0
⚂⚂⚂.
        ▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁▁
     ✮┣ l ﺑِﺴْـــﻢِﷲِﺍﻟـﺮَّﺣـْﻤـَﻦِﺍلرَّﺣـِﻴﻢ ┫✮
    ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙
       *■ मोहसिन ए इंसानियत ﷺ ■* ⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙══⊙                                     ★ *क़िस्त–52_* ★
         *⚂ मक्की दौर -- वो नौजवान ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_अरब के एक मुमताज़ मज़हब और आला रिवायात रखने वाले ख़ानदान में, सलीमुल फ़ितरत वालदेन के क़िरानुल सा'आदेन (दो मुबारक सितारो के मिलन) से एक अनोखा सा बच्चा यतीमी के साये के पैदा होता है, एक गरीब मगर शरीफ़ जा़त की दाया का दूध पी कर देहात के सेहत बख्श महोल के अंदर फितरत की गोद में पलता है, वो खास इंतजाम से सेहरा में दौड़ धूप करते करते जिंदगी के मैदान में मशक्कतों का मुक़ाबला करने की तैयारियां करता है और बकरियां चरा कर तरबियत पाता है,*

*❀"_ बचपन की पूरी मुसाफत तैय करने से पहले ये अनोखा बच्चा मां के सफक़्क़त भरे साए से भी मेहरूम हो जाता है, दादा की जा़त किसी हद तक वाल्देन के इस खला को पुर करने वाली थी लेकिन ये सहारा भी छीन लिया जाता है, बिल आखिर चाचा कफील बनते हैं, ये गोया माददी सहारो से बेनियाज़ हो कर एक आक़ा ए हक़ीक़ी के सहारे की तैयारी कराई जा रही है,*

*❀"_ जवानी के दायरे में क़दम रखने तक ये अनोखा बच्चा आम बच्चों की तरह खेल कूद में मशगूल और शरीर बन कर सामने नहीं आता, बल्की बुढ़ों की सी संजीदगी से आरास्ता नज़र आता है, ज़वान होता है तो इंतेहाई फासिद महोल में पलने के बावजूद अपनी जवानी को बेदाग रखता है, इश्क़ और नज़र बाज़ी और बदकारी जहां नोजवानों के लिए सरमाया इफ्तिखार बने हुए हैं, वहां वो अपने दामाने नज़र तक को एक आन भी मेला नहीं होने देता_,"*

*❀"_ जहां गली गली शराब कशीद करने की भट्ठियां लगी हों, घर घर में शराब खाने खुले हों, जहां मजलिस मजलिस शराब के क़दमो में ईमान व अखलाक़ निछावर किए जाते हों, और फिर जहां शराब के चर्चे फखरिया कसीदों और शैरो शायरी में किए जाते हैं, वहां ये जुदागाना फितरत का नोजवान कभी क़सम खाने को भी शराब का एक क़तरा तक अपनी ज़ुबान पर नहीं रखता,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -114,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–53_* ★
         *⚂ मक्की दौर -- वो नौजवान ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥"_ जहां क़िमार (जुवां खेलना) क़ौमी मशगला बनता चला आ रहा था वहां ये नौजवान एक मुजस्समा पाकीज़गी था कि जिसने कभी मोहरों को हाथ से न छूआ, जहाँ दास्तान गोई और मौसिक़ी कलचर का लाज़मा बने हुए थे वहां किसी और ही आलम का ये नौजवान लहू व लहब से बिलकुल अलग थलग रहा, और दो मर्तबा ऐसे मोके़ पैदा हुए भी कि ये नोजवान ऐसी मजालिस तफरीह में जा पहुंचा लेकिन जाते ही ऐसी नींद तारी हुई कि समा व बसर का दामन पाक रहा,*

*❀_"_ जहां बुतों के सामने सज्दा पाशी ऐन दीन व मज़हब क़रार पा चुकी थी वहाँ ख़ानदाने इब्राहीमी के इस पाकीज़ा मिज़ाज नोजवान ने ना गैरुल्लाह के सामने कभी अपना सर झुकाया ना कोई मुशरीकाना एतक़ाद का तसव्वुर अपने अंदर जज़्ब किया बल्कि एक मर्तबा बुतों के चढ़ावे का जानवर पका कर लाया गया तो उसने वो खाना खाने से इंकार कर दिया,*

*❀_"_ जहां कुरेश ने ज़माना हज में अपने आपको अरफात जाने से मुतसना (अलग) कर लिया था, वहां इस मुमताज़ मर्तबे के कुरैशी ने कभी इस मंगढत इस्तस्ना से फायदा ना उठाया, जहां औलदे इब्राहिमी ने मसलके इब्राहिमी को बिगाड़ कर दूसरी खराबियों के साथ काबा का तवाफ हालते उरयानी (नंगा हो कर) करने की एक गंदी बिदअत पैदा कर ली थी, वहां इस हयादार नोजवान ने कभी इस बिदअत को अख्त्यार ना किया,*

*❀_"_जहाँ जंग एक ख़ैल थी और इंसानी ख़ून बहाना एक तमाशा था, वहाँ अहतरामे इंसानियत का अलमबरदार ये नोजवान ऐसा था कि जिसके दामन पर ख़ून की एक छींट ना पड़ी थी,*

*❀_"_ फिर इस पाकबाज़ व अफीफ नोजवान की दिलचस्पी देखिये कि ऐन बहक जाने वाली उमर में वो अपनी खिदमात अपने हम ख्याल नोजवानों की एक इस्लाह पसंद अंजुमन के हवाले करता है जो हिलफुल फुजू़ल के नाम से गरीबों और मज़लूमो की मदद और जा़लिमो के जुल्म को खत्म करने के लिए क़ायम हुई थी, उसके शुरका ने इस मक़सद के लिए हलफिया अहद बांधा, आप ﷺ दौरे नबुवत में इसकी याद ताज़ा करते हुए फरमाया करते कि -उस मुआहिदे के मुक़ाबले में अगर मुझको सुर्ख रंग के ऊंट भी दिए जाते तो मैं उससे ना फिरता और आज भी ऐसे मुआहिदे के लिए कोई बुलाए तो मैं हाजिर हूं _,"*        

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -115,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–54_* ★
         *⚂ मक्की दौर -- वो नौजवान ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_फ़िर उस नौजवान की सिफ़ात और सलाहियतों का अंदाज़ इससे कीजिये कि तामीरे काबा के मोक़े पर हजरे असवद नसब करने के मामले में कु़रेश में कशमकश पैदा होती है और तलवारे मियानों से बाहर निकल आती है, लेकिन तक़दीर के इशारे से इस झगड़े को निपटाने का सर्फ इसी नोजवान के हिस्से में आता है, इंतेहाई जज्बाती तनाव की इस फिज़ा में ये जज और सुलह का अलमबरदार एक चादर बिछाता है और उस पर पत्थर को उठा कर रखता है और फिर दावत देता है कि तमाम क़बीले के लोग मिल कर इस चादर को उठाओ, चादर पत्थर समेत मुताहरिक हो जाती है और जब मोके़ पर जा पहुंचते हैं तो वो नोजवान उस पत्थर को उठा कर उसकी जगह पर नसब कर देता है, झगड़े का सारा गुबार छट जाता है और चेहरे खुशी और इत्मिनान से चमक उठते हैं,*

*❀"_ ये नौजवान मैदान ए माश में क़दम रखता है तो तिजारत जेसा पाकीज़ा और मोअज्जि़ज़ मशगला अपने लिए पसंद करता है, कोई बात तो इस नौजवान में थी कि अच्छे अच्छे अहले सरमाया ने ये पसंद किया कि ये नौजवान उनका सरमाया अपने हाथ में ले और करोबार करे, फ़िर सा'इब, क़ैस बिन सा'इब मखज़ुमी, हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा और जिन दूसरे लोगो को इस नौजवान के हुस्ने मामलात का इल्मी तजुर्बा हुआ, उन्होंने उसे "ताजिर ए अमीन" का लक़ब दिया _,"*

*❀"_ अब्दुल्ला बिन अबी अलमुम्सा की गवाही आज भी महफूज़ है कि बैसत से पहले खरीद फारोख्त के मामले में उस ताजिर ए अमीन से तय हुआ कि आप ठहरें मैं अभी फिर आउंगा, लेकिन बात आई गई हो गई, तीसरे रोज़ इत्तेफाक़न अब्दुल्लाह का गुज़र उसी मुक़ाम से हुआ तो देखा कि वो ताजिर ए अमीन वादे की डोरी से बंधा उसी जगह खड़ा है और कहता है कि "तुमने मुझे ज़हमत दी, मैं इसी मुक़ाम पर तीन दिन से मोजूद हूँ _," (अबू दाऊद)*

*❀"_ फिर देखें कि ये नोजवान रफीका़ ए हयात का इंतेखाब करता है तो मक्का की नव उमर शोख व शंग लडकियों को एक ज़रा सा खराज निगाह तक दिये बैगर एक ऐसी खातून से रिश्ता मुनाकहत उस्तवार करता है जिसकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो खानदान और ज़ाती सीरत व किरदार के लिहाज़ से निहायत असरफ़ खातून है, उसका ये ज़ोके इंतेख़ाब उसके ज़हन, उसकी रूह, उसके मिज़ाज और उसकी सीरत की गहराइयों को पूरी तरह नुमाया कर देता है, पैगाम ख़ुद वही ख़ातून हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा भेजती है, जो उस यकता रोज़गार नौजवान के किरदार से मुतास्सिर होती हैं और ये नोजवान उस पैगाम को शरह सदर के साथ क़ुबूल करता है _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -115,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–55_* ★
         *⚂ मक्की दौर -- वो नौजवान ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥-_ फिर किसी शख्स के ज़हन व सीरत को अगर उसके हलका ए अहबाब का जायजा़ लेने से जाँचा जा सकता है तो आईये देखिये के उस अरबी नोजवान के दोस्त केसे लोग थे, गालीबन सबसे गेहरी दोस्ती और सबसे ज़्यादा बेतकल्लुफ़ाना राब्ता हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से था, एक हम उमरी ऊपर से हम मिज़ाजी!*

*"❀_ उस नोजवान के दोस्तों में एक शख्सियत हकीम बिन हिजा़म रजियल्लाहु अन्हु की थी, जो हजरत खदीजा रजियल्लाहु अन्हु के भतीजे थे और हरम के मनसबे रफादा पर फाइज़ थे, हिजरत के आठवे बरस तक ये ईमान नहीं लाए, लेकिन फिर भी आन हज़रत ﷺ से ग़हरी मुहब्बत रखते थे और इस मुहब्बत के तहत एक मर्तबा पचास अशर्फियों का एक क़ीमती हुल्ला (जुब्बा या चादर) ख़रीद कर मदीना में आ कर पेश किया, मगर आन हज़रत ﷺ ने बा इसरार क़ीमत अदा कर दी,*

*"❀_ फिर हलका ए अहबाब के एक रुक्न ज़माद बिन सालबा अज़दी थे जो हिकमत व जराही ( इलाज) का काम करते थे, उस नोजवान के हलका ए अहबाब में क्या कोई एक भी फितरत पस्त ज़ोक और कमीना मिज़ाज आदमी दिखाई देता है? मक्का के अशरार ( बदमाशों) में से किसी का नाम इस फेहरिस्त में मिलता है? ज़ालिमों और फासिक़ों में से कोई इस दायरे में सामने आता है?*

*"❀_ फ़िर देखिए कि ये यकता ए ज़माना नौजवान घर बार की देख भाल, तिजारत और दुनियावी मामलात की गोना गो मसरूफ़ियतों से फारिग हो कर जब कभी कोई फुर्सत का वक़्त निकालता है, तो तफ़रीहात व तैशात (ऐशो इशरत) में खर्च नहीं करता, यूज कूचा गर्दी में और मजलिस अराई और गप्पो में नहीं खपाता, उसे सो सो कर और गफलत में बेकार पड़े रह कर नहीं गुज़ारा, बल्की सारे हंगामों से किनारा कर के और सारे मशगलों को छोड़ कर गारे हिरा की खिलवतों में खुदा ए वाहिद की इबादत और उसका ज़िक्र अपनी फितरत मुताहरा की राहनुमाई के मुताबिक करता है,*

*❀_"कायनात की गेहरी हक़ीक़तों को अख्ज़ करने के लिए और इंसानी ज़िंदगी के गैबी राज़ो को पा लेने के लिए आलम उनफस व आफाक़ में गौर व फिक्र करता है और अपनी कौ़म और अपने अबना ए नो को अखलाकी़ पस्तियों से निकाल कर फ़रिश्तो जैसे मर्तबा पर लाने की तदबीरें सोचता है, जिस नौजवान की जवानी की फुर्सत इस तरह सर्फ हो रही हो क्या उसकी फितरत के बारे में इंसानी बसीरत कोई राय क़ायम नहीं कर सकती?*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -116,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–56_* ★
         *⚂ मक्की दौर -- वो नौजवान ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- होने वाला आखिरी नबी ﷺ इस नक्शा ए जिंदगी के साथ कुरेश की आंखों के सामने और उनके अपने ही मक्की माशरे की गोद में पलता है, जवान होता है और पुख्तगी के मरतबे को पहुंचता है, क्या ये नक्शा ए जिंदगी बोल बोल कर नहीं बता रहा था कि ये एक निहायत ही गैर मामूली अज़मत रखने वाला इंसान है? क्या इस उठान से उठने वाली शख्सियत के बारे में यह राय क़ायम करने की कुछ भी गुंजाइश किसी पहलू से मिलती है कि नाउज़ुबिल्लाह ये किसी झूठे और फरेबी आदमी का नक़्शा होगा?*

*❀"_ हरगिज नहीं! हरगिज नहीं! खुद कुरेश ने सादिक़ व अमीन, दाना व हकीम और पाक नफ्स व बुलंद किरदार तस्लीम किया, और बार बार तस्लीम किया, उसके दुश्मनों ने उसकी ज़हनी व अख़लाक़ी अज़मत की गवाही और सख़्त तरीन कश्मकश करते हुए दी ! दाई बर हक़ के नक्शा ए जिंदगी को खुद कुरान ने दलील बना कर पेश किया, "आखिर इससे पहले मैं एक उम्र तुम्हारे दरमियान गुज़ार चुका हूं, क्या तुम अक़ल से काम नहीं लेते_ ,"(यूनुस- 16)*

*❀"_ लेकिन अपनी क़ौम का ये चमका हुआ हीरा जब नबुवत के मनसब से कलमा हक़ पुकारता है तो ज़माने की आंखों का रंग बदल जाता है और उसकी सदाक़त व दयानत और उसकी शराफत व नजाबत की क़दर व कीमत बाजा़रे वक्त में यकायक गिरा दी जाती है, कल तक जो शख्स क़ौम का माया नाज़ फरज़ंद था आज वो उसका दुश्मन और मुखालिफ बन जाता है,*

*❀"_ कल तक जिसका अहतराम बच्चा बच्चा करता था, आज वो एक एक कदरदान की निगाहों में मबगूज़ ठहरता है, वो शख्स जिसने चालीस साल तक अपने आपको सारी कसौटियों पर खरा साबित कर के दिखाया था, तोहीद, नेकी और सच्चाई का पैगम सुनाते ही कुरेश की निगाहों में खोटा सिक्का बन जाता है, खोटा वो ना था बल्कि उनकी अपनी निगाहों में खोट था और उनके अपने मैयार गलत थे,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -117,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–57_* ★
*⚂ मक्की दौर- क़ुरेश के मुखालफत की वजह ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_क्या कुरेश की आंखें इतनी अंधी थी कि वो माहोल की तारीकियों में जगमगाते हुए एक चांद की शान नहीं देख सकती थी? क्या उनकी महफिल में वो ऊंचे अखलाकी़ क़दो क़ामत रखने वाले एक सरदार को नहीं पहचान सकती थी? क्या खार व खस के हुजूम में एक गुलदस्ता ए शराफत व अज़मत उनसे अपनी क़द्रो क़ीमत नहीं मनवा सका था?*

*❀"_ नहीं नहीं! कुरेश खूब पहचानते थे कि मुहम्मद ﷺ क्या है ? मगर उन्होन जान बूझकर आंखो पर पट्टी रख ली, मुफाद और तास्सुबात ने उनको मजबूर किया कि वो आंखे रखते हुए अंधे बन जाएं, जब कोई आंखे रखते हुए अंधा बन जाता है तो उससे बड़ी बड़ी मुसीबतें और तबाहियां रुनुमा होती है, "_और उनके पास आंखें हैं मगर वो उनसे देखते नहीं _," (अल आ'राफ -179)*

*❀"_ आज अगर किसी तरह हम मुशरिकीने मक्का से बात कर सकते तो उनसे पूछते कि तुम्हारे खानदान के उस चश्म व चराग ने जो दावत दी थी वो फी नफ्सा क्या बुराई की दावत थी? क्या उसे तुमको चोरी और डाके के लिए बुलाया था ? क्या उसने तुमने जुल्म और क़त्ल के लिए पुकारा था? क्या उसने तुम्हें बेवाओं और कमज़ोरों पर जफाएं ढाने की कोई स्कीम पेश की थी? क्या उसने तुमको आपस में लड़ाने और कबीले कबीले में फसाद डालने की तहरीक चलाई थी? क्या उसने माल समेटने और जायदाद बनाने के लिए एक जमात खड़ी की थी? आखिर तुमने उसके पैगाम में क्या कमी देखी? उसके प्रोग्राम में कोनसा फसाद महसूस किया? क्यों तुम परे बांध कर उसके खिलाफ उठ खड़े हुए?*

*❀"_ कुरेश को जिस चीज़ ने जाहिलियत के फासिद निज़ाम के तहफ्फुज़ और तबदीली की रो की मजा़हमत पर अंधे जूनून के साथ उठा खड़ा किया वो यह हरगिज ना थी कि मुहम्मद ﷺ के फिक्र व किरदार में कोई रुखना (लालच) था या आप ﷺ की दावत में कोई खतरानक खराबी थी, बल्कि वो चीज़ सिर्फ क़ुरेश की मुफाद परस्ती थी!*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -117,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–58_* ★
*⚂ मक्की दौर- क़ुरेश के मुखालफत की वजह ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥-- कुरेश सालहा साल के जमे हुए अरबी मा'शरे के सांचे में अपने लिए एक ऊंचा मक़ामे क़यादत हासिल कर चुके थे, तमाम सियासी और मज़हबी मनासिब उनके हाथ में थे, इक्त्सादी (माली) और कारोबारी लिहाज़ से सयादत ( सरदारी) का सिक्का रवां था, पूरी कौम की चौधराहट उन्हें हासिल थी, उनकी ये चौधराहट उसी मज़हबी व तमद्दुनी व माशरती सांचे में चल सकती थी जो जाहिली दौर में उस्तवार था, अगर वो शऊरी और गैर शऊरी तोर पर मजबूर थे कि अपनी चौधराहट का तहफ्फुज ( हिफाज़त) करें तो फिर वो इस पर भी मजबूर थे कि जाहिली निज़ाम को भी हर हमले और हर तंज़ील (कमी) से बचायें _,*

*"❀_ क़ुरेश जहाँ सियासी व मा'शराती लिहाज़ से चौधरी वे वहां वो अरब के मुशरीकाना मज़हब के पुरोहित, मज़हबी स्थानो के मुजाविर और तमाम मज़हबी उमूर के ठेकेदार भी थे, ये मज़हबी ठेकेदारी, सियासी व मा'शराती चौधराहट की भी पुश्तेबान (मददगार) थी और बजाये खुद एक बड़ा करोबार भी थी, इसके ज़रीए सारे अरब से नज़रे और नियाजे़ और चढ़ावे खिंचे आते थे, इसकी वजह से उनकी दामन बोसियां होती थी, इसकी वजह से उनके क़दमों को छुआ जाता था,*

*❀"_ मज़हब जब एक तबक़े का कारोबार बन जाता है तो उसकी असल रूह और मकसदियत को छोड़ दिया जाता है और गोनागोई रसमियत का एक नुमाइशी तिलस्म क़ायम हो जाता है, उसूली तक़ाज़े फ़रामोश हो जाते हैं और मज़हबी कारोबार की अपनी बनाई हुई एक शरीअत आहिस्ता आहिस्ता जगह पा जाती है,*

*❀"_ मा'अकुलियत (इंसानियत) खत्म हो जाती है, अंधी अकी़दते और फिजूल वहम परस्ती हर तरफ छा जाती है, इस्तदलाल गायब हो जाता है और जज़्बाती हैजानात अक़ल का गला घोंट लेते हैं, मज़हब का अवामी व जम्हूरी मिज़ाज काफूर हो जाता है और ठेकेदार तबके का तहक्कुम माशरे के सीने पर सवार हो जाता है, हक़ीक़ी इल्म मिट जाता है, हवाई बाते मक़बूल आम हो जाती हैं, ऐतका़द व अहकाम की सादगी हवा हो जाती है _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -118,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–59_* ★
*⚂ मक्की दौर- क़ुरेश के मुखालफत की वजह ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ जब कभी मजाहिब में बिगाड़ पैदा हुआ है तो हमेशा इस नहज पर हुआ है, जाहिली अरब में ये बिगाड़ बिल्कुल अपनी इंतेहाई शक्ल पर पहुंचा हुआ था, इसी बिगाड पर कुरेश की मन्नत गर्दी और मुजावरी की सारी गद्दियां' क़ायम थी, ये ज़र ख़ैज़ गद्दियां अपनी बक़ा के लिए इस बात की मोहताज थी कि फ़ासिद मज़हबियत के ढांचे को जों का त्यों क़ायम रखा जाए और इसके ख़िलाफ़ न कोई सदा ए अहतजाज व इख़्तिलाफ़ उठने दी जाए और न किसी दावत तगय्युर व इस्लाह को बरपा होने दिया जाए, पस कुरेश अगर दावत ए मुहम्मदी ﷺ के खिलाफ तिलमिला कर न उठ खड़े होते तो और क्या करते?*

*❀"_ और फिर हाल ये था कि कुरेश का कल्चर निहायत फासीकाना कल्चर था, शराब और बदकारी, जुवां और सूदखोरी, औरतों की तहकी़र और बेटियों का जिंदा दफन करना, आजा़द को गुलाम बनाना और कमज़ोरों पर ज़ुल्म ढाना, ये सब उस कल्चर के लवाजिम थे, कुरेश के लिए आसान न था कि वो अपने हाथो बनाए हुए इस अपनी तहजीबी क़फस को तोड़ कर एक नई फिज़ा में परवाज़ करने के लिए तैयार हो जाएं, उन्हें फोरन मेहसूस हो गया कि दावत ए मुहम्मद ﷺ उनकी आदात उनकी ख्वाहिशात उनके फुनून लतीफा और उनके महबूब कल्चर की दुश्मन है, चुनाचे वो जज़्बाती हैजान के साथ उसकी दुश्मनी के लिए उठे खड़े हुए*

*❀"_ दर हक़ीक़त यही वजह और असबाब हमेशा दावत हक़ के खिलाफ किसी बिगडे हुए समाज के बड़े लोगों और मजहबी ठेकदारों और ख्वाहिश परस्तो को मुत्तहिद मुहाज़ बना कर उठ खड़े होने पर मजबूर कर देते हैं,*

*❀"_ बैसत ए नबवी ﷺ से पहले ज़हीन लोगों में इस मज़हब इस मा'शरे और इस माहोल के बारे में इज़्तराब (बेचैनी) पैदा हो चुका था और फितरते इंसानी इसके खिलाफ जज़्बा ए अहतजाज के साथ अंगड़ाई ले रही थी, हम अभी ऊपर जिन हस्सास अफराद का ज़िक्र कर चुके हैं उनकी रूहों के साज़ से तबदीली का धीमा नगमा बुलंद होने लगा था _,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -119,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
             ★ *क़िस्त–60_* ★
*⚂ मक्की दौर- तारीक माहौल में चंद शरारे ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥-- तारीक महोल में चंद शरारे :-*
*❀_"_कुरेश अपने एक बुत के गिर्द जमा हो कर ईद का प्रोग्राम मना रहे थे, उस पत्थर के खुदा की तारीफ व ताजी़म हो रही थी, उस पर चढ़ावे चढ़ाए जा रहे थे, उसका तवाफ हो रहा था और इस आलम में चार आदमी यानि वर्का़ बिन नोफिल, अब्दुल्लाह बिन जहश, उस्मान बिन अल्हुवेर्स और ज़ैद बिन अमरू बिन नुफेल उस लायानी हंगामे से बेज़ार अलग थलग बेठे एक ख़ुफिया मीटिंग कर रहे थे,*

*❀_"_ इन लोगों में के ख्यालात ये थे कि हमारी क़ौम एक बेबुनियाद मसलक पर चल रही है, अपने दादा इब्राहीम के दीन को उन्होंन गंवा दिया है, ये जिस पत्थर के मुजस्समे का तवाफ किया जा रहा है ये ना देखता है, ना सुनता है न नुक़सान पहुंचा सकता है, ना ज़िला दे सकता है, साथियो! अपने दिलों को टटोलो तो ख़ुदा की क़सम तुम मेहसूस करोगे कि तुम्हारी कोई बुनियाद नहीं है, मुल्क मुल्क घूमों और ख़ोज लगाओ दीने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के सच्चे पेरूओं (माने वालो) का _," (सीरत इब्ने हिशाम- 242)*

*❀_"_ बाद में इनमे से वरका़ बिन नोफिल ईसाई हो गया, अब्दुल्लाह बिन जहश जेसा था वेसा ही रहा मगर उसके ज़हन में उलझन रही, कुछ अरसे बाद इस्लाम लाया, फिर मुहाजिरीने हब्शा के साथ हब्श में हिजरत की और उसके साथ उसकी अहलिया उम्मे हबीबा बिंते अबू सूफ़ियान रज़ियल्लाहु अन्हा भी हिजरत में गई, वहां जाने के बाद अब्दुल्ला दोबारा नसरानी हो गया और इसी हाल में मौत वाक़े हुई*

*❀_"_ ज़ैद बिन अमरु ने ना यहूदियत क़ुबूल की ना नसरानियत, लेकिन अपनी क़ौम का दीन तर्क कर दिया, बुतपरस्ती छोड़ दी, मुर्दार और ख़ून और अस्थानो के ज़बीहों से परहेज़ शुरू कर दिया, बेटियों के क़त्ल से लोगों को बाज रहने की तलकीन करता रहा और कहा करता कि मैं तो इब्राहीम के रब का परस्तार हूं _,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -120,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–61_* ★
*⚂ मक्की दौर- तारीक माहौल में चंद शरारे ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ अस्मा बिन्ते अबु बकर रज़ियल्लाहु अन्हा का बयान है कि मैंने बुढे सरदार ज़ैद बिन अमरु को काबे के साथ टेक लगाये हुए देखा और वो कह रहा था- ऐ क़ुरैश के लोगों! क़सम उस ज़ात की जिसके क़ब्ज़े में ज़ैद बिन अमरू की जान है, मेरे सिवा तुममें से कोई भी इब्राहिम के दीन पर क़ायम नहीं रहा, फिर कहने लगा- ऐ खुदा! अगर मैं जानता कि तुझे कौनसे तरीक़े पसंद है तो मैं उन्हीं तरीक़ो से तेरी इबादत करता लेकिन मैं नहीं जानता, फिर हथेलियां टेक कर सजदा करता _," (सीरत इब्ने हिशाम-242)*

*❀"_ अपने मिलने वालों के सामने वो अक्सर ये अशआर पढ़ता :- (तर्जुमा) रब एक होना चाहिए या सैंकड़ों रब बना लिए जाएं? मैं उस मज़हब पर कैसे चलूं जबकि मसाइले हयात कई मा'बूदो में बांट दिए गए हों, मैंने लात व उज्जा़ सबको तर्क कर दिया है और मजबूती और सब्र कैश शख्सियतें ऐसा ही करती हैं, मगर हां! अब मैं अपने रब रहमान का इबादत गुज़ार हुं ताकी वो बख़्शीश फ़रमाने वाला आक़ा मेरे गुनाहों को माफ़ कर दे, सो तुम अल्लाह ही के तक़वे की हिफ़ाज़त करो, जब तक इस सिफ़त को क़ाम रखोगे कभी घाटे में न पड़ोगे _," (सीरत इब्ने हिशाम- 244) )*

*❀"_ बेचारे ज़ैद की बीवी सफिया बिन्ते अलहुजरमी हमेशा उसके पीछे पड़ी रहती, बसा औक़ात वो खालिस इब्राहिमी दीन की जुस्तजू के लिए मक्का से निकल खड़े होने का इरादा करता लेकिन उसकी बीवी खत्ताब बिन नुफेल को आगाह कर देती और वो दीने आबाई के छोड़ने पर सख़्त बात कहता, ज़ैद की इबादत का आलम ये था कि सज्दा गाह काबा में दाख़िल होता तो पुकार उठता- लब्बैक ए ख़ुदावंद ! बरहक़ मैं तेरे हुज़ूर इखलास मंदाना इबादत गुज़ाराना और गुलामाना अंदाज़ से हाज़िर हूं, फिर कहता- मैं काबा की तरफ मुंह कर के उसी जा़त की पनाह तलब करता हूं जिसकी पनाह इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने ढूंढी थी _," (इजा-248)*

*❀"_ खत्ताब बिन नुफेल ज़ैद को तकलीफे देता रहा, यहां तक कि मक्का के बालाई जानिब शहर बदर कर दिया और ज़ैद ने मक्का के सामने हीरा के पास जा अपनी इबादत शुरू कर दी, फिर खत्ताब ने कुरेश के चंद नोजवानों और कुछ कमीना खसलत अफराद को उसकी निगरानी पर मामूर कर दिया और उनको ताकीद की कि खबरदार इसे मक्का में दाखिल ना होने दो_,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -120,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–62_* ★
*⚂ मक्की दौर- तारीक माहौल में चंद शरारे ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ चुनांचे तंग आ कर ज़ैद बिन अमरू ने वतन छोड़ा और मोसिल जज़ीरा और शाम वगेरा में इब्राहिमी दीन की जुस्तजू में मारा मारा फिरता रहा, आख़िर कार वो दमिश्क के इलाक़े में एक साहिबे इल्म राहिब के पास पहुँचा और उससे गुम गुश्ता मसलके इब्राहिमी का सुराग पुछा,*

*❀"_ राहिब ने कहा - आज तुझे इस मसलक पर चलने वाला कोई एक शख्स भी ना मिलेगा, अलबत्ता एक नबी के ज़हूर का वक्त आ गया है जो उसी जगह से उठेगा जहां से निकल कर तू आया है, वो दीन इब्राहिमी का अलमबरदार बन कर उठेगा, जाकर उससे मिल, इन दिनों उसकी बैसत हो चुकी है _,"*

*❀"_ ज़ैद ने यहूदियत व नसरानियत को ख़ूब देख भाल लिया और उनकी कोई चीज़ उसके दिल को ना लगी, वो राहिब की हिदायत के मुताबिक़ मक्का की तरफ लपका, बिलाद लखुम में लोगों ने उसे क़त्ल कर दिया_," (सीरत इब्ने हिशाम-50, 249)*

*❀"_इस तरह के हस्सास अफ़राद के ज़हनी हालात को देखें तो अंदाज़ा होता है कि माहौल एक ज़िन्दगी बख्श पैगाम के लिए मज़बूत हो रहा था, तारीख जिस इंक़िलाबी कुव्वत को माँंग रही थी वो अपने ठीक वक़्त में मुहम्मद ﷺ की शख्सियत की सूरत में कोंपल निकालती है,*

*❀"_ आप ﷺ एक मनफी सदा ए अहतजाज बन कर और अपने इनफिरदी ज़हन व किरदार की फिक्र ले कर नमूदार नहीं हुए, बल्की एक जामा मुसब्बत नज़रिया व मसलक के साथ सारी क़ौम और सारे माहौल की इज्तिमाई तबदीली के लिए मैदान में उतरे_, "*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -121,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–63_* ★
   *⚂ मक्की दौर- दावत का खुफिया दौर ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_दावत का पहला ख़ुफ़िया दौर :-*

*❀"मुकदमा और नबुवत के तोर पर आन हजरत ﷺ रूया ए सादिका़ (सच्चे ख्वाबों) से नवाजे़ गए, कभी गैबी आवाज़ें सुनाई देती, कभी फरिश्ता दिखाई देता, यहां तक कि अर्शे इलाही से पहला पैगाम आ पहुंचा, जिब्राईल आते हैं और पुकारते हैं कि "इक़रा बिस्मिकल्लाज़ी खलक़" (पढ़ो ऐ नबी! अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया जमे हुए ख़ून के लोथड़े से इंसान की तख़लीक़ की, पढ़ो और तुम्हारा रब बड़ा करीम है जिसने क़लम के ज़रीये इल्म सिखाया और इंसान को वो इल्म दिया जिसे वो ना जानता था_,"(अल अलक़)*

*❀"_ वही ए इलाही के अव्वलीन तजुर्बे में हैबत व जलाल का बहुत सख़्त बोझ आप ﷺ ने महसूस किया, फ़िर हज़रत जिब्राईल ने आन हज़रत ﷺ को सीने से लगा कर भींचा और फिर कहा पढ़ो, गर्ज़ ये कि आख़िरकार आप सेहमे सेहमे जिब्राईल के कहे हुए एक एक लफ़्ज़ को दोहराते रहे, यहाँ तक कि पहला कलाम ए वही याद हो गया,*

*❀"_ घर आ कर अपनी रफ़ीक़ ए राज़दां से वाक़िया बयान किया, उन्होंने तसल्ली दी कि आपका ख़ुदा आपका साथ ना छोड़ेगा, वरक़ा बिन नोफ़िल ने तसदीक की कि ये तो वही नामूस फरिश्ता है जो मूसा अलैहिस्सलाम पर उतरा था, बल्की मजी़द ये कहा कि यक़ीनन लोग आपकी तकजी़ब करेंगे, आपको तंग करेंगे आपको वतन से निकालेंगे और आपसे लड़ेंगे, अगर मैं उस वक्त़ तक जिंदा रहा तो मैं खुदा के काम में आपकी हिमायत करूंगा _,"*

*❀"_ अब गोया आप खुदा की तरफ से दावत ए हक़ पर बा क़ायदा मामूर हो गए, और आप पर एक भारी जिम्मेदरी डाल दी गई, ये दावत सबसे पहले हज़रत खदीजा रजियल्लाहु अन्हा ही के सामने आई और वही इस पर ईमान लाने वालों में सबसे पहली हस्ती क़रार पाई _,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -122,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–64_* ★
   *⚂ मक्की दौर- दावत का खुफिया दौर ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ फिर यह काम ख़ुफ़िया तोर पर धीमी धीमी रफ्तार से चलने लगा, आपके बचपन के साथी और पूरी तरह मज़ाह व हम मिज़ाज हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु थे, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु जो आपके चाचाजाद भाई थे, इनके सामने जब पैगामे हक़ आया तो बगैर किसी ताम्मुल व तवक़क़ुफ़ के इस तरह लब्बेक कही जैसे पहले से रूह इसी चीज़ की प्यासी थी, इनके अलावा ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु रफ़ीक़ ए मसलक बने जो आपके परवरदा गुलाम थे और आपकी ज़िंदगी और किरदार से मुतास्सिर थे,*

*❀"_ आप पर करीब तरीन लोगों का ईमान लाना आपके इखलास और आपकी सदाक़त का बजाए खुद एक सबूत है, ये वो हस्तियां थीं जो कई बरस से आपकी प्राइवेट और पब्लिक लाइफ से और आपके ज़ाहिर व बातिन से पूरी तरह वाक़िफ़ थीं, इनसे बढ़ कर आपकी ज़िंदगी और किरदार और आपके ज़हन व फ़िक्र को जानने वाला कोई और नहीं हो सकता था, इन क़रीबतरीन हस्तियों ने बिलकुल आगाज़ में आपके बुलावे पर लबबेक कह कर गोया एक शहादत पहुंचा दी, दावत की सदाक़त और दाई के इखलास की,*

*❀"_ हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने तहरीके मुहम्मदी ﷺ का सिपाही बनते ही अपने हलका़ ए असर में ज़ोर शोर से काम शुरू कर दिया और मुताद्दिद अहम शख्सियतों मसलन - हज़रत उस्मान, हज़रत ज़ुबेर, हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़, हज़रत साद' बिन वका़स, हज़रत तलहा रिजवानुल्लाहि अलैहिम अज़मईन को इस इंक़लाबी हलके़ का रुक्न बना दिया,*

*❀"_ हज़रत अम्मार, हज़रत ख़ब्बाब, हज़रत अरक़म, हज़रत सा'द बिन ज़ैद (उन्ही ज़ैद बिन अमरू के बेटे जिनका तज़किरा पहले गुज़र चुका है, ये वालिद की ज़िंदगी से मुतास्सिर थे) हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद, हज़रत उस्मान बिन मज़'ऊन, हज़रत उबैदा, हज़रत सुहैब रूमी रिज़वानुल्लाहि अलैहिम अज़मईन भी इस्लामी तहरीक के इब्तिदाई ख़ुफ़िया दौर में साबिक़ीन अव्वलीन की सफ़ में आ चुके थे!*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -122,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–65_* ★
   *⚂ मक्की दौर- दावत का खुफिया दौर ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_नमाज का वक्त आता तो आन हजरत ﷺ किसी पहाड़ की खाई में चले जाते और अपने रफका़ के साथ छुप छूपा कर सजदा अबुदियत बजा लाते, सिर्फ चाश्त की नमाज़ हरम में पढ़ते क्यूंकि ये नमाज़ खुद कुरेश के यहां भी मरूज थी, एक मर्तबा आन हज़रत ﷺ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ किसी दर्रे में नमाज़ अदा फ़रमा रहे थे कि आपके चाचा अबु तालिब ने देख लिया, इस नए अंदाज़ की इबादत को देख कर वो सोच में पड़ गए और बड़े गोर से देखते रहे, नमाज़ के बाद आपसे पूछा के ये क्या दीन है जिसे तुमने अख्त्यार किया है, आप ने फरमाया- हमारे दादा इब्राहिम अलैहिस्सलाम का यही दीन था, ये सुनकर अबू तालिब ने कहा कि मैं इसे अख्त्यार तो नहीं कर सकता लेकिन तुमको इजाज़त है और कोई शख्स तुम्हारा मुज़ाहम ना हो सकेगा (कोई रोक ना सकेगा) _," (सीरतुन नबी अल्लामा शिब्ली -1/193)*

*❀"_ हज़रत अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु भी तहरीके इस्लामी में इसी ख़ुफिया दौर में ईमान लाए, ये भी उन्हीं मुज़्तरब लोगों में से थे जो बुत परस्ती छोड़ कर महज़ फ़ितरते सलीम की रहनुमाई में ख़ुदा का ज़िक्र करते और उसकी इबादत बजा लाते, उन तक किसी ज़रिये से आन हजरत ﷺ की दावत का नूर पहुंच गया, उन्होंने अपने भाई को भेजा कि जा कर सही मालूमात लाए''*

*❀"_ उन्होंने आन हज़रत ﷺ से मुलाक़ात की, क़ुरआन सुना और भाई को बताया कि मैंने उस शख्स को देखा है, लोग उसे मुर्तद कहते हैं लेकिन वो मकारिमे अख़लाक़ की तालीम देता है और एक अजीब कलाम सुनाता है जो शैरो शायरी से बिल्कुल मुख्तलिफ है, उसका तरीक़ा तुम्हारे तरीक़े से मिलता जुलता है_,"*

*❀"_इस इत्तेला पर खुद आए और आपके हाथ पर इस्लाम कुबूल किया, इससे मालूम होता है कि बावजूद इखफा के मुश्के हक की खुश्बू को हवा की लहरे ले उड़ी थी और खुदा के रसूल ﷺ के लिए बदनाम कुन अलका़ब तजवीज़ करने का सिलसिला शुरू हो गया था लेकिन फिर भी माहौल अभी पुर सुकून था, अभी वो खतरों का पूरा अंदाजा नहीं कर पाया था,*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -124,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–66_* ★
   *⚂ मक्की दौर- दावत का खुफिया दौर ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥-- देखिए, एक और अहम तारीखी हक़ीक़त कि तहरीक के इन अव्वलीन अलंबरदारों में कोई एक भी ऐसा ना था जो आला दर्जे के मज़हबी व कौ़मी मनासिब पर मामूर हो, ये हजरात अगराज़ के बोझ तले दबे हुए और मुफाद की डोरियों से बंधे हुए ना थे, हमेशा ऐसे ही आज़ाद फितरत नोजवान तारीख में बड़ी बड़ी तब्दीलियां पैदा करने के लिए अगली सफो में आया करते हैं _,"*

*❀"_ तहरीक अपने ख़ुफ़िया दौर में कुरेश की निगाहों में तवज्जो के क़ाबिल ना थी, वो समझते थे कि ये चंद नोजवानों का सरफिरापन है, उलटी सीधी बातें करते हैं, चार दिनों में दिमाग से ये हवा निकल जाएगी, हमारे सामने कोई दम मार सकता है?*

*❀"_ मगर सरे इक़्तदार तबक़ा तख्ते क़यादत पर बेठा अपने ज़ाम में मगन रहा और सच्चाई और नेकी की कोंपल तख्त के साये में आहिस्ता आहिस्ता जड़े छोड़ती रही और नई पत्तियां निकालती रहीं, यहाँ तक कि तारीख की ज़मीन में उसे अपना मुका़म बना लिया _,"*

*❀"_ कुरेश का ऐतक़ाद ये भी था कि लात मनात और उज्जा़ जिनके आगे हम पेशानियां रगड़ते हैं और चढ़ावे पेश करते हैं और जिनके हम खुद्दामे बारगाह हैं, अपने अहतराम और मज़हब बुत परस्ती की ख़ुद हिफ़ाज़त करेंगे और उनकी रूहानी मार हंगामा को खत्म कर देगी _,"*    
*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -126,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–67_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ दावत ए आम :- तीन बरस इसी तरह गुज़र गए, लेकिन मशीयते इलाही हालात के समंदर को भला जमा हुआ कहां रहने देती हैं? उसकी सुन्नत तो हमेशा से ये रही है कि वो बातिल के खिलाफ हक़ को उठा खड़ा करती है और फिर टकराव पैदा करती है, "_मगर हम तो बातिल पर हक़ की चोट लगाते हैं_," (अल अंबिया -18)*

*❀"_इस सुन्नत के तहत यकायक दूसरे दौर के इफ्तेताह के लिए हुक्म होता है,"_ पस ऐ नबी ! जिस चीज़ का तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, उसे हांके पुकारे कह दो और शिर्क करने वालों की ज़रा परवाह न करो _," (अल हिज्र- 94)*

*❀"_ आन हज़रत ﷺ अपनी सारी हिम्मत व अज़मियत को समेट कर नए मरहले के मुतावाक़े हालात के लिए अपने आपको तैयार कर के कोहे सफ़ा पर आ खड़े होते हैं, और क़ुरैश को अरब के उस ख़ास उस्लूब से पुकारते हैं जिससे वहां किसी खतरे के नाज़ुक लम्हे क़ौम को बुलाया जाता था, लोग दौड़ते आते हैं, जमा हो जाते हैं और कान मुंतज़िर हैं के क्या ख़बर सुनाई जाने वाली है,*

*❀"_ अब बाआवाज़ बुलंद पूछा - अगर मैं ये कहूं कि इस पहाड़ के पीछे से एक हमला आवर फौज चली आ रही है तो क्या तुम मेरा ऐतबार करोगे? हां क्यों नहीं? हमने तुमको हमेशा सच बोलते पाया है, ये जवाब था जो बिल इत्तेफ़ाक मजमे की तरफ से दिया गया _,"*
*"_ तो फिर मैं ये कहता हूं कि खुदा पर ईमान लाओ...ऐ बनू अब्दुल मुत्तलिब! ऐ बनू अब्दे मुनाफ! ऐ बनू ज़ोहरा! ऐ बनू तमीम! ऐ बनू मख़ज़ूम ! ऐ बनू असद ! वरना तुम पर सख़्त अज़ाब नाज़िल होगा _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -127,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–68_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_इन मुख्तसर अल्फाज़ में आप ﷺ ने अपनी दावत बर सरे आम पेश कर दी, आपके चाचा अबु लहब ने सुना तो जल भुन कर कहा कि "गारत हो जाओ तुम आज ही के दिन! ..क्या यही बात थी जिसके लिए तुमने हम सबको यहां इकट्ठा किया था? अबू लहब और दूसरे लोग बहुत गुस्सा हो कर चले गए,*

*❀"_ देखिए ! अबु लहब के अल्फाज़ में दावते नबवी ﷺ के सिर्फ ना का़बिले गोर होने का तास्सूर झलक रहा है, अभी कोई दूसरा रु अमल पैदा नहीं हुआ, शिकायत सिर्फ ये थी कि तुमने हमें बेजा तकलीफ दी और हमारा वक्त ज़ाया किया?*

*❀"_ दावते आम की मुहिम का दूसरा क़दम ये उठाया गया कि आन हजरत ﷺ ने तमाम खानदाने अब्दुल मुत्तलिब को खाने पर बुलाया, इस मजलिसे ज़ियाफत में हमजा़, अबू तालिब और अब्बास जेसे अहम लोग भी शरीक़ थे, खाने के बाद आप ﷺ ने मुख्तसर सी तकरीर की और फरमाया कि मैं जिस पैगाम को ले कर आया हूं ये दीन और दुनिया दोनों का कफील है, इस मुहिम में कौन मेरा साथ देता है?*

*"❀_बिल्कुल इब्तिदाई दावत में आन हज़रत ﷺ इस हक़ीक़त का शऊर रखते थे कि वो दुनिया से कटा हुआ मज़हब ले कर नहीं आए बल्कि दुनिया को संवारने वाला दीन ले कर आए हैं, आप ﷺ की दावत पर सुकूत छा गया, इस सुकूत के अंदर तेरह बरस का एक लड़का उठता है और कहता है कि, अगरचे मैं आशूबे चश्म में मुब्तिला हूं, अगरचे मेरी टांगें पतली हैं, अगरचे मैं एक बच्चा हूं, लेकिन मैं इस मुहिम में आपका साथ दूंगा, ये हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु थे जो आगे चल कर असातीन ए तहरीक में शुमार हुए,*

*❀"_ ये मंज़र देख कर हाज़िरीन में ख़ूब कहकहा पड़ा! इस क़हक़हे के ज़रिये गोया खानदाने अब्दुल मुत्तलिब ये कह रहा था कि ये दावत और ये लब्बेक कहने वाला कौनसा कारनामा अंजाम दे लेंगे, ये सब कुछ एक मज़ाक है एक जूनून है और बस ! इसका जवाब तो सिर्फ खंदा इस्तेहजा़ (मज़ाक) से दिया जा सकता है _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -127,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–69_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- इस दूसरे वाक़िए पर माहोल का सुकून नहीं टूटा, ज़िंदगी के समंदर के घड़ियालों ने कोई अंगड़ाई नहीं ली, लेकिन इसके बाद ये तीसरा क़दम उठा तो उससे माशरे को हिस्ट्रिया के इस दौर में मुब्तिला कर दिया जो आहिस्ता आहिस्ता शुरू हो कर रोज़ बरोज तंद व तेज़ होता गया!*

*❀"_ इस तीसरे क़दम के बारे में गुफ्तगु करने से पहले एक और वाक़िए का तज़किरा ज़रूरी होता है, जैसा कि हम बयान कर चुके हैं कि मुखालिफ़ माहौल की ख़तरनाक संगीनी की वजह से नमाज़ चोरी छुपे पढ़ी जाती थी, आन हजरत ﷺ और रफक़ा ए तहरीक शहर से बाहर वादीयों और घाटियों में जा जा कर नमाज़ अदा करते*

*❀"_ एक दिन एक घाटी में सा'द बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु दूसरे रफ़क़ा ए नबवी ﷺ के साथ नमाज़ में थे कि मुशरिकीन ने देख लिया, ऐन हालते नमाज़ में उन मुशरिकीन ने फ़िक़रे कसने शुरू किए, बुरा भला कहा और नमाज़ की एक एक हरकत पर फब्तियां चुस्त करते रहे, जब इन लायानी बातों का कोई जवाब ना मिला तो लड़ने पर उतर आए,*

*❀"_ इस दंगे के एक मुशरिक की तलवार ने सा'द बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु को ज़ख्मी कर डाला, ये थी खून की सबसे पहली धार जो मक्का की खाक पर ख़ुदा की राह में बही! ये जा़हिली माशरे का सबसे पहला जूनून आमेज़ ख़ूनी रद्दे अमल था और इस रद्दे अमल के तेवर बताते रहे थे कि मुख़ालफ़त अब तशद्दुद के मरहले में दाखिल होने वाली है _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -127,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–70_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ तहरीक की ज़ेरे सतह रु ने आहिस्ता आहिस्ता आगे बढ़ते हुए 40 मोती इकट्ठे कर लिए थे, अब गोया इस्लामी जमात एक महसूस ताक़त बन चुकी थी, खुल्लम खुल्ला कलमा हक़ को पुकारने का हुक्म आ ही चुका था, इसकी तामील में आन हज़रत ﷺ ने एक दिन हरम ए काबा में खड़े हो कर तोहीद का एलान किया*

*❀"_ लेकिन मज़हबियत जब बिगड़ती है तो उसकी इक़्तदार इस तरह तह व बाला हो जाती हैं कि वो घर जो पैगामे तोहीद के मरकज़ की हैसियत से उस्तवार किया गया था आज उसकी चार दीवारी के अंदर खुदा ए वाहिद की वहदत की पुकार बुलंद करना इस मरकज़े तोहीद की तोहीन का मोजिब हो चुका था, बुतों के वजूद से काबे की तोहीन नहीं होती थी, बुतों के आगे पेशानियां रगड़ने से भी नहीं, नंगे हो कर तवाफ़ करने, सीटियां और तालियां बजाने से भी नहीं, गैरुल्लाह के नाम पर ज़बीहे पेश करने से भी नहीं, मुजावरी की फीस और चढ़ावे वसूल करने से भी नहीं... लेकिन उस घर के असल मालिक का नाम लेते ही उसकी तोहीन हो गई थी!*

*❀"_ काबे की तोहीन हरम की बेहुरमती ! तौबा तौबा कैसी खून खोला देने वाली बात है, केसी जज़्बात के शोले भड़काने वाली हरकत है ! चुनांचे खोलते हुए ख़ून भड़कते हुए जज़्बात के साथ चारो तरफ से कलमा तोहीद को सुनने वाले मुशरिकीन उठ आते हैं, हंगामा बरपा हो जाता है, नबी ﷺ घेरे में आ जाते हैं,*

*❀"_ हारिस बिन अबी उम्मे हाला के घर में थे, शोर व शगफ सुन कर आन हजरत ﷺ को बचाने के लिए दौड़े लेकिन हर तरफ से तलवारें उन पर टूट पड़ी और वो शहीद हो गए, अरब के अंदर इस्लाम और जाहिलियत की कश्मकश में ये पहली जान थी जो हक़ की हिमायत में कु़र्बान हुई,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -127,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–71_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_देखा आपने! एक दावत जो मा'कू़ल और पुर सुकून अंदाज से दी जा रही थी, उस पर गौर करके राय क़ायम करने और इस्तदलाल का जवाब दला'इल से देने के बजाए अंधे भड़कते जज़्बात से दिया जाता है,*

*❀"_सय्यदना मुहम्मद ﷺ कलमा हक़ अपनी तलवार से मनवाने नहीं उठते, लेकिन मुख्तलिफ ताक़त तलवार सोंत कर आ जाती है, यही एक फासिद निज़ाम के मुफाद परस्त मुखालिफीन की अलामत है कि माकू़लियत के जवाब में गुस्से में आग बबूला और दलील के जवाब में तलवार लिए मैदान में उतरे हैं, मुखालिफीन में इतना ज़र्फ नहीं था कि वो कम से कम चंद हफ़्ते चंद दिन चंद लम्हे हरम से उठने वाली सदा पर पुर सुकून तरीक़े से गौर व फ़िक्र कर सकते,*

*❀"_ ये तस्लीम करते कि मुहम्मद ﷺ को भी उनकी तरह किसी नज़रिए फलसफे अकी़दे पर ईमान रखने, किसी मज़हब पर चलने और उनकी क़ायम करदा सूरते मज़हब से इख्तिलाफ करने का हक़ है, कम से कम इमकान की हद तक ये मानते कि हो सकता है कि हमारे अंदर गलती मोजूद हो और मुहम्मद ﷺ ही की दावत से हक़ीक़त का सुराग मिल सकता हो, किसी फासिद निज़ाम के सरबराह कारो में इतना ज़र्फ बाक़ी नहीं रहता, उनमें इख़्तिलाफ़ के लिए बर्दाश्त की कुव्वत बिलकुल खत्म हो जाती है, उनकी गौर व फ़िक्र की सलाहियत ज़ंग आलूद हो जाती है*

*❀"_ ज़रा अंदाज़ किजिए कि केसी थी वो फिज़ा जिसमें हम सबकी दुनियावी व आखिरवी फलाह व बहुदी के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देने वाला हक़ का दाई बेसरो सामान के आलम में अपना फ़र्ज़ अदा कर रहा था?*

*❀"_ इब्राहिम व इस्माईल अलैहिमुस्सलाम के पाकीज़ा जज़्बात और पाकीज़ा हसरतों और तमन्नाओं के मसाले से बने हुए हरम ए पाक के अंदर मक्का वालों की इस हरकत ने आने वाले दौरे मुस्तक़बिल का एक तसव्वुर तो ज़रूर दिला दिया और एक बेगुनाह के खून से आइन्दा अबवाबे तारीख की सुर्खी तो जमा दी, लेकिन ये असल ज़ोर तशद्दुद (ज़्यादती) का इफ़्तेताह (शुरुआत) नहीं था,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -128,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                        
                  ★ *क़िस्त–72_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_नबी ﷺ की दावत को पाया ऐतबार से गिराने के लिए गाली देने के कमीने जज़्बे के साथ प्रचार के माहिर उस्तादों ने गोना गो इंकलाब खड़े करने शुरू कर दिए, मसलन ये कहा जाने लगा के इस शख्स की बात क्यों सुनते हो ये तो ( ना'उज़ुबिल्लाह) मुर्तद है, दीने असलाफ कि जिसके हम इजारादार (ठेकेदार) हैं, ये उसके दायरे से बाहर निकल गया है और अब अपने पास से एक अनोखा दीन घढ़ लाया है,*

*❀"_ कोई इस्तदलाल नहीं बस अपनी गद्दियों पर बेठे बेठे कुफ्र का फतवा सादिर कर दिया जाता है, ये भी कहा जाता है के ये तो "साबी" हो गया है, "साबियत" चुंकी उस वक्त की मुशरीकाना सोसाइटी में एक बदनाम और नापसंदीदा मसलक था, इसलिए किसी का नाम साबी धर देना वेसी ही गाली था जैसे आज किसी मुसलमान को यहूदी या खारजी या नेचरी कह दिया जाए,*

*❀"_ हक़ के खिलाफ दलाइल के लिहाज़ से झूठे लोग जब मनफी हंगामा उठाते हैं तो उनके प्रचार की मुहीम का एक हथियार हमेशा इसी तरह के बदनाम करने वाले अलका़ब, नामों और इस्तलाहो का चस्पा करना होता है, गली गली मजलिस मजलिस मक्का के मुशरिकीन ये ढिंढोरा पीटते फिरते कि देखो जी! यह लोग साबी हो गए हैं, बेदीन हो गए हैं, बाप दादा का दीन धरम इन्होंने छोड़ दिया है, नये नये अक़ीदे और नये नये ढंग घढ़ कर ला रहे हैं*

*❀"_ ये आँधी जब उठ रही होगी तो तसव्वुर कीजिये कि उसमें रास्ता देखना और सांस लेना आम लोगों पर कितना दूबर हो गया होगा, और दाईयाने हक़ के मुख्तसर से क़ाफिले को किस आफत का सामना करना पड़ा रहा होगा? मगर आंधियां अरबाबे अज़मत के रास्ते कभी नहीं रोक सकती!*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -129,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                          
                  ★ *क़िस्त–73_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ _दला'इल के मुक़ाबले में जब गालियाँ लाई जा रही हों तो हमेशा ऐसा होता है कि दला'इल तो अपनी जगह जमे रहते हैं लेकिन जो गाली मुक़ाबले पर लाई जाती है वो जज़्बाती हद तक दो चार दिन काम दे कर बिलकुल बेअसर हो जाती है और इंसानी फितरत इससे नफूर होने लगती है, चुनांचे आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए एक गाली और वजा़ की गई, आपको "इब्ने अबी कबशा" कहा जाता था,*

*"❀_ अबी कबशा एक मारूफ मगर बदनाम शख्सियत थी, ये शख्स तमाम अरब के दीनी रूझानात के खिलाफ "शारा" नामी सितारे की पारिस्तिश करता था, इब्ने अबी कबशा के मानी हुए अबी कबशा का बेटा या अबी कबशा का पेरू (नाउज़ुबिल्लाह), दिल का बुखार निकालने के लिए मक्का के जज़्बात के मरीज़ो ने क्या क्या इजादे नहीं कीं!*

*"❀_ किसी साहिबे दावत या किसी नकी़ब ए तहरीक की ज़ात पर जब इस तरह के वार किए जाते हैं तो असल मतलूब उस शख़्सियत को कुर्ब ( तकलीफ़) देना ही नहीं होता बल्की दर हक़ीक़त गाली दी जाती है उस नज़रिया व मसलक को और उस काम और तंजीम को जिसकी रोज़ अफजु़ यलगार से साबका़ पड़ा होता है, मगर क्या एक उठते हुए सैलाब के आगे गोबर के पशते बांध कर उसे रोका जा सकता है?*

*"❀_ मुशरिकीन मक्का देख रहे थे कि वो गंदगी के जो बंद भी बांधते हैं उनको ये दावत बहाएं ले जा रही है और हर सुबह और हर शाम कुछ ना कुछ आगे ही बढ़ती जाती है, तो उन्होंने प्रोपोगंडे के दूसरे पहलू अख्त्यार किए, एक नया लक़ब ये तराशा के ये शख़्स (नाऊज़ुबिल्लाह) दर हक़ीक़त पागल हो गया है_,"*

*❀"_ बुतो की मार पड़ने से इसका सर फिर गया है, ये जो बातें करता है वो होश व हवास और अक़ल व हिकमत की बातें नहीं है बल्की ये एक जूनून है कि जिसके दोरे पड़ने पर कभी उसे फरिश्ते नज़र आते हैं, कभी जन्नत और दोज़ख के ख्वाब दिखाई देते हैं, कभी वही उतरती है और कभी कोई अनोखी बात मुंकाशिफ हो जाती है, ये एक सरफिरा आदमी है, इसकी बातों पर आम लोगो को ध्यान नहीं देना चाहिए और अपना दीन ईमान बचाना चाहिए,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -129,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                      
                  ★ *क़िस्त–74_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हमेशा से यह हुआ है कि दाइयाने हक का ज़ोरे इस्तदलाल तोड़ने के लिए या तो उनको पागल कहा गया है या सफ़िहा व अहमक, होशमंद तो बस वही लोग होते हैं जो अपनी दुनिया बनाने और ज़माने की हां में हां मिलाने और अपनी ख्वाहिशों का सामाने तस्कीन करने में मुन्हामिक रहें, बाक़ी वो लोग जो तजदीद व इस्लाह की मुहिम उठा कर जान जोखिमों में डालें, उनको दुनिया परस्त अगर अहमक और पागल न कहें तो आखिर उनकी डिक्शनरी में और कोनसा लफ्ज़ मोजू़ हो सकता है,*

*❀"_ मुशरिकीन मक्का ने एक और तंज घड़ी, कहने लगे कि ये मुद्दई नबूवत दर हकीकत जादू के फन में भी समझ रखता है, ये उसका फन कमाल है कि दो चार बातों में हर मिलने वाले पर अपना जादू कर देता है, नज़र बंदी की हालत में मुब्तिला कर देता है और ज़रा कोई उसकी बातो में आया नहीं कि जादू के जाल में फंसा नहीं, यही वजह है कि अच्छे भले सूझ बूझ रखने वाले लोग उसका शिकार होते चले जा रहे हैं!*

*❀"_ हां ! मगर एक सवाल ये भी तो पैदा होता था कि कभी अहमको, पागलों और जादुगरों ने भी आज तक मज़हबी व तमद्दुनी तहरीके चलाई है और कभी काहिनों ने खुदा परस्ती और तोहीद और मकारमे अखलाक़ का दर्स देने के लिए जादू के फन को इस्तेमाल किया है?*

*❀"_ लेकिन ये सिक्का बंद इल्ज़ाम है ऐसा कि हर दौर में हर साहिबे दावत पर लगाया गया है, यक़ीन दिलाने की कोशिश की गई है कि ख़ुद दावत में सदाक़त नहीं कि उसकी फितरी कशिश काम करे, दाई के इस्तदलाल में कोई वज़न नहीं कि जिससे कु़लूब मुसक्खर हो रहे हैं बल्की सारा खेल किसी पुर इसरार क़िस्म की फ़रेबकारी और जादुगरी पर मुबनी है और ये उसका असर है की भले चंगे लोग तवाज़न खो बेठते हैं,*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -131,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                        
                  ★ *क़िस्त–75_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ लोग अकाबिरे कुरेश के सामने आन हज़रत ﷺ की इल्हामी तकरीरे और ख़ुसुसन क़ुरआन की आयतें भी तो पेश करते होंगे कि ये और ये बातें कही गई है, कलाम के ज़ौहर शनास आख़िर ये तो मेहसूस कर लेते होंगे कि खुद ये कलाम मोअस्सिर ताक़त है, इस पर बहसे भी होती होंगी और राय भी क़ायम होती होंगी,*

*"❀_ इस कलाम के एजाज़ की तवज्जो करने के लिए उन्होंने कहना शुरू किया कि - अजी क्या है, बस शायरी है, अल्फाज़ का एक आर्ट है, अदीबाना ज़ोर है, मुहम्मद ﷺ दर्जा अव्वल के आर्टिस्ट और लिसाने खतीब है, उनकी शायरी की वजह से कच्चे ज़हन के नौजवान बहक रहे हैं,*

*❀"_ ए कुरेश मक्का! शायर तो दुनिया में हमेशा होते रहे हैं, क्या कोई ऐसा अनोखा शायर कभी पैदा हुआ है जो इस बेदाग सीरत और अज़ीम किरदार का हामिल हो जिसका मुज़ाहिरा मुहम्मद ﷺ और उनके रफ़्क़ा कर रहे थे, क्या शायरी के तिलस्म बांधने वालों ने कभी ऐसी दीनी मुहीमात भी बरपा की है जेसी तुम्हारे सामने हो रही थी?*

*❀"_ कुरेश के सामने भी ये सवाल था, इसका जवाब देने के लिए उन्होंने आन हजरत ﷺ पर कहानत का एक और इल्ज़ाम बांधा, काहिन लोग कुछ मज़हबी अंदाज़ व अतवार रखते थे, एक अजीब पुर इसरारी फ़िज़ा बनाते थे, चिललो और ऐतकाफो और वजी़फो और मंतरो में उनकी जिंदगी गुज़रती थी, काहिन कहने से कुरेश का मुद्दआ यह था कि आन हजरत ﷺ ने भी बस इसी तरह का एक ढकोसला बना रखा है, ताकी लोग आएं, मुरीद बनें, उन पर कहानत का सिक्का भी चले और पेट का मसाला भी हल हो जाए (माज़ल्लाह)*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -131,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                           
                  ★ *क़िस्त–76_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥_ और क़ुरान इस सारे प्रोगंडे की धुंवा धारियों को मुहीत हो कर आसमानी बुलंदियों से पुकार कर कह रहा था - "ये किसी शायर का कौ़ल नहीं है, तुम लोग कम ही ईमान लाते हो, और ना किसी काहिन का कौ़ल है, तुम लोग कम ही गौर करते हो _,"(अल-हाक्का़ -41)*

*❀"_ देखो ये लोग केसे केसे मुहावरे और फ़िक़रे चुस्त करते हैं, केसे केसे नाम धरते हैं, क्या क्या तशबीहे घड़ते हैं और कहाँ कहाँ से इस्तलाहे ढूंढ के लाते हैं, मगर ये सब कुछ कर के फिर यकायक कैसा पलटा खाते हैं? (अल-फुरकान - 9)*

*❀"_ देखिए ! अब एक और शोशा तराशा जाता है, दीने इब्राहिमी के नाम लेवा फरमाते हैं कि ये कोई जिन है जो मुहम्मद (ﷺ) पर आता है और वो आ कर अजीब बातें बताता है या ये कि वो सिखा पढ़ा जाता है, कभी मक्का के एक रूमी व नसरानी गुलाम (जाबिर या जबरा या जबर) का नाम लिया जाता है, जो आन हजरत ﷺ की खिदमत में हाज़िर हो कर दीन की बातें सुनाने के लिए जाता है और तन्हाई में मुहम्मद ﷺ को ये वाज़ और लेक्चर नोट कराता है,*

*❀"_ एक मोके़ पर कुरेश के अकाबिर के एक वफद ने आन हजरत ﷺ से कहा कि, हमें मालूम हुआ है कि यमामा में कोई शख्स "अर -रहमान" नामी है जो तुम्हें ये सब कुछ सिखाता है, खुदा की क़सम हम "अर -रहमान" पर ईमान नहीं लाएंगे _,"*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -132,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                     
                  ★ *क़िस्त–77_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ -इन हवाई शोशो से ये ज़ाहिर करना मतलूब था कि किसी बाहरी ताक़त और किसी गैर शख़्स की शरारत है जो हमारे मज़हब और माशरे को तबाह करने के दरपे है और मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह तो महज़ आला कार है, ये किसी तरह की साज़िश है, दूसरी तरफ़ इसमे ये तास्सुर भी शमिल था कि कलाम का ये हुस्न व जमाल ना मुहम्मद का कमाल है ना खुदा की अता व बख़्शीश है, ये तो कोई और ही ताक़त गुल खिला रही है, तीसरी तरफ इसके ज़रिये हक़ के दाई पर इल्ज़ाम भी चस्पा किया जा रहा था,*

*❀_"_ इसके जवाब में क़ुरआन ने तफ़सीली इस्तदलाल किया है, मगर उसका चेलेंज क़तई तोर पर मस्कत साबित हुआ कि इंसानों और जिन्नों की मुश्तरका मदद से तुम इस तरह की कोई सूरत या ऐसी चंद आयतें ही बना कर ले आओ_ ,"*

*❀_"_ और एक दावा ये भी सामने आया कि ये कोई नई बात नहीं है, कोई खास करनामा नहीं है, असल में पुराने किस्से कहानियां हैं जिनको कहीं से जमा कर के ज़ोरदार जुबान में ढाला जा रहा है, ये एक तरह की अफसाना तरानी है और दास्तान गोई है,*

*❀_"_ दावते हक़ पर "असातीर अव्वलीन" की फबती कसने में ये तंज भी शामिल था कि अगले वक्तो की इन कहानियों में आज के मसलों की अक़दाह कुशाई कहां हो सकती है, ज़माना कहीं से कहां आ चुका है,*  

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -132,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                        
                  ★ *क़िस्त–78_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ -वाज़े रहे कि ये सारी मुहिम किसी गलत फ़हमी की वजह से नहीं बल्की सोची समझी हुई शरारत के तोर पर चलाई जा रही थी, उन्होंने मिल कर ये क़रार दाद तय की थी कि,"दाई की बात सुनो ही नहीं, उस पर गोर करो ही नहीं, कहीं खयालात में तज़लजु़ल न आ जाए, कहीं ईमान खराब न हो जाए, बस हाव हो का खूब शोर मचा कर उसमें रुखना अंदाजी करो, उसमें गडबड डालो और उसे मज़ाक पर ढ़ाल लो, इस तरीक़े से कुरान का ज़ोर टूट जाएगा और आखिर फतेह तुम्हारी होगी,*

*❀"_ आस बिन वाइल ने आन हज़रत ﷺ की दावत व तहरीक की तहकी़र करते हुए ज़हरीले कलमात कहे, ताना दिया गया था आन हज़रत ﷺ की औलाद नरीना न होने पर और अरब में फ़िल वाक़े ये ताना कुछ माने रखता था ,*
 .
*❀"_ मगर आस जेसो की निगाहें ये नहीं समझ सकती कि अम्बिया जैसी तारीख साज़ हस्तियों की असल औलाद उनके अज़ीमुश्शान कारनामे होते हैं, उनके दिमाग से नई तहज़ीब के दौर जनम लेते हैं और उनकी दावत व तालीम की विरासत संभालने और उनकी याद ताज़ा रखने के लिए उनके रफका़ और पेरुकार गिरोह दर गिरोह मौजूद होते हैं, वो जिस खैरे कसीर को ले कर आते हैं उसकी ताक़त और उसकी क़दर व क़ीमत किसी की नरीना औलाद के बड़े से बड़े शुक्र से कहीं ज्यादा होती है,*

*❀"_ चुनांचे इस ताने के जवाब में सूरह कौसर नाजिल हुई जिसमें आस और उसके हम केशो को बताया गया कि हमने अपने नबी ﷺ को "कौसर" अता किया है उसे खैरे कसीर का सर चश्मा बनाया है, उसे कुरान की निआमते अज़मी दी है, उस पर ईमान लाने वालों और इता'त करने वालों, उसके काम को फैलाने और जारी रखने वालों की एक बड़ी जमात है और उसके लिए आलमे आखिरत में हौज़े कौसर का तोहफा मखसूस कर रखा है,*

*❀"_ जिसको एक बार अगर किसी को अज़न नोश मिल गया तो वो अब्द तक प्यास ना महसूस करेगा, फिर फरमाया कि ऐ नबी ﷺ अबतर तो है तुम्हारे दुश्मन कि जिनका बा एतबार हक़ीक़त कोई नाम लेवा और पानी देवा नहीं है और जिनको मर जाने के बाद कोई भूल के याद भी ना करेगा कि फलां कौन था और जिनके लिए तारीखे इंसान के मकान में कोई जगह नहीं*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -133,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                         
                  ★ *क़िस्त–79_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ जो लोग आंखों देखते एक अमरे हक़ को नहीं मानना चाहते वो अपने और दाई के दरमियान तरह तरह के नुकते और लतीफे और बातों में से बात निकाल कर लाते हैं, असलाफ की सिक्का बंद मज़हबियत के ये मुखालिफीन आन हज़रत ﷺ से एक तो बार बार ये पूछते थे कि तुम अगर नबी हो तो आखिर क्यों नहीं ऐसा होता कि तुम्हारे नबी होने की कोई वाज़े निशानी तुम्हारे साथ हो, कोई ऐसा मोजजा़ हो जिसे देखने वालों के लिए नबूवत माने बगैर चारा ही ना रहे।*

*❀"_ क्यू न फरिश्ते हमारे पास भेजे जाएं,? या फिर हम अपने रब को देखें_," (अल फुरका़न -20) सीधी तरह आसमान से फरिश्तो के झुंड उतरे, हमारे सामने चलते फिरते दिखायी दें और खुदा तुम्हारे ज़रिए पैगाम भेज कर अपने आपके मनवाने के बजाए खुद ही क्यों ना हमारे सामने आ जाए और हम देख लें कि ये है हमारा रब, झगड़ा खत्म हो जाए,*

*❀"_ फिर वो ये कहते कि जो कुछ तुम पेश कर रहे हो ये अगर वाक़ई खुदा की तरफ से होता तो चाहिए ये था कि एक लिखी हुई किताब हमारे देखते देखते आसमान से उतरती बल्की तुम खुद सीढ़ी के ज़रिए किताब लिए हुए उतरते और हम सरे तस्लीम खम कर देते कि तुम सच्चे नबी हो*

*❀"_ इसी सिलसिले में एक सवाल ये भी उठाया जाता था कि कुरान खुत्बा बा खुतबा और क़ता बा क़ता क्यों नाजि़ल होता है, सीधी तरह एक ही बार में पूरी की पूरी किताब क्यों नहीं नाजि़ल हो जाती?*

*❀"_ दर असल उनको ये सूरत बड़ी खलती थी कि जितने सवाल वो उठाते थे, जो जो शरारतें करते थे, जिस जिस पहलू से मीन मेख निकालते थे उस पर वही के ज़रीए हस्बे मोक़ा तबसिरा होता उसका तजुर्बा किया जाता और पूरे ज़ोरे इस्तदलाल से उनकी मुखालिफाना काविशों की जड़ें खोद दी जातीं _,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -134,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                          
                  ★ *क़िस्त–80_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ फिर वो ये फबती कसते कि तुम जो गोश्त पोस्त के बने हुए हमारी तरह के आदमी हो, तुम्हें भूख लगती है, मा'श के दरपे हो, रोटी खाते हो, गलियों और बाजा़रों में चलते फिरते हो, फटे हाल रहते हो, तुम्हारे ऊपर तरह तरह की ज़्यादतियां हो रही हैं, केसे ये बात अक़ल में आए कि तुम अल्लाह के प्यारे और उसके ऐतमाद के क़बिल नुमाइंदे और दुनिया की इस्लाह के ज़िम्मेदार बना कर भेजे गए हो,*

*"❀_ तुम वाक़ई अगर ऐसे चुनिंदा रोज़गार होते तो फरिश्ते तुम्हारे आगे आगे हटो बचो की सदा लगाते बॉडीगार्ड बन कर साथ चलते, जो कोई गुस्ताखी करता लठ से उसका सर फोड देते, तुम्हारी ये शान और ये ठाठ देख कर हर आदमी बे चू चरा मान लेता कि अल्लाह का प्यारा है और नबी है, इतना ही नहीं तुम्हारे लिए आसमान से ख़ज़ाना उतरता और उस ख़ज़ाने के बल पर तुम शाहाना शान व शोकत के साथ ऐश की ज़िंदगी गुजा़रते होते, तुम्हारे बसने के लिए सोने का एक महल होता, तुम्हारे लिए कोई चश्मा जारी होता कोई नहर बहाई जाती, तुम्हारे पास फलों का कोई आला दर्जे का बाग होता, आराम से बेठे उसकी कमाई खाते, इस नक्शे के साथ तुम नबुवत का दावा ले के उठते तो हम सब बा सरो चश्मा मानते के वाक़ई ये कोई मुंतखब ज़माना और मक़बूल रब्बानी हस्ती है,*

*❀"_ बर खिलाफ इसके हाल ये हैं कि हम लोग क्या माल के लिहाज़ से क्या औलाद के लिहाज़ से तुमसे मंजिलों आगे हैं, और तुम्हारा हाल जो कुछ है वो सामने है, एक तुम ही नहीं, तुम्हारे इर्द गिर्द जो हस्तियां जमा हुई हैं वो सब ऐसे लोग हैं जो हमारी सोसाइटी के सबसे निचले तबके से ताल्लुक़ रखते हैं, कोताहे नज़र और कम इल्म है, तुम लोगों को हमारे मुक़ाबले में कोई भी फ़ज़ीलत हासिल नहीं,*

*❀"_ बताओ ए मुहम्मद! कि ऐसी सूरत में कोई माक़ूल आदमी केसे तुम्हें नबी मान ले, चुनांचे हाल ये था कि जिधर से नबी ﷺ का गुज़र होता, फबतियां कसी जातीं, उंगलियां उठा उठा कर और इशारा कर कर के कहते- कि ज़रा देखना इन साहब को ये है जिनको अल्लाह ने रसूल मुक़र्रर फरमाया है, खुदा को किसी आदम जाद से रिसालत का काम लेना ही था तो क्या ले दे के यही शख्स रह गया था, क्या हुस्ने इंतिखाब है, इसी तरह इस्लामी तहरीक के अलंबरदारो पर बा हैसियत मजमुई ये फिकरा चुस्त किया जाता था कि - (तर्जुमा सूरह अल अनआम -53) क्या यही हैं वो मुमताज़ हस्तियां जिन्हें अल्लाह ने मुरातिब खास से नवाज़ने के लिए हमारे अंदर से छांट लिया है _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -136,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                       
                  ★ *क़िस्त–81_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_फिर कहा जाता कि ए मुहम्मद (ﷺ) वो जिस अज़ाब की रोज़ रोज़ तुम धमकियाँ देते हो और जिसके ज़रीये अपना असर जमाना चाहते हो, उसे ले क्यों नहीं आते? उसे आख़िर किस चीज़ ने रोक रखा है? चेलेंज करके कहते - "क्यों नहीं तुम आसमान का कोई टुकड़ा गिराते हम जैसे नाफरमान काफिरो पर? अगर तुम सच्चे हो हमारा खात्मा कर डालो _," (सूरह अश शूअरा -187)*

*❀"_ फिर ये दीने असलाफ के ठेकेदार ये नुक्ता छांटते कि ऐ मुहम्मद (ﷺ) ! जब तुम बताते हो कि खुदा का़दिर व साहिबे अख्त्यार और क़ाहिर व जाबिर है तो क्यों नहीं वो हमको अपनी ताक़त के ज़ोर से उस हिदायत के रास्ते पर चलाता कि जिस पर चलने के लिए तुम हमें कहते हो, वो हमें मोहिद और नेक देखना चाहता है तो फिर हमें मोहिद बना दे और नेकी पर चला दे, उसको किसने रोक रखा है,*

*❀"_ इसी तरह वो क़यामत का मज़ाक उड़ाते, बड़े ड्रामाई अंदाज़ में दरियाफ्त करते कि ज़रा ये तो फरमाइए कि ये हादसा कब वाके़ होने वाला है? कुछ अता पता दिजिए कि उस एलान को कब पूरा होना है? क़यामत कब तक आ पहुंचने वाली है ? क्या कोई तारीख और कोई घड़ी मुईन नहीं हुई? इन चंद मिसालो से जिनकी तफ़सील क़ुरान व हदीस और सीरत की किताबो में मिलती है, अंदाज़ा कीजिए कि दुनिया के सबसे बड़े मोहसिन और इंसानियत के अज़ीम तरीन खैर ख्वाह को केसी फिज़ा से साबका़ आ पड़ा था,*

*❀"_आलमे बाला की तरफ से यक़ीन दहानी की जाती है, अल्लाह तआला अपने कलमात से खुद सामाने तस्कीन फरमाता है और साथ साथ इस मरहले से गुज़रने के लिए बार बार हिदायात दी जाती हैं, मसलन एक जामा हिदायत ये आई कि" ए नबी ﷺ नर्मी व दरगुज़र का तरीका अख्त्यार करो, मारूफ की तलकीन किए जाओ और जाहिलों से न उलझो_," (सूरह अल आ'राफ -144)*

*❀"_ यानी आसाब को झंझोड़ देने वाले और दिल व जिगर को छेद डालने वाले इस दौर के लिए आन हज़रत ﷺ को तीन तक़ाज़ो का पाबंद कर दिया गया, एक ये कि बद जु़बानियों से बेनियाज़ी का तरीक़ा अख्त्यार किया जाए, दूसरे ये कि हक़ बात कहने की ज़िम्मेदारी हर हाल में पूरी की जाएगी, तीसरे ये कि कमीने और बद अख़लाक़ और जहालत ज़दा शख़्सो के पीछे पड़ने की ज़रूरत नहीं! और क़ुरान और तारीख दोनों गवाह हैं कि आन हज़रत ﷺ ने इन हिदायात की हुदूद से बाल बराबर तजावुज़ किए बगेर ये पूरा दौर गुज़ार दिया,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -137,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                         
                  ★ *क़िस्त–82_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ कभी कभी कुरेश को सोच बिचार से कोई अक़ली क़िस्म की दलील भी हाथ आ जाती थी, एक बात वो ये कहते थे कि हम कब बुतों को खुदावंद ताला के मुका़म पर रखते हैं, हम तो सिर्फ ये कहते हैं कि ये जिन बुज़ुर्गो की अरवाह के मज़हर हैं वो अल्लाह के दरबार में हमारे लिए शिफ़ारिश करने वाले हैं और इन बुतों के आगे सजदा व क़ुर्बानी कर के हम सिर्फ़ अल्लाह के हुज़ूर तक़र्रूब हासिल करना चाहते हैं,*

*❀"_ इसी तरह एक बात वो ये कहते थे कि हमारे नज़दीक जिंदगी सिर्फ इसी दुनिया की जिंदगी है, कोई और आलम पेश आने वाला नहीं है और ना हमें दोबारा जिंदा किया जाने वाला है, फिर आखिर हम एक ऐसे दीन को क्यों तस्लीम करें जो किसी दूसरी दुनिया का तसव्वुर दिला कर इस दुनिया के मुफाद और इसकी दिलचस्पियों से हमें मेहरूम करना चाहता है,*

*❀"_ इसी तरह एक बात वो ये कहते थे कि अगर हम दावते मुहम्मद (ﷺ) को मान लें और मौजूदा मज़हबी व माशरती निज़ाम को टूट जाने दें और अपने का़यम शुदा तसल्लुत को उठा लें तो फिर तो हममें से एक एक शख्स को दिन दहाड़े चुन चुन कर उचक लिया जाएगा, "_वो कहते हैं अगर हम तुम्हारे साथ इस हिदायत की पेरवी अख्त्यार कर लें तो अपनी ज़मीन से उचक लिए जाएंगे _," (सूरह अल क़सस - 57)*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -138,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                      
                  ★ *क़िस्त–83_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_गालम गलोज की ये मुहिम कुरेश के जूनून व मुखालिफत के तेज़ होने के साथ गुंडागर्दी का रंग अख्त्यार करती चली जा रही थी, मनफी शरारत के अलंबरदार जब रुसवाई और गाली गलोज को नाकाम होते देखते हैं तो फिर उनका अगला क़दम हमेशा गुंडागरदी होता है, मक्का वालों ने आन हजरत ﷺ को तकलीफ देने के लिए वो कमीनी हरकतें की हैं कि साहिबे रिसालत ﷺ के अलावा कोई और दाई होता तो बड़ी से बड़ी उलुल अज़मी के बावजूद उसकी हिम्मत टूट जाती और वो क़ौम से मायूस हो कर बेठ जाता,*

*❀"_ लेकिन रसूले खुदा ﷺ की शराफत और संजीदगी गुंडा गरदी के चढ़े हुए दरिया में से भी पाक दामन को कमल की तरह सही सलामत लिए आगे ही आगे बढ़ती जा रही थी, वो हरकतें जो रोज़ मर्रा का मामूल बन गई, ये थीं कि आपके मोहल्लेदार जो बड़े बड़े सरदार थे बड़े अहतमाम से आपके रास्ते में काँटे बिछाते थे, नमाज़ पढ़ते वक्त शोर मचाते और हंसी उड़ाते, सजदे की हालत में ओझड़ियां ला कर डालते, चादर को लपेट कर गला घोंटते, मोहल्ले के लड़कों को पीछे लगा देते कि तालियां पीटे और शोर करे, कुरान पढ़ने की हालत में आपको कुरान को और खुदा ताला को गालियां देते,*

*❀"_ इस मामले में अबु लहब के साथ उसकी बीवी बहुत पेश पेश थी, वो बिला नागा कई साल तक आपके रास्ते में गलाज़त और कूड़ा करकट और कांटे जमा करके डाला करती थी और आन हजरत ﷺ रोजना बड़ी मेहनत से रास्ता साफ करते, आपको उस कंबख्त ने इस दर्जा परेशान रखा कि अल्लाह तआला ने आपकी तस्कीन के लिए ये खुश खबरी सुनाई कि मुखालिफ मुहाज़ की इस लीडर के शोहर नामुराद के इजा़ रसां हाथ टूट जाने वाले हैं और खुद ये बेगम साहिबा भी दोज़ख के हवाले होने वाली है,*

*❀"_ एक मर्तबा हरम में आन हजरत ﷺ नमाज़ में मसरूफ थे कि उक़बा बिन अबी मुहीत ने चादर आपके गले में डाली और उसे खूब मरोड़ कर गला घोंटा, यहां तक कि आप घुटनों के बल गिर पड़े, इसी शख्स ने एक मर्तबा नमाज़ की हालत में आप पर ओझडी़ भी डाली थी,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -139,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                      
                  ★ *क़िस्त–84_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_एक मरतबा आप ﷺ रास्ते चलते जा रहे थे कि किसी शकी़ ने सर पर मिट्टी डाल दी, इसी हालत में आप ﷺ सब्र व इस्तेक़ामत के साथ चुप चाप घर पहुँचे, मासूम बच्ची फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने देखा तो आपका सर धोती जाती थीं और साथ साथ मारे गम के रोती जाती थी, आपने उस नन्ही सी जान को तसल्ली दी कि बेटी! रोओ नहीं खुदा तेरे बाप को बचायेगा_,"*

*"❀_ एक और मरतबा आप ﷺ हरम ने नमाज़ में मसरूफ थे कि अबु जहल और चंद और कुरेश को तवज्जो हुई, अबु जहल कहने लगा - काश इस वक्त कोई जाता और ऊंट की ओझ नजासत समेत उठा लाता ताकी जब मुहम्मद (ﷺ) ) सजदे में जाता तो उसकी गर्दन पर डाल देता, उक़बा ने कहा कि ये खिदमत अंजाम देने के लिए बंदा हाजिर है, ओझ लाई गई और आप ﷺ के ऊपर सजदे की हालत में डाल दी गई,*

*"❀_ क़ुरेश ठाठे मार कर हंसी उड़ा रहे थे, हज़रत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को इत्तेला हुई तो आप दौड़ी आई और पाक बाज़ बाप की मासूम बच्ची ने वो सारा गलाज़त का बोझ आपके ऊपर से हटाया साथ साथ उक़बा को बद दुआएं भी देती जाती थीं,*

*"❀_कांटे बिछा कर चाहा गया कि तहरीक हक़ का रास्ता रुक जाए, गंदगी फैंक कर कोशिश की गई कि तोहीद और हुस्ने अखलाक़ के पैगाम की पाकीज़गी को खत्म कर दिया जाए, आन हजरत ﷺ को बोझ तले दबा कर ये तवक्को़ की गई कि बस अब सच्चाई सर न उठा सकेगी, आपका गला घोंट कर ये ख्याल किया गया कि बस अब वही ए इलाही की आवाज़ बंद हो जाएगी,*

*"❀काँटों से जिसकी तवाजो़ की गई वो बराबर फूल बरसाता रहा, गंदगी जिसके ऊपर उछाली गई वो मा'शरे पर मुसलसल मुश्क व अंबर छिड़कता रहा, जिस पर बोझ डाले गए वो इंसानियत के कंधे से बातिल के बोझ मुतावातर उतारता रहा, जिसकी गर्दन घोंटी गई वो तहज़ीब की गर्दन को रस्मियत के फंदों से निजात दिलाने में मसरूफ रहा, गुंडा गर्दी एक सानहा के लिए भी शराफत का रास्ता न रोक सकी,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -140,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                   
                  ★ *क़िस्त–85_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हिमायतियों को तोड़ने की कोशिश:-*
*"❀_ दावते हक़ के मुखालिफीन जब पानी सर से गुज़रता देखते है तो एक मुहीम ये शुरू करते हैं कि तहरीक या उसके क़ाइद और अलंबरदारों को सोसाइटी में हर क़िस्म की मोअस्सिर हिमायत व हमदर्दी से मेहरूम करा दिया जाए, बराहे रास्त असर न डाला जा सके तो बिल वास्ता तरीक़े से दबाव डाल कर तब्दीली के सिपाहियों को बेबस कर दिया जाए,*

*"❀_ इधर दाई हक़ आन हजरत ﷺ अपने चाचा अबु तालिब की सरपरस्ती में थे और ये सरपरस्ती जब तक क़ायम थी गोया पूरे हाशमी क़बीले की असबियत आन हजरत ﷺ के साथ थी, मुखालिफीन ने अब पूरा ज़ोर इस बात पर सर्फ कर दिया कि किसी तरह अबु तालिब पर दबाब डाल कर आन हजरत ﷺ को उनकी सरपरस्ती से मेहरूम कर दिया जाए,*

*"❀_ दबाव डालने का ये सिलसिला देर तक ज़ारी रहा, मगर मुखालिफीन को हर बार नाकामी हुई, एक रोज़ कुरेश का वफद आन हजरत ﷺ के चाचा के पास पहुंचता है, ये लोग अपना मुद्दा यूं बयान करते हैं:-*
*"_ अबु तालिब! तेरा भतीजा हमारे खुदावंदो और ठाकुरो को गालियां देता है, हमारे मज़हब में ऐब छाँटता है, हमारे बुज़ुर्गो को अहमक कहता है और हमारे असलाफ को गुमराह शुमार करता है, अब या तो तुम उसे हमारे खिलाफ ऐसी ज़्यादतियां करने से रोको या हमारे और उसके दर्मियान से तुम निकल जाओ, क्योंकि तुम भी (अकी़दा व मसलक के लिहाज़ से) हमारी तरह उसके खिलाफ हो, उसकी जगह हम तुम्हारे लिए काफी होंगे _,"*

*❀"_ अबू तालिब ने सारी गुफ्तगु ठंडे दिल से सुनी और नरमी से समझा बुझा कर मामला टाल दिया और वफद को रुखसत कर दिया, आन हजरत ﷺ बा दस्तूर अपने मिशन की खिदमत में लगे रहे और कुरेश पेच व ताब खाते रहे,*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -141,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
     
                  ★ *क़िस्त–86_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ मुखालिफ़ीन फिर आते हैं - "ऐ अबू तालिब! तुम हमारे दरमियान उमर शर्फ और क़द्रो क़ीमत के लिहाज़ से एक बड़ा दरजा रखते हो, हमने मुतालबा किया था कि अपने भतीजे से हमें बचाओ लेकिन तुमने ये नहीं किया, और ख़ुदा की क़सम जिस तरह हमारे बाप दादा को गालियाँ दी जा रही है, जिस तरह हमारे बुज़ुर्गो को अहमक क़रार दिया जा रहा है और जिस तरह हमारे मआबूदों पर हर्फ़ गीरी की जा रही है, उसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते, इला ये कि तुम उसे बाज़ रखो या फिर हम उससे भी और तुमसे भी लड़ेंगे, यहां तक कि एक फरीक़ का खात्मा हो जाए,*

*"❀_ अबू तालिब ने आन हजरत ﷺ को बुलाया और सारा माजरा बयान किया, फिर लजाजत से कहा कि भतीजे! मुझ पर ऐसा बोझ न डालो जिसका उठाना मेरे बस से बाहर हो_,"*

*❀"_ अब ऐसी सूरत आ गई थी कि पांव जमाने के लिए सहारे का जो एक पत्थर हासिल था वो भी मुत्ज़लज़ल हुआ जाता था, बा ज़ाहिर तहरीक के लिए इंतेहाई ख़तरनाक लम्हा आ गया था, लेकिन दूसरी तरफ़ देखिए उस जज़्बा सादिका़ और उस अज़मियत मुजाहिदाना को कि जिससे सरशार हो कर आन हज़रत ﷺ ये जवाब देते हैं:- चाचा जान! खुदा की क़सम यह लोग अगर मेरे दाएं हाथ पर सूरज और बाएं हाथ पर चांद रखकर चाहें कि इस मिशन को छोड़ दूं तो मैं इससे बाज़ नहीं आ सकता, यहां तक कि या तो अल्लाह ताला इस मिशन को गालिब कर दे या मैं इसी जद्दो जहद में खत्म हो जाऊं।*

*❀"_ यहां वो असली ताक़त बोल रही है जो तारीख़ को उलट पलट के रख देती है और मज़ाहमतों और शरारतों को कुचलती हुई अपने नस्बुल ऐन तक जा पहुंचती है, अफसोस कि कुरेश इसी ताक़त का राज़ ना पा सके, अबू तालिब इसी ताकत की सहर आफरीन से मुतास्सिर हो कर कहते हैं के, भतीजे! जाओ जो कुछ तुम्हें पसंद है उसकी दावत दो, मैं किसी चीज़ की वजह से तुमको नहीं छोडूंगा _,"*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -143,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                         
                  ★ *क़िस्त–87_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_एक और वफद अमरह बिन वलीद को साथ ले कर फिर आया, अब के ये लोग एक और ही मनसूबे के साथ आते हैं, अबू तालिब से कहते हैं कि देखिए ये अमरह बिन वलीद है जो कुरेश में से एक मज़बूत और खूबसूरत तरीन जवान है, इसे ले लीजिए, इसकी अक़ल और इसकी ताक़त आपके काम आएगी, इसे अपना बेटा बना लीजिए और इसके एवज़ में मुहम्मद (ﷺ) को हमारे हवाले कर दीजिए, जिसने आपके और आपके आबाओ अज़दाद के दीन की मुखालफत शुरू कर रखी है और आपकी क़ौम का शीराजा़ दरहम बरहम कर दिया है, और उनके बुर्जुगों को अहमक ठहराया है, उसे हम क़त्ल कर देना चाहते हैं, सीधा सीधा एक आदमी के बदले में हम एक आदमी आपको देते हैं,*

*"❀__ वफ़द की गुफ्तगू सुन कर यक़ीनन अबु तालिब के जज़्बात पर बड़ी चोट लगी और कहा कि तुम लोग ये चाहते हो कि तुम्हारे बेटे को तो मैं ले कर पालू पोसु और मेरे बेटे को तुम ले जा कर तलवार के नीचे से गुज़ार दो, अब्द तक ऐसा नहीं हो सकता,*

*"❀__ मामला बढ़ गया, कश्मकश की फिज़ा गरम हो गई और खुद वफद के इत्तेफाक़े राय का रिश्ता टूट गया, अब कुरेश ने आन हजरत ﷺ के रफ़क़ा पर साख्तियां करने के लिए उन तमाम क़बीलों को उकसाना शूरू किया जिनमे तहरीके इस्लामी का कोई फर्द पाया जाता था, ज़ुल्म ढाये जाने लगे, इस्लाम से हटाने के लिए ज़ुल्म व ज़ोर से काम लिया जाने लगा,*

*❀_"_ लेकिन अल्लाह ने अपने रसूल को अबु तालिब की आड़ खड़ी कर के बचा रख था, अबु तालिब ने कुरेश के बिगड़े तेवर देख कर बनू हाशिम और बनू मुत्तलिब के सामने आन हजरत ﷺ की हिफाज़त के लिए अपील की, लोग जमा हुए और आप ﷺ की हिमायत के लिए तैयार हो गए, मगर अबू लहब ने सख़्त मुख़ालफ़त की और बात तय न हो सकी,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -144,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                        
                  ★ *क़िस्त–88_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- आगे चल कर जब तहरीके हक़ ने मुखालिफीन की सफो में से हमज़ा और उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम जेसी दो हस्तियां चुन ली तो पेच व ताब की नई लहर उठी, मेहसूस किया गया कि मुहम्मद ﷺ की चली हुई हवा तो अब घर घर में महक रही है, कुछ करना चाहिए, अबू तालिब की बीमारी की हालत में ये लोग फिर पहुंचे, अब की स्कीम ये थी कि मुआहिदा (समझौता) हो जाए, वफद ने कहा कि जो कुछ सूरते हाल है उसे आप जानते हैं, अपने भतीजे को बुलवाइए, उसके बारे में हमसे अहद लीजिए और हमारे बारे में उसका अहद दिलवाइए, वो हमसे बाज़ रहे हम उससे बाज़ रहे, वो हमसे और हमारे मज़हब से वास्ता ना रखे, हम उससे और उसके मज़हब से वास्ता नहीं रखते हैं,*

*"❀__ रसूले पाक ﷺ बुलवाए जाते हैं, बात होती है और आप सारा मुतालबा सुनने के बाद जवाब देते हैं, ऐ अशरफे कुरेश! मेरे इस एक कलमे को मान लो तो फिर अरब व अजम सब तुम्हारे जे़रे नगीं ( मातहत) होंगे,*

*❀_"_ अबू जहल ने तंग आ कर कहा - हां! तेरे बाप की क़सम! एक क्यों दस कलमे चलेंगे _," कोई दूसरा बोला- ये शख्स तो खुदा की क़सम तुम्हारी मर्जी की कोई बात मानने को तैयार नहीं, इसके बाद ये लोग मायूस हो कर चले गए,*

*❀_"_ लेकिन उस वफद की गुफ्तगू ने चंद हक़ीक़तों को नुमाया कर दिया, एक ये कि अब तहरीके इस्लामी को वो एक ऐसी ताक़त मानने पर मजबूर हो गए थे जिसको उखेड़ने की कोशिश करने से ज़्यादा बेहतर समझौते की कोई राह निकालना था, दूसरे ये कि कुरेश सारी शरारतों और ज़्यादतियों को आज़माने के बाद अब अपनी बेबसी को महसूस कर रहे थे,*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -144,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                   
                  ★ *क़िस्त–89_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ इंसाने आज़म ﷺ औलादे आदम की जिस सबसे बड़ी खिदमत में मसरूफ थे उसको नाकाम बनाने के लिए मुखालिफीन जिन मुख्तलिफ तदबीरो से काम ले रहे उन सबके बवजूद दावत का काम ज़ारी था और कलमा हक़ कोंपले निकाल रहा था,*

*❀"_ मक्का मरकज़े अरब था और हर तरफ़ से क़ाफ़िले आते जाते थे और दाई हक़ के लिए काम का नित नया मैदान फ़राहम करते, सरदारे मक्का की जो धोंस ख़ुद मक्का के बासिंदों पर चलती थी वो बाहर से आने वालों पर नहीं चल सकती थी, तशवीशनाक मोक़ा इस पेहलू के लिहाज़ से हज का था, क़बाइल अरब ज़ोक दर ज़ोक मय अपने सरदारों के मक्का में इकट्ठे होते और नबी अकरम ﷺ अपना पैगाम फेलाने के लिए खैमा बा खैमा गर्दिश में मसरूफ़ हो जाते,*

*"❀_चुनांचे एक साल मौसम हज की आमद थी कि वलीद बिन मुगीरा के यहां कुरेश जमा हुए और सर जोड़ कर सोच विचार में मसरूफ हो गए, झूठे प्रचार के लिए साजिश की जाती है, दिल जिस बात को नहीं मानते उसी को ले कर मुखालिफाना हंगामा जारी रखने की स्कीम बनती है, चुनांचे इस मजलिस में तय हो गया कि मुख्तलिफ पार्टियां मक्का को आने वाले रास्ते पर चौकियां लगा दे, और आने वाले हर वफ़द को मुहम्मद (ﷺ) और आपकी दावत के बारे में चोकन्ना कर दें,*

*❀"_चुनांचे इस मनसूबे पर अमल किया गया, लेकिन नतीजा उल्टा हुआ, आन हजरत ﷺ का चर्चा अरब के कोने तक फेल गया और जिनको कुछ नहीं मालूम था उनको भी मालूम हो गया कि एक नई दावत ऐसी उठी है और उसकी अलंबरदार शख्सियत मुहम्मद ﷺ की है _,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -147,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                   
                  ★ *क़िस्त–90_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- रबी'आ बिन उबादा का बयान है कि मैं मीना में अपने बाप के साथ मौजूद था, जब मैं एक नोखेज़ लडका था और देखा कि रसूलुल्लाह ﷺ अरबी क़बीलों की अक़ामत गाहो में जा जा कर रुकते और फरमाते - " ए बनी फलां! मैं तुम्हारी तरफ अल्लाह का रसूल हूं, तुमसे कहता हूं कि अल्लाह की इबादत करो, और उसके साथ किसी को शरीक न करो और उसके अलावा उन बुतों में से जिसकी भी इबादत कर रहे हो उससे अलग हो जाओ और मुझ पर ईमान लाओ, मेरी तसदीक करो और मेरी हिमायत करो यहां तक कि मैं अल्लाह की तरफ से सारी बात खोल कर रख दूं जिसके साथ उसने मुझे मामूर किया है _,"*

*❀_"_ एक शख्स अदनी चादर ओढ़े आन हजरत ﷺ के साथ साथ लगा था, जब रसूलुल्लाह ﷺ अपनी बात फरमा चुके तो ये शख्स अपनी हांकना शुरू कर देता कि, ऐ बनी फलां! ये शख्स तुमको लात व उज्जा़ से हटाकर बिदअत व गुमराही की तरफ खींच ले जाना चाहता है, पस न इसकी सुनो ना इसकी बात मानो_,*
*"_ वो नोजवान ये मंज़र देख कर अपने बाप से पूछता है कि कौन है जो आन हज़रत ﷺ के पीछे लगा हुआ है और आपकी बात की तर्दीद कर रहा है, जवाब मिलता है कि ये आपका अपना ही चाचा अबु लहब है,*
       
*❀_नबी करीम ﷺ हज की तरह मेलों के इज्तिमात में भी तशरीफ ले जाते थे, ताकी इंसानी इज्तिमा से फायदा उठायें, एक मर्तबा बाज़ार जु़लजाज़ में पहुंचे और लोगों को हक़ का पैगम सुना कर कलमा तैय्यबा की दावत दी , अबू जहल साथ लगा था, कम्बख़्त को बुग्ज़ व कीना ने इतना पस्त कर दिया था कि मिट्टी उठा उठा कर आप पर फ़ैंकता और साथ साथ पुकारता के लोगों इसके क़रीब में ना आना, ये चाहता है कि लात व उज्जा़ की परिस्तिस छोड़ दो,*

*❀_"_ मुखालीफ़ाना प्रोपगंडा की इस तूफ़ानी मुहीम से अबू तालिब को तशवीश भी लाहिक़ हुई कि कहीं अरब के अवाम इज्तिमाई मुखालफत पर ना उतर आएं, उन्होन एक तवील कसीदा लिख कर काबा में लटका दिया जिसमें एक तरफ ये सफाई दी कि मैने दावत ए मुहम्मद ﷺ को कुबूल नहीं किया, लेकिन दूसरी तरफ ये एलान भी किया कि किसी क़ीमत पर मुहम्मद को नहीं छोड़ सकता और उसके लिए अपनी जान तक दे दूंगा,*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -148,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
              
                  ★ *क़िस्त–91_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- जब कभी कोई अहम शख्सियत मक्का में वारिद होती तो तहरीके इस्लामी के मुखालिफीन उसको रसूलुल्लाह ﷺ के असर से बचाने के लिए पूरा जतन करते, मगर बसा औकात असर उल्टा होता, इस क़िस्म के चंद ख़ास वाक़ियात का तज़किरा ज़रुरी मालूम होता है,*

*❀"_ तुफेल बिन अमरू दोसी एक शरीफ मर्द और लबीब शायर था, एक मर्तबा वो आया, बाज़ कुरेश के अफराद उसके पास पहुंचे, कहने लगे कि तुफेल! देखो तुम हमारे शहर में आए हो और यहां मुहम्मद (ﷺ) की सरगर्मियां हमारे लिए ना का़बिले बर्दाश्त बनी हुई हैं, उस शख्स ने हमारी वेहदत का शिराजा़ बिखेर दिया है और हमारे मुफाद को टुकड़े टुकड़े कर दिया है, उसकी बात जादूगरों जैसी है, और ये बेटे और बाप में भाई और भाई में शोहर और बीवी में जुदाई डलवा रहा है, हमें तुम्हारे और तुम्हारी क़ौम के बारे में अंदेशा है कि तुम कहीं उसके शिकार ना हो जाओ, पस बेहतर ये है कि उस शख्स से ना तो बात करना और ना उसकी कोई बात सुनना,*

*"❀_ तुफेल बिन अमरू दोसी रज़ियल्लाहु अन्हु का अपना बयान है कि उन लोगों ने उस वक्त तक पीछा न छोड़ा जब तक कि मैं पूरी तरह काइल न हो गया कि ना बात करूंगा ना सुनूंगा, चुनांचे जब मैं मस्जिदे हराम की तरफ जाता तो कानों में रूई ठूंस लेता,*

*❀"_ एक मर्तबा रसूलुल्लाह ﷺ काबा के पास इबादत में खड़े थे तो मैं भी क़रीब जा कर खड़ा हुआ, मैंने बहुत ही ख़ूब कलाम सुना, फिर दिल में मैंने कहा कि मेरी माँ मुझे रोए, खुदा की क़सम मै एक साहिबे अक़ल आदमी हूं, शायर हूं, बुरे भले की पहचान कर सकता हूं, फिर क्या चीज़ मुझे उन बातों को सुनने से रोक सकती है जिन्हें ये कहता है, जो पैगाम ये लाया है वो अगर भला होगा तो मैं कुबूल कर लुंगा, अगर बुरा होगा तो छोड़ दूंगा_,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -149,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                       
                  ★ *क़िस्त–92_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- इसी सोच बिचार में कुछ वक्त गुजर गया, अब हुजूर ﷺ घर को चले, तुफेल रजियाल्लाहु अन्हु भी साथ हो गए, रास्ते में सारा क़िस्सा सुनाया कि मुझे कुरेश ने किस चक्कर में डाल रखा है, फिर मकान पर पहुंच कर दरख्वास्त की कि अपना पैगाम इरशाद फरमाइए,*

*"❀_ रसूलुल्लाह ﷺ ने इस्लाम की हक़ीक़त बयान की और क़ुरआन पढ़ कर सुनाया, तुफैल रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि "ख़ुदा की क़सम! न इससे बढ़ कर अच्छा कलाम मैंने कभी सुना न इससे बढ़ कर सच्चा पैगाम,*

*❀"_ और फिर वो बताते हैं कि मैं इस्लाम ले आया और हक़ की गवाही दी, तुफेल दौसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने क़बीले में जा कर पुरजोश तरीक़े से दावत का काम किया और पूरा क़बीला मुतास्सिर हुआ, इनके तब्लीगी जोश का ये आलम था कि घर पहुंच कर जोंही ज़ईफुल उमर वालिद से मुलाक़ात हुई, कहने लगे कि ना आप मेरे ना मैं आपका! उन्होंने पूछा_बेटे ये क्यों? जवाब दिया कि अब मैंने मुहम्मद ﷺ का दीन कुबूल कर लिया है और आपकी पेरवी कर ली है, वालिद ने कहा कि बेटे! जो तेरा दीन है वही मेरा भी होगा, फोरन नहा कर इस्लाम कुबूल किया,*

*❀"_ तुफेल रज़ियल्लाहु अन्हु ने इसी तरह अपनी बीवी को दावत दी और उसने भी लबबेक की, फिर क़बीले में दावत ए आम का सिलसिला शुरू किया, बाद में आकर आन हजरत ﷺ की खिदमत में रुदाद बयान की और अपने क़बीले की खराबियां बयान कर के दुआ ए अज़ाब की दरख़्वास्त की, मगर हुज़ूर ﷺ ने हिदायत की दुआ की और तुफैल रज़ियल्लाहु अन्हु को ताकीद की कि वापस जा कर अपने लोगों में दावत जारी रखो और ख़ास नसीहत की कि उनके साथ नर्मी बरतो,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -150,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–93_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ आ'शा बिन क़ैस भी एक मुमताज़ शायर था, उसने रसूलुल्लाह ﷺ का चर्चा सुना और इस इरादे से मक्का का रूख किया कि जा कर इस्लाम क़ुबूल करे, उसने आन हज़रत ﷺ की शान में क़सीदा भी कहा था, अब जोंही ये मक्का की हुदूद में पंहुचा एक कुरेश मुशरिक ने आ घेरा और उसके मक़सद के बारे में खोज कुरेद की,*

*"❀_ उसने बताया कि मैं रसूलुल्लाह ﷺ की खिदमत में जा कर इस्लाम क़ुबूल करना चाहता हूँ, इस पर बात चल पड़ती है, मुशरिक हिला तराज़ ने आ'शा की दुखती रगो को टटोलने के लिए कहा कि देखो मुहम्मद (ﷺ) तो ज़िना को हराम ठहराता है, ये वार ओछा पड़ा तो फिर कहा कि वो तो शराब से भी रोकता है, यहां तक कि बातों बातों में आ'शा के इरादे को कमज़ोर कर दिया,*

*❀"_ चुनांचे उसने ये मनवा लिया कि इस मर्तबा तो तुम वापस चले जाओ और अगले बरस आ कर इस्लाम क़ुबूल कर लेना, आ'शा वापस चला गया और इसे पहले कि वो मक्का लौटता बद नसीब की मौत वाक़े हो गई_,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -151,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
               
                  ★ *क़िस्त–94_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ सबसे ज़्यादा दिलचस्प वाक़िआ मर्द अराशी का है, ये मक्का में आया साथ ऊंट था जिसका सौदा अबु जहल ने चुका लिया, मगर क़ीमत की अदायगी में टाल मटोल किया, अब ये कुरेश के मुख्तलिफ लोगो के पास गया कि कोई ऊंट की क़ीमत दिलवा दे, वहां एक मजलिस आरास्ता थी, अराशी ने अहले मजलिस से अपील की कि आपमे से कोई मेरी रक़म अबू जहल से दिलवा दे, मैं एक मुसाफिर बेवतन हूं और मेरे साथ ज़्यादती हो रही है,*

*"❀_ अहले मजलिस में किसी की जुर्रत न थी कि वो अबु जहल से जा कर एक मुसाफिर का हक़ दिलवाए, इस बात को टालने के लिए इशारा कर के कहने लगे कि वो देखते हो एक शख्स (मुहम्मद ﷺ) बैठा है, उसके पास जाओ वो वसूली करा देगा, दर असल ये एक तरह का मज़ाक था क्योंकि मुहम्मद ﷺ से अबू जहल को जो अदावत थी वो ज़ाहिर थी,*

*"❀_ अराशी आन हज़रत ﷺ के पास पहुँचा और अपना माजरा बयान कर के मदद तलब की, आन हज़रत ﷺ उठे और फरमाया मेरे साथ आओ, वो लोग देखने लगे कि अब क्या होता है, रसूलुल्लाह ﷺ हरम से निकल कर अबु जहल के घर पर आए, दरवाज़ा खटखटाया, आवाज़ आई कौन है? फरमाया - मुहम्मद! बाहर आओ मेरे पास, अबु जहल निकला, चेहरे का रंग बिलकुल उड़ा हुआ था, आपने फरमाया - इस शख्स का हक़ इसे दे दो, चुनांचे बे चूं चरा अबू जहल ने अदायगी कर दी_,"*

*"❀_ अराशी खुश खुश हरम की उस मजलिस की तरफ पलटा और वाक़िया सुनाया, ये असर था उस अज़ीम किरदार का जो मुहम्मद ﷺ की ज़ात में जलवागर था, इसका एतराफ़ ख़ुद अबू जहल ने किया और अहले मजलिस से आ कर कहा कि उसने (मुहम्मद ﷺ ने) आकर दरवाज़ा खटखताया मैंने उसकी आवाज़ सुनी और यकायक एक रौब मुझ पर तारी हो गया,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -151,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–95_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_मुहाजिरीन ए हब्शा के ज़रीये इस्लाम का पैगाम एक नए इलाक़े में जा पहुँचा तो वहां से 20 ईसाईयों का एक वफ़द मक्का आया, ये लोग मस्जिदे हराम में आन हज़रत ﷺ की ख़िदमत में आए, बैठे बात की और सवालात पूछे, आन हज़रत ﷺ ने क़ुरान सुनाया और दावते हक़ पेश की, उन लोगों की आँखों में आँसु भर आए, अल्लाह की पुकार को क़ुबूल किया, ईमान लाये और नबी करीम ﷺ की तसदीक़ की,*

*❀"_ जब ये उठ कर निकले तो बाहर कुरैशी मुखालिफीन मस्जिद के गिर्द मंडला रहे थे, अबु जहल ने इस गिरोह को निशाना अलामत बनाया कि तुम भी क्या अहमक लोग हो जो अपने दीन को खैरबाद कह दिया, वफद वालों ने जवाब दिया, आप लोगों को हमारी तरफ से सलाम अर्ज़ है, हमें आपके साथ कोई झगड़ा नहीं करना, हमारा रास्ता अलग, आपका रास्ता अलग! हम अपने आपको एक भलाई से मेहरूम नहीं रखना चाहते _,"*

*❀"_ बैत ए उक़बा सानिया की सारी कार्रवाई रात की तारीकी में बड़े अहतमाम इख़फ़ा के साथ इसी वजह से अमल में लाई गई थी कि अशरारे मक्का की तरफ़ से सख़्त मज़ाहमत थी, अहले वफ़द जब बैत की मजलिस से फारिग हो कर क़यामगाहो में पहुंचे तो कुरेश के सरदारों ने उनको पकड़ा लिया, इनकी मुखबरी का निज़ाम ऐसा मज़बूत था कि उन्होंने बैत का क़िस्सा बयान कर के कहा कि तुम हमारे आदमी (मुहम्मद ﷺ) को निकाल ले जाना चाहते हो और उसके हाथ पर तुमने हमारे खिलाफ जंग करने का पैमान बांधा है, खूब समझ लो कि तुम लोग अगर हमें और अहले अरब को लड़ा दोगे तो तुमसे बढ़ कर काबिले नफ़रत हमारी निगाहों में कोई दूसरा नहीं हो सकता _,"*

*❀"_ अंसार ने बात को छुपाने की कोशिश की, चुनांचे उस वक्त़ तो बात टल गई और अंसारी काफिला रवाना हो गया, लेकिन कुरेश बाद में बराबर तजज्सुस में लगे रहे और पूरी इत्तेला पा ली, अंसारी काफिले का पीछा किया गया और सा'द बिन उबादा और मंज़र बिन अमरू रज़ियल्लाहु अन्हुम उनके हाथ आ गए, ये दोनो अपने क़बिलों पर बैत के दौरान नक़ीब मुक़र्रर हुए थे, मंज़र तो थे ही कमज़ोर आदमी, साद बिन उबादा को कुरेश ने पकड़ लिया और उनके हाथ गर्दन के साथ बांध दिए और गिरफ्तार कर के मक्का ले गए, मक्का पहुंच कर खूब मारा, उनके बाल पकड़ कर झंझोड़ा _,"*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -151,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–96_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥-- सा'द बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु का खुद अपना बयान है कि इसी हालत में कुरेश का एक आदमी आया जिसका चेहरा रोशन और वजाहतदार था, लंबा और खूबसूरत! मैंने दिल में कहा कि अगर इस क़ौम में कोई खैर बाक़ी है तो इसकी तवक़्को़ इसी शख्स से की जा सकती है, वो जब क़रीब आया तो उसने हाथ उठा कर ज़ोर से मुझे थप्पड़ लगाया, अब दिल में मैंने समझ लिया कि इस गिरोह में भलाई की कोई रमक बाक़ी नहीं,*

*❀"_आखिर एक शख्स ने नरमी के साथ पूछा कि क्या तुम्हारा कोई आदमी कुरेश में ऐसा नहीं है कि जिससे तुम्हारा कोई भाईचारा या कोई अहद व पैमान हो? मैंने जुबेर बिन मुत'अम और हारिस बिन हर्ब के नाम लिए, उसने कहा फिर पुकारो उनके नाम और जो ताल्लुक़ उनके साथ है उसे बयान करो, चुनांचे मैंने ऐसा ही किया, वही शख्स उन्हें ढूंढ़ने निकला, वो दोनो पास ही मिल गए और उन्होंने आ कर मुझे छुड़वाया,*

*❀"_इस्लाम की मुख़ालफ़त की मुहिम का एक सरखील नफ़र बिन हारिस भी था, ये अपनी तिजारत के लिए अक्सर फारस जाता, वहां से शाहाने अजम के तारीखी किस्से भी जमा कर लाता और अदबी अंदाज से कहानियां भी, चुनांचे इसने मक्का में क़ुरान के इंक़िलाबी अदब के मुक़ाबले पर हजम के सल्फ़ी अदब का अड्डा क़ायम किया और लोगों को दावत देता कि मुहम्मद (ﷺ) से आद व समूद के फीके क़िस्से क्या सुनते हो, आओ मै तुमको रुस्तम व अस्फनाद की सरज़मीन की चटपटी कहानियां सुनाऊं_,"*

*❀"_ नफ़र बिन हारिस को एक मुस्तक़िल इंसानी किरदार बना कर क़ुरआन ने हमारे सामने रखा है कि:- "और लोगों में एक किरदार ऐसा भी है जो दिल बहलाने के अफ़सानों का ख़रीदार है ताकी उनके ज़रीये (लोगों को) अल्लाह के रास्ते से बैगर समझे बूझे बहकाये और उसका मज़ाक उडा़ये _," (सूरह लुक़मान -2)*         

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -152,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–97_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ ये नफर बिन हारिस वो है जिसने एक मजलिस में अबू जहल के सामने दावते मुहम्मद ﷺ के मोजु़ पर ये तक़रीर की थी:- ए गिरोह कुरेश! तुम्हारे ऊपर एक मामला आ पड़ा है कि आगे चल कर इसके खिलाफ तुम्हारा कोई हीला कारगार ना होगा, मुहम्मद (ﷺ) तुम्हारे दरमियान एक मन मोहना नो खेज़ लडका था, तुम सबसे बढ़ कर रास्त गो, तुम सबसे बढ़ कर अमानतदार! यहां तक कि जब उसकी कनपटीयो में सफेद बाल आ गए और उसने तुम्हें अपना वो पैगाम दिया तो अब तुम कहते हो कि वो जादूगर है, कहते हो कि वो काहिन है,.. कहते हो कि वो शायर है... और कहते हो कि वो दीवाना है.. इनमे से कोई बात भी दुरुस्त नहीं है, ऐ गिरोह कुरेश! अपने मोक़ुफ पर गौर करो, क्योंकि बाखुदा तुम्हारे सामने एक अमरे अज़ीम आ चुका है _,"*

*❀"_ नफर बिन हारिस की ये तक़रीर बताती है कि वो दावते मुहम्मद ﷺ कि अज़मत को भी समझता था और मोहसिन ए इंसानियत के किरदार की रफ़'अत से भी आगाह था, वो अपने ज़मीर को पामाल कर के हुज़ूर ﷺ के पैगाम की मुखालिफत के लिए शैतानी तर्कीबे निकालता था, उसे अंदाज़ था कि एक बा मक़सद तहरीक के संजीदा पैगाम के मुक़ाबले में आम लोगो के लिए सल्फ़ी अदब में ज़्यादा कशिश हो सकती है, इसलिए उसने सल्फ़ी अदब के एक मकतब की इब्तिदा कर दी,*

*"❀_ नफर बिन हारिस कहा करता था, "मैं मुहम्मद (ﷺ) से ज्यादा दिलचस्प कहानियां पेश करता हूं, फिर जब वो अजमी दास्ताने बयान करता तो कहता कि आखिर मुहम्मद (ﷺ) की बात किस पहलू से मेरी बातों से ज़्यादा दिलचस्प है, दूसरी तरफ वो हुजूर ﷺ के कलाम पर असातीर अव्वलीन की फबती कसता,*

*"❀_ इतना ही नहीं उसने गाने बजाने वाली एक फनकार लोंडी भी खड़ी की थी, लोगों को जमा करके खाने खिलाता था, फिर उस लोंडी से गाने सुनवाता, जिस नौजवान के मुताल्लिक़ मालूम हो जाता कि वो इस्लाम की तरफ रागिब हो रहा है तो उसके यहां फनकार लोंडी को ले जाता और उसे हिदायत करता कि जरा इसे खिला पिला और मोसिकी़ से शाद काम कर, आर्ट और कल्चर के ऐसे मजा़हिरे के बाद तंज़ कर के कहता कि मुहम्मद (ﷺ) जिस काम की तरफ बुलाते है वो मज़ेदार है या ये?*
 *®_( सीरते मुस्तफा- मौलाना इदरीस कांधलवी -1/188)*

*❀"_ लेकिन पैगामे हक़ और एक बा मक़सद तहरीक के मुक़ाबले में ये सब नतीजा ख़ैर साबित न हुए, चार दिन धूम धाम रही फिर ये सारे हंगामे ठंडे पड़ गये,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -153,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–98_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ -चुनांचे अपने इस हरबे में नाकाम हो कर यही नफर बिन हारिस कुरेश के सरदारों के मशवरे से यहूदियों के मोलवियों के पास मदीना पहुंचा कि तुम इल्म रखते हो तो हम बे इल्मों को बताओ कि हम तहरीके इस्लामी से कैसे निपटें, और केसे दाई हक़ को किसी शिकस्त दें, उलमा ए यहूद ने सिखाया कि उस शख्स से असहाबे कहफ और ज़ुल क़रनैन का क़िस्सा दरियाफ़्त करो और रूह की हक़ीक़त पूछो, चुनांचे फ़ैसलाकुन अंदाज़ से ये सवालात रखे गए, वही ए इलाही ने इत्मिनान बख्श जवाब दे दिए, लेकिन कुफ्र की हट का क्या इलाज?*

*"❀__ इब्तिदायी ख़ुफ़िया मरहले से निकलने के बाद इस्लामी तहरीक जब तेज़ी से फेलने लगी और फिर आगे चल कर जब प्रोपोगंडे और तशद्दुद की मुख्तलिफ़ तदबीरे नाकारा साबित हुई तो ऐसी कोशिशें होने लगी कि किसी तरह समझोते की राह निकले और कुछ मान कर और कुछ मनवा कर झगड़ा खत्म किया जा सके, मगर उसूली तहरीकों में इतनी लचक होती ही नहीं कि लेन देने के लिए कोई दरमियानी राह पैदा कर ली जाए,*

*"❀__ उनकी एक शर्त समझोते की ये थी कि हुजूर ﷺ उनके बुतों और माबूदों के ख़िलाफ़ ज़ुबान ना खोलें और उनके मज़हब को बुरा न कहें, और इसके अलावा जो कुछ वाज़ भी करना चाहें और जैसी कुछ अख़लाक़ी नसीहते फ़रमाना चाहें गवारा कर ली जाएंगी, यानी "ला इलाहा" ना कहे महज़ अल्लाह का नाम लेने की गुंजाईश हो सकती है,*

*❀_"_ इसी तरह उनकी तरफ से ख्वाहिश की गई कि (सूरह यूनुस-15) यानि इस कुरान को बाला ए ताक़ रख दो और कोई दूसरा कुरान लाओ, या इसमे रद्दो बदल कर लो (ताकी कुछ हमारे तक़ाज़ों के) लिए भी गुंजाइश निकले)*

*❀_"_ इसका जवाब वही ए इलाही के अल्फाज़ में हुजूर ﷺ की ज़ुबान मुबारक से ये दिलवाया गया कि, "_मेरा ये अख्त्यार नहीं, कि इस (कुरान) को बतोर खुद बदल लो, जो कुछ मुझ पर वही किया जाता है, उसके मा सिवा किसी और चीज़ की पेरवी नहीं कर सकता, मैं अगर अपने रब की नाफरमानी करूं तो यौमे अज़ीम (क़यामत) के अज़ाब का अंदाज़ रखता हूं, उससे बढ़ कर ज़ालिम और कौन होगा जो कोई गलत बात ( अपनी तरफ से गढ़ कर) अल्लाह तआला से मंसूब कर दे _," (सूरह यूनुस -15)*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -153,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–99_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_मसालिहत (समझौते) की राह निकालने के लिए मुखालिफीन ने हुजूर ﷺ के सामने एक मुतालबा ये भी रखा कि अगर आप अपने हलके़ से हमारे मा'शरे के घटिया लोगों, हमारे गुलामों और कल के लोंडों को निकाल दे' फिर हम आपके पास आ कर बेठे और आपकी तालीमात को सुने, आखिर मोजूदा हालात में हमारे मर्तबे से ये बईद है कि हम कोई इस्तेफादा कर सके, पंच लोगों ने हमारा रास्ता रोक रखा है, यहां हम उनको देखते हैं कि वो तहरीक के खवास बने हुए हैं और उनको बड़ी कुर्बत हासिल है, उन्हीं लोगो के बारे अक्सर तंज़न कहा करते थे कि ये है वो हस्तियां जो कैसर व किसरा की जानशीन बनने वाली हैं _,"*

*❀"_ इससे पहले कि हुज़ूर ﷺ के दिल पर इस फरेब करदा ख़्वाहिश का कोई असर होता क़ुरान ने आप पर वाज़े किया कि ये तो मुखालिफ़ीन की महज़ एक चाल है जैसे कि वो जुमला अंबिया के ख़िलाफ़ चलते रहते थे, मसलन ठीक ऐसी ही बात नूह अलैहिस्सलाम के सामने भी रखी गई थी, (हूद-27) पस आप उन साथियो को मुखालिफीन के लिए अपने क़रीब से हरगिज़ महरूम ना करें जो सुबेह व शाम खुदा का नाम पुकारने वाले हैं _," (अन'आम-52)*

*❀"_ बल्की हिदायत दी गई कि इखलास के ये पैकर जो तरह तरह की मुसीबते उठा रहे हैं, इनको अपने साया शफक़त में रखो, और ईमान लाने वालों में से जो लोग तुम्हारी पेरवी अख्त्यार करें, उनके साथ तवाजो़ से पेश आओ _, (अश- शुअरा- 215)*

*❀"_ बल्की एक मोक़े पर एक मुख़ालिफ़ से गुफ्तगू करते हुए हुज़ूर ﷺ ने एक नाबीना सहाबी (इब्ने उम्मे मकतूम) की मुद्दाख़लत को ना पसंद किया तो इतनी सी बात पर तम्बीह आ गई_," (सूरा अबसा- 1 से 10)*   

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -154,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–100_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_इसी सिलसिले में एक बार मुखालिफ़ीन क़ुरैश की मजलिस में गोर व फिक्र हो रहा था और दूसरी तरफ़ रसूले ख़ुदा ﷺ हरम में तन्हा तशरीफ़ फ़रमा था, उक़्बा बिन रबी'आ ने अहले मजलिस से कहा कि अगर तुम लोग पसंद करो तो मैं मुहम्मद (ﷺ) के पास जा कर बात करूं और उसके सामने ऐसी सूरतें पेश करूं जिनमे से मुमकिन है कि किसी को वो चाहे तो कुबूल कर ले, और फिर हम उसे अपना कर दें और वो हमारे मुक़ाबले से बाज़ आ जाए,*

*"❀_ ये सरीह तोर पर सौदाबाज़ी की एक तजवीज़ थी और यहाँ तक अगर कुरेश आ पहुँचे थे तो दर हक़ीक़त हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु के ईमान लाने और तहरीक के तेज़ी से फैलने की वजह से मजबूर हो कर आ पहुँचे थे, मजलिस की रज़ामंदी से उक़बा ने हुज़ूर ﷺ से जा कर यूँ गुफ्तगू की :-*

*"❀_ ऐ ब्रादर जा़दे! तुम्हारा जो कुछ मरतबा हमारे दरमियान है वो तुम खुद जानते हो, खानदान भर में तुम्हारा मुका़म बुलंद है और नसब के लिहाज़ से तुम एक शान रखते हो_," इस खुशामद आमेज़ मगर मुब्नी बर हक़ीक़त बातों के बाद उकबा ने शिकायत की कि तुमने क़ौम को बड़ी उल्झन में डाल दिया है, उनकी वेहदत को पारा पारा कर दिया है, उनके अकाबिर को अहमक क़रार दिया है, उनके माबूदो और उनके दीन में ऐब लगाया है, उनके गुज़रे हुए आबा व अजदाद की तकफीर कर डाली है, अब मेरी बात सुनो और मैं जो कुछ पेश करता हूं उन सारी सूरतों पर गौर करो, शायद तुम उन से कोई बात कुबूल कर लो,*

*"❀_ हुजूर ﷺ ने फरमाया, "_तुम कहो ए अबुल वलीद! मैं सुनूंगा_," उक़बा ने हस्बे ज़ेल सूरतों की पेश कश की:- अगर इस सारे हंगामा से तुम्हारा मक़सद दौलत हो तो फिर हम तुम्हारे लिए इतना माल जमा कर दें कि तुम हम सबसे बढ़ कर मालदार हो जाओ,"*
*"_ अगर तुम इसके ज़रिये सरदारी व क़यादत चाहते हो तो हम तुम्हें अपने ऊपर सरदार मुक़र्रर कर लेते हैं, यहां तक कि तुम्हारे बगैर हम किसी भी मामले में कोई फैसला नहीं करेंगे_,"*

*"❀_ अगर तुम बादशाहत चाहते हो तो हम तुम्हें अपना बादशाह तस्लीम किए लेते हैं, और अगर ये इस वजह से है कि तुम पर किसी जिन्न वगेरा का साया होता है और वो तुम पर मुसल्लत हो जाता है तो फिर हम कुछ चंदा वगेरा कर के तुम्हारे लिए इलाज का सामान करें, फिर या तो तुम्हें इससे निजात दिला दें या नाकामी हो तो माजू़र समझें_,"*    
*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -154,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–101_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- पूरी पेशकश को सुन कर हुजूर ﷺ ने फरमाया - अबू वलीद! क्या तुम अपनी बात कह चुके? उसने कहा - हां, फरमाया- तो अब मेरी सुनो, उसने कहा - कहो! हुजूर ﷺ ने पूरी पेशकश को एक तरफ डाल कर क़ुरान की आयात सुनानी शुरू की (हामीम सजदा- 1 से 5 तक),*

*"❀_ हुज़ूर ﷺ जब तक सुनाते गए उक़बा दोनों हाथ पीछे ले जा कर उन पर टेक लगाये हुए चुपचाप सुनता रहा, हुज़ूर ﷺ ने सजदा तिलावत आने पर क़िरात रोकी और सजदा किया, फिर फरमाया- अबू वलीद! तुमने सुन लिया जो कुछ सुना, अब तू जाने और ये_,"*

*"❀_ उक़बा उठा और अपने साथियों के पास पहुंचा, उनकी नज़र पड़ते ही कहा कि उक़बा का चेहरा बदला हुआ है, अब वो रंग नहीं जो जाते वक्त़ था, तशवीश के साथ उन्होंने माजरा पूछा, उक़बा ने कहा - माजरा ये है कि मैने ऐसा कलाम सुना है कि जेसा कभी नहीं सुना, बा खुदा ना वो शैर है, ना जादू है और न कहानत है, ऐ गिरोह कुरेश मेरी बात मानो और उसकी जिम्मेदारी मुझ पर रहने दो, उस शख्स को उसके हाल पर छोड़ दो और उसके पीछे ना पड़ो, खुदा की क़सम जो कलाम मैंने उससे सुना है इससे यक़ीनन कोई बड़ा नतीजा निकलने वाला है, अगर अहले अरब ने उससे निपट लिया तो दूसरों के ज़रीए तुम्हें उससे निजात हो जाएगी और अगर वो अरब पर छा गया तो उसकी सल्तनत तुम्हारी ही सल्तनत होगी, और उसकी ताक़त तुम्हारी ताक़त होगी, और तुम उसके वास्ते से लोगो में सबसे बढ़ कर खुश नसीब हो जाओगे _,"*

*"❀_ उक़बा की बात सुन कर मजलिस में यूं मजाक उड़ाया गया कि अबू वलीद उसकी जुबान का जादू तो तुम पर भी चल गया, उक़बा ने कहा कि उसके मुताल्लिक़ मेरी राय तो यही है जो मैंने कह दी, अब तुम जो चाहो करो,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -157,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–102_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ एक कोशिश इस सिलसिले में और की गई, बड़े बड़े सरदार.. उत्बा बिन रबिआ, शीबा बिन रबिआ, अबू सुफ़ियान बिन हर्ब, नफ़र बिन हारिस, अबुल बख़्तरी बिन हिशाम, असवद बिन मुतालिब, ज़मा बिन असवद, वलीद बिन मुगीरा, अबू जहल बिन हिशाम, अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या, आस बिन वाइल, नबिया और मुन्हा अबना'ए हिजाज, उमय्या बिन खल्फ .. गुरुबे आफताब के बाद काबा के पास जमा हुए, इन्होंने रसूले खुदा ﷺ को बुलवा भेजा, हुजूर ﷺ अच्छी तवक़्क़ोआत के साथ जल्द जल्द आ पहुँचे, उन्होंने अपनी उसी पेश कश को जो पहले उक़बा के ज़रिये पहुँचाई गई थी, एक बार फिर दोहराया, इसे सुन कर हुज़ूर ﷺ ने ये जवाब दिया:-*

*"❀_ तुम लोग जो कुछ कह रहे हो, मेरा मामला उससे मुख्तलिफ है, मैं जो दावत तुम्हारे सामने ले कर उठा हूं, इसे इसलिए नहीं पेश कर रहा हूं कि इसके ज़रिये तुमसे माल व दौलत हासिल करूं या तुम्हारे ऊपर बादशाहत का़यम करूं, मुझे तो खुदा ने तुम्हारे सामने अपना पैगंबर बना कर उठाया है, उसने मुझ पर किताब उतारी है और मुझे हुक्म दिया है कि तुम्हारे लिए बशीर व नज़ीर बनुं,*

*❀"_ सो मैंने खुदा की हिदायत तुम तक पहुंचा दी है और तुम्हारी खैर ख्वाही का हक़ अदा किया है, अब जो कुछ मैं लाया हूं अगर इसे तुम कुबूल कर लो तो वो तुम्हारे लिए दुनिया व आखिरत की भलाई का ज़रिया है और अगर तुम इसे मेरी तरफ़ वापस फ़ैंक दो तो मैं अल्लाह के हुक्म के इंतज़ार में सब्र दिखाऊंगा, यहां तक कि खुदा मेरे और तुम लोगों के दरमियान अपना फैसला सादिर फरमा दे ,*

*❀"_ ये जवाब सुन कर जब उन्होंने देखा कि आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल रहा, तो तरह तरह की हुज्जते निकालना शुरू की, मसलन ये कहा कि तुम जानते हो कि हमारी ये सर ज़मीन बहुत ही तंग है, इसमें पानी की कमी है और यहां की जिंदगी बहुत कठिन है, तुम खुदा से कहो कि वो पहाड़ों को यहां से हटा दे और हमारी ज़मीन को कुशादा कर दे और इसमें शाम व इराक़ की तरह दरिया चला दे, फिर ये कहा कि खुदा हमारे आबा व अजदाद को उठा खड़ा करे, और उनमें कुसई बिन किलाब जरूर शमिल हो क्योंकि वो मर्द बुज़ुर्ग बड़ा रास्त बाज़ था,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -158,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–103_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ हम उससे तुम्हारी दावत के बारे में दरियाफ्त करेंगे कि ये हक़ है या बातिल! फिर हमारे असलाफ ज़िंदा हो कर अगर तुम्हारी तसदीक़ कर दें और तू वो बातें कर दिखाएं जिनका मुतालबा हमने किया है तो हम तुम्हारी तसदीक़ करेंगे और खुदा के बारे में तुम्हारा ये मर्तबा हमें तस्लीम होगा कि उसने तुम्हें वाक़ई रसूल बना के भेजा है,*

*"❀_ फिर कहा कि ये भी नहीं करते तो हम पर अजा़ब ही वारिद करा दो, हुजूर ﷺ मुतालबात पर बार बार अपनी वही बात दोहराते चले गए और कहते गए कि इन कामों के लिए मुझे नहीं उठाया गया _,"*

*❀"_आख़िर जब हुज़ूर ﷺ उठ खड़े हुए तो आपके साथ ही साथ अब्दुल्लाह बिन अबी (जो हुज़ूर ﷺ का फूफ़ीज़ाद भाई था) भी उठ खड़ा हुआ और आपसे मुखातिब हो कर कहने लगा कि तुम्हारी क़ौम ने तुम्हारे सामने कुछ बातें रखीं, लेकिन तुमने कोई पेशकश भी मान कर नहीं दी, अब तो खुदा की क़सम मैं तुम्हारे ऊपर ईमान नहीं लाऊंगा ख्वाह तुम आसमान पर सीढ़ी लगा कर उस पर चढ़ते हुए दिखाई क्यों ना दे जाओ और फिर आंखों के सामने उतरो और तुम्हारे साथ चार फ़रिश्ते भी आ कर तुम्हारी सदाक़त की गवाही क्यों ना दे दें, खुदा की क़सम अगर मैं ऐसा करूं भी तो मेरा क़तअन ये ख्याल नहीं कि मैं हकी़क़तन तुम्हारी तसदीक़ करूंगा _,"*

*❀"_ ऐसे ही वाक़ियात में से एक ये है कि सफर ताइफ के बाद जब हुजूर ﷺ ने मक्का से निकल कर आस पास के क़बीलों में पैगाम पहुंचाना शुरू किया तो एक बार क़बीला बनू आमिर बिन सा'सा के यहां भी पहुंचे और सरदार क़बीला बहीरा बिन फरास से मुलाक़ात की, उसने हुजूर ﷺ की दावत सुनी फिर साथियों से कहने लगा- बा खुदा अगर कुरेश का ये नोजवान मेरे हाथ आ जाए तो मैं इसके जरिये सारे अरब को मुट्ठी में ले लूं _," फिर आपको खिताब कर के पूछा कि अगर हम लोग इस दावत को कुबूल कर लें और तुम मुखालिफीन पर गालिब आ जाओ तो क्या ये वादा करते हो कि तुम्हारे बाद ये सारा सिलसिला मेरी तहवील (क़बज़े) मे आ जाएगा?*
*"_ आप ﷺ ने जवाब दिया कि ये तो खुदा के अख्त्यार में है, वो जिसे चाहेगा मेरे बाद मुक़र्रर करेगा_,"*

*❀"_ बहीरा ने इस पर कहा कि क्या खूब! इस वक़्त तो अरब के सामने हम सीना सिपर हों और जब तुम्हारा काम बन जाए तो फ़ायदा कोई दूसरा हासिल कर ले जाए, जाओ हमको इस सिलसिले से कोई मतलब नहीं_,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -159,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–104_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_बराहे रास्त आन हज़रत ﷺ के ख़िलाफ़ तो हर घड़ी और हर साँस गोना गो ज़्यादतियां की ही जाती रहीं, लेकिन आपके रफ़्क़ा को जो अज़ियते दी जाती थी वो भी बिल वास्ता आप ही के हस्सास क़ल्ब को छलनी करने वाली थी, अब देखिए कि किस पर क्या गुज़री?*

*"❀_ ख़ब्बाब बिन अर्त तमीमी रज़ियल्लाहु अन्हु जाहिलियत के दौर में गुलाम बना कर बेच डाले गए थे, और उम्मे नमार ने इनको ख़रीदा था, ये जिस वक़्त ईमान लाए कुरेश ने जलते अंगारे बिछा कर उनको बिस्तरे आतिश पर लिटाया, और छाती पर एक शख्स खड़ा हो गया ताकि करवट न बदल सके, अंगारे पीठ के नीचे ही ठंडा हो गये,*

*❀"_ बाद में ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को एक मर्तबा पीठ दिखायी तो सफ़ेद कोड की तरह सफ़ेद दाग उस पर नुमाया थे, पेशा के लिहाज़ से ये लोहार थे, इस्लाम लाने के बाद जब इन्होंने लोगों से वाजिबुल वसूल उजरतों का तकाज़ा किया तो जवाब मिला कि जब तक मुहम्मद ﷺ का इंकार नहीं करोगे, एक कोड़ी भी नहीं मिलेगी, ये गोया मा'शी चोट लगाई जा रही थी, मगर हक़ का ये सिपाही कहता कि तुम लोग जब तक मर कर जिंदा ना हो जाओ ऐसा नहीं हो सकता,*

*❀"_ हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु बिन रबाह हब्शी उमय्या बिन ख़ल्फ़ के ग़ुलाम थे, जब सूरज ठीक निस्फ़ुन नहार पर आ जाता तो अरब की तपती रेत पर इनको लिटाया जाता और सीने पर भारी पत्थर रख दिया जात ताकी करवट न बदल सके, उमय्या इस हालत में इनसे कहता कि इस्लाम से बाज़ आ जाओ वर्ना इसी तरह ख़त्म हो जाओगे, हज़रत बिलाल जवाब में सिर्फ "अहद! अहद !" पुकारते,*

*❀"_ उमय्या का गुस्सा और भड़क गया, उसने आपके गले में रस्सी डाल कर शहर के लोंडों को साथ लगा दिया, वो आपको गली गली घसीटते फिरते लेकिन ये आशिक जांबाज़ उसी तरह अहद अहद पुकारता फिरता, कभी आपको गाय की खाल में लपेटा जाता, कभी अपनी ज़ीरा पहनना कर तेज धूप में बिठाया जाता, हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उमय्या बिन ख़ल्फ़ से एक गुलाम के एवज़ में ख़रीद कर आज़ाद कर दिया_,"* 

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -161,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–105_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु कुहतानी असल थे, इनके वालिद यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु यमन से अपने दो भाईयों के साथ एक गुमशुदा भाई की तलाश में आए थे, दो भाई तो वापस चले गए और यासिर अबू हुजैफ़ा मख़ज़ुमी से हलीफ़ाना ताल्लुक़ात क़ा'इम कर के मक्का में ही रह गए और यही शादी कर ली,*

 *❀"_ यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु समेत तक़रीबन सारा ही घराना इस्लाम ले आया, चुंकी अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु का कोई क़बीला मक्का में न था इसलिये उन पर ख़ूब सितम ढाये जाते, उन्हें इस्लाम क़ुबूल करने के जुर्म की सज़ा यूं दी जाती कि उनको भी जलती ज़मीन पर लिटाया जाता और कुरेश उनको इतना मारते कि बार बार बेहोश हो जाते, इनके वाल्दैन पर भी इसी तरह ज़ुल्म किया जाता,*

*❀"_ पानी में उनको गोते भी दिए जाते और अंगारो पर भी तड़पाया जाता, हुजूर ﷺ इनके सर पर दस्ते शफक़त फैर कर खास दुआ करते और बशारत देते, हजरत अली की रिवायत है कि हुजूर ﷺ फरमाते कि अम्मार सर से पैर तक ईमान से भरा हुआ है,*

*"❀_ हज़रत सुमैय्या रज़ियल्लाहु अन्हा जो हज़रत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु की वालिदा थी, उनको इस्लाम लाने पर अबु जहल ने निहायत वेहशाना तरीक़े से बरछी मार कर हलाक़ कर दिया, यही अव्वलीन खातून हैं जो राहे हक़ में शहीद हुई, हज़रत यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु जो हज़रत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद थे वो भी ज़ुल्म सेहते सेहते शहीद हो गए*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -161,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–106_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु भी अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ ईमान लाए थे, इनको इस बेदर्दी से मारा जाता था कि दिमागी तवाज़न बार बार दरहम बरहम हो जाता, दौरे हिजरत में क़ुरैश ने इनको इस शर्त पर मदीना जाने की इजाज़त दी कि अपना सारा माल व असबाब दे जाए, इन्होंने बाखुशी मंज़ूर किया और खाली हाथ निकल गए,*

*"❀_ अबू फकीह रज़ियल्लाहु अन्हु सफ़वान बिन उमय्या के गुलाम थे और इस्लाम लाने में हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के हम असर, उमय्या को इत्तेला हुई तो पांव में रस्सी डलवा कर लोगों से कहा कि तपती रेत पर लिटाने के लिए घसीट कर ले जाओ, रास्ते में एक गब्रिला दिखाई दिया तो उमय्या ने कहा कि यही तो तेरा खुदा नहीं, उन्होंने संजिदगी से जवाब दिया कि मेरा और तेरा दोनों का खुदा अल्लाह ता'ला है,*

 *❀"_ इस पर उमय्या ने इस ज़ोर से इनका गला घोंटा कि लोग ये समझे कि दम निकल गया, मगर बच गए, एक बार इतना भारी पत्थर उनके सीने पर लाद दिया कि बेहाल हो जाने की वजह से जुबान बाहर निकल आई, कभी इनको लोहे की बेड़ियां पहनना कर जलती ज़मीन पर उल्टा लिटाया जाता, इनको भी हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने ख़रीद कर आज़ाद करा दिया,*

*❀"_ हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु जो उम्र के लिहाज़ से भी काबिले अहतराम थे और माल व जाह रखते थे, जब इस्लाम लाये तो इनके अपने चाचा ने रस्सी से बांध कर पीटा,*
*"_ हज़रत ज़ुबेर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु को इस्लाम लाने कि सज़ा देने के लिए इनके चाचा चटाई में लपेट कर धुवाँ देते थे, मगर वो पूरी अज़मत से फरमाते मै कुफ्र तो अब हरगिज़ नहीं करुंगा _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -162,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–107_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को (ये हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के चाचाज़ाद भाई थे) हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने रस्सियों में बाँध दिया, सा'द बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ भी ज़ालिमाना कार्यवाहियां की गईं, अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम लाने पर हरम में पहली मर्तबा बा आवाज़ क़ुरआन पढ़ा, सूरह रहमान की तिलावत आपने शुरू ही की थी कि क़ुरैश टूट पड़े और मूँह पर तमाचे मारे गए, मगर फिर भी तिलावत जारी रखी और ज़ख्मी चेहरे के साथ वापस हुए,*

*❀"_ उस्मान बिन मज़ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु वलीद बिन मुगीरा की पनाह में होने की वजह से इब्तिदा मामून थे, लेकिन रसूले खुदा के असहाब पर जो इम्तेहानी घड़ियां गुज़र रही थीं उनको देख कर उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के दिल में एहसास पैदा हुआ कि मैं एक मुशरिक के साया हिमायत में अमन चैन से रहूं जबकी मेरे साथी ये कुछ भुगत रहे हैं,*

*❀"_ उन्होंने वलीद बिन मुगीरा से बात की कि मैं पनाह वापस करता हूं, वलीद ने समझा कि भतीजे मेरी कौम का कोई फर्द तुम्हारे साथ बद सुलूकी न कर बैठे_," उन्होंने कहा कि नहीं मैं तो अल्लाह की पनाह में रहूंगा और उसके मा सिवा और किसी की पनाह मुझे गवारा नहीं, काबा में जा कर उन्‍होंने बा आवाज़ बुलंद वलीद बिन मुगीरा की पनाह वापस करने का एलान किया और उसके बाद कुरेश की मजलिस में जा बैठे,*

*❀"_ इस पर एक शख्स उठा और उस्मान बिन मज़ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु को एक थप्पड़ ऐसा मारा कि उनकी आंख फूट गई, इस पर वलीद बिन मुगीरा ने कहा कि तुम अगर मेरी पनाह में रहते तो आंख से यूं हाथ ना धो बैठते, उस्मान बिन मज़'ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया कि मेरी जो आंख बच रही हैं वो भी कुर्बान होने को तैयार है, मैं उस हस्ती की पनाह में हूं जो तुमसे ज़्यादा साहिबे इज्जत व क़ुदरत वाला है,*   

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -163,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–108_* ★
      *⚂ मक्की दौर- दावत ए आम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हज़रत अबुज़र गिफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु ने दावते हक़ को क़ुबूल किया तो इंक़िलाबी रूह से शरशार हो कर सीधे हरम पहुँचे और वहां जा कर बा आवाज़ बुलंद अपने नए अक़ीदे का एलान किया, क़ुरैश सिटपिटा गए और कहने लगे के ये कौन बेदीन है, मारो इसे, चुनांचे मार पीट शुरू हो गई, इरादा ये था कि उन्हें जान से मार दिया जाए, मगर हुज़ूर ﷺ के चाचा अब्बास रजियल्लाहु अन्हु का इत्तेफाक़न गुज़र हुआ तो उन्होंने कहा कि ये तो क़बीला गिफार का आदमी है और तुम्हें तिजारत के लिए उसी क़बीले की हुदूद से हो कर जाना होता है, कुछ होश करो, लोग बाज़ आ गए, दूसरे रोज़ उन्होंने फिर अक़ीदे का एलान किया और फिर मार खाई,*

*"❀_ हज़रत उम्मे शरीक रज़ियल्लाहु अन्हा ईमान लायीं तो उनके अज़ीज़ो अक़ारिब ने उन्हें चिलमिलती धूप में खड़ा कर दिया, इस हालत में वो उनको खाने के लिए रोटी के साथ शहद देते और पानी ना पिलाते ताकी गर्मी का दोगुना अज़ाब भुगतें, तीन दिन मुसलसल इसी आलम में गुज़र गए, इंतेहाई मुसीबत के लम्हों में उनसे मुतालबा किया गया कि इस्लाम को छोड़ दो, उनके हवास इस दर्जा मुतास्सिर हो चुके थे कि वो इस बात को समझ तक ना सकीं थीं, फिर जा़लिमों ने आसमान की तरफ इशारा कर के कहा कि खुदा ए वाहिद का इंकार कर दो, जब वो मुद्दआ समझ गई तो कहा कि खुदा की क़सम मैं तो अपने अकी़दे पर क़ायम हूं _,"*

*❀"_ खालिद बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु के क़ुबूले इस्लाम पर उनके बाप ने इस क़दर मारा कि सर ज़ख़्मी हो गया, उनको फ़ाक़े का अज़ाब भी दिया गया, गर्ज़ ये कि कौन था जिसे इस भट्टी में ना डाला गया हो, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को उनके चाचा हकम बिन आस ने रस्सियों में जकड़ दिया, यही सुलूक तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ हुआ,*

*❀"_ वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु बिन वलीद, अयाश रज़ियल्लाहु अन्हु बिन अबी रबी'आ और सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु बिन हिशाम को इंतेहाई अज़ियतें दी गयीं और फिर उनको हिजरत से भी रोका गया, जोर व ज़ुल्म का इंतेहाई मुज़ाहिरा वो भी था जो अपनी बहन और बहनोई के साथ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने रवा रखा*

*"❀_ एक तरफ इस ज़हर गुदाज सिलसिला ए तशद्दुद को देखिए और दूसरी तरफ तहरीके इस्लामी के अलंबरदारो की इस्तेका़मत मुलाहिजा फरमायें की मर्द औरतें, गुलाम और लौंडियां जो भी हक़ से शरशर हो गया, फिर उसका क़दम पीछे नहीं हटा , ज़ुल्म किसी एक फ़र्द को भी इरतेदाद की राह पर ना डाल सका, जो कोई इस्लाम की पुकार पर लब्बेक कह देता, उसके अंदर से बिलकुल एक नया इंसान नमुदार हो जाता और उसके सीने में नई क़ुववतें जाग उठती_,"*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -164,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–109_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हिजरत ए हब्शा :-*
*❀"_ हर मुसीबत की बर्दाश्त की कोई हद होती है, इम्तिहान की जिन मुश्किल घडिय़ों से तहरीके इस्लामी के अलंबरदारों को साबका़ दर पेश था उनको बर्दाश्त करने में उन्होंने हमेशा के लिए यादगारी नमूना क़ायम कर दिया, लेकिन जुल्म व ज़ोर कहीं रुकने में नहीं आ रहा था, बल्की रोज़ बा रोज़ ज़ोर पकड़ता ही जा रहा था,*

*❀"_ हुज़ूर ﷺ अपने रफक़ा का हाल देख देख कर कुढ़ते, मगर कोई ज़ोर नहीं चलता था, सहारा था तो ख़ुदा के ईमान का था, आख़िरत के यक़ीन का था, सच्चाई की आखिरी फ़तेह की क़वि उम्मीदों का था, सोज़ भरी दुआओं का था, हुज़ूर ﷺ अपने रफीकों को तसल्ली देते कि खुदा कोई ना कोई रास्ता निकालेगा, हालात बता रहे थे कि निज़ामे हक़ की बुनियाद यहां नहीं होने की, बल्की किसी दूसरे गोशा ए ज़मीन को ये स'आदत मिलने वाली है,*

*❀"_ तहरीके इस्लामी की तारीख में पहले भी हमेशा हिजरत का बाब ज़रूर शामिल रहा है, सो अंदाजा हो चला था कि मोहसिने इंसानियत और उनके रफीको़ को भी वतन छोड़ना होगा, एक इलाक़े के लोग अगर ना अहल साबित हों तो दावत किसी दूसरी आबादी को मुखातिब बना लेती है, लेकिन जब तक खुदा की तरफ से वाज़े तोर पर हुक्म न हो जाए अंबिया की ये शान नहीं होती है कि अव्वलीन मरकज़ ए दावत को छोड़ दें _,"*

*❀"_ ताहम हुज़ूर ﷺ ज़बर और सब्र की आवेज़िश को ऐसे मराहिल में देख रहे थे कि जहाँ इंसानी सब्र का पैमाना झलक सकता है, मुसलमान बेचैन थे कि अल्लाह की मदद कब आएगी, इन हालात में हुज़ूर ﷺ ने सहाबा को मशवरा दिया कि ज़मीन में कहीं निकल जाओ खुदा जल्द ही तुमको किसी जगह यक्जा कर देगा _," पूछा गया कि किधर जाएं, हुजूर ﷺ ने मुल्क हब्श की तरफ इशारा किया,*

*❀"_ दार असल रसूले खुदा ﷺ के इल्म में था कि वहां की बादशाहत इंसाफ पर क़ायम है और ईसाइयत की मज़हबी बुनियादों पर चल रही है, आपके सामने ये इम्कान था कि शायद यही इलाक़ा दारुल हिजरत बनने के लिए मोजू हो, इसीलिये आपने उस मुल्क के बारे में फरमाया कि वो सर ज़मीन रास्ती है _,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -164,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–110_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_नबुवत के पांचवे साल हुजूर ﷺ की इंकलाबी जमाअत के 11 मर्दों और 4 औरतों का काफ़िला हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजियल्लाहु अन्हु की ज़ेरे क़यादत रात की तारीकी में हब्शा को रवाना हुआ, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ उनकी अहलिया मोहतरमा यानी रसूले खुदा ﷺ की साहबजादी जनाब रुक़य्या रज़ियल्लाहु अन्हा भी अववलीन सफरे हिजरत पर निकली, हुजूर ﷺ ने इस मुबारक जोड़े के मुताल्लिक फरमाया- लूत और इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बाद ये पहला जोड़ा है जिसने राहे खुदा में वतन छोड़ा_ ,"*

*❀"_ इस क़ाफिले के निकलने के बाद जब कुरेश को खबर हुई तो पीछा करने के लिए आदमी दौड़ाएं, मगर जब वो बंदरगाह (जद्दा) पहुंचे तो मालूम हुआ उनको ऐन वक्त पर कश्तियां तैयार मिल गई थी और वो रसाई से बाहर हैं, ये मुहाजिरीन थोड़ा अरसा (रज्जब से शव्वाल तक) हब्शा में ठहरे, एक अफवाह पहुंची कि कुरेश ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया है, ये सब पलट गए, मगर मक्का के क़रीब पहुंच कर मालूम हुआ कि अफवाह गलत थी,*

*❀"_ अब सख्त मुश्किल पेश आ गई, कुछ लोग छूप कर शहर में दाखिल हुए, इस तरह लौट आने का लाज़मी नतीजा यही होना था कि पहले से बढ़ कर जुल्म होने लगा, दोबारा बहुत बड़ा काफ़िला जिसमे 85 मर्द और 17 औरतें शामिल थीं, हब्शा जा पहुंचा, वहां उनको पुर अमन फिज़ा मिली और वो इत्मिनान से इस्लाम के तक़ाज़ों के मुताबिक़ जिंदगी बसर करने लगे,*

*❀"_ अब देखिए कि हक़ के दुश्मनों का कीना कहां तक पहुंचा है, उन लोगों ने एक मजलिस में सारे मामले पर गोर कर के मनसुबा बनाया और अब्दुल्लाह बिन रबी'आ और अमरू बिन आस को सिफारत के लिए मामूर किया कि ये शाहे हब्शा से जा कर बात करें और मुहाजिरीन को वापस लाएं, इस मक़सद के लिए नजाशी और उसके दरबारियों के लिए तोहफे तैयार किए गए और बड़े सरो सामान के साथ सिफारत रवाना हुई_"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -165,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–111_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हब्शा पहुंच कर ये लोग दरबारियों और पादरियों से साजिश करने में मशगूल हो गए, और उनको रिशवतें दी, उनके सामने मामले की ये सूरत रखी कि हमारे शहर में चंद सिरफिरे लोगों ने एक मज़हबी फितना उठा खड़ा किया है, और ये तुम्हारे मज़हब के लिए भी उतना ही खतरनाक है जितना हमारे आबाई धर्म के लिए, हमने उनको निकाल दिया था तो अब ये तुम्हारी पनाह में आ पड़े हैं, उनको यहां रहने नहीं देना चाहिए,इस मक़सद में आप हमसे तावुन करे*

*❀"_ उनकी असल कोशिश ये थी कि दरबार में सारा झगड़ा जे़रे बहस ना आने पाए, और मुहाजिरीन को सिर से बात करने का मौक़ा ही ना मिले, बादशाह एक तरफा बात सुन कर उनको हमारे हवाले कर दे, इसी मक़सद के लिए रिशवतें और साज़ बाज़ के तरीक़े अख्त्यार किए गए, ये लोग जब दरबारियों को चापलूस मिल चुके तो नजाशी के सामने तोहफे ले कर पेश हुए,*

*❀"_ फिर अपनी गर्ज़ बयान की कि मक्का के अशराफ ने हमको आपकी खिदमत में इसलिये भेजा है कि आप हमारे आदमियों को हमारे साथ वापस कर दें, दरबारियों और पादरीयों ने भी ताईद की, मगर नजाशी ने एक तरफ दावे पर कार्रवाई करने से इंकार कर दिया और साफ कहा कि उन लोगों से अहवाल दरियाफ्त किए बगैर मैं उनको तुम्हारे हवाले नहीं कर सकता, दूसरे दिन दरबार में दोनों फरीक़ तलब किए गए।*

*❀"_ मुसलमानों को जब तलबी का पैगाम पहुंचा तो उनके दरमियान मशवरा हुआ कि बादशाह ईसाई है और हम लोग अपने ऐतका़द और मसलक़ में उससे इख्तिलाफ रखते हैं तो आखिर क्या कहा जाए, लेकिन फैसला यही हुआ कि हम दरबार मे वही कुछ कहेंगे जो कुछ खुदा के नबी ﷺ ने हमें सिखाया है, और उसमें जरा भी फर्क ना लाएंगे.. जो हो सो हो,*

*❀"_अंदाज़ा कीजिए कि उन लोगों का ईमान केसा मुहक्कम था, इतने संगीन हालात में हक़ और सच्चाई पर क़ायम रहने का अज़्म खुदा की दैन है,*      
*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -166,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–112_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_फ़िर जब ये हज़रात दरबार में पहुँचे तो मुक़र्रर आदाब के मुताबिक नजाशी को सज्दा करने से इज्तिनाब किया, दरबारियों ने इस तर्ज़े अमल पर बुरा मनाया, और सवाल किया कि आख़िर तुम लोगों ने सज्दा क्यों नहीं किया,*

*❀"_हज़रत जाफ़र रज़ियल्लाहु अन्हु (मुतकल्लिमे वफ़द) ने पूरी जुर्रत से जवाब दिया कि हम लोग सिवाये अल्लाह के किसी को सज्दा नहीं करते और रसूलुल्लाह ﷺ को भी सीधे सादे तरीक़े से सलाम ही कहते हैं,*
*❀"_ गोर कीजिये किन नाज़ुक हालात में सच्ची तोहीद का ये इंक़लाबी मुज़ाहिरा किया जा रहा था, हरीफ जिस ताक़त के सामने चापलूसी कर रहे थे, ये लोग उसके रूबरू उसूल पसंदाना खुद्दारी का रंग दिखा रहे थे,*

*❀"_ अब सिफारते मक्का ने अपना दावा पेश किया कि ये मुहाजिरीन हमारे भगोड़े मुजरिम हैं, इन्होंने एक नया दीन घढ़ लिया है और एक तखरीबी तूफान उठा खड़ा किया है, लिहाज़ा इनको हमारे हवाले किया जाए,*

*❀"_नजाशी ने मुसलमानों से पूछा कि ये क्या मामला है और ईसाइयत और बुतपरस्ती के अलावा वो कोनसा दीन है जो तुम लोगों ने अख्त्यार किया है, हजरत जाफर रजियाल्लाहु अन्हु मुसलमानों की तरफ से तर्जुमान बन कर उठे और उन्होंने नजाशी से इजाज़त तलब की कि पहले वो सिफारते मक्का से सवालात कर लें_,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -166,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–113_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ इजाज़त मिलने पर यूं मुकालमा हुआ, हज़रत जाफ़र रज़ियल्लाहु अन्हु- "क्या हम किसी के गुलाम हैं जो आक़ा से भाग आए हैं? अगर ऐसा हो तो हमें वापस जाना चाहिए_,"*
*"_ अमरू बिन आस- नहीं, ये लोग किसी के गुलाम नहीं, आजाद शुरफा हैं_,"*
*"_ हजरत जाफर- क्या हम किसी को नाहक़ क़त्ल कर के आए हैं? अगर ऐसा हो तो आप हमें औलिया ए मक़तूल के हवाले कर दें_,"*
*"_अमरु बिन आस- नहीं, इन्होंने खून का एक क़तरा भी नहीं बहाया_,"*

*❀"_हज़रत जाफ़र रज़ियल्लाहु अन्हु- क्या हम किसी का कुछ माल ले कर भागे हैं, अगर ऐसा हो तो हम उसकी अदायगी करने को तैयार हैं_,"*
*"_ अमरु बिन आस- नहीं, इनके जि़म्मे किसी के एक हब्बा (कोड़ी) भी नहीं_,"*
*❀"_इस जिरह से जब मुसलमानों की अखलाकी़ पोजीशन पूरी तरह साफ हो गई तो हजरत जाफर रजियल्लाहु अन्हु ने ये तक़रीर की:-*

*❀”_ ए बादशाह! हम लोग एक जाहिल क़ौम थे, बुत पूजते थे, मुर्दार खाते थे, बदकारियां करते थे, हमसायों को सताते थे, भाई भाई पर ज़ुल्म करता था, क़वी लोग कमज़ोर को खा जाया करते थे, इसी अना में हममे से एक शख्स पैदा हुआ जिसकी शराफत, सच्चाई और दयानत से हम लोग पहले से आगाह थे, उसने हमको इस्लाम की दावत दी, और ये सिखाया कि हम बुत परस्ती छोड़ दें, सच बोलें, खूंरेजी़ से बाज़ आए, यतीमों का माल न खायें, हमसायों को आराम दें, अफीफ औरतों पर बदनामी का दाग न लगायें, नमाज़ पढें, रोज़े रखें, सदका़ दें_,"*

*❀"_ हम उस पर ईमान लाए, शिर्क और बुत परस्ती छोड़ दी और तमाम बुरे आमाल से बाज़ आए, इस जुर्म में हमारी क़ौम हमारी जानो की दुश्मन हो गई और हमको मजबूर करती है कि फिर उसी गुमराही में लौट जाएं, इसलिए हम अपना ईमान और अपनी जाने ले कर आपकी तरफ भाग कर आए हैं, अगर हमारी क़ौम हमको वतन में रहने देती तो हम ना निकलते, ये है हमारी रुदाद!*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -167,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–114_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_बात सच्ची हो और कहने वाला जज़्बात के साथ उसे कहे तो लाज़मन वो असर करती है, नजाशी जैसे खुदा से डरने वाले बादशाह का दिल मोम हो गया, अब वो कहने लगा कि ज़रा उस किताब का भी कोई हिस्सा सुनाओ जो तुम लोगो पर उतरी है, चुनांचे हज़रत जाफ़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने सूरह मरियम का एक हिस्सा पढ़ा,*

*❀"_आयाते इलाही को सुन कर बादशाह के दिल पर रिक़्कत तारी हो गई, उसकी आंखें पुरनम हो गई, वो बे अख्तियार पुकार उठा- खुदा की कसम! ये कलाम और इंजील दोनो एक ही चिराग के पर तो हैं, बल्की उस पर मुस्तजा़द ये कहा कि मुहम्मद ﷺ तो वोही रसूल हैं जिनकी खबर यीसू मसीह ने दी थी, अल्लाह का शुक्र है मुझे उस रसूल का ज़माना मिला, साथ ही फैसला दिया कि मुहाजिरीन को वापस नहीं किया जा सकता, कार्रवाई खत्म हो गई और सिफारत नाकाम लोटी,*

*❀"_ बाद में उन लोगों ने फिर आपस में मशवरा किया कि एक कोशिश और की जानी चाहिए, नजाशी ईसाई है और अगर हजरत ईसा के बारे में मुसलमानों का अकी़दा दरबार में नुमाया किया जाए तो मुमकिन है कि बादशाह के अंदर मज़हबी तास्सुब की आग भड़क उठे*

*❀"_ दूसरे दिन अमरू बिन आस फिर दरबार में पहुँचे और नजाशी के कान भरने के लिए ये इल्ज़ाम तराशा कि ये लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में बहुत ख़राब अकी़दा रखते हैं, नजाशी ने फिर मुसलमानों को तलब कर लिया, उनको जब सूरते हालात मालूम हुई तो कुछ तरद्दुद हुआ कि ईसा अलैहिस्सलाम के "इब्ने अल्लाह" होने का इंकार करने पर नजाशी का रद्दे अमल न जाने क्या हो, लेकिन अज़मियत ने कहा कि जो अमरे हक़ है उसे साफ साफ पेश कर दो,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -168,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–115_* ★
                *⚂ हिजरत ए हबशा ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हज़रत जाफ़र रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी तक़रीर में कहा कि: हमारे पैगम्बर ने बताया है कि ईसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और पैगम्बर हैं, और कलामतुल्लाह हैं, नजाशी ने ज़मीन से एक तिनका उठाया और कहा कि वल्लाह! जो तुमने कहा है ईसा अलैहिस्सलाम इससे तिनके भर भी ज़्यादा नहीं हैं।*

*❀"_पादरी जो साज़िश का शिकार और रिश्वत और हदाया से मुसख्खर थे, दिल ही दिल में बहुत पेच व ताब खा रहे थे, यहां तक कि उनके नथनों से सांस की खरखराहट सुनाई देने लगी, नजाशी ने उनकी कुछ परवाह नहीं की, हुक्म दिया कि तमाम तहाइफ वापस कर दिए जाएं, मक्का का वफद पूरी तरह नाउम्मीद व खासिर हो कर लौटा।*       

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -168,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–116_* ★
          *⚂ हज़रत उमर का इस्लाम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने का वाक़िया:-*
*❀"_ तशद्दुद की इस दास्तान का वो बाब सबसे मुमताज़ है जो उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के गैज़ व ग़ज़ब से मुरत्तब हुआ था, उमर रज़ियल्लाहु अन्हु 27 वे साल में थे जबकि मुहम्मद ﷺ का आलम बुलंद हुआ, इस्लाम जल्द ही आपके घराने में नफूज़ कर गया, आपके बहनोई सईद रज़ियल्लाहु अन्हु पहले पहले इस्लाम लाये, उनके असर से आपकी बहन फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा भी मुसलमान हो गई_,"*

*"❀_ खानदान की एक और बा असर शख्सियत नईम बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी दावते हक़ पर लब्बेक कही, अव्वल अव्वल उनको इस्लाम के इस नफूज़ का हाल मालूम नहीं हो सका, जोंही इल्म हुआ तो ये आपे से बाहर हो गए और इस्लाम लाने वालों के दुश्मन बन गए, लबीना रज़ियल्लाहु अन्हा इनके खानदान की कनीज़ थी, इनको मारते मारते थक जाते तो दम लेने के लिए अलग होते, फिर ताज़ा दम हो कर मारना शुरू कर देते, आख़िर एक दिन तैय कर लिया कि क्यूं ना असल दाई हक ﷺ ही पर हाथ साफ कर लिया जाए,*

*❀"_ वो तलवार ले कर चले, रास्ते में नईम बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से मुदभेड़ हो गई, उन्होंने कहा कि पहले अपने घर की खबर लो और बहन बहनोई से निमट लो, फिर किसी और तरफ जाना, फौरन पलटे और बहन के घर पहुंचे, वो क़ुरान पढ़ रही थी, आहट हुई तो खामोश हो गई और क़ुरान के औराक़ छुपा लिए,*

*❀"_ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा कि ये क्या पढ़ा जा रहा था, बहन ने टाला, कहने लगे कि मुझे मालूम हो चुका है कि तुम डोनो मुर्तद हो चुके हो, ये कह कर बहनोई पर टूट पड़े, बहन बीच बचाव के लिए आई तो उनको भी मारा, उनका जिस्म लहू लुहान हो गया, लेकिन डबडबाती आंखों के साथ अज़ीमत मंदाना अंदाज़ से कहने लगी, उमर! जो कुछ कर सकते हो, करो! लेकिन इस्लाम अब दिल से नहीं निकल सकता_,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -168,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–117_* ★
          *⚂ हज़रत उमर का इस्लाम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ एक खातून और वो भी बहन, एक पेकरे जज़्बात, जिस्म ज़ख़्मी, कपडे ख़ून आलूद, आँखों में आँसु और ज़ुबान पर ये अज़मियत मंदाना बोल! उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की क़ाहिराना ताक़त ने इस मज़लूमाना मंज़र के सामने हार मान ली, हीरे का जिगर फूल की पत्ती से कट गया,*

*"❀_ फरमाया- जो तुम पढ़ रही थीं, मुझे भी ला कर सुनाओ, वो गईं और अज्ज़ाए कुरान निकाल लाईं, जब ये अल्फाज़ सामने आए कि "आमनु बिल्लाही व रसूलुहू" तो बे अख्त्यार पुकार उठे, "अशहदु अल्लाइलाहा इल्लल्लाहु व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु वा रसूलहु," ईमान की दौलत से मालामाल हो कर तहरीके़ हक के मरकज़े खाना अरक़म की तरफ चले, वहाँ जा कर खुदा के रसूल ﷺ के हाथ पर बैत की_,"*

*"❀_ इस वाक़िए पर मुसलामानों ने मारे खुशी के ऐसा नारा बुलंद किया कि मक्का का सारा माहोल गूंज उठा, दाइयाने हक़ उठे और मक्का में फैल गए, उन्होंने महसूस किया कि उनकी कुव्वत बढ़ गई है, हजरत उमर रजियाल्लाहु अन्हु के ईमान लाते ही काबा में पहली मर्तबा एलानिया नमाज़ बा जमात की अदायगी का सिलसिला शुरू हुआ _,"*

*"❀_ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का के नोजवानों में अपने जोश और ज़हानत की वजह से इम्तियाज़ी मुक़ाम रखते थे, उनका किरदार इख़लास से भरपूर था, वो जाहिलियत के दौर में थे तो पूरे इखलास से तहरीके इस्लाम के दुश्मन थे, ना किसी ज़ाती मुफ़ाद की बिना पर, और जब हक़ीक़त खुल गई और फितरत सलीमा से पर्दे उठ गए तो पूरी शाने इखलास से तहरीके इस्लामी का झंडा ऊंचा कर दिया,*   

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -169,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–118_* ★
          *⚂ हज़रत उमर का इस्लाम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जेसी शख़्सियत सच्चाई के पैगाम पर लब्बेक कहे और फिर कोई नया मुददा न हो, ये कैसे मुमकिन था, उन्होंने ताहिया कर लिया कि एक बार फ़िज़ा को चेलेंज कर के रहेंगे, इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु (जो उस वक़्त लड़के थे मगर मामले को समझते थे) का बयान है कि मेरे वालिद उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जब ईमान लाये तो मालूम किया कि कुरेश का कौनसा आदमी बात को अच्छी तरह नशर कर सकता है, उन्हें जमील बिन मामर जमही का नाम बताया गया, वो अलल सुबह उसके यहां पहुंचे और मैं भी साथ गया कि देखूं क्या करते हैं _,"*

*"❀_ उससे जा कर कहने लगे कि ऐ जमील तुम्हें मालूम है कि मैं इस्लाम ला चुका हूं और मुहम्मद ﷺ के दीन में दाखिल हो गया हूं, वो अपनी चादर थामे हुए मस्जिदे हराम के दरवाज़े पर पहुंचा और वहां गला फाड़ कर एलान किया कि ऐ गिरोह कुरेश! सुनो ! उमर बिन खत्ताब साबी हो गया है, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु भी पीछे से आ पहुँचे और उन्होंने पुकार कर कहा, गलत कहता है मैं मुसलमान हुआ हूं और मैंने एलान किया है कि एक अल्लाह के सिवा कोई इला नहीं और मुहम्मद ﷺ उसके बंदे और उसके रसूल हैं,*

*❀"_ अहले कुरेश उन पर टूट पड़े, वो वालिद से खूब लड़े, और वालिद उनसे लड़े और इसी हाथपाई में सूरज सर पर आ गया, इसी असना में एक कुरैशी सरदार यमनी चादर ओढ़े हुए नमुदार हुआ, और उसने पूछा किस्सा क्या है ? उसने बात सुनी और कहा कि इस शख्स ने अपने लिए एक रास्ता पसंद कर लिया है, तो अब तुम क्या चाहते हो ? सोचो तो सही कि क्या बनू अदि बिन काब अपने आदमी को यूं तुम्हारे हाथों में दे सकते हैं, छोड़ दो इसे, ये थे आस बिन वाइल, इन्होंने हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को अपनी पनाह में ले लिया _," (सीरत इब्ने हिशाम- 1/370-71)*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -172,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–119_* ★
          *⚂ हज़रत उमर का इस्लाम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_इसके साथ ही हजरत उमर रजियाल्लाहु अन्हु के जोशे ईमानी ने अपने इज़हार का एक रास्ता और भी निकाला, उन्होन ईमान लाने की पहली ही रात को सोचा कि रसूले खुदा ﷺ की मुखालफत में इंतेहाई शिद्दत से कोन है? मालूम हुआ कि अबु जहल से बढ़ कर सख़्त कोई दूसरा नहीं,*

*❀"_ सुबह होते ही अबु जहल के यहां भी जा पहुंचे, दरवाज़ा खटखटाया अबु जहल निकला और खुश आमदीद कह कर मुद्दआ पूछा, उन्होंने बताया कि मैं ये इत्तेला देने आया हूं कि मै मुहम्मद ﷺ पर ईमान ले आया हूं और आपके पैगाम की सच्चाई को तस्लीम कर चुका हूं, अबु जहल ने भन्ना कर दरवाज़ा बंद कर लिया और कहा कि खुदा की मार तुझ और तेरी इत्तेला पर _,"*

*❀"_ तीसरी तरफ उन्होंने तहरीके इस्लामी का एक क़दम और आगे बढ़ा दिया, मार तो खाई मगर उसके जवाब में हरम में अलल ऐलान नमाज़ अदा करने का आगाज़ कर दिया, बाकौ़ल हजरत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रजियल्लाहु अन्हु:- हम हजरत उमर रजियाल्लाहु अन्हु के इस्लाम लाने से पहले इस पर का़दिर ना थे कि काबा में नमाज अदा कर सकें, उमर रजियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए तो कुरेश से लड़ कर काबा में नमाज़ अदा की और हमने भी उनके साथ नमाज़ अदा की _,"*

*❀"_ एक तरफ तशद्दुद का वो ज़ोर देखिये और दूसरी तरफ ये समां मुलाहिज़ा हो कि इस्लाम के दुश्मनों में से बेहतरीन उनसर (असल बुनियाद) को छाँट रहा था,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -173,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–120_* ★
          *⚂ हज़रत हमज़ा का इस्लाम ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ ऐसा ही वाक़िया हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु का है, मक्का का ये नोजवान ज़हानत, शुजा'त और असर का मालिक था, हुज़ूर ﷺ के चाचाओं में से जनाब अबू तालिब के बाद एक यही चाचा ऐसे थे, जिनको इख़्तिलाफ़ के बावजूद आप ﷺ से मुहब्बत थी, उम्र में भी सिर्फ दो तीन बरस ज्यादा थे और हम उम्री की वजह से बचपन में चाचा भतीजे हमजोली रहे थे_,"*

*"❀_ एक दिन का वाक़िया है कि कोहे सफ़ा के पास अबु जहल ने हुज़ूर ﷺ पर दस्त दराज़ी की और बहुत ही बद ज़ुबानी से काम लिया, हुज़ूर ﷺ ने सब्र से उस अज़ियत को बर्दाश्त किया और कोई जवाब ना दिया, इत्तेफ़ाक से अब्दुल्लाह बिन जदआन की लौंडी ने ये सारा माज़रा देखा, हजरत हमजा़ शिकार पर गए हुए थे, कमान उठाये हुए वापस आए तो लौंडी ने क़िस्सा सुनाया और कहा कि, "हाय अगर तुम खुद देख सकते कि तुम्हारे भतीजे पर क्या गुज़री? ये सुन कर हमजा़ रज़ियल्लाहु अन्हु की हमियत (गैरत) जाग उठी,*

*"❀_सीधे कुरेश की मजलिस में पहुँचे जहां अबू जहल बैठा था, हरम में जा कर अबु जहल के सर पर कमान मारी और कहा कि क्या तुमने मुहम्मद (ﷺ) को गाली दी थी, अगर ऐसा है तो मैं भी उसके दीन पर हूं और जो कुछ वो कहता है वोही कुछ मैं भी कहता हूं, अब अगर हिम्मत है तो मेरे मुक़ाबले पर आओ _,"*

*"❀_ अबू जहल की हिमायत में बनी मख़ज़ूम का एक शख्स मजलिस से उठा मगर अबू जहल ने उसे ये कह कर रोक दिया कि जाने दो, मैंने अबू अम्मारा के भतीजे को बहुत गंदी गालियां दी है, हजरत हमजा़ रजियल्लाहु अन्हु इस्लाम पर डट गए और कुरेश ने महसूस कर लिया कि रसूले खुदा ﷺ की क़ुव्वत बढ़ गई है,*   

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -173,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–121_* ★
       *⚂ _ बॉयकॉट और नजर बंदी _ ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ दुश्मनाने हक़ ये मंज़र देख रहे थे कि हक़ का सैलाब आगे ही आगे बढ़ रहा है और बड़ी बड़ी अहम शख्सियतों को अपनी लपेट में ले रहा है, इस पर उनकी बेचैनी और बढ़ जाती, मुहर्रम 7 नबवी में मक्का के तमाम क़बा'इल ने मिल कर एक मुआहीदा किया कि खानदान बनू हाशिम से बॉयकॉट किया जाए और कोई शख्स ना उनसे क़राबत रखे ना उनसे शादी ब्याह का ताल्लुक़ रखे, ना लेन दें करे, ना उनसे मिले जुले, और न खाने पीने का कोई सामान उन तक पहुंचने दे, यहां तक कि बनू हाशिम मुहम्मद (ﷺ) को हमारे सुपुर्द कर दें और उनको क़त्ल करने का हमें हक़ दे दें_,"*

*"❀_क़बा'इल दौर के लिहाज़ से ये फैसला इंतेहाई संगीन था और एक आखिरी कारवाई की नोइयत रखता था, बनू हाशिम बेबस हो कर शोअब अबी तालिब में पनाह लेने पर मजबूर हो गए, गोया पूरा खानदान तहरीके इस्लामी के दाई की वजह से एक तरह की क़ैद और नज़र बंदी में डाल दिया गया, इस नज़र बंदी का दौर तक़रीबन तीन बरस तक तवील हुआ, और इस दौर में जो अहवाल गुज़रे हैं उन्हें पढ़ कर पत्थर भी पिघलने लगता है।"*

*"❀_ दरख्तो के पत्ते चबाये जाते रहे, और सूखे चमड़े उबाल उबाल कर और आग पर भून भून कर खाये जाते रहे, हालत ये हो गई कि बनू हाशिम के मासूम बच्चे जब भूख के मारे बिलखते तो दूर दूर तक उनकी दर्द भरी आवाजें जाती थी, कुरेश उनकी आवाज़ों को सुनते तो मारे खुशी के झूम झूम जाते,*

*❀_"नाका बंदी इतनी शदीद थी कि एक मर्तबा हकीम बिन हुजा़म रज़ियल्लाहु अन्हु (हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के भतीजे) ने कुछ गेंहू अपने गुलाम के हाथ चोरी छिपे भेजा, रास्ते में अबू जहल ने देखा लिया और गेंहू छीनने के दरपे हुआ, इत्तेफ़ाक से अबुल बख्तरी भी आ गया, उसके अंदर किसी अच्छे इंसानी जज़्बे ने करवट ली, और उसने अबु जहल से कहा कि छोड़ो भी एक भतीजा है तो तुम उसे भी अब रोकते हो _,"*     

*❥❥_ इसी तरह हिशाम बिन अमरु चोरी छिपे कुछ गल्ला वगैरा भेज देते थे, यही हिशाम बिन अमरु इस ज़ालिमाना मुआहिदे के खिलाफ दाई अव्वल बने, पहले ये जुबेर बिन अबी उमय्या के पास गए, उससे बात की कि क्या तुम इस बात पर खुश हो कि तुम खाओ पियो, कपड़ा पहनो, शादी ब्याह करो और तुम्हारे मामूओं का ये हाल हो कि वो ना ख़रीद फ़रोख़्त कर सकें, न शादी ब्याह के ताल्लुक़ात क़ायम कर सकें, अगर मामला अबुल हकम इब्ने हिशाम के मामूओं और ननिहाल का होता और तुमने उसे ऐसे मुआहिदे की दावत दी होती तो वो कभी इसकी परवाह ना करता,*

*❀_"_ ये सुन कर जुबेर ने कहा- "मैं क्या करूं, मैं तो अकेला आदमी हूं, खुदा की कसम! अगर कोई दूसरा मेरे साथ होता तो मैं इस मुआहिदे की मनसुखी के लिए उठ खड़ा होता और उसे खत्म कर के दम लेता _," हिशाम बिन अमरू ने कहा कि दूसरा साथी तो तुम्हें मिल गया है, जुबेर ने पूछा कौन? हिशाम ने कहा- मै!*

*"❀__ फ़िर हिशाम बिन मुत'अम बिन अदि के पास पहुँचे और इसी तरह तहरीक की, उसने भी वही जवाब दिया, इसी तरह अबुल बख़्तरी और ज़म'आ बिन असवद तक पहुँच कर हिशाम ने बात की,*

*"❀__ गर्ज़ बॉयकॉट के मुआहिदे के खात्मे की तहरीक अंदर ही अंदर जब काम कर चुकी तो इन सब लोगों में एक जगह बैठ कर स्कीम ये बनायी कि सबके सामने हिशाम ही बात छेड़ेगा, चुनांचे हिशाम ने बैतुल्लाह का सात बार तवाफ किया, फिर लोगों की तरफ आया और कहा कि मक्का वालों! क्या ये ज़ेबा है कि हम खाने खाएं और लिबास पहनें और बनू हाशिम भूख से तड़प रहे हो, ना वो कुछ ख़रीद सकें और फिर उसने अपना अज़्म इन अल्फाज़ में पेश कर दिया:- खुदा की कसम! मैं उस वक्त तक नहीं बैठुंगा जब तक कि ताल्लुक़ात को तोड़ देने वाली इस ज़ालिमाना तहरीक को चाक ना कर लूं _,"*

*"❀__ अबू जहल भन्ना कर उठा और चीख कर बोला, झूठे हो तुम, खुदा की क़सम तुम उसे चाक नहीं कर सकते_," ज़म'आ बिन असवद ने अबू जहल को जवाब दिया - तुम खुदा की कसम! सबसे बढ़ कर झूठे हो, ये मुआहिदा मालूम है जिस तरीक़े से लिखा गया है हम उसे पसंद नहीं करते, अबुल बख्तरी भी बोल उठा, "_सच कहा ज़म'आ ने हमको पसंद नहीं जो कुछ इसमे लिखा गया है और ना हम इसको मानते हैं,*
 *"_ मुत'अम ने भी ताईद मजीद की, तुम दोनों ठीक कह रहे हो और गलत कहता है जो इसके अलावा कुछ कहता है, हिशाम ने भी यही बात कही, अक्सरियत को यूं मुखालिफ पा कर अबु जहल अपना सा मुंह ले कर रह गया, और मुहाहिदा चाक कर दिया गया, लोग जब उसे काबे की दीवार से उतारने लगे तो ये देख कर हैरान रह गए के उसे दीमक चाट चुकी थी, सिर्फ "बिस्मिका अल्लाहुम्मा" के अल्फाज़ सलामत थे_,"*
 *®- सीरत इब्ने हिशाम-2/29-31,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -175,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–122_* ★
                  *⚂ गम का साल ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ दौरे नज़रबंदी का ख़ात्मा हो गया और एक बार फिर ख़ुदा के नबी ﷺ अपने घराने सहित आज़ादी की फ़िज़ा में दाखिल हुए, लेकिन अब इससे भी सख़्ततर दौर का आगाज़ होता है, ये नबूवत का दसवां साल था, इस साल में अव्वलीन सान्हा ये पेश आया कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद (आप ﷺ के चाचा) अबु तालिब की वफ़ात हो गई, इस तरह वो एक ज़ाहिर सहारा भी छिन गया जो हुज़ूर ﷺ को अपने साया शफ़क़त में लिए हुए दुश्मन के लिए पूरी इस्तेक़ामत से आख़िर दम तक मुजा़हिम रहा था,*

*"❀__ इसी साल दूसरा सदमा हुज़ूर ﷺ को हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की रेहलत का उठाना पड़ा, हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा महज़ हुज़ूर ﷺ की बीवी ही ना थी, बल्की साबिकी़न अव्वलीन में थी, और उन्होंने दौरे रिसालत से पहले भी मुवासनत व गम गुसारी में कोई कसर न छोड़ी थी और अव्वलीन वही के नुजूल से ले कर आखिरी दम तक राहे हक़ में हुजूर ﷺ के साथ सच्ची रफाक़त का हक़ अदा कर के दिखला गईं,*

*"❀__ तहरीक हक की हिमायत में माल भी खर्च किया, क़दम क़दम पर मशवरे भी दिए और दिली जज़्बे से ता'वुन दिखाया, बजा तौर पर कहा गया है कि "वो हुजूर ﷺ के लिए वज़ीर थीं_,"*

*❀_"_ एक तरफ तो एक के बाद एक दो सदमे हुज़ूर ﷺ को सहने पड़े और दूसरी तरफ़ ज़ाहिरी सहारों के हट जाने की वजह से मुख़ालफ़त का तूफ़ान और ज़़यादा चढ़ाव पर आ गया, इन्ही गम अंगेज़ हालात की वजह से ये साल अंदूह या आमुल हुज़्न के नाम से मौसूम हुआ_,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -176,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–123_* ★
                   *⚂ ग़म का साल ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥-अब क़ुरेश इंतेहाई ज़लील हरकतों पर उतर आए, लोंडो को पीछे लगा दिया जाता जो शोर मचाते और हुज़ूर ﷺ नमाज़ पढ़ते तो वो तालियां पीटते, रास्ते चलते हुए हुज़ूर ﷺ पर गलाज़त फैंक दी जाती, दरवाज़े के सामने काँटे बिछाये जाते, खुल्लम खुल्ला गालियाँ दी जाती, फ़बतियाँ कसी जाती, आपके चेहरे मुबारक पर खाक़ फ़ैंकी जाती, बल्की बाज़ ख़बीस बद्तमीज़ी की इस आखिरी हद तक पहुँचते कि आपके रुखे अनवर पर थूक देते ,*

*❀_"_ एक बार अबू लहब की बीवी उम्मे जमील पत्थर लिए हुजूर ﷺ कि जुस्तजू में हरम तक इस इरादे से आई कि बस एक ही वार में काम तमाम कर दें, मगर हुजूर ﷺ अगरचे हरम में सामने ही मौजूद थे लेकिन खुदा ने उसकी निगाह को रसाई ना दी, और वो हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने अपने दिल का बुखार निकाल कर चली आई,*

*"❀__ इस तरह एक बार अबू जहल ने पत्थर से हुजूर ﷺ को हलाक कर देने का इरादा किया, और इसी इरादे में हुजूर ﷺ तक पहुंचा भी, मगर खुदा ने अबु जहल को खौफ व मरूबियत के ऐसे आलम में डाला कि वो कुछ कर ना सका,*

*"❀__ एक बार दुश्मनाने हक़ बैठे यही तज़किरा कर रहे थे कि इस शख्स (मुहम्मद ﷺ) के मामले में हमने जो कुछ बर्दाश्त किया है उसकी मिसाल नहीं मिलती, इसी दौरन हुजूर ﷺ तशरीफ ले आए, उन लोगों ने दरियाफ्त किया कि क्या तुम ऐसा कहते हो, हुजूर ﷺ ने पूरी अखलाकी़ जुर्रत से फरमाया - हां मैं हूं जो ये और ये कहता है! बस ये कहना था कि चारो तरफ से धावा बोल दिया गया,*

*❀_"_ अब्दुल्लाह बिन अमरु बिन आस का बयान है कि कुरेश की इससे बढ़ कर हुजूर ﷺ के खिलाफ मैंने कोई ज़बरदस्ती नहीं देखी, हमला आवर रुक गए तो खुदा के रसूल ﷺ ने फिर उसी फोक़ुल इंसानी जुर्रत से काम ले कर उनको इन अल्फाज़ से मुतनब्बा किया कि "मैं तुम्हारे सामने ये पैगाम लाया हूं कि तुम ज़िबह हो जाने वाले हो, यानी जुल्म की छूरी जो तुम मुझ पर तेज़ कर रहे हो, तारीख में काम करने वाला क़ानूने इलाही बिल आखिर इससे खुद तुमको ज़िबह कर देगा, तुम्हारा ये ज़ोर व इक़तिदार जो जुल्म के रुख पड़ गया है, ये यक्सर खत्म हो जाने वाला है,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -177,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–124_* ★
                   *⚂ ग़म का साल ⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_हज़रत उस्मान बिन अफ्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु एक वाक़िया बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ बैतुल्लाह का तवाफ़ कर रहे हैं, उक़बा बिन मुईत, अबू जहल और उमय्या बिन खल्फ़ हतीम में बेठे हुए थे, जब हुज़ूर ﷺ अनके सामने से गुज़रे तो वो कलमात बद जुबानो पर लाते, तीन बार ऐसा ही हुआ,*

*❀_"आखरी मर्तबा हुजूर ﷺ ने चेहरा मुतागय्यरा के साथ कहा कि बाखुदा तुम बगेर इसके बाज़ ना आओगे कि खुदा का अज़ाब जल्दी तुम पर टूट पड़े _,"*

*❀_"_ हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि हैबते हक़ थी कि ये सुन कर उनमे से कोई ना था जो काँप ना रहा हो, ये फ़रमा कर हुज़ूर ﷺ अपने घर को चले तो हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे लोग साथ हो लिए,*

*"❀__ इस मोक़े पर हुज़ूर ﷺ ने हमसे ख़िताब कर के फरमाया- तुम लोगों को बशारत हो, अल्लाह ताला यक़ीनन अपने दीन को ग़ालिब करेगा और अपने कलमे की तकमील करेगा, और अपने दीन की मदद करेगा, और ये लोग जिन्हे तुम देखते हो अल्लाह ता'ला बहुत जल्दी तुम्हारे हाथो से ज़िबह कराएगा _,"*

*"❀__ गोर कीजिये कि बा ज़ाहिर किस अंगेज़ महोल में ये बशारत दी जा रही थी और फिर किस शान से ये बहुत ही जल्दी पूरी हुई... गोया तहरीके़ हक ने हथेली पर सरसो जमा दी_,"*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -177,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–125_* ★
         *⚂_ ताइफ में दावत हक _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ एक रोज रसूल अकरम ﷺ अलल सुबेह घर से निकले और खुदा का पैगाम सुनाने के लिए मक्का के मुख्तलिफ कूचों में घूमें फिरे लेकिन वो एक दिन पूरा ऐसा गुज़रा कि आपको एक आदमी भी ऐसा ना मिला जो बात को सुनता_,"*

*❀"_ नई स्कीम ये अख्त्यार की गई थी कि आप ﷺ को जब आते देखा जाए तो लोगो को चाहिए कि इधर उधर छुप जाएं, बात सुनने से बात फैलती है और मुखाल्फत करने से और बहस छेड़ने से वो और ज़्यादा उभरती है, स्कीम कामयाब रही, जो लोग मिले भी उन्होंने इस्तेहज़ा और गुंडा गर्दी का मुज़ाहिरा किया,*

*❀"_ उस रोज़ आप ﷺ पूरा दिन गुज़ार कर जब पलटे तो उदासी का एक भारी बोझ आपके सीने पर लदा हुआ था, सख़्त थकन थी... ऐसी घुटन जो किसी की खैर ख्वाही करने वाले को उस वक़्त होती है कि जिसकी वो खैर ख्वाही कर रहा है, वोही खुद मोहसिन कुशी पर उतर आए,*

*❀"_ शायद इसी दिन से आपके दिल में ये रुझान पैदा हो गया था कि अब मक्का से बाहर निकल कर काम करना चाहिए, ज़ैद बिन हारिसा को साथ ले कर सरवरे आलम ﷺ मक्का से पैदल चले और रास्ते में जो क़बाइल आबाद थे उन सबके सामने खुदा का पैगाम पेश किया,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -178,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                ★ *क़िस्त–126_* ★
        *⚂ _ताइफ में दावत हक _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ ताइफ एक बड़ा सर सब्ज़ इलाक़ा था, पानी, साया, खैतियां, बागात निस्बतन ठंडा मुक़ाम, लोग बड़े ख़ुशहाल थे और दुनिया परस्ती में बुरी तरह मगन, इंसान एक मर्तबा मा'शी ख़ुशहाली पा ले तो फिर वो खुदा फरामोशी और अखलाकी़ पस्ती में दूर तक बढ़ता चला जाता है, यही हाल अहले ताइफ का था, मक्का वालों में तो फिर भी मज़हबी सरबराही और मुल्की क़यादत की ज़िम्मेदारियों की वजह से किसी क़दर अखलाकी़ रख रखाव हो सकता था लेकिन ताइफ के लोग पूरी तरह रुखे मिज़ाज के थे, और फिर सूद खोरी ने उनके अच्छे इंसानी एहसासात को बिलकुल मालिया मेट कर दिया था,*

*"❀_ हुजूर ﷺ गोया मक्का से बदतर माहोल में क़दम रख रहे थे, मोहसिने इंसानियत ﷺ ताइफ में पहुँचे तो पहले सक़ीफ़ के सरदारों से मुलाक़ात की, ये तीन भाई थे, अब्द यालैल, मसूद और हबीब, इनमे से एक के घर में कुरेश (बनी जमाह) की एक औरत थी, इस वजह से एक तरह की लिहाज़ दारी की तवक्को हो सकती थी,*

*"❀_ हुजूर ﷺ उनके पास जा बेठे, उनको बा तरीक़ अहसन अल्लाह ता'ला की तरफ बुलाया, और अपनी दावत पर गुफ्तगू की और उनसे अक़ामत हक़ के काम में हिमायत तलब की, अब जवाब सुनिए जो तीनों की तरफ से मिलता है :-*
*"_एक बोला - अगर वाक़ई खुदा ने ही तुमको भेजा है तो बस फिर वो काबा का गिलाफ नुचवाना चाहता है_,"*

*"❀_दूसरा बोला - क्या खुदा को तुम्हारे अलावा रिसालत के लिए कोई और मुनासिब आदमी न मिल सका_,"*
*"_ तीसरा बोला- खुदा की कसम! मैं तुझसे बात भी नहीं करूंगा, क्योंकि अगर तू अपने कहने के मुताबिक वाक़ई अल्लाह का रसूल है, तो फिर तुझ जैसे आदमी को जवाब देना सख्त खिलाफे अदब है, और अगर तुमने खुदा पर इफ्तिरा (झूठा इल्जाम) बांधा है तो तू इस का़बिल नहीं हो सकता कि तुमसे बात की जाए _,"*      

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -179,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–127_* ★
        *⚂ _ताइफ में दावत हक _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥ज़हर में बुझे हुए तीर थे जो इंसानियत के मोहसिन के सीने में पे दर पे पेवस्त होते चले गए, आपने तहम्मुल से अपने दिल पर सारे ज़ख्म सह लिए और उनके सामने आखिरी बात ये रखी कि तुम अपनी ये बात अपने ही तक रखो और कम से कम आवाम को उनसे मुतास्सिर ना करो, मगर उन्‍होंने अपने यहां के घटिया और बाजा़री लड़को और नौकरों और गुलामों को बुलाकर आपके पीछे लगा दिया कि जाओ और उस शख्स को बस्ती से निकाल बाहर करो,*

*"❀__ एक झुंड का झुंड आगे पीछे हो लिया, ये लोग गालियां देते, शोर मचाते और पत्थर मारते थे, हुजूर ﷺ जब निढ़ाल हो जाते तो बैठ जाते, लेकिन ताइफ के गुंडे आपको बाजू से पकड़ कर उठा देते, और फिर पत्थर टखनो पर मारते और तालियां बजा बजा कर हंसते, खून बेतहशा बह रहा था और जूतियां मुबारक अंदर और बाहर से खून से भर गई,*

*❀_"_ इस नादिर तमाशे को देखने के लिए बड़ा हुजूम इकट्ठा हो गया, गुंडो का झुंड इस तरीक़े से आपको शहर से निकाल कर एक बाग के आहाते तक ले आया, जो रबीआ के बेटों उक़बा और शीबा का था, आपने बिलकुल बेदम हो कर अंगूर की एक बेल से टेक लगा ली, बाग के मालिक आपको देख रहे थे और जो कुछ आप पर बीती उसका भी कुछ मुशहिदा कर चुके थे,*

*❀_"_ यही वो मौक़ा था जब कि दोगाना पढ़ने के बाद आपके होंठों से ये दर्द भरी दुआ निकली :-*
*"_इलाही अपनी कुव्वत की कमी अपनी बेसरो सामानी और लोगों के मुक़ाबले में अपनी बेबसी की फरियाद तुझी से करता हूँ, तू सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाला है, दर्दमंदह बेकसो का परवर्दीगार तू ही है, तू ही मेरा मालिक है, आखिर तू मुझे किसके हवाले करने वाला है, क्या उस हरीफ बेगाना के जो मुझसे तुर्शुरुई रवा रखता है या ऐसे दुश्मन के जो मेरे मामले पर काबू रखता है, लेकिन अगर मुझ पर तेरा गज़ब नहीं है तो फिर मुझे कुछ परवाह नहीं, बस तेरी आफियत मेरे लिए ज़्यादा वुस'अत रखती है, मैं इस बात के मुक़ाबले में तेरा गज़ब मुझ पर पड़े या तेरा अजा़ब मुझ पर वारिद हो तेरे ही नूर व जमाल की पनाह तलब करता हूं, जिससे सारी तारिकियां रोशन हो जाती है' और जिसके ज़रिए दीन व दुनिया के जुमला मामलात संवर जाते हैं, मुझे तो तेरी रजा़मंदी और खुशनूदी की तलब है, बजुज़ तेरे कहीं से कोई कु़व्वत व ताक़त नहीं मिल सकती_, "*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -180,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵

                  ★ *क़िस्त–128_* ★
        *⚂ _ताइफ में दावत हक _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ इतने में बाग के मालिक भी आ पहुंचे, उनके दिलों में हमदर्दी के जज़्बात उमड़ आए थे, उन्होंने अपने नसरानी गुलाम को पुकारा, उसका नाम अददास था, फिर एक तश्तरी में अंगूर का खोशा रखवा कर भिजवाया, अददास अंगूर पेश कर के आन हजरत ﷺ के सामने बैठ गया, आपने हाथ अंगूर की तरफ बढ़ाते ही "बिस्मिल्लाह" कहा, अददास कहने लगा - खुदा की क़सम! इस तरह की बात इस शहर के लोग तो कभी नहीं कहते _,"*

*❀_"_ आन हजरत ﷺ ने पूछा कि तुम किस शहर के आदमी हो और तुम्हारा दीन क्या है? उसने बताया कि मैं नसरानी हूं और नेनवा का बाशिंदा हूं, आपने फरमाया - तुम तो यूनुस बिन मति जेसे मर्दे सालेह की बस्ती के आदमी हो_, अददास ने हैरत से पूछा- आपको केसे मालूम कि यूनुस बिन मति कौन है? आपने कहा- "वो मेरा भाई है, वो भी नबी था और मैं भी नबी हूं_,"*

*"❀__ ये सुनते ही अददास आपके हाथ पांव को चूमने लगा, रबीआ के बेटों में से एक ने ये माजरा देखा तो उसने अददास के वापस जाने पर मलामत की कि यह क्या हरकत कर रहे थे, तुमने अपना दीन खराब कर लिया है, अददास ने गहरे तास्‍सुर के साथ जवाब दिया - मेरे आका़! उससे बढ़ कर ज़मीन में कोई चीज़ नहीं, उस शख्स ने मुझे एक ऐसी बात बताई है जिसे नबी के सिवा कोई और नहीं जान सकता_,"*

*❀_"_ दर हक़ीक़त अब जनाब अबू तालिब की वफ़ात के बाद मक्का में आप ज़ाहिरी लिहाज़ से बिल्कुल बेसहारा थे और दुश्मन शेर हो गए थे, आप ﷺ ने ख़याल फरमाया कि ता'इफ में से शायद कुछ अल्लाह के बन्दे उठ खड़े हों, वहां ये सूरत पेश आई, वहां से फिर आप नखला में क़याम पजी़र रहे, वहां से वापस आए और गारे हिरा में तशरीफ फरमा हुए, यहां से मुत'अम बिन अदि को पैगाम भिजवाया कि क्या तुम मुझे अपनी हिमायत में ले सकते हो?*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -180,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–129_* ★
        *⚂ _ताइफ में दावत हक _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ अरब के क़ौमी किरदार की एक रिवायत ये थी कि हिमायत तलब करने वाले को हिमायत दी जाती थी, चाहे वो दुश्मन ही क्यों न हो, मुत'अम ने पैगाम कुबूल कर लिया, बेटों को हुक्म दिया कि हथियार लगा कर हरम में चलो, खुद रसूलल्लाह ﷺ को साथ लाया, और मक्का में आ कर ऊंट पर से ऐलान किया कि मैंने मुहम्मद (ﷺ) को पनाह दी है, मुत'अम के बेटे आपको तलवारों के साए में हरम में लाए, फिर घर में पहुंचाया,*

*"❀_ताइफ में हुजूर ﷺ पर जो कुछ गुज़री उसे मुश्किल ही से रिवायात के अल्फाज़ हम तक मुंतकिल कर सकते हैं, एक बार हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने दरियाफ्त किया कि या रसूलुल्लाह ﷺ! क्या आप पर उहद के दिन से भी सख़्त दिन कोई गुज़रा है?*
*_ फरमाया तेरी क़ौम की तरफ से और तो जो तकलीफे पहुंची सो पहुंची, मगर सबसे बढ़ कर सख्त दिन वो था जब मैंने ता'इफ में अब्दया लैल के बेटे के सामने दावत रखी और उसने उसे रद्द कर दिया और इस दर्जा सदमा हुआ कि क़रने अशालिब के मुक़ाम तक जा कर बा मुश्किल तबीयत संभली _," (अल मुवाहिब -1/56)"*

*"❀__ ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु जिन्होंने आप ﷺ के निढा़ल और बेहोश हो जाने पर ताइफ से कंधो पर आपको उठा कर शहर के बाहर पहुंचाया, गमज़दा हो कर अर्ज़ करने लगे कि आप उन लोगों के लिए खुदा से बद दुआ करें, फरमाया - मैं उनके लिए क्यों बद दुआ करूं, अगर ये लोग खुदा पर ईमान नहीं लाते तो उम्मीद है कि इनकी नस्लें ज़रूर खुदा ए वाहिद की परस्तार होंगी _,"*

*❀_"_ इसी सफर में जिब्रील अलैहिस्सलाम आते हैं और इत्तेला देते हैं कि पहाड़ों का इंचार्ज फरिश्ता आपकी खिदमत में हाजिर हैं, अगर आप इशारा करें तो वो इन पहाड़ों को आपस में मिला दे जिनके दरमियान मक्का और ता'इफ वाक़े हैं, और दोनो शहरो को पीस कर रख दे_,"*

*❀_"_ इसी पास अंगेज फिज़ा में जिन्नो की जमात आ कर क़ुरान सुनती है और हुजूर ﷺ के हाथ पर ईमान लाती है, इसी तरह से खुदा ने ये हक़ीक़त वाज़े की कि अगर तमाम इंसान दावत हक़ को रद्द कर दें तो हमारी मखलूका़त ऐसी मौजूद है कि आपका साथ देने को तैयार है'*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -181,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–130_* ★
            *⚂ __सफर ए मैराज _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ ताइफ के तजुर्बे के बाद गोया हुजूर ﷺ इस आखिरी इम्तिहान से गुज़र गए, क़ानून इलाही के तहत नागुजे़र था कि अब नए दौर के दरवाज़े खुल जाएंगे और तुलु ए सहर की बशारत दी जाए, यही बशारत देने के लिए हुजूर ﷺ को मेराज से सरफराज़ किया गया _,"*

*"❀_ मैराज की हक़ीक़त ये है कि हुजूर ﷺ को कुर्बे इलाही का इंतेहाई बुलंद मुका़म नसीब किया गया, पिछले अम्बिया अलैहिस्सलाम को भी मौक़ा बा मौक़ा शर्फ दिया जाता रहा था कि वो गैबी हक़ाइक़ का मुशाहिदा करें, और कुर्बे खुदावंदी मे पहुंच कर इनायाते खास से खुश किस्मत हों, कुरान में जहां एक तरफ इब्राहिम अलैहिस्सलाम के बारे में बताया गया है कि उनको मलाकूतुस समावात वल अर्द का मुशहिदा कराया गया, वहीं मूसा अलैहिस्सलाम को तूर पर बुलाया गया और वहा खुदावंद ताला ने एक नूर अफगन दरख्त की ओट से कलाम से सरफराज़ फरमाया, और फिर दूसरे मोके़ पर ऐसे ही लम्हा ए कुर्ब में शरीयत के अहकाम तफवीज़ (सुपुर्द) किए,*

*"❀_ गोया किसी ना किसी शक्ल में मैराज जलीलुल क़द्र अंबिया अलैहिस्सलाम को भी हासिल होती रही थी, हुज़ूर ﷺ की मैराज अपने अंदर शाने कमाल रखती है, वाक़िया ताइफ और हिजरत के दरमियान इस वाक़िए से ज़्यादा अहम और मुमताज़ वाक़िया कोई दूसरा पेश नहीं आया_,"*

*"❀_ इसकी जब इत्तेला आप ﷺ ने दी तो मक्का भर में एक हंगामा बरपा हो गया, आपने मजमा आम में अपने मुशाहिदात बयान किए, बैतुल मुक़द्दस का पूरा नक़्शा खींच दिया, रास्ते की ऐसी क़तई अलामात बताईं कि जिनकी बाद मे तसदीक़ हो गई, उस लम्हा ए कुर्ब में जो खास वही की गई वही सूरह बनी इसराईल के उनवान से हमारे सामने हैं, इस सूरह का आगाज़ ही वाक़िया इसरा के तज़किरा से होता है और फिर पूरी सूरह में मेराज की रूह रची बसी है,*       

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -182,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–131_* ★
            *⚂ _ हिजरत- का -हुक्म _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ताइफ क़रीब था और दूर हो गया, यसरिब (मदीना मुनव्वरा) दूर था मगर क़रीब आ गया:-*

*"❀_ यसरिब उस रोज़ बिल्कुल क़रीब आ गया जिस रोज़ (नबुवत के 11 वे साल) 6 इंकबाबियों के एक जत्थे ने हुजूर ﷺ से पैमानो वफा बांधा, फिर दूसरे साल 112 अफराद ने तहरीके़ इस्लामी की अलंबरदारी के लिए बा-का़यदा गुफ्त व शुनीद कर के पहले बैते उकबा की गिरह बांधी और इस्लामी तोहीद और अखलाकी़ हुदूद के तहफ्फुज़ की ज़िम्मेदारी अपने सर ली,*

*"❀_ फिर हज के मौक़े पर एक बड़ी जमात हाज़िर हुई और उसने रात की तारीकी़ में एक खुफिया मजलिस के अंदर दूसरी बैते उक़बा मजबूत की जो पूरी तरह सियासी रूह से ममलू थी, इसी में हुजूर ﷺ का हिजरत कर के मदीना मुनव्वरा जाना तय हुआ और इस वालेहाना पेशकश के साथ तय हुआ कि अंसारे मदीना आपके लिए दुनिया जहां से लड़ाई मोल लेने को तैयार है _,"*

*❀"_ शायद यही दौर.. सफर ताइफ से हिजरत तक है जिसमें सूरह युसूफ नाजि़ल हुई थी और जिसने हदीस दीगरां के परदे में आलंबरदार हक़ को बशारत दी और उसके मुखालिफीन को उनके घटिया और ज़ालिमाना तर्ज़े अमल से आगाह कर के उनका अंजाम उनके सामने रख दिया,*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -183,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–132_* ★
            *⚂ _ हिजरत- का -हुक्म _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ आखिरी बैत ए उक़बा (यानी ज़िल्हिज्जा 13 बाद बैसत) के बाद रसूलुल्लाह ﷺ ने मक्का के मुसलमानों को मदीना मुनव्वरा की तरफ़ हिजरत कर जाने का हुक्म दे दिया और फरमाया कि अल्लाह अज़ व जल ने अब तुम्हारे लिए भाई पैदा कर दिए हैं और एक ऐसा शहर फराहम कर दिया है जहां तुम अमन से रह सकते हो _," (इब्ने हिशाम- बा हवाला इब्ने इश्हाक़)*

*"❀_ ये हुक्म मिलते ही सबसे पहले हज़रत आमिर बिन रबिआ रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी बीवी लैला बिन्ते अबी हसमा के साथ निकले, फ़िर हज़रत अम्मार बिन यासिर और हज़रत बिलाल और हज़रत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हुम ने हिजरत की, फ़िर हज़रत उस्मान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी अहलिया रुक़ैय्या बिन्ते रसूलुल्लाह ﷺ के साथ रवाना हुए, फिर मुहाजरत का एक सिलसिला चल पड़ा और लोग पे दर पे इस नए दारुल हिजरत की तरफ जाते गए, पूरे कुनबे अपने घर बार छोड़ कर निकल खड़े हुए।*

*"❀_ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को मदीना मुनव्वरा भेजने के बावजूद आन हज़रत ﷺ ने अपने मुक़ामे दावत को नहीं छोड़ा, आप ﷺ हुक्मे इलाही के मुंतज़िर रहे, अब कोई मुसलमान भी मक्का में नहीं रहा था, सिवाय ऐसे लोगों के जिन्हे कुरेश ने रोक रखा था या इब्तिला में डाल रखा था, अलबत्ता खास रफीक़ में अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु बाक़ी थे,*

*❀"_ इन हालात में कुरेश ने अंदाज़ा कर लिया कि अब जबकि मुसलमानों को एक ठिकाना मिल गया है और एक एक कर के सब लोग जा चुके हैं, क़रीब है कि मुहम्मद ﷺ भी हाथ से निकल जाएं और फिर हमारा दायरा ए असर से बाहर रह कर कुव्वत पकड़े और सारा पिछला हिसाब चुक जाए, ये लोग मक्का के पब्लिक हॉल दारुल नदवा में जमा हुए और सोचने लग गए कि अब मुहम्मद ﷺ के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए,*   

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -186,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–133_* ★
            *⚂ _ हिजरत- का -हुक्म _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_ मुख्तलिफ राय के बाद अबु जहल ने तजवीज़ किया कि हर क़बीले से एक मज़बूत और मोअज्जिज़ नौजवान लिया जाए और सबको तलवार दी जाए, फिर यकबार्गी उस पर हमला कर के काम तमाम कर दें, बस हमें इस तरह से छुट्टी मिल सकती है, इस तरह से मुहम्मद ﷺ का खून तमाम क़बाइल पर तक़सीम हो जाएगा और बनू अब्दे मुनाफ इतने सारे क़बाइल से बदला लेने की जुर्रत ना कर पाएंगे, बस इस राय पर इत्तेफ़ाक हो गया और ये साज़िसी मीटिंग बरख़ास्त हो गई,*

*❀"_इसी मीटिंग की कारवाई पर क़ुरान ने इन अलफ़ाज़ में तब्सिरा किया:- "और याद करो उस घड़ी को जब कुफ़्फ़ार तदबीरे कर रहे थे कि आपको क़ैद में डाल दें या क़त्ल कर दें या बाहर निकाल दें, वो अपनी सी तदबीर लड़ाते हैं और अल्लाह जवाबन तदबीर करता है और अल्लाह तदबीर करने में सबसे बड़ कर है _," (अल अनफाल- 30)*

*❀"_ आने वाली पुर इसरार रात सामने थी, हुज़ूर ﷺ अपने महबूब तरीन रफ़ीक़ हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के घर तशरीफ़ ले गए, जा कर राज़दाराना तरीक़े से इत्तेला दी कि हिजरत की इजाज़त आ गई है, जनाब सिद्दीक़ ने हमराही की दरख़्वास्त की जो पहले से क़ुबूल थी, इस सआदत के हुसूल पर फ़र्ते मसर्रत से हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की आँखें डबडबा गई,*

*❀"_ उन्होंने हिजरत के लिए दो ऊंटनियां पहले से खूब अच्छी तरह फरबा कर रखी थीं पेशकश की कि हुजूर ﷺ दोनो में से जिसे पसंद फ़रमायें हदिया है, मगर हुजूर ﷺ ने बा इसरार एक ऊंटनी (जिसका नाम जुद'आ था) की़मातन ली,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -187,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵                          
                  ★ *क़िस्त–134_* ★
            *⚂ _ हिजरत- का -हुक्म _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_"रात हुई तो हुज़ूर ﷺ बा हुक्मे इलाही अपने मकान पर न सोये और दूसरे महबूब तरीन रफ़ीक़ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने बिस्तर पर बिला खौफ़ सो जाने की हिदायत फ़रमाई, साथ ही लोगों की अमानते उनके सुपुर्द की कि सुबेह को ये मालिकों को अदा कर दी जाएं, इस अख़लाक़ की कितनी ही मिसालें तारीख के पन्नो में मौजूद है, एक फ़रीक़ तो क़त्ल की साज़िश कर रहा है और दूसरा फ़रीक़ अपने क़तिलो को अमानतों की अदायगी करने की फ़िक्र में है _,"*

*"❀__ फ़िर हुज़ूर ﷺ हज़रत सिद्दीक़ अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु के घर पहुँचे, जनाब अस्मा बिनते अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हा ने जल्दी से अपना कमर बंद फ़ाडा़ और एक टुकड़े में खाने की पोटलियां बाँधी और दूसरे टुकड़े से मश्किज़ा का मुंन बांधा, दो मुसाफिराने हक़ का ये का़फिला रात की तारीकी में गामज़न हो गया,*

*❀_"_ आज दुनिया का सबसे बड़ा मोहसिन व खैर ख्वाह (ﷺ) बगेर किसी कुसूर के बेघर हो रहा था! मोहसिन ए इंसानियत ﷺ का कलेजा कटा होगा, आंखें डबडबाई होंगी, जज़बात उमड़े होंगे, मगर खुदा की रज़ा और बंदगी का मिशन चुंकी इस क़ुर्बानी का भी तालिब हुआ इसलिए इंसाने कामिल ने ये क़ुर्बानी भी दे दी, आज मक्का के पैकर से उसकी रूह निकल गई थी, आज इस चमन के फूलों से ख़ुशबू उड़ी जा रही थी, आज ये चश्मा सुखा रहा था, आज उसके अंदर से बा उसूल और साहिबे किरदार हस्तियों का आखिरी क़ाफ़िला रवाना हो रहा था,*

*❀_"_ दावते हक़ का पोधा मक्का की सरज़मीन से उगा, लेकिन उसके फलों से दामन भरना मक्का वालों के नसीब में ना था, फल मदीना वालों के हिस्से में आए, सारी दुनिया के हिस्से में आए? मक्का वाले आज धकेल कर पीछे हटाए जा रहे थे, और मदीना वालों के लिए अगली सफ में जगह बनाई जा रही थी, जो अपने आपको ऊंचा रखते थे उन्हें पस्ती में धकेलने का फैसला हो गया और जिन्को मुक़ाबलतन निचले दर्जे पर रखा जाता था वोही लोग उठा कर ऊपर लाये जा रहे थे ,*

*❀_"_ हुजूर ﷺ ने आखिरी निगाह डालते हुए मक्का से ये खिताब फरमाया:- खुदा की क़सम, तू अल्लाह की सबसे खूबसूरत ज़मीन है, और अल्लाह की निगाह में सबसे बढ़कर महबूब, अगर यहां से मुझे निकाला ना जाता तो मै कभी ना निकलता_,"*
 *"_ तिर्मिज़ी और मुसनद की रिवायत है कि मक्का से निकलते वक़्त हुज़ूर ﷺ हज़ुरा के मुक़ाम पर खड़े हुए बैतुल्लाह की तरफ रुख किया और बड़े दर्द के साथ फरमाया_," (सीरत सरवरे आलम - 2/724)*     
*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -188,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
                  ★ *क़िस्त–135_* ★
            *⚂ _ हिजरत- का -हुक्म _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥- चंद लम्हों बाद हुजूर ﷺ गारे सोर में थे, रास्ता खुद हुजूर ﷺ ने तजवीज़ फरमाया था और अब्दुल्लाह बिन अरीक़त को उजरत दे कर गाइड़ मुकर्रर किया, तीन रोज़ आप गार में रहे, अब्दुल्लाह बिन अबू बकर रजियाल्लाहु अन्हु रात को मक्का की सारी खबरें पहुंचा आते, आमिर बिन फहीरा (हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के गुलाम) बकरियों का रेवड़ ले कर उसी तरफ निकलते और अंधेरा हो जाने पर गार के सामने जा पहुंचते ताकी दोनो मुहाजिर ज़रूरत के मुताबिक़ दूध ले लें _,"*

*❀"_ उधर कुरेश ने हुजूर ﷺ के मकान का मुहासरा रात भर रखा और पूरे शहर की नाकाबंदी का कड़ा इंतजाम भी किया, मगर जब अचानक उनको ये मालूम हुआ कि जिसकी तलाश थी वो तो निकल गया है, तो उनके पांव तले ज़मीन निकल गई, हुज़ूर ﷺ के बिस्तर पर हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को पा कर बहुत सिटपिटाए और उन पर गुस्सा निकाल कर चले गए,*

*❀"_ तलाश के लिए चारो तरफ आदमी दौड़ाएं, कुछ पता न चला, एक गिरोह दौड़ धूप करते हुए गारे सोर के दरवाज़े पर आ पाहुँचा, उनके क़दम अंदर दिखायी देने लगे, कितना नाज़ुक तारीखी लम्हा था, हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु को तशवीश हुई कि अगर ये लोग गार में दाखिल हो गए तो गोया पूरी तहरीक़ खतरे में पड़ जाएगी, ऐसे लम्हात में सही इंसानी फितरत के अंदर जैसा अहसास पैदा होना चाहिए, ठीक ऐसा ही एहसास जनाब सिद्दीक का था,*

*❀"_ मगर चुंकी हुजूर ﷺ के साथ हक़ ताला के कुछ वादे थे और उसकी तरफ से हिफाज़त व नुसरत की यक़ीन दहानी थी इसलिए पर्दा ए गैब के पीछे तक देखने वाला दिल जानता था कि खुदा हमें सही सलामत रखेगा, फिर भी ठीक उसी तरह वही सकीनत नाजि़ल हुई जेसे मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुई थी, इरशाद हुआ - फिक्र न करो अल्लाह हमारे साथ है _," (तौबा- 40)*

*❀"_ चुनांचे आने वाला गिरोह गार के दहाने ही से वापस लौट गया, तीन रोज़ गार में रहने के बाद हुज़ूर ﷺ जनाब सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ अपने रहबर और आमिर बिन फ़हीरा को ले कर निकले, ताक़्कुब से बचने के लिए आम रास्ता छोड़ कर साहिल का लंबा रास्ता अख्त्यार किया गया,*    

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -188,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵                                    ★ *क़िस्त–136_* ★
            *⚂ _ हिजरत- का -हुक्म _⚂*   
     ─━━━════●■●════━━━─
*❥❥_उधर मक्का में ऐलान किया गया कि दोनो मुहाजिरों में से किसी को भी कोई शख्स क़त्ल कर दे या गिरफ़्तार कर लाए उसके लिए सो ऊंट का इनाम है, लोग बराबर तलाश में थे,*

*❀_"सुराका़ बिन मालिक बिन जैशम को खबर मिली कि ऐसे ऐसे दो शख्स साहिल के रास्ते पर देखे गए हैं, उसने नेजा़ लिया और घोड़े पर सवार हो कर रवाना हो गया, क़रीब आ कर सुराका़ जब तेज़ी से झपटा तो उसके घोड़े के अगले पाँव ज़मीन में धंस गए, सुराक़ा ने दो तीन बार की नाकाम कोशिश के बाद माफ़ी चाही और दरख़्वास्त की एक तहरीरे अमान लिख दीजिए, गोया उसने ये भी मेहसूस कर लिया था कि इन हस्तियों के तुफैल में एक नया दौर नमुदार होने वाला है, अमान लिख दी गई और फतेह मक्का के दिन काम आई,*

*❀"_ इसी मौक़े पर हुज़ूर ﷺ ने सुराक़ा को एक बशारत भी दी कि, ऐ सुराक़ा उस वक़्त तेरी क्या शान होगी जब तू किसरा के कंगन पहनेगा_,"*
*"_ ये पेशगोई हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में फ़तेह ईरान के मोक़े पर पूरी हो गई,*

*"❀_ इसी सफर में हज़रत ज़ुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु कारवांने तिजारत के साथ शाम से वापस आते हुए मिले, उन्होंने हुज़ूर ﷺ और हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु दोनो की खिदमत में सफ़ेद लिबास हदिया किया,*
*"_इसी सफर में बुरेदा असलमी भी सत्तर हमराहियों के साथ सामने आए, ये भी दर हक़ीक़त इनाम के ललच में निकले थे, जब सामना हुआ तो बुरेदा के दिल की काया पलट गई, तारीफ गुफ्तगू ही में जब हुजूर ﷺ ने एक कलमा बशारत "तेरा हिस्सा निकल आया" फरमाया तो बुरेदा सत्तर साथियो के साथ ईमान ले आए,*

*❀"_ फ़िर बुरेदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने ये ख्वाहिश की कि हुज़ूर ﷺ मदीना में दाखिले के वक्त़ आपके आगे आगे झंडा होना चाहिए, हुजूर ﷺ ने अपना अमामा नेज़े पर बांध कर बुरेदा को दिया और उस झंडे को लहराते हुए ये क़ाफ़िला दारुल हिजरत में दाखिल हुआ_,"*     

*📓 मोहसिन ए इंसानियत ﷺ -188,* ┵━━━━━━❀━━━━━━━━━━━━┵
💕 *ʀєαd,ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd*💕 
                    ✍
         *❥ Haqq Ka Daayi ❥*
http://www.haqqkadaayi.com
http://haqqkadaayi.blogspot.com
*👆🏻हमारी अगली पिछली सभी पोस्ट के लिए साइट पर जाएं ,*  
https://chat.whatsapp.com/DeZ80Gay7LWExbH7ceZOBF
*👆🏻वाट्स एप कॉम्यूनिटी ग्रुप के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए _,*    
https://chat.whatsapp.com/GIW20ZfX7V91OOyBuK90FW
*👆🏻वाट्स एप पर सिर्फ हिंदी ग्रुप के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए _,*   
https://t.me/haqqKaDaayi
*👆🏻 टेलीग्राम पर हमसे जुड़िए_,*
https://www.youtube.com/channel/UChdcsCkqrolEP5Fe8yWPFQg
*👆🏻 यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए ,*

Post a Comment

 
Top