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*⚀_ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम _,⚀*
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*👀_ जब _आंख _खुलेगी _👀*
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*⊙:➻ इन्सान पर गुज़रने वाले दौर_,*
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*✪__(तर्जुमा - सूरह अल- इंशिका़क, आयत 6): - ए इंसान ! तू अपने रब के पास पहुंचने तक कोशिश कर रहा है, फिर उससे जा मिलेगा _,"*
*✪_ हक ता'आला शान्हू ने हमें यहां बहुत मुख्तसर वक़्त के लिए भेजा है और ये ज़िंदगी अमल के लिए है, जेसी करनी वेसी भरनी, अच्छा अमल करेंगे तो अच्छा बदला मिलेगा, और खुदा ना ख्वास्ता बुरा अमल करेंगे... फिर बुरा बदला मिलेगा _,"*
*✪__ हम पर कई मरहले गुज़र चुके हैं और कई मरहले अभी बाक़ी हैं, जैसा कि इरशादे इलाही है :-*
*"_(तर्जुमा, सूरह अल - दहर आयत -1) इंसान पर एक बहुत बड़ा वक़्त गुज़र चुका है, जबकि वो क़ाबिले ज़िक्र चीज़ नहीं था _,"*
*✪__ दूसरा दौर हमारे ऊपर गुज़रा जबकि हम अपनी वाल्दा के शिकम में आए, अल्लाह ताला ने अजीम निज़ाम बनाया, कुर्बान जाऊं उसकी कुदरत पर, और कुर्बान जाऊं उसकी रहमत व इनायत पर, हमने अस्पतालों में देखा जो बच्चे वक़्त से पहले पैदा हो जाते हैं उन्हें एक खास क़िस्म का शीशा होता है, उसमें रखते हैं, अब हर आदमी जानता है कि उस पर कितना खर्चा होता है, लेकिन मां के पेट में वो सारा निजाम अल्लाह तबारक वा ता'ला ने फिट कर दिया है, किसी को पता भी नहीं, कोई खर्च नहीं,*
*✪__ बहरहाल जब हम मां के पेट मे थे तो उस वक़्त हमारी हालत ऐसी थी ना हमारे मां बाप को पता था कि क्या है, ना खुद हमें पता था, हमें तो क्या पता होता, चार माह तक मुख्तलिफ़ शक्लें बदलते बदलते हमारे अंदर रूह डाली गई _,"*
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*⊙:➻ 4 माह गुज़रने के बाद रिज़्क़ लिख दिया जाता है :-*
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*✪_ हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, वो फरमाते हैं कि हमें रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बयान किया, जो सादिक़ व मसदूक़ है कि:-*
*➻"_ बेशक तुममे से हर एक को उसकी मां के रहम में 40 दिन तक नुतफा की शक़्ल में, और 40 दिन तक जमे हुए खून और 40 दिन तक गोश्त के लोथड़े की शक्ल में रखा जाता है, फिर अल्लाह ता'ला फरिश्ते को भेजेते है जो उसमे रूह डालता है, और उसे इन चार चीज़ों के लिखने का हुक्म दिया जाता है :-*
*➻(1)_ इसका रिज़्क़ कितना होगा ?*
*➻(2)_ इसकी जिंदगी कितनी होगी ?*
*➻(3)_ इसकी मौत कब और कहां वाक़े होगी ?*
*➻(4)_ और ये कि वो नेक बख्त होगा या शकी़ व बदबख्त _,"*
*🗂️_ सही मुस्लिम -2/332,*
*✪__ अब देखें कि मां के पेट में 4 महीने गुज़रे हुए हमें कितना अर्सा हुआ, अभी अल्लाह ही जानता है कि मजी़द यहां कितना रहना है, तो पहले दिन ही अल्लाह तआला ने रिज़्क लिख दिया कि इसका रिज़्क़ कितना है? और ये कि यह बच्चा कहां कहां फिरेगा? वगेरा वगेरा, गर्ज़ मोटी मोटी बातें सारी की सारी लिख दी जाती हैं, और आखिर में फरिश्ता अल्लाह तआला से पूछता है, परवरदिगार ! ये नेक बख्त है या बदबख्त है ?*
*✪_ अब हमारा नाम किन लोगों में लिखा हुआ है? अल्लाह ही जानता है, फरिश्ता ये सब पूछता है और पूछने के बाद फिर बच्चे में रूह डाल दी जाती है, 5 महीने इस हालत में आदमी गुजा़रता है _,"*
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*⊙:➻ इंसानी जिंदगी का पहला दौर:-*
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*✪__ (सूरह बनी इसराइल - 13-14 तर्जुमा):- और हर इंसान, हमने लटका दिया है उसकी क़िस्मत का परवाना उसकी गर्दन में, और क़यामत के दिन हम उसके लिए एक किताब खोलेंगे (ये उसके आमाल नामे की किताब होगी) जिसको वो फेला हुआ पायेगा और कहा जाएगा : अपनी किताब पढ़, तू ही काफ़ी है आज के दिन अपना हिसै लेने वाला _,"*
*✪__ अब आपकी मेरी और दुनिया के तमाम इन्सानो की जो भी क़िस्मत है, उसे अल्लाह तआला ने परवाने की शक्ल में गर्दन में लटका दिया, किताब क्या है, हमारे अपने आमाल जो कुछ भी हमने किया है, छोटा अमल हो या बड़ा, तमाम का तमाम लिखा हुआ है, अल्लाहु अकबर! ये तो दूसरे जहान की बात हुई _,"*
*✪__ मैंने अर्ज़ किया कि एक दौर हम पर गुज़रा है, जिस वक़्त मुझे और आपको पता नहीं था कि मैं कोन हूं ? पूरे पांंच महिने मां के पेट में रहे रूह डाल लेने के बाद, चार महिने पहले और पांच महीने बाद, लेकिन ये दौर जो गुज़रा मेरे ऊपर और आपके ऊपर उसका मुझे भी और आपको भी पता नहीं था, बहरहाल इसके बाद हम दुनिया में आ गए _,"*
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*⊙:➻_इंसानी जिंदगी का दूसरा दौर_,*
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*✪_" अब यहां से दूसरा दौर शुरू हो गया, एक दौर तो था मां के पेट में आने से पहले का, दूसरा दौर था मां के पेट में आने के बाद का, तीसरा दौर है पैदा होने के बाद का, यहाँ हमने इस ज़मीन पर क़दम रखा, केसे क़दम रखा ? तुम जानते हो !*
*✪_"_ अल्लामा इकबाल का शेर है:-*
*"_ याद दारी के वक्त ज़ीस्त तू, खंदा बोदंद व तू गिरियां _,*
*"_(तर्जुमा):- तुझे याद है कि जब तू पैदा हुआ था, तो सारे हंस रहे थे और तू रो रहा था,*
*✪_"_ बच्चा क्यों रोता है? ये कोई उससे पुछे साहबजादे रोते क्यों हो? तुमने कभी डॉक्टरो की दुकानो पर जा कर देखा होगा, उसमे बच्चे का नक्शा केसा बना होता है, उसका सर टांगो में दबा हुआ होता है। इस हालत में बच्चे ने मां के पेट की सारी उमर गुज़ारी लेकिन जब पैदा हुआ तो रो रहा है इसलिए कि वो समझता है कि मुझसे बहुत अच्छी चीज़ छीन ली गई, बस इतना ही जानता है _,"*
*✪_"_ हजरत मौलाना मुफ्ती मुहम्मद शफी रह. मारफुल कुरआन में लिखते है कि बच्चा जब पैदा होता है तो उसे कोई हुनर नहीं आता, आंखे खोलता नहीं, उस वक्त आंखे भी बंद होती है, थोड़ी थोड़ी खोलता है, बोलना नहीं आता, अपने साथ कपड़े कोई नहीं लाया, भला कोई बच्चा कपड़े साथ लाता है, .. बल्की नंगा होता है कोई चीज़ भी तो नहीं उसके पास, मां के पेट से कुछ कमा के लाया है ? मालिक ने मां के पेट में 5 माह रूह डालने के बाद रखा, कुल 9 माह रखा, ना बाप को कुछ पता, ना मां को कुछ पता, ना उन साहबजादे को कुछ पता लेकिन हक़ ता'ला शान्हु ने करम फरमाई कि जब पैदा हो गया, अब बोलना नहीं जानता, हिलना नहीं जानता, चल नहीं सकता, अब उसे सिर्फ एक रोने का काम आता है और बस...,*
*✪_"_ मुफ्ती मुहम्मद शफी साहब रह. फरमाते हैं कि बच्चे को सिर्फ एक हुनर आता है रोने का और कोई हुनर नहीं आता, भूख लगे तो रोएगा, धूप लगे तो रोएगा, सर्दी लगे तो रोयेगा, तकलीफ हो तो रोयेगा, गर्ज़ ये कि बच्चे की तमाम हाजतें सिर्फ एक ज़रिए से पूरी होती है वो है "रोना",*
*✪_"_ बच्चा जब रोता है तो मां समझ लेती है कि इसे फलां चीज़ की ज़रूरत है, ये दौर भी गुज़रा, इसके बाद हम आहिस्ता आहिस्ता रेंगने लगे और फिर कुछ अर्से के बाद चलने लगे, फिर मुख्तलिफ मरहले तैय करते हुए हमारा बचपन गुजरा गया और हमने जवानी की देहलीज में कदम रखा _,"*
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*⊙:➻ इंसानी ज़िंदगी का तीसरा दौर_,*
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*✪_ हदीस में है कि" जवानी जूनून की एक शाख है," जवानी आई तो हमने समझा कि ना मां को अक़ल है ना दूसरे लोगों को, दुनिया भर की अक़ल सिर्फ हमारे पास है और इतनी कि अपनी इस अक़ल के ज़रीये से अल्लाह और उसके रसूल का भी मुक़ाबला करने लगे _,"*
*✪_ ये दौर भी गुज़र गया, जवानी पुख्ता हुई तो अक़ल भी पुख्ता हुई, 40 साल की उमर को पहुंचे तो क़ुव्वत में कमी शुरु हो गई, अब चलते चलते बुढ़ापे की देहलीज पर पहुंचे,*
*✪_ अब रफ्ता रफ्ता यही हाल हो रहा है कि आंखें हैं लेकिन देखने का काम नहीं करती, कान है लेकिन सुनाई नहीं देता, टांगे है लेकिन बोझ नहीं उठाती, हाथ है मगर काम नहीं करते, मेदा है लेकिन हज़म नहीं करता, कभी फलां तकलीफ है बड़े मियां को और कभी फलां !*
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*⊙:➻अनदेखी मंज़िलें _,*
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*✪"_ बुढापा बहुत बड़ी नियामत है, बुढापे में जवानी की सारी लज्ज़ते छूत जाती हैं, लोग इससे परेशान होते हैं लेकिन आरिफीन कहते हैं कि बुढापा परेशानी की चीज़ नहीं, बल्की नियामते कुबरा है _ , "*
*✪_"_ अव्वल... इसलिये कि दुनिया से बे-रगबती और उसकी लज्ज़तो से ऐराज़ अल्लाह तआला को बहुत महबूब है, हम ऐसे कहां थे कि खुद लज्ज़ते दुनिया को तर्क करते ? अल्लाह ताला ने अहसाने अज़ीम फरमाया कि हमसे लज्ज़तो के सामान छीन कर हमें दुनिया की लज्ज़तो से बे-रगबती का मज़ा चखा दिया, सुब्हानल्लाह! क्या एहसान है कि हम खुद दुनिया को छोड़ने वाले नहीं हैं तो ज़बरदस्ती हमसे दुनिया छुड़ा दी, जिस तरह मां ज़बरदस्ती अपने बच्चे का दूध छूड़ा देती है _,"*
*✪_"_दोम .. ये कि अब हम मौत की देहलीज पर खड़े हैं, क़ब्र में पांव लटकाए बैठे हैं, मरते ही हमसे दुनिया की सारी लज्ज़ते ही नहीं बल्की खुद दुनिया ही छूट जाएगी, बुढ़ापे के जरिए अल्लाह ता'ला पहले ही इसकी मश्क़ करा देते हैं,*
*✪_"_ सोम... ये कि आदमी बुढ़ा होकर आखिरत की तैयारी शूरू कर देता है, क्यूंकी जानता है कि अब चल चलाओ है, तौबा तिला करता है, गुनाहों की माफ़ी माँगता है, जो कोताहियां सरज़द हो चुकी हैं उनकी तलाफी करता है, और बुढ़ापे की बदौलत इन चीजों की तोफीक़ हो जाना अहसाने अज़ीम है, इसलिये आरिफीन कहते हैं बुढा़पा मौत का क़ासिद है, और जब क़ासिद बुलावा लेकर आ जाए तो आदमी को चाहिए कि सब कुछ छोड़ कर सफर की तैयारी करे (अल्लाह तआला तोफीक़ अता फरमाये)*
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*⊙:➻ पहली मंजिल मौत - मौत का मरहला _,*
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*✪_यहां तक के मराहिल तो हमने अपनी आंखों से देख लिए इसके बाद के जो माराहिल हैं वो अभी हमारे सामने नहीं, उनमे सबसे पहले मौत का मरहला है, फिर क़ब्र का मरहला, फिर हशर का मरहला, फ़िर पुल सिरात से गुज़रना है, इसके बाद हमारी मंजिल आने वाली है, जन्नत या दोज़ख !*
*✪_ हमारी ये कमज़ोरी है कि जिस हालत में हम होते हैं, उसके आगे की हमें सोच नहीं आती, सबको मालूम है कि मरना है, पहले लोग भी मरे हैं, हम भी मरेंगे, दुनिया की हर चीज में इख्तिलाफ है लेकिन मौत में इख्तिलाफ नहीं, तमाम मुसलमान और गैर मुस्लिम इस बात पर मुत्तफिक़ है कि आदमी मरेगा लेकिन इसमे फिर इख्तिलाफ हुआ के मरने के बाद क्या होगा ? इसमे फिर झगड़ा शुरू कर दिया, तो हमारी सबसे बड़ी है जो बीमारी है वो यह है कि जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं, जिंदगी के जिस मरहले से हम गुज़र रहे हैं, उसमे हम ऐसे उलझ कर रह गए हैं कि अगले मराहिल हमारी नज़र से ओझल हो गए _,"*
*✪__ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमारे सामने ज़िंदगी के नक़्शे भी खोले, मौत की हालत भी बयान फरमायी, मरने के बाद दोज़ख में इंसान पर जो कुछ गुज़रती है उसे बयान फरमाया, क़ब्र के अज़ाब को और सवाब को भी ज़िक्र फरमाया, किन चीजों से आदमी के लिए मौत आसान हो जाती है और कौनसी चीज़े ऐसी हैं जिनसे जान कनी मुश्किल हो जाती है? इसे भी ज़िक्र फरमाया, तो पहला मरहला जो इस जिंदगी के बाद आने वाला है वो मौत है*
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*⊙:➻ मौत का ज़िक्र -_,*
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*✪_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु आन हज़रत का इरशाद नक़ल करते हैं कि:- लज़्ज़तो को ख़त्म करने वाली चीज़ यानि मौत को क़सरत से याद किया करो _," (तिर्मिज़ी -2/54)*
*✪_ दुनिया की सारी लज्ज़ते और सारी खुशियां इस पाएदार ज़िंदगी तक महदूद है, जब रूह व बदन का रिश्ता टूट जाएगा तो ऐशो इशरत और मसर्रत व शादमानी के सारे असबाब धरे रह जाएंगे, इंसान की गफलत और झूठी लज्ज़तो पर क़ना'अत का सबब यही है कि मौत का भयानक चेहरा उसकी नज़र से ओझल है _,"*
*✪__ अगर गफ़लत का गुबार छट जाए, मौत और मौत के बाद का मंज़र उसके सामने रहे,तो दुनिया की किसी चीज़ से दिल बस्तगी ना रहे, मरते ही ये सारी चीज़ें उससे छिन जाएंगी और वो खाली हाथ दी घर से निकाल दिया जाएगा_,"*
*✪__ जिस चहेती बीवी के लिए अपने दीन को बिगाड़ा था, जिस प्यारी औलाद के लिए अपनी आखिरत बर्बाद की थी, जिन अज़ीज़ो अक़ारिब की ख़ातिर अपनी आक़बत से बेपरवाह था, इनमे से कोई भी तो साथ नहीं देगा, ना कोई बंगला और माल व दौलत साथ जाएगी, क़ब्र की तंग व तारीक़ कोठरी में उसे तने तन्हा जाना होगा, चंद दिन बाद उसका जिस्म, जिसके बनाने संवारने पर घंटो लगाता था गल सड़ जाएगा और कीड़ों की खुराक बनेगा _,"*
*✪_ ये है मौत का जा़हिरी नक्शा, बाक़ी रही उसकी रूहानी सख्तियात, जान कनी का अज़ाब, फरिश्तो का सामना, क़ब्र के आज़ाब की कैफ़ियत, इसका अंदाज़ा तो चश्मे तस्व्वुर से भी नहीं किया जा सकता है, मौत को याद रखना बहुत ज़रुरी भी है और बड़ी इबादत भी, ये मर्ज़े गफलत का तिर्याक भी है और दुनियावी परेशानियों से निजात का इलाज भी, ये आदमी के लिए ताज़ियाना इबरत भी है और कलीद स'आदत भी, उस शख्स से बड़ा बद नसीब कौन होगा जो अपनी मौत भूल जाये ? अल्लाह तआला हमे सही बसीरत अता करे _,"*
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*⊙:➻मौत का ज़िक्र-2 अल्लाह ताला से मुलाक़ात का ज़रिया मौत है_,*
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*✪__ हज़रत उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु अन्हु आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद नक़ल करते हैं कि:- जो शख्स अल्लाह ताला से मुलाक़ात का इश्तियाक़ रखे, अल्लाह तआला उसकी मुलाक़ात को पसंद करते हैं, और जो शख़्स अल्लाह ताला से मुलाक़ात को नापसन्द करे, अल्लाह ताला भी उसकी मुलाक़ात को नापसन्द फरमाते है _,"*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/55*
*✪__इस हदीस पाक की तशरीह आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद ही इरशाद फरमा दी है, सही बुखारी की हदीस में है कि जब आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये इरशाद फरमाया तो उम्मुल मोमिनीन सैय्यदा आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया - या रसूलल्लाह ﷺ ! मौत को हममे से हर शख्स नागवार समझता है, मतलब ये था कि हक़ ता'ला से मुलाक़ात का ज़रिया तो मौत है और मौत हर शख्स को तब'अन नागवार है, तो गोया बिल वास्ता हक़ तआला से मुलाक़ात भी नागवार हुई _ , "*
*✪_इसके जवाब में आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि - आएशा ! ये मतलब नहीं, बल्की जब मोमिन की मौत का वक़्त आता है तो उसे हक़ ताला की रजा़मंदी और करामत की बशारत दी जाती है, तब उसके लिए इससे बढ कर कोई चीज़ मेहबूब नहीं रहती और वो हक़ ता'ला से मुलाक़ात का मुश्ताक हो जाता है और अल्लाह ताला भी उससे मुलाक़ात को पसंद करते हैं, और जब काफिर की मौत का वक़्त आता है तो उसे अल्लाह तआला के अजा़ब व सज़ा की खबर दी जाती है, उस वक़्त मौत और मौत के बाद की हालत से बढ़ कर उसके लिए कोई चीज़ नापसंदीदा और मकरूह नहीं होती, तब वो अल्लाह ताला से मुलाक़ात करने को नापसंद करता है और अल्लाह ता'ला भी उससे मुलाक़ात को पसंद नहीं फरमाते हैं _,"*
*"®_ सही बुखारी - 2/923_,"*
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*⊙:➻ मौत को याद रखो मगर मौत की तमन्ना ना करो _,*
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*✪__दूसरी बात ये कि हदीस पाक में मौत की तमन्ना से मुमा'नत फरमाई गई है, चुनांचे इरशाद है:- तुममें से कोई शख्स मौत की तमन्ना ना करे, क्यूंकी अगर वो नेकु कार है तो शायद वो अपनी नेकियों में इज़ाफ़ा कर सके और बदकार है तो मुमकिन है उसे तौबा और माफ़ी की तोफ़ीक़ हो जाए _,"*
*®_ सही बुखारी -2/1074)*
*✪__ एक और हदीस में है कि अल्लाह ताला से मौत ना मांगा करो और अगर सवाल करना ही हो तो यूं दुआ किया करो ... ऐ अल्लाह! मुझे जिंदा रखिए जब तक आपके इल्म में मेरे लिए जिंदगी बेहतर हो, और मुझे वफ़ात दिजिये जब आपके इल्म में मेरे लिए वफ़ात बेहतर हो _,"*
*®_ तिर्मिज़ी - 1/116)*
*✪__इसलिये मोमिन की शान ये होनी चाहिए कि वो हर दम मौत के लिए तैयार और हक़ ता'ला शानहू से मुलाक़ात का मुश्ताक़ रहे लेकिन मौत की दरख्वास्त ना करे, बल्की जिंदगी की जो मोहलत उसे मयस्सर है उसे गनीमत समझे, अपनी नेकियों में इज़ाफ़ा करे, और जो गुनाह सरज़द हुए उनसे तौबा इस्तग्फ़ार करता रहे, और जो हुकूक़ उसके ज़िम्मे वाजीबुल अदा हैं उनसे सुबुकदोश होने की फ़िक्र करे और जो हुकूक़ अब तक ज़ाया कर चुका है उनकी तलाफ़ी की कोशिश करे, ताकि जब भी बुलावा आए तो जाने के लिए बिल्कुल तैयार बेठा हो, हक़ ता'ला तोफीक़ अता फरमाये _,"*
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*⊙:➻ ये सोचो कि आज मेरी मौत का दिन है_,*
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*✪_ फरमाते हैं कि जब सुबह को उठो तो समझो कि आज मेरी मौत का वक़्त है, और गोया कि तुम मुर्दों में जा कर शामिल हो गए हो, नफ्स का इलाज हो जाएगा, सारी रिजा़लतो (शरारातो) का इलाज हो जाएगा लेकिन हमारे दिल में ये चीज नहीं बैठती है _,"*
*✪_ लतीफ़ा मशहूर है कि एक बुजुर्ग ने किसी से कहा था कि तुम 7 दिन में मर जाओगे, वो 7 दिन में नहीं मरा तो कहने लगा कि तुमने मुझे तो 7 दिन का कहा था, फरमाने लगे कि सात दिन में ही मरोगे, इसलिए कि दिन सिर्फ 7 ही होते हैं _,"*
*⊙:➻"_ मौत के इंतजार का क़िस्सा :-*
*✪__ जिस दिन मोलवी मुनीर अहमद साहब के वालिद माजिद का इंतका़ल हुआ, बहावल नगर में रात को फरमा रहे थे कि मैने अल्लाह ताला से दुआ की थी या अल्लाह! मेरी मौत दो शंबा (पीर) को हो, इसलिए के हुज़ूर ﷺ का विसाल दो शंबा को हुआ था, तो जबसे मगरिब की अज़ान हुई उस वक़्त से मुंतज़िर हो गए कि मलकुल मौत आया चाहता है, कहने लगे कि चार पाई मेरी क़िबला रुख कर दो और चश्मा लगाया और बच्चों से कहा कि किधर से आएगा फरिश्ता?*
*✪_ इसके मुंतज़िर बेठे है कि किधर से आएगा फरिश्ता ? फरिश्ते को देखने के लिए चश्मा लगा लिया, रात के 11 बजे मुझसे फरमा रहे थे कि आप जा कर सो जायें, मैंने अल्लाह तआला से दुआ की थी कि अल्लाह ताला मुझे दो शंबा की मौत नसीब फरमायें, अगर यही दो शंबा है तो वक़्त आ गया होगा, और अगर नहीं तो दो शंबे (यानी पीर का दिन) तय ही रहेगा _,"*
*✪__ सुबह फजर की अज़ान हो गई इसी इंतज़ार में हमने सारी रात गुजा़र दी, मौलाना अहमद साहब ने खुश हो कर कहा कि अब्बा जी! वो आपका दो शंबा तो गया, क्यूंकी वो खुश हो गए थे कि आज अब्बा जी नहीं मरते क्योंकी रात गुज़र गई, मगर वो बड़ी हसरत के साथ फरमाने लगे कि फ़िक्र ना करो, सूरज गुरुब ना होने दूंगा, दिन के 11 बजे इंतकाल हुआ, और यही वक़्त आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल का वक़्त था _,"*
*✪__ तो मेरे भाई।! हम सबने 7 दिनो में मरना है, क्योंकि हफ्ते में 7 ही दिन होते हैं, आठवा दिन नहीं होता, सुबह करो तो हमेशा ख्याल करो कि शायद आज ही का दिन मेरी मौत का दिन है, नफ़्स बेलगाम ना होगा _,"*
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*⊙:➻ मौत का फरिश्ता अब तुम्हारे पीछे हैं _,*
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*✪_"_ हज़रत मुजाहिद रह. फरमाते हैं कि :- हज़रत उस्मान बिन अफफ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु ने ख़ुतबा दिया, उसमे इरशाद फरमाया कि- ए इब्ने आदम! बेशक मौत का फरिश्ता जो तुम पर मुकर्रर किया गया है वो हमेशा तुझको छोड़ कर दूसरों के पास जाता रहा जबसे तू दुनिया में आया है, और बस यूं समझ ले कि अब वो दूसरों को छोड़ कर तेरे पास आने वाला है, और वो तेरे इरादे से चला है, लिहाज़ा अपने बचाव का सामान कर लो, इसकी तैयारी कर लो, गफलत न करो, इसलिये कि तुझसे गफलत नहीं की जा रही _,"*
*"_ इब्ने आदम ! तुझे मालूम होना चाहिए कि अगर तू अपनी ज़ात से गफ़लत करेगा और तैयारी नहीं करेगा तो दूसरा आदमी इसके लिए तैयारी नहीं करेगा, और अल्लाह तआला से मुलाक़ात बहरहाल ज़रूरी है, सो अपनी ज़ात के लिए हिस्सा ले और उसको दूसरो के सुपुर्द ना कर _,"*
*®_ कंजुल उम्माल - जिल्द -15, हदीस - 4279)*
*✪_"_ हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जबसे तुम पैदा हुए हो तुमने लोगों को मरते देखा है, मौत का फरिश्ता तुम पर भी मुकर्रर किया गया है, लेकिन वो तुझको छोड़ कर दूसरों के पास जाता रहा लेकिन ऐसा लग रहा है कि अब तुम्हारा नंबर आ गया, अब दूसरों को छोड़ कर तुम्हारे पास आएगा मतलब ये कि फरिश्ते का आना किसी वक्त भी मुतवक़के़ है, जो दूसरों के पास जा सकता है, वो तुम्हारे पास भी आ सकता है और जब उसका आना हतमी ( पक्का ) और लाज़मी ठहरा तो तुम्हें अपनी तैयारी करनी चाहिए, अपना बोरिया बिस्तर तैयार रखो ताकी जब मौत का फरिश्ता तुम्हारे पास आए तो चल पडो, और इससे गाफिल नहीं रहना चाहिए _,"*
*✪_"_ एक हदीस शरीफ में चंद नसीहतें फरमाई गई हैं, उनमे से एक नसीहत ये भी है :-*
*"_ जब तुम नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े हो तो यूं समझो कि बस अब ये तुम्हारी आखिरी नमाज़ है (जितनी बना संवार के पढ़ सकते हो पढ़ लो)_,"*
*®_ मिश्कात - 245,*
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*⊙:➻ क्या तीजे, दसवें, चालीसवें और कुरान ख्वानी से तेरी मग्फिरत हो जाएगी ? _,*
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*✪__ क्या ख्याल है कि बाद वाले तीसरे दिन या कुल शरीफ करवा कर तुम्हारी बख्शीश करवा लेंगे ? तुमने कुरान मजीद जिंदगी में कभी खत्म नहीं किया, और ना रोज़ाना तिलावत की लेकिन मौत के दिन या तीसरे दिन तुम्हारे लिए क़ुरान करीम खत्म करवा के तुम समझते हो कि तुम्हारा क़र्ज़ अदा हो जाएगा ? भले आदमी हमने अपने लिए कुछ नहीं किया तो दूसरा तुम्हारे लिए क्या करेगा? अगर तुम अपने लिए कुछ नहीं करोगे तो दूसरा तुम्हारे लिए कुछ नहीं करेगा, और तुम्हें नज़र आता है कि ये लोग तीजा दसवा चालीसवां करते हैं, इससे बख्शीश हो जाएगी, नहीं भाई! ये तो महज़ रस्में हैं_,"*
*✪_ "_ कुरान ख्वानी का हाल: लोग कहते हैं कि जी कुरान ख्वानी करवानी है, कुरान ख्वानी का मा'नी है कुरान पढ़ना, पढ़ना आता भी है कि नहीं ? पूछ लो इनसे कि तुम्हें कुरान पढ़ना आता भी है ? अपने ख्याल और अपने अंदाज़ से कुरान पढते हैं, लेकिन कभी कुरान पढ़ा और सीखा भी तो हो तो पढ़ना आए, यही वजह है के कुरान ख्वानी वाले एक सफे को दो आदमी पढ़ने लगते हैं, एक इधर से एक उधर से, मेरे भाई ! यह तिलावत है या तिलावत का धोखा?*
*✪_ "_ याद रखो अल्लाह तआला धोको में नहीं आते और अगर हम तुम्हें कहते हैं कि भाई अक़ल की बात करो, समझ की बात करो, तरीक़े की बात करो तो फिर कहते हो कि हमें रोकते हैं ! हम तुमको नहीं रुकते भाई! तुम करो जो चाहो लेकिन ये मालूम होना चाहिए कि तुम्हारा तर्जे अमल ग़लत है, कभी हाफिजो़ को बिठा लेते हैं और उन्हें उज़रत देते हैं, उजरत ले कर क़ुरान मजीद का पढ़ना, इसका तो सवाब ही नहीं मिलता, दो चार दिन ये रस्मी बात करते हैं, कुल कर लिया, तीजा दसवां कर लिया, चालीसवां कर लिया, फिर साल बा साल बरसी पर याद आ गए, फिर भी एक आध प्रोग्राम कर लिया और दोस्त अहबाब को इकट्ठा कर लिया और खाना खिला दिया तो गोया मरने वाले का सारा फ़र्ज़ हमने अदा कर लिया, जिस शख़्स की साठ साल या सत्तर साल की उमर हुई है क्या उसके ज़िम्मे अल्लाह तआला का बस इतना ही फ़र्ज़ था? और क्या वो इन रस्मों से अदा हो गया?*
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*⊙:➻आखिरत की तैयारी क्या है ? _,*
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*✪__ तो भाई ! अपने लिए खुद तैयारी करो, गफलत ना करो, आप पुछेंगे कि तैयारी क्या है ...? क्या तैयारी करें ? भाई! जिन लोगों के हुक़ूक़ व फराइज़ तुम्हारे ज़िम्मे हैं उनका जायज़ा लो और अदा नहीं किया तो अदा करो, फ़राइज़ को ज़ाया किया है तो अल्लाह ताला से तौबा करो, और आइंदा के लिए उन फ़राइज़ को ज़ाया ना करने का अहद करो, अगर नमाज़ नहीं पढ़ी थी तो नमाज़ो की क़ज़ा करो, रोज़े नहीं रखे तो रोज़े रखो, पिछले सालों की जकात अदा नहीं की तो हिसाब लगा कर उसे अदा करो, हज नहीं किया से हज करो, किसी से रिश्वत ली है, किसी की कोई चीज़ क़ब्जा की है, किसी के माली हुकूक़ दबाये है उससे माफ कराओ या उसको अदा करो _,'*
*☞ __ आखिरत का मुफलिस :-*
*✪_ रसूलुल्लाह ﷺ का इरशाद गिरामी है :- जानते हो मुफलिस कोन है? अर्ज़ किया गया - हम तो मुफलिस उसे कहते हैं कि जिसके पास रुपया पैसा नहीं होता ! फरमाया - नहीं ! मेरी उम्मत का मुफलिस आदमी वो है जो नमाज़ रोजा, ज़कात वगेरा और बहुत सारी नेकियां ले कर आए लेकिन किसी का माल खाया था, किसी की बे आबरूई की थी, किसी को गाली दी थी, उसका नाहक़ माल खाया था, उसका नाहक़ ख़ून बहाया था और उसको मारा था, वगैरह, बस उसकी नेकियों से उन अरबाबे हुक़ूक़ के हुक़ूक़ अदा किए जाएंगे और कहा जाएगा कि नमाज़ वो ले जाएं, रोज़े ये ले जाएं, ज़कात ये ले जाएं, गर्ज़ ये कि सारी उसकी नेकियां अहले हुक़ूक़ ले जाएंगे और यह खाली खड़ा रह जाएगा, फिर उसके हुक़ूक़ अगर नेकियों से पूरे हो गए तो ठीक और ना हुए तो फिर अहले हुकूक के गुनाह ले कर उस पर डाल दिए जाएंगे और उसे ओंधे मुंह दोजख में डाल दिया जाएगा (ये है मेरी उम्मत का मुफलिस!)*
*®_ मिश्कात -425,*
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*⊙:➻ अपने और दूसरों के लिए भी आखिरत का सामान करें_,*
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*✪__ हमारी हालत ये है कि हमारे ज़िम्मे अल्लाह तआला के जो हुकूक़ है उनसे गफ़लत, बंदों के जो हुक़ूक़ है उनसे गफ़लत, गर्ज़ गफ़लत ही गफ़लत है और इसकी फ़िक्र ही नहीं और आगे क्या क्या मंजिलें पेश आने वाली है? हमें तो मरने से पहले की ज़िंदगी की फ़िक्र खाए जाती है और सताए जाती है कि मेंहगाई बहुत हो गई, बच्चे क्या खाएंगे ? क्या करेंगे? क्या नहीं करेंगे? जिंदगी कैसे गुजारेंगे? अरे भाई ! यह तो गुज़र ही जाएगी, जैसे तैसे गुज़र ही जाएगी, लेकिन मरने के बाद जो ज़िंदगी शुरू होने वाली है उसके लिए क्या होगा? हमें इसकी फ़िक्र करनी चाहिए!!*
*✪__ मोमिन आदमी को दूसरे के लिए भी सामान करना होगा, दुआ इस्तगफ़ार, इसाले सवाब करना होगा, हमारे हज़रत डॉक्टर अब्दुल हई आरीफ़ी क़ुद्दुस साहब फरमाते हैं कि - औलाद के ज़िम्मे हक़ है कि वो हर आठवें दिन अपने माँ बाप की क़ब्र पर जाये, वालदेन की क़ब्र की ज़ियारत करे, उनके लिए इसाले सवाब करे, कुछ पढ़ कर बख्शे, तमाम अहले ईमान के लिए बख़्शीश की दुआ करे और जितने मुसलमान मर्द और औरतें ज़िंदा है' उनके ईमान की सलामती के लिए दुआ करें कि या अल्लाह! ईमान सलामत रख, खात्मा बिल खैर फरमा _,"*
*✪__ हम लोग तो अपनी ही तैयारी से गाफिल हैं, दूसरो के लिए क्या तैयारी करेंगे ? दूसरों के लिए तैयारी भी दरअसल अपने लिए हैं, इसलिय कि जब तुम दूसरो के लिए मांगेंगे तो अल्लाह त'आला तुम्हे पहले अता फरमायेंगे, दूसरो के लिए माफ़ी माँगोगे तो तुम्हें अल्लाह तआला पहले भलाई अता फरमायेंगे _,"*
*✪__ इसलिये कि मसला है कि... मगफिरत और बख्शीश की दुआ करनी हो तो यूं कहा जाए :- या अल्लाह ! मेरी बख्शीश फरमा और ईमान वाले मर्दों और औरतों की बख्शीश फरमा_," इस मुख्तसर से फ़िक़रे में गोया तमाम अहले ईमान और पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए, जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से चले आ रहे हैं और क़यामत तक आएंगे, सबके लिए दुआ हो गई _,"*
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*⊙:➻ _अल्लाह ता'ला से मुलाक़ात का हाल _,*
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*✪_"_ फरमाते हैं कि अल्लाह तआला से मुलाक़ात तो लाज़मी है ! मरने के बाद अल्लाह ता'ला के सामने जाना है, कोई रोशन चेहरा ले कर जाए और कोई नाउज़ुबिल्लाह मुंह काला कर के जाए, अल्लाह ताला की पनाह बहर हाल जाना है और बारगाहे खुदावंदी में हाजरी लाज़िम है, हदीस शरीफ में फरमाया गया है कि :-*
*✪_"_ लेकिन जब मोमिन की वफ़ात का वक़्त क़रीब आता है तो उसके पास अल्लाह तआला की जानिब से एक ख़ुश ख़बरी सुनाने वाला फरिश्ता हाज़िर होता है, और जो कुछ अल्लाह तआला के यहाँ उसका ऐज़ाज़ व इकराम होने वाला है उससे आगाह करता है, तो उसके नज़दीक अल्लाह से मुलाक़ात से ज़्यादा कोई चीज़ मेहबूब नहीं होती, पस वो अल्लाह से मुलाक़ात को पसंद करता है और अल्लाह तआला उसकी मुलाक़ात को पसंद करते हैं _,"*
*✪_"_ रहा फासिक व फाजिर! जब उसकी मौत का वक्त क़रीब आता है तो उसके पास भी एक फरिश्ता आता है जो वो सब कुछ बताता है जो उसके साथ बुरा सुलूक होने वाला है, तो वो अल्लाह की मुलाक़ात को ना-पसंद करता है और अल्लाह तआला भी उसकी मुलाक़ात को नापसंद करते हैं _,"*
*®_ कंजुल उम्माल - जिल्द -15, हदीस - 42198)*
*✪_"_ यानी नेक आदमी की अल्लाह तआला की बारगाह में हाज़री ऐसी होती है जेसे कि कोई आदमी अपने वतन से दूर था, बिछड़ा हुआ था, एक अरसे के बाद अपने घर में आया, जिस तरह उसे अपने घर वाले और अहलो अयाल से मिल कर खुशी होती है, उसी तरह उसे अल्लाह तआला से मिल कर खुशी होती है और अल्लाह ताला को उससे मिल कर भी उतनी ही खुशी होती है, और बदकार और बुरे आदमी की हाज़री की मिसाल ऐसी है जेसे कोई भगोड़ा गुलाम था, भाग गया था, आक़ा ने आदमी दौड़ाए और काफ़ी मुद्दत तक वो परेशान करता रहा लेकिन आख़िरकार वो पकड़ा गया और उसे पकड़ कर आक़ा की ख़िदमत में लाया गया, तो जिस तरह उसे अपने आक़ा के सामने सज़ा के खौफ से जाते हुए डर लगता है, फाजिर भी ऐसे ही मुलाक़ात ए इलाही से घबराता है, तब अल्लाह तआला भी उसकी मुलाक़ात को नापसंद करते हैं_,"*
*✪_"_ अब तुम देखो कि अल्लाह तआला के सामने तुम्हारी हाज़री केसे होने वाली है? इसका जायज़ा लेते रहो, फरमाते हैं कि अल्लाह तआला से मुलाक़ात तो ज़रूरी है, लिहाज़ा तुम अपनी जा़त के लिए तोशा तो तैयार कर लो, और उस तोशा की तैयारी को दूसरों के सुपुर्द ना करो, इसलिये कि तुम अपना तोशा खुद ही बाँधोगे तुम्हारा तोशा दूसरे नहीं बाँधेंगे _,"*
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*⊙:➻ नज़ा का मरहला _,*
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*✪_ मौत के वक्त कौन कौनसी सख्तियां आती हैं ? और कौन कौनसी चीज़े ऐसी हैं जो आदमी के नज़े को आसान कर देती है? सब आन हजरत ﷺ ने बयान फरमा दी है:-*
*☞ _ मां की बे अदबी करने वाले नोजवान की वाकि़या:-*
*✪__ एक बार आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में शिकायत की गई कि एक नोजवान तीन दिनों से नज़ा की हालत में है, उसकी जान नहीं निकल रही, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां तशरीफ ले गए, ये नोजवान तकलीफ में था, उसको देख कर इरशाद फरमाया- इसके मां बाप जिंदा है? अर्ज़ किया गया कि: इसकी मां जिंदा है! फरमाया कि उसको बुलाओ, उसकी वाल्दा आई तो उससे फरमाया - बड़ी बी! इस लड़के ने तुम्हारे साथ कोई गुस्ताखी तो नहीं की? कोई बे अदबी तो नहीं की? कहा नहीं ! ये बड़ा फरमा बरदार था, अलबत्ता एक दफा इसने मेरे थप्पड़ मारा था _,"*
*✪_ "_ (बहुत से बद बख्त मुजी़ ऐसे हैं जो अपने मां बाप को मारते हैं, उनको गालियां देते हैं, हुजूर ﷺ के ज़माने में कोई शख्स अपने मां बाप पर हाथ उठाये ?) आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि - बड़ी बी ! तुम अपने बेटे को अल्लाह की रज़ा के लिए माफ़ कर दो ! कहने लगी मैं तो माफ़ नहीं करूंगी क्योंकि मुझे इससे बहुत सदमा है, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम से फरमाया- लकडिय़ां जमा करो! वो मां कहती है कि लकड़ियों का क्या करेंगे? फरमाया- तेरे बेटे को जलाएंगे, कहने लगी- हाय! मेरे बेटे को जलाएंगे? फरमाया- अगर तुम इसे माफ नहीं करोगी तो अल्लाह ताला इसे जलाएंगे, और हमारा जलाना आसान है और अल्लाह ता'ला का जलाना सख्त है, वो अम्मा फिर कहने लगी कि - मैं इसे दिल से माफ करती हूं! आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस नोजवान को फरमाया कि- पढ़ कलमा! उसने कलमा पढ़ा और रूह परवाज़ कर गई _,"*
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*⊙:➻ _मोमिन की रूह असानी से निकल जाती है _,*
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*✪_"_हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है कि: - नेक आदमी की रूह ऐसे निकल जाती है जैसे मशकीज़ा से कतरा गिरता है, और फरमाया कि बुरे आदमी की रूह इस तरह निकलती है जैसे धूनी हुई रूई हो और कांटेदार छड़ी गीली करके उसके ऊपर मारी जाए और फिर पीट कर के उसे खींचा जाए, अब वो छड़ी तो उस रूई से जुदा नहीं हो सकती _,"*
*✪_"_ यही हाल बुरे आदमी के नज़े का है, उसके रग व रेशे में रूह सरायत कर जाती है, एक एक रोंगटे में छुपने की कोशिश करती है, उसे खीचते हैं तो एक एक रोंगटे को तकलीफ होती है "*
*✪_"_ या अल्लाह! हमारे लिए नज़ा को आसान फरमा दे, बहुत से अल्लाह के बंदे ऐसे हैं जिनके लिए अल्लाह ता'ला उस वक्त को आसान फरमा देते हैं (अल्लाह तआला हमारे लिए भी उस वक्त को आसान फरमाये, ईमान पर खातमा फरमाये और नज़े को आसान फरमाये, आमीन )*
*✪_"_ और बहुत से बंदे ऐसे हैं कि नज़े के वक़्त उनकी सारी उमर की लज्ज़तें खतम हो जाती है, अल्लाह तआला इससे पनाह में रखे _,"*
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*⊙:➻ _मौत की सख्ती को याद रखना _,*
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*✪__ ये मौत का प्याला इतना कड़वा है कि इसकी तल्खी बाज़ लोगों को हशर तक बाक़ी रहेगी, अल्लाह ताआला पनाह में रखे, हम ज़िंदगी गुज़ारते हुए इस तरह गाफ़िल हो जाते हैं कि कभी ये ख्याल भी नहीं आता कि इसका असर हमारी मौत पर तो नहीं वाक़े होगा?*
*✪_"_ दुनिया में दोस्ती करते हुए, दुनिया में मामलात करते हुए, दुनिया में नक़ल हरकत करते हुए, छुप कर या इलानिया गुनाह करते हुए, हम इस बात से गाफिल होते हैं कि इसका अंजाम मौत के वक़्त क्या होगा ? मरने वाले को लोग कलमा की तलकीन कर रहे हैं, यानि इर्द गिर्द बेठे लोग उसे कलमे की तलकी़न करते हैं लेकिन किसी को पता नहीं कि वो कहां फंसा हुआ होता है?*
*☞ _ शेख अतार रहमतुल्लाहि अलैहि का वाक़िया :-*
*✪_"_ शेख अतार रह. बहुत बड़े बुज़ुर्ग हुए हैं, दवा फ़रोश और पंसारी थे, एक मर्तबा एक शख्स उनकी दुकान पर आया, कांधे के ऊपर गोदड़ी रखी हुई थी, कभी इधर देखता और कभी उधर देखता, शेख अतार उससे फरमाते हैं कि मियां! क्या देखता है? कहने लगा कि मैं देखता हूं कि जो रूह इतनी शीशियों में फंसी हुई है, ये केसे निकलेगी ?*
*✪_"_ शेख उस वक़्त दुनियादार आदमी थे, अल्लाह ने उनकी हिदायत के लिए उन साहब को भेजा था, बिठा कर कहने लगे कि जेसे तेरी निकल जाएगी! उसने कांधे पर रखी हुई गोदड़ी बिछाई, लेट गया और कहा कि हमारी तो यूं निकल जाएगी ! एक लम्हा में रुखसत हो गया, शेख पर इस वाक़िए का ऐसा असर हुआ कि दुकान लुटा दी और अल्लाह ताला के रास्ते की तलाश में निकल खड़े हुए, बाद में अल्लाह ताआला ने उनको बड़े मरतबे अता फरमाये _,"*
*✪_"_ बहार हाल इंसान पर मौत के मरहले के बाद क़ब्र का मरहला आता है और अक़लमद है वो शख्स जो अगले मराहिल की तैयारी कर के जाए _,"*
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*⊙:➻_सबसे बड़ी दानाई _,*
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*✪"_ हज़रत हसन रह. फरमाते हैं कि हज़रत उस्मान बिन अफफ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु ने लोगो को ख़ुतबा दिया और अल्लाह ताला की हम्द व सना के बाद फरमाया - लोगो! अल्लाह से डरो! क्यूंकी अल्लाह ता'ला से डरना गनीमत की चीज़ है, और सबसे होशियार और दाना आदमी वो है जो अपने नफ्स को अल्लाह ताला के अहकाम का पबंद करे और मौत के बाद की जिंदगी के लिए अमल करे, और क़ब्र के अंधेरे के लिए अल्लाह ता'ला के नूर में से कुछ नूर हासिल कर ले _,"*
*✪_"_ बंदे को इससे डरना चाहिए कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला उसे अंधा उठाए हालांकी वो देखने वाला था, हकीम और दाना आदमी के लिए चंद मुख्तसर कलमात काफ़ी है, और बेहरा तो यूं लगता है वो सुनता नहीं है, ख़ूब जान लो! कि जिस शख्स के साथ अल्लाह हो, वो किसी चीज़ से नहीं डरता और अल्लाह ताला जिस शख्स के मुक़ाबले में हो वो फिर इसके बाद किस से उम्मीद रखेगा?*
*®_ (कंजुल उम्माल -16/44251)*
*✪_"_ दूसरी रिवायत में फरमाया के लोगो! अल्लाह ताला से डरो, तक़वा अख्त्यार करो इसलिये कि अल्लाह ता'ला से डरना गनीमत है _,"*
*✪_"_ हदीस शरीफ़ में फरमाया है कि: सबसे ऊंची हिकमत और हिकमत का सिला हिकमत की चोटी अल्लाह से डरना है, जो शख्स अल्लाह तआला से नहीं डरता उसमे हिकमत नहीं है, और यही बुनियाद है तमाम नेक आमाल की और तमाम बुरे आमाल से बचने की _,"*
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*⊙:➻ अज़ाबे क़ब्र का खौफ़_",*
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*✪_ "_ हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से मिश्कात शरीफ़ में हदीस है कि:- हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु कभी कभी क़ब्रिस्तान जाते तो इतना रोते के ढाडी मुबारक तर हो जाती, अर्ज़ किया गया कि हज़रत ! आप जन्नत और दोज़ख का तज़किरा करते हैं तो इतना नहीं रोते जितना कि क़ब्र को देख कर रोते हैं?*
*"_ इरशाद फरमाया :- मैने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम को ये फरमाते हुए सुना है कि क़ब्र आखिरत की मंज़िलो में से पहली मंजिल है, जो शख्स यहां निजात पा गया वो इंशा अल्लाह आगे भी निजात पा जाएगा, जो यहीं फंस गया उससे आगे की क्या तवक्को़ है, उसके बारे में क्या तवक्को़ है?*
*®_ (मिश्कात शरीफ-22)*
*✪_ "_ ये तो पहली मंजिल है, क़ब्र से ले कर जन्नत तक बरज़ख का फासला, क़यामत से पहले पहले का फासला और क़यामत के दिन का पचास हज़ार साल का फासला और खुदा जाने इसमे कितनी मंजिल आने वाली हैं, क्या क्या हालात पेश आने वाले हैं, जो गरीब पहले मरहले में पकड़ा गया वो आगे क्या करेगा? हक़ ताला शान्हू हमारी हिफाज़त फरमाये, अल्लाह तआला हम सबकी कब्रों को मुनव्वर फरमाये, क़ब्र के आजा़ब से और जो चीज़ अज़ाबे क़ब्र को साबित करने वाली हैं, अल्लाह तआला हम उनसे बचाए, आमीन _,"*
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*⊙:➻ _आज़ाबे क़ब्र के असबाब _,*
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*✪_"_ अज़ाबे क़ब्र के मुताल्लिक़ एक दूसरी हदीस शरीफ़ के अल्फाज़ ये हैं:-*
*"_ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ ले जा रहे थे, फरमाया - ये दो क़ब्रें हैं, दोनों कबर वालो को अज़ाब हो रहा है, किसी बड़ी बात पर इन्हें अजा़ब नहीं हो रहा है, इनमे से एक चुगल खोरी किया करता था _,"*
*(आपकी बात मेरे पास आ कर लगाई और मेरी बात आपके पास जा कर लगाई, ये बीमारी आम हो गई है, जेसे ताऊन की शक्ल अख्त्यार कर गई है, वबाई शक्ल चुगल खोरी करना और गीबत करना ये चीजें मोजिबे अज़ाबे क़ब्र है)*
*"_ ये दूसरा आदमी पेशाब से अहतयात नहीं करता था _,"*
*®_ बुखारी - 1840,*
*✪__ ये जितने पेंट पहनने वाले हैं, सब ऐसे ही हैं, इनको ना इस्तंजे की जरूरत पेश आती है, ना ढेले की, खड़े हो कर पेशाब कर लेते हैं और फिर यूं ही फोरन बंद कर लेते हैं, तो जिन दो आदमियों पर अज़ाब हो रहा था उनमे एक तो पेशाब के छींटो से अहतयात नहीं करता था, पेशाब आदमी का हो या जानवरों का, इससे अहतयात लाज़मी है _,"*
*✪__ और दूसरा लगाई बुझाई करता था, यानी इधर की उधर, और उधर की इधर पहुंचा कर चुगल खोरी करता था, ये बड़ा जुर्म है, इससे अहतयात करो कि ये अज़ाबे क़ब्र का मोजिब है _,"*
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*⊙:➻क़ब्र जन्नत का बागीचा या जहन्नम का गढ़ा है _,*
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*✪_"इसके बाद हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया - "_ कब्र जन्नत के बागीचों में से एक बागीचा है, या दोज़ख के गढ़ो में से एक गढ़ा है _,"*
*✪_" नाउज़ुबिल्लाह सुममा नाउज़ुबिल्लाह ! अल्लाह ता'ला हमारी क़ब्रो को जन्नत के बागीचों में से एक बागीचा बनाये, दोज़ख के गढ़ो में से गढ़ा ना बनाए _,"*
*☞ _ "अज़ाबे क़ब्र का सवाल हिमाकत है :-*
*✪_"आज कल बेवकूफ लोग ये पूंछते फिरते हैं कि क़ब्र में अजा़ब होता भी है ? अल्लाह के बंदो ! तुम किस चक्कर में पड़ गए हो ? शैतान ने तुमको किस चक्कर में डाल दिया है ? तुमको रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बात पर ऐतबार नहीं रहा ?*
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*⊙:➻ _शुक्र करो कि अज़ाबे क़ब्र सुनाई नहीं देता _,*
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*✪_ "_ कहते हैं कि हमें सुनाई क्यों नहीं देता? ये उस महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वजाहत के तुफेल है कि अज़ाबे क़ब्र सुनाई नहीं देता, क्यूंकी आन हज़रत ﷺ ने फरमाया कि तुमसे बन ना पड़ती तुम्हारी ज़िंदगी अजीरन हो जाती, अगर तुम क़ब्र का आजा़ब सुन लेते _,"*
*✪_ "_ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:- अगर मुझे ये अन्देशा न होता कि तुम अपने मुर्दों को क़ब्रो में दफन करना छोड़ दोगे तो मैं अल्लाह तआला से दुआ करता कि तुम्हें सुना दे जो मैं सुनता हूं _,"*
*®_ मिश्कात - 25,*
*✪_ "_ क़ब्र का अज़ाब जो क़ब्रिस्तान में हो रहा है, अगर तुम्हें सुनाई देता तो तुम्हें क़ब्रिस्तान में क़दम रखने की जुर्रत न होती, ये उस महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तुफेल है कि अल्लाह ता'ला ने परदा डाल ल दिया, इस पर शुक्र करने के बजाये उल्टा कहते हैं कि हमें सुनाई क्यों नहीं देता ? शीशे के मकान में आदमी बंद हो तो आवाज़ आगे नहीं जाती, वो उधर से सुन रहा है, देख रहा है, मगर आवाज़ नहीं पहुंचा सकता, तुम्हारा ये शीशा आवाज़ रोक देता है _,"*
*✪_ "_ तो अगर अल्लाह तआला ने बरज़ख का पर्दा डाल दिया है और वो रोक रहा है तो तुम्हें क्यो ताज्जुब हो रहा है ? थोड़ा वक्त है, तुम पर भी ये मरहला आयेगा, फिर अच्छी तरह तजुर्बा कर लेना, यहां तुम रसूलुल्लाह ﷺ के कहने से नहीं मानते तो तजुर्बा हो जाएगा, फ़िक्र ना करो, इसमे जल्दी की क्या बात है? बल्कि फ़िक्र इसकी तैयारी की करो, वहां सिर्फ नेक आमाल ही काम आएंगे _,"*
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*⊙:➻ _कब्र में सिर्फ नेक आमाल ही काम आएंगे _,*
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*✪_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने एक दिन अपने सहाबा से फरमाया: जानते हो तुम्हारी मिसाल और तुम्हारे अहल व माल और अमल की मिसाल क्या है? अर्ज़ किया अल्लाह ता'ला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बेहतर जानते हैं ? फरमाया - तुम मे से एक की मिसाल और उसके माल और आल व औलाद और अमल की मिसाल ऐसी है कि एक आदमी के तीन भाई थे, जब उसकी वफात का वक्त आया तो उसने एक भाई को बुलाया और कहा कि मुझ पर जो हालत तारी है, वो तुम देख रहे हो, बताओ! तुम मेरे लिए क्या कर सकते हैं?*
*"_उसने कहा कि मै ये कर सकता हूं कि तेरी तीमारदारी करुं और तेरी जो हालत है उस पर दिन रात खड़ा रहूं, जब तू मर जाए तो तुझे गुस्ल दूं, कफन पहनाऊं और उठाने वालों के साथ तुझे उठाऊं कभी उठाऊं और कभी कांधा हटा दूं, और जब मैं तुझे दफन कर के वापस आ जाऊं तो लोगों के सामने तेरी तारीफ करुं, जो भी मुझसे तेरे बारे में पुछे (ये भाई उसके घर के लोग यानी बीवी और बच्चें हैं)_,*
*✪_(आप ﷺ ने सहाबा से सवाल किया कि) तुम इस भाई के बारे में क्या राय रखते हो? उन्होन कहा - या रसूलल्लाह ﷺ! हम नहीं सुनते कोई ऐसी चीज़ जिसमें कोई मुन'फत (नफा) हो ! आप ﷺ ने इरशाद फरमाया - फिर वो अपने दूसरे भाई के बारे में कहता है कि: मुझ पर जो हालत आई है, तुम देख रहे हो, बताओ तुम मेरे लिए क्या कर सकते हैं? वो कहता है कि - तुम्हारे लिए मेरे पास कोई काम की चीज़ नहीं, मगर जब तक तुम जिंदों में शूमार होते हो, जब तुम मर जाओगे तो तुम्हारा रास्ता दूसरा होगा, मेरा रास्ता दूसरा!*
*✪_(आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया) ये उसका दूसरा भाई है, जिसको माल कहते हैं, बताओ! तुम इसे केसा देखते हो? सहाबा ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह ! कुछ काम का नहीं ! फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वो तीसरे भाई से कहता है कि मुझ पर जो हादसा नाज़िल हुआ है और मेरे अहले खाना ने और मेरे माल ने जो जवाब दिया है वो तुमने सुन लिया है, तुम बताओ कि तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो? वो कहता है कि: - मैं तेरा रफ़ीक रहूँगा तेरी लहद मे, तेरा मोनिस और गम ख़्वार रहूँगा, तेरी वहशत में, और मैं बेठ जाउंगा वज़न के दिन तेरे तराज़ू में (और तेरे तराज़ू को भारी कर दूंगा)_,"*
*✪_ (आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया) ये उसका वो भाई है जिसको अमल कहते हैं, इसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? सहाबा ने अर्ज़ किया कि - या रसूलल्लाह ﷺ! बहुत ही अच्छा भाई है और बहुत ही अच्छा रफ़ीक़ है ! फरमाया कि - फिर मामला यूं ही है _,"*
*®_(कंजुल उम्माल - जिल्द 15, हदीस 42981)*
*✪__ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि आन हज़रत ﷺ का इरशाद सुन कर हज़रत अब्दुल्ला बिन कुर्ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु खड़े हो गए, कहने लगे:- या रसूलल्लाह ! क्या आप मुझे इज़ाज़त देंगे कि मैं इस पर कुछ अश'आर बना कर पेश करुं? आप ने फरमाया - ज़रूर! वो चले गए, एक रात रहे, दोबारा वापस हुज़ूर की ख़िदमत में आए और आपके सामने खड़े हो गए, लोग भी जमा हो गए, उन्होन नज़्म पढ़ी: - (तर्जुमा)_बेशक मैं और मेरे अहले खाना और वो अमल जो आगे भेजा उसकी मिसाल ऐसी है कि एक शख्स अपने रफ्का़ को बुलाए फिर वो कहे अपने तीन भाईयों से कि आज जो हाल मुझ पर पेश आया है, उसमे मेरी मदद करो ! तवील जुदाई है और आइंदा का कुछ मालूम नहीं कि मेरे साथ क्या होगा ? अब जो हवादिस मेरे सामने पेश आने वाले हैं, बताओ! कि तुम्हारे पास इसका क्या इलाज है?*
*✪_"_ उनमे से एक ने कहा - मैं तेरा रफीक़ हूं, तेरी इता'त करुंगा, और तू जो भी कहेगा, लेकिन मौत आने से पहले पहले, जब हुदाई वाके़ हो जाए तो हमारे दर्मियान जो दोस्ती है वो ख़तम, जो कुछ लेना चाहता है मुझसे इस वक्त ले सकता है, क्योंकि तेरा जब इंतका़ल हो जाएगा तो मुझे कोई दूसरे रास्ते में ले जाएगा, अगर तू मुझे बाक़ी रखना चाहता है तो बाक़ी ना रख, बल्कि मुझे ख़र्च कर दे, और जल्दी कर, मौत के आने से पहले पहले मुझे खर्च कर दे _,"*
*✪__ एक ने कहा - मैं तुमसे बहुत मोहब्बत करता हूं, और लोगो के दर्मियान जब मुक़ाबला होता है मैं तुम्हे तरजीह देता हूं, मेरी खिदमत ये है कि मैं तेरे लिए दिन रात खैर ख्वाही और मेहनत करुंगा, जो बीमारी और परेशानी हो, लेकिन जब तू मर जाएगा तो तेरे ऊपर रोऊंगा और बीन करुंगा, कोई तेरा नाम लेगा तो उसके सामने तेरी तारीफ करुंगा, जो तुझे रूखसत करने जाएंगे मै उनके साथ जाउंगा और कंधा देने वालों में कंधा देने की मदद करुंगा, और मेरी ये खिदमत क़ब्र तक रहेगी जिसमे तू दाखिल किया जाएगा, जब तू अपनी कब्र में चला जाएगा तो मैं वापस आ जाऊंगा क्योंकि मेरे और बहुत सारे मशागिल हैं, और मै तुझे ऐसा छोड़ कर आ जाउंगा कि गोया मेरे दर्मियान और तेरे दर्मियान दोस्ती नहीं थी और ना कोई हुस्न मामला था, बस ! ये आदमी के घर के लोग हैं, बीवी बच्चे और ये उनकी खिदमत है, और ये चीज़ अगरचे वो कितने ही हरीस हों मुफीद नहीं है _,"*
*✪_"_ उनमे से एक ने कहा कि - मैं तेरा ऐसा भाई हुं कि मुझ जैसा भाई मसाइब के नाज़िल होने के वक़्त नहीं देखा होगा, तू क़ब्र में जाएगा तो वहां मुझे बैठा हुआ पायेगा, तुझसे मुनकर नकीर झगड़ा करेंगे तो मैं जवाब दूंगा, और वज़न के दिन मैं उस पलड़े में बेठ जाउंगा जिसमे तू होगा, और उस पलड़े को बोझिल करने की कोशिश करुंगा, सो तू मुझे भूल नहीं और मेरे मर्तबे को पहचान ले, इसलिए कि मैं तुझ पर शफीक़ हूं, तेरा खैर ख्वाह हूं, किसी वक्त तेरी मदद छोड़ने वाला नहीं हूं, बस ये भाई हर वो नेक अमल है जो तूने आगे भेजा तू उसको पाएगा, अगर तूने नेकी की, मुलाक़ात के दिन के लिए_,"*
*✪_"_ ये इरशाद सुन कर रसूलुल्लाह ﷺ रो पड़े और सहाबा किराम भी रोए, हज़रत अब्दुल्ला बिन कुर्ज़ रज़ियल्लाहु अन्हु जब भी सहाबा के किसी मजमे के पास से गुज़रते थे, वो हज़रात इनको बुलवाते और इनसे ये अश'आर पढ़वाते थे, जब ये शेर पढते तो सबके सब रो पड़ते _,"*
*®_ कंजुल उम्माल - जिल्द 15, हदीस -42981,*
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*⊙:➻ _इब्ने आदम का माल-बेवफा दोस्त _,*
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*✪_ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये हदीस (जो क़िस्त -25-26 में गुज़र चुकी) कहीं मुख्तसर और कहीं लंबी, बहुत सारी किताबो में मोजूद है, और इसमे आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आदमी के माल और उसके अहल व अयाल और उसके आमाले सालेहा की मिसाल बयान फरमाई है, इस मिसाल में आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये बात समझाई है कि सबसे ज्यादा बेवफा दोस्त माल है कि तुम्हारी ज़िंदगी में तो तुम्हारे काम का है लेकिन जब रूह बदन से अलग हो जाए तो दूसरे के पास चला जाता है, तुम्हारे पास रहता ही नहीं _,"*
*✪_ एक हदीस शरीफ में आन हज़रत ﷺ का इरशाद मरवी है :- आदम का बेटा कहता है कि - मेरा माल! मेरा माल! आदम के बच्चे! तेरे माल में से सिर्फ तेरा माल वही है जो तूने खा लिया और खा कर खत्म कर दिया, या तूने पहन लिया और पहन कर बोसीदा कर दिया, या तूने आगे भेज कर अपने लिए जमा कर लिया, और इन तीनो चीज़ों के अलावा बाक़ी जितना तेरा माल है तू उसे दूसरों के लिए छोड़ कर चला जाएगा, वो तेरा नहीं !*
*®_ मिश्कात -440,*
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*⊙:➻_अहल व अयाल क़ब्र में काम ना देंगे _,*
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*✪__ और अहल व अयाल के बारे में यूं फरमाया कि क़ब्र के किनारे तक साथ देते हैं, आदमी मरने वाला हो, मौत व हयात की कश्मकश में हो तो ये अपनी हद तक उसकी जान बचाने की कोशिश करते है' जो खिदमत ये कर सकते हैं उसके करने की कोशिश करते हैं, कभी किसी को नसीब है और किसी को नहीं, मर गया तो गुस्ल और कफन का इंतजा़म कर दिया और कांधे बदल बदल कर क़ब्र तक पहुंचा दिया, क़ब्र में लिटा कर ऊपर हज़ारो मन वज़न डल दिया, ताकी भाग न आए, चंद रोज़ रो धो लिए, कुछ अपनी रस्मों रिवाज के मुताबिक तक़रीबात कर लिए और कोई ताज़ियत के लिए आए तो उसके सामने तारीफें कर दी और बस ! अल्लाह अल्लाह! खैर सल्ला! क़िस्सा ख़तम, लेकिन क़ब्र में उस पर क्या गुज़र रही है? इसका किसी को कुछ मालूम नहीं! अकबर इलाहाबादी के बा-कौल:-*
*"_ हमें क्या जो तुरबत पर मेले रहेंगे ? तहे ख़ाक हम तो अकेले रहेंगे!*
*✪_ "_ बहुत से लोग ऐसा करते हैं कि कबर पक्की बना देते हैं, ऊपर मकबरा बना देते हैं, भला मुर्दे को इसका क्या फ़ायदा? क्या इससे उसकी मगफिरत हो जाएगी या उसे ठंड़क पहुंचेगी? उल्टा खिलाफे शरियत करने से अंदेशा तकलीफ है _,"*
*✪_ "_ एक रिवायत में है कि कहते हैं कि हजरत हसन बिन हसन बिन अली रह. का इंतका़ल हुआ तो उनकी अहलिया को बहुत सदमा हुआ और जा कर उनकी कब्र पर डेरा लगा दिया, लोगो ने बहुत मना किया मगर वो मानी नहीं, कहने लगी कि मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा, एक साल तक क़ब्र पर पड़ी रही फिर उठ कर चली गई, और उसने एक आवाज़ सुनी कि कोई कह रहा है कि क्या जिसको इन्होंने गुम पाया था क्या वो इनको मिल गया, दूसरे ने जवाब दिया, नहीं! बल्की मायूस हो कर लौट गए _," (मिश्कात-152)*
*✪_ "_ ये तुम्हारी आहो ज़ारी मय्यत के कुछ काम नहीं आएगी, इसलिये कि ये तुम अपने लिए करते हो, उसके लिए कुछ नहीं, ये तीजा और दसवां करो, चेहल्लम करो या बरसियां मनाओ ये सब कुछ तुम अपने लिए कर रहे हो, मरने वाले के लिए कुछ भी नहीं करते, रिवाज ये भी है कि बा क़ायदा शादी की तरह दावत करते हैं, तमाम अज़ीज़ो अक़ारिब को बुलाते हैं, बकरे काटे जाते हैं, बड़ी ठाठ की दावत करते हैं, गर्ज़ ये कि अहलो अयाल बन ठन कर के वहां आ गए, मय्यत किस हाल में हैं? उस पर क्या गुज़र रही है? उनकी वहां तक न रसाई है और न कोई उनकी खिदमत कर सकता है, उसके लिए तो अब मुश्किल शुरू हुई है, अब पता नहीं खत्म कब होगी _,"*
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*⊙:➻ क़ब्र की पुकार _,*
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*✪_"_ हदीस शरीफ़ में फरमाया है कि क़ब्र आदमी को रोज़ाना पुकारती है, तिर्मिज़ी शरीफ़ की ये हदीस है, क़ब्र कहती है :-*
*"_ मै तन्हाई का घर हूं, मै मिट्टी का घर हूं, मै कीड़ों का घर हूं _,"*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/29,*
*✪_"_ कहा जाता है कि क़ब्र रोज़ाना पांच मर्तबा पुकारती है, और तुम्हारे लिए रोज़ाना पांच ही नमाज़ें मुकर्रर की गई हैं, ताकी तुम आखिरी अत्तहियात में ये दुआ पढ़ो :-*
*➻"अल्लाहुम्मा इनी आउज़ुबिका मिनल कसली वल हरमी वल मासमी वल मगरमी वा मिन फ़ितनतिल क़बरी वा अज़ाबिल क़ब्री वा मिन फ़ितनतिन नारी वा मिन अज़ाबिन नारी वा मिन शररी फ़िनतिल ग़िना वा आउज़ुबिका मिन फ़ितनतिल क़बरी वा आउज़ुबिका मिन फ़ितनतिल मसीहिल दज्जाल ..,*
*➻"_ (तर्जुमा) ऐ अल्लाह! मै पनाह माँंगता हुं सुस्ती से, बुढ़ापे से, गुनाहों से, क़र्ज़ से, क़ब्र के फ़ितने से, क़ब्र के अज़ाब से, आग के फितने से, दोज़ख के अज़ाब से, मालदारी के फ़ितने के शर से, और मैं पनाह माँंगता हूँ तंगदस्ती के फ़ितने से और मै पनाह माँँगता हूँ काने दज्जाल के फ़ितने से _,"*
*®_ बुखारी -3/943,*
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*⊙:➻_अज़ाबे क़ब्र _______,*
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*✪_ "_ एक रिवायत में है:- हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:- एक दफा एक यहूदी औरत मेरे पास आई, उसने क़ब्र का ज़िक्र छेड दिया, फ़िर कहने लगी - अल्लाह ता'ला तुझे अज़ाबे क़ब्र से पनाह अता फरमाये (मैंने अज़ाबे क़ब्र की बात कभी नहीं सुनी थी, मैंने कहा - क्या अज़ाबे क़ब्र होता है?)*
*✪_ "_ आन हज़रत ﷺ घर तशरीफ़ लाए तो मैने क़ब्र के अज़ाब के बारे में पुछा, आप ﷺ ने फरमाया:- क़ब्र का अज़ाब बरहक़ है ! हज़रत आयशा रजियल्लाहु अन्हा इरशाद फरमाती है कि- उस वाक़िए के बाद मुझे याद नहीं कि आन हज़रत ﷺ ने कभी नमाज़ पढ़ी हो और उसमे अज़ाबे क़ब्र से पनाह ना माँंगी हो _,"*
*®_ मिश्कात-25_,"*
*✪_ "_ तो गर्ज़ ये कि उस दूसरे भाई और रफ़ीक से मुराद बीवी है, बच्चे हैं, अज़ीज़ो अक़ारिब हैं, दोस्त अहबाब हैं, ये मुर्दे को क़ब्र के सुपुर्द करके चले आए और आकर अपने अपने कामों में लग गए, उनका सबसे बड़ा करनामा ये है कि उस पर दो चार दिन आंसू बहा लेते हैं और कुछ लोगो के सामने उसकी तारीफ कर देते हैं कि बहुत अच्छा आदमी था _,"*
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*⊙:➻ मुर्दे की बेजा तारीफ पर अजा़ब_,*
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*✪_ बाज़ अवक़ात तारीफ़ भी गैर वाक़ई करते हैं, वाक़ई तारीफ़ नहीं करते, ये इतना कमाता था, इतना खाता था, ये करता था, वो करता था, हदीस शरीफ़ में आता है कि जब उसकी तारीफ करते हैं है और झूठी तारिफों के पुल बांधते हैं तो:- "अल्लाह तआला मरने वाले पर दो फरिश्ते मुक़र्रर कर देते हैं और वो दोनों मुर्दे को चोके देकर कहते हैं: तू ऐसा ही था?*
*®_ मिश्कात -152,*
*✪_"_ लीजिये अहलो अयाल, बीवी बच्चे और दोस्त अहबाब अब भी उस गरीब का पीछा नहीं छोडते, बल्की कहते हैं कि उसने घर के लिए ये ये चीज़ें खरीदी थी, टेलीविजन लाए थे, फलां फलां चीज़ें लाए थे, दुबई गए थे, बहुत बड़ी मशीन लाए थे और फलां फलां चीज़ ले कर आए थे, क़ब्र में इन चीज़ों को पुछेंगे, तारीफे तो करते हैं मगर ऐसी फिजूल व मुहमिल और बिलकुल लग्व, जिससे उस गरीब की तकलीफ में मजी़द इज़ाफ़ा हो जाता है,*
*✪_"_उनके मुंह से ये नहीं निकलता कि तहज्जुद की नमाज़ पढते थे, उनके मुंह से ये नहीं निकलता कि सहर के वक्त में अल्लाह ताला के सामने गिड़गिड़ाते थे, अल्लाह ताला के सामने रोया करते थे, किसी का हक़ नहीं मारता था, किसी के साथ ना इंसाफी नहीं करता था, फ़राइज़ शरई का पाबंद था, अल्लाह ताला का नेक बंदा था, ये बात उनके मुंह से नहीं निकलती _,"*
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*⊙:➻ मुर्दे की वाक़ई अच्छाइयां बयान करो:_,*
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*✪_"_ अगर ये बात करें तो उनकी ये बात करना और तारीफ करना अल्लाह ताला के यहां शहादत बन जाती है, वो मशहूर हदीस है:-*
*"_ हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास से एक जनाज़ा गुज़रा, फरमाया - वाजिब हो गई! एक और जनाज़ा गुज़रा, फरमाया - वाजिब हो गई!*
*"_ हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया - (या रसूलल्लाह ! दो जनाज़े गुज़रे, दोनो पर आपने फरमाया - वाजिब हो गई!) क्या वाजिब हो गई?*
*✪_"_ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया - पहला जनाज़ा गुज़रा तो तुम लोगों ने उसकी अच्छी तारीफ की कि ये बहुत अच्छा आदमी था, नेक आदमी था, मैंने कहा कि वाजिब हो गई, यानी जन्नत वाजिब हो गई और जब दूसरा जनाज़ा गुज़रा तो तुमने दूसरी क़िस्म की राय का इज़हार किया, मुनाफ़िक़ था, बड़ा ज़ालिम था, मैंने कहा कि - वाजिब हो गई, यानि जहन्नम वाजिब हो गई, तुम अल्लाह तआला के गवाह हो ज़मीन में, यानी तुम्हारी शहादत के मुताबिक अल्लाह तआला फैसला फरमायेंगे _,"*
*®_ मिश्कात - 145,*
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*⊙:➻ आमाले सालेहा की वफ़ादारी :-*_,*
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*✪_"_ उसने तीसरे दोस्त को बुलाया, तीसरे रफीक़ को बुलाया, ये उसका अमल था, उससे कहा - मुझ पर जो हालत तारी है तुम देख रहे हो, नजा़ का सामना है, रूह और बदन की अलहेदगी हो रही है, और एक नया सफर दरपेश है, निहायत तवील सफर और अनदेखे रास्ते, बहुत ही परेशानी और बेचैनी है कि मेरा कौन साथ देगा?*
*✪_"_ ये जो मेरे माल ने जवाब दिया वो भी तुमने सुन लिया और मेरे अहलो अयाल ने जो जवाब दिया है वो भी तुमने सुन लिया है, उन्होंने साफ साफ जवाब दे दिया है कि हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं, ना आपके साथ रफाक़त करेंगे ना आपके साथ जाएंगे, ना आपके साथ क़ब्र में उतरेंगे, तुम बताओ! कि तुम क्या करोगे?*
*✪_"_ कहने लगे कि तुम अगर मुझे साथ ले जाओ तो पहली बात ये है कि हर मोके़ पर तुम्हारी मदद करुंगा, नज़ा से ले कर मीज़ान तक, क़यामत के दिन, हशर के दिन, मीज़ान यानि तराज़ू जो रखी जाएगी उस वक्त तक मै तेरी मदद करुंगा, तेरे साथ रहुंगा और तेरा मोन्निस व गमख्वार बनुंगा, तेरी तन्हाई पर अकेलेपन को दूर करुंगा, मुझसे हो सका तो रोशनी भी करुंगा, कोई तुझ पर हमला आवर होगा तो जवाब भी दूंगा_,"*
*✪_"_ मुंकर नकीर सवाल करेंगे तो सवाल व जबाब की भी किफायत करुंगा और क़यामत के दिन उस पलड़े में बेठ जाउंगा जिस पलड़े को तू भारी देखना चाहता है और जितनी मेरी हिम्मत होगी, जितना मेरा वज़न होगा मैं अपना पूरा वज़न तेरे पलड़े में डाल दूंगा, यहां तक कि तुझे जन्नत में पहुंचा दूंगा _,"*
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*⊙:➻ क़ब्र में बुरे आमाल की शक्ल_,*
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*✪_ हदीस शरीफ़ मे आता है कि बदकार आदमी के सामने निहायत डरावनी शक्लें आती है और वो उनको देख कर घबराता है, घबराहट तो पहले ही मोजूद है, तन्हाई और वहशत है, चुनांचे ये चिल्लाते हुए परेशानी का इज़हार करते हुए कहता है कि खुदा तुम्हारा नास करे तुम कौन हो?*
*✪"_ तो वो कहता है तुम फ़िक्र ना करो, मैं तुम्हारा वो बुरा अमल हुं जो तूने किया था, इसके बाद वो सारे के सारे आमाले बद पर बांध के आ जाते हैं चुडेलों की शक्ल मे, खराब रूहों की शक्ल में, भेड़ियों की शक्ल में, जंगल के दरिंदों की शक्ल मे, सांपों और बिच्छुओं की शक्ल में, वो उसके साथ आ कर लेट जाते हैं_,"*
*✪_"__कहते हैं ना कि क़ब्र मे सांप और बिच्छू होंगे, वो यही अपने बुरे आमाल हैं __(जो सांप बिच्छू की शक्ल मे सामने आएंगे), अल्लाह हम सब की हिफाज़त करे,*
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*⊙:➻ क़ब्र में अच्छे आमाल का मंज़र_,*
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*✪_ और नेक आदमी होता है तो उसके आमाले सालेहा निहायत ही हसीन शक्ल मे उसके सामने आते हैं, ये कहता है कि अल्लाह ताला तुम्हारा भला करे! मैं तो बहुत तन्हाई मे था, मैं वहशत मेहसूस कर रहा था, तुम लोग कौन हो जो मेरे उन्स के लिए और मेरी वहशत को दूर करने के लिए आ गए? वो कहते हैं कि :- आपके नेक आमाल है !*
*☞_ आमाले सालेहा अज़ाबे क़ब्र से बचाव का ज़रिया है:-*
*✪_ यूं भी आता है कि जब फरिश्ते आते हैं मारने के लिए तो नमाज़ फलां तरफ हो जाती है, सदका फलां तरफ हो जाता है, कुरान ए करीम की तिलावत फलां तरफ हो जाती है और दूसरे आमाल ए सालेहा एक तरफ हो जाते हैं, चारो तरफ से उसको नेक आमाल घर लेते हैं और कहते हैं कि मारने नहीं देंगे, अज़ाबे क़ब्र को टाल देते हैं _,*
*✪_" सूरह मुल्क (तबारकल्लज़ी) के बारे में फरमाया है कि ये मय्यत को इस तरह अपने परो के नीचे ले लेती है जिस तरह मुर्गी अपने बच्चों को परों के नीचे ले लेती है, और अज़ाबे क़ब्र से बचाती है, ये उसके आमाल ए सालेहा हैं जो मरते वक्त भी उसके साथ, क़ब्र मे भी उसके साथ, और हशर मे भी उसके साथ होंगे,*
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*⊙:➻ बदकार का अपने बुरे आमाल पर इज़हारे हसरत_,*
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*✪○_"_क़ुरान ए करीम (सूरह अज़-ज़ुख़रुफ़, आयत 38) मे है कि अपने बुरे अमल को देख कर कहेगा कि "_ काश ! कि मेरे दरमियान और तेरे दरमियान मगरिब व मशरिक का फासला होता, तू बहुत ही बुरा साथी है _,"*
*✪○_ फासला कैसे होता ? तूने तो खुद किया था, झूठ खुद बोले थे, ज़ुल्म खुद किया था, बदकारियां और बेहयाइयां खुद की थी, और आज कहते हो कि मगरिब व मशरिक का फासला होता?*
*✪✧_ जब तुमसे कहा गया था कि ये सब गुनाह की बातें है तो तुमने माना ही नहीं, तुमने तो सोचा था कि ज़िंदगी इन बातो के बगैर कैसे गुजर सकती है?.मौत आने दो तुम्हें खुद पता चल जाएगा कि ये जो तुमने लानत घरों मे डाली हुई है, टीवी और इसी तरह मूवी बनाते हो, कैमेरे रखे हुए हैं, ये तसवीरे लटकाई हुई है और बच्चों के खिलौने बुतों की शक्ल में रखे हुए हैं, और जो तुम बदकारियां करते हो, तुम्हें खुद पता चल जाएगा कि ये सब क्या चीज है?*
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*⊙:➻उस वक्त का रोना कोई काम नहीं देगा_,*
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*✪_ आज तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात सुन कर भी उस पर यक़ीन नहीं करते, तब (जब मौत आएगी) आंख से देख कर यक़ीन ला दोगे, और उस वक़्त कोई इलाज कार नहीं होगा,*
*✪_ हदीस शरीफ में आता है कि :- दोज़खी लोग एक हज़ार साल तक आंसुओं के साथ रोयेंगे, एक हज़ार साल तक आंखों से खून निकलेगा, और एक हज़ार साल तक पीप निकलती रहेगी। ( अल्लाह हिफाज़त फरमाये)*
*✪○ अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात सुन कर तुम उसको मुल्लाइयत कहते हो ( मुल्लों की बातें कह कर मज़ाक बनाते हो ) ज़रा वक्त आने दो, तुम्हें मालूम हो जाएगा कि तुम्हारे नीचे घोड़ा था या गधा था,*
*✪_ गर्ज़ ये जितना जितना किसी का नफ़ा है, आदमी उससे उतना ही ताल्लुक़ रखे, अक़ल का क़ायदा यही है और इस अक़ल का हम दुनिया मे इस्तेमाल भी करते है, लेकिन आख़िरत के मामले में हमारी अक़ल कहां चली जाती है ? अक़ल के सामने अँधेरा क्यों आ जाता है?*
*✪_ अक़ल की मिसाल ऐसी है जैसे आंखों की रोशनी, ये अंदर की रोशनी उस वक्त काम देती है जबकी बाहा्र भी रोशनी हो, देखने के लिए हम दो रोशनीयों के मोहताज हैं, अक़ल की रोशनी उस वक्त काम देती है जबकि दिल मे हिदायत की रोशनी भी हो, नूरे हिदायत भी हो और हमने तो चिरागे हिदायत फूंक मार कर बुझा दिया, आखिरत के मामले में हम बिलकुल अंधे हो गए हैं, दुनिया के मामले मे तो हमारी अक़ल बहुत काम करती है, आखिरत के मामले में क्यों काम नहीं करती,? केसे करे? देखें केसे ? वो तो नूरे नबुवत रहनुमाई करेगा तो हमारी अक़ल भी देखेगी _,"*
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*⊙:➻ दुनिया व आखिरत मे काम आने वाली चीज़ से ताल्लुक़ चाहिए:-,*
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*✪_ ये क़ायदा है की जितनी चीज़ फ़ायदेमंद होती है आदमी उसको अख्तियार करता है, होना ये चाहिए कि आमाले सालेहा का अहतमाम हो, उसके साथ रफ़क़त हो,*
*✪_✧ हदीस शरीफ में आता है कि _"हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे साथ घर में तशरीफ लाते थे तो घर के काम काज मे मशगूल रहते थे, जेसे घर मे काम होता है लेकिन जैसे ही अज़ान की आवाज़ सुनते इस तरह खड़े हो जाते थे जैसे हमें पहचानते ही नहीं हैं _,"*
*®_ फ़ज़ाइले नमाज़ -88_,*
*✪_"_ होना ये चाहिए कि जेसे ही हुक्मे इलाही आ जाए हमारी जान पहचान सबसे खत्म हो जाए,*
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*⊙:➻ माल का नफा़ खर्च करने में है_,*
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*✪○ माल तो ऐसी बेकार चीज़ है कि जब तक उसे खर्च ना करो नफा नहीं देगी, ढ़ेर लगा लगा कर रखते रहो, कुछ फायदा नहीं,*
*✪○ हाजी अब्दुल सत्तार साहब ने अपनी किताब में एक वाक़िया लिखा है कि एक सेठ था, अपने ख़ज़ाने की सैर करने के लिए गया, देर हो गई तो वो नज़र नहीं आया, उसके नौकरों चाकरों ने दरवाज़ा बंद कर दिया और चले गए, सेठ अंदर ही तड़प तड़प कर मर गया, अगले दिन दरवाज़ा खोला तो सेठ जी मरे पड़े हैं, हालांकी खज़ाना मोजूद था, क्योंकि वो खाने पीने और भुख प्यास बुझाने का काम नहीं देता, हां ! उसको खर्च करके खाने पीने का सामान हासिल किया जा सकता है,*
*✪○ गर्ज़ ये कि ये माल और ख़ज़ाने किसी काम के नहीं हैं, जब तक तुम इन्हें खर्च ना करो इससे फ़ायदा नहीं उठाया जा सकता, लेकिन हमने मामला उल्टा कर लिया, हमारा जितना ताल्लुक़ पैसे से है, उतना अहलो अयाल से भी नहीं है, दोस्त अहबाब से भी नहीं है, माँ बेटी की लड़ाइयाँ और बाप बेटे की लड़ाइयाँ, भाई भाई की लड़ाइयाँ किस चीज़ पर है ? पैसे पर है!*
*✪○ ये पैसा सब चीज़ो पर गालिब आ गया है, होना तो ये चाहिए था कि पैसे को इन पर खर्च किया जाता, लेकिन आज हो ये रहा है कि (इस पैसे की वजह से) रिश्तो को इस पर खर्च (खत्म) किया जा रहा है। और माल के लिए अहलो अयाल के लिए अपना दीन भी कु़र्बान किया जा रहा है,*
*"__अल्लाह तआला हमें सही समझ नसीब फरमाए और अल्लाह तआला हमें ऐसे आमाल ए सालेहा की तोफीक़ अता फरमाए जो नज़ा के वक्त भी हमारे काम आए, कब्र में भी हमें काम दे, हशर मे भी हमें काम दे,*
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*⊙:➻ आलमे बरज़ख हमारी आँखों से पोशीदा है _,*
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*✪○ हक ताला शान्हू ने अपनी रहमत फरमाई है, वो जो अगला जहान है जिसे आलमे बरज़ख कहते हैं और जो मरने के बाद मुझे और आपको पेश आने वाला है, हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:-*
*"_ उस जा़त की क़सम जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है अगर तुम जान लो वो चीज़ जिसको मैं जानता हूं तो तुम कम हंसा करो और ज़्यादा रोया करो और धाडे मारते हुए जंगलो की तरफ निकल जाओ _," ( मिश्कात- 456,457 )*
*✪○_अगर वो मंज़र हमारे सामने आ जाए तो वो इतना होलनाक है कि हम मुर्दे दफ़नाना छोड़ दें, किसी की हिम्मत ही ना पड़े कि कब्रों मे मुर्दो को दफ़न कर सकें, ये तो हक ता'आला शान्हू का एहसान है कि गफलत का पर्दा दाल दिया है, कि इस्तेहज़ार नहीं और ख्याल ही नहीं कि हमें ये मरहला पेश आने वाला है,*
*✪○ अमीरुल मोमिनीन हज़रत उस्मान बिन अफ्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु जब क़ब्र का तज़किरा करते तो इतना रोते कि ढाड़ी मुबारक तर हो जाती, लोगों ने क़र्ज़ किया कि हज़रत आप जन्नत और दोज़ख का तज़किरा करते हैं मगर इतना नहीं रोते जितना कि क़ब्र के तज़किरे पर रोते हैं,*
*"_ फरमाया कि :- मैंने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि क़ब्र आखिरत की मंजिलों में से पहली मंजिल है, अगर इंसान यहां कामयाब हुआ तो अगली मंजिल मे भी कामयाब हो जाएगा और अगर यहां नाकाम हुआ तो अगली मंजिलों में कामयाबी की क्या सूरत और क्या उम्मीद की जा सकती है_,"*
*"_ और इरशाद फरमाया कि मैने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये भी सुना है कि मैंने जितने मनाज़िर देखे हैं उनमे सबसे ज्यादा खौफनाक क़ब्र का मंज़र है _,"*
*®_ मिश्कात -26_,*
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*⊙:➻ अगले जहां की तैयारी करो _,*
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*✪○"_ आदमी दुनिया मे ये समझता है कि मै यहां हमेशा के लिए आया हूं, कोई तैयारी करने की फ़िक्र ही नहीं, अल्लाह तआला हम तोफ़ीक़ अता फरमायें (आमीन) बाज़ हजरात और बाज़ बंदे तो ऐसे होंगे जिनको अपनी आखिरत की तैयारी की, अपनी अगली मंजिल की तैयारी की फ़िक्र होगी कि मुझे जाना है और जा कर अपना हिसाब व किताब देना है,*
*✪○ एक तो बड़ा हिसाब जो क़यामत के दिन होगा वो तो बाद की चीज़ है, ये जो पहला हिसाब है जो मरने के बाद का मरहला है उसकी फिक्र होगी कि इतनी सी जगह होती है जिसमे आदमी को लिटा दिया जाता है फिर ऊपर से उसे बंद कर देते हैं और मनो मिट्टी डाल दी ताकी भाग कर ना आ जाए, हालांकी वो बेजान महज़ नहीं होता बल्कि उसमे रूह डाली जाती है और वो अपने दफन करने वालों की जूतियों की आहट सुनता है। हदीस में है :-*
*✪_"_ हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुर्दे को अभी दफ़नाने वाले के क़दमो की आहट सुनायी दी ही होती है, यानि जब वो दफ़ना कर वापस होते हैं उनके क़दमों की आहट सुन रहा होता है कि दो फरिश्ते आ जाते हैं जिनको मुंकर नकीर कहते हैं, (बाज़ रिवायात मे आया है कि उन्हें मुबश्शिर बशीर कहते हैं)_,"*
*®_ मिश्कात- 24,25_,*
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*⊙:➻ क़ब्र में तीन सवालात_,*
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*✪○ खुलासा ये है कि उससे बहुत आसान से तीन सवाल करते हैं :-*
*"_ हज़रत बरा बिन आज़िफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर अक़दस (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:- उस आदमी के पास दो फरिश्ते आते हैं, उसको क़ब्र मे बिठाते हैं फिर वो दोनों फ़रिश्ते उससे सवाल करते हैं कि तेरा रब कौन है? (अगर वो नेक आदमी होता है तो) कहता है कि मेरा रब अल्लाह है,*
*"_ फिर दोनों फरिश्ते उस नेक आदमी से सवाल करते हैं कि तेरा दीन क्या है? वो नेक आदमी जवाब देता है कि मेरा दीन इस्लाम है,*
*"_ फिर वो फरिश्ते उससे सवाल करते हैं कि उस आदमी के बारे मे तुम्हारा क्या ख्याल है जो तुममें भेजा गया था? वो आदमी कहता है कि वो अल्लाह के रसूल है, फ़िर फरिश्ते उससे सवाल करते हैं कि तुझे कैसे मालूम हुआ? वो आदमी कहता है कि मैंने अल्लाह ता'ला की किताब पढी थी, उस पर मैंने यक़ीन किया था और मैंने तस्दीक़ की थी ...."*
*✪○ (अगर कोई बदकार आदमी होता है तो) उससे फरिश्ते सवाल करते हैं कि तेरा रब कौन है? तो कहता है मुझे मालूम नहीं, मुझे मालूम नहीं, फिर वो फरिश्ते उससे सवाल करते हैं कि तेरा दीन क्या है ? वो कहता है मुझे मालूम नहीं, मुझे मालूम नहीं, फिर वो फरिश्ते उससे सवाल करते हैं कि उस आदमी के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है जो तुममें भेजा गया था? वो कहता है कि मुझे मालूम नहीं, मुझे मालूम नहीं_,"*
*®_ मिश्कात-25__*
*✪_"_एक सवाल ये कि तेरा रब कौन है ? दूसरा ये कि तेरा दीन क्या है? और तीसरा ये कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे मे पुछते हैं कि तू इनके बारे मे क्या कहता था? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब इसको बयान फरमाया तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पुछा कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उस वक्त हमारे होश व हवास होंगे? फरमाया कि होश हवास होंगे और ऐसे होंगे जैसे अब है,*
*"__ फ़िर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फरमाया कि फ़िर हम निमट लेंगे इंशा अल्लाह,*
*✪_"_ ये तो हज़रत उमर रज़ियाल्लाहु अन्हु का होसला था और कह सकते हैं कि हम निमट लेंगे मगर सोचिए कि जहां कोई गमख्वार, कोई मददगार नहीं होगा ना कोई तलक़ीन करने वाला होगा और ना कोई बंदे की दस्तगीरी करेगा तो फिर वहां वो इन सवालों का जवाब कैसे देगा ?*
*✪_"_हां अगर अल्लाह ता'आला की तौफीक़ बंदे की दस्तगीरी करे तो फिर वह उनका सही सही जवाब देगा और कहेगा कि मेरा रब अल्लाह है, इसलिये कि उसका दुनिया में यक़ीन बना हुआ था कि अल्लाह ताला मेरा रब है, वहां झूठ तो चलेगा नहीं, सच पर वहां निजात होगी, झूठ पर नहीं,*
*✪_ दूसरा सवाल होगा कि तेरा दीन क्या है ? वो जवाब में कहेगा - इस्लाम !*
*✪_"_क्या हमने इस्लाम को दीन माना हुआ है? क्या हमने इस्लाम को दीन मान कर ढाड़ी मुंडवाई हुई है ? गर्ज़ जितनी तालीमात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दी थी हमने उन पर अमल किया था ? इस्लाम के मा'ने है झुक जाने के, क्या हम अल्लाह ता'आला के और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्मों के सामने झुके थे?*
*✪_ और तीसरा सवाल होगा कि साहब (हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे मे क्या कहते थे ? हाफिज इब्ने हजर रह. फ़ताहुल बारी में लिखते है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम नहीं बताया जाएगा, वेसे ही फरिश्ते पुछेंगे कि इनके बारे मे क्या ख्याल है?*
*✪_"_ बाज हज़रात ने तो यह फरमाया कि मुर्दे के दरमियान और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरमियान के सारे पर्दे हटा दिए जाते हैं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत कराई जाती है, हाफ़िज़ इब्ने हज़र रह. फरमाते हैं कि अगर ऐसा हो तो ये बहुत ही बड़ी स'आदत है, लेकिन ऐसी कोई रिवायत मुझे कहीं नहीं मिली, बहरहाल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे मे पुछा जाता है के इनके बारे में क्या कहते थे? उनको रसूल मानकर अपने आपको उम्मती समझते थे ? रसूल और उम्मती का ताल्लुक़ तुमने सही तोर पर निभाया था ?*
*✪_"_ बंदा मोमिन हो तो इन तीनों सवालों का जवाब सही सही दे देता है, ज़्यादा मुश्किल सवाल नहीं है, और इन ही तीन सवालों मे पूरी ज़िंदगी आ गई है,*
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*⊙:➻ _हज़रत राबिआ बसरिया और फ़रिश्तों के सवालात _,*
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*✪__ हज़रत रबीआ बसरिया रह. के बारे में आता है कि उनका इंतकाल हुआ, जब उनको दफन कर दिया गया तो उनके पास मुंकर नकीर आए, और उनसे भी तीन सवाल किये, तो कहने लगीं कि कहां से आए हो ? फरिश्तों ने कहा कि आसमान से आए हैं, राबिआ बसरिया रह. ने कहा तुम आसमान से यहां तक आए और तुम अपने रब को भूल गए ? और राबिआ के बारे में ख्याल है कि ज़मीन से सिर्फ डेढ़ गज़ नीचे पहूंच कर भूल गई होगी? जाओ अपना काम करो _,"*
*✪__ आम तोर पर आदमी जब मर जाता है तो लोग ला इलाहा इल्लल्लाह की तलक़ीन किया करते हैं, लोग मामूल के मुताबिक़ उनको भी तलक़ीन करने लगे, मुस्कुरा कर फरमाने लगीं कि सारी उमर इस वक्त के लिए मेहनत की थी, अब तुम मुझे क्या सिखाते हो ?*
*✪__ तो जो लोग सही सही जवाब दे देते हैं, तो हुक्म होता है कि इनके लिए जन्नत का लिबास लाओ, जन्नत का बिस्तर बिछाओ, और हदीस में फरमाया कि क़ब्र उसके लिए इतनी वसी कर दी जाती है, जहां तक उसकी नज़र पहुंचती है _,"*
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*⊙:➻ हमारी मंज़िल कौनसी है?*
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*✪__ दूसरा आदमी जिसने दुनिया में ईमान व यक़ीन नहीं बनाया था वो हर सवाल के जवाब में कहेगा - मुझे मालूम नहीं, मुझे मालूम नहीं, तब अल्लाह ताला की तरफ से फरमाया जाएगा कि तू झूठ बोलता है, तुमने सारी उम्र कभी ये काम किया ही नहीं था,*
*✪_ मेरे भाईयों अल्लाह को पहचानो और अपने दीन को पहचानो, अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहचानो और उनकी तालीमात को पहचानो और उन पर अमल करो, क़ब्र आखिरत की मंज़िलो मे पहली मंज़िल है, जो हमारे बुजुर्ग थे वो आगे चले गए, उनको तो ये पेश आ गई है, अल्लाह ता'ला ही बेहतर जानता है कि उनके साथ क्या मामला हो रहा है? और इधर हमारे सर पर ये मंजिल खड़ी है, मगर हम यहां से गाफिल अपने करोबार, काम धंधे मे, खेल तमाशे मे, लगे हुए हैं, खुशियां मनाई जा रही हैं, कहीं गप्पे हांकी जा रही है,*
*✪_"_ एक बुज़ुर्ग फरमाते थे कि आदमी खिलखिलता है यानी हंसता है हालांकी उसका कफन धोबी से धुल कर आ चुका है, सबसे बड़ी चीज़ ये है कि हम इस बात को जानें और पहचानें कि हमारी मंजिल है?*
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*⊙:➻ अहसास ए नदामत की बरकत _,*
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*✪_"_इमाम ग़ज़ाली रह. ने एक वाक़िया लिखा है कि एक शख्स का इंतकाल हो गया, इतना बुरा आदमी था कि कोई उसकी वफ़ात का सुन कर उसके घर नहीं आया, आम तोर पर वफ़ात हो जाती है तो लोग जमा हो जाते है मगर वहां कोई नहीं आया, तो उसकी बीवी ने चार मजदूर लिए और लाकर कब्रिस्तान के पास पहूंचा दिया, क़ब्रिस्तान के क़रीब एक मैदान था, जहां लोग जनाज़ा पढ़ते थे, वहां पहुंचा दिया,"*
*✪__ उस इलाक़े के एक मशहूर बुज़ुर्ग थे, उनको इल्हाम हुआ कि एक वली अल्लाह का इंतकाल हो गया है और कोई उसका जनाजा पढ़ने के लिए नहीं आया, आप जा कर जनाजा पढ़ो, वो जनाजे के लिए निकले तो उनको देख कर बेशुमार लोग टूट पड़े, जनाजे की नमाज़ और तदफीन हो गई, उसके जनाजे से फारिग हो कर वो बुज़ुर्ग उसके घर आए और उसकी बीवी से पूछने लगे कि इसका कौनसा अमल ऐसा था कि जिसकी बीना पर इस्का इकराम किया गया?*
*✪_"_ उस औरत ने कहा और तो मैं कुछ नहीं जानती, अलबत्ता दो अमल इसके मुझे याद है, एक तो ये था कि वो रात भर शरब पीता था और सारी रात उस नशे में धुत पड़ा रहता था, आखिरी रात में उसका नशा टूटता और अल्लाह तआला को खिताब करके कहता रहता कि या अल्लाह तू मुझे जहन्नम के किस कोने में डालेगा ? सारी रात इसी तरह करता रहता, यहां तक कि फजर का वक्त हो जाता, फजर हो जाती तो फ़िर ये गुस्ल करता, नए कपड़े पहनता और नमाज़ पढता, इसका एक तो ये अमल था,*
*✪_"_ और इसका दूसरा अमल ये था कि इसका घर कभी यतीम से खाली नहीं रहता, हमेशा किसी यतीम को अपने घर में रखता था, वो बच्चा बड़ा होता, उसकी शादी करवाता, फिर दूसरा बच्चा ले आता, इस पर अल्लाह तआला ने उनकी निजात कर दी,*
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*⊙:➻ मरने वाले से इबरत हासिल करें_,*
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*✪_ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जिस शख़्स को सामने की चीज़ नफ़ा नहीं देती और उनसे वो इबरत नहीं पकड़ता तो जो चीज़ें उससे पोशीदा हैं वो उनके बारे मे ज़्यादा अंधापन अख्त्यार करेगा, मशहूर है कि नेक बख्त वो है जो दूसरे से इबरत हासिल करे _," यानी दूसरों पर जो हालात गुज़र रहे हैं उन हालात को देख कर इबरत हासिल करे,*
*✪_ मरने वाले मर रहे हैं, हमें उनसे इबरत हासिल करना चाहिए कि एक दिन हमें भी मरना है, मरने वाला अपने बीवी बच्चों घर बार और कारोबार छोड़ कर चला गया, अब ना कोई इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है और ना मरने वाले को कोई वापस ला सकता है, दूसरों को चाहिए कि इससे इबरत हासिल करे और सोचे कि हमारे साथ भी यही होने वाला है,*
*✪_ मेरे भाई ! क्या हमें कभी ये ख्याल आया, सब बात गलत है मगर मौत बरहक़ है, दुनिया की सब बातें गलत हो सकती हैं, मौत गलत नहीं हो सकती, मौत बरहक़ है, रोज़ाना हम कई जनाजे अपनी आंखों से देखते हैं लेकिन इबरत हासिल नहीं करते,*
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*⊙:➻ मैदाने हशर की हौलनाकी _,*
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*✪_ उस हौलनाक क़ब्र के हालात सुनते हैं, उससे कोई इबरत नहीं लेते, क़यामत के दिन के अहवाल सुनते हैं, उसकी होलनाकियां सुनते हैं, वहां का हिसाब व किताब, हुक़ूक़ का दिलाया जाना, लोगो का मारे मारे फिरना वगैरा, मगर फिर भी हम इबरत हासिल नहीं करते, मैदाने हशर की होलनाकी का तज़किरा कुरान ए करीम में (सूरह आबासा, आयत 34 से 37) में इस तरह फरमाया गया है:-*
*✪_"_ (तर्जुमा) जिस दिन भागेगा आदमी अपने भाई से, और अपनी मां से और अपने बाप से, और अपनी बीवी से और अपने बच्चों से, हर आदमी के लिए एक ऐसी हालत होगी जो उसे किफायत करेगी, दूसरी तरफ मुतवज्जा नहीं हो सकता _,"*
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*⊙:➻ मैदान हशर मे एक नेकी भी कोई नहीं देगा_,*
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*✪_ "_ हदीस शरीफ में मशहूर किस्सा फरमाया गया है :- क़यामत के दिन एक ऐसे आदमी को लाया जाएगा जिसके गुनाह और नेकियां बराबर होगी, अल्लाह ताला महज़ अपने फजल से उसे फरमायेंगे :- जाओ किसी से एक नेकी मांग लाओ तकी तेरी नेकियों का पलड़ा भारी हो जाए और तुझे जन्नत में दाखिल कर दें,*
*✪_ "_ वो मैदाने हशर मे नेकी की तलाश में चक्कर लगाएगा और हर एक से नेकी का सवाल करेगा मगर इस सिलसिले मे उससे कोई बात नहीं करेगा, हर एक को ये खौफ दामनगीर होगा कि कहीं मेरी नेकियों का पलड़ा हल्का ना हो जाए और मुझे एक नेकी की ज़रूरत ना पड़ जाए, यूं हर एक अपनी ज़रुरत और अहतयाज के पेशे नज़र उसे एक नेकी देने से इन्कार कर देगा, वो मायूस हो जाएगा,*
*✪_ "_ कि इतने मे एक आदमी से मुलाक़ात होगी जो कहेगा - क्या तलाश कर रहे हो? वो कहेगा कि एक नेकी तलाश कर रहा हूं ! पूरे खानदान और क़ौम से मिला हूं, हजारो नेकियां रखने के बावजूद कोई एक नेकी देने का रवादार नहीं, सबने एक नेकी देने से बुख्ल का मुजाहिरा किया है, वो शख़्स उससे कहेगा कि: मेरे नामा ए आमाल मे एक ही नेकी है और मुझे यक़ीन है कि एक नेकी मुझे कोई नफ़ा नहीं देगी, लिहाज़ा ये नेकी आप मेरी तरफ से बतौर हिबा क़ुबूल कीजिये,*
*✪_ "_ वो शख्स एक नेकी ले कर खुशो खुर्रम बारगाहे इलाही मे हाज़िर होगा, तो अल्लाह ताला बावजूद आलिमुल गैब होने के उससे पुछेंगे - कहां से लाए ? वो अपना पूरा क़िस्सा कह सुनाएगा, फिर अल्लाह ता'ला उस नेकी वाले को बुलाकर फरमाएंगे - मेरा करम व एहसान तेरी सखावत से वसी है! अपने भाई का हाथ पकड़ और दोनों जन्नत मे जाओ, यूं वो दोनों जन्नत मे चले जाएंगे _,"*
*® तज़किरा फ़िल अहवाल व उमूर आखिरत, अल्लामा क़ुरतुबी रह. दारुल कुतुबुल इल्मिया बेरूत-137, कशफुल उलूमुल आखिरत- इमाम गज़ाली रह.136-137_,*
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*⊙:➻ दुनिया इबरत की जा है_,*
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*✪__दर असल हमारा आखिरत पर ईमान नहीं रहा और आखिरत से पहले क़ब्र पर भी ईमान नहीं, ख्वाजा महबूब रह. फरमाते हैं :-*
*_ जगह जी लगाने की दुनिया नहीं है,*
*_ ये इबरत की जा है, तमाशा नहीं है,*
*✪__हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं:- नेक बख्त है वो शख़्स जो दूसरों के हाल से इबरत पकड़े_,"*
*"_ शेख सादी रह. फरमाते हैं:- हकीम लुकमान से लोगो ने पूछा कि आपने अदब किससे सिखा, फरमाया- बेअदबो से ! लोगो ने कहा - वो कैसे ? फरमाया - जो बात मैंने किसी के अन्दर ऐसी देखी जो मेरी नज़र में अच्छी नहीं थी तो मैंने फैसला कर लिया कि आइंदा ये बात या अमल नहीं सादिर होगा, उसको तो कुछ भी नहीं कहा, अलबत्ता अपनी इसलाह कर ली, इसको कहते हैं दूसरों से इबरत लेना_,"*
*✪_ "_ तो जो शख्स आंखों देखी चीज़ से इबरत नहीं पकड़ता वो कानो सुनी से क्या इबरत हासिल करेगा, उसके सामने दोज़ख के हालात बयान करो, क़यामत की होलनाकियां बयान करो, उसके सामने क़ब्र की बातें बयान करो, उसके लिए ये सब बेसूद है, क्योंकि गफलत का पर्दा पड़ा हुआ है, जो सफर आगे तय करना है उससे गाफिल है,*
*✪_ "_ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि :- और बेशक कि तुमको हुक्म दिया गया है कूच करने का और तुमको बता दिया गया है तोशा लेने का, ख़ूब सुन रखो ! कि सबसे ज़्यादा खौफनाक चीज़ जिसका मैं अंदेशा करता हूं तुम्हारे हक़ में वो दो हैं - एक लंबी लंबी उम्मीदें रखना और दूसरे ख्वाहिशे नफ्स की पैरवी करना,*
*"_ रहा उम्मीदो का लंबा होना ये आखिरत को भुला देता है और रहा ख्वाहिश की पैरवी करना ये आदमी को हक़ से दूर करता है,*
*✪_ "_ ख़ूब सुन रखो ! कि दुनिया पुश्त फेर कर जा रही है और आखिरत हमारी तरफ मुतवज्जह हो कर तेज़ी से आ रही है और इन दोनों के कुछ बेटे हैं, तो अगर तुमसे हो सके तो आखिरत के बेटों में से बनो दुनिया के बेटों में से ना बनो क्योंकी आज का दिन अमल का है हिसाब का नहीं और कल को हिसाब होगा अमल नहीं होगा _,"*
*®_ अल बिदाया व अन- निहाया, 7/308*
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*⊙:➻ कूच का नक्का़रा बच चुका_,*
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*✪_ फरमाया - एक बात याद रखो ! कि तुम्हारे लिए कूच का नक्का़रा बज चुका है, और तुम्हें ये भी बता दिया गया है कि तोशा साथ ले कर जाना है, क्या तोशा लेकर जाना है ?*
*✪_"_ नमाज़े जनाज़ा में अज़ान और अक़ामत नहीं होती क्यूँकि जब बच्चा पैदा होता है उसके कान में अज़ान और अक़ामत कह दी जाती है और बच्चे के कान में अज़ान और अक़ामत कहने का मतलब ये है कि उसके कहा दिया जाता है कि जल्दी कर अजा़न हो चुकी है, अक़ामत हो चुकी है, इमाम नियत बांधने वाला है, बस इतनी मोहलत है तेरे पास !*
*✪_"_ क्योंकि क़द क़ामातिस सलाह, क़द क़ामातिस सलाह, अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह तकबीर के बाद इमाम की नियत बाँधने में जितनी देर लगती है, बस इतनी फुर्सत है तेरे पास, जल्दी कर ले जो करना है, ये है कूच का नक्का़रा,*
*✪_"_ फरमाते हैं कि कूच का नक्का़रा बजा चुका है, और तुम्हें ये भी बता दिया गया है कि तोशा साथ ले कर जाना है, क्या तोशा लेकर जाना है?*
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*⊙:➻ _बोझ हल्का करो _,*
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*✪_ शेख अतार रह. फरमाते हैं कि :- तेरा वजूद बहुत कमज़ोर है, ज़रा अपना बोझ हल्का कर लो, ये जो तुमने खूबसूरत पत्थरों की गठरियां बांध बांध कर रख ली है, ज़रा अपना बोझ हल्का रखो, तुम्हें मालूम है कि कमर पर लाद कर ले जाना है, तुम तो बहुत हल्का सा कमज़ोर सा वजूद रखते हो, अपना बोझ हल्का रखो वरना रास्ते में तुम अपना मामला बड़ा सख्त देखोगे, ये बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा वहां कुली नहीं मिलते, वहां तो अपना हाथ अपना मुंह, खुद ही निमटो, जो तोशा ले जाना है उसकी फ़िक्र नहीं कर रहे और जो बोझ नहीं उठाना उसे बांध रहे हो,*
*✪__ आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं ! सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं !*
*✪_ हमारी ख़्वाहिशे नफ़्स का ये हाल है कि अगर शरियत का कोई मसला कोई बात हमारी ख़्वाहिश के मुताबिक़ होगी तो हम अमल करेंगे वरना कह देंगे "अल्लाह तआला गफूर व रहीम है," बस नफ़्स की ख्वाहिश पूरी होनी चाहिए, अल्लाह और उसके रसूल का फरमान पूरा होता है या नहीं, इस चीज से हमें बहस नहीं, अल्लाह हिफाज़त करे,*
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*⊙:➻आख़िरत के बेटे बनो _,*
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*✪┅✧ इरशाद फ़रमाया कि - दुनिया जा रही है, आखिरत आ रही है और दोनों के बेटे हैं, कुछ बेटे हैं दुनियां के, कुछ बेटे हैं आखिरत के, आपको मालूम है कि बेटा जिस बाप का होता है उसकी तरफ मनसूब होता है, बेटा तो एक ही बाप का होता है, दो का तो नहीं होता। तो बाज़ लोग ऐसे हैं जो दुनिया में दुनिया के बेटे बने हुए हैं उनका और कोई बाप नहीं है, और कुछ हैं जो आख़िरत के बेटे हैं,*
*✪┅✧ क़ुरआन ए करीम में इरशाद है :- (ऐ नबी) आप कह दीजिए कि तुझे बताएं कि अमल के ऐतबार से सबसे ज़्यादा खसारे में कौन है ? (अक्सर सबसे ज़्यादा खसारा उठाने वाले आमाल के ऐतबार से कौन हैं?) ये वो लोग हैं जिनकी सारी मेहनत ज़ाया हो गई, गुम हो गई दुनिया की जिंदगी में, और ये लोग गुमान कर रहे हैं कि ये लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं _," (सूरह - अल कहफ -103,104)*
*✪┅✧ दुनिया के बेटे आखिरत के बेटे का मज़ाक उड़ाते हैं, दुनिया वाले मौलवियों का, दीनदारों का मजाक उड़ाते हैं कि दुनिया का काम नहीं जानते, अल्लाह वालों का मज़ाक उड़ाते हैं, गरीब गुरबा का मज़ाक उड़ाते हैं, फकी़रों का मज़ाक उड़ाते हैं और ये समझते हैं कि हम हुनरमंद लोग हैं, तालीम याफ्ता लोग हैं, आज कल उसी को तलीम याफ्ता कहते हैं जो दुनिया कमाना, हराम कमाना ज़्यादा जानता हो।*
*✪┅✧ इरशाद फ़रमाया कि दुनिया जा रही है, आखिरी आ रही है और दोनों के बेटे हैं, सो तुम दुनिया के बेटे ना बनो आखिरत के बेटे बनो, क्योंकि आज अमल है हिसाब नहीं है, कर लो जो करना है, अमल की मोहलत दे दी, अमल कर लो, हिसाब बाद में कर लेंगे, लेकिन आज का दिन खत्म होगा, कल का दिन आएगा तो अमल नहीं होगा हिसाब होगा, उससे कहा जाएगा कि पूरा करो हिसाब, कहेगा - कहां से पूरा करूं?*
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*⊙:➻ तुम्हें कमज़ोरो की बरकत से रिज़्क मिलता है _,*
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*✪_"_ रसूले अकदस ﷺ की खिदमत में एक शख्स अपने छोटे भाई की शिकायत लेकर आया, बड़ा भाई कमाता था और छोटा भाई कमाता नहीं था, रसूलुल्लाह ﷺ की खिदमत में रहता था, तो बड़े भाई ने शिकायत की कि हजरत! ये यहीं पड़ा रहता है, कोई काम धंधा नहीं करता, वो बेचारा तो खामोश रहा, आखिर बड़े भाई को क्या जवाब देता, मगर आन हज़रत ﷺ ने फरमाया:-*
*"_ तुम्हारी जो मदद की जाती है और तुमको जो रिज़्क दिया जाता है वो इन कमज़ोरों की वजह से दिया जाता है_," (मिशकात - 447)*
*✪_"_ घर में जो बुढ़े मां बाप होते हैं, जो सबसे कमज़ोर होते हैं और जो बेचारे कमाई में सबसे ज्यादा फिसड्डी होते हैं, अल्लाह तआला उनकी बरकत से तमाम घर वालों को पाल रहे हैं, आखिरत के बेटे हैं लेकिन दुनिया नहीं कमा सकते क्या करें? जिनको तुम कहते हो कि ये खैरात की रोटियों पर पलते हैं, मैं कहता हूं कि तुम उनकी वजह से पल रहे हो, अल्लाह तआला तुमको उनकी वजह से पाल रहा है, वो ना होते तो अल्लाह तुम्हें ना पालता, तुम उनको नहीं पाल रहे, बल्की उनका ज़ौफ उनकी कमज़ोरी तुम्हें पाल रही है, वो अल्लाह की रहमत को खींच रही है _,"*
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*⊙:➻ मैदान हशर मे दुनियां के बेटे का हाल_,*
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*✪○_ एक हदीस पाक में फरमाया गया है कि, एक आदमी क़यामत के दिन ज़लील व रुसवा करके अल्लाह तआला के सामने लाया जाएगा, अल्लाह उस बंदे से पूछेंगे कि मैंने तो बहुत सारा माल दिया था तूने क्या किया?*
*○┅"_ वो कहेगा कि- या अल्लाह! मैंने उसे खूब बढ़ाया था, (एक की दो दुकाने लगा ली, एक की चार फैक्ट्रियां बना ली,) बहुत ज़्यादा मैंने कारोबार को बढ़ा लिया था, बड़ी तरक्की दी थी करोबार को, अगर आपको चाहिए तो मुझे वापस भेज दो मैं ला कर आपको देता हूं ,*
*○┅"_ अल्लाह ताला फरमाएं - नहीं मुझे ज़रूरत नहीं है, वो तो तुम्हें यहां भेजने के लिए दिया था, तुम्हारे काम यहां आता _"*
*®_ (मफहूम हदीस) मिश्कात - 443,*
*✪○┅ सरह सूदूर मे हाफ़िज़ सेवती रह. ने एक वाक़िआ नक़ल किया है कि -इबने अबी क़लाबा कहते हैं कि मैं शाम से बसरा की तरफ़ जा रहा था कि रास्ते में रात को एक खंदक़ में उतर कर वज़ू किया, दो रकात निफ़्ल अदा की और क़ब्र पर सर रख कर सो गया, ख्वाब मे क्या देखा कि क़ब्र वाला मुझसे शिकायत कर रहा है कि रात भर आपने मुझे (क़ब्र पर सर रखने की वजह से) तकलीफ़ दी, फिर कहने लगा कि -"_तुम नहीं जानते और हम जानते हैं, मगर अमल नहीं कर सकते, बेशक वो दो राकाते जो तूने अदा की है, दुनिया व माफिहा से बेहतर है," फिर उसने कहा - अल्लाह ताला दुनिया वालों को जज़ा ए खैर दे, आप उनको मेरा सलाम कहिये और उनको बताइये कि उनकी दुआएँ हमारी क़ब्रो में नूर के पहाड़ों की तरह दाखिल होती हैं _,"*
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*⊙:➻ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का ख़ुत्बा- क़ब्र, हशर और मेहशर के बयान में _,*
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*✪○ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु एक जनाज़े के साथ उसको रुखसत करने के लिए तशरीफ़ ले गए, जब मय्यत को उसकी लहद में रखा गया तो उसके मुताल्लिकी़न अहलो अयाल चिल्लाने और रोने लगे, हज़रत अली करमुल्लाहु वजहू ने इरशाद फरमाया :-*
*"_ रोते क्यों हो? उनकी मय्यत ने यानी उनके मुर्दे ने जिस चीज़ को देखा है यानि आलमे बरज़ख को, अगर तुम लोग उस चीज़ को देख लेते तो फिर मुर्दे को भूल जाते और अपनी फ़िक्र में पड़ जाते।"*
*✪○ हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं क़यामत की होलनकियां और क़ब्र के नक़्शे उनके सामने आ जाते तो उनको अपना मुर्दा भूल जाता और फिर फरमाया कि ये मौत तो हर बार तुम्हारे घर का पहरा देगी, बार बार आएगी, यहां तक कि एक आदमी को भी नहीं छोड़ेगी, जितने घर में आदमी (मर्द और औरत) है, सबको एक कर के ले जाएगी_,"*
*✪○ फरमाया कि देखो मैं तुम्हें वसीयत करता हूं अल्लाह से डरने की, जिस अल्लाह ने तुम्हारे लिए मिसालें बयान कर दी है, नेक लोगों की मिसाल भी बयान कर दी है, और बुरे लोगो की भी, फिरौन की मिसाल भी बयान कर दी, मूसा अलैहिस्सलाम की मिसाल भी बयान कर दी, इसरार की भी, अबरार की भी, हर एक कि मिसाल बयान कर दी, सखावत करने वालों की भी, बुख्ल करने वालों की भी, मां बाप के नाफरमान की भी और फरमाबरदारों की भी मिसाल बयान कर दी, तुमसे कोई ऐसा नहीं है जिसके लिए अल्लाह ने अपने पाक कलाम मे मिसालें ना बयान कर दी हो, और इसी तरह तुम्हारे लिए मिआदे भी मुक़र्रर कर दी है_,"*
*✪○ हर एक आदमी की क़िस्मत का परवाना उसके गुज़रे हुए दिन, उसकी गरदन में लटका कर भेजे हैं, अल्लाह तआला ने सूरह बानी इसराईल -आयत 13, माई ब्यान फरमाया,... (तर्जुमा) हर एक की क़िस्मत का परवाना हमने उसकी गर्दन में लटका दिया है _,"*
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*⊙:➻ उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे हबीबा की दुआ_,*
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*✪○- उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा ये दुआ कर रही थी :-"_या अल्लाह! मुझे मेरे शोहर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के ज़रीये से, मेरे वालिद अबू सुफ़ियान रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़रीये से और मेरे भाई मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़रीये से नफ़ा दीज़िये, (मतलब ये है कि अल्लाह इनकी ज़िंदगी लंबी करे और इनका साया मेरे सर पर क़ायम रखें)*
*✪_ आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया:- तू अल्लाह ताला से ऐसी चीज़ मांग रही है और उन मिआदों के बारे में सवाल कर रही है जिनकी ताईन की जा चुकी है और उन रिज़्कों के बारे मे मांग रही है जिनको तक़सीम कर के दिया जा चुका है और उन सांसो के बारे में सवाल कर रही है जिनको गिनकर शुमार कर लिया गया है, (कि इतनी सांसे फलां शख़्स के लिए), अल्लाह ता'ला इन आजाल और इन्फास को ना मुअख्खर करेंगे ( यानी जो तय हो चुका है दिन, घड़ी, सांसे, रिज़्क उन्हें ना टालेंगे) ना मुकद्दम करेंगे,*
*"_ अगर तूने अल्लाह ताला से ये सवाल किया होता कि अल्लाह तआला तुझे दोज़ख से पनाह अता फरमाए और क़ब्र के अज़ाब से पनाह अता फरमाये तो ये अफ़ज़ल होता और बेहतर होता _,"*
*®_सहीह मुस्लिम- 2/338 ,*
*✪○- यानी आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने उनसे फरमाया कि मांगने की चीज़ तो ये थी मगर तू कुछ और मांग रही है, अल्लाह ता'ला ने हर एक के लिए रिज़्क, सांसे मुक़र्रर की हुई हैं, हर एक कि मिआदें मुक़र्रर है, इसलिए अपने और दूसरों के लिए दोज़ख से पनाह मांगी जाए और जन्नत के हुसूल का सवाल किया जाए, ये हमारे हक़ में बेहतर है,*
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*⊙:➻ इनामात ए इलाहिया का इस्तेहज़ार _,*
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*✪"_ इसके बाद फरमाया:- तुम्हें कान दिए हैं, आंखें दी हैं, दिल दिए हैं, कान दिए हैं ताकि कानो में जो बात पड़ती है उसे तुम ज़रा समझ लो, क्या तुम समझते हो कि अल्लाह तआला ने कान इसीलिये दिए हैं कि तुम गाने सुनो ?*
*✪"_ गाने के बगैर रह नहीं सकते, अल्लाह तआला फ़ज़ल फरमाये, बचपन से ऐसी आदत पड़ गई, गोया गाने घुट्टी में डाल दिए गए हैं, गाने सुनने से तुम्हारी तबीयत बद मज़ा नहीं होती ? तुमको इस बात का अहसास नहीं होता कि दिल में जुल्मत आ रही है, तुमको ख्याल नहीं आता कि हमारे कानों के ज़रिए से अंदर क्या उड़ेला जा रहा है?*
*✪"_आंखों की नियामत:- और तुमको नज़रें दी है', आंखे दी है', ताकी तुम उसके परदे को हटाओ और इबरत की नज़र से देखो, आंखे इसलिए दी है ताकि तुम इन आंखों से नज़रे इबरत के साथ देखो*
*✪"_ और तुम्हें अल्लाह तआला ने दिल अता फरमाये हैं ताकी तुम उन हवादिस और मसाईल को समझो जो तुम्हें पेश आने वाले हैं _,"*
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*⊙:➻ इंसान और जानवर में फर्क _,*
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*✪_तुममे और जानवर में यही फ़र्क है कि तुम मुस्तक़बिल पर नज़र रखते हुए उसका तहफ्फुज़ किया करते हो, और जानवर बेचारा जो सामने आता है खा लेता है, आगे की उसको फिक्र नहीं,*
*✪_ तुम तदब्बुर और तदबीर किया करते हो, तदब्बुर के मा'नी है अंजाम को सोचना और तदबीर के मा'नी है अंजाम के लिए कोई सामान करना कि ये चीज़ पेश आनी वाली है, इसका क्या बंदोबस्त किया जाए? इसको तदबीर कहते हैं हैं, किसी चीज़ पर गौर व फिक्र करना तदब्बुर कहलाता है और उस अंजाम की भलाई के अस्बाब मुहय्या करने की फिक्र करना तदबीर कहलाता है,*
*✪_ इंसान को हक़ ताला शान्हु ने तदब्बुर भी दिया और तदबीर भी दी है, हैवानात को ये चीज़ नहीं दी, और ये तदब्बुर और तदबीर दिलो का काम है, और ये दिमाग इसकी मशीनरी दिल है,*
*✪_ अगर दिल में तक़वा हो तो दिमाग तक़वे की बात सोचेगा, और अगर दिल में खबासत और नजासत हो तो दिल में लोगों को तकलीफ देने की तदबीरे गर्दिश करेंगी, दिल में नेकी और परहेज़गारी हो तो दिमाग उसका बंदोबस्त सोचेगा, और दिल में खुदा का खौफ ना हो तो फिर दिमाग उसके मुताबिक़ तदबीरे करेगा _,"*
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*⊙:➻ _दिल की नियामत _,*
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*✪_ तो हुक्म तो चलता है दिल का, चाहत और ना चाहत तो दिल का काम है, नेकी और बदी दिल का काम है, इसी तरह खबासत या तहारत ये क़ल्ब की सेहत की सिफत है, दिमाग तो उसकी मशीन है, जिस तरह दिल कहेगा उसी तरह करेगा, जो हाकिम कहेगा मातहत उसकी तामील करेंगे _,"*
*✪_ इरशाद फरमाया कि अल्लाह तआला ने तुमको दिल बख्शे हैं ताकी आइंदा जो हवादिस पेश आने वाले हैं उनकी फिक्र करो, इसे तुम लोग यूं ना समझो कि अल्लाह ने तुम्हें पैदा करके बेकार छोड़ दिया है, तुमसे कोई हिसाब व किताब नहीं लेगा _,"*
*✪_ और युं भी ना समझो कि चूँकी तुमने कानों में डाट दे लिए हैं और दिलों को अल्लाह की नसीहत से फेर लिया है, तो अल्लाह तआला भी तुमसे नसीहत फेर लेंगे, नहीं ! अल्लाह तआला अपनी इनायत और नसीहत करने का अपना फ़ज़ल तुम्हारी तरफ़ मुतवज्जह रखेंगे तुम सुनो तब भी, न सुनो तब भी, इबरत हासिल करो तब भी और इबरत की आंखें बंद कर लो तब भी, अल्लाह तआला तुम्हारे सामने नसीहत करते रहेंगे _,"*
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*⊙:➻ अहसानत ए इलाही और आमाल की जज़ा व सज़ा_,*
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*✪○_ अल्लाह ताला की नियामतों को देखो (आंख, कान, जुबान, दिलो दिमाग, हाथ पैर) कि अल्लाह ताला ने कामिल तरीन नियामतें तुमको अता फरमाई है, और छोटी बड़ी तमाम हाजते दी, जिंदगी के लिए जो सामान चाहिए वो अल्लाह ताला ने दिया, अब तुम भी तो कुछ करोगे ना !*
*✪○_कितनी नियामतें तुमने उड़ाई वो अल्लाह के इल्म मे है, जो एहसानात किए वो उसके इल्म मे है, और तुम जो उसके मुक़ाबले मे अच्छे और बुरे आमाल कर रहे हो वो भी अल्लाह तआला के इल्म मे है और ये बात याद रखो नेक आमाल हो या बूरे आमाल हो वो तुमने खुशी में किए हो या तंगी में, सहत मे किए हों या बिमारी मे, उन सब आमाल की जजा़ व सज़ा वो देगा,*
*✪_ अल्लाह के बंदो ! तलाश में मेहनत करो और वो जो चीज़ तमाम ख़्वाहिशात के घरौंदे को चकनाचूर कर देती है और जो तमाम लज्ज़तो को तोड़ कर रख देती है, उस चीज़ यानी मौत के आने से पहले पहले अमल कर लो, वरना बाज़ी हार जाओगे।*
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*⊙:➻ हार जीत का मैदान तो महशर है_,*
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*✪○- आज कल तो पूरी क़ौम लगी हुई है खेल के मैदान में खेल (मैच) देखने के लिए, मुझे एक नोजवान ने लिखा कि टीवी देखना गुनाह है, ये तो ठीक है, लेकिन मै खैल (क्रिकेट मैच, फुटबॉल मैच) देखने का शौकीन हूं, तो मैं कभी कभी टीवी पर मैच देख लेता हूं, माशा अल्लाह बहुत अच्छा मुक़ाबला हुआ, फलां जीत गया फलां हार गया,*
*✪○- क्या इसी जीत को तुमने जीत और इसी हार को हार समझ लिया, हार और जीत का असल मैदान तो आगे आने वाला है, मेरे भाई! कुरआन ए करीम ने जिसको "यौमे तगाबुन" फरमाया, दर असल हार जीत का दिन और हार जीत का मैदान तो मैदान ए महशर है,*
*✪○- तो मेरे भाई ! मेहनत करो, कोशिश करो, अभी सहत है, कु़व्वत है, मौत के आने से पहले पहले आमाल कर लो, इसलिए कि दुनिया में तुम्हारा दिल अटक गया है, इसकी नियामतें हमेशा रहने वाली नहीं है, और क्या मालूम यहां कौनसा हादसा किस वक्त़ पेश आ जाए? इस बारे में कोई इत्मिनान नहीं है,*
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*⊙:➻ मौत के बाद का नक्शा_,*
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*✪○┅ इसके बाद फिर नक्शा बयान फरमाया है कि आगे तुम्हें मालूम है कि तुम्हें आगे क्या पेश आने वाला है? क़ब्र के अंदर तो जो कुछ पेश आने वाला है वो आने वाला है वो आने वाला है लेकिन क़ब्र के बाद सूर फूंक दिया जाएगा, कब्र उखाड़ दी जाएगी, महशर की तरफ सब लोगों को हांक हांक कर ले जाया जाएगा और हिसाब के कटेहरे में लोगों को खड़ा कर दिया जाएगा, हिसाब लेने वाला वो होगा जिसके इल्म से कोई चीज़ गायब नहीं होगी,*
*✪○┅ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबुज़र ग़फारी रजियल्लाहु अन्हु से फरमाया था कि, ऐ अबुज़र! तोशा साथ ले कर जाना सफर बड़ा लंबा है, अपना बोझ ज़रा हल्का रखना, इसलिये कि घांटी बड़ी दुशवार है, इस पर चढ़ना बड़ा मुश्किल है, और अपना अमल ज़रा खरा लेकर जाना, अमल तुम्हारी पूंजी है।*
*✪○┅ सुबेह खाते हो शाम की फ़िक्र करते हो और वो जो क़ब्र में पड़े हुए हैं उनके बारे में क्या इरशाद है? ये सब क़यामत तक तो वही रहेंगे और क़यामत के बाद उठाए जाएंगे, वो 50 हज़ार साल का दिन होगा, उसके लिए भी कुछ सामान की ज़रूरत है कि नहीं ?*
*✪○┅ अपना अमल खरा ले कर जाना, सिक्का खोटा नहीं खरा होना चाहिए, इसलिए कि परखने वाला बड़ा बारीक बीन है,*
*✪○┅ इसको फरमाया कि फिर तुम्हें हिसाब के लिए खड़ा किया जाएगा और तुम इस शान से लाए जाओगे कि एक हांकने वाला होगा जो डंडे के साथ हांक रहा होगा, जैसे गाय भेंस को हांका जाता है,*
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*⊙:➻ अदालते इलाही के गवाह_,*
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*✪○┅ साथ एक गवाही देने वाला होगा, ये दोनों गवाही देंगे, एक हांकने वाला और एक दूसरा गवाह, और हज़राते उलमा फरमाते हैं कि ये दो गवाह देने वाले हैं जिनको किरामन कातिबीन कहते हैं, तुम्हारा नामा ए आमाल का कातिब कहेगा - ये इसका दफ्तर है जो मेरे पास तैयार रखा है, इन्कार करेगा तो गवाही देंगे, जब इस पर भी इन्कार करेगा कहेगा कि झूठ बोलते हैं मेने ये काम नहीं किया।*
*✪○┅ चुनांचे मिश्कात शरीफ़ -485 में है कि, हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक दफा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम मजलिस में बेठे थे, आप मुस्कुराए और फरमाया तुम क्यों नहीं पूछ्ते कि मैं क्यों मुस्कुराया ? सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया- या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम इरशाद फरमायें,*
*✪__ फरमाया - बंदा क़यामत के दिन कहेगा कि या अल्लाह! क्या ये बात नहीं है कि आपने मुझको जुल्म से अमान दिया है, यानी तुझ पर जुल्म नहीं होगा, अल्लाह ताला फरमाएगा कि बिलकुल ठीक है, मेरा वादा है कि तुझ पर जुल्म नहीं होगा, तो वो कहेगा कि अगर आपका वादा है कि ज़ुल्म नहीं होगा तो मैं इनमें से किसी की गवाही को तस्लीम नहीं करता.."*
*✪○┅ अहमक ये समझेगा कि शायद इससे मेरी जान छूट जाएगी, फरमाया - बहुत खूब बिलकुल ठीक है, वो जो सूरह यासीन मे फरमाया, यानि अल्लाह तआला फरमाएंगे बिलकुल ठीक है, मुंह पर मुहर लगा दी जाएगी, हाथ गवाही देंगे हमने ये ये किया था, और पांव गवाही देंगे, फिर अल्लाह ताला फरमाएंगे कि अब तो ठीक है, अब तो कोई गवाही नहीं दे रहा, अब तुम खुद ही अपने ऊपर गवाही दे रहे हो, किसी की शहादत हम तुम्हारे हक़ में कुबूल नहीं करते, लेकिन तुम अपने हाथ और पांव की शहादत तो मानोगे के नहीं ?*
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*⊙:➻ तमाम आज़ा ए जिस्म गवाही देंगे_,*
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*✪○- क़ुरान ए करीम मे इरशाद फरमाया :- (तर्जुमा ) - वो अपनी खालो से कहेंगे कि तुम मेरे ख़िलाफ़ क्यूं गवाही देते हो ? वो कहेंगे कि हमें बुलवा दिया है, उसने जिसने हर चीज़ बुलवा दिया है, जिसने हर चीज़ को गोयाई अता फरमाई है _," (हामीम सजदा -21)*
*✪○- जो जुबान को बुलवा सकता है वो चमड़ी को भी बुलवा सकता है, जब तुम्हारे वो आज़ा जिन्होंने जुर्म किए वो बोल कर बताएंगे फिर क्या बाकी रहेगा ? अब कुछ पर्दा ढंका हुआ था, मगर जब उस बंदे ने जो कुछ किया और जो कुछ किरामन कातिबीन ने लिखा कि उसने ज़िना किया है, ये तो इसने माना नहीं, अब अगर उसकी शर्मगाह बोल कर बताए फिर तो कुछ शर्म आएगी, उसकी आंखे बोल कर बताएंगी कि मेरे साथ इसने ये किया, अगर किरामन कातिबीन की गवाही को नहीं मानोगे,*
*✪_ ये अल्लाह तआला के मासूम फरिश्ते जो तुम्हारे नामा ए आमाल लिखने पर मुकर्रर है, और वो दीवान और दफ्तर तुम्हारा फैला दिया जाएगा, उसको नहीं मनाएंगे तो फिर अपनी (हाथ, पेर, जुबान, आंखे, शर्मगाह की) गवाही तो मानोगे,*
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*⊙:➻ मैदान ए हशर का नक्शा_,*
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*✪○- हदीस शरीफ मे आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने मैदाने हशर का नक़्शा खींचते हुए इरशाद फरमाया :-*
*"_ बंदा क़यामत के दिन अपने रब से कलाम करेगा, बंदा और उसके रब के दरमियान कोई तर्जुमान नहीं होगा, वो बंदा दाईं जानिब देखेंगा तो उसके अमल फेले हुए होंगे, बायी जानिब देखेंगा तो उसके आमाल फैले हुए होंगे, आगे को देखेगा तो आग सामने होगी_,"*
*✪_ (गोया कि चारो तरफ देखेगा, पीछे तो देख नहीं सकता और हर तरफ उसके आमाल फैले हुए होंगे, कोई एक आध पन्ना थोड़े ही है, हमने पूरी जिंदगी में किरामन कातिबीन के कितने कागज़ सियाह करवाए हैं, ये नक़्शा बयान कर के) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया:- जो शख्स अपने आपको आग से बचाने की इस्तेतात रखता है, चाहे खजूर की ही एक फांक ही देना पड़े तो वो ऐसा करे, (आधा हिस्सा खजूर का जो सदका किया होगा, उसको भी मामूली ना समझो ये भी दोज़ख से बचाने वाली चीज़ है )*
*®_ (तिर्मिज़ी -2/64)*
*✪○- गर्ज़ ये कि तुम्हारे आमाल का नक़्शा है, तो और क्या कहें, आगे पूरे कवाइफ़ ज़िक्र फ़रमाये, सूरज बेनूर हो जाएगा, चोपाए तक जमा कर दिए जाएंगे, दिल के भेद खुल कर सामने आ जाएंगे, दिल कांप रहे होंगे, चेहरे उदास होंगे, कहीं छिपने की जगह ना होगी, कहीं पनाह की जगह नहीं, कोई साया नहीं, कोई पीने को पानी नहीं, ये मैदाने हशर है, अगर ये सारी चीजें बार हक है तो तुम किस गफलत में भूले हुए हो और तुम्हें यहां की जिंदगी ने क्यों फरेब दे रखा है, क्यों धोके में डाल रखा है,*
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*⊙:➻ दोजख का नक़सा _,*
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*✪○- फ़िर अल्लाह तआला फ़ज़ल फ़रमाये, अल्लाह तआला बचाए दोज़ख़ से, दोज़ख में कुंडियां है जिनमे आदमी फंस जाए तो निकल ना सके, जैसे कांटा डाला जाता है दरिया में मछलीयों को फँसाने के लिए, मछलियां उस कांटे को निगल तो लेती है, फिर उगल नहीं सकती, उसके लिए कुंडिया होंगी और शोर मचा रही होंगी, चिल्ला रही होंगी, इतना शोर कि उस शोर से आदमी के होश उड़ जाएंगे, और ऐसी कड़क जैसी बिजली की कड़क होती है, ऐसी लपट कि आदमी को झुलसा देगी,*
*✪○_ ये जहन्नम में दाखिल होने से पहले का नक्शा है, खुदा महफूज़ फरमाये, अल्लाह तआला बचाए, एक लम्हा के लिए भी अल्लाह तआला ना भेजे (आमीन)*
*✪_"_ गफलत की जिंदगी ना गुजा़रो, अपनी आखिरत की तैयारी करो, ये मौत, मौत के बाद क़ब्र की जिंदगी, क़ब्र के बाद हशर और उसके बाद दोज़ख, ये होलनाकियां और फितना समानियों से बचने के लिए अल्लाह से डरो और नेक आमाल का ज़खीरा तैयार करो, अल्लाह तआला तोफ़ीक़ अता फरमाये, (आमीन)*
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*⊙:➻ क़यामत के दिन के पांच सवालात_,*
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*✪○- हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया कि:- बंदे के क़दम क़यामत के दिन अपने रब के पास से नहीं हिलेंगे यहाँ तक कि उससे सवाल किया जाए पाँच चीज़ो के बारे में:-*
*( 1)- उसकी उम्र के बारे में कि उसने उम्र को किस चीज़ में फना किया?*
*( 2)- और उसकी जवानी के बारे में कि उसने इसको किस चीज़ में गुज़ारा?*
*( 3)-- और उसके माल के बारे में कि उसने इसे कहां से हासिल किया? ( 4)- और ये कि माल किस चीज़ में खर्च किया ?*
*( 5-)- और जो चीज़ें (इल्म) उसको मालूम थी उनमें से किन चीज़ों पर अमल किया?*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/64_*
*✪○- हज़रत अबू बरज़ा असलमी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया कि - बंदे के क़दम अपनी जगह से नहीं हटेंगे यहां तक कि उससे (चंद चीजों के बारे में) सवाल किया जाए, (और वो उनका माक़ूल जवाब दे, अव्वल)_उसकी उम्र के बारे में (सवाल किया जाएगा) कि किस चीज़ में खत्म की? (दोम) उसके इल्म के बारे में कि उसे किस चीज़ में इस्तेमाल किया? (सोम) उसके माल के बारे में कि कहां से कमाया? और किस चीज़ में खर्च किया? और (चहारम) उसके बदन के बारे में कि इसको (इसकी कुव्वतों को) किस चीज़ में कमज़ोर किया?*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/64_,*
*✪○- यानी बंदे को अपनी उम्र, अपने माल, अपने इल्म और अपनी बदनी क़ुव्वतों के बारे में जवाब देना होगा कि तमाम चीजों का इस्तेमाल सही किया या गलत, अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहकाम के मुताबिक़ किया या उनके ख़िलाफ़?*
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*⊙:➻_हिसाब व किताब का मरहला बहुत ही दुशवार है :-*
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*✪"_ आगर आदमी अपनी जिंदगी के एक दिन का हिसाब चुकाने बेठे तो सोचा जा सकता है कि इसमें कितनी परेशानी होगी! और यहां तो एक आध दिन का क़िस्सा नहीं बल्कि पूरी जिंदगी का हिसाब चुकाना होगा, ये ऐसी होलनाक हक़ीक़त है इसके तसव्वुर ही से रोंगटे खड़े हो जाते हैं _,"*
*✪"_ लेकिन हमारी गफलत लायक़े ताज्जुब है कि मिस्कीन इंसान को हिसाब व किताब का ये मरहला पेश आने वाला है मगर वो नशा ए गफलत में मदहोश इस मरहले से बिलकुल गाफिल और बेखबर है, मुबारक हैं वो लोग जो हिसाब का दिन आने से पहले अपना हिसाब दुरुस्त कर लें और जो लगजिशे और कोताहियां सरज़द हो गई हैं, मरने से पहले उनकी कुछ इस्लाह कर लें _,*
*✪"_ ये आन हजरत ﷺ की उम्मत के हाल पर निहायत शफक़त है कि जो इम्तिहानी पर्चा उसे क़यामत के दिन हल करना है और जिन चीज़ों का हिसाब बेबाक़ करना है, उसकी इत्तेला पहले से कर दी, ताकी हर शख्स फिक्रमंदी के साथ इसकी तैयारी करें और उसे वक्त पर पेशानी का सामना ना हो _,"*
*✪"_ हक़ ताला शानहू अपनी रहमत व अफु से उस दिन की परेशानी से महफूज़ फरमाये और हमारे उज्र व जो़फ पर नज़र फरमा कर हमारे ऐबों को अपनी मगफिरत से ढ़ांक ले_,"*
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*⊙:➻ हुक़ूक़ुल इबाद को जा़या करने वाला क़यामत के दिन मुफलिस होगा_,*
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*✪○- हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:- जानते हो मुफ़लिस कोन है? सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया :- या रसूलुल्लाह ! हममें मुफलिस वो शख्स कहलाता हैं जिसके पास रुपया पैसा और माल व मता ना हो,*
*✪__ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया:- मेरी उम्मत में मुफलिस वो शख्स है जो क़यामत के दिन नमाज़, रोज़ा और जकात ले कर ऐसी हालत में आएगा कि किसी को गाली दी थी, किसी पर तोहमत लगायी थी, किसी का माल खाया था, किसी का खून बहाया था, किसी को मारा पीटा था, पस ये तमाम लोग अपने हुक़ूक़ का बदला उसकी नेकियों से वसूल करेंगे, उसके जिम्मे जो लोगो के हुकूक हैं, अगर उनके पूरा होने से पहले उसकी नेकियां खत्म हो गई तो अहले हुकूक के गुनाह ले कर उस पर डाल दिए जाएंगे, फिर उसे दोज़ख में फेंक दिया जाएगा _,"*
*✪○- हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से दूसरी हदीस में मनकूल है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया:- अल्लाह तआला उस शख्स पर रहम फ़रमाये जिसके ज़िम्मे उसके भाई का कोई गसब करदा हक़ हो, ख़्वाह उसकी इज़्ज़त व आबरू के मुतल्लिक या उसके माल के मुताल्लिक, तो उसके पास जा कर उसे माफ़ करा ले, इससे क़ब्ल कि वो (क़यामत के दिन उन हुकूक़ की वजह से) पकड़ा जाए और वहां कोई दिरहम व दिनार तो होगा नहीं (सिर्फ नेकी और बदी का सिक्का चलेगा) और उन्हीं के जरिए वहां हुकूक की अदायगी होगी),*
*✪_"_ पस उस शख्स के पास अगर कुछ नेकियां हो तो उसकी नेकियों से मु'आवजा़ किया जाएगा और अगर उसके पास नेकियान ना हुई तो लोग (अपने हुक़ूक़ के बदले में) उस पर अपने गुनाह डाल देंगे _,"*
*®_ तिर्मिज़ी- 2/64_,*
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*⊙:➻ क़यामत की रुसवाई से बचे _,*
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*✪○- अहादीस तैयबा से मालूम हुआ कि हम जो दूसरों की गीबतें करते हैं, उनको गाली गलोच करते हैं, किसी की तहकीर करते हैं, किसी को जिस्मानी या ज़हनी तकलीफ पहुंचाते हैं, या किसी का माल हज़म कर जाते हैं तो दर असल ये उसका नुक़सान नहीं बल्की हम अपना ही नुक़सान करते हैं कि क़यामत के दिन हमें उनका मुआवज़ा अपनी नेकियां दे कर अदा करना होगा, जब एक एक नेकी का बंदा मोहताज होगा,*
*✪○- अकाबिर फरमाते हैं कि हुकूकुल इबाद का मामला एक लिहाज़ से हुकूकुल्लाह से ज़्यादा संगीन है, क्योंकि हक ताला शांहू गनी मुतलक़ है माफ भी कर देंगे, लेकिन बंदे मोहताज हैं, उनसे ये तवक्को़ कि वह माफ कर दें, इल्ला माशा अल्लाह,*
*✪○- ये भी मालूम हुआ कि हुकूक उल इबाद का मामला सिर्फ इंसानों तक महदूद नहीं, बल्की हैवानात तक फैला हुआ है, बावजूद इसके कि हैवानात अहकामे शरई के मुकल्लिफ नहीं, लेकिन अगर एक बकरी ने दूसरी बकरी से ज़्यादाती की होगी तो उसका बदला भी दिलाया जायेगा, पस इंसान जो अपनी अक़ल व शऊर की बदौलत मुकल्लिफ है, अगर उसने किसी जानवर पर भी जुल्म किया होगा, उसका बदला भी उसे दिलाया जाएगा।*
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*⊙:➻ हुक़ूक़ की तलाफी की सूरतें _,*
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*✪_क़यामत के दिन हुकूक से अहद बरा होने के लिए ज़रूरी है कि अववल तो आदमी किसी का हक़ अपने जिम्मे न रखे, बल्की पूरी दयानत व अमानत के साथ अपने मामलात को साफ रखे और किसी की गीबत वगेरा से परहेज़ करें और अगर गफलत कोताही की वजह से उसके ज़िम्मे कुछ हुकूक लाज़िम हों तो उसकी तलाफ़ी व तदारिक की कोशिश करे,*
*✪"_ और तालाफ़ी की तफ़सील ये है कि हुक़ूक़ या माली होंगे या इज्ज़त व आबरू से मुताल्लिक़ और दोनो सूरतो में साहिबे हक़ मालूम होगा या नहीं ? पस ये कुल चार सूरतें हैं:-*
*"अव्वल - हक माली हो और साहिबे हक़ मालूम हो, इस सूरत में उसका हक़ अदा कर दे, और अगर अदा करने की क़ुदरत ना रखता हो तो उससे माफ़ करा ले,*
*✪"_ दोम - हक़ माली हो और साहिबे हक़ मालूम हो, मसलन किसी शख़्स से कोई चीज़ खरीदी थी, उसके दाम अदा नहीं किए और वो शख्स कहीं गायब हो गया, अब उसका कुछ पता नहीं चलता, या वो शख्स मर गया और उसका कोई वारिस भी मालूम नहीं, तो इस सूरत में इतनी रकम उसकी तरफ से सदका़ कर दे,*
*✪"_सोम :- अगर हक़ गैर माली हो और साहिबे हक़ मालूम हो, मसलन किसी को मारा था या उसे गाली दी थी, या उसकी गीबत की थी या उसकी तहकीर की थी तो उससे माफी मांगना जरूरी है,*
*✪"_ चहारम:- अगर हक़ गैर माली हो और असहाबे हुकूक मालूम ना हो, यानी ये याद ना हो कि जिंदगी भर में किस किस को गाली दी? किस किसको सताया? किस किसकी गीबते की ? वगेरा वगेरा, तो इसकी तदबीर ये है कि उन सबके लिए दुआ व इस्तगफार करता रहे, अल्लाह ताला की बरगाह में कुछ तौबा व नादमत के साथ ये दुआ करता रहे - या अल्लाह मेरे जिम्मे तेरे बहुत से बंदो के हुक़ूक़ हैं और मैं उनको अदा करने या असहाबे हुकूक से माफ़ी माँगने पर भी कादिर नहीं हूँ, या अल्लाह! उन तमाम लोगों को आप अपने ख़ज़ाना रहमत से बदला अता फरमाकर उनको मुझसे राज़ी कर दीजिए,*
*✪_ यही तदबीर इस सूरत में अख्त्यार की जाए, जब साहिबे हक़ तो मालूम हो मगर उससे माफी मांगना मुमकिन ना हो या दीनी मसलिहत के खिलाफ हो, या किसी का माली हक़ उसके जिम्मे हो मगर ये उसके अदा करने की क़ुदरत ना रख्ता हो ,*
*"_ अलगर्ज़! हुकूक की अदायगी या तलाफ़ी का बहुत ही अहतमाम होना चाहिए, वरना क़यामत का मामला बहुत ही मुश्किल है,*
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*⊙:➻_क़यामत के दिन के पसीने का बयान_,*
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*✪_ हज़रत मिकदाद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि :- मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को ये इरशाद फ़रमाते हुए सुना है कि :-जब कयामत का दिन होगा, सूरज बंदो के क़रीब लाया जाएगा, यहां तक कि मील दो मील के फासले पर होगा _,"*
*✪"_ सलीम बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि - मैं नहीं जानता कि आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने किस मील का इरादा फरमाया, आया ज़मीन की मुसाफ़त का? या वो मील ( यानी सुरमा की सलाई ) जिससे आंखें मे सुरमा लगाया जाता है ? पस आफताब उनकी चरबी पिघला देगा, पस लोग अपने आमाल के बाक़दर पसीन में नहाए होंगे, किसी का पसीना टखनों तक होगा, किसी का घुटनों तक, किसी का कमर तक और किसी का मुंह तक पहुंचेगा _"*
*✪"_ हज़रत मिक़दाद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को देखा कि आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने हाथ से अपने दहन मुबारक की तरफ़ इशारा कर के फरमाया कि - बाज़ का पसीना उनके मुंह को लगाम दिए हुए होंगा _"*
*®_ तिर्मिज़ी -2/ 24-25_*
*✪○- एक हदीस मे है कि क़यामत के दिन लोगों को इस क़दर पसीना आएगा कि उनका पसीना ज़मीन में सत्तर गज़ तक जाएगा और उनके मुंह में लगाम की तरह होगा, यहां तक कि उनके कान तक पहुंच जाएगा_"*
*®_ बुखारी_*
*✪○- अहदीस का मुद्दा ये है कि हम ख्वाबे गफलत से बेदार हो कर उस खौफनाक दिन के लिए जो बहरहाल हर एक को पेश आना है, तैयारी करें, उन असबाब को अख्त्यार करें जिनके ज़रीए उन अहवाल से छुटकारा नसीब हो। हमसे हुक़ूकुल्लाह, हुकू़कुल इबाद मे जितनी कोताहियां हुई हैं, उनसे तौबा करके उनकी तलाफी का अहतमाम करें और करीम आका़ की बारगाह में हमेशा इल्तिजा करते रहें कि महज़ अपने लुत्फो करम व अहसान से हमें क़यामत के दिन की ज़िल्लत व रुस्वाई से महफूज़ रखे, दुनिया की गंदगियों से पाक साफ कर के वहां ले जाए और कयामत के दिन अपने मक़बूल बंदो के साथ हमारा हशर फरमाये, (आमीन)*
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*⊙:➻ हशर का बयान__,*
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*✪○- हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि – लोगों को जमा किया जाएगा क़यामत के दिन ऐसी हालत में कि बरहना पा, बरहना बदन और गैर मख़्तून होंगे, जेसा कि पैदाइश के वक्त थे, फ़िर आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने ये आयते करीमा तिलावत फरमायी -(सूरह अल-अनबिया, आयत 104):*
*ِ"_ كَمَا بَدَأْنَا أَوَّلَ خَلْقٍ نُّعِيدُهُ وَعْدًا عَلَيْنَا إِنَّا كُنَّا فَاعِلِينَ _"*
*"_(जेसा कि सिरे से बनाया था हमने पहली बार, फिर उसको दोहराएंगे, वादा ज़रूर हो चूका है हम पर, हमको पूरा करना है)*
*✪"_ और मख़लूक मे से पहले शख्श जिनको लिबास पहनाया जाएगा, वो हजरत इब्राहीम नबिय्यना व अलैहिस्सलातु वस्सलाम होंगे, और मेरे असहाब में से कुछ लोगो को दाईं जानिब और बाज़ को बायीं जानिब (यानी दोज़ख की तरफ) ले जाया जाएगा, तो मैं कहूंगा - या अल्लाह ! ये तो मेरे असहाब है''*
*"_ पस कहा जाएगा कि– आप नहीं जानते कि इन्होंने आपके बाद क्या किया? आप जबसे उनसे जुदा हुए ये हमेशा मुर्तद रहे_,"*
*✪"_ पस मैं कहूंगा जेसा कि नेक बंदे (हज़रत ईसा नबिय्यना अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने कहा - या अल्लाह! अगर आप उन्हें अज़ाब दें तो आपके बंदे हैं और अगर उनकी मगफिरत फरमा दें तो आप ज़बरदस्त हैं, हिकमत वाले हैं _”*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/65_*
*✪○- हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया कि– लोग नंगे पांव, बरहाना बदन और गैर मख़्तून उठाये जाएंगे, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि मैंने अर्ज़ किया– या रसूलुल्लाह! क्या मर्द और औरतें एक दूसरे को देख रहे होंगे? आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया- मांमला इससे कहीं सख्त होगा कि किसी को इसका ख्याल भी आए, ”(सहीह बुखारी_)*
*"_ एक रिवायत में है कि - आयशा मामला इससे कहीं सख्त होगा कि कोई किसी को देखे _," (सही मुस्लिम)*
*✪"_ हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु का वाक़िया ज़िक्र किया गया है कि उनकी वफ़ात का वक्त क़रीब आया तो नए कपडे मंगवा कर पहने, फिर फरमाया कि, मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को ये इरशाद फ़रमाते हुए ख़ुद सुना है कि मरने वाले को उन्हीं कपड़ों में उठाया जाएगा जिनमे मरेगा _," (अबू दाऊद 2/88)*
*✪"_ बाज़ अहले इल्म के नज़दीक हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की इस हदीस में कपड़ों से मुराद आमाल है, यानी जिन आमाल में आदमी की मौत आती है उसी हाल में क़यामत के दिन उठाया जाएगा, ये मज़मून दूसरी अहादीस में भी वारिद हुई हैं, और बाज़ हजरात ने इसको शोहदा के साथ मखसूस किया है, क्योंकि जिन कपड़ो में वफात हो शहीद को उन्हीं कपडो में दफन किया जाता है, जबकी दूसरे लोगो के वो कपडे उतार लिए जाते है और कफन पहनना जाता है,*
*✪"_ बहार हाल क़बरो से उठते वक्त लोगो के बदन पर लिबास नहीं होगा, बल्की हर शख्स की हैसियत वी् मरतबे के मुताबिक उसे बाद में लिबास पहनाया जाएगा _,"*
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*⊙:➻ वो कौन लोग होंगे जिनको होजे कौसर से रोक दिया जाएगा?,*
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*✪○┅ हदीस पाक में ये बयान गुज़रा है कि कुछ लोगों को बाएं जानिब दोज़ख की तरफ ले जाया जाएगा तो आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम फरमायेंगे कि ये तो मेरे असहाब है, फरमाया जाएगा– आपको मालूम नहीं कि इन्होंने आपके बाद क्या किया? ये लोग आपके बाद उलटे पांव फिर गए थे _,"*
*“_ ये गुफ्तगु गालिबन होजे कौसर पर होगी, क्योंकि मुताद्दिद अहादीस में वारीद हुआ है, कि जब आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की उम्मत होजे कौसर पर हाज़िर होगी तो कुछ लोगों को रोक दिया जाएगा, इस पर ये गुफ्तगू होगी।*
*✪○┅ सहीह बुखारी (जिल्द -1 सफा -490 ) में इमाम बुखारी रह. के शागिर्द फरीरी रह. ने इमाम बुखारी रह. के हवाले से उनके शेख क़बीसा बिन उक़बा रह. का क़ौल नक़ल किया है कि इससे मुराद वो लोग हैं जो हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में मुर्तद हो गए थे और जिनसे हज़रत सिद्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु ने क़िताल किया।*
*" _ इमाम खताबी रह. फ़रमाते हैं कि – बा अल्हम्दुलिल्लाह सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम में से कोई मुर्तद नहीं हुआ, मुर्तदीन अक्ख़ड़ क़िस्म के देहाती बद्दू थे, उनमे से अक्सर वो लोग थे जिनको आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की ख़िदमत में हाज़री का मोक़ा नहीं मिला था, और जो चंद अफराद हाजिरे खिदमत भी हुए उन्होंने भी महज़ ज़ाहिरी इतात क़ुबूल की थी, हक़ीक़ते ईमान उनके दिल में रासिक नहीं हुई थी,*
*✪○┅ बाज़ हज़रात फरमाते हैं कि इससे मुनाफिकीन मुराद है और बाज़ कहते हैं इससे अहले कबाइर या अहले बिदअत मुराद है,*
*“__सही बुखारी, (2/975) में है कि हजरत इब्ने अबी मलिका ताबई रह. जब इस हदीस को रिवायत करते तो ये दुआ करते थे - ऐ अल्लाह! हम इस बात से आपकी पनाह चाहते हैं कि हम उलटे पांव लोट जाएं, या अपने दीन के मामले में फितने में मुब्तिला हो जाएं _”*
*✪○┅ सही बुखारी के हासिए में अल्लामा क़ुस्तलानी रह. से नक़ल किया है कि हमारे उलमा ने फरमाया कि वो तमाम लोग जो दीन से फिर गए, या उन्होंने दीन में ऐसी बात ईजाद की जो अल्लाह तआला के नज़दीक ना पसंदीदा थी और जिसकी इजाज़त नहीं थी, ये लोग होजे कौसर से हटा दिए जाएंगे, इस फेहरिस्त में वो लोग भी हैं जो मुसलमानों की जमात के खिलाफ रहे, जेसे खारजियो, राफजियो और मोत्जालियो के तमाम फिरके, क्योंकि ये सब लोग दीन को बदलने वाले है, इसी तरह वो ज़ालिम व मसरफ जो जोरो सितम के मुर्तकब थे, हक़ को मिटाने वाले और अहले हक़ को कत्ल करने वाले और लोगो को गुमराह करने वाले थे,*
*“__ नीज़ जो लोग कबीरा गुनाहों का एलानिया इरत्काब करते और गुनाहों को हल्की चीज़ समझते हैं, ये लोग होज़े कौसर से महरूम रहेंगे,*
*"_ या अल्लाह हमारा खात्मा बिल खैर फरमाइए और हमें उन कामयाब लोगों में से बना दीजिए जिन पर ना कोई खौफ होगा और ना वो गमगीन होंगे और हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के होजे कौसर से सैराब कीजिए, बिरहमातिका या अरहमर राहिमीन_”*
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*⊙:➻ क़यामत के दिन की पेशी_,*
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*✪○- हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया :-“_ क़यामत के दिन लोगों की तीन पेशियां होंगी, पहली दो पेशियों में तो बहस, झगड़ा और उज्र माजरतें होंगी, और तीसरी पेशी नामा ए आमाल (के नतीजे) हाथो में पकड़ाए जाएंगे, पस कोई दाहिनें हाथ मे लेगा और कोई बांए हाथ मे _,”*
*®_ तिर्मिज़ी -2/65_*
*✪○- यानी दो पेशियों में तो ये होगा कि जब मुजरिमों के सामने उनके नाम आमाल पेश किए जाएंगे तो वो इंकार की कोशिश करेंगे, कि ये हमारे आमाल नहीं हैं, हमारे नाम झूठ मूट लिख दिए गए हैं, कभी कहेंगे कि हमारे पास कोई डराने वाला नहीं आया, हम तो बिलकुल बेखबर थे, कभी कहेंगे कि हमारे बड़ों ने हमें गुमराह किया, हम तो उनके ताबे थे, हमारा कोई क़सूर नहीं, कभी कहेंगे कि हमें दुनिया मे दोबारा भेज दिया जाए, हम नेक और फरमाबरदार बन कर आएंगे,*
*✪○- अलगरज़ इस तरह सो सो उज़्र बहाने करके जान बचाने की कोशिश करेंगे मगर ये सब बहाने बेकार जाएंगे और सारी हुज्जतों को एक कर के तोड़ दिया जाएगा, जब मुजरिमों के पास कोई हुज्जत बाक़ी नहीं रहेगी तो तीसरी पेशी में हर एक की किस्मत का आखिरी फैसला कर दिया जाएगा, अल्लाह तआला के नेक फरमाबरदार बंदो को निहायत इज्ज़त व इकराम के साथ जन्नत का परवाना उनके दाएं हाथ में दिया जाएगा जिसे पढ़ कर वो खुशी से बाग बाग हो जाएंगे और मुजरिमों को लानत का तोक़ पहना कर उनकी सजा का फैसला बाएं हाथ में दिया जाएगा और वो बा सदरे जि़ल्लत व ख्वारी व असले जहन्नम होंगे _,"*
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*⊙:➻ हिसाब किताब का बयान_,*
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*✪○- हज़रत उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को ये फ़रमाते हुए सुना है कि :- जिस शख्स से हिसाब मैं मुनाक्शा किया गया वो हलाक़ हो गया, मैंने अर्ज किया या रसूलल्लाह ! अल्लाह ता'ला तो इरशाद फरमाते हैं - सो जिसको मिला आमाल नामा उसके दाहिने हाथ में तो उससे हिसाब लेंगे आसान हिसाब _,”( अल इंशक़ाक -5 तर्जुमा शेखुल हिंद),*
*"_ आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया:- इससे मुराद आमाल नामा पेश होना है _,"*
*®_ तिर्मिज़ी -2/65*
*○┅✧ तशरीह_ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को शुबहा ये था कि आयते करीमा से तो मालूम होता है कि जिन लोगो का हिसाब आसान होगा वो रहमत व मगफिरत का मोरिद होगा और आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के इरशाद से मालूम होता है कि जिसका भी हिसाब हुआ वो हलाक हुआ, आन हज़रत सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने वज़ाहत फरमाई कि आयते करीमा में जिस आसान हिसाब का ज़िक्र है वो ये है कि बंदे का आमाल नामा उसके सामने पेश कर के (कि तूने फलां फलां वक्त़, फलां फलां आमाल किए) उससे चश्म पोशी व दरगुज़र का मामला किया जाए, उसके किसी अमल पर कोई बहस और बाज़ पुर्स न किया जाए, कि ये क्यूं किया ? या क्यों नहीं किया ? लेकिन जिस शख्स से बाज़ पुर्स होगी वो मारा गया, क्योंकि इस बाज़ पुर्स का उसके पास कोई जवाब नहीं होगा।*
*○┅✧ क़यामत के दिन करीम आक़ा का मामला हर शख़्स के साथ उसके हस्बे हाल होगा, बाज़ सा'दत मंदो को बैगर हिसाब किताब जन्नत में दाखिल किए जाने का एलान फरमा दिया जाएगा, बाज़ के साथ आसान का मामला किया जाएगा, बाज़ के साथ मज़ीद अहसान होगा कि उसके छोटे छोटे गुनाह पेश कर के फरमाया जाएगा कि -” इन गुनाहों को नेकियों में तबदील कर दिया जाए _”*
*✪_"__ इस बे पाया फ़ज़ल व अहसान को देख कर बंदा बे अख्त्यार पुकार उठेगा कि -" या अल्लाह! मेरे बड़े बड़े गुनाह तो अभी बाक़ी है, वो तो अभी पेश ही नहीं हुए,” सुबहानल्लाह! क्या शाने करम हैं कि गुनाहगारों को उनके कसूर पर सज़ा के बजाए इनाम मिल रहा है और मुजरिम रहमत के नशे से सरशार हो कर खुद अपने जुर्म का इज़हार कर रहे हैं।*
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*⊙:➻ क़यामत के दिन ज़मीन की पुश्त इंसानों पर गवाही होगी_,*
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*✪_ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने ये आयते करीमा तिलावत फरमाई - (तर्जुमा) उस दिन बयान करेगी ज़मीन अपनी ख़बरे, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया :- “_जानते हो उसकी खबरे क्या है? सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया कि– अल्लाह तआला और उसका रसूल बेहतर जानते हैं,*
*“_ फरमाया– उसकी ख़बरे ये हैं कि वो हर बंदे और बंदी पर गवाही देगी, जिस शख्स ने जो अमल उसकी पुश्त पर किया था, यूं कहेंगी कि फलां फलां शख़्स ने फलां फलां दिन फलां फलां अमल किया था,*
*"_ आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने ज़मीन को इसका हुक्म दिया (और हुक्मे इलाही से बयान करेगी) _,"*
*®_ तिर्मिज़ी- 2/65_*
*○┅✧ इंसान जो नेक या बुरा अमल करता है उसका एक रिकॉर्ड तो इल्मे इलाही मे मौजूद है, दूसरा लोहे महफूज़ मे महफूज़ है, तीसरा किरामन कातिबीन के नामा आमाल में लिखा जा रहा है, चोथा इंसान के आजा़ जवारे में रिकॉर्ड हो रहा है (ये भी गवाही देंगे) पांचवा ज़मीन की सतह में रिकॉर्ड हो रहा है, जिस तरह ऑडियो वीडियो मोबाइल कैमरा रिकॉर्ड करता है, इसी तरह ज़मीन भी इंसान के अच्छे बुरे आमाल को रिकॉर्ड कर रही है।*
*○┅✧और क़यामत के दिन वो अपना तमाम रिकॉर्ड उगल देगी, और इंसान के एक एक अमल पर गवाही देगी कि इस शख्स ने फलां वक्त नमाज़ नहीं पढ़ी थी, चोरी की थी, किसी ना महरम को बुरी नज़र से देखा था वगेरा वगेरा। हक़ ताला शानहू अपनी शाने करीमी से बंदे की पर्दा पोशी फरमाये तो उसकी रहमत है वरना जब इंसानी आजा़ जवारे और ज़मीन भी उसके खिलाफ शहादत देने लगे तो उसकी जिल्लत व रुसवाई का क्या ठिकाना है!*
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*⊙:➻ सूर फूंके जाने का बयान_,*
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*✪_ हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया :- “_मै कैसे खुश होऊं हालांकी सूर फूंकने वाले फरिश्ते ने सूर अपने मुंह में ले रखा है और हुक्मे इलाही की तरफ कान लगाए हुए हैं और वो मुंतजिर है के उसे कब सूर फूंकने का हुक्म किया जाता है?*
*"_ रावी कहते हैं कि ये इरशाद गोया आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम पर बहुत ही भारी गुज़रा तो आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने उन्हें फरमाया – _हसबुनल्लाहु व नियामल वकील, अलल्लाही तवक्कलना, (अल्लाह तआला हमको काफ़ी है और बहतरीन कारसाज़ हैं, हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया है) _,"*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/65_*
*○┅✧ सूर फूंकने का ज़िक्र कुरान ए पाक में बहुत सी जगह आया है, सूर दो बार फूंका जाएगा, एक जब अल्लाह ताला इस आलम को फना करना चाहेंगे तो इस्राफील अलैहिस्सलाम को हुक्म होगा, वो सूर फूंकेंगे, शूरू मे इसकी आवाज़ बहुत धीमी और सुरीली होगी जो तदरीजन बढ़ेगी, जिससे इंसान, जिन्नात, परिंदे, चरिंदे सब मदहोशी के आलम मे भागेंगे और आवाज़ की शिद्दत और बढ़ेगी तो सबके जिगर फट जाएंगे, पहाड़ रेज़ा रेज़ा हो जाएंगे और रूई की तरह उड़ने लगेंगे, आसमान फट जाएगा, सितारे झड़ जाएंगे, बिल आखिर आसमान व ज़मीन फना हो जाएंगे, और जा़ते इलाही के सिवा कोई चीज़ बाक़ी नहीं रहेगी,*
*○┅✧ कुछ अरसे बाद (जिसकी मिक़दार बाज़ रिवायत में 40 साल आई है) अल्लाह तआला इस्राफील अलैहिस्सलाम को ज़िंदा कर के फिर सूर फूंकने का हुक्म देंगे जिससे पूरा आलम दोबारा वजूद में आ जाएगा, मुर्दे क़बरो से उठेंगे और मैदान हशर में हिसाब किताब के लिए सब लोग जमा होंगे,*
*✪✧- क़यामत का सूर फुंका जाना निहायत होलनाक चीज़ है कि ज़मीन व आसमान और पहाड़ भी इसको बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे, चुंकी ये मंज़र आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के पेशे नज़र रहता था इसलीए आपने फरमाया के मैं किस तरह खुश होऊं जबकी सूर फूँकने वाला फरिश्ता उसे मुंह में लिए इंतज़ार में खड़ा है के उसे कब हुक्म होता है_,"*
*○┅✧ आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया:- जो कुछ मैं जानता हूं अगर तुम्हें मालूम हो जाता तो तुम बहुत कम हंसा करते, बहुत ज़्यादा रोया करते और तुम्हारा खाना पीना छूट जाता और तुम बिस्तरों पर ना सो सकते और औरतों को छोड़ देते और तुम रोते हुए गिड़गिड़ाते हुए बाहर सड़कों पर निकल आते, और मेरा जी चाहता है कि काश अल्लाह ता'ला ने मुझे दरख़्त पैदा किया होता है जिसे काट लिया जाता _" ( यह आखरी फिक़रा अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु रावी की हदीस का है)*
*®_ मुस्तद्रक हाकिम- 4/579_*
*○┅✧ मुस्तदरक हाकिम की हदीस में है कि सूर फूंकने वाला फरिश्ता जबसे इस पर मुकर्रर हुआ है उसने जबसे आंखें नहीं झपकी, बल्की उसकी नज़र बराबर अर्श की तरफ लगी हुई है कि मुबादा आंख झपकने से पहले ही उसे सूर फूंकने का हुक्म हो जाए, गोया उसकी आंखें चमकदार सितारे हैं,*
*○┅✧ हाफिज इब्ने कसीर रह. ”अल निहाया फिल फित्न वल मुलाहिम, जिल्द 1-सफा 279" मे लिखते हैं:-सूर का फूंका जाना तीन बार होगा, अव्वल से लोग घबरा जाएंगे, और दूसरे से बेहोश हो जाएंगे और तीसरे से दोबारा जिंदा हो जाएंगे _,”*
*“__ हाफ़िज़ इब्ने हजर रह. ने "फतहुल बारी -11/329” मैं इब्ने अरबी से भी यही नक़ल किया है,*
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*⊙:➻ पुल सिरात का बयान_,*
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*✪○✧ हज़रत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया :-"_ अहले ईमान का श'आर पुल सिरात पर रब्बे सल्लिम सल्लिम (यानी ऐ रब! सलामती से पार कर दिजिये)_,"*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/66*
*✪○✧पुर सिरात जहन्नम की पुश्त पर क़ायम होगा जो बाल से ज़्यादा बारीक और तलवार से ज्यादा तेज़ है, सब लोगो को इस पर से गुज़रना होगा, हर शख्स की रफ्तार उसके आमाल के मुताबिक़ होगी,*
*✪'_ कोई बिजली की तेज़ी से गुज़र जाएगा, कोई तययारों या परिंदों की उड़ान की तरह, कोई निहायत तेज़ रफ़्तार घोड़े की तरह, कोई आदमी के दौड़ने की रफ्तार से, कोई आदमी की मामूली रफ़्तार से, कोई दूध पीते बच्चे की तरह रेंगता हुआ जाएगा और कोई कट कट कर जहन्नम मे गिरेगा,*
*✪"_ हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि - मैंने नबी करीम ﷺ से दरख्वास्त की कि क़यामत के दिन मेरी शफाअत फरमायें, आप ﷺ ने फरमाया- ज़रूर करूँगा, मैंने अर्ज किया - या रसूलल्लाह! फिर आपको कहां तलाश करूं?*
*"_ फरमाया- सबसे पहले मुझे पुल सिरात पर तलाश करना, मैंने अर्ज़ किया- अगर पुल सिरात पर आपसे मुलाक़ात न हो सके ? फरमाया- तो फिर मीजा़न के पास तलाश करना, मैंने अर्ज किया - अगर मीजा़न के पास भी आपसे ना मिल सकुं तो? फरमाया- फिर होज़े कौसर पर मुझे तलाश करना, क्योंकि मैं तीन जगहो से चौथी जगह नहीं होऊंगा_,"*
*®_ तिर्मिज़ी - 2/22,*
*✪"_तशरीह- इस हदीस पाक में दो चीज़ें गोर तलब है, एक ये कि आप ﷺ ने सबसे पहले पुल सिरात पर, फिर मीजा़न पर और उसके बाद होजे़ कौसर पर आप ﷺ को तलाश करने का हुक्म फरमाया, जिससे ये ख्याल होता है कि पुल सिरात का मरहला मीजा़न से पहले और होजे़ कौसर पर हाज़री मीजा़न के बाद है,*
*✪__ लेकिन हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस में है कि आप ﷺ ने फरमाया कि - तीन मोके़ ऐसे हैं जहां कोई किसी को याद नहीं करेगा, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती है कि मैं एक बार दोज़ख को याद कर के रो रही थी, आन हजरत ﷺ ने रोने का सबब दरियाफ्त फरमाया तो अर्ज़ किया कि मैं जहन्नम को याद कर के रोने लगी, फिर अर्ज़ किया कि क्या आप क़यामत के दिन अपने घर के लोगों को भी याद रखेंगे?*
*✪__ आन हजरत ﷺ ने फरमाया - तीन मोको़ पर तो कोई किसी को याद नहीं करेगा, एक तो मीजा़न के पास, यहां तक कि मालूम हो जाए कि उसकी मीजा़न हल्की होती है या भारी? दूसरे नामा आमाल हाथ में दिए जाने के वक्त, यहां तक कि मालूम हो जाए कि उसका नामा आमाल किस हाथ में दिया जाता है, दाएं हाथ में या पुश्त के पीछे से उसके बाएं हाथ में? और सिरात के पास जबकि वो जहन्नम की पुश्त पर रखा जाएगा _,"*
*®_मिश्कात - 486,*
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*⊙:➻ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शफाअत__,*
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*✪○✧ हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि (एक दावत में) नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के पास गोश्त लाया गया, पस दस्ती आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की ख़िदमत में पेश की गई और गोश्त का ये हिस्सा आपको बहुत मारगूब था, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने दांतों से एक बार नोच कर तनावुल फरमाया और इरशाद फरमाया कि :-*
*“_ मैं कयामत के दिन लोगो का सरदार होउंगा, जानते हो ऐसा क्यों होगा? अल्लाह तआला तमाम अव्वलीन और आखिरीन को एक साफ मैदान में जमा करेंगे, पस पुकारने वाला उनको आवाज़ सुना सकेगा और नज़र उनके आर पार होगी, और आफताब उनके क़रीब होगा, पस लोगों को गम और बेचनी इस हद तक लाहिक़ होगी कि उनकी ताक़त और हद बर्दाश्त से बाहर होगी,*
*✪"_ पस लोग एक दूसरे से कहेंगे कि– तुम देख नहीं रहे कि तुम्हारी परेशानी का क्या आलम है? क्या तुम ऐसे शख्स को नहीं देखते जो तुम्हारे रब के पास तुम्हारी सिफारिश करे?*
*"_ लोग एक दूसरे से कहेंगे कि (इस मक़सद के लिए) आदम अलैहिस्सलाम के पास जाना चाहिए, चुनांचे लोग आदम अलैहिस्सलाम के पास आएंगे और उनसे अर्ज़ करेंगे कि–हज़रत आप अबुल बशीर हैं, अल्लाह तआला ने आपको अपने हाथ से पैदा किया, आपमें अपनी (तरफ से) रूह डाली, और फरिश्तों को सज्दा का हुक्म फरमाया तो उन्होंने सजदा किया, आप अपने रब के पास हमारी सिफारिश किजिए, आप देखते नहीं कि हमें कैसी परेशानी लाहिक़ है?*
*✪"_ यह सुन कर हजरत आदम अलैहिस्सलाम फरमायेंगे कि– आज मेरा रब ऐसा गज़बनाक है के ना आज से पहले कभी ऐसा गज़बनाक हुआ और न आज के बाद ऐसा गज़बनाक होगा, और उसने मुझे दरख्त से मना किया था लेकिन मैं उसका ये हुक्म पूरा ना कर सका, नफ़सी नफ़सी नफ़सी, तुम किसी और के पास जाओ, तुम नूह अलैहिस्सलाम के पास जाओ,*
*✪○✧ चुनांचे लोग हजरत नूह अलैहिस्सलाम की खिदमत में हाजिर होंगे, उनसे अर्ज़ करेंगे कि :- आप पहले रसूल हैं जो अहले ज़मीन की तरफ़ भेजे गए, और अल्लाह तआला ने आपका नाम “शुक्र गुज़ार बंदा” रखा है, आप अपने रब के पास हमारी सिफारिश कीजिये ! आप देखते नहीं कि हमें कैसी परेशानी लाहिक़ है ?*
*"_ हज़रत नूह अलैहिस्सलाम फरमायेंगे कि :- मेरा रब आज ऐसा गज़बनाक है कि आज से पहले कभी ऐसा गज़बनाक हुआ और ना आज के बाद कभी ऐसा गज़बनाक होगा, और मेरे लिए एक मखसूस दुआ थी जो मैंने अपनी कौम पर बद दुआ कर के पूरी कर ली, नफ़सी नफ़सी नफ़सी ! तुम किसी दूसरे के पास जाओ, इब्राहिम अलैहिस्सलाम के पास जाओ,*
*✪○✧ चुनांचे लोग हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की खिदमत में हाजिर होंगे और अर्ज़ करेंगे कि :- आप अहले ज़मीन पर अल्लाह के नबी और उसके खलील थे, आप अपने रब के पास हमारी सिफ़ारीश कीजिए ! आप देखते नहीं कि हम किस हाल में हैं?*
*"_ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम फरमायेंगे कि :- मेरा रब आज एसा गज़बनाक हुआ और ना आज के बाद कभी एसा गज़बनाक होगा, और मैंने तीन बातों में तोरिया किया था (अबू हयान रावी ने हदीस में उन तीन बातों का ज़िक्र किया है) नफसी नफसी नफसी ! तुम किसी और के पास जाओ, मूसा अलैहिस्सलाम के पास जाओ,*
*✪○✧ चुनांचे लोग हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर होंगे उनसे अर्ज़ करेंगे कि :- आप अल्लाह तआला के रसूल हैं, अल्लाह तआला ने आपको अपने पैगामात और बिला वास्ता कलाम के साथ लोगो पर फ़ज़ीलत दी थी, आप अपने रब के पास हमारी सिफारिश कीजिए ! आप देखते नहीं कि हम किस हाल में हैं? वो फरमायेंगे कि- आज मेरा रब ऐसा गज़बनाक है कि आज से पहले कभी ऐसा गज़बनाक हुआ और न आज के बाद कभी गज़बनाक होगा, और मैंने एक ऐसे शख्स को क़त्ल कर दिया था जिसका क़त्ल का मुझे हुक्म नहीं हुआ था, नफसी नफसी नफ़सी, तुम लोग किसी दूसरे के पास जाओ, तुम ईसा अलैहिस्सलाम के पास जाओ_,"*
*✪○✧ चुनांचे लोग हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर होंगे और अर्ज़ करेंगे कि – आप अल्लाह के रसूल हैं और कलमतुल्लाह है जो अल्लाह तआला ने हज़रत मरियम की तरफ डाला था और आप अल्लाह तआला की तरफ़ से आई हुई रूह हैं और आपने गहवारे में बातें की थीं, आप अपने रब के पास हमारी सिफरिश कीजिए ! आप देखते नहीं कि हम किस हाल में हैं?*
*"_ वो फरमाएंगे- मेरा रब आज ऐसा गज़बनाक है कि ना आजसे पहले कभी ऐसा गज़बनाक हुआ और ना आज के बाद कभी ऐसा गज़बनाक होगा, और हजरत ईसा अलैहिस्सलाम अपना कोई कुसूर जिक्र नहीं करेंगे, नफसी नफसी नफसी! तुम लोग किसी दूसरे के पास जाओ, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के पास जाओ,*
*○┅✧ चुनांचे लोग हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास (और एक रिवायत मे है कि मेरे पास ) आएंगे, पस कहेंगे कि - आप अल्लाह तआला के रसूल और आखिरी नबी हैं और अल्लाह तआला ने आपके सब अगले पिछले क़सूर माफ़ कर दिए हैं, आप अपने रब के पास हमारी सिफ़ारिश कीजिए ! आप देखते नहीं कि हम किस हालत में हैं?*
*"_ चुनांचे मैं (सिफरिश के लिए) चलूंगा, पस अर्श के नीचे पहुंच कर अपने रब के सामने सजदे में गिर जाऊंगा, पस अल्लाह ताला मुझ पर अपनी हमदो सना के वो मजा़मीन खोलेंगे जो मुझसे पहले किसी पर नहीं खोले होंगे ।*
*○┅✧ फिर फरमाया जाएगा कि – ऐ मुहम्मद! सर उठाइये, मांगिए जो मांगना है आपको अता किया जाएगा और शफा'अत कीजिये आपकी शफा'अत सुनी जाएगी, पस मैं सजदे से सर उठाऊंगा और अर्ज़ करूँगा - ऐ रब मेरी उम्मत! ऐ रब मेरी उम्मत! ऐ रब मेरी उम्मत!*
*"_ पस हक ताला शानहू इरशाद फरमायेंगे कि- ऐ मुहम्मद! अपनी उम्मत के उन लोगों को जिनके जिम्मे हिसाब नहीं, जन्नत के दाएं दरवाज़े से दाखिल कीजिए, और ये लोग दूसरे दरवाज़ो के साथ शरीक़ हैं, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फरमाया कि- क़सम है उस ज़ात की जिसके कब्ज़े में मेरी जान है! जन्नत के दरवाज़ो में से हर एक दरवाज़े के दो किवाड़ो के दरमियान फ़ासला इतना है जितना कि मक्का और हिज्र और मक्का और बसरा के दरमियान का फ़ैसला है _,”*
*®_ तिर्मिज़ी- 2/66_,*
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*⊙:➻ तशरीह _,*
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*✪○✧ क़यामत के दिन आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम, दीगर अंबिया किराम अलैहिस्सलाम और मलाइका का शफाअत करना बर हक़ है और इसके बारे में बहुत सी रिवायात वारिद हुई हैं, और ये शफ़ा'अत कई क़िस्म की होंगी: –*
*✪○✧(1)-अव्वल शफाते कुबरा– ये आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के साथ मखसूस है कि महशर के दिन की होलनाकियों और हिसाब व किताब के बंद होने की वजह से अहले महशर इस क़दर परेशान होंगे कि लोग ये आरज़ू करेंगे कि हिसाब व किताब खुल जाएं चाहे उन्हें दोजख मे ही भेज दिया जाए, उस वक्त हक़ ताला शांहू अहले ईमान के दिल में ये बात डालेंगे के किसी बरगुजी़दा हस्ती से इस बंदिश को खुलवाने की सिफारिश की जाए, चुनांचे बारी बारी अंबिया अलैहिस्सलातु वसल्लम की खिदमत में हाजिर होंगे_,"*
*✪"_ और ये सब हज़रात जलाले इलाही के रौब से इस पर आमादा नहीं होंगे, बिल आखिर सय्यदुल मुरसलीन व खातिमुन नबिय्यीन सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की खिदमत में शफाअत की दरख्वास्त करेंगे, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम इस दरख्वास्त को कुबूल फरमा कर बारगहे इलाही में सज्दा रेज़ होंगे, तवील सजदे के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम को शफात का हुक्म होगा और आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शफाअत से हिसाब व किताब शुरू हो जाएगा,*
*✪"_ यही वो "मक़ामे मेहमूद" है जिसका कुराने करीम में आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से वादा किया गया है, चूंकी ये शफाअत तमाम अहले महशर के हक़ में होगी, इसलिए तमाम अववलीन व आखिरीन इस पर आपकी मदह व सना करेंगे।*
*✪_ 2- आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम अपनी उम्मत के बहुत से लोगो को बगैर हिसाब व किताब के जन्नत में जाने की शफा'अत फरमायेंगे, जिसका बयान इस हदीस के आखिर में है और बाज़ अकाबिर के नज़दीक ये शफा'अत भी आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के साथ मखसूस है,*
*○✧3- बहुत से अहले जन्नत को आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शफाअत से उनके दर्जे से बढ़ कर मका़माते आलिया और दर्जाते रफिया अता किए जाएंगे।*
*○✧ 4- बहुत से लोग जिनकी नेकी और बदी का पल्ला मासवी होगा, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शफाअत से जन्नत में दाखिल किए जाएंगे,*
*○✧ 5- बहुत से लोग जो अपने आमाल के लिहाज़ से जहन्नम के मुस्तहिक़ होंगे उनको आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शफ़ा'अत से माफ़ कर दिया जाएगा और जन्नत में दाखिल कर दिया जाएगा।*
*○✧ 6- बहुत से गुनाहगारो जो जहन्नम में जा चुके होंगे उनके हक़ में शफा'अत होगी और उन्हें जहन्नम से निकाल लिया जाएगा, ये शफा'अत तमाम अंबिया किराम, मलाइका आज़म और सुल्हा के दरमियान मुश्तरक है।*
*○✧7- बाज़ अहले दोज़ख के अजा़ब मे आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शफाअत से तख्फीफ होगी, जेसा कि अबू तालिब के बारे में अहादीस मे वारिद है,*
*○✧ 8- जन्नत का दरवाज़ा खोलने के लिए भी आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम शफाअत फरमायें और सबसे पहले आप ही के लिए खोला जाएगा।*
*“_इन शफाअतों के अलावा बाज़ खास आमाल वालों के लिए भी वादा ए शफाअत अहादीस में आया है, मगर ये मिंदरजा बाला सूरतों मे ही दाखिल है,*
*®_ तफ़सील के लिए देखें - फताहुल बारी, किताबुल रक़ाक, बाब सफतुल जन्नाह वल नार_,*
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*⊙:➻_हौज़ ए कौसर का बयान _,*
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*✪_"_ हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया क - मेरे हौज़ में आसमान के सितारों की तादाद में कोज़े होंगे_," (तिर्मिज़ी-2/67)*
*✪_"_ हज़रत समराह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि - हर नबी के लिए एक हौज़ होगा, और अम्बिया अलैहिस्सलाम आपस में फ़ख़्र करेंगे कि उनमें से किसके हौज़ पर ज़्यादा लोग आएंगे, और मैं उम्मीद रखता हूँ कि सबसे ज़्यादा लोग मेरे हौज़ पर आएंगे _," (तिर्मिज़ी-2/67)*
*✪_"_ तशरीह :- मैदान ए महशर में आन हजरत ﷺ को हौज़ ए कौसर अता किया जाएगा, जिसका पानी दूध से ज़्यादा सफेद और शहद से ज़्यादा शीरी होगा, जिसको इसका एक घूंट नसीब होगा वो हमेशा के लिए सैराब हो जाएगा, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी _,"*
*✪○✧अबू सलाम हब्शी कहते हैं कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह. ने मुझे बुलाया भेजा, चुनांचे मुझे डाक की सवारी पर सवार किया गया, मैं उनकी खिदमत मे हाजिर हुआ तो अर्ज किया :- अमीरुल मोमिनीन ! डाक की सवारी पर सवार होना मेरे लिए बड़ी मशक्कत का बाइस हुआ,*
*"_ फरमाया - अबू सलाम ! मेरा मक़सद आपको मशक़क़त में डालना नहीं था, लेकिन मुझे एक हदीस पंहुची जो हौज़े कौसर के बारे में हज़रत सोबान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं, मैं वो हदीस आपसे बिल मुसाफ़ा सुनना चाहता था।*
*✪_ अबू सलाम ने कहा कि मैंने हज़रत सोबान रज़ियल्लाहु अन्हु को आप सल्लल्लाह अलैहिवसल्लम का ये इरशाद रिवायत करते हुए सुना कि आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने फरमाया :- मेरा हौज़ अदन से अमान बिल्का़ तक है, इसका पानी दूध से ज़्यादा सफ़ेद और शहद से ज़्यादा शीरी है, इसके कोज़े आसमान के सितारों से ज़्यादा तादाद मैं है, जो शख़्स इससे एक घूँट पी लेगा उसके बाद उसे कभी प्यास नहीं लगेगी,*
*✪"_ सबसे पहले जो लोग मेरे हौज पर आएंगे वो फुकरा मुहाजिरीन होंगे, जिनके सर के बाल बिखरे हुए और कपडे मेले कुचेले हैं, जो नाजो़ नियामत मे पली हुई औरतों से निकाह नहीं करते और जिनके लिए घरों के दरवाज़े नहीं खोले जाते ( यानी उन्हें घरो मैं आने की इजाज़त नहीं मिलती ),*
*○✧ हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह ने फ़रमाया- लेकिन मैंने तो नाज़ परवर्दा औरतों से निकाह किया है और मेरे लिए घरों के दरवाज़े भी खोले जाते हैं, मैने अब्दुल मलिक बिन मरवान ख़लीफ़ा की बेटी शहज़ादी फ़ातिमा से निकाह कर रखा है, मैं अहद करता हूं कि जब तक बाल परागंदा ना हो जाए सर नहीं धोऊंगा, और जब तक कपडे मेले कुचेले ना हो जाए कपड़े साफ नहीं किया करूंगा _,"*
*®_ तिर्मिज़ी -2/67,*
*✪__हज़रत अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह ﷺ! हौज़े कौसर के कोज़ो की तादाद कितनी होगी?*
*✪"_फ़रमाया - उस जा़त की क़सम जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है! उसके जाम इससे ज़्यादा तादाद में है जिस क़दर कि तारीक और साफ़ रात में आसमान पर सितारे नमुदार होते हैं, ये जन्नत के जाम होंगे। जो शख्स इनसे पी लेगा मुद्दतुल उमर कभी उसे प्यास नहीं लगेगी, हौज़े कौसर का अर्ज़ इतना है जितनी कि अमान से इल्या तक के दरमियान मुसाफत है, उसका पानी दूध से ज़्यादा सफेद और शहद से ज़्यादा शीरी है _,"*
*✪"_ तशरीह:- हौज़े कौसर के तोल व अर्ज़ के बारे में अहादीस शरीफा में मुख्तलिफ ताबीरें आई हैं, उनसे मकसूद उसके तोल व अर्ज़ की कसरत को बयान करना है, तहदीद (हद बांधना) मकसूद नहीं_,"*
*"_अल्हम्दुलिल्लाह पोस्ट मुकम्मल हुई_,"*
*🗂️_ जब आंख खुलेगी _142 ( हजरत युसुफ लुधियानवी शहीद रह.)*
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