलावा इन हजरात का ख्याल यह भी था कि यह सिर्फ आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के करीबी रिश्तेदारों के लिए वक़्फ है ना कि तमाम मुसलमानों के लिए । ( यह वजाहत बुखारी में मिलती है)
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अपने दौर में इस शर्त पर इन दोनों हजरात को इसका मूतवल्ली मुकर्रर फरमा दिया था फिर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में भी फिद्क मुसलमानों के लिए वक्फ था। ( यह अबु दाऊद की रिवायत है )
╨─────────────────────❥ *★_ सीरते सिद्दीकी के चंद गोशे _,*
★_ इस दुनिया में अंबिया अलैहिस्सलाम के बाद आपका मुकाम है, आप मर्दों में सबसे पहले इस्लाम लाए, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपने आखिरी अय्याम में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को नमाज पढ़ाने का हुक्म दिया और बार-बार यही हुक्म फरमाया कि अबू बकर ही नमाज़ पढ़ाएं,
★_ इस्लाम में सबसे पहले मस्जिद हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने बनाई, आप सबसे पहले खलीफा ए रसूल हैं, आन हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने सबसे पहले आपको दोजख से निजात के खुशखबरी सुनाई, आप खलीफा ए रसूल तो थे ही आशिक ए रसूल भी थे, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद आपने ऐलान फरमाया - जिस शख्स से आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कोई वादा किया हो या जिस किसी का आपके जिम्मे कोई कर्ज़ हो वह मेरे पास आए_,"
★_ आप नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के रिश्तेदारों का अपने रिश्तेदारों से ज्यादा ख्याल रखते थे, आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की वफात को अभी चंद दिन ही गुजरे थे कि हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु नमाज पढ़ाकर मस्जिद से निकले तो हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु नज़र आ गए, वह बच्चों के साथ खेल रहे थे , आपने उन्हें कंधे पर उठा लिया।
★_ एक मर्तबा अल्लाह खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने माले गनीमत मदीना मुनव्वरा भेजा, उसमें हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के लिए एक खूबसूरत तोहफा भी भेजा, आपने वह तोहफा हजरत हुसैन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हु को दे दिया, आप खुद ही उनका ख्याल नहीं रखते थे बल्कि दूसरों से भी कहते थे उनका ख्याल रखो।
★_ हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की वफात हुई तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से कहां - चलिए ! नमाजे जनाजा़ पढ़ाइए । इस पर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया- आप रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के खलीफा है, आगे बढ़े और नमाज़ पढ़ाएं ।चुनांचे हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की नमाजे जनाजा हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई । (कंजुल उम्माल)
★_ जमाना जाहिलियत में भी आपने कभी किसी बुत को सजदा नहीं किया जबकि उस वक्त हर तरफ बुत परस्ती हो रही थी, आप हद दर्जे पाक़ीज़ा थे और पाक माल ही खाना पसंद करते थे, आपका गुलाम एक मर्तबा खाने की कोई चीज़ लाया, आप उस वक्त भूख की हालत में थे लिहाजा उस चीज को खा लिया लेकिन फौरन ही खयाल आया कि गुलाम से इस बारे में पूछा ही नहीं ,
★_ गुलाम ने बताया कि मैं झूठ मुठ झाड़-फूंक का काम करता था किसी जमाने में झाड़-फूंक के बहाने किसी को शिफा हो गई थी, उसका मुआवजा उन्होंने आज दिया था, यह सुनना था कि आपने उस चीज़ को क़ैय कर दिया, क़ैय करने में आपने बहुत तकलीफ उठाई क्योंकि भूख की हालत में खाई हुई थोड़ी सी चीज आसानी से क़ैय नहीं हो सकती थी, आपने पानी पीकर उसको क़ैय दिया और फरमाया- इसको निकालने में मेरी जान चली जाती तो भी इसको निकाल कर रहता _,"
★_आपने एक मर्तबा एक चिड़िया को दरख्त पर बैठे देखा तो फरमाया- वाह वाह ! ए चिड़िया तू कितनी खुशनसीब है, ऐ काश मैं भी तुझ जैसा होता, तू दरख्त पर बैठती है फल खाती हैं और फिर उड़ जाती है, तुझसे ना कोई हिसाब है और ना किताब _,"
कभी फरमाते - काश मै एक तिनका होता_,"
कभी फरमाते - काश मैं एक दरख्त होता ऊंट मेरे पास से गुज़रता और मुझे चबा जाता _,"
★_ यानी ऐसा अल्लाह के खौफ से फरमाते , किसी को कभी सख्त लफ्ज कह बैठते तो जब तक उससे माफी मांग लेते चैन से ना बैठते, एक मर्तबा अपनी जुबान पकड़ कर खींच रहे थे हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने ऐसा करते हुए देख लिया, हैरान होकर पूछा - यह आप क्या कर रहे हैं ? जवाब में फरमाया - इसी जुबान ने मुझे तबाह किया है ।
★_ एक मर्तबा आपने पीने के लिए पानी मांगा लोगों ने पानी में शहद मिलाकर पेश कर दिया, आपने प्याला मुंह से लगाया तो रोने लगे, जो लोग पास मौजूद थे वह भी रोने लगे , थोड़ी देर तक रोते रहे फिर चुप हो गए लेकिन कुछ ही देर बाद फिर रोने लगे, लोगों ने वजह पूछी तो फरमाया :-
"_ मैं एक दिन आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के साथ था मैंने देखा कि आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम किसी चीज को धुतकार रहे हैं मैंने पूछा- ए अल्लाह के रसूल ! आप किस चीज को धुत्कार रहे हैं मुझे तो यहां कोई चीज नज़र नहीं आ रही ? आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया - दुनिया मेरे सामने जिस्म की हालत में आ गई थी मैंने उससे कहा कि मेरे सामने से हट जा लेकिन वह फिर आ गई और कहने लगी आप मुझसे बचकर निकल जाएं तो निकल जाएं लेकिन आपके बाद जो लोग आएंगे वह बच कर नहीं जा सकेंगे _,"
यह वाक़िया बयान करके हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - उस वक्त मुझे यही बात याद आ गई थी मुझे खौफ महसूस हुआ कि कहीं यह मुझसे चिमट ना जाए _,"
★_ खलीफा बनने से पहले आप मोहल्ले की बच्चियों की बकरियों का दूध दोह देते थे, आप खलीफा बन गए तो एक छोटी सी लड़की परेशान हो गई कि अब उसकी बकरी का दूध कौन दोहा करेगा, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु तक उसकी बात पहुंची तो उससे फरमाया - मैं खलीफा बन गया तो क्या हुआ मैं अब भी तुम्हारी बकरियों का दूध दोहा करूंगा , खिलाफत मुझे खिदमते खल्क़ से बाज़ नहीं रख सकेगी _,"
★_ मदीना मुनव्वरा में एक नाबीना औरत थी, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को उसके बारे में पता चला तो उन्होंने सोचा सुबह सवेरे जाकर उसके घर के काम कर आया करेंगे लेकिन जब आप सुबह सवेरे वहां पहुंचे तो देखा घर की सफाई हो चुकी थी और पानी के बर्तन में पानी भरा हुआ था, यहां तक कि बैतूल खला की सफाई भी की गई थी यानी कोई आकर इनसे पहले यह सब काम कर गया था।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु दूसरे दिन उस वक्त से भी पहले उसके घर पहुंच गए लेकिन उस रोज़ भी सारे काम हो चुके थे, अब तो हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु बहुत हैरान हुए, आखिर यह कौन शख्स है जो इतने मुंह अंधेरे यह सब काम कर जाता है , तीसरे दिन आप इब्तेदाई रात ही से छुप कर बैठ गए ताकि देखें कौन आता है, उनकी हैरत की उस वक्त इंतिहा ना रही जब आपने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु को आते देखा और उस वक्त वह मुसलमानों के खलीफा थे।
★_ खिलाफत मिलने से पहले आप कपड़े की तिजारत किया करते थे, खलीफा बने तो दूसरे दिन कपड़े के थान कंधे पर रखकर बाज़ार की तरफ चल पड़े, रास्ते में हजरत उमर और हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हुम मिल गए, उन्होंने हैरान होकर कर कहा - ए खलीफा ए रसूल आप कहां जा रहे हैं ? आपने जवाब में फरमाया- बाज़ार जा रहा हूं , उन्होंने अर्ज किया- अब आप मुसलमानों के खलीफा हैं यह काम करेंगे तो खिलाफत का काम कैसे कर सकेंगे, हम आपके लिए वजीफा मुकर्रर कर देते हैं ।
सहाबा किराम ने मशवरा किया और आप का वजीफा मुकर्रर कर दिया, यह वजीफा एक आम आदमी के मुताबिक था ।
★_ लोग आपकी ताज़ीम करते तो शर्म महसूस करते और फरमाते तुम लोगों ने मुझे बहुत बड़ा चढ़ा दिया है, कोई आपकी तारीफ करता तो दिल में कहते- ऐ अल्लाह ! तू मुझे उन लोगों के खयालात के मुताबिक बना दे , मेरे गुनाहों को माफ कर दें और उन लोगों की बेजा तारीफ पर मेरी पकड़ ना कर _,"
आप दूसरों का तो मामूली से मामूली काम भी कर देते थे लेकिन खुद दूसरों से ज़रा सा काम लेना भी पसंद नहीं करते थे,
ऊंट पर सवार जा रहे होते और ऊंट की नकेल गिर जाती तब उसे बिठाकर नीचे उतरते और नकेल उठाते, किसी गुज़रने वाले से यह नहीं कहते कि भाई ज़रा यह उठा देना । लोग आपसे कहते भी कि आप इतनी ज़हमत क्यों गवारा करते हैं यानी ऊंट को बिठाते हैं फिर चीज़ उठाते हैं आप हम से कह दिया करें।
इसके जवाब में आप फरमाते- मेरे हबीब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं लोगों से किसी चीज़ का सवाल ना करूं _,"
╨─────────────────────❥ *"_फिक़रे सिद्दीक़ी _,*
★_ आप बैतूलमाल से अपने लिए वजी़फा लेते थे लेकिन उसकी मिक़दार कितनी थी इसका अंदाजा इस बात से हो सकता है कि एक मर्तबा उनकी जौज़ा मोहतरमा का जी चाहा कि हलवा खाएं, आपसे फरमाइश की तो फरमाया - गुंजाइश नहीं । अब उन्होंने क्या किया , रोज़ाना का जो खर्च मिलता है उसमें से कुछ बचाने लगी यहां तक कि इतने पैसे जमा हो गए जिनसे हलवा तैयार हो सकता है, उनसे हलवा तैयार किया गया , जब इस बात का पता आपको चला तो फरमाया- हमारा रोजमर्रा का खर्च इतने पैसे कम कर देने से भी पूरा हो सकता है _,"
चुनांचे घर का वजीफा इतना कम करा लिया ।
★_ इस्लाम कबूल करने के बाद आपके पास 40 हज़ार दिरहम थे, हिजरत के सफर के बाद जब आप मदीना मुनव्वरा पहुंचे तो उनमें से सिर्फ 5 हज़ार ही रह गए वह भी सब अल्लाह के रास्ते में खर्च कर दिए, मदीना मुनव्वरा में आकर तिजारत शुरू की लेकिन इस तिजारत से जो कमाया वह सब का सब गज़वा तबूक के मौके पर अल्लाह के रास्ते में दे दिया, खिलाफत मिली तो तिजारत खत्म हो गई, अब निहायत मामूली वजी़फे पर गुज़ारा करने लगे।
★_ वफात से पहले सैयदा आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाया- जब से मैं खलीफा हुआ हूं उस वक्त से अब तक मैंने मुसलमानों का कोई एक दिरहम भी नहीं खाया, मुसलमान जो मोटा झोटा खाते हैं वही मैंने खाया और पहना, अब मेरे पास जो कुल असासा है वह एक ऊंट एक गुलाम और एक यह चादर है_,"
★_ यानी इस हालत में अपनी जिंदगी बसर की.. लेकिन गरीबों का इतना ख्याल करते थे कि सर्दी के मौसम में कपड़े तक्सी़म करते थे । *"_शुज़ा'अत बर्दाश्त और अखलाक़ _,*
★_ आप शुजा़'अत में भी सबसे आगे थे, मक्की जिंदगी में कुफ्फार नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम पर जुल्म ढाते तो हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु फौरन आगे बढ़ते, आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए ढाल बन जाते, गज़वा बदर में आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के लिए एक छप्पर बनाया गया था , आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की हिफाज़त के लिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु छप्पर के पास मौजूद रहे और जिसने भी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की तरफ बढ़ना चाहा हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उस का डटकर मुकाबला किया।
★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु में बर्दाश्त का माद्दा भी बहुत था, एक शख्स ने आपको मुंह पर बुरा कहा आप उस वक्त खलीफा थे चाहते तो उसके खिलाफ कार्यवाही कर सकते थे लेकिन उसके खिलाफ कुछ ना किया, उस वक्त आपके एक साथी ने चाहा कि उस शख्स की गर्दन उड़ा दे लेकिन आपने उसे भी रोक दिया।
★_ आप अखलाक़ में भी दूसरों से बढ़ चढ़कर थे, सलाम करने में पहल करते थे अपने साथियों को भी तलकील किया करते थे कि सलाम में पहल करने वाले बने । एक मर्तबा देखा कि लोग हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु को सलाम करने में पहल कर रहे हैं, इस पर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने उनसे फरमाया - लोग तुम्हें सलाम करने में पहल कर रहे हैं तुम क्यों पहल नहीं करते ताकि तुम्हें सवाब ज्यादा मिले _,,"
उसके बाद हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु का मामूल बन गया कि हर किसी को सलाम में पहल किया करते थे ।
*"_ इता'अत और हुलिया मुबारक _,*
★_ दीन के अहकामात के मामले में आप बहुत सख्त थे, एक मर्तबा किसी जनाजे़ में लोग बहुत आहिस्ता जा रहे थे लोगों को इतना आहिस्ता चलते देखा तो कोड़ा उठा लिया और फरमाया - हम लोग आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के साथ जनाजे़ में तेज़ रफ्तार से जाया करते थे _,"
★_ हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से किसी ने आप का हुलिया पूछा, तो उन्होंने फरमाया :- अबू बकर गोरे चिट्टे दुबले पतले आदमी थे, दोनों रुखसार सुते हुए (यानी हमवार ) थे , कमर ज़रा खमदार थी, जबड़े की हड्डियां उभरी हुई थी पेशानी बुलंद थी, उंगलियों के जोड़ गोश्त से खाली थे, पिंडलियां और रानें पुर गोस्त थी, कद मौजू था, मेहंदी का खिज़ाब किया करते थे, निहायत सादगी पसंद थे, कपड़े मोटे झोठे पहनते थे खाना सादा खाते थे, बाज़ औका़त फाके़ की नौबत आ जाती थी ।
★_ एक मर्तबा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हुम को मस्जिद में देखा की भूख से बेकरार हैं , आपने फरमाया - मैं भी तुम्हारी तरह भूखा हूं । एक सहाबी हजरत अबू लहीसम अंसारी रजि़यल्लाहु अन्हु को इल्म हुआ तो उन्होंने खाने का इंतजाम किया ।
★_ नमाज़ में आपकी हालत यह होती थी कि ऐसा महसूस होता था जैसे ज़मीन में लकड़ी गाड़ दी हो , हुकूकुल्लाह के साथ लोगों के हक़ का हद दर्जे ख्याल रखते थे, एक मर्तबा आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा- आज तुममे से रोजे़दार कौन है ? हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले - अल्लाह के रसूल मै रोज़े से हूं । आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा - तुम में से आज किसने जनाजे में शिरकत की है ? जवाब में हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले- मैंने अल्लाह के रसूल ।
आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने पूछा - आज किसी ने किसी मिस्कीन को खाना खिलाया है ? फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ही बोले - मैंने अल्लाह के रसूल । आपने पूछा- किसी ने किसी मरीज की अयादत की है ? हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु बोले- ए अल्लाह के रसूल मैंने की है।
इस पर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया- जिसने एक दिन में इतनी नेकितियां की हैं वह यकी़नन जन्नत में जाएगा _,"
╨─────────────────────❥ *"_ खानदाने अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु _,*
★_ आप दिल के बहुत नरम थे, क़ुराने करीम पढ़ते तो आंसुओं की झड़ी लग जाती, इस तरह बिलक बिलक कर रोते कि देखने वाले भी रोने लगते, 12 हिजरी में जब हज के लिए तशरीफ ले गए तो मक्का में हजरत इकरमा रजियल्लाहु अन्हु और कुछ लोग आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ताज़ियत के लिए आपके पास आएं, आपका हाल यह था कि ये हजरात ताज़ियत करते जाते थे और हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु रोते जाते थे, बार-बार सर्द आह भरते, इस क़दर सर्द आहें भरने की वजह से आपका नाम ही सर्द आह भरने वाले मशहूर हो गया था।
★_ आपने चार निकाह किए, दो इस्लाम से पहले दो इस्लाम के बाद, इस्लाम से पहले कु़तैलाह बिनते अब्द उज़्जा और उम्में रूमान रज़ियल्लाहु अन्हा से शादी की , इस्लाम के बाद असमा बिन्त उमेस और हबीबा बिनते खाखारीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से शादी की, इनमें क़ुतैलाह के बारे में मालूम नहीं कि मुसलमान थी या नहीं, उम्मे रूमान रज़ियल्लाहु अन्हा मुसलमान हो गई थी और हजरत असमा बिनते उमेस और हजरत हबीबा बिनते खारीजा रज़ियल्लाहु अन्हा से जब निकाह हुआ तो उससे पहले ही यह दोनों इस्लाम कुबूल कर चुकी थी।
★_ आपके यहां 3 लड़के और 3 लड़कियां हुईं, लड़कों के नाम अब्दुर्रहमान, अब्दुल्लाह और मोहम्मद हैं , जबकि बेटियों के नाम असमा , आयशा और उम्मे कुलसुम है, इनमें हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को यह अज़ीम शर्फ हासिल हुआ कि हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलेह वसल्लम के निकाह में आईं ।
★_ हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा वह हस्ती है जिन्होंने हिजरत के मौके पर कमाले ज़ुरा'त का सबूत दे कर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम और अपने वालिद के सफर का इंतजाम किया, उनकी शादी मशहूर सहाबी हजरत जुबैर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु से हुई, हिजरत के मौके पर ही इनसे हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु पैदा हुए।
★_ उम्मे कुलसूम आप की तीसरी बेटी थी, यें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात के बाद पैदा हुई।
*"_ खानदाने अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु-२ _,*
★_ अब्दुर रहमान बिन अबी बकर रजियल्लाहु अन्हु आपके बड़े साहबजादे हैं, हजरत उम्मे रुमान रज़ियल्लाहु अन्हा इनकी वालिदा है, गज़वा बदर में कुफ्फार के लश्कर में शामिल थे, मैदान-ए-जंग में यह आगे बढ़े और किसी मुसलमान को मुकाबले पर आने की दावत दी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से उनके मुकाबले पर जाने की इजाज़त तलब की, आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इजाजत ना दी , इसके बाद गज़वा उहद में भी कुफ्फार के लश्कर में शामिल थे, यह सुलह हुदेबिया के मौके पर इस्लाम लाएं और मदीना मुनव्वरा में आकर अपने वालिद के साथ रहने लगे ।
★_ सुलह हुदेबिया के बाद जितने गज़वात पेश आएं उनमें बराबर शरीक होते रहे, हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा और यह सगे बहन भाई थे , दोनों को एक दूसरे से बहुत मोहब्बत थी, 53 हिजरी में इनका इंतकाल हुआ, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने इनकी वफात पर बड़े दर्दनाक अशआर पड़े थे।
★_ आपके दूसरे बेटे अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु थे, क़ुतैलाह इनकी वालिदा थी, यह और हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा दोनों सगे बहन भाई थे, इन्होंने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के ईमान लाने के बाद ही इस्लाम कुबूल कर लिया था, जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने हिजरत की और गारे सौर में क़याम फरमाया तो यहीं थे जो कुरेश की खबरें खुफिया तौर पर आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तक पहुंचाते रहे , जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के साथ मदीना मुनव्वरा पहुंच गए तब इन्होंने भी हजरत उम्मे रोमान, हजरत आयशा और हजरत असमा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को साथ लेकर हिजरत की।
★_ फतेह मक्का ताइफ हुनैन के गज़्वात में शरीक रहे , ताईफ के मौके पर इन्हें एक तीर लगा उससे शदीद जख्मी हो गए, इलाज के बाद जख्म ठीक तो हो गया था लेकिन तकरीबन ढाई साल बाद दोबारा हरा हो गया, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के 40 रोज़ बाद यह इसी जख्म से वफात पा गए।
*"_ खानदाने अबु बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु -३,*
★_ मोहम्मद बिन अबी बकर हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के सबसे छोटे बेटे थे, यह असमा बिनते उमेस रज़ियल्लाहु अन्हा के बतन से पैदा हुए, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की वफात के बाद इनकी वालिदा ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से शादी कर ली थी, इस तरह मोहम्मद बिन अबी बकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की आगोश में पले ।
★_ कुछ मोर्खों ने लिखा है कि हजरत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु के कातिलों में यह भी शरीक थे लेकिन मशहूर मुहद्दिस और मोर्ख हाफिज इब्ने अब्दुल बर उंदलुसी ने इसका इन्कार किया है और लिखा है कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के खून से मोहम्मद बिन अबी बकर का ज़रा भी ताल्लुक नहीं है।
★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे खिलाफत में इन्हें मिस्र का वाली मुकर्रर फरमाया , जब यह मिश्र पहुंचे तो एक जंग में शहीद हो गए, हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा को यह खबर मिली तो बहुत रंज हुआ, उनके बेटे का़सिम को अपनी तर्बीयत में ले लिया, कासिम बिन मोहम्मद रहमतुल्लाह ने चूंकि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से तर्बीयत हासिल की थी इसलिए यह फक़ीही बने, मदीना मुनव्वरा में 7 मशहूर फुक़हा में इनका शुमार हुआ।
★_ खुलफा ए राशिदीन में देखा जाए तो सबसे ज्यादा फुतुहात हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में हुएं और क'ई लिहाज़ से असलाहात भी सबसे ज़्यादा इन्हीं के दौर में हुएं, लेकिन यह बात भी ज़हन में रहनी चाहिए कि हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत सिर्फ सवा 2 साल तक रही जबकि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को 10 बरस के क़रीब वक्त मिला, लिहाज़ा हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में जो कुछ हुआ उसकी बुनियाद दरअसल हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने ही रखी थी।
★_ अल्लाह ताला ने उन्हें वह सलाहियते और जुर्रातें अता फरमाईं थी कि कमज़ोर होते हुए भी उन सब के खिलाफ मजबूत चट्टान की तरह डट गए और वो काम कर दिखाएं कि आज भी लोग हैंरतज़दा है और रहती दुनिया तक हैरतज़दा रहेंगे, अल्लाह उन पर करोड़ों रहमते नाज़िल फरमाएं , आमीन ।
╨─────────────────────❥
✭﷽✭
*✭ KHILAFAT E RASHIDA .✭*
*✿_ खिलाफते राशिदा _✿*
▪•═════••════•▪
*┱ ✿-*"_दौरे फारुक़ी का आगाज़ _,*
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु जब खलीफा बने तो आपके सामने ईरान और रोम से जंगे हो रही थी, खिलाफत से पहले दिन से ही लोग बैत के लिए आने लगे, सिलसिला 3 दिन तक जारी रहा, आपने मौक़ा पा कर मुसलमानों के सामने खुतबा दिया जिसमें अल्लाह के रास्ते के फज़ाइल बयान फरमाएं ,
★_ रोम और ईरान के हुक्मरान क़ैसर व किसरा कहलाते थे, यह दोनों बहुत बड़ी सल्तनतें थी यानी उस वक्त खुद को सुपर ताकत समझने वाली यही तो ताकते थी, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु इराक के तमाम सरहदी इलाक़े फतह कर चुके थे और कुछ ही दिनों में पूरा इराक फतह कर सकते थे लेकिन उन्हीं दिनों शाम की मुहिम पेश आ गई, इसलिए हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा कि फोरन शाम की तरफ रवाना हों और मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हू को अपना जांनशीन कर जाएं, चुनांचे हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु शाम की तरफ रवाना हो गए, इस तरह इराक में फुतूहात का सिलसिला रुक गया ।
★_ ईरान की मलका उन दिनों " पुरान दुख्त " थी, उसने अपने मुल्क के एक बहादुर जरनील रुस्तम को अपना वज़ीर बना लिया था , उसने रुस्तम को हुक्म दिया कि मुसलमानों को इराक से निकाल दें, रुस्तम ने जंग की तैयारियां शुरू कर दी, उसने अपने लश्कर के दो हिस्से किए, एक हिस्से का सालार जाबान को मुकर्रर किया जबकि दूसरे हिस्से का सालार शहजादा नरसी को बनाया।
★_ इधर मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु और अबू उबैदा रहमतुल्लाह हीरा तक पहुंच चुके थे, दोनों फौजें आमने-सामने हुई, मुसलमानों में गजब का जज्बा देखने में आया, आखिर उनके जज्बे के आगे ईरानी लश्कर के पांव उखड़ गए, दोनों सालार मौक़े पर ही गिरफ्तार हो गए ।
★_ अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने मोरके़ के बाद कस्कर का रूख किया, यहां शहजादा नरसी फ़ौज लिए खड़ा था , मक़ातिया में दोनों लश्कर आमने-सामने हुए, नरसी के साथ बहुत बड़ा लश्कर था, नरसी अभी जंग शुरू करने के हक़ में नहीं था, उसे खबर मिली थी कि उसकी मदद के लिए मजी़द ईरानी फौजे रवाना हो चुकी है , वह उन फौजो का इंतजार कर रहा था और उनकी आमद से पहले लड़ाई शुरू नहीं करना चाहता था।
★_ दूसरी तरफ हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह को भी यह इत्तेलात मिल गई, उन्होंने देर करना मुनासिब ना समझा और हमला कर दिया , बहुत बड़ा मोरका हुआ और आखिर नरसी को शिकस्त हुई, अबू उबैदा रहमतुल्लाह खुद वहीं ठहरे और फौज के छोटे-छोटे दस्ते चारों तरफ रवाना कर दिये ताकि भागने वाले ईरानियों का पीछा किया जा सके और उनका जहां तक हो सके सफाया किया जा सके।
★_ इस शिकस्त की खबर सुनकर रूस्तम बहुत चिराग पा हुआ, उसने बहमन को एक लश्कर देकर रवाना किया , दोनों लश्कर मरूहा के मुकाम पर आमने सामने आ गए , दोनों लश्कर के दरमियान दरिया फरात था , बहमन ने मुसलमानों को पैगाम भेजा कि तुम इस तरफ आते हो या हम आएं ? अबू उबैदा रहमतुल्लाह के सालारो ने उन्हें मशवरा दिया कि बहमन को अपने लश्कर के साथ इस तरफ आने की दावत दी जाए, मगर हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने कहां - यह तो बुजदिली होगी ! उधर बहमन के क़ासिद ने उन मुसलमानों की बातें सुन कर यह कहा - हम लोगों का भी यही ख्याल था कि अरब मर्दे मैदान नहीं है ,
★_ उसने यह बात मुसलमानों को जोश दिलाने के लिए कही थी और वाकई अबू उबैदा रहमतुल्लाह जोश में आ गए, उन्होंने फौज को तैयारी का हुक्म दे दिया, हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु और बड़े-बड़े सरदार अभी भी इस क़दम के खिलाफ थे, हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबू उबैदा रहमतुल्लाह से फरमाया- अगरचे हमें यक़ीन है कि दरिया पार करने से फौज के शदीद नुक्सान होगा लेकिन चूंकि सिपह सालार इस वक्त आप है और अफसर की हुक्म उदूली हमारा तरीका नहीं इसलिए हम तैयार हैं ।
★_ कश्तियों का पुल बांधा गया और तमाम फौज उस पुल के ज़रिए दरिया पार कर गई लेकिन वहां ईरानियों ने इस्लामी फौज के लिए जगह बहुत तंग छोड़ी थी, इस्लामी फौज को सफबंदी की जगह भी ना मिल सकी, दूसरी तरफ ईरानी फौज के साथ खौफनाक हाथी भी थे और उन पर बड़े-बड़े घंटे लटकाए गए थे, जब हाथी चलते तो घंटे ज़ोर ज़ोर से बजने लगते ,
★_ मुसलमानों के अरबी घोड़ों ने ऐसे हाथी और समूर की टोपियों वाले फौजी पहले नहीं देखे थे, घोड़े उनको देखकर बिदक कर पीछे हट गए, जब अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने देखा कि हाथियों के मुकाबले में घोड़े नाकारा साबित हो रहे हैं तो घोड़े से कूद पड़े और लश्कर के अपने साथियों से कहा - जांबाजो़ ! हाथियों को दरमियान में ले लो और होदजों को सवार समेत उलट दो _,"
★_ इस एलान के साथ सब मुसलमान घोड़ों से कूद पड़े और होदजो की रस्सियां काट काट कर हाथी सवारों को नीचे गिराने लगे, इसके बावजूद हाथियों की वजह से मुसलमानों का बहुत नुकसान हो रहा था, यह सूरते हाल देखकर हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह ने सफेद हाथी पर हमला किया , यह सब हाथियों का सरदार था, उन्होंने हाथी की सूंड पर तलवार मारी, सूंड़ कट गई , हाथी गुस्से में आगे बढ़ा और उन्हें ज़मीन पर गिरा कर अपना पांव उनके सीने पर रख दिया और वह शहीद हो गए।
★_ उनकी शहादत के बाद उनके भाई हकम ने अलम हाथ में ले लिया और पुरजोश अंदाज में हाथी पर हमलावर हुए, उसने हजरत अबू उबैदा रहमतुल्लाह की तरह तरह उन्हें भी पांव के नीचे कुचल दिया, इस तरह सात आदमियों ने बारी-बारी अलम हाथ में लिया और मारे गए, यह सातों खानदाने सक़ीफ से थे।
★_ आखिर हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अलम हाथ में लिया, उस वक्त तक जंग का नक्शा बदल चुका था और ईरानी मुसलमानों को दरिया की तरफ धकेल रहे थे, ऐसे में किसी ने पुल भी तोड़ दिया, मुसलमान इस क़दर बदहवास हुए कि टूटा पुल देख कर दरिया में कूद पड़े, ऐसे में हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़ौज को संभाला , पुल बंधवाया और सवारों के दस्ते के जि़म्मे लगाया कि पुल पार करते लोगों की मदद करें, खुद एक दस्ते को साथ लेकर दुश्मन के मुकाबले पर डटे रहें , इस कद़र जवां मर्दी से लड़े कि दुश्मन जो बराबर बढ़ता चला आ रहा था उसका बढ़ना रुक गया।
★_ उस वक्त तक 9 हज़ार सिपाहियों में से सिर्फ तीन हज़ार अपनी जान बचाकर दूसरे किनारे तक पहुंच सके, उन तीन हजार का बचाव भी हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु की हिकमत अमली से हुआ ।
★_ इस्लाम की तारीख में मैदान-ए-जंग से भागने की मिसालें बहुत कम मिलती हैं, इस लड़ाई में जिन मुसलमानों की पसपाई की वजह से इस्लामी लश्कर को शिकस्त हुई थी वो मारे शरम के अपने घरों में ना गये, इधर उधर जंगलों में फिरते रहते थे और रोते रहते थे, मदीना मुनव्वरा में यह खबर पहुंची तो मुसलमानों को बहुत रंज हुआ, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु बेहद गमगीन हो गए , फिर भी दूसरे को तसल्ली देते रहे लेकिन उन्हें खुद तसल्ली ना होती थी,
★_ मुसलमानों की इस शिकस्त ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु पर एक इज्तराब तारी कर दिया, आपने जोर शोर से जंग की तैयारियां शुरू कर दी, सारे अरब में पुरजोश तकरीरे करने वाले हजरात भेजे गए, उनकी तकरीरो ने जजी़रातुल अरब में आग लगा दी, हर तरफ से अरब के क़बाइल आने लगे, उधर हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने तमाम सरहदी मक़ामात की तरफ पैगाम भेजे और इस तरह एक बड़ी फौज जमा कर ली ,
★_ इस्लामी लश्कर बोयब के मुकाम पर रुका, बोयब कूफा के करीब वाके़ था, उधर मेहरान अपनी फौज के साथ रवाना हुआ, बोयब के मुका़म पर पहुंचकर मेहरान ने दरिया फरात के किनारे पड़ाव किया, सुबह होते ही उसने दरिया पार किया और मुसलमानों के लश्कर के सामने सफबंदी शुरू कर दी।
★_ हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने निहायत तरतीब से इस्लामी लश्कर की सफबंदी की, इस्लामी फौज का जंग शुरु करने का तरीका यह था कि सिपहसालार 3 मर्तबा अल्लाहु अकबर कहता था पहली तकबीर पर फौज हमला करने के लिए तैयार हो जाती थी दूसरी तकबीर पर फौज हथियार संभाल लेती थी और तीसरी तकबीर पर हमला कर दिया जाता था।
★_ हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अभी दूसरी तक़बीर भी नहीं कही थी कि ईरानियों ने हमला कर दिया, जबरदस्त जंग शुरू हुई, मुसलमानों के बड़े बड़े अफसर शहीद हुए लेकिन हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हू साबित क़दम रहे, उनकी साबित क़दमी की वजह से मुसलमानों को फतह हुई, मेहरान क़त्ल हुआ, महरान के क़त्ल की खबर ने ईरानियों के हौसले खत्म कर दिए, वह बदहवास होकर भागे, हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु फौरन अपने दस्ते के साथ पुल पर पहुंच गए ताकि ईरानी भाग ना सके, उस जगह इतने ईरानी क़त्ल हुए की लाशों का अंबार लग गया, मो'रखों ने लिखा है कि किसी लड़ाई में इतनी लाशें नहीं गिरी जितनी बोयब की लड़ाई में गिरी, मुद्दतों बाद मुसलमानों का उधर से गुज़र होगा तो उस वक्त भी वहां हड्डियों के अंबार नजर आए ।
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*"_ क़ादसिया की तरफ लश्करे इस्लाम _,*
★_ इस मोरके के बाद मुसलमान तमाम इराक में फैल गए आज जहां बगदाद है वहां उस ज़माने में बहुत बड़ा बाजार लगता था, हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने वहां उस दिन हमला किया जिस दिन बाजार लगा था , सब लोग जान बचाने के लिए भागे, मुसलमानों के हाथ बेतहाशा माल आया।
★_ ईरान के दारुल हुकूमत में यह खबर पहुंची तो वहां खलबली मच गई, ईरान की मलका पुरान दुख्त को ना अहल क़रार दिया और तख्त से उतारकर यज़्दगर्द को बिठाया, यज़्दगर्द 16 साला नौजवान था, किसरा के खानदान में यही रह गया था, इस तरह यज़्दगर्द की तख्त नशीनी से ईरानी हुकूमत के पांव एक बार फिर जम गए ।
★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को खबर मिली तो आपने हजरत मुसना रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा - फौजों को हर तरफ से समेटकर अरब की सरहद तरफ हट आओ , रबिया और मुजिर के कबीलों को भी तलब कर लो_,"
इसके अलावा उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु ने हर तरफ काशिद दौड़ाएं, हर तरफ से लोगों को बुलाया गया, हज का जमाना था खुद भी मक्का मुकर्रमा पहुंचे, अभी आप हज से फारिग भी नहीं हुए थे कि हर तरफ से क़बीलों के काफिले उमड़ आए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु हज करके वापस आए तो बड़ी तादाद में मुजाहिदीन मदीना मुनव्वरा में जमा हो चुके थे, आपने हुक्म दिया- लश्कर को तरतीब दिया जाए मैं खुद सिपहसालार बनकर साथ जाऊंगा_,"
★_ जब लश्कर तरतीब दिया जा चुका तो खुद मदीना मुनव्वरा से निकल आए और इराक की तरफ रवाना हो गए, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के इस तरह साथ चल पड़ने से मुसलमानों में बेतहाशा जोश पैदा हो गया, मदीना मुनव्वरा से 3 मील के फासले पर लश्कर ने पड़ाव किया, उस वक्त बड़े-बड़े सहाबा ने मशवरा करके हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से अर्ज किया- ऐ अमीरुल मोमिनीन ! आप लश्कर के साथ ना जाएं, खुदा ना खास्ता आप को कुछ हो गया तो यह इस्लाम के लिए बहुत बड़ा सानहा होगा_,"
हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उनकी राय कुबूल फरमा कर हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु को लश्कर का सिपहसालार बनाया ।
★_ हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हू लश्कर को लेकर रवाना हो गए 17 या 18 मंजिलें तय करके आप सालबा पहुंचे, यहां पहुंचकर क़याम किया, सालबा कूफा से तीन मंजिल पर है, हजरत मुसना बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु 8000 के लश्कर के साथ ज़िका़र के मुका़म पर ठहरे हुए थे, उन्हें हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु के लश्कर का इंतजार था।
★_ वह चाहते थे कि लश्कर कूफा की तरफ बढ़े तो उसके साथ शामिल हो जाएं, उन्हें पुल की लड़ाई में शहीद जख्म आए थे और जख्म अभी ठीक नहीं हुए थे और इस मुका़म पर उन जख्मों की ताब ना ला कर वफात पाई, यह इतने बड़े सालार थे कि सदियों बाद ऐसे लोग पैदा होते हैं, जिहाद में जिंदगी खत्म कर दी और आखरी दम तक ईरानियों को नाकों चने चबवाते रहे, अल्लाह उन पर रहम फरमाए उनके दर्जात बुलंद फरमाएं, आमीन ।
★_ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु अभी शराफ के मुका़म पर थे कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की तरफ से हुक्म आया - शराफ से आगे बढ़कर का़दसिया में क़याम करें और इस तरह मोर्चे बनाओ कि सामने अजम की ज़मीन हो और कमर पर अरब के पहाड़ हों ताकि फतेह हो तो जहां तक चाहो बढ़ते चले जाओ और खुदा ना खास्ता दूसरी सूरत पेश आए तो हटकर पहाड़ों की पनाह ले सको,
★_ क़ादसिया एक बहुत महफूज मुका़म था यह शादाब इलाका था इसमें नहरें और पुल भी थे, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु इस्लाम से पहले तिजारत वगैरा के लिए इन इलाकों से गुजरा करते थे लिहाजा इन इलाकों से खूब वाकिफ थे, इसके बाद हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हू शराफ से चले तो उजैब पहुंचे, यहां अजमियों का असलहा खाना मौजूद था, वह इस्लामी लश्कर के हाथ लगा, आखिर क़ादसिया पहुंच गए ।
★_ ईरानी लश्कर का सिपहसालार रुस्तम को मुकर्रर किया गया था, यह मदाइन से रवाना होकर साबात में ठहरा था, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को इत्तिला भेजी , वहां से जवाब आया - जंग से पहले कुछ सफीर ईरानियों की तरफ भेजे जाएं ... उन्हें इस्लाम की दावत दी जाए_,"
हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने 14 का़बिल तरीन साथियों को मुंतखब किया जिनमें आसिम बिन उमर , अमरू बिन मादी कर्ब , मूगीरा बिन शोबा, मुइन बिन हारिसा और नोमान बिन मकरन रज़ियल्लाहु अन्हुम ज्यादा मशहूर है, यह हजरात अक़्ल, तदबीर और सियासत में अपना जवाब नहीं रखते थे ।
★_ यह सफीर घोड़ों पर सवार मदाइन पहुंचे, रास्ते में जिधर से गुज़रते लोगों की भीड़ लग जाती है उनकी ज़ाहिरी सूरत यह थी कि घोड़ों पर जी़न नहीं थी हाथों में हथियार नहीं थे मगर बेबाकी और दिलेरी उनके चेहरे से टपकती थी, देखने वाले फोरन मुतास्सिर हो जाते थे, उनकी सवारी में जो घोड़े थे वह खूब सेहतमंद और चाक चोबंद थे, उनकी ज़ोरदार टापों की आवाज़ यज़्दगर्द तक पहुंची तो उसने पूछा - यह कैसी आवाज है ? उसे बताया गया इस्लामी लश्कर के सफीर आए हैं ।
★_ यह इत्तेला मिलने पर उसने अपना दरबार सजाया, खूब साज़ो सामान से उसको आरास्ता किया ताकि मुसलमान सफीरों पर उसकी धाक बैठ जाए, रास्ते के दोनों तरफ अपने जंगजू खड़े किए , उन के दरमियान से गुजरकर इस्लामी सफीरों को उस तक जाना था, यह तमाम इंतजामात करने के बाद उसने उन सफीरों को तलब किया ,
★_ इस्लामी सफीर अरबी जुब्बे पहने कंधों पर चादर डाले हाथों में कोड़े लिए दरबार में दाखिल हुए ... मुसलमानों की मुसलसल फुतूहात ने ईरानियों पर पहले ही धाक जमा दी थी, ... यज़्दगर्द ने सफीरों की यह शान देखी तो उस पर हैबत तारी हो गई ।
★_ ( यह थी किसी ज़माने में मुसलमानों की शान कि दुनिया की सुपर पावर कहलाने वाली मुमलिकतों के हुक्मरान उनसे डरते थे ... आज के मुसलमान यहूदो नसारा से डरते हैं और मुस्लिम हुक्मरान उनके आगे हाथ जोड़ते हैं , सद अफसोस )
★_ यज़्दगर्द ने उनसे पहला सवाल किया तुम इस मुल्क में क्यों आए हो ? हजरत नोमान बिन मकरन रज़ियल्लाहु अन्हु उस जमात के अमीर थे उन्होंने उन्हें पहले तो इस्लाम के बारे में बताया फिर फरमाया- हम तमाम दुनिया के सामने यह चीजें पेश करते हैं इस्लाम कबूल कर लो या जिज़या देना क़ुबूल कर लो वरना फिर तलवार हमारे और तुम्हारे दरमियान फैसला करेगी _,"
★_ उनकी बात सुनकर यज़्दगर्द ने कहा - क्या तुम्हें याद नहीं कि तमाम दुनिया में तुमसे ज्यादा कमजोर और बदबख्त कौ़म कोई नहीं थी तुम जब कभी हमसे बगावत करते थे तो हम सरहद के जमींदारों को भेज देते थे वह तुम्हें सीधा कर देते थे _,"
★_ उनकी यह बात हजरत मुगीरा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु अन्हु से ज़ब्त ना हो सकी उन्होंने अपने साथियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह अरब के रईसों में से हैं अपनी बुर्दबारी और वका़र की वजह से ज्यादा बात नहीं करते थे, इन्होंने जो कहा वही मुनासिब था लेकिन कुछ बातें रह गई वह बातें मै बयान कर देता हूं , ए बादशाह ! यह सच है कि हम बदबख्त और गुमराह थे आपस में लड़ते मरते रहते थे अपनी लड़कियों को जिंदा दफन कर देते थे लेकिन अल्लाह ताला ने हममे एक पैगंबर भेजा वह हसब नसब में हम से आला था, शुरू शुरू में हमने उनकी मुखालफत की लेकिन फिर रफ्ता रफ्ता उसकी बातों ने दिलों पर असर किया _,"
"_ वो जो कहता था अल्लाह के हुक्म से कहता था और जो कुछ करता था अल्लाह के हुक्म से करता था, उसने हमें हुक्म दिया कि इस मज़हब को तमाम दुनिया के सामने पेश करो, जो इस्लाम ले आएं वह तमाम हुक़ूक़ में तुम्हारे बराबर है, जिन्हें इस्लाम से इंकार हुआ और जिज़्ये पर रज़ामंद हों वह इस्लाम की हिमायत में रहें और जिन लोगों को इन दोनों बातों से इंकार है उनके लिए तलवार है _,"
★_ यज़्दगर्द तैश में आ गया , उसने कहा - अगर कासिद का क़त्ल जायज़ होता तो तुममे से कोई जिंदा बचकर नहीं जाता _," उसने हुक्म दिया एक मिट्टी का टोकरा लाया जाए, जल्द ही मिट्टी का टोकरा लाया गया, उसने हुक्म दिया, टोकरा इनमें से किसी के सर पर रख दो _,"
वो टोकरा का हजरत आसिम बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु के सर पर रखा गया, उसने इसी हालत में उन्हें वापस लौट जाने को कहा , यह लोग वापस रवाना हुए , आखिर अपने लश्कर में पहुंच गए, हजरत साद बिन वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में पहुंच कर उन्होंने कहा - फतेह मुबारक हो, दुश्मन ने अपनी ज़मीन खुद ही हमें दे दी _,"
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*★_ रुस्तम के दरबार में सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम_,*
★_ रुस्तम 60 हज़ार का लश्कर लेकर साबात से निकला और क़ादसिया के मैदान में जा पहुंचा, रुस्तम का लश्कर जहां से भी गुजरा वहां के लोगों के साथ बुरा सुलूक करता आया, यहां तक कि लोगों में यह खयाल आम हो गया कि अजम की सल्तनत के ज़वाल का वक्त करीब है ।
★_ कई माह तक दोनों लश्कर आमने सामने पड़े रहे, रुस्तम अब तक लड़ने से जी चुराता रहा था, शायद उसे अपनी शिकस्त का पहले ही अंदाजा हो गया था, उसने एक मर्तबा फिर सुलह की कोशिश की, उसने हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पैगाम भेजा - अपना कोई का़सिद मेरे पास भेजो... मैं सुलह की बात करना चाहता हूं _,"
★_ हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु को भेजा, वह इस अंदाज़ में रवाना हुए कि तलवार के दस्ते पर चमड़े लपेट रखे थे और लिबास बिल्कुल सादा था कमर में रस्सी का पट्टा था तलवार उससे लटक रही थी ।
★_ उधर ईरानियों ने उन्हें अपनी शान और शौकत दिखाने के लिए खूब तैयारियों की, दरबार को खूब सजाया, दिबा का फर्श बिछाया रेशम के पर्दे लटकाए, शाही तख्त को सजाया बनाया, रास्ते के दोनों तरफ सिपाही खड़े किए, हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु उन के दरमियान में चलते दरबार तक आए , दिबा के फर्श के पास घोड़े से उतरे, उसकी बाग को गाव तकिये से लटकाया, दरबारियों ने बाहर हथियार ले लेने की कोशिश की, उन्होंने हथियार उतारने से इनकार कर दिया और कहा - तुम लोगों ने बुलाया है तो मैं आया हूं .. अगर तुम्हें इस हालत में मेरा दरबार तक जाना मंजूर नहीं तो मैं लौट जाता हूं _,"
★_ दरबारियों ने यह बात रुस्तम को बताइ, उसने इजाजत दे दी, रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु निहायत लापरवाही की हालत में आगे बढ़े, हाथ में नेज़ा था उस नेज़े को कालीन में घोंकते चले गए इस तरह वह कालीन जगह-जगह से कट गया, तख्त के नजदीक पहुंच कर उन्होंने अपना नेज़ा ज़मीन में मारा, नेजा़ जमीन में गड़ गया।
★_ अब बातचीत शुरू हुई, रुस्तम ने पूछा इस मुल्क में क्यों आए हो ? "_ हम इसलिए आए हैं कि मखलूक की इबादत के बजाय खालिक़ की इबादत की जाए _," इस पर रुस्तम ने कहा - मैं अरकाने सल्तनत से मशवरा करके जवाब दूंगा _,"
इस दौरान दरबारी बार-बार उठकर हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आने लगे उनके हथियार देखने लगे, उनमें से एक ने तंजिया अंदाज में कहा - क्या इन हथियारों से ईरान फतह करने का इरादा है ?
★_ यह सुनते ही हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने तलवार म्यान से निकाली, उसकी चमक उनकी आंखों को खैराहा कर गई बिजली सी कौंध गई थी, उन्होंने कहा- अगर मेरी तलवार की कारट देखना चाहते हो तो ढाला आगे करो_,"
एक सिपाही ने ढाल आगे कर दी, हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस पर तलवार मारी , ढ़ाल दो टुकड़े हो गई,
★ हजरत रबी बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से सुलह की बातचीत नाकाम रही , आखिर में हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु गए, हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हू घोड़े से उतर कर सीधे रुस्तम की तरफ गए , उसके जानू से जानू मिला कर बैठ गए, उनके नजदीक यह गुस्ताखी थी, चोबदारों ने उन्हें बाज़ू पकड़कर तख्त से उतार दिया, अब हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - मैं खुद नहीं आया हूं तुम ने बुलाया है मेहमान के साथ यह सुलूक ठीक नहीं_," उनके अलफाज़ सुनकर उन्हें शर्म महसूस हुई, रुस्तम भी शर्मिंदा होकर बोल उठा - यह मुलाजमीन की गलती थी मेरे हुक्म से ऐसा नहीं हुआ _,"
★_ अब रुस्तम ने बे तकल्लुफी के अंदाज में हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु के तरकश से तीर निकाले और उनको हाथों में लेकर कहा -इन तकलों से क्या होगा? हजरत मुगीरा रज़ियल्लाहु अन्हु जवाब में बोले - आग की लौ अगरचे छोटी होती है लेकिन फिर भी आग है _,"
रुस्तम में उनकी सलवार के मियान को देख कर कहा - यह किस क़दर बोसीदा है ? जवाब में उन्होंने कहा - हां , लेकिन तलवार की धार अभी तेज़ की गई है ।
★_ अब रुस्तम ने कहा - मैं तुम्हें मशवरा देता हूं अब भी वक्त है वापस चले जाओ हम तुम्हें नहीं रोकेंगे बल्कि कुछ इनाम व इकराम देकर रुखसत करेंगे _,"
हजरत मुगीरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने तलवार के दस्ते पर हाथ रखते हुए फरमाया - हमारी बस तीन बातें हैं, इस्लाम क़ुबूल करो, या जिज़या देना मंजूर करो वरना इस तलवार से फैसला होगा _",
★_ यह सुन कर रुस्तम गुस्से में भड़क उठा, उसने चीख कर कहा - सूरज की कसम ! मैं कल सारे अरब को बर्बाद कर दूंगा _,"
इस तरह यह बातचीत भी नाकाम हो गई , रुस्तम अब तक लड़ाई को बराबर टालता रहा था लेकिन इस बातचीत के बाद इस कदर तैश में आया कि उसने उसी वक्त फौजों को तैयारी का हुक्म दे दिया, दरमियान एक नहर थी, उसने हुक्म दिया सुबह होने से पहले पहले नहर को पाट दिया जाए ताकि रास्ता साफ हो जाए _,"
★_ सुबह तक नहर को पाटा जा चुका था और लश्कर के गुज़रने के लिए सड़क बना दी गई थी, दोपहर तक तमाम फौज नहर के दूसरी तरफ जा चुकी थी, अब रुस्तम ने दोहोरी जि़रा पहनी, सर पर खोद रखा, हथियार लगाएं, फिर अपना खास घोड़ा तलब किया, उस पर सवार कर पुरजोश अंदाज में बोला - मैं सारे अरब को चकनाचूर कर दूंगा _,"
किसी सिपाही के मुंह से यह अल्फाज़ निकल गये - हां , अगर खुदा ने चाहा _,"
यह सुनकर उसने कहा- अगर खुदा ने ना चाहा तो मैं तब भी अरब को बर्बाद कर दूंगा _,"
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*"_ क़ादसिया की जंग _,"*
★_ दोनों फौजें आमने-सामने हो गई, हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हू ने क़ायदे के मुताबिक 3 नारे लगाए, चौथे नारे में जंग शुरू हो गई, देर तक दोनों तरफ से बहादुर मैदान में आते रहे मुकाबले होते रहे, बाका़यदा जंग शुरू होने से पहले ही ईरानियों के बड़े-बड़े कई सरदार मारे गए।
★_ आखिर दोनों फौजें पूरी ताकत से एक दूसरे पर हमला आवर हुई, हजरत का़'का़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक अनोखी तदबीर की, इस्लामी लश्कर में हाथी नहीं थे जबकि ईरानियों के पास हाथी थे, उनकी वजह से इस्लामी लश्कर के घोड़े बिदक जाते थे, और हजरत क़ा'क़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह किया कि कई कई ऊंटों को मिलाकर उन पर चादर डाल दी, चादर में लिपटे यह ऊंट जब आगे लाए गए तो हाथी से भी ज्यादा खौफनाक जानवर नजर आए, इनको देखकर ईरानियों के घोड़े बिदकने लगे, यह तदबीर भी खूब कारगर रही,
★_ हजरत खनसा रज़ियल्लाहु अन्हा अरब की मशहूर शायरा थी, वह भी इस जंग में शरीक़ थी, उनके चार बेटे थे, चारों इस्लामी लश्कर में शामिल थे और दुश्मन से लड़ रहे थे, लड़ाई शुरू होने पर इन्होंने अपने बेटों से कहा था - प्यारे बेटों, जाओ दुश्मन से लड़ो और आखिर तक लड़ो _,"
★_ चारों एक साथ आगे बढ़े और दुश्मन पर टूट पड़े, जब लड़ते-लड़ते इस क़दर दूर निकल गए कि आंखों से ओझल हो गए तो हजरत खनसा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा - ऐ अल्लाह ! मेरे बेटों की हिफाजत फरमा _,"
उस रोज जंग में 2000 मुसलमान शहीद हुए उनके मुकाबले में 10 हजार के करीब ईरानी मारे गए या जख्मी हुए, फतेह और शिकस्त का फैसला ना हो सका, सूरज गुरूब होने के साथ ही दोनों लश्कर वापस पलट गए ।
★_ हजरत अबू उबेदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने शाम से सात सौ सवार भेजे थे वह भी पहुंच गए, उनके पहुंचने पर खूब नारे गूंजे, शाम से आने वाले दस्ते के सालार हिशाम थे , उन्होंने आते ही फौज से खिताब किया - तुम्हारे भाइयों ने शाम फतह कर लिया है, ईरान की फतेह का जो वादा तुमसे अल्लाह ताला का है वह भी पूरा होगा _,"
★_ फिर जंग का आगाज़ हुआ, ईरानियों की फौज में दो हाथी बहुत बड़े और खौफनाक थे, बाक़ी हाथी उनके पीछे चलते थे, मुसलमानों के घोड़े सबसे ज्यादा इन दो हाथियों से डर रहे थे, इन सब का जायज़ा लेने के बाद हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत क़ा'का़ रज़ियल्लाहु अन्हू और उनके खास साथियों को बुलाकर कहा - हाथियों की मुहिम अब तुम्हारे हाथ में है, उनकी आंखे फोड़ दो और सूंड़ काट दो , यह बेकार हो जाएंगे _,"
★_ हजरत क़ा'का़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुछ सवार पैदल मुजाहिद हाथियों की तरफ रवाना किए, उनके बाद खुद आगे बढ़े, हाथ में नेजा़ था , उन दो बड़े हाथियों में से एक की तरफ बढ़े, आसिम रहमतुल्लाह उनके साथ साथ थे, दोनों ने एक साथ ताक कर नेज़े मारे, दोनों नेज़े हाथी की दोनों आंखों में लगे, हाथी ने एक जबरदस्त झुरझुरी ली और पीछे हटा , साथ ही तलवार इस ज़ोर से उसकी सूंड पर मारी कि सूंड कट कर गिर गई ।
★_ दूसरी तरफ उनके साथियों ने दूसरे बड़े हाथी पर हमला किया वह भी जख्मी हुआ और उल्टा भागा, अब तमाम हाथी भी उन दोनों हाथियों के पीछे भागे, इस तरह इस्लामी फौज को इस स्याह मुसीबत से निजात मिली, अब उन्हें घोड़े बिदकने की परेशानी नहीं रही थी, इस ज़ोर की जंग हुई कि नारों की गूंज से ज़मीन हिलने लगी ।
★_ दोनों लश्करों पर जोश का एक ऐसा आलम तारी हो चुका था कि सूरज गुरुब होने के बाद भी लड़ाई बंद ना हो सकी यहां तक कि रात हो गई, लड़ाई फिर भी ना रुकी, आखिर हजरत का़'का़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने चंद नामूर बहादुरों को साथ लिया और रुस्तम की तरफ रुख किया, रुस्तम उस वक्त अपने तख्त पर बैठा था, उसने उन्हें अपनी तरफ का रुख करते देखा तो तख्त पर बैठा ना रह सका नीचे उतरा, उसने भी अपनी तलवार सौंत ली और मर्दानावार जंग करने लगा, बहुत देर तक लड़ता रहा यहां तक कि ज़ख्मों से चूर हो गया और भाग निकला।
★_ बिलाल नामी एक सहाबी ने उसका पीछा किया, ऐसे में एक नहर सामने आ गई, रुस्तम कूद पड़ा कि तैर कर निकल जाएं, बिलाल भी घोड़े से कूद पड़े , उसे टांगों से पकड़कर नहर से निकाल लाए फिर तलवार के एक वार से उसका काम तमाम कर दिया , उन्होंने लाश खच्चर के पैरों के पास डाल दी और खुद तख्त पर चढ़कर पुकार उठे - मैंने रुस्तम को क़त्ल कर दिया है _,"
★_ ईरानियों ने तख्त की तरफ देखा, उस पर रुस्तम ना था, बस फिर क्या था पूरी फौज में भगदड़ मच गई , मुसलमानों ने दूर तक उनका पीछा किया ।
★_ हजरत साद बिन अबी वका़स रज़ियल्लाहु अन्हु ने फतह की खबर हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को भेजी, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु खबर सुनने को बुरी तरह बेचेन थे, बेचैनी के आलम में आप रोजाना सुबह सवेरे से बाहर निकल आते और क़ासिद की राह देखते रहते, जब का़सिद के आने की उम्मीद ना रह जाती तब वापस लौटते ।
★_ इसी तरह एक दिन का़सिद के इंतजार में दूर तक नज़रे जमाए खड़े थे कि एक सवार आता नज़र आया वह ऊंट पर सवार था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उसके नजदीक आने का इंतजार ना किया खुद उसकी तरफ दौड़ पड़े, वह हजरत साद का का़सिद था सीधा मैदान-ए-जंग से चला आ रहा था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा - कहां से आ रहे हो ? वह हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को पहचानता नहीं था चुनांचे लापरवाही के आलम में बोला- का़दसिया से आ रहा हूं । हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने बेताबाना पूछा - जंग की क्या खबर है ? उसने बताया - अल्लाह ताला ने मुसलमानों को फतेह अता फरमाई ।
★__ यह कहते हुए वो आपके पास से गुजर कर आगे बढ़ गया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु उसके साथ साथ दौड़ने लगे, साथ साथ जंग के हालात पूछते जाते हैं और दौड़ते जाते थे यहां तक कि इसी हालत में क़ासिद मदीना मुनव्वरा में दाखिल हो गया , अब जो लोग सामने आ रहे थे उन्होंने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को देखकर फोरन कहा - अमीरुल मोमिनीन अस्सलामु अलैकुम... अमीरुल मोमिनीन अस्सलामु अलैकुम _,"
★_ अब क़ासिद को मालूम हुआ कि यह शख्स इतनी दूर से उसके ऊंठ के साथ-साथ भागा चला आ रहा है वह तो मुसलमानों के हुक्मरान हैं यानी दूसरे खलीफा हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु है जिनसे कैसरो किसरा थरथर कांप रहे हैं, यह मालूम होते ही वह लरज़ गया फौरन अपने ऊंट से नीचे उतर आया, परेशानी के आलम में बोला - अमीरुल मोमिनीन मुझे माफ कर दीजिए मैं आपको पहचानता नहीं था _,"
"_कोई हर्ज नहीं तुम फिक्र ना करो बस जंग के हालात सुनाते रहो और ऊंट पर सवार हो जाओ मैं इसी तरह तुम्हारे साथ साथ चलूंगा _,"
★_ चुंनाचे उसे फिर ऊंट पर सवार होने पर मजबूर कर दिया, आप उसके साथ साथ चलते रहे जंग के बारे में पूछते रहे यहां तक कि घर आ गया , अब आपने सब लोगों को जमा करके फतेह की खुशखबरी सुनाई, एक बहुत ज़बरदस्त तक़रीर मुसलमानों के सामने की, आखिर में फरमाया -
"_ मुसलमानों ! मैं बादशाह नहीं कि तुम्हें गुलाम बनाना चाहता हूं , नहीं ! मैं तो खुद अल्लाह ताला का गुलाम हूं अलबत्ता खिलाफत का बोझ मेरे सर पर रख दिया गया है, अगर मैं उसी तरह तुम्हारे काम करूं कि तुम चैन से घरों में सोओ तो यह मेरे लिए स'आदत की बात है और अगर मैं यह ख्वाहिश करूं कि तुम मेरे दरवाज़े पर हाज़िरी दो तो यह मेरे लिए बद बख्ती की बात है, मैं तुम्हें तालीम लेना चाहता हूं लेकिन बातों से नहीं, अमल से _,"
▪•═════••════•▪
*"_ मदाइन की फतह और सहाबा का दरिया दज़ला में घोड़े डाल देना _,*
★_ उधर ईरानी का़दसिया से भागे तो बाबुल पहुंचकर दम लिया, यह एक महफूज और बड़ा मुकाम था, यहां आकर एक बार फिर उन्होंने जंग की तैयारी शुरू कर दी, फिरोजा़न को लश्कर का सिपहसालार मुकर्रर कर लिया, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु 15 हिजरी में बाबुल की तरफ बढ़े, बाबुल में ईरानियों के बड़े-बड़े सरदार जमा थे इसके बावजूद यह लोग इस्लामी लश्कर के पहले ही हमले में भाग निकले,
★_ हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु बाबुल में ठहरे अलबत्ता कुछ फौज आगे रवाना कर दी, उस फौज का सालार उन्होंने जो़हराह को मुकर्रर फरमाया, ईरानी फौज बाबुल से फरार होकर कोसी पर पहुंच गई थी, यहां ईरानियों का सालार शहरयार था जो़हराह कोसी के मुकाम पर पहुंचे और शहरयार को शिकस्त देकर आगे बढ़े।
★_ हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु मदाइन के लिए रवाना हुए, आगे बढ़े तो उनके सामने दरिया दज़ला था, इस पर जहां-जहां पुल बने हुए थे ईरानियों ने मुसलमानों की आमद की खबर पाकर सब पुलों को तोड़ दिए थे, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु जब दरिया के किनारे पहुंचे तो वहां ना कोई फुल था ना कश्ती ।
★_ आपने फौज से मुखातिब होकर कहा - बिरादराने इस्लाम ! दुश्मन ने हर तरफ से मजबूर होकर दरिया के दामन में पनाह ली है, तुम यह मुहिम भी सर कर लो, फिर मैदान साफ है _,"
यह कह कर आपने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया, उन्हें देखकर फौज ने भी हिम्मत की और सब दरिया में उतर गए, दरिया में बहुत तुगयानी थी और वह मौजे मार रहा था, मौजे घोड़ों से आकर टकराती रही और यह रकाब से रकाब मिला कर आपस में बातें करते आगे बढ़ते रहे यहां तक कि फौज की तरतीब तक में फर्क ना आया ।
★_ दूसरी तरफ ईरानी हैरतजदा अंदाज में यह मंज़र देख रहे थे, फौज जब किनारे के करीब पहुंच गई तो उन्हें ख्याल आया, ये इंसान नहीं है चुनांचे चिल्ला उठे - देव आ गए ... देव आ गए _,"
यह कहते हुए खौफजदा होकर भागे ।
★_ उनके सिपहसालार खुज़राव की फौज ने मुसलमानों पर तीरों की बारिश शुरू कर दी, मुसलमानों ने उन तीरों की कोई परवाह ना की और बराबर आगे बढ़ते रहें यहां तक कि तीरंदाजों को मलिया मेट कर दिया, यज़्दगर्द में जब यह खबर सुनी तो शहर छोड़कर निकल भागा, हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु मदाइन में दाखिल हुए तो हर तरफ सन्नाटा था ।
▪•═════••════•▪
*"_मदाइन की फतह _,*
★_ फौज ने वहां जुमे की नमाज अदा की इस तरह यह वहां पहला जुम्मा था जो इराक में अदा किया गया, इस्लामी लश्कर को वहां से बहुत माले गनीमत हाथ आया , नौशेरवान से लेकर मौजूदा दौर तक की तमाम कीमती चीजें लाकर हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने ढ़ेर कर दी गई,
★_ इनमें हजारों ज़िरहे, तलवारे खंजर, सोने के ताज और शाही लिबास थे , सोने का एक घोड़ा भी था उस पर चांदी की जीन कसी थी, सीने पर याकूत और ज़ुमर्द जड़े हुए थे , चांदी की एक ऊंटनी थी उस पर सोने की पालान थी, उसकी मुहार में याकूत जड़े हुए थे सवार भी सर से लेकर पर तक जवाहरात से अटा हुआ था, इन सब से भी ज्यादा अजीब एक कालीन था ईरानी उस कालीन को बहार के नाम से पुकारते थे , उस कालीन पर दरख़्त थे सब्ज़ा था फूल थे यानी पूरा बाग था और यह सब जवाहरात से तैयार किया गया था यानी सोने चांदी और मोतियों से तैयार किया गया था,
★_ यह सब का सब सामान मुजाहिदीन को मिला था लेकिन क्या मजाल कि किसी ने उस में से कोई चीज खुद उठाई हो , जो चीज जिस हालत में पाई लाकर सालार के आगे रख दी, जब यह सारा सामान लाकर सजाया गया तो दूर-दूर तक मैदान-ए-जंग जगमगा उठा, हजरत साद रज़ियल्लाहु अन्हु भी हैरतजदा रह गए,
★_ माले गनीमत का़यदे के मुताबिक तक़सीम किया गया और पांचवा हिस्सा दरबारे खिलाफत को भेज दिया गया, फर्श और क़ालीन यादगारें ज्यो त्यों भेज दी गई, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के सामने जब यह सारा सामान चुना गया तो आपको भी फौज की दयानत पर हैरत हुई ,
★_ मदीने में एक शख्स मुहालिम नामी रहता था वह बहुत लंबे क़द का था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हुक्म दिया - नौशेरवान के लिबास लाकर मुहालिम को पहनाए जाएं_,"
यह लिबास मुख्तलिफ हालात के थे सवारी का अलग दरबार का अलग जश्न का अलग मुबारक बादी का अलग,
★_ चुनांचे बारी-बारी यह सब उसे पहनाए गए, जब उसे खास लिबास पहना कर ताज सर पर रखा गया तो देखने वालों की आंखें खैरा हो गई, लोग दैर तक उसे हैरत ज़दा अंदाज़ में देखते रहे ,
का़लीन के बारे में लोगों की राय थी कि उसे ज्यों का त्यों रहने दिया जाए लेकिन फिर काटकर तक़सीम कर देने का फैसला हुआ।
★_ मदाइन के बाद सिर्फ जलूला बाक़ी रह गया था, मदाइन से भागकर ईरानी यहां जमा हो गए थे और जंग की तैयारी कर रहे थे, खरज़ाद रुस्तम का भाई उसका सालार था उसने शहर के गिर्द खंदक तैयार करा दी रास्तों और गुज़रगाहों पर गोखर्द ( लोहे की कीलें ) बिछवा दिए, हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु को यह इत्तेला मिली तो आपने हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को खत लिखा, वहां से हुक्म आया - हाशिम बिन उतबा 12 हज़ार फौज लेकर इस मुहिम पर जाए_,"
★_ इस तरह हाशिम बिन उतबा 12 हज़ार फौज लेकर जलूला की तरफ बढ़े , 4 दिन बाद वहां पहुंचकर शहर का मुहासरा कर लिया, यह मुहासरा कई माह तक ज़ारी रहा, आखिर एक दिन ईरानी खूब तैयारी के साथ बाहर निकले, मुसलमानों ने भी खूब जमकर उनका मुकाबला किया, फिर अल्लाह ताला ने खास मेहरबानी फरमाई, एक ज़बरदस्त आंधी आई जिससे घुप अंधेरा हो गया , हजारों इरानी अंधेरे की वजह से खंदक में गिर गई, ईरानियों के पांव उखड़ गए वह बदहवास होकर भागे, मुसलमानों के हाथ बेतहाशा माले गनीमत आया , इसका अंदाजा 3 करोड़ लगाया गया ।
★ _ हज़रत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु न फ़तेह की ख़ुश खबरी के साथ माले गनीमत का पांचवा हिस्सा मदीना मुनव्वरा भिजवाया, यह ख़ुश ख़बरी ले कर ज़ियाद रह. ग्रे, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे जंग के हालात सुने फ़िर तमाम मुसल्मानो को जमा होने का हुकम फ़रमाया और ज़ियाद रेह. से फ़रमाया - सबके सामने तमाम वक़ियात बयान करें _, “उहोन भरे मजमे को हालात सुनाएं और इस तरह बयान किया कि पूरा मंजर लोगो को नज़र अाने लग, आप हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे - खतीब इसे कहते हैं, "
★ _ माले गनीमत का मस्जिद के सहन में ढ़ेर कर दिया गया लेकिन उस वक्त तक अंधेरा फैल चुका था चुनांचे सुबह तक़सीम करने का फैसला हुआ, सुबह के वक्त लोगों के सामने माले गनीमत से चादर हटाई गई, दिरहम व दीनार के अलावा वहां जवाहिरत के भी अम्बार लगे हुए थे, ये देख कर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु बे साख़्ता रो पड़े,
★ _ लोग उनके रोने पर बहुत हैरान हुए कि यह रोने का कौनसा मौक़ा है यह तो खुशी का मौक़ा है, लोगों को हैरान देखकर आपने फरमाया - जहां माल व बदौलत आती है वहां रश्क व हसद भी साथ आता है _, "
★ _ यज़्दगर्द को जलूला में इरानियो की शिकस्त की ख़बर मिली तो वो हलवान को छोड कर रे की तरफ़ चला गया, हलवान में चंद दस्ते फौज के छोड गया, उनका सालार ख़ुसरो शानून को मुक़र्रर किया था,
अब हज़रत सअद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत क़’आक़ा’अ रज़ियल्लाहु अन्हु को हलवान की तरफ रवाना किया, ये हलवान से तीन मील के फ़ासले पर थे कि ख़ुसरो ख़ुद आगे बढ़ आया, पहले तो उसने डट कर मुकाबला किया लेकिन फ़िर शिकस्त के असार देख कर भाग निकला, इस तरह हलवान भी मुसलमानों के क़ब्ज़े में आ गया,
★_ हज़रत क़ा’आक़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अमन का ऐलान क़रा दिया, इस तरह चारो तरफ़ से ईरानी उनकी खिदमत में हाज़िर होने लगे और जिज़िया क़ुबूल करन लगे, इस तरह यह लोग इस्लाम की हिमायत मे आ गए , इस मुक़ाम पर इराक़ की हद खत्म हो जाती थी, इस इलाके के फतेह के साथ ही पूरा ईरान फतेह हो गया, इस तरह हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौरे ख़िलाफ़त में ईरान के फ़ुतुहात का सिलसिला मुकम्मल हो गया,
★_ उधर हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु का शाम के फुतूहात का सिलसिला जारी था और दमिश्क फतेह हो चुका था, दमिश्क की फतेह ने रोमियो में आग सी लगा दी, दमिश्क की फतेह के बाद मुसलमानों ने उर्दून का रुख किया था, इसलिए रोमियो ने भी उर्दून के शहर बीसान में फौजे जमा कर ली, इस तरह वहां 40 हजार के करीब रोमी लश्कर जमा हो गया , इस लश्कर के सालार का नाम सकर था।
★_ शाम का मुल्क छह जिलों में तक़सीम था उनमें दमिश्क हिम्स उर्दून और फिलिस्तीन मशहूर जिले थे,
★_ रोमियो ने वहां जिस कदर भी नहरें थी उन सब के बंद तोड़ दिए, इस तरह वहां पानी ही पानी हो गया, कीचड़ और पानी की वजह से तमाम रास्ते रुक गए लेकिन इस्लाम का सैलाब भला उनसे कब रुक सकता था, इस्लामी लश्कर फिर भी बीसान पहुंच गया, उनकी यह मजबूती देखकर ईसाई फौज ने सुलह का पैगाम भेजा लेकिन सुलह ना हो सकी, जंग शुरु हुई तकरीबन 1 घंटे जंग जारी रही, आखिर रोमियो के पांव उखड़ गए वह बुरी तरह बदहवास होकर भागे,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने फतह की खुशखबरी मदीना मुनव्वरा भेजी और अमीरूल मोमिनीन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु से मालूम करवाया कि इन लोगों के साथ क्या सलूक किया जाए , उधर से जवाब आया - रिआया को ज़िम्मी क़रार दिया जाए और ज़मीन बा दस्तूर जमींदारों के कब्जे में छोड़ दी जाए_,"
★_ इस अज़ीमुश्शान फतेह के बाद उर्दून के तमाम शहर आसानी से फतेह होते चले गए, हर मुकाम पर यह लिख कर दिया गया - फतेह किए गए लोगों की जान माल ज़मीन मकानात गिरिजे और दूसरी इबादतगाहें सब की सब महफूज़ रहेंगी सिर्फ मस्जिदों की तामीर के लिए किसी क़दर जमीन ली जाएगी _,"
यानी किसी के साथ भी कोई नागवार सुलूक नहीं किया गया जबकि रोमी और ईरानी फतेह किए गए इलाकों के लोगों पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ते रहे थे ।
▪•═════••════•▪
*"__हिम्स की फतह _,*
★ _ अब हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने हिम्स का रुख किया, शाम के तमाम ज़िलो मेरे से यह एक बडा ज़िला था, पुराना शहर था, उरदुन का बाद अब सिर्फ तीन शेहर बाकि रह गए थे, इन तीनो के फतेह होने का मतलब था पूरा शाम फ़तेह हो गया, ये तेनो शेहर बैतुल मुक़द्दस, हिम्स और अन्ताक़िया थे, अन्ताक़िया मे ख़ुद हिरक्कल मौज़ूद था, इन तीनों में हिम्स ज़्यादा क़रीब था, इसीलिए हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने पहले इसी का रुख किया ,
★ _ हिम्स के नज़दीक रोमियो ने ख़ुद आगे बढ़ कर मुक़ाबला करना चाहा, एक बड़ी फ़ौज हिम्स से निक्ली, जोसिया के मुक़ाम पर दोनो फौज आमने सामने आ गई, हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के पहले ही हमले में उनके पांव उखड़ गए,
★ _ हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने मुसीरह बिन मसरूक़ को थोडी सी फौज दे कर हिम्स की तरफ़ रवाना किया , रास्ते में रोमीयो की शिकस्त खाई हुइ फ़ौज से मुक़ाबला होता रहा, उन मुकाबलों में भी मुसलमानों को फतह हुई ।
★ _ इधर हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हिम्स का रुख किया, हिम्स को घेरे में लिया गया, मोसम बहुत सर्द था, रोमियो को यक़ीन था कि मुसलमान सर्दी का मुक़ाबला नहीं कर सकेंगे, हिरक्कल का पैगाम भी उन्हें पहंच चूका था कि बहूत जल्दी मदद पहंच जायगी और हिरक्कल एक बड़ा लश्कर रवाना कर चुका था, लेकिन हजरत सा’द बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस लश्कर को रोकने के लिए अपनी तरफ से इस्लामी लश्कर भेज दिया , हजरत साद बिन अबी वकास रज़ियल्लाहु अन्हु उस वक़्त इराक़ की मुहिम पर थे, उन्के लश्कर ने रोमी फ़ौज को वही रोक लिया और वो हिम्स ना पहुंच सकी ।
★_ अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू आगे बढ़े, रास्ते में जो इलाके आते गए वह आसानी से फतेह होते चले गए, यहां तक की लाज़क़िया तक पहुंच गए, लाज़किया बहुत पुराना शहर था, उसकी मजबूती को देखकर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने उससे कुछ फासले पर पड़ाव किया,
★_ यहां हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने अजीब हिकमत अमली अपनाई, आपने मैदान में खाइयां खुदवाई, यह इस तरह खोदी गई कि दुश्मन को पता ना चल सका, फिर एक दिन फौज को कूच का हुक्म दे दिया, रोमियो ने लश्कर को वापस जाते देख लिया वह समझे कि मुसलमान मायूस हो कर चले गए लेकिन हुआ सिर्फ यह था कि रात की तारीकी में इस्लामी लश्कर निहायत खामोशी से लौट आया था और उन खाइयों में छुप गया था,
★_ उधर रोमी इस लंबे मुहासरे से तंग आए हुए थे उन्होंने जब देखा कि मुसलमान जा चुके हैं तो शहर के दरवाजे खोलकर बाहर निकल आए और रोज़मर्रा के कामों में बेफिक्री से मशगूल हो गए, यही वक्त था जिसका मुसलमानों को इंतजार था, वह खाइयों से निकल आए और उन पर अचानक हमला कर दिया, इस तरह शहर फौरन फतेह हो गया,
★_ हिम्स की फतेह के बाद हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने हिरक्कल के पाया तख्त का रुख करने का इरादा किया लेकिन हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का हुक्म आया कि इस साल और आगे ना बढ़ो, चुनांचे रवानगी रोक दी गई, फतह किए इलाकों में बड़े बड़े अफसरों को भेज दिया गया , चुनांचे हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु दमिश्क चले गए, हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने उर्दून में क़याम किया, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू खुद हिम्स में ठहरे ।
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*"_ यरमूक की तैयारी _,"*
★"_ दमिश्क और हिम्स से शिकस्त खाकर यहूदी अंताकिया पहुंचे उन्होंने हिरक्कल से फरियाद की, कि अरबों ने तमाम शाम फतेह कर लिया है, हिरक्कल ने उनमें से चंद होशियार आदमियों को दरबार में तलब किया और उनसे कहा - अरब तुमसे ताक़ में और साज़ो सामान में कम है.. फिर तुम उनके के मुकाबले में क्यों नहीं ठहर सके ?
★_ उनके सर शर्म से झुक गए कोई कुछ ना बोलो आखिर एक बूढ़े ने कहा - अरबों के अखलाक़ हमारे अखलाक़ से अच्छे हैं वह रात को इबादत करते हैं दिन को रोज़े रखते हैं किसी पर जुल्म नहीं करते एक दूसरे से भाइयों की तरह मिलते है कोई खुद को दूसरे से बड़ा नहीं समझता जबकि हमारा हाल यह है कि शराब पीते हैं बदकारियां करते हैं अहद की पाबंदी नहीं करते , दूसरे पर जुल्म करते हैं, उनका यह असर है कि उनके काम में जोश पाया जाता है हम मे जोश और जज्बा नहीं है _,"
★_ इस बातचीत के बाद केशर ने रोम, कुस्तुनतुनिया, जजी़रा, आर्मीनिया, गर्ज़ हर तरफ अहकामात भेजें कि तमाम फौजे पाया तख्त अंताकिया मे एक मुकर्रर तारीख को जमा हो जाएं, उसने तमाम जिलों के अफसरों को लिखा कि जिस क़दर आदमी जहां से भी मुहैया हो सके, रवाना कर दिए जाएं, यह अहकामात के पहुंचते ही हर तरफ से इंसानों का सैलाब अंताकिया की तरफ चला पड़ा , अंताकिया के चारों तरफ जहां तक नजर जाती थी फौज ही फौज नजर आती थी,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू को यह खबर मिल चुकी थी , उन्होंने सबको जमा किया और उनके सामने एक पुरजोश तकरीर की, उस तकरीर में आपने फरमाया :- "_मुसलमानों ! अल्लाह ताला ने तुम्हें बार-बार जांचा .., तुम हर बार उसकी जांच में पूरे उतरे, इसके बदले अल्लाह ताला ने भी तुम्हें कामयाबियां अता फरमाई, अब तुम्हारा दुश्मन उस साजो सामान से तुम्हारे मुकाबले में आया है कि जमीन कांप उठी है ... अब बताओ तुम क्या कहते हो ?
★_ आखिर यह मशवरा हुआ कि हिम्स को छोड़कर दमिश्क की तरफ रवाना हो जाएं वहां खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु मौजूद हैं और अरब की सर जमीन वहां से करीब है, यह बात तय हो गई तो हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने हबीब बिन मुस्लिमों को बुलाया, यह अफसर ए खजाना थे, आपने उनसे फरमाया :-
"_ हम ईसाईयों से जिया लेते रहे हैं उसके बदले में उनकी हिफाजत करते रहे लेकिन इस वक्त हमारी हालत यह है कि उनकी हिफाजत नहीं कर सकते लिहाजा इस वक्त तक उन से जितना ज़िज्या लिया है वह सब का सब उन्हें वापस कर दें और उनसे कह दे कि हमें तुमसे जो ताल्लुक था वह अब भी है लेकिन चु़की इस वक्त हम तुम्हारी हिफाज़त की जिम्मेदारी पूरी नहीं कर सकते इसलिए जिज़्या वापस करते हैं क्योंकि जिस दिया दरअसल हिफाजत करने का मुआवजा़ होता है ,
★_ जब यह लाखों की रकम वापस की गई तो ईसाइयों पर इसका इस क़दर असर हुआ कि वह रोने लगे, रोते जाते थे और कहते जाते थे खुदा तुम्हें वापस लाएं _,"
यहूदियों पर भी बहुत असर हुआ उन्होंने कहा - तौरात की क़सम, जब तक हम जिंदा हैं कैसर हिम्स पर कब्जा नहीं कर सकता _,"
और फिर उन्होंने शहर के दरवाज़े बंद कर लिए, जगह-जगह पहरे बिठा दिए, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने यह सुलूक सिर्फ हिम्स वालों ही से नहीं किया बल्कि जिस क़दर जि़ले फतेह हो चुके थे हर जगह लिख भेजा :-
"_ जिज़्ए कि जिस क़दर रकम वसूल की है सारी की सारी वापस कर दी जाए _,"*
★_ गर्ज़ इसके बाद हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु दमिश्क की तरफ रवाना हुए, उन्होंने इन तमाम हालात की खबर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को भी कर दी, जब हजरत उमर रज़ि. को यह मालूम हुआ कि मुसलमान रोमियों के डर से हिम्स छोड़ कर चले आए हैं तो आपको बहुत रंज हुआ लेकिन जब उन्हें बताया गया की फौज के तमाम अफसरों का फैसला यही था तब उन्हें इत्मिनान हुआ, आपने फरमाया - अल्लाह ताला ने किसी मसलिहत के तहत ही तमाम मुसलमानों को इस राय पर जमा किया होगा _,"
★_ फिर आपने हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु को लिखा - मैं मदद के लिए सईद बिन आमिर रज़ि. को भेज रहा हूं लेकिन फतेह शिकस्त फौज की ज्यादती पर नहीं है_,"
हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने दानिश के पहुंचकर तमाम अफसरों को जमा किया और उनसे मशवरा किया, अभी मशवरा हो रहा था कि हजरत अमरू बिन आस रजि. का का़शिद खत लेकर पहुंचा, खत का मजमून यह था - उर्दून के जि़लों में आम बगावत फैल गई है, रोमियो की हर तरफ से आमद ने हर तरफ हलचल मचा दी है अफरा तफरी फैल गई है, हिम्स छोड़कर चले आने से बहुत नुक़सान हुआ है ..हमारा रौब उठ गया _,"
★_ इसके जवाब में हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने लिखा - हमने हिम्स को डर कर नहीं छोड़ा बल्कि मक़सद यह था कि दुश्मन महफूज मका़म से निकल आए और इस्लामी फौजें जो जगह-जगह फैली हुई हैं वह सब एक जगह जमा हो जाएं.. और आप वहीं ठहरे, हम आ रहे हैं _,"
दूसरे दिन उन्होंने उर्दुन की हुदूद में पहुंचकर मरमूक़ के मुकाम पर क़याम किया, हजरत अमरु बिन आस रज़ि. भी उनसे यहीं आ मिले _,"
★_ यह मुका़म जंग के लिए इस वजह से मुनासिब था कि अरब की सरहद यहां से क़रीब तरीन थी, इस्लामी लश्कर को यह फायदा था कि जहां तक चाहते हट सकते थे, हजरत सईद बिन आमिर रजियल्लाहु अन्हु भी 1हज़ार का लश्कर लेकर वहां पहुंच गए _,
★_ हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने एक और खत हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु को लिखा, उसके अल्फाज यह थे :- "_ रोमी खुश्की और समुंदर से उबल पड़े हैं हालांकि उनके जोश का यह आलम है कि फौज जिस रास्ते से गुजरती है वहां के राहिब और पादरी भी उनके साथ शामिल होते जा रहे हैं उन लोगों ने कभी भी इबादत खानों से क़दम बाहर नहीं निकाले थे, यह सब मिलकर अपनी फौज को जोश दिला रहे हैं _,"
★_ हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को यह खत मिला तो उन्होंने तमाम मुहाजिरीन और अन्सार को जमा कर लिया ,खत उन्हें पढ़कर सुनाया, तमाम सहाबा बे अख्त्यार रो पड़े और निहायत पुरजोश अंदाज में पुकार उठे, ऐ अमीरुल मोमिनीन ! हमें इजाजत दीजिए हम भी जाते हैं अपने भाइयों के साथ मिलकर दीन पर निसार होते हैं _,"
अब तो मुहाजिरीन और अंसार का जोश बेतहाशा बढ़ गया, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू के नाम एक जोरदार लिखा और कासिद से फरमाया - तुम खुद एक एक सफ में जा कर यह खत सुनाना _,"
★_ क़ासिद खत लेकर पहुंचा उसने एक-एक सफ में जा कर खत सुनाया, इससे मुसलमानों का हौसला बड़ा, उन्होंने पुरजोश अंदाज में तैयारी शुरू कर दी, दूसरी तरफ रोमी लश्कर भी खूब साजो सामान से लेस हो कर आगे बढ़े , उनकी तादाद 2 लाख से कहीं ज्यादा थी, कुल फौज की 24 सफें थी , फौज के आगे मजहबी पेशवा पादरी वगैरह हाथों में सलीबे लिए जोश दिला रहे थे और फिर दोनों फौजे आमने-सामने आ गई और यरमूक का मैदान था।
★_ रोमी बारी-बारी अपने लश्कर सामने लाते रहे, उन्होंने हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु के दस्तों के मुकाबले में अलग-अलग फौजें आगे भेजी लेकिन उन सब ने बारी-बारी शिकस्त खाई ।
★_ रोमी सिपहसालार बाहान ने रात के वक्त अपने सरदारों को जमा किया है और कहा :- अरबों को शाम की दौलत का मज़ा पड़ गया है बेहतर यह है कि माल व दौलत देकर उन्हें टाला जाए _,"
इस राय से सबने इत्तेफ़ाक किया, दूसरे दिन उन्होंने एक क़ासिदद हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू की तरफ भेजा, उसने आपकी खिदमत में हाज़िर होकर कहा - हमारे सिपह सालार चाहते हैं आप बातचीत के लिए किसी अफसर को भेजें _,"
★_ उस वक्त मगरिब की नमाज़ का वक्त हो चला था, हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने उसे ठहराया कि नमाज़ के बाद बात करते हैं, वह उन्हें नमाज़ पढ़ते हुए हैरतज़दा अंदाज में देखता रहा, नमाज़ हो चुकी तो उसने हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू से पूछा - हजरत ईसा के बारे में तुम्हारा क्या अक़ीदा है ?
जवाब में हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू ने सूरह निसा की आयत 171 तिलावत की :-
"_ (तर्जुमा) ऐ अहले किताब ! तुम अपने दीन में हद से ना निकलो और अल्लाह की शान में सिवाय पक्की बात के ना कहो बेशक मसीह ईशा मरियम के बेटे और अल्लाह के रसूल हैं और अल्लाह का एक कलमा हैं जिन्हें अल्लाह ने मरियम तक पहुंचाया और अल्लाह की तरफ से एक जान हैं, सो अल्लाह पर और उसके सब रसूलों पर ईमान लाओ, और यह ना कहो कि खुदा तीन है इस बात को छोड़ दो तुम्हारे लिए बेहतर होगा, बेशक अल्लाह अकेला मा'बूद है वह इससे पाक है कि उसकी औलाद हो, उसी का है जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है और अल्लाह कारसाज़ काफी है, मसीह खुदा का बंदा बनने से हरगिज़ आर नहीं करेगा और ना मुक़र्रब फरिश्ते और जो कोई उसकी बंदगी से इनकार करेगा और तक़ब्बुर करेगा अल्लाह ता'ला उन सबको अपनी तरफ इकट्ठा करेगा _,"
★_ मुतर्जिम ने जब इस आयत का तर्जुमा क़ासिद के सामने किया तो वह बे अख्तियार पुकार कर बोला - "_बेशक ईसा अलैहिस्सलाम के यही औसाफ है और बेशक तुम्हारा पैगंबर सच्चा है_,"
यह कहकर उसने कलमा तौहीद पड़ा और मुसलमान हो गया ... साथ ही उसने कहा - "_बस अब मैं अपनी कौम के पास वापस नहीं जाऊंगा _,"
★_ इस पर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने क़ासिद से कहा- इस तरह रोमी कहेंगे कि मुसलमानों ने बे अहदी की, हमारे क़ासिद को रोक लिया.. लिहाजा तुम इस वक्त तो चले जाओ कल जब हमारा का़सिद वहां से आए तो तुम उसके साथ चले आना _," उसने यह बात मान ली ।
★_ दूसरे दिन हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु रोमियो के लश्कर में पहुंचे, रोमियों ने उन्हें अपनी शान शौकत दिखाने के ज़बरदस्त इंतजाम कर रखे थे, रास्ते के दोनों तरफ सवारों की सफे क़ायम की थी, वह सवार सर से पैर तक लोहे में गर्क़ थे, लेकिन हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु ज़रा भी उनसे मर'ऊब ना हुए, उल्टा हिकारत भरी नजरों से उन्हें देखते हुए गुजरते चले गए, बिल्कुल ऐसा मालूम हो रहा था जैसे शेर बकरियों के रेवड़ को चरता आगे बढ़ रहा है ( गौर करो मुसलमानों कभी हमारा यह हाल था, आज हम दीन की मेहनत को छोड़कर किस हाल में पहुंच गए हैं ),
★_ हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु बाहान के खेमे के पास पहुंचे तो उसने बहुत अहतराम से आपका इस्तकबाल किया और अपने बराबर बिठाया, मुतर्जिम के जरिए बातचीत शुरू हुई, पहले उसने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तारीफ की फिर कैसर के बारे में बोला - हमारा बादशाह तमाम बादशाहों का शहंशाह है..., अभी यहां तक ही कह पाया था कि हजरत खालिद बोल उठे :-
"_ तुम्हारा बादशाह जरूर ऐसा होगा लेकिन हमने जिस शख्स को अपना सरदार बना रखा है अगर उसे एक लम्हे के लिए भी बादशाहत का ख्याल आ जाए तो हम फौरन उसे माज़ूल कर दें _,"
★_ बाहान ने उनके खामोश होने पर फिर अपनी तक़रीर शुरू की :- ऐ अहले अरब ! तुम्हारी कौम के लोग हमारे मुल्क में आकर आबाद हुए हमने हमेशा उनके साथ दोस्ताना सुलूक किया हमारा ख्याल था हमारे इस सुलूक की वजह से पूरा अरब हमारा शुक्रगुजार होगा लेकिन इसके खिलाफ तुम हमारे मुल्क पर चढ़ आएं अब तुम चाहते हो कि हमें हमारे मुल्क से निकाल दो.. तुम नहीं जानते इससे पहले भी बहुत क़ौमो ने ऐसा करना चाहा लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए, अब तुम आए हो तुमसे ज्यादा जाहिल और बे साज़ो सामान क़ौम और कोई भी नहीं, इस पर तुमने यह जुर्रत की, खैर.. दर गुजर करते हैं .. अगर तुम यहां से चले जाना मंजूर कर लो तो हम इनाम के तौर पर सिपहसालार को 10 हज़ार दीनार और अफसरों को हजार हजार दीनार और आम सिपाहियों को सौ सौ दीनार देंगे _," बाहान यहां तक कह कर खामोश हो गया ,
★_ अब हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा -
"_ बेशक तुम दौलतमंद हो हुकूमत के मालिक हो, तुम ने अपने हमसाया अरबों के साथ जो सुलूक किया है वह भी हमें मालूम है लेकिन यह तुमने उन पर कोई एहसान नहीं किया था बल्कि यह तुम्हारा अपने दीन की इशाअत ( प्रचार ) का तरीका था, इसका असर यह हुआ कि वह ईसाई हो गए और वह आज खुद हमारे मुकाबले में तुम्हारे साथ हैं, यह भी दुरुस्त है कि हम निहायत मोहताज तंगदस्त और खानाबदोश थे , हमारा हाल यह था कि ताकतवर कमज़ोर को कुचल देता था, क़बाइल आपस में लड़ लड़ कर मर जाते थे, हमने बहुत से खुदा बना रखे थे, उन्हें पूजते थे, अपने हाथ से बुत तराशते थे और उसकी इबादत किया करते थे..,"
★_ .. अल्लाह ताला ने हम पर रहम फरमाया और हममें एक पैगंबर भेजा वह खुद हमारी कौ़म से थे, हम में सबसे ज्यादा शरीफ पाक बाज़ और सखी थे, उन्होंने हमें तोहीद का सबक़ दिया, हमें बताया कि अल्लाह का कोई शरीक नहीं ना उसकी कोई बीवी है ना औलाद, वह बिल्कुल यकता ( अकेला ) है, उन्होंने हमें यह भी हुक्म दिया कि हम इन अक़ाइद को दुनिया के सामने पेश करें, .. जो इनको मानले वह मुसलमान हैं हमारा भाई है, जो इंकार करे वह जिज़या देना कुबूल करें हम उसकी हिफाजत के ज़िम्मेदार हैं, जो इन दोनों बातों से इनकार करेगा उससे हम मुकाबला करेंगे _,"
★_ बाहान ने यह सुनकर सर्द आह भरी और बोला :- हम की़मत पर भी जिज़या नहीं देंगे.. हम तो जिज़या लेते हैं, देते नहीं _,"
इस तरह कोई बात तैय ना हो सकी और हजरत खालिद रजियल्लाह अन्हु वापस आ गए, चुनांचे लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी गई,
★_ हजरत खालिद रज़ियल्लाहू अन्हू के चले जाने के बाद बाहान ने सरदारों को जमा किया और उनसे बोला :- तुमने सुना यह क्या कह गए .. उनका दावा है कि जब तक तुम उनकी रिआया ना बन जाओ जंग नहीं टल सकती, क्या तुम्हें उनकी गुलामी मंज़ूर है ?
वह सब के सब पुरजोश अंदाज में बोल उठे - हम मर तो जाएंगे उनकी गुलामी कुबूल नहीं करेंगे _,"
चुनांचे जंग का फैसला कर लिया गया।
★_ दूसरी सुबह रोमी लश्कर इस क़दर साजो सामान के साथ आया कि मुसलमान हैरान रह गए, इस्लामी फौज की तादाद सिर्फ 36 हज़ार थी जबकि रोमियो की तादाद 2 लाख से ज्यादा थी, हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह देखकर अपनी फौज के 36 हिस्से किए और आगे पीछे उनकी सफें क़ायम की , इस तरह उनकी 36 सफें बन गई, फौज के क़ल्ब यानी दरमियान पर हजरत अबू उबैदा रज़ियल्लाहु अन्हू को मुकर्रर किया, दाएं हिस्से पर हजरत अमरू बिन आस और हजरत शर्जील बिन हसना रज़ियल्लाहु अन्हु को, जबकि बाएं बाजू पर यजीद बिन अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु को मुकर्रर फरमाया, इनके अलावा हर सफ का भी एक अफसर था, इस तरह 36 अफसर मुकर्रर किये ।
★_ इस्लामी लश्कर की तादाद अगरचे दुश्मन के मुकाबले में बहुत कम थी लेकिन उनमें चुने हुए हजरात थे, इनमें 100 सहाबा वो थे जिन्होंने बदर की लड़ाई में हिस्सा लिया था, बदरी सहाबा का तो अपना मुका़म है, क़बीला हमीर की एक बड़ी जमात थी, क़बीला हमदान, खोलाना, लाहम, जुज़ाम वगैरा के मशहूर बहादुर भी शामिल थे, एक खास बात यह थी कि इस्लामी लश्कर में खवातीन भी शामिल थी जो मुजाहिदीन को मुख्तलिफ खिदमात और मरहम पट्टी वगैरा पर मामूर थी।
★_ हजरत मिक़दाद रजियल्लाहु अन्हु की आवाज बहुत दिलकश थी, वह फौज के आगे सूरह अनफाल पढ़ते जाते थे,
आखिर जंग शुरु हुई इब्तेदा रोमियो की तरफ से हुई, सहाबा ने इस मौके पर इस शिद्दत से जंग की कि रोमियों की सफे दर्हम बर्हम हो गई,
★_ हजरत इक्रमा रज़ियल्लाहु अन्हू इस्लाम लाने से पहले कुफ्फार के लशकरों में शामिल होकर मुसलमानों के खिलाफ लड़ चुके थे, यह अबू जहल के बैटे थे, इन्होंने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और पुकारे - ईसाइयों ! मैं किसी जमाने में मुसलमानों से लड़ता रहा हूं, आज तुम्हारे मुकाबले में भला किस तरह पीछे हट सकता हूं _," यह कहा और अपनी फौज की तरफ रुख करके बोले - आओ.. आज मौत पर कौन बैत करता है ? , 400 मुजाहिदीन ने मौत पर उनसे बैत की इनमें ज़रार बिन नज़्द भी थे, ये साबित क़दमी से लड़े यहां तक कि सब के सब शहीद हो गए, ये हजरात अगरचे शहीद हो गए लेकिन इन्होंने रोमियो के हजारों आदमी काट कर रख दिए थे, इस पर हजरत खालिद अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हमलों ने उनकी कमर तोड़ कर रख दी, हजरत खालिद रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें उन्हें दबाते चले गए ।
★_ कबास बिन अशीम, स'ईद बिन ज़ुबैर, यजीद बिन अबी सुफियान, अमरू बिन आस, शरज़ील बिन हसना रज़ियल्लाहु अन्हुम जम कर लड़े, कबास बिन अशीम का हाल यह था कि नेज़े और तलवारे उनके हाथों से टूट कर गिर रहे थे मगर एक कदम पीछे नहीं हट रहे थे, नेजा़ टूट कर गिरता तो कहते - कोई है जो उस शख्स को हथियार दे जिसने अल्लाह से इक़रार किया है कि मैदान-ए-जंग से हटेगा तो मर कर हटेगा _,"
लोग फौरन तलवार या नेज़ा उन्हें पकड़ा देते, वो फिर शेर की तरह दुश्मन पर झपट पड़ते,
★_ अबू अलानूर ने तो यहां तक किया कि घोड़े से कूद पड़े और अपने दस्ते से मुखातिब होते हुए बोले - सब्र और इस्तक़लाल दुनिया में इज्जत है और उक़बा (आखिरत) में रहमत.. देखना यह दौलत हाथ से जाने ना पाए_,"
इसी तरह यज़ीद बिन अबी सुफियान रजियल्लाहु अन्हु बड़ी बे जिगरी और साबित कदमी से लड़ रहे थे, यह हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के भाई थे, ऐसे में उनके वालिद हजरत अबू सुफियान रजियल्लाहु अन्हु उनकी तरफ निकल आए, यह मुसलमानों में जोश दिलाते फिर रहे थे, बेटे पर नजर पड़ी तो कहने लगे:- बेटा इस वक्त हर एक बहादुरी के जौहर दिखा रहा है, तू तो सिपहसालार है .. तुझे शुजाअत दिखाने का ज्यादा हक़ है, तेरी फौज का एक सिपाही भी अगर तुझसे बाजी ले गया तो यह तेरे लिए शर्म की बात होगी _,"
★_ हजरत शरज़ील रज़ियल्लाहु अन्हू का यह हाल था कि रोमियो ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था, यह उन के दरमियान पहाड़ की तरह खड़े थे, लड़ रहे थे और कुरान ए करीम की यह आयत तिलावत करते जाते थे ,
(तर्जुमा)_ अल्लाह के साथ सौदा करने वाले और अल्लाह के हमसाए बनने वाले कहां हैं ?"
फौज को साथ लेकर आगे बढ़े और रोमियों की पेश कदमी को रोक कर रख दिया,
★_ औरतों में भी इस मौके पर कमाल की बहादुरी दिखाई , वो भी रोमियों के मुकाबले पर डट गई, उनसे भी मुसलमानों को बहुत हिम्मत मिली, औरतों ने चिल्ला चिल्ला कर यह अल्फाज़ कहे - मैदान से कदम कदम हटाया तो फिर हमारा मुंह ना देखना _,"
★_ अब तक जंग बराबर की जारी थी दोनों लश्कर पूरी तरह डटे हुए थे बल्कि रोमियों का पल्ला क़दरे भारी था, ऐसे में अचानक हजरत क़ैस बिन बहीरा लश्कर के पीछे से निकल कर सामने आए, उन्हें हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौज के एक हिस्से पर अफसर मुक़र्रर कर रखा था उन्हें उसी हिस्से के लश्कर में पिछली तरफ रहने का हुक्म था, इस मौक़े पर आगे आए और इस तरह रोमियो का टूटे कि रोमी सरदार खुद को संभाल ना सके,
★_ रोमियो ने अपने कदम जमाने की पूरी कोशिश कर डाली एडी से लेकर चोटी का जोर लगा डाला मगर कैस बिन बहीरा के हमले से उनके उखड़े कदम रूक ना सके यहां तक कि उनकी सफे दरहम बरहम हो गई, उनके साथ ही हजरत स'ईद बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने लश्कर के क़ल्ब से निकलकर हमला किया, रोमी पीछे हटते चले गए, उनकी पुस्त पर एक नाला था वह पीछे हटते हटते उस नाले के किनारे तक पहुंच गए, अब जंग उस नाले के पास होने लगी, रोमियो की लाशें उसमें इस क़दर गिरने लगी कि नाला भर गया,
★_ ऐसे में खास वाक्या भी हुआ,