╭ *🕌﷽🕌* ╮
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*▓ र म ज़ा न - म सा इ ल ▓*
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*❂ रोज़े की नियत ❂*
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*❂_ बेहतर यह है कि रमजान मुबारक की नियत सुबह सादिक से पहले कर ली जाए ,*
*❂_अगर सुबह सादिक से पहले रोजा रखने का इरादा नहीं था सुबह सादिक के बाद इरादा हुआ कि रोजा रख ही लेना चाहिए तो अगर सुबह सादिक के बाद कुछ खाया पिया नहीं तो नियत सादिक के बाद करना सही है ।*
*❂_अगर कुछ खाया पिया नहीं हो तो दोपहर से एक घंटा पहले तक रमजान शरीफ के रोजे की नीयत कर सकते हैं ।रमजान शरीफ के रोजे में बस इतनी नियत कर लेना काफी है कि आज मेरा रोजा है या रात को नियत करना कि सुबह रोजा रखना है ।
*❂_रोजे के लिए सेहरी खाना बा बरकत है इससे दिनभर कु़व्वत रहती है मगर यह रोजा के सही होने के लिए शर्त नहीं ।अगर किसी को सेहरी खाने का मौका नहीं मिला और सेहरी खाए बिना रोजा रख लिया तो भी सही है।*
*❂_ रमजान का रोजा रखकर तोड़ दिया तो क़जा़ और कफ्फारा दोनों लाजिम होंगे ।*
*📘आप के मसाइल और उनका हल -3/262,*
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*❂ सेहरी और अफ्तार ❂*
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*★_ सेहरी खाना मुस्तहब है और बाइसे बरकत है । अगर ना खाई तब भी रोज़ा हो जाएगा।*
*★_सेहरी मे देर ,मगर यह जरूरी है कि सुबह सादिक से पहले खाया जाए और अफ्तार में जल्दी करना चाहिए। मगर यह जरूरी है कि दिन गुरूग हो जाने का यकीन हो जाए तब ही रोजा खोलें।*
*★_ अज़ान अमूमन सुबह सादिक के बाद ही होती है अगर अजा़न के वक्त तक खाया पिया तो रोज़ा नहीं होगा ।*
*★_रोजा खोलते वक्त नियत शर्त नहीं अफ्तार के वक्त दुआ मुस्तहब है, बगैर दुआ के रोज़ा खोल लिया तो भी रोज़ा सही है।*
*★_ अफ्तार के वक्त दुआएं कुबूल होती है इसलिए दुआ का ज़रूर है अहतमाम करना चाहिए।*
*★_ रोज़ा रखने और खोलने में उसूल यह है कि उसी जगह का ऐतबार होगा जहां आदमी उस वक्त मौजूद है। मसलन एक शख्स इंडिया से सेहरी करके रोज़ा रखकर सऊदी अरब गया तो अब सऊदी अरब के गुरुब के ऐतबार से अफ्तार करना होगा।*
*★_ एरोप्लेन में सफर करते वक्त जिस जगह की बुलंदी पर प्लेन उड़ रहा है चाहे वह 10000 फिट की बुलंदी पर हो और उस बुलंदी से गुरुबे आफताब दिख रहा हो तो रोज़ा इफ्तार कर लेना चाहिए ।*
*📘 आप के मसाइल और उनका हल 3/ 266_,*
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*❂ किन वजहों से रोज़ा तोड़ देना जाइज़ है ❂*
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*★_ अगर रोजेदार अचानक बीमार हो जाए और अंदेशा हो कि अगर रोजा़ ना तोड़ा तो जान का खतरा है या बीमारी बढ़ जाने का खतरा है तो ऐसी हालत में रोजा तोड़ देना जायज़ है ।*
*★_हामला औरत की जान को या बच्चे की जान को खतरा लाहक हो जाए तो रोज़ा तोड़ देना जायज़ है।*
*★_ शरई उज्र की वजह से तोड़े गए रोज़े का कफ्फारा लाजि़म नहीं मगर कजा़ लाजि़म है।*
*★_ अगर बीमारी की वजह से छोटे दिनों में भी कजा़ करने की ताक़त नहीं है तो इसके सिवा कोई चारा नहीं कि इन रोज़ो का फिदिया अदा करें , 1 दिन के रोज़े का फिदिया सदका ए फितर के बराबर है ।*
*📘 आप के मसाइल और उनका हल 3 271_,*
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*❂ अहम बात ❂*
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*❂_ रमजान शरीफ के रोज़े हर आकि़ल बालिग मुसलमान पर फर्ज़ है और बगैर किसी शरई उज्र के रोज़ा ना रखना हराम है ।*
*❂_अगर नाबालिक लड़का लड़की रोज़ा रखने की ताक़त रखते हो तो मां बाप पर ज़रूरी है कि उनको भी रोज़ा रखवाऐं ।*
*❂_जो बीमार रोज़ा रखने की ताक़त रखता हो और रोज़ा रखने से उसकी बीमारी बढ़ने का अंदेशा ना हो उस पर भी रोज़ा रखना लाज़िम है ।
*❂_बाज़ लोग बगैर उज्र के रोज़ा नही रखते और बीमारी या सफर की वजह से रोज़ा छोड़ देते हैं और बाद में कज़ा भी नहीं रखते। खासतौर पर औरतों के जो रोज़े अय्याम (माहावारी )की वजह से रह जाते हैं उनकी कजा़ रखने में सुस्ती की जाती है ,यह बहुत बड़ा गुनाह है।*
*❂_ काम की वजह से ,इम्तिहान की वजह से रोज़ा छोड़ देने की इजाजत नहीं।*
*❂_ किसी दूसरे से अपना रोज़ा रखवाना जायज़ नहीं। जिस तरह खाना खाने से दूसरे का पेट नहीं भरता ,इसी तरह एक शख्स के नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने से दूसरे के जिम्मे का फ़र्ज़ अदा नहीं होता ।*
*📘 आप के मसाइल और उनका हल 3 /273_,*
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*❂ वो चीजें जिनसे रोज़ा फासिद हो जाता है ❂*
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*★_१_ कान और नाक में इस तरह दवा डालना कि हलक तक पहुंच जाए।*
*२_ क़सदन( जानबूझकर )मुंह भर कर के कैय करना या मुंह भर कर आने के बाद कुछ हिस्सा कसदन लौटा लेना ।*
*३_कुल्ली करते हुए हलक़ में पानी का चला जाना, ( उस वक्त रोजा भी याद हो )*
*४_औरत को छूने वगैरह से इंजाल हो जाना ।*
*५_लोबान या औद का धुआं कसदन नाक या हलक़ में पहुंचाना। बीड़ी हुक्का पीना भी इसी हुक्म में है ।*
*६_भूल कर खा पी लिया और ख्याल किया कि इससे रोजा टूट गया होगा फिर कसदन खा लिया।*
*७_ रात समझ कर सुबह सादिक के बाद सेहरी खा लेना।*
*८_ दिन बाकी़ था मगर गलती से यह समझा कि आफताब गुरूब हो गया है अफतार कर लिया।*
*९_ कोई ऐसी चीज निगल जाना जो आदतन खाई नहीं जाती जैसे लकड़ी लोहा कच्चा गेहूं का दाना वगैरा ।*
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*❂ वो चीजें जिनसे रोज़ा तो नहीं टूटता मगर मकरूह हो जाता है ❂*
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*★_ १_बिला जरूरत किसी चीज को चबाना ,नमक वगैरा चख कर थूक देना, टूथ पेस्ट, मंजन या कोयला से दांत साफ करना।*
*★_२_ सुबह सादिक से पहले जुंबी हो गया फिर दिन भर हालते जनाबत में रहना ।*
*★_३_ फस्द खुलवाना ( Bleeding) या किसी को अपना खून देना।*
*★_४_गीबत यानि किसी की पीठ पीछे बुराई करना । गीबत हर हाल में हराम है रोजे में इसका गुनाह और बढ़ जाता है ।*
*★_५_ लड़ना झगड़ना ,गाली गलौज करना।*
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*❂ वह चीज है जिनसे रोज़ा नहीं टूटता और ना ही मकरूह होता है ❂*
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*★_१_ मिस्वाक करना,*
*★_२- सर या मूछों पर तेल लगाना,*
*★_३- इंजेक्शन या टीका लगाना या लगवाना,*
*★_४- आंख में दवा डालना या सुरमा लगाना ,*
*★_५-खुशबू लगाना,*
*★_६- गर्मी और प्यास की वजह से गुसल करना,*
*★_७- भूल कर खा पी लेना,*
*★_८- हलक में बिला अख्तियार धुआं या मक्खी वगैरह का चला जाना,*
*★_९- खुद बा खुद कैय आ जाना,*
*★_१०- सोते हुए एहतलाम हो जाना ,*
*★_११-दांतों में खून आए मगर हलक़ में नहीं जाए इससे रोजे में कोई खलल नहीं आता,*
*★_१२- अगर जनाबत की हालत में बगैर गुसल के रोज़े की नियत कर ली तो रोजे में खलल नहीं आता ।*
*📘फिक़हुल इबादात 327,*
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*❂ वह उजर् जिनसे रोजा ना रखने की इजाजत होती है ❂*
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*★_१- बीमारी की वजह से रोज़ा रखने की ताक़त ना हो या मर्ज़ बढ़ने का खतरा हो तो रोज़ा ना रखना जायज़ है रमज़ान के बाद सेहत हो जाने पर इसकी कजा़ करें।*
*★_२- औरत को हमल की वजह से रोज़े में बच्चा या अपनी जान को नुक़सान पहुंचने का अंदेशा हो तो रोजा़ ना रखें बाद में कजा़ करें।*
*★_३- जो औरत अपने या गैर के बच्चे को दूध पिलाती हो अगर रोज़े की वजह से बच्चे को दूध नहीं मिलता हो और इससे बच्चे को तकलीफ पहुंचती हो तो रोज़ा ना रखें बाद में क़जा़ करें ।*
*★_४-शरई मुसाफिर को इजाज़त है कि वह रोजा़ ना रखें लेकिन अगर तक़लीफ ना हो तो अफज़ल यही है कि हालत ए सफर में भी रोज़ा रख ले ।*
*★_५-बा हालत ए रोजा़ सफर शुरू किया अब उसके लिए रोजा़ का पूरा करना ज़रूरी है । अगर मुसाफिर हालते सफर में था और सुबह सादिक के बाद कुछ खाया पिया नहीं और रोज़े की नीयत भी नहीं की फिर ज़वाल से पहले वतन (घर) पहुंच गया ,उस पर लाजिम है कि वह रोज़ा रख ले।*
*★_६- किसी को क़त्ल की धमकी देकर रोज़ा तोड़ने पर मजबूर किया जाए तो उसके लिए रोज़ा तोड़ना जायज़ है बाद में कजा़ कर ले ।*
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*❂ रोज़ा रखने के बाद बीमार हो गया ❂*
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*★_ अगर कोई शख्स रोजा़ रखने के बाद इस क़दर शदीद बीमार हो जाए कि रोज़ा ना तोड़ने की सूरत में मर्ज़ की शिद्दत या बढ़ जाने का खतरा हो तो अफतार कर लेना जायज़ है। बाद में कजा़ वाजिब है कफ्फारा नहीं ।*
*★_अगर इंजेक्शन से इलाज हो सके दवा पिला कर रोज़ा तोड़ने की ज़रूरत ना हो तो रोजा़ तोड़ना जायज़ नहीं बल्कि इंजेक्शन ही से इलाज करें।*
*( फतावा आलमगीर -1/307)*
*📘 फिक़हुल इबादात-329 _,*
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*❂ मुतफर्रिक- ❂*
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*❂_ अगर भूल कर खा लिया या कैय हो गईं और यह समझ लिया कि मेरा रोजा़ टूट गया और खा पी ले तो रोजा़ टूट गया और कजा़ वाजिब है।*
*"_ लेकिन यह मसला मालूम था कि कैय से रोज़ा नहीं टूटता या भूल से खा पी लेने से रोज़ा नहीं टूटता इसके बावजूद कुछ खा पी ले तो इस सूरत में उसके लिए कफ्फारा और कजा़ दोनों लाजिम होंगे ।*
*❂_अगर खून हलक़ में चला गया तो रोज़ा टूट जाता है।*
*❂_ रोज़े की हालत में मखसूस जगह में दवा रखने से रोज़ा टूट जाता है।*
*❂_ रोज़े की हालत में गरगरा करना और नाक में ज़ोर से पानी डालना ममनू है ।*
*❂_रोज़े की हालत में बीड़ी सिगरेट या हुक्का पीने से रोज़ा टूट जाता है ।*
*❂_सेहरी खत्म होने से पहले कोई चीज मुंह में रख कर सो गया तो रोज़ा नहीं हुआ (चाहे जब जागा तो सेहरी का टाइम निकल चुका था फिर मुंह की चीज़ निकाल कर फैंक दी और कुल्ली कर ली हो )*
*❂_दांतों में गोश्त का रेशा या कोई चीज़ रह गई थी और खुद बा खुद अंदर चली गई तो अगर चने के दाने के बराबर या उससे ज़्यादा थी तो रोज़ा जाता रहा और अगर चने के दाने से कम थी तो रोज़ा नहीं टूटा ।*
*❂_ अगर बाहर से कोई चीज़ डालकर निगल ली तो चाहे थोड़ी हो या ज्यादा उससे रोज़ा टूट जाता है।*
*❂_ किसी औरत को सिर्फ देखने से इंजाल हो जाए (मनी निकल जाए) तो रोज़ा नहीं टूटा लेकिन गले लगाने से ,बौसा लेने से इंजाल हो तो रोज़ा टूट जाता है सिर्फ कजा़ वाजिब होगी ।*
*❂_अगर रोज़े की हालत में अगर कोई शख्स हाथ के ज़रिए से मनी निकाल दे तो रोज़ा टूट जाता है, सिर्फ कजा़ लाज़िम है ।*
*📘आप के मसाइल और उनका हल -3/ 241 _,*
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*❂ _ अगर रोजे़दार भूलकर कुछ खा पी ले (चाहे पेट भर ) तब भी रोज़ा नहीं टूटता।*
*❂ _ एक शख्स को कुछ खाते पीते देखा तो अगर वह इस क़दर ताकतवर है की रोज़े से ज्यादा तकलीफ नहीं होती हो तो उसको रोज़ा याद दिलाना वाजिब है ।और अगर कोई ना ताकत ( कमजोर ) हो कि रोज़े से तकलीफ होती हो तो उसको याद ना दिलाए खाने पीने दे,*
*❂_ दिन में रोज़े की हालत में सो गए और नींद में ख्वाब देखा कि नहाने की ज़रूरत हो गई तो रोज़ा नहीं टूटा।*
*❂ _ दिन में सुरमा लगाना खुशबू सुंघना तेल लगाना दुरुस्त है इससे रोजे में कोई नुक़सान नहीं आता चाहे जिस वक्त हो ।*
*❂ _मर्द औरत का साथ बैठना हाथ लगाना बोसा लेना यह सब दुरुस्त है लेकिन अगर जवानी का इतना जोश हो कि इन बातों से सोहबत का डर हो तो ऐसा नहीं करना चाहिए। रोज़े की हालत में मकरुह है ।*
*❂ _हलक़ के अंदर मक्खी चली गई या धुआं या गर्दों गुबार चला गया तो रोज़ा नहीं गया। अलबत्ता अगर क़सदन ( जानबूझकर) ऐसा किया तो रोज़ा जाता रहा।*
*❂ _ लौबान वगैरह की धुनी सुलगाई और फिर अपने पास रखकर सूंघा किए तो रोजा़ जाता रहा । इसी तरह हुक्का पीने से भी रोज़ा जाता रहा है ।अलबत्ता केवड़ा गुलाब के फूल की खुशबू का सूंघना जिसमें धुआं ना हो दुरुस्त है ।*
*★_दांतों में गोश्त का रेशा या कोई और चीज़ अटकी हुई थी उसको खिलाल कर निकाल कर खा लिया लेकिन मुंह से बाहर नहीं निकाली ,आप ही हलक़ में चली गई, तो देखो अगर चने से कम है तो रोज़ा नहीं टूटा और चने के बराबर या उससे ज्यादा हो तो रोज़ा जाता रहा।
*"_ अगर मुंह से बाहर निकाल लिया था और उसके बाद निगल लिया तो हर हाल में रोज़ा टूट गया चाहे चने के बराबर हो या कम ज्यादा हो ।*
*❂ _अगर पान खाकर गरारे करके मुंह साफ कर लिया लेकिन थूक (पीट) की सुर्खी नहीं गई तो उससे कोई हर्ज नहीं रोज़ा हो जाएगा ।*
*📘 बहिष्ती जेवर _,*
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*★_ रोजे की हालत में थूक निगलने से रोजा नहीं जाता लेकिन थूक को जमा करके निगलना मकरूह है ।*
*★_इंजेक्शन से रोज़ा नहीं टूटता सिर्फ ताकत का इंजेक्शन लगाना मकरूह है ।गुलूकोज़ के इंजेक्शन का भी यही हुक्म है।*
*★_ जुबान से किसी चीज को जायक़ा चख कर थूक दिया तो रोजा नहीं टूटा मगर बिना सख्त जरूरत है ऐसा करना मकरुह है।
*★_ मुंह से निकला हुआ खून अगर थूक के साथ निगल गया तो रोज़ा टूट गया लेकिन खून की मिक़दार थूक से कम हो और हलक़ में खून का ज़ायका महसूस ना हो तो रोजा नहीं टूटा ।*
*★_नाक और कान में दवा डालने से रोजा टूट जाता है लेकिन आंख में दवा डालने से रोज़ा नहीं टूटता।*
*★_ गुलुकोज चढ़ाने से रोजा नहीं टूटता बशर्ते कि गुलुकोज किसी उज्र की वजह से लगाया जाए बिना उज्र गुलुकोज चढ़ाना रोज़े की हालत में मकरुह है।*
*★_ खून देने से रोज़ा नहीं टूटता।*
*★_ रोज़े की हालत में टूथपेस्ट का इस्तेमाल मकरुह है हालांकि हलक़ में ना जाए तो रोज़ा नहीं टूटता।*
*★_ रोज़े की हालत में वज़ु करते वक्त कुल्ली कर के पानी गिरा देना काफी है बार-बार थूकना फिजूल हरकत है । इसी तरह नाक की नरम हड्डी तक पानी पहुंचाने से पानी दिमाग तक नहीं पहुंचता, इस सिलसिले में वहम करना भी फिजूल है ।*
*★_ज़हरीली चीज़ के डस लेने से रोजा नहीं टूटता है और ना ही मकरूह होता है । मिर्गी के दौरे से बेहोश हो जाने से रोजा नहीं टूटता।*
*📘 आप के मसाइल और उनका हल- 3/ 285 _,*
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*❂_ रात को नहाने की ज़रूरत हो गई मगर गुस्ल नहीं किया, दिन को नहाए तो भी रोज़ा हो गया अगर दिन भर नहीं नहाए तब भी रोज़ा नहीं जाता ।अलबत्ता इसका (नापाकी का) गुनाह होगा ।*
*❂_नाक को इतना ज़ोर से सूडक गया की हलक़ में चली गई ,इसी तरह मुंह की राल निगल जाने से रोज़ा नहीं टूटता।*
*❂_ मुंह में पान दबा कर सो गए और सुबह हो जाने पर आंख खुली तो रोज़ा नहीं हुआ ।कज़ा करे कफ्फारा लाज़िम नहीं।*
*❂_ _ कुल्ली करते वक्त हलक़ में पानी चला गया और रोज़ा याद था तो रोज़ा जाता रहा , कजा़ वाजिब है कफ्फारा लाज़िम नहीं।*
*❂_ _ अगर आप ही आप कैय हो गई तो रोज़ा नहीं गया चाहे थोड़ी हो या ज़्यादा । अलबत्ता अगर अपने अख्त्यार से कैय की और मुंह भर के कैय हुई तो रोज़ा जाता रहा और मुंह भर के नहीं हुई तो रोज़ा नहीं गया।*
*❂_ थोड़ी सी कैय आई और आते ही आप ही हलक़ में लोट गई तब भी रोज़ा नहीं टूटता अलबत्ता अगर जानबूझकर लोटा ले तो रोज़ा टूट जाता ।*
*📘 बहिष्ती जेवर_,*
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*❂_ किसी ने कंकरी या लोहे का टुकड़ा या कोई ऐसी चीज़ जिसको लोग नहीं खाया करते और ना ही कोई उसको बतौर दवा के खाता है तो उसका रोज़ा जाता रहा , लेकिन उस पर कफ्फारा वाजिब नहीं । और ऐसी खाई या पी ली जिसको लोग खाते पीते हो या कोई ऐसी चीज़ है कि यूं तो नहीं खाते लेकिन बतौर दवा के जरूरत के वक्त खाते हैं तो भी रोज़ा जाता रहा और कज़ा और कफ्फारा दोनों लाजिम है ।*
*❂_औरत को हैज आ गया हो तो उसको रोज़ा तोड़ देने से कफ्फारा लाजिम नहीं ।*
*"_रोजा तोड़ने से कफ्फारा जब ही लाजिम है जबकि रमज़ान शरीफ में रोज़ा तोड़ डाले और रमज़ान शरीफ के सिवा और किसी रोज़े के तोड़ने से कफ्फारा वाजिब नहीं होता चाहे जिस तरह तोड़े। अगरचे रोज़ा रमज़ान की कजा़ ही क्यों ना हो ।*
*❂_ किसी ने रोज़े में नास लिया कान में तेल डाला या जुलाब में अमल लिया और पीने की दवा नहीं पी तब भी रोज़ा जाता रहा। लेकिन सिर्फ क़जा़ वाजिब है कफ्फारा नहीं। अगर कान में पानी डाला तो रोज़ा नहीं गया।*
*❂_ औरतों का रोज़े की हालत में पेशाब की जगह पर दवा रखना या तेल वगैरा कोई चीज़ डालना दुरुस्त नहीं अगर किसी ने दवा रख ली तो रोज़ा जाता रहा क़जा़ वाजिब है कफ्फारा लाज़िम नहीं ।*
*❂_ अपने मुंह से चबाकर छोटे बच्चे को कोई चीज़ खिलाना मकरूह है, अलबत्ता अगर इसकी ज़रूरत और मजबूरी व नाचारी हो तो मकरूह नहीं ।*
*❂_कोयला चबाकर दांत मांजना मंजन करना या टूथपेस्ट से करना मकरूह है और अगर इसमें से कुछ हलक में उतर जाए तो रोज़ा जाता रहा। मिस्वाक से दांत साफ करना तो दुरुस्त है चाहे सूखी मिस्वाक हो या ताज़ी उसी वक्त की तोड़ी हुई ।अगर नीम की मिस्वाक है और उसका कड़ापन मालूम होता है तब भी मकरुह नहीं।*
*❂_ रमजान के महीने में अगर किसी का रोज़ा टूट गया तो रोज़ा टूट जाने के बाद भी दिन में कुछ खाना पीना दुरुस्त नहीं ।सारा दिन रोजा़दारो की तरह रहना वाजिब है ।*
*📘 बहिष्ती जे़वर _,*
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*❂_ रोजा रखकर गुनाह करने से बेहतर क्या यह ना होगा कि रोजा रखा ही ना जाए ??*
*"_ यह बात हिकमते शरई के खिलाफ है शरीयत रोजा रखने वालों से यह मुतालबा करती है कि वह अपने रोजे की हिफाजत करें और जब अल्लाह की रज़ा के लिए खाना पीना छोड़ दिया है तो वह लज्जत ए गुनाहों से भी दूर रहे और अपने रोजे के सवाब को ज़ाया ना करें । मगर शरीयत ने यह नहीं कहा कि जो लोग गुनाहों के मुरतकब होते हैं वह रोजा ही ना रखें । हुजूर अकरम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने रोजेदार को परहेज की बहुत ही ताकीद फरमाई है।*
*★_ एक हदीस पाक में है कि बहुत से रात में कि़याम करने वाले ऐसे हैं जिनको रात जागने के सिवा कुछ नहीं मिलता और बहुत से रोजा़दार ऐसे हैं जिनको भूख प्यास के सिवा कुछ नहीं मिलता।*
*"_ एक और हदीस पाक में है कि जो शख्स झूठ बोले और गलत काम करने से बाज नहीं आता अल्लाह ताअला को उसका खाना पीना छुड़ाने की कोई जरूरत नहीं।*
*📘 आप के मसाइल और उनका हल- 3/ 333 _,*
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*❂ रोज़े की कजा़ ❂*
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*❂_ किसी उज़र् से रोज़ा कजा़ हो गया तो जब उज़र् खत्म हो जाए तो जल्दी अदा करना चाहिए। ज़िंदगी और ताक़त का भरोसा नहीं कजा़ रोजो़ में अख्त्यार है कि लगातार रखें या नागा करके रखें।*
*❂_ मुसाफिर सफर से लौटने के बाद या मरीज़ तंदुरुस्त होने के बाद इतना वक्त ना पाए जिससे कजा़ शुदा रोज़े अदा करें तो क़जा़ उसके जिम्मे लाज़िम नहीं।*
*❂_ सफर से लौटने या बीमारी से तंदुरुस्त हो जाने के बाद जितने दिन मिले उन दिनों की कजा़ लाजिम है, बाक़ी बीमार को सेहत के बाद कितना वक़्त मिला जिससे वह रोज़ा कजा़ अदा कर सकता था या मुसाफिर को सफर से वापसी के बाद इतना वक़्त मिला जिससे वह कजा़ शुदा रोज़े अदा कर सकता था लेकिन अदा नहीं किया और बीमारी बढ़ जाने की वजह से अब ज़िंदगी की उम्मीद नहीं रही तो उन दिनों के रोज़ो की वसीयत वाजिब है।*
*( बा हवाला- दुर्रे मुख्तार,2/127)*
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*❂ अय्यामे हैज की कजा़ ❂*
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*❂_ मा'ज़ा अदविया बयान फरमाती हैं कि हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा से दरयाफ़्त किया कि यह क्या बात है कि अय्यामे हैज में जो रोज़े कज़ा होते हैं उनकी कजा़ की जाती है और जो नमाजे़ कज़ा होती हैं उनकी कजा़ नहीं पढ़ी जाती ?*
*"_ उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा ने फरमाया कि :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के ज़माने में जब हम इसमें ( हैज में) मुब्तिला होते थे तो हमको उन दिनों में कजा़ शुदा रोज़े रखने का हुक्म दिया जाता था और कजा़ नमाज पढ़ने का हुक्म नहीं दिया जाता । (सही मुस्लिम)*
*📘फिक़हुल इबादात-330 _,*
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*❂ कफ्फारा लाज़िम होने की सूरतें ❂*
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*❂_ १_वह शख्स जिस पर रोज़ा फर्ज होने की तमाम शरायत पाई जाती हो रमज़ान के उस रोज़े जिसकी नियत सुबह सादिक से पहले कर चुका हो जानबूझकर मुंह के जरिए पेट में कोई ऐसी चीज़ पहुंचाई जो इंसान की दवा या गिजा़ में इस्तेमाल होती हो यानी उसके इस्तेमाल से किसी किस्म का जिस्मानी नफा या लज़्ज़त मक़सूद हो।*
*❂_२_ या कोई शख्स जिमा करें या कराएं (जिमा में आला तनासुल का दाखिल हो जाना काफी है मनी का खारिज होना शर्त नहीं)*
*➡ इन सूरतों में कजा़ और कफ्फारा दोनों वाजिब होंगे मगर शर्त यह है कि जिमा ऐसी औरत से किया जाए जो जिमा के काबि़ल हो ।*
*❂__कफ्फारे का लाज़िम होना रमजान मुबारक के रोज़े तोड़ने के साथ खास है , गैर रमज़ान के रोज़े में सिर्फ कजा़ लाजिम है कफ्फारा नहीं ।*
*( बा हवाला दुर्रे मुख्तार -2/409)*
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*❂ कफ्फारे की मिक़दार ❂*
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*❂__ रमजानुल मुबारक का रोज़ा तोड़ने का कफ्फारा यह है कि लगातार 2 महीने के रोज़े रखे, थोड़े-थोड़े करके रोज़े रखना काफी नहीं ,अगर किसी वजह से कफ्फारे के रोज़े के दरमियान एक दो रोज़े नहीं रखें तो अब फिर से 2 महीने के रोज़े रखे।*
*❂__ अलबत्ता जो रोज़े हैज की वजह से रह गए उनके रह जाने की वजह से कफ्फारे का तसलसुल में कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन पाक होने के बाद फोरन रोज़े ( बाकी ) शुरू कर दे और 60 रोजे़ पूरे करें ।*
*❂__अगर किसी ने कफ्फारे के रोजे़ की ताकत नहीं हो तो 60 मिस्कीनों को सुबह शाम भरपेट खाना खिला दे ।अलबत्ता ख्याल रहे की उन खाने वालों में बिल्कुल छोटे बच्चे ना हो। ( बा हवाला दुर्रे मुख्तार-2/119*
*📘 फिकहुल इबादात-332_,*
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*❂ रोज़े का फिदया ❂*
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*❂_ जिसको इतना बुढ़ापा हो गया हो कि रोजे़ रखने की ताकत नहीं रही या इतनी बीमारी है कि अब अच्छा होने की उम्मीद भी नहीं रही ना ही रोजा रखने की ताकत है तो रोज़े ना रखें और हर रोज़े के बदले 1 मिस्कीन को सदक़ा ए फितर् के बराबर गल्ला दे दे या सुबह शाम पेट भर खाना खिला दे ।शरा'अ में इसको फिदया कहते हैं ।*
*❂_और गल्ले के बदले में इस क़दर गल्ले की कीमत दे दे तब भी दुरुस्त है ।*
*❂_फिदया रमजान से पहले देना जायज़ नहीं ,रमजान के रोज़े के फिदये की रकम रमजान आने से पहले एडवांस में देना सही नहीं अलबत्ता रमजान शुरू होने के बाद पूरे रमजान के रोजो़ का फिदया भी दे सकते हैं।*
*📘 फिकहुल इबादात 33_,*
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*❂ अफतारी ❂*
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*★_ आफताब के गुरूब हो जाने का यकीन हो जाने के बाद अफतारी में देर करना मकरूह है । हां जब अबर् ( बादल) वगैरा की वजह से शुबहा हो जाए तो दो-चार मिनट इंतजार कर लेना बेहतर है और नक्शे में दिए गए वक्त से 3 मिनट की अहतयात बहरहाल करना चाहिए।*
*★_ अफतारी के लिए क्या चीज बेहतर है ?*
*"_हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब तुम में से किसी का रोज़ा हो तो वह खजूर से अफतार करें।*
*®"_ रवाह अहमद, अबू दाऊद, तिर्मीजी,*
*★_ अगर खजूर ना पाए तो फिर पानी ही से अषतार करें इसलिए कि अल्लाह ताला ने पानी को तहूर बनाया है।*
*📘 फिक़हुल इबादात-334* _,*
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*❂ रमजा़न की आखिरी रात ❂*
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*★_रमजान में तौबा इस्तगफार कसरत से करें खासतौर पर लैलतुल जायजा़ यानी आखिरी रमजान की रात ।*
*"_ईद की तैयारियां और फिजूल कामों के बजाय इबादत में गुज़ारो इसकी बड़ी फजी़लत वारिद हुई है ।*
*★_ ईद उल फितर की शब में इबादत करना मुस्तहब है जैसा की हदीस पाक में गुजरा है कि हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- रमज़ान के मुताल्लिक मेरी उम्मत को खासतौर पर पांच चीजें दी गई हैं जो पहली उम्मतों को नहीं मिली जिनमें एक यह है कि रमजान की आखिरी रात में रोजे़दारों की मगफिरत कर दी जाती है,*
*सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हूम ने अर्ज किया क्या यह शबे मगफिरत शबे कदर ही तो नहीं ?*
*आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया :- नहीं ! बल्कि दस्तूर यह है कि मजदूर का काम खत्म होते ही उसकी मजदूरी दे दी जाती है,*
*"_ मुसनद अहमद बहीकी़_,*
*📘 तोहफा रमजान मुबारक-६५_,*
*"_ अल्हम्दुलिल्लाह मुकम्मल हुआ _,"*
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