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✭﷽✭

         *✭ KHILAFAT E RASHIDA.✭* 
             *✿_ खिलाफते राशिदा _✿*
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*┱✿_ : *"_ खिलाफते उस्मानिया का आगाज़ _,*

★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने अलग-अलग तन्हाई में हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु से इसका इक़रार कर लिया ( कि वह जो फैसला करेंगे उसे खुशी से कुबूल कर लेंगे ) हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने खिलाफत की बैत के लिए हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की तरफ हाथ बढ़ा दिया, उनके बैत करते ही हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौरन बैत कर ली ।

★_ इसके बाद वहां मौजूद सब ने बैत कर ली, इसके बाद आम मुसलमानों की बारी आई, लोग हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु से बैत के लिए टूट पड़े, इस तरह हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु मुसलमानों के तीसरे खलीफा मुंतखब हो गए ।

★_ खिलाफत का ऐलान होने के बाद अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - हमने उस शख्स को खलीफा बनाया है जो अब ज़िंदा लोगों में सबसे बेहतर है और हमने इसमें कोई गलती नहीं की _,"
हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रजियल्लाहु अन्हु ने अपने खुत्बे में फरमाया - जो लोग बाक़ी रह गए हैं हमने उन सब से बेहतर शख्स को अपना अमीर बनाया है और हमने इसमें कोई कोताही नहीं की _,"
यह अल्फाज़ उन्होंने अपने खुत्बे में कई बार दोहराई यहां तक कि मदीना मुनव्वरा से कूफा गए तो वहां के लोगों को भी इन्हीं अल्फाज़ में खुतबा दिया।

★_ यह बैत 23 हिजरी की आखरी शब में हुई, यानी यकम मोहर्रम 24 हिजरी आपकी खिलाफत का पहला दिन था, खिलाफत मिलने पर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने मुसलमानों के सामने यह खुतबा दिया :-
"_ ऐ लोगों ! तुम सब हाजिर हो, उम्र का जो हिस्सा बाक़ी है बस उसे पूरा करने वाले हो इसलिए तुम जो ज्यादा से ज्यादा नेकी कर सकते हो कर लो, बस यह समझो कि मौत अब आई कि अब आई, बहरहाल उसे आना जरूर है,.. खूब सुन लो दुनिया का तारों प़ोदी ही मकरों फरेब से तैयार हुआ है इसलिए मोहतात रहो दुनिया की जिंदगी तुम्हें धोखा ना दे जाए और अल्लाह ताला से तुम्हें गाफिल ना कर दे,
[10/30, 10:31 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ लोगों ! जो लोग गुज़र गए उनसे इबरत हासिल करो, कोशिश करते रहो गफलत ना बरतो क्योंकि तुम से गफलत नहीं बरती जाएगी, आज कहां है वह लोग जिन्होंने आखिरत पर दुनिया को तरजीह दी थी उन्होंने दुनिया को आबाद रखा था और एक मुद्दत तक उससे लुत्फ अंदाज होते रहे थे, क्या दुनिया ने उन्हें अपने अंदरर से निकाल बाहर नहीं किया ? तुम दुनिया को उस मुकाम़ पर रखो जिस पर अल्लाह ताला ने उसे रखा है और आखिरत की तलब करो ... अल्लाह ताला ने दुनिया की और जो चीज़ बेहतर है उसकी मिसाल यूं बयान फरमाई है :-
"_ (तर्जुमा ) ऐ पेगंबर ! आप लोगों को बता दीजिए कि दुनिया की ज़िंदगी की मिसाल उस पानी जैसी है जिसे हम आसमान से नाज़िल करते हैं _," ( सूरह कहफ )

★_ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में जो फुतुहात का सिलसिला शुरू हुआ था हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने उस सिलसिले को जारी रखा, इस तरह उनके दौर में मज़ीद फुतुहात हुईं, जो फुतुहात ना मुकम्मल रह गई थी वह मुकम्मल हुई, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में कोई बहरी जंग नहीं हुई थी, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु पहले खलीफा है जिन्होंने समुंदर में भी जंग का आगाज़ किया ।

★_ इसकंदरिया उस दौर में मिस्र का दारुल हुकूमत था, रोमी बादशाह की तरफ से इसकंदरिया में गवर्नर मुकर्रर था उसका नाम मक़ूकस था, हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के दौर में जब हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने ने मिश्र फतेह किया तो उस वक्त मक़ूकस सुलह करना चाहता था लेकिन शराइत तैय ना हो सकी इसलिए जंग हुई और इस्कंदरिया फतेह हो गया।
[10/31, 8:07 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ मिश्र का दूसरा शहर फसतात पहले ही फतेह हो चुका था (आजकल शहर का नाम का़हीरा है ) क़ैसरे रोम इन फुतूहात की वजह से बहुत गुस्से में था लेकिन मौके की तलाश में था, अब हुआ यह कि हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने मिस्र से हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को वापस बुला लिया, उनकी जगह अब्दुल्लाह बिन साद बिन अबी सराह को गवर्नर मुकर्रर कर दिया।

★_ इस तब्दीली की वजह से रोमी बादशाह ने सोचा अब मौका अच्छा है, उसने 300 जहाजों का बहरी बेड़ा रवाना किया, उसका सालार मैनुअल मुकर्रर किया गया था, मुसलमान इस अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थे, मुकाबला तो हुआ लेकिन शिकस्त खा गए और बड़ी तादाद में शहादत हुई , इस तरह इस्कंदरिया पर रोमियो का कब्ज़ा हो गया। यह वाक्या हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के दूसरे साल 25 हिजरी में हुआ।

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को इत्तिला मिली तो आपने हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को फिर से उनके ओहदे पर मुकर्रर कर दिया और उन्हें हुक्म दिया कि इस्कंदरिया की तरफ पेश क़दमी करें _," हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लामी लश्कर को लेकर इस्कंदरिया की तरफ बढ़े, नकूई के मुकाम पर दोनों लश्करों का मुकाबला हुआ, हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने ज़बरदस्त हमला किया, दुश्मन इस हमले की ताब ना ला सका और पसपा होने पर मजबूर हो गया, उसे ज़बरदस्त जानी-मानी नुक़सान उठाना पड़ा, इस तरह मुसलमान फिर इस्कंदरिया पर का़बिज हो गए।

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने अब्दुल्ला बिन अबी सराह को हुक्म भेजा की त्यूनस की तरफ पेश क़दमी करें _,", उन्होंने त्यूनस पर हमला किया मगर कामयाब ना हो सके, अब हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत हसन, हजरत हुसैन, हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर, हजरत अमरू बिन आस, हजरत अब्दुल्लाह बिन जाफर और हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हुम जैसे बड़े-बड़े सहाबा को अब्दुल्लाह बिन सराह की तरह की मदद के लिए भेजा ।
[11/1, 8:51 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ अब्दुल्लाह बिन अबी सरह इन सब हजरात को लेकर आगे बढ़े, रोगियों का लश्कर मुकाबले पर सामने आया लेकिन उसने शिकस्त खाई, इस्लामी लश्कर आगे बढ़ा तो रोगियों के एक लाख बीस हजार के लश्कर ने ट्यूनस के मुकाम पर हमला किया आखिर रोमियों को शिकस्त हुई और ट्यूनस पर मुसलमानों का कब्ज़ा हो गया और बेतहाशा मार्ले गनीमत हाथ आया।

★_ ट्यूनस कि इस अज़ीमुश्शान फतेह के बाद अब्दुल्लाह बिन अबी सरहा शुमाली अफ्रीका की तरफ बढ़े, उन्होंने मगरिब से मशरिक की तरह पेश क़दमी ज़ारी रखी, रास्ते में जो शहर या क़िले मिलते फतेह करते चले गए, इस तरह अल्जज़ाइर फतेह हो गया, यहां तक कि जबले तारिक़ पहुंच गए, इस तरह मिश्र से लेकर मराकि़स तक खिलाफते उस्मानी का परचम लहराने लगा, रोमी फौजों का यहां से मुकम्मल सफाया हो गया।

★_ मराकिश की फतेह के बाद स्पेन की तरफ पेश क़दमी आसान हो गई, 27 हिजरी में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने अब्दुल्लाह बिन नाफे बिन हसैन और अब्दुल्लाह बिन नाफे बिन अब्दुल कैस को लिखा कि तुम दोनों उन्दुलुस की तरफ पेश कदमी करो, इस मौरके पर भी मुसलमानों को फतह हासिल हुई और यह कामयाबी बहुत बड़ी थी, इससे मुसलमानों की शान और शौकत और ताक़त में बहुत इज़ाफ़ा हुआ।

★_ हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु शाम के गवर्नर थे उन्होंने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु से क़ुबरुस पर हमले की इजाज़त चाही, इजाज़त मिलते ही उन्होंने क़ुबरुस पर हमला कर दिया, क़ुबरुस के बाशिंदों ने 7000 सालाना पर सुलह की, यह सुलह कई साल तक जारी रही, 32 हिजरी में क़ुबरुस वालों ने रोमियों की मदद करके मुआहीदे की खिलाफ वर्जी की, इस पर हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु ने उन पर हमला किया और क़ुबरुस फतह करके उसे नई आबादी बना दिया।

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*"_जज़ीरा रोड्स सक़लिया _,"*

★_ कुबरूस की फतेह बहरी जंगों में मुसलमानों की पहली फतेह थी और यह पहला जजी़रा था जो इस्लामी हुकूमत में शामिल हुआ, हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु और अब्दुल्लाह बिन अबी सराह दोनों तारीखें इस्लाम में पहले अमीर अल बहर हैं, बहरी बेड़े की शानदार क़यादत इनका अज़ीम कारनामा है।

★_ कु़बरुस की फतेह के दूसरे साल जजी़रा अरदाद फतेह हुआ, यह कुस्तुनतुनिया के करीब समुंदर में एक जजी़रा है, इसके अलावा जजी़रा रोड्स भी फतेह हुआ, यह अहम जजी़रा था, इसके बारे में खुद अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को इन अल्फाज़ में खत लिखा - समुंदर ( बहीरा रौम ) मे एक और जजी़रा है उसका नाम रोड्स है उसे भी फतह करने की इजाज़त दी जाए _,"

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने मजलिस ए शूरा से मशवरा करके इजाजत दे दी, इजाज़त मिलते ही अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु बहरी बेड़ा लेकर रवाना हुए, जजी़रा रोड्स के लोगों ने समंदर में मुसलमानों का मुकाबला किया, निहायत सख्त जंग हुई, यहां माले गनीमत तो बहुत मिला लेकिन आबादी नहीं मिली, रोड्स के जो लोग जंग से बच गए थे उन्होंने भी खुदकुशी कर ली, जजी़रा अगरचे फतेह हो गया था लेकिन वीरान था।

★_ आखिर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने दौर में इस जजी़रे को आबाद किया, वहां मुसलमानों को बसाया, उनके लिए मस्जिदें तामीर कीं, इस तरह यह जजी़रा मुसलमानों के लिए एक मजबूत छावनी बन गया, बहीरा रौम के दरमियान में एक जजी़रा सक़लिया है, इस्लाम से पहले दुनिया की बड़ी हुकूमते इस जजी़रे के लिए लड़ती रही, अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु 300 कश्तियों का बेड़ा लेकर रवाना हुए, यहां के बादशाह ने सुलह की पेशकश की लेकिन कोई बात तैय ना हो सकी, आखिर जंग शुरू हुई लेकिन बाज़ खौफनाक इत्तेलात के पेशे नज़र इस्लामी बहरी बेड़े को सक़लिया को फतेह किए बगैर पीछे आ जाना पड़ा ।
[11/3, 9:56 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ रोमी सल्तनत के बहरी मरकज़ भी जब उनके हाथों से निकलने लगे तो कैसरे रोम हिरक्कल 34 हिजरी में एक अज़ीम बहरी बेड़े के साथ मुसलमानों पर हमले की नियत से रवाना हुआ, उसका बहरी बेड़ा 1000 कश्तियों पर मुशतमिल था, यह तमाम जहाज असलहा और जंगी साज़ो सामान से लदे हुए थे।

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को जब यह इत्तेला मिली तो उन्होंने फौरन हजरत अमीरे मुआविया रजियल्लाहु अन्हु को लिखा, - तुम्हारे पास जो शामी लश्कर है उसे ले कर रोमियों के मुकाबले के लिए रवाना हो जाओ _,"
हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु उस वक्त पूरे शाम के गवर्नर थे, उनके अलावा हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने मिस्र के गवर्नर अब्दुल्लाह बिन अबी सराह को हुक्म भेजा कि तुम मिश्र का लश्कर लेकर समंदर में उतरो ।

★_ एक तीसरा खत हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को भी लिखा कि तुम दोनों तस्करों की मदद करो _," 
इन अहकामत के मुताबिक मिस्र और शाम के फौजे बड़े साज़ो सामान के साथ पहले अक्का पहुंची, वहां से इस्लामी बहरिया के यह दोनों नामूर और कमांडर हजरत मुआविया रजियल्लाहु अन्हु और अब्दुल्लाह बिन अबी सराह 500 जहाजों के बेड़े लेकर समुंदर में उतरे।

★_ इस्लामी फौज समुंदर में उतरी ही थी कि कैसरे रोम का जंगी बेड़ा सामने आ गया , उस वक्त हवा बहुत तेज चल रही थी इस्लामी लश्कर ने सामने देखा तो क़ैसरे रोम का अजीमुश्शान लश्कर काली घटा की तरह खड़ा नज़र आया, समुंदर भी पुर सुकून नहीं था, मौजे उठती नज़र आ रही थी, मुसलमान यह देखकर अल्लाह के हुजूर गिड़गिड़ाने लगे दुआएं करने लगे, उस पूरी रात मुसलमान इबादत करते रहे जबकि दूसरी तरफ रोमी लश्कर तमाम रात शराब नोशी और गाने बजाने में 
मसरूफ रहा ।

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*"_ बिलखैर के शहीद _,*

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत के 12 सालों में मराकि़स से लेकर काबुल तक इस्लामी हुकूमत का़यम हो गई, पूरा फारस और खुरासान, सियस्तान और ईरान की बादशाहत का खात्मा हुआ ,

★_ सलमान बिन रबि'आ अपनी इराक़ी फौज के साथ आगे बढ़े, रास्ते में जितने छोटे-मोटे क़िले या शहर आते गए यह उन सबको फतेह करते गए यहां तक कि बिलखैर नामी शहर तक पहुंच गए, इन इलाकोंं का बादशाह खाकान नामी शख्स था, वह मुसलमानों के मुकाबले में 3 लाख फौज ले आया और मुसलमान 10 हज़ार थे ।

★_3 लाख का 10 हज़ार से कोई मुका़बला नहीं था फिर भी मुसलमानों ने जिंदगी पर शहादत को तरजीह दी, सब के सब बड़ी बेजिगरी से लड़े, इस क़दर साबित क़दनी दिखाई कि लड़ते-लड़ते सब शहीद हो गए, इन सब की क़बरें आज भी बिलखैर में मौजूद है,

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को जब इस वाक़िये का इल्म हुआ तो आप बहुत गमगीन हो गए, आपकी बेचैनी में नींद उड़ गई ।
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"_ साजिश की इब्तिदा _,*

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत में बेशुमार फुतुहात हुई, इस्लामी मुमलिकत को जबरदस्त वुस'अत हासिल हुई , दौलत भी बेतहाशा आई लेकिन आप की खिलाफत के आखिरी चंद साल जबरदस्त परेशानियों में गुज़रे, साजिश करने वालों ने फितने का बाज़ार गर्म कर दिया ।

★_ मुसलमानों में मुनाफ़िक़ों का एक गिरोह शुरू से चला आ रहा था, अल्लाह ताला ने कुरान ए करीम में इन लोगों से खबरदार फरमाया है, यह लोग आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के जमाने में भी साजिशें करते रहते थे लेकिन उस वक्त उनकी दाल नहीं गलती थी।

★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु के जमाने में यह लोग अचानक उठ खड़े हुए, यह 3 तरह के लोग थे, नबूवत का दावा करने वाले, मुरतद यानी इस्लाम से निकल जाने वाले, और ज़कात का इनकार करने वाले,

★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने फौरन इनके खिलाफ लश्कर कशी की और कामयाबी से इनका खात्मा किया, आपकी कामयाबी पर हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू ने यह जुमला कहा, "_अगर अबू बकर ना होते तो जमीन पर अल्लाह ताला की इबादत करने वाला कोई ना होता _,"
[11/7, 9:04 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के बाद हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का दौर आया, साजिशी गिरोह मौक़े की तलाश में रहा और आखिर इस गिरोह की साजिश से हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया गया, शहादत से पहले खुद हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह ख्याल ज़ाहिर फरमाया था कि उन पर हमला एक साज़िश के तहत हुआ है ।

★_ इन वाक़िआत से साफ जाहिर हे की साजिशी अनासिर पहले से काम कर रहे थे, अब हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के ज़माने में उन्होंने और ज़ोर पकड़ लिया, तीनों खुल्फा के दौर में जो फुतुहात हुई, उन फुतुहात के नतीजे में बेशुमार गैर मुस्लिमों तो मुसलमान हो गए और पक्के सच्चे मुसलमान हो गए थे लेकिन इन लोगों की बड़ी तादाद गैर मुस्लिम ही थी, यह लोग जिज़या देने वाले थे या फिर गुलाम थे, बहुत से सिर्फ जा़हिरी तौर पर मुसलमान हो गए थे यह लोगों को भड़काने का काम करते थे ।

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के खिलाफ साजिश करने वालों में सबसे अहम नाम अब्दुल्लाह बिन सबा का है, यह असल साजिश करने वाला था, यह शख्स यहूदी था यमन का बादशाह था, इसने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के दौर में ही मुसलमान होने का ऐलान किया था, इसका यह ऐलान दरअसल इस साजिश का आगाज़ था, मुसलमान होने का ऐलान करने के बाद यह मुसलमानों में अपने अजी़बोगरीब ख्यालात फैलाने लगा ।
[11/8, 10:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ अब्दुल्लाह बिन सबा कहता - एक वक्त आएगा जब आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का फिर दुनिया में ज़हूर होगा यानी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फिर दुनिया में आएंगे क्योंकि यह कैसे हो सकता है कि हज़रत ईसा तो दोबारा दुनिया में आए और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ना आए ?
उसका यह भी कहना था ,- हजरत अली की ज़ात में अल्लाह ताला मौजूद है ( नाउज़ुबिल्लाह ) 

★_ इसके अलावा उसने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के खिलाफ भी बातें शुरू कर दी, वह कहता था - "_ खिलाफत के हकदार तो अली थे उनके होते हुए हजरत उस्मान को खिलाफत का कोई हक़ नहीं पहुंचता _,
हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु की खिलाफत पर और भी कई तरह के ऐतराज़ात करता था, लेकिन यह सारा काम वह खुफिया तौर पर करता था ऐलानिया तौर पर नहीं करता था ,

★_ इस सिलसिले में यह सबसे पहले हिजाज़ गया, फिर कूफा और बसरा गया उसके बाद दमिश्क पहुंचा, दमिश्क में लोगों ने उसके ख्यालात सुने तो उसे दमिश्क से निकाल दिया, अब उसने मिस्र का रुख किया, मिस्र में उसको कामयाबी होने लगी, उसके गिरोह ने बाका़यदा साजिशें शुरू की ।

★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के खिलाफ साजिश शुरू करने वालों में से एक गिरोह खारजी था, ये खारजी लोग भी अब्दुल्लाह बिन सबा की किस़्म के लोग थे, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु दोनों के खिलाफ थे, इनका काम भी साजिश करना था ।
[11/9, 6:43 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ साजिश करने वाले वालों में कुछ लोग वो थे जिन्होंने हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु से अपने लिए कोई ओहदा तलब किया लेकिन आपने उन्हें ओहदा नहीं दिया, तो ऐसे लोग भी साजिशियों का साथ देने लगे थे, कुछ वह लोग थे जिन्हें हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने किसी जुर्म पर कोई सज़ा दी थी, इस क़िस्म के लोगों को जब मालूम होगा कि उन जैसे लोग मिस्र में जमा हो रहे हैं तो वह भी वहां पहुंच गए, इस तरह मिश्र इन लोगों की साजिशों का मरकज़ बन गया ।

★_ साजिश करने वालों में नुमाया नाम ये थे - जुंदुब बिन काब, सा'सा बिन हुनाबी और अमीर बिन हुनाबी, यह लोग कूफा के रहने वाले थे, यह लोग कूफे में नित नई शरारतें करते रहते थे, शर और फितना फैलाना इनका काम था, कूफा के लोग इनसे बहुत तंग थे, लोगों ने उनकी शिकायत हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु से की और दरखास्त की कि उन्हें कूफा से निकाल दिया जाए, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें कूफा से निकालकर शाम भिजवा दिया, वहां हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहू अन्हू गवर्नर थे ।

★_ इस क़िस्म के सब लोगों ने मिलकर पहले अफवाहें फैलाई, फिर दबी जुबान में ऐतराज़ शुरू किए, जब इनका गिरोह बड़ा हो गया तो यह लोग खुल्लम-खुल्ला एतराज़ात करने लगे, एतराज़ात का चर्चा करने लगे, इन लोगों के बड़े-बड़े एतराज़ात ये थे :-

१_ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने अकाबिरे सहाबा को माज़ूल करके अपने अज़ीज़ों और रिश्तेदारों को ओहदों पर मुकर्रर कर दिया है,
२_अपने ओहदे दारो की बद उनवानियों पर उन्हें कुछ नहीं कहते,
३_हकम बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हू हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के चाचा थे, उनसे कोई राज़ ज़ाहिर करने का जुर्म सरज़द हो गया था, उस जुर्म की सज़ा के तौर पर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उन्हें मदीना मुनव्वरा से जला वतन कर के ताइफ भेज दिया था लेकिन हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें वापस मदीना बुला लिया और उन पर इनाम व इकराम की बारिश कर दी,

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*"_ एतराजात के जवाबात _,*

★_ ४_ अब्दुल्लाह बिन साद बिन अबी सरह हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के दूध शरीक भाई थे यह फतेह मक्का से पहले इस्लाम लाए और आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें वहीं की किताबत सुपुर्द फरमाई लेकिन यह कुरान में तहरीफ करने लगा और मुर्तद हो गया, फतेह मक्का के मौक़े पर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने उसे क़त्ल करने का हुक्म फरमाया लेकिन हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने सिफारिश करके उसकी जान बख्शी कराई बाद में यह दोबारा इस्लाम ले आया और हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु खलीफा मुकर्रर हुए तो उसे मिश्र का गवर्नर बना दिया ।

★_५ _ हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु बैतुलमाल से अपने खानदान बनू उमैया के लोगों को बड़ी बड़ी रक़में बगैर किसी शर'ई हक़ के इनाम में दे देते हैं।

★_ इन बड़े इलज़ामात के अलावा कई इलज़ामात और है लेकिन वह एतराज़ात फिक़ही किस्म के थे, मसलन हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु मीना में कसर नमाज के बजाय चार रकाते पड़ते हैं, वगैरा.. हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु तक ये एतराज़ात पहुंचे तो आपने तमाम एतराज़ात के वाज़े जवाबात इरशाद फरमाए ,

★_ पहला एतराज़ था कि आपने बड़े-बड़े सहाबा को माज़ूल करके अपने अज़ीज़ों को और रिश्तेदारों को उन ओहदों पर फाइज़ किया, हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु मिश्र के गवर्नर थे, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को उनसे शिकायत रही कि मिश्र बहुत सरसब्ज़ शादाब इलाका़ है ज़रखेज़ मुल्क है उसका खराज जितना होना चाहिए उतना नहीं आ रहा है, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु खलीफा हुए तो आपको भी यह शिकायत पैदा हुई, आपने हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को इस तरफ तवज्जो दिलाई लेकिन खराज फिर भी ज्यादा ना हुआ, इस पर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को मिस्र से माज़ूल कर दिया और उनकी जगह अब्दुल्लाह बिन साद बिन अबी सराह को मुकर्रर कर दिया ।
[11/11, 8:33 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ दूसरा एतराज़ यह था कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के तरीक़े से हटकर शुमाली अफ्रीका के माले गनीमत के खुम्स का खुम्स ( पांचवा हिस्सा ) अब्दुल्लाह बिन साद को बतौर इनाम दे दिया जिसका उन्हें कोई हक़ नहीं पहुंचता यानी माले गनीमत की यह तक़्सीम क़ुरान, हजरत अबू बकर और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम के हुक्म के खिलाफ है ।

★_ इस एतराज़ के जवाब मुलाहिजा़ फरमाएं :- अब्दुल्लाह बिन साद बिन अबी सरह फतेह मक्का से पहले इस्लाम लाया था लेकिन मुर्तद हो गया था, फतेह मक्का के मौक़े पर आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जिन चार अफराद को क़त्ल का हुक्म सादिर फरमाया था उनमें एक यह भी था लेकिन हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु उसे लेकर आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए तो उसने तौबा की, नए सिरे से इस्लाम क़ुबूल किया, इस तरह उनकी जान बख्सी हो गई। 

★_ इस शख्स को हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने मिस्र का गवर्नर मुक़र्रर नहीं किया था बल्कि हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में भी यह मिश्र के बालाई हिस्से का गवर्नर था, उस वक्त मिश्र के दो हिस्से थे बालाई हिस्से का गवर्नर यह था और जे़री हिस्से के गवर्नर हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु थे, जब कम खराज का मसला पैदा हुआ तो हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को माज़ूल किया तो उसे मिश्र के बाक़ी हिस्से की गवर्नरी भी सौंप दी ,

★_ अब इस पूरे मामले में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु पर इस एतराज़ की भला क्या गुंजाइश है, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु एक मुर्तद को आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में लाए और उसने इस्लाम क़ुबूल किया, यह तो बहुत बड़ा नेकी का काम है एक मुर्तद को इस्लाम की तरफ ले आया जाएं, तौबा करने से इस्लाम साबका़ गुनाह माफ कर देता है या नहीं ?
[11/12, 11:04 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ इस्लाम की तारीख में ऐसी बेशुमार मिसाले मौजूद हैं बेशुमार लोगों ने इस्लाम से दुश्मनी मैं कोई कसर उठा नहीं रखी, मुसलमानों पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढाए लेकिन जब वह लोग इस्लाम ले आए, मुसलमान हो गए तो उनके सब गुनाह माफ हो गए, इसकी मिसाल हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के दौर में मुलाहिजा फरमाएं :-

★_ अश'अस बिन क़ैस ने नबूवत का दावा किया, हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु ने जब मुर्तदों के खिलाफ जंग शुरू की तो यह गिरफ्तार हुआ, उसे हजरत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु के सामने पेश किया गया, आपने ना सिर्फ उसे माफ कर दिया बल्कि अपनी बहन उम्में फरवाह का निकाह भी उसके साथ कर दिया ।

★_ इसी तरह अब्दुल्लाह बिन साद को माफी मिली, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में उसे मिस्र के एक हिस्से का गवर्नर मुक़र्रर किया गया यानी गवर्नरी के ओहदे पर तो वह पहले ही था, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने तो सिर्फ इतना किया था कि हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु की माज़ूली के बाद उसे सारे मिश्र का गवर्नर मुक़र्रर कर दिया था, और यह बात भी साबित है कि उसमें सलाहियतें मौजूद थी, उसमें बहरी जंगें लड़ी, अब अगर यह शख्स हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु का रिश्तेदार था तो क्या इस बुनियाद पर उसकी सलाहियतों से फायदा नहीं उठाया जा सकता था _,

★_ दूसरा एतराज़ यह था कि माले गनीमत के पांचवें हिस्से का पांचवा हिस्सा बतौर इनाम हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने उसे दे दिया, इसकी तफसील यह है कि अफ़्रीका को फतह करना उस वक्त मुश्किल तरीन मुहीम थी, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने हौसला अफजा़ई के लिए अब्दुल्लाह बिन साद से वादा किया था कि अफ़्रीका फतह हो गया तो मैं माले गनीमत के खुम्स का खुम्स तुम्हें दूंगा, चुनांचे अफ्रीका की फतेह के बाद अब्दुल्लाह बिन साद ने यह हिस्सा माले गनीमत में से अपने पास रख लिया और बाक़ी मदीना मुनव्वरा भेज दिया, जब लोगों ने ऐतराज़ किया तो हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने जवाब में फरमाया - अब्दुल्लाह बिन साद ने जो कुछ किया है मेरे हुक्म से किया है लेकिन अगर आप लोगों को उस पर एतराज़ है तो मैं यह माल वापस ले लूंगा _,"

★_चुनांचे आपने अब्दुल्लाह बिन साद को इस बारे में लिखा, उसने माले गनीमत का वह हिस्सा वापस कर दिया । *( देखिए तारीख तिबरी -2/ 253 )*
[11/13, 9:53 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ अब गौर कीजिए इस वाक्य़े में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु पर ऐतराज़ वाली कोई बात है ?
आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से इसकी मिसाल मुलाहिजा़ फरमाएं, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु गज़वा ए बदर में शरीक ना हो सके, उनकी ज़ौजा मोहतरमा शदीद बीमार थी, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने उन्हें माले गनीमत से एक मुजाहिद का पूरा हिस्सा अता फरमाया, इस मिसाल के होते हुए क्या उन लोगों को हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु पर इस एतराज़ का कोई हक था ? हरगिज़ नहीं, इसके बावजूद जब लोगों ने ऐतराज़ किया तो आपने वह रक़म वापस ले ली और बैतूलमाल में जमा करा दी, 

★_ दूसरा इल्जा़म यह लगा कि आपने बड़े-बड़े सहाबा को माजू़ल करके अपने रिश्तेदारों को उन ओहदों पर मुकर्रर कर दिया, इसका जवाब मुलाहिजा फरमाएं, 24 हिजरी में हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने मुगीरा बिन शोबा को कूफा की गवर्नरी से माज़ूल करके वहां हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु को मुक़र्रर फरमाया लेकिन 2 साल बाद ही हालात कुछ ऐसे पैदा हुए कि आपने हजरत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु को भी ओहदे से हटा दिया और उनकी जगह बनू उमैया के एक नौजवान वलीद बिन उक़बा कों कूफे का गवर्नर मुक़र्रर कर दिया ।

★_ ऐतराज़ करने वालों ने इस पर दो तरह के ऐतराज़ात किए, एक यह कि जल्दी-जल्दी गवर्नरों को माज़ूल करना इंतज़ामी मामलात में नाकामी की दलील है, दूसरे यह कि एक जलीलुल कद्र सहाबी को माज़ूल करके उनकी जगह अपने खानदान के एक नौजवान को मुकर्रर किया, इन दोनों एतराज़ात के जवाब आप मुलाहिजा फरमाएं,  

★_ फूफा और बसरा इन दोनों शहरों के लोग अजीब मिजाज़ के लोग थे, शिकायत पर शिकायत करते रहना इनकी आदत थी, इन दोनों शहरों के हालात हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर से ही खराब चले आ रहे थे, जो शख्स भी यहां गवर्नर बनकर आता यह कुछ दिन तो उनकी इता'त करते फिर किसी ना किसी बहाने से उनके खिलाफ एतराज़ शुरु कर देते, यह गोया इन लोगों का शौक था, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तक इनसे तंग आ गए थे, एक मर्तबा तो आपने निहायत गुस्से में आकर फरमाया था :- अल्लाह की पनाह ! कूफे के लोग भी अजीबो गरीब लोग हैं, अगर इन पर कोई मज़बूत हाकिम मुकर्रर करता हूं तो यह लोग उसमें कीड़े निकालने लगते हैं और अगर किसी कमज़ोर को हाकिम बनाता हूं तो यह उसे ज़लील करते हैं _,"
[11/14, 9:57 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ कूफा की तरह बसरा का हाल भी ऐसा ही था, चुनांचे जिस ज़माने में मुगीरा बिन शोबा यहां के गवर्नर थे उस वक्त भी यहां के लोगों ने उन पर ज़िना का इल्जाम लगा दिया, उन्होंने हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तक यह मुक़दमा पहुंचाया लेकिन हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह शिकायत पकड़ ली थी इसके बावजूद इंतजामी मामलात की वजह से आपने मुगीरा बिन शोबा को वहां से हटा दिया ।

★_ मतलब यह था कि हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु उन लोगों से नाराज़ थे, आपने मुगीरा बिन शोबा की जगह हजरत अबू मूसा अश"अरी रज़ियल्लाहु अन्हु को गवर्नर मुकर्रर करने का इरादा फरमाया तो उनसे कहा :- अबू मूसा ,! मैं तुम्हें एक ऐसे शहर का गवर्नर बनाकर भेजना चाहता हूं जहां शैतान ने घोंसला बना रखा है _,"

★_ इन वाक्यात से मालूम हुआ कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु का क्या ज़िक्र, कूफा और बसरा के हालात तो हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने से खराब चले आ रहे थे कि कोई गवर्नर वहां ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकता था, इसी बुनियाद पर हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तक मजबूर थे कि जल्द से जल्द गवर्नर तब्दील करें, अगर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु को ऐसा करना पड़ा तो इसमें एतराज़ वाली कौन सी बात है ?

★_ आपने वलीद बिन उक़बा को वहां का गवर्नर मुकर्रर किया इसलिए कि यह बहुत सख्त मिजाज़ थे, यह हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के मां शरीक भाई थे , जिस दिन मक्का फतह हुआ उस रोज़ इस्लाम लाए, आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इन्हें ही बनी हम मुसतलक़ के सदका़त का इंचार्ज बना कर भेजा था, बहुत सूझबूझ वाले थे इरादे के पक्के थे, उनकी इन्हीं खूबियों की वजह से हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी इन्हें जज़ीरतुल अरब का आला अफसर मुक़र्रर किया था, अब अगर हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने इन्हें कुफा का गवर्नर मुकर्रर किया तो इल्जाम़ लगाया गया कि आपने अपने क़रीबी रिश्तेदारों को ओहदे दिए, किस तरह दुरुस्त हो सकता है ?
[11/15, 6:37 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ अब हकम बिन आस के बारे में भी पढ़ लीजिए, यह हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के चाचा थे, फतेह मक्का के मौक़े पर मुसलमान हो गए और मदीना मुनव्वरा में रहने लगे, उनके बारे में आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को मालूम हुआ कि यह बात को राज़ नहीं रख सकते, राज़ की बातों को बयान कर देते हैं इसलिए आन हजरत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हें ताईफ भेज दिया, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत तक यह वहीं रहे, हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु खलीफा हुए तो इन्हें मदीना वापस बुला लिया, यह आखरी उम्र में नाबीना हो गए थे,

★_ इस पर एतराज़ किया जाता है कि जिस शख्स को आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मदीना से ताइफ जला वतन कर दिया था उसे हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने वापस मदीना बुला लिया , इसमें भला ऐतराज़ की क्या बात थी ? आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वफात के बाद वह आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का कौन सा राज़ फाश कर सकते थे भला ? उन पर इल्जाम तो यही था कि वह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम के राज़ फाश कर दिया करते थे ।

★_ एक इल्ज़ाम यह था कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु अपने रिश्तेदारों को बैतूलमाल से बड़ी-बड़ी रक़में और जागीरें बतौर इनाम दे देते हैं, इस सिलसिले में अब्दुल्लाह बिन साद को माले गनीमत के पांचवें हिस्से का पांचवा हिस्सा देने का इल्ज़ाम लगाया जाता है, इसका जवाब पहले ही आ चुका है कि उन लोगों के एतराज़ करने पर आपने वह माल उनसे वापस लेकर बैतूल माल में जमा करा दिया था ।

★_ मरवान बिन हकम के बारे में इल्जा़म लगाया गया था कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें अफ्रीका के माले गनीमत का पांचवा हिस्सा दिया लेकिन तारीख की रिवायात इस बात को ग़लत क़रार देती हैं, मशहूर तरीन मोर'ख इब्ने खलदून ने लिखा है कि वह हिस्सा मरवान बिन हकम ने 5 लाख दीनार में खरीद लिया था, बाज़ लोग जो कहते हैं कि हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु ने उन्हें बतौर अतिया दिया था कहना सही नहीं है ।
[11/16, 10:12 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ यहां यह बात भी काबिले गौर है कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु खुद बहुत ज्यादा दौलतमंद थे और यह दौलतमंदी उन्हें इस्लाम से पहले से हासिल थी, फिर सखी भी बहुत थे उनकी सखावत की रिवायात बेशुमार हैं, ऐसा शख्स बैतूलमाल का खज़ाना क्यों बिना वजह दूसरों को देने लगा, वह तो अपने पास से भी दे सकते थे, चुनांचे जब मुल्क में फसाद बड़ा तो आपने लोगों के मजमे में फरमाया :-

★_ "_और यह लोग कहते हैं कि मैं अपने अहले खाना से मोहब्बत करता हूं और उन्हें देता हूं, हां मैं उनसे मोहब्बत करता हूं लेकिन उनकी मोहब्बत मुझे नाइंसाफी पर आमदा नहीं करती बल्कि मेरे अहले बैत पर जो दूसरों के हुकूक हैं मैं उनसे दिलवाता हूं, रहा उन्हें कुछ देना तो मैं उन्हें अपने माल से देता हूं और मुसलमानों का माल तो ना मैं अपने लिए हलाल समझता हूं ना किसी और शख्स के लिए, मैं आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ज़माने में और हजरत अबू बकर और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम के ज़माने में बड़े-बड़े अतियात अपनी कमाई से देता रहा हूं ।

★"_ यह लोग जो जी में आता है कह डालते हैं, अल्लाह की क़सम ! मैंने किसी शहर पर खराज का कोई ऐसा बोझ नहीं डाला और जो कुछ भी वसूल हुआ है वह सब का सब मैंने मुसलमानों पर ही खर्च किया है, फिर मेरे पास जो कुछ आया है वह माले गनीमत का पांचवा हिस्सा आया है, उस माल में से मेरे लिए कोई चीज़ हलाल नहीं थी, मुसलमानों को अख्तियार था कि मेरे मशवरे के बगैर जहां चाहे खर्च करें, अल्लाह ताला के माल में से एक पैसे के बराबर भी कोई चीज़ इधर-उधर नहीं हुई और मैंने उसमें से कोई चीज हड़प नहीं की, मैं जो कुछ खाता हूं अपने माल में से खाता हूं _," 
*(तारीख तिबरी -4/374 )*

★_ सबने यही तक़रीर सुनी और किसी ने कोई एतराज़ ना किया बल्कि सबने इन बातों को तस्लीम किया, सबने कहा - हम तस्लीम करते हैं आप ने सच कहा _,"
कोई एक आवाज़ भी मुखालफत में ना उठी और इसका साफ मतलब यह है कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु पर किसी तौर पर भी किसी भी ऐतराज की कोई ज़रा सी भी गुंजाइश नहीं थी ।
[11/17, 7:17 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ ऐतराज़ करने वालों ने एक एतराज़ यह किया था कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु मदीना मुनव्वरा की चारागाहों में अपने जानवर चराते हैं दूसरे लोगों के मवेशी उन चारागाहों में नहीं जा सकते, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने खुतबे में इस एतराज़ का जवाब भी दिया, चुनांचे फरमाया,

★_ यह लोग चारागाहो में अपने जानवर चराने का इल्ज़ाम लगाते हैं, सुन लो ! मैंने वही चरागाहें मखसूस की हैं जिनको हजरत अबू बकर सिद्दीक और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम ने किया था, उन चारागाहों को सदक़ात के जानवरों के लिए मुकर्रर कर दिया गया है ताकि सदक़ात वसूल करने वालों में और दूसरे लोगों में कोई झगड़ा ना हो, इसके बावजूद अगर दूसरे लोगों में से कोई अपने जानवर लेकर उन चरागाहों में आ जाता है तो उसे मना नहीं किया जाता, ना उसके जानवरों को हटाया जाता है, बहरहाल यह जो भी इंतजामात है सरकारी जानवरों के लिए है मेरे जा़ति जानवरों के लिए नहीं है, मेरा हाल तो यह है कि जब मैं खलीफा हुआ था उस वक्त ऊंट बकरियां सबसे ज्यादा मेरे पास थे लेकिन आज आलम यह है ले देकर अब मेरे पास सिर्फ एक बकरी और दो ऊंट हैं यह ऊंट भी मेरे हज के लिए हैं _,"

★_ यह फरमाने के बाद हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने लोगों से पूछा, क्या ऐसा नहीं है ? 
सारा मजमा एक आवाज़ हो कर बोला, बेशक ऐसा ही है ।
आप गौर करें हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के पास तो उस वक्त अपने दो ऊंट और एक बकरी के अलावा कोई जानवर थे ही नहीं, वह मदीना मुनव्वरा की चरागाहों को अपने जानवर चराने के लिए किस तरह मुक़र्रर सकते थे _,

★_ एक एतराज़ यह था कि नौजवानों को बड़े-बड़े ओहदे दिए जा रहे हैं, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस एतराज़ का जवाब देते हुए फरमाया, - इसमें एतराज़ की कौन सी बात है, अगर एक नौजवान में सलाहियत है तो उसे ओहदा मिलना चाहिए, क्या नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बड़े-बड़े सहाबा पर ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को नौ उमरी के बावजूद लश्कर का सालार मुकर्रर नहीं फरमाया था , 
यह फरमा कर आपने पूछा - क्या ऐसा नहीं है ? 
सब में एक ज़बान होकर कहा - बेशक ऐसा ही है ।

★_ एक एतराज़ यह था कि अरब से बाहर अपने लोगों को आपने ज़मीन के टुकड़े दे दिए हैं, इस एतराज़ के जवाब में आपने खुतबे में फरमाया,
"_ जो ज़मीनें फतेह होती गई वह मुहाजिरीन और अंसार में मुश्तरका रही, फिर उनमें से जो हजरात फतह की गई जमीनों में आबाद हो गए वह वहीं रहने लगे लेकिन उनमें से जो हजरात बिलाद ( शहर) अरब में वापस आ गए, मैंने फतह किए गए इलाकों में उनकी खाली पड़ी ज़मीनों से उन लोगों की शहर अरब की ज़मीनों से तबादला करा दिया, जो वहां जाकर आबाद होना चाहते थे। बढ़ती हुई आबादी के लिए ऐसा करना जरूरी था, इसलिए इसमें एतराज़ की कौन सी बात है, मतलब यह कि उन्हें वह ज़मीनें तबादले में दी गई है _,"


[11/18, 7:26 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ इन एतराज़ात में सबसे बड़ा और अहम जो एतराज लगाया गया उसका पशे मंजर मुलाहिजा हो :- 
ऐतराज़ करने वाले मिश्री लोगों का एक वफद मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुआ उसमे कूफा और बसरा के लोग भी शामिल थे, उनके कुछ मुतालबात थे, यह अपने मुतालबात ज़बरदस्ती मनवाने के लिए आए थे, थे भी मुसलह ( हथियार के साथ ), यह लोग मदीना मुनव्वरा के नज़दीक पहुंच गए थे, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को उनके बारे में पता चला तो आपने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को उनकी तरफ भेजा कि उन्हें समझाएं, हजरत अली ने उन लोगों से मुलाकात की, उन्हें समझाया और आखिर वह वापस जाने पर आमादा हो गए थे, यानी मदीना मुनव्वरा में दाखिल होने से पहले ही यह वापस रवाना हो गए ।

★_ अभी ये रास्ते में थे कि उन लोगों को एक शख्स मिला, उन्होंने उससे पूछा - तुम कौन हो और कहां जा रहे हो ? उसने बताया - मेरे पास खलीफा का एक खत है यह खत मुझे मिस्र के गवर्नर को पहुंचाना है _,"
वफद ने उसकी तलाशी ली और वह खत बरामद कर लिया, उस खत पर मरवान बिन हकम का नाम था यानी वह खत मरवान बिन हकम में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के हुक्म से लिखा था, उस खत में लिखा था जब यह वफद मिश्र पहुंचे तो इन सब की गर्दन उड़ा दी जाएं। 

★_ यह खत पढ़कर वफद को बहुत गुस्सा आया लिहाज़ा वह वापस जाने के बजाय फिर मदीना मुनव्वरा की तरफ लौट पलट पढ़े और मदीना मुनव्वरा में दाखिल होकर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर को घेर लिया, 
मतलब यह कि उन लोगों का एक एतराज यह था कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे बे अहदी की है और उन्हें धोखे से कत्ल करने का मंसूबा बनाया है । जब उन्होंने इस खत का मामला हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने रखा तो आपने फौरन कहां - अल्लाह की क़सम ! यह खत मैंने नहीं लिखा ना मुझे इसके बारे में कोई इल्म है _,"

★_ इस खत का मामला बहुत अहम है, मरवान बिन हकम हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ से सरकारी खुतूत लिखता था और उस खत पर उसी का नाम लिखा था, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे यह खत लिखने का कोई हुक्म नहीं दिया था, अब सवाल यह है कि खत किसने लिखा, अगर मरवान ने लिखा तब भी उसने यह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के हुक्म से नहीं लिखा था और अगर खत मरवान ने नहीं लिखा तो फिर किसने लिखा था, इसकी तहकी़क़ की जरूरत थी ।
[11/19, 10:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ बात दरअसल यह थी कि वह खय बिल्कुल जाली था, इस साजिश का एक हिस्सा था, अब्दुल्लाह बिन सबा ने या उसकी जमात के किसी आदमी ने लिखा था और मरवान से उस खत का कोई ताल्लुक नहीं था।

★_ इसका सबूत इस बात से मिलता है कि इसी किस्म का एक खत उन लोगों को हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का भी मिला था, उस खत में उन लोगों को वापस मदीना की तरफ लौट आने की दावत दी गई थी और हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने अपने मुतालबात पेश करने के लिए लिखा गया था, चुनांचे जब यह लोग मदीना वापस आकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मिले और उनसे दरख्वास्त की कि आप भी हमारे साथ खलीफा के पास चले तो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - अल्लाह की कसम मैं तुम लोगों के साथ हरगिज़ नहीं जाऊंगा । यह सुनकर वह लोग बिगड़ गए और बोले - अगर आप हमारे साथ चलने पर आमादा नहीं तो फिर आपने हमें खत क्यों लिखा था ।उनकी यह बात सुनकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु हैरतज़दा रह गए, आपने फ़रमाया - नहीं अल्लाह की क़सम! मैंने तुम लोगों को कोई खत नहीं लिखा _,"

★_ इस वाक्य़े से साफ जाहिर है कि जिन साजिशी लोगों ने मरवान के नाम वाला खत लिखा उन्हीं लोगों ने एक खत इन लोगों को हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ से भी लिखा था, यह बात बिल्कुल साफ नज़र आ रही है क्योंकि एक तरफ तो हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह फरमाया कि अल्लाह की कसम मैंने ऐसा कोई खत नहीं लिखा, दूसरी तरफ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी यही फरमाया । अब यह दोनों शुख्सियात ऐसी हैं जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते कि वो झूठ बोल सकती थी, साफ ज़ाहिर है कि यह साजिश अब्दुल्लाह बिन सबा के गिरोह की थी ।

★_ मशहूर मोरिख अल्लामा इब्ने कसीर रहमतुल्ला अलैह लिखते हैं , "_इस जमात ने हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे अकाबिरे सहाबा की तरफ से भी इसी किस्म के जाली खुतूत लिख लिखकर मुख्तलिफ शहरों में भेजे थे, इसी जमात ने यही चाल हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर में चली थी और हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु में जंग करा दी थी ।
[11/20, 10:02 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ उन दिनों में एक है वाक्य़ा हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की मोहर लगाने वाली अंगूठी का कुंवे में गिरना है, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु एक रोज "हरीस" के मुंडेर पर खड़े थे, अंगूठी आपकी उंगली से निकलकर कुएं में गिर गई, आपने कुएं में अंगूठी को खूब तलाश कराया लेकिन अंगूठी ना मिली, आपने उस इनाम भी मुकर्रर किया मगर अंगूठी ना मिल सकी ।

★_ यह वाक़या हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के सातवें साल पेश आया, उस ज़माने में फसाद करने वाले अपनी साजिश शुरू कर चुके थे लिहाज़ा इस बात का जबर्दस्त इमकान है कि अंगूठी कुंवे से निकाले जाने वाले पानी में से किसी साजिशी ने चुरा लिया हो और इस तरह यह अंगूठी अब्दुल्लाह बिन सबा के पास पहुंच गई हो,

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से लोगों ने पूछा था कि अगर यह खत आपने नहीं लिखा तो इस पर मोहर कैसे लगी हुई है, इस सवाल का जवाब अंगूठी वाला वाक्या़ दे रहा है, मोहर लगाने वाली अंगूठी जरूर किसी साजिशी के हाथ लगी थी और जाली खुतूत पर मुहर उसी से लगाई गई थी ।

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने सवाल का जवाब यह फरमाया था - उन लोगों ने उस जैसी अंगूठी बना ली है _,"
इसकी मिसाल हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के जमाने में मुलाहिजा फरमाएं, आप के दौर में एक शख्स मोइन बिन जा़एदा ने मुहरे खिलाफत जैसी एक मोहर बना ली वह उसके ज़रिए खराज की बड़ी बड़ी रकम वसूल किया करता था, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को उसके फरेब का पता चला तो आपने कूफा के गवर्नर हजरत मुगीरा बिन शोबा रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म भेजा कि उस शख्स को फौरन गिरफ्तार किया जाए और सज़ा दी जाए _,"

★_ इन बातों से यह साबित हो जाता है कि वह खत मरवान ने नहीं लिखा था ना ही खिलाफत के अमले में से किसी का यह काम था बल्कि यह सब कुछ अब्दुल्ला बिन सबा की साजिश थी ।
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[11/21, 10:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: *फितनों की आग _,*

★_ गर्ज़ बागियों के तमाम एतराज़ात बिल्कुल बेबुनियाद थे और हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की नरम मिजा़जी की वजह से दिलेर हो रहे थे, आप बहुत सुलह पसंद थे, कूफा से स'ईद बिन आस और अब्दुल्लाह बिन साद बिना अबी सरह मिश्र से इन लोगों के बारे में बराबर इत्तेला आपको भेजते रहें और इनके खिलाफ कार्यवाही तलब करते रहे लेकिन आप जवाब में यही हिदायत भेजते रहे कि इन फितना पसंदों को एक शहर से दूसरे शहर भेज दें लेकिन उन्हें सजा की इजाजत आपने कभी नहीं दी, मुख्तलिफ ज़रियों से उन्हें समझाने की कोशिश करते रहे, उस वक्त बड़े बड़े सहाबा या तो मदीना मुनव्वरा में रहे नहीं थे, मुख्तलिफ शहरों में जा बसे थे या फिर बहुत बूढ़े हो गए थे, इसके अलावा हालात से दिल बर्दाश्त होकर उन्होंने गोशा नशीनी अख्त्यार कर ली थी ।

★_ उन बागियों में मुख्तलिफ गिरोह शामिल थे, मिस्र के लोग हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के अकी़दतमंद थे, बसरा के लोग तलहा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु को पसंद करते थे और कूफा के लोग हजरत जु़बेर बिन अवाम को खलीफा बनाना चाहते थे, एक जमात सिरे से अरब हुकूमत ही के खिलाफ थी, मतलब यह कि उनमें आपस में अगरचे इख्तिलाफात थे लेकिन सभी गिरोह इस पर इकट्ठे थे कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को माज़ूल किया जाये।

★_ बसरा कूफा और मिश्र फितनों का मरकज़ था, अब्दुल्ला बिन सबा इनकी साजिशों का सरदार था, उसने सबको हिदायत दी थी कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को हर मुमकिन तरीके से बदनाम करो और रूसवा करो, उसकी हिदायतों पर सख्ती से अमल किया गया, उसके इस प्रोपोगंडे ने तीनों जगह आग भड़का दी ।

★_ यह खबर जब मदीना मुनव्वरा पहुंची तो लोगों ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को मशवरा दिया कि सूरते हाल मालूम करने के लिए वहां कुछ लोग भेजे जाएं, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने मोहम्मद बिन सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को कूफा, ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को बसरा, अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु को मिश्र और अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को शाम रवाना किया।
[11/22, 10:08 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ हजरत उस्मान रजियल्लाहू अन्हू ने तमाम शहरों में एक हुक्म भेजा जिसमें लिखा था :- मुझे मालूम हुआ है कि लोगों को ओहदेदारों से शिकायत है कि बाज़ गवर्नर या दूसरे ओहदेदारों से ज्यादती करते हैं, अगर वाक़ई ऐसा है तो मैं ऐलान करता हूं कि हज के मौके पर सब हुक्मरान मक्का में जमा होंगे जिस जिस शख्स को भी कोई शिकायत हो वह आकर मुझसे मिले, मेरे या मेरे आमिलो कि जिम्मे जो निकलता हो वह वसूल कर लें _,"

★_ जब लोगों को यह पैगाम मिला तो वह रो पड़े और हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को दुआएं देने लगे, लोगों को तो आपने यह पैगाम भेजा दूसरी तरफ तमाम ओहदेदारों को यह पैगाम भेजा :- आप सब ईवाने ( घर) खिलाफत में हाजिर हों _,"

★_ यह हुक्म मिलने पर अब्दुल्लाह बिन आमिर, हजरत अमीर मुआविया, अब्दुल्लाह बिन साद बिन अबी सराह रज़ियल्लाहु अन्हुम वहां पहुंचे गए, हजरत अमरू बिन आस और हजरत स'ईद बिन आस को भी मशवरे में शरीक किया गया, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनसे कहा कि तुम मशवरा दो कि इन हालात में क्या करना चाहिए ?

★_ हजरत स'ईद बिन आस ने कहा - वह सिर्फ चंद आदमी है जो बोशीदा तौर पर गलत बातें मशहूर करके सीधे-साधे आवाम को बरगला रहे हैं बहका रहे हैं, उनका इलाज यह है कि आप उन लोगों को और जो उनका सरगना हो उनके सर कलम करा दीजिए _,"
[11/23, 8:38 AM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ मुतवज्जह हुए और फरमाया - अमरु तुम्हारी क्या राय है ?
उन्होंने जवाब में कहा- आप उन फितना परवाज़ लोगों के साथ नरमी का मामला कर रहे हैं आपने उन्हें बहुत ढील दे रखी है, आप हजरत अबू बकर सिद्दीक और हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम के तरीक़े पर अमल करें, सख्ती की जगह सख्ती और नरमी की जगह नरमी को अपनाएं _,"

★_ इस पर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - आप हजरात ने जो मशवरे दिए हैं वह मैंने सुने, असल बात यह है कि हर मामले का एक दरवाज़ा होता है उससे वह अंदर दाखिल होता है, यह फितना जो उम्मत को पेश आने को है उसको नरमी और मुवाफक़त ही से बंद किया जा सकता है, अलबत्ता सज़ाओं की बात और है सज़ा वाला दरवाज़ा बंद नहीं किया जा सकता _,"

"_ मुझ पर कोई शख्स यह इल्ज़ाम आईद नहीं कर सकता कि मैंने लोगों के साथ और अपने साथ भी भलाई करने में कोताही नहीं की है, फितने की चक्की तो अब घूम कर रहेगी लेकिन मैं खुद को इस सूरत में खुशनसीब खयाल करूंगा कि मैं इस हालत में इस दुनिया से रुखसत हो जाऊं कि इस चक्की को मैंने हरकत नहीं दी, पस आप उन हजरात को फितना परवाज़ों से रोके, जो उनके हुकूक हैं वह अदा करने में सुस्ती ना करें, उनके लिए अल्लाह ताला से मग्फिरत मांगे _,"

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो यह पैगाम तमाम शहरों में भेजा था उससे लोगों को बहुत खुशी हुई थी और सब का ख्याल था कि 35 हिजरी का साल अमनो आमान और सुकून से गुजरेगा लेकिन यह ख्याल गलत साबित हुआ, वह ऐसे की कूफे में सख्त फसाद हो गया (इसकी तफसील अगले पार्ट में )
[11/25, 6:05 AM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ कूफा के गवर्नर स'ईद बिन आस थे, यह निहायत लायक़ सूझ बूझ वाले और मुजाहिद नौजवान थे लेकिन थे कुरेशी, कूफा के लोग शुरू में तो इनसे खुश रहे इनकी तारीफ करते रहे लेकिन एक मर्तबा उनके मुंह में यह जुमला निकल गया - फूफा क़ुरेश का चमन है _,"

★_ उस मजलिस में दूसरे कबीलों के अलावा यमनी लोग भी थे उनका सरदार क़ुरेश का सख्त मुखालिफ था, कुरेशिया से बहुत बुग्ज़ रखता था, यह जुमला सुनते ही स'ईद बिन आस पर बिगड़ गया और बोल उठा - कुरेश में ऐसी कौन सी खुसुसियत है कि कूफा उनका हो , वो तो सब मुसलमानों का है _," 
उस वक्त वहां पुलिस का एक अफसर भी मौजूद था उसने गुस्से में कहां - गवर्नर साहब से तहजी़ब में रहकर बात करें_,"

★_ इस पर यमनी लोगों ने उसको इतना मारा कि वह बेहोश हो गया उन्होंने इतना ही नहीं किया बल्कि इससे आगे बढ़कर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु, सईद बिन आस और क़ुरेश की बुराइयां की, इसके साथ ही उन लोगों ने फैसला किया कि अब स'ईद बिन आस को गवर्नर नहीं रहने देंगे, चुनांचे उन लोगों ने मुतालबा किया कि उनकी जगह अबू मूसा अश'अरी को गवर्नर मुकर्रर किया जाए, से उन लोगों ने बताया कि उनकी जारी किया जाए , इस मुतालबे की वजह यह थी कि अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु कुरेशी नहीं थे और उनकी रिश्तेदारियां ममन से थी, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने शर दूर करने के ख्याल से उनकी बात मान ली और हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु को गवर्नर मुकर्रर कर दिया ।

★_ इस फैसले का असर उल्टा हुआ, अब उन लोगों के हौसले बढ़ गए उनके साथ ही मिश्री और बसरा के लोग भी खिलाफत के खिलाफ उठने के लिए तैयार हो गए, उन लोगों ने एक जलसा किया उसमें अपना एक नुमाइंदा हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ भेजने का फैसला किया, चुनांचे अब्दुल्लाह बिन तैयमी को अपना नुमाइंदा बना बना कर भेजा, यह शख्स हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से मिला, सख्त कलामी की और खिलाफत से दस्त बरदार होने का मुतालबा किया।
[11/25, 9:54 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ उस वक्त हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु भी शाम से वहां आए हुए थे उन्होंने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से दरख्वास्त की कि आप मेरे साथ शाम चले वहां के हालात ठीक है _,"
हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - चाहे मेरी गर्दन उड़ा दी जाए मैं किसी कीमत पर भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का क़ुर्ब और हमसायगी नहीं छोड़ सकता _,"

★_ इस पर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - अगर आपको यह बात मंजूर नहीं तो मुझे इजाज़त दीजिए कि मैं शाम का एक लश्कर भेज दूं वह मदीना के पिछले हिस्से में ठहरा रहेगा, अगर उन लोगों ने कोई शरारत करने की कोशिश की तो वह लश्कर आपकी मदद करेगा _,"
हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह तजवीज़ भी मंजूर ना फरमाई और फरमाया - इस तरह मदीना मुनव्वरा के लोग परेशानी में मुब्तिला होंगे मैं इस बात को हरगिज पसंद नहीं करता _,"

★_ अब अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु बोले - तब फिर ए अमीरुल मोमिनीन ! आपके साथ गदर वाला मामला हो जाएगा _,"
हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब में इरशाद फरमाया -
" हसबियल्लाहु व नि'आमल वकील " ( अल्लाह ही मेरे लिए काफी है और वही बेहतरीन मददगार है )

★_ चुनांचे हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने इजाज़त ली और शाम की तरफ रवाना हो गए, साजिश करने वालों को अब मुनासिब वक्त का इंतजार था और उनके लिए सबसे बेहतरीन वक्त हज के दिन थे क्योंकि ज्यादातर लोग हज के लिए चले जाते थे, मदीना मुनव्वरा में उन दिनों बहुत कम लोग होते थे, उनके खिलाफ कोई बड़ी रुकावट देश नहीं आ सकती थी । चुनांचे खुफिया क़रार के मुताबिक कूफा बसरा और मिश्र तीनों शहरों से फितना परवाज़ों की जमात एक ही वक्त में मदीना में रवाना हो गई ।
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*★_ बागियों का मदीना पहुंचना_,*

[11/26, 6:52 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ उन तीनों जमातों की तफसील इस तरह है,.. मिस्र के लोगों की तादाद 600 से 1000 के दरमियान थी, यह चार टोलियो में तक़सीम थे, कूफे के लोग भी तादाद में मिस्र के बराबर थे और यह भी चार टोलिया में तक़सीम थे, बसरा के बागी गिरोहों की तादाद भी क़रीब क़रीब इतनी ही थी, यह भी चार टोलिया में तक़सीम था,

★_ जब यह काफिला रवाना हुआ तो रास्ते में इन लोगों के हम ख्याल लोग भी शामिल होते चले गए, मदीना मुनव्वरा से 3 किलोमीटर के फासले पर पहुंचकर यह लोग तीन हिस्सों में बट गए, यहां पहुंचकर इन लोगों ने मशवरा किया कि आगे बढ़ने से पहले बेहतर है कि इस सिलसिले में मदीना के लोगों के खयालात
 और एहसासात मालूम कर लिए जाएं, चुनांचे इस मक़सद के लिए इन्होंने अपने दो नुमाइंदे ज़ियाद बिन नज़र और अब्दुल्लाह बिन असम मदीना मुनव्वरा भेजे । 

★_ इन दोनों ने अज़वाज मुताहरात, हजरत तरहां हजरत जुबेर और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात की, अपने आने का मक़सद बयान किया, उन्होंने कहा - हम चाहते हैं हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु खिलाफत छोड़ दें क्योंकि उनके बाज़ मामलों ने अंधेर मचा रखा है _,"
इस पर इन सब हजरात ने इनकी शहीद मुखालफत की और यह भी कहा कि हम तुम लोगों को मदीना मुनव्वरा में दाखिल नहीं होने देंगे _," 

★_ यह जवाब सुनकर दोनों वापस लौट गए और अपने बाक़ी साथियों को सूरते हाल बता दी, अब इन लोगों ने इन हजरात से अलग-अलग मुलाक़ात करने का प्रोग्राम बनाया, चुनांचे मिस्र के लोगों ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात की और उनसे कहा कि हम हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को माज़ूल करके आपको उनकी जगह खलीफा बनाना चाहते हैं _,"
हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु उन पर खूब बिगड़े, उन्हें बुरा भला कहा और फरमाया - चले जाओ यहां से _,"
[11/27, 10:11 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ इसी तरह बसरा के लोग हजरत तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु से और कूफा के लोग हजरत जुबेर रज़ियल्लाहु अन्हु से मिले, उन्होंने भी इन्हें खूब बुरा भला कहा और फरमाया - नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के सहाबा को मालूम है कि आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इन रास्तों से आने वाले लश्करों पर लानत भेजी है यानी तुम लोगों के बारे में आन हजरत सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने पहले ही खबरदार कर दिया था, लिहाज़ा फौरन वापस चले जाओ _,"

★_ हर तरफ से लानत मलामत सुनकर इन लोगों ने वापस लौट जाने में ही खैर जानी, ये उस जगह लौट गए जहां इनके तीनों लश्कर पड़ाव डाले हुए थे, यहां आकर उन्होंने फिर मशवरा किया और तय किया कि इस मुकाम से कुछ दूर हट कर रुक जाते हैं और अहले मदीना के हज के लिए रुखसत हो जाने का इंतजार करते हैं, जब सब लोग हज के लिए चले जाएंगे तब हमलावर होंगे _,"

★_ उधर बागियों के चले जाने के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आए और उन्हें मशवरा दिया - आप के खिलाफ लोगों में जो बातें हो रही हैं बेहतर होगा आप लोगों के सामने एक तक़रीर करें अपने खिलाफ लगाए जाने वाले इल्ज़ामात की वज़ाहत करें वरना मुझे डर है जिन लोगों को हमने वापस भेज दिया है वह फिर वापस ना आ जाएं _,"

★_ यह मशवरा सुनकर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु बाहर तशरीफ लाए, लोगों के सामने खुतबा दिया, उसे खुतबे में आपने वादा फरमाया कि आइंदा किसी को शिकायत का मौका नहीं देंगे, आपने फरमाया - मेरा दरवाज़ा हर शख्स के लिए हर वक्त खुला है जिस शख्स को भी कोई शिकायत हो वह बिला तकलीफ मेरे पास आ जाए और अपनी शिकायत बयान करें, यही नहीं जब मैं मिंबर से उतरूं तो आप लोगों में जो बुलंद मर्तबा हजरात हैं वह मेरे पास आएं, इस मसले में मुझे मशवरा दें _,"
[11/28, 8:46 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ आपने यह खुतबा इस क़दर दर्द भरे अंदाज में दिया कि लोग रो पढ़े, बाज़ लोगों की तो हिचकी बंध गई लेकिन जो लोग फसाद बरपा करने पर तुले हुए थे उन पर भला क्या असर होता , चुनांचे अभी इस खुशगवार खुतबे के असरात लोगों के ज़हनों पर बाक़ी थे कि एक दिन अचानक मदीना मुनव्वरा घोड़ों के टापों से गूंज उठा, एक शोर गूंजा - बागी मदीना मुनव्वरा में घुस आए _,"

★_ बागियों ने शहर में दाखिल होते ही हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर को घेर लिया, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु को यह इत्तेला मिली तो यह तीनों हजरात मदीना मुनव्वरा के और बहुत से लोगों के साथ उन बागियों से मिले, उन्होंने कूफा बसरा और मिस्र के लोगों से बारी बारी मुलाकात की, लेकिन उन लोगों पर कोई असर ना हुआ, अब यह लोग हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर का घेरा डालकर वहीं पड़े रहे ।

★_ शुरू शुरू में यह घैरा नरम था, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु मस्जिद नबवी में आ जाते थे और नमाज की इमामत कराते थे, खुद ये फसादी लोग भी आपके पीछे नमाज अदा करते थे, एक दिन इन फसादियों ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत मुहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा कि हम आपकी मौजूदगी में खलीफा से बात करना चाहते हैं ,,

★_ दोनों हजरात ने ज़ुहर के बाद का वक्त तय कर लिया और ठीक वक्त पर उनके साथ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पहुंच गए , बागियों ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु से खिलाफत से दस्त बरदार होने का मुतालबा किया, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु जवाब में इरशाद फरमाया - मैं वह कमीज़ नहीं उतारूंगा जो अल्लाह ताला ने मुझे पहनाई है _," यह कहने से आप का मतलब यह था कि मैं यह खिलाफत नहीं छोडूंगा जो अल्लाह ताला की तरफ से अता हुई है ।
[11/29, 9:55 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ मिस्र के लोगों ने कहा - हम यहां से उस वक्त तक नहीं जाएंगे जब तक हम आपको खिलाफत से अलग ना कर दें या क़त्ल ना कर दें, अगर आपके साथियों ने हमारे रास्ते में आने की कोशिश की तो हम उनसे जंग करेंगे यहां तक कि हम आप तक पहुंच जाएंगे _,"

★_ उनकी बात के जवाब में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - मुझे क़त्ल हो जाना मंजूर है खिलाफत के रास्ते से दस्त बरदार होना मंजूर नहीं, तुम्हारा यह कहना कि तुम मेरे साथियों से जंग करोगे, तो सुन लो , मैं उन्हें जंग करने ही नहीं दूंगा _,"

★_ इस पर यह बातचीत खत्म हो गई और वह लोग उनके पास से लौट गए, उनके जाने के बाद अमीरुल मोमिनीन हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया, उनसे फरमाया - आप मिस्रियों को मेरी तरफ से मुतम'इन करें कि उनकी जायज़ शिकायत और मुतालबात पर गौर किया जाएगा _," 
हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब में अर्ज किया - अब इसका कोई फायदा नहीं.. यह लोग मुतम'इन नहीं होंगे _,"

★_ इस दौरान एक और सख्त ना खुशगवार वाकि़या पेश आ गया, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु जुमे की नमाज़ के लिए मस्जिद-ए-नबवी में तशरीफ लाए, यहां मिश्री वफद मौजूद था, नमाज़ मामूल के मुताबिक हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई, नमाज से फरागत के बाद आप मिंबर पर तशरीफ़ फरमा हुए और मिश्री वफद से मुखातिब हुए :-

★_ ऐ दुश्मनों ! अल्लाह ताला के क़हर और गज़ब से डरो, अहले मदीना खूब जानते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने तुम लोगों पर लानत की है ( यानी आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम पहले ही तुम लोगों के बारे में पेश गोई फरमा चुके हैं और तुम पर लानत भेज चुके हैं ) पस तुमने जो खताएं की है उनकी तलाफी नेक आमाल से करो, अल्लाह ताला की सुन्नत यह है कि नेकियों के ज़रिए गुनाहों को मिटाता है _,"
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*★_ बागियों का हमला _,*

 ★_ आपने अभी यह अल्फाज़ फरमाए ही थे कि हजरत मुहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ियल्लाहु अन्हु बोले उठे - आपने बिल्कुल सच कहा मैं इसका गवाह हूं _,"

★_ ज्योंही हजरत मुसलिमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह फरमाया, मिसरी वफद उन पर हमला करने के लिए बड़ा, इस पर मदीना मुनव्वरा के लोग भी उठ खड़े हुए, दोनों गिरोहों में झड़प हो गई, मिसरी कंकर पत्थर उठाकर उन पर फेंकने लगे यहां तक कि इस लड़ाई में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु भी जख्मी हो गए बल्कि बेहोश हो गए, बेहोशी की हालत में आपको घर पहुंचाया गया ।

★_ सहाबा किराम में उस वक्त हजरत ज़ैद बिन साबित, साद बिन मालिक, अबू हुरैरा और हसन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हुम मौजूद थे, उन्होंने मिस्रियों को सज़ा देने का इरादा किया, मिसरी उस वक्त मस्जिद से निकल चुके थे, ऐसे में हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को होश आ गया, उन्हें बताया गया कि सहाबा किराम उन लोगों पर हमला करने का प्रोग्राम बना रहे हैं, तो फौरन कहला भेजा - मिसरियों का ता'क़ुब ना किया जाए _,"

★_ इस वाक्य़े से इस बात का सबूत मिलता है कि मिस्त्री लोग फितना और फसाद बरपा करने की क़सम खा चुके थे, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने गवर्नरों और फौज के सालारों को इन हालात की इत्तेला दी और उन्हें हिदायत दी कि वह यहां आ जाएं _,"
: ★_ यहां यह बात भी जान लेनी चाहिए कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो अपने गवर्नरों और सालारो को पैगामात भेजे उसका मकसद यह नहीं था कि वह आए़ और फसाद बरपा करने वालों से जंग करें, जी नहीं ! हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को तो हरगिज़ हरगिज़ किसी मुसलमान का खून बहाना गवारा नहीं था, इस क़दम से आपका मक़सद सिर्फ इतना था कि बागी अपनी जाने बचाने के ख्याल से भाग जाएं ।

★_ आपकी तरफ से पैगाम मिलने के बाद हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु बाज़ मामलात की वजह से फौरन रवाना ना हो सके, अलबत्ता शाम से हबीब बिन मुसलिमा, बसरा से मुजाशा बिन मसूद लोगों की बड़ी तादाद के साथ रवाना हो गए, यह हजरात अभी मदीना मुनव्वरा से 3 मील दूर थे कि इन्हें हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत की खबर मिली । ( इब्ने कसीर)

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर का मुहासरा तक़रीबन एक माह तक जारी रहा इस दौरान हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु मस्जिद में आते रहे नमाज पढ़ाते रहे, उसके बाद बागियों ने आपको मस्जिद में आने से रोक दिया, अब उनका एक साथी अमीर गाफक़ी नमाज़ पढ़ाने लगा।

★_ बागियों ने यह जो सख्ती अख्त्यार की उसकी वजह यह बयान की जाती है कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो अपने गवर्नरों और अमीरों को पैगामात भेजे उन्हें इसका पता चल गया था, इस सख्ती की दूसरी वजह यह थी कि हज के दिन खत्म होने के क़रीब थे, उन्होंने सोचा हाजियों के आने से पहले पहले उन्हें अपने मंसूबे को पूरा कर डालना चाहिए वरना फिर अपने मंसूबे पर अमल नहीं कर सकेंगे ।
: ★_ हजरत उस्मान रजि अल्लाह वालों अपने घर में कैद होकर रह गए इस हालत में फौजियों ने घर में घुसने की कोशिश की लेकिन आपके घर पर 600 के करीब जानिसार पहरा दे रहे थे उनमें बड़े-बड़े सहाबा के अलावा हजरत हसन हजरत हुसैन अब्दुल्लाह बिन जुबेर और अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह वालों में शामिल थे नवरात्र में बावरियों को अंदर आने ना दिया

★_ हालात की वजह से हजरत उस्मान रजि अल्लाह हू अन्हो हज के लिए भी नहीं जा सके थे आप इससे पहले हर साल जाते रहे थे वहां आप अपने गवर्नर ओ से मुलाकात करते थे हर एक से उनके इलाके के हालात मालूम करते थे आराम से उनके सुख-दुख मालूम करते थे इस तरह हालात से लोगों के मसाईल से बाहर रहने की पूरी कोशिश करते थे आप जो कि इस मर्तबा आप नहीं जा सके इसलिए आपने हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अल्लाह वालों से फरमाया था इस मर्तबा आप मेरी तरफ से हज को चले जाएं

★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने उसकी आय अमीरुल मोमिनीन उन भाइयों से जिहाद करना मेरे नजदीक हज करने से ज्यादा पसंदीदा है हजरत उस्मान रजि अल्लाह उन्होंने इसरार किया और उन्हें जाने पर मजबूर किया तब हज के लिए गए जब भाइयों ने आपको घर में कैद कर दिया तो एक दिन आप अपनी छत पर आ गए आए और भाइयों से यूं ही तकिया

★_ "_ तुम दोनों को कसम देकर पूछता हूं सच कहो मैंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के इरशाद पर बैरोमा हरीदकर उसका पानी तमाम मुसलमानों के लिए वक्त नहीं कर दिया था इस पर सब ने कहा हां यह ठीक है आपने फिर इरशाद फरमाया मस्जिद-ए-नबवी की जगह तंग हो गई थी उसमें 89 नहीं आ सकते थे तो क्या मैंने उसके साथ वाली जमीन खरीद कर मस्जिद में शान नहीं की थी सब ने जवाब दिया हां यही बात है आपने फरमाया गजवा तबु के मौके पर जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने दर्द की अपील की तो क्या मैंने लश्कर के लिए सामान नहीं दिया था और क्या इस पर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने खुश होकर मुझे जन्नत की बस आदत नहीं दी थी सब ने कहा हां ऐसा ही है अब आप ने फरमाया और फिर अल्लाह के रसूल ने तीन बार फरमाया था कि अल्लाह तू गवाह है
[: ★_ इसके अलावा आपने फरमाया - क्या तुम लोगों को मालूम नहीं है कि एक मर्तबा हीरा पहाड़ पर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम, हजरत अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु और मैं, हम तीनों खड़े थे, ऐसे में पहाड़ लरज़ने लगा था तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था - ए हीरा ठहर जा, इस वक्त तेरी पुश्त पर एक नबी, एक सिद्दीक और एक शहीद है , बताओ.. बताओ , नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने यह फरमाया था कि नहीं ? उन सबने एक आवाज़ हो कर कहा - बेशक ।

★_ इस तकरीर से हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु उनके ज़मीर को जगाना चाहते थे उन्हें सोचने पर आमादा करना चाहते थे कि वह कैसे शख्स के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं लेकिन उनके ज़मीर तो मर चुके थे , हर सवाल का जवाब उन्होंने हमें दिया लेकिन अपने मुतालबे पर फिर भी डटे रहे , उनका कहना था, "_ या तो आप खिलाफत छोड़ दें वरना हम आप को क़त्ल कर देंगे _,"

★_ आपने बागियों से यह भी फरमाया- तुम मुझे क़त्ल करना चाहते हो तुम्हारे पास इसका क्या जवाज़ है मैंने तो इस्लाम से पहले भी कभी शराब नहीं पी, ज़िना नहीं किया किसी को क़त्ल नहीं किया, याद रखो अगर तुमने मुझे क़त्ल कर दिया तो फिर इसके बाद कभी तुममे बाहमी मोहब्बत नहीं रहेगी तुम हमेशा आपस में लड़ते ही रहोगे तुम्हारी इज्तेमाइयत खत्म हो जाएगी _," 

★₹ उस पर आपकी बात का कोई असर ना हुआ उस वक्त हालात बहुत नाजुक हो चुके थे वजह यह थी हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु बागियों से फरमा चुके थे कि वह किसी सूरत किसी शख्स को भी यह इजाजत नहीं देंगे कि उनकी तरफ से जंग करें, वहां उस वक्त जितने भी जांनिसार मौजूद थे, उन सभी ने बार-बार यह दरख्वास्त की थी कि हमें बागियों से जंग करने की इजाजत दी जाए लेकिन आपने उन्हें इजाजत नहीं दी ‌।
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: *"_ शहादत की तैयारी _,*

★_ अब उन्होंने मुहासरा इस क़दर तंग कर दिया कि कोई मकान के अंदर नहीं जा सकता था और ना मकान से बाहर आ सकता था यहां तक कि मकान में पानी का दाखिला भी बंद कर दिया। उम्मूल मोमिनीन उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा को इस बात का इल्म हुआ तो आप हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की मदद के लिए आईं लेकिन बागियों ने उन्हें भी अंदर जाने ना
 दिया और उनके साथ भी सख्त गुस्ताखी से पेश आए यहां तक कि आप की सवारी के खच्चर को भी जख्मी कर दिया, चंद आदमी जो वहां मौजूद थे उन्होंने आपको वहां से निकाला।

★_ मदीना मुनव्वरा में उस वक्त खौफ का आलम था, बहुत से कमज़ोर और बूढ़े असहाब तो गोशा नशीन हो गए कुछ मदीना छोड़कर इधर उधर चले गए । आखिरी मर्तबा हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया तो बागियों ने उनका भी रास्ता रोक लिया, आपने क़ासिद को अपना अमामा उतार कर दिया और फरमाया जो हालत तुम देख रहे हो जाकर बयान कर देना _,"

★_ ऐसे में खबर पहुंची कि इराक़ से हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की मदद के लिए जो लोग रवाना हुए थे वह मदीना मुनव्वरा के करीब पहुंच गए हैं और शाम से रवाना होने वाले भी मदीना मुनव्वरा के नजदीक वादी अलक़ुरा पहुंच गए हैं, उन लश्करो के आने की खबर पहुंची तो जोश और बेचैनी में इज़ाफ़ा हो गया और हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु मकान के पास आए और पुकारे - अंसार दरवाज़े पर मौजूद हैं और अर्ज़ करते हैं कि हम मदद के लिए मौजूद हैं, हुक्म फरमाएं _,"
हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसके जवाब में फरमाया - अगर मक़सद जंग करना है तो मैं इजाज़त नहीं दूंगा _,"
एक रिवायत के मुताबिक आपने फरमाया- मेरा सबसे मददगार वह होगा जो अपना हाथ और हथियार रोके रहे _,"

★_ हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू ने भी अर्ज़ किया - अमीरूल मोमिनीन ! जंग की इजाज़त दीजिए _,"
हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - अबू हुरैरा ! क्या तुम इस बात को पसंद करोगे कि तुम मुझे और सब लोगों को क़त्ल करो ? हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू ने जवाब दिया - नहीं ! इस पर हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - अगर तुम एक आदमी को भी क़त्ल करोगे तो गोया सब ही को क़त्ल कर दिया _," 
उनके बाद हजरत अब्दुल्लाह बिन जु़बेर हाजिर हुए और ज़ोर डालकर कहा - आप बागियों से जंग कीजिए अल्लाह की क़सम अल्लाह ताला ने आपके लिए उन लोगों से जंग करना हलाल कर दिया है _,"
हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें भी वही जवाब दिया और जंग की इजाज़त ना दी , *(तबकात इब्ने साद 3/48 )*
 ★_ इसी तरह हजरत मुगीरा बिन शोबा भी आए उन्होंने कहा - ऐ अमीरुल मोमिनीन ! आप उम्मत के इमाम हैं खलीफा ए बरहक़ है, इस वक्त जो हालात हैं उनमें तीन सूरते हैं आप उनमें से कोई एक अख्त्यार कर लें, एक यह कि आपके पास काफी ताक़त है उसके साथ इन दुश्मनों का मुकाबला कीजिए, आप हक़ पर हैं और वह बातिल पर, दूसरी सूरत यह है कि आपके मकान के दरवाज़े पर इस वक्त बागियों का हुजूम है हम पिछली तरफ से एक दरवाज़ा निकाल देते हैं आप उस से निकलकर सवारी पर बैठ जाएं और मक्का मुकर्रमा चलिए वहां हरम में यह लोग जंग नहीं कर सकेंगे, तीसरी सूरत यह है कि इस दरवाज़े से निकलकर शाम चले जाएं वहां अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु है और शाम के लोग वफादार भी हैं _,"

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह तीनों तजवीज़ मंजूर ना फरमाई, जवाब में उनसे फरमाया - मैं मुकाबला नहीं करूंगा क्योंकि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का वह पहला खलीफा नहीं बनना चाहता जिसके हाथों उम्मत में खून रेज़ी का आगाज़ हो, दूसरे यह कि मैं मक्का भी नहीं जाऊंगा क्योंकि यह फसादी वहां भी खून रेज़ी करने से बाज़ नहीं आएंगे और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की पेश गोई है कि कुरेश का एक शख्स मक्का की हुरमत उठाएगा, मैं वह शख्स नहीं बनना चाहता, रहा शाम जाना वहां के लोग जरूर वफादार हैं और माविया भी वहां है लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का पड़ोस और दारुल हिजरत से जुदाई और दूरी मुझे किसी सूरत मंजूर नहीं_,"

★_ उधर जितना वक्त गुज़रता जा रहा था हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की पेश गोइयों की रोशनी में अपनी शहादत का यक़ीन हो चला था और आपने अपनी शहादत की तैयारी शुरू कर दी थी, चुनांचे जिस दिन यह सानहा पेश आया उस रोज़ आप ने रोज़ा रखा, वह दिन जुमे का था, आप पर इस हालत में नींद की कैफियत तारी हो गई, उस कैफियत से होशियार हुए तो फरमाया - मैंने नीम ख्वाबी के आलम में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और हजरत अबू बकर व उमर रज़ियल्लाहु अन्हुम को देखा है, आप फरमा रहे थे उस्मान आज का रोज़ा तुम हमारे साथ अफतार करना _,"

★_ उस रोज़ आप रोज़े से तो थे ही, आपने बीस गुलाम भी आज़ाद फरमाए, आपके पास एक पाजामा था उस पाजामे को आपने कभी पहना नहीं था उस रोज़ वह पाजामा आपने वह पाजामा पहना _,

★_ आप अपने जांनिसारों को हथियार उठाने से मना कर चुके थे लेकिन बागियों ने जब मदीने के नज़दीक लश्करों की आमद की खबर सुनी तो वह गुस्से के आपे से बाहर हो गए, आपके मकान के दरवाज़े की तरफ बढ़े और उसको आग लगा दी । अंदर जो हजरात मौजूद थे बाहर निकल आए उनकी फसादियों से झड़प हुई, इस झड़प में हजरत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हू और मरवान बिन हकम ज़ख्मी हुए, कुछ लोग शहीद भी हुए । *( तारीख तिबरी- 4/ 352)*

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: *"_हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत _,"*

★_ आपके मकान के पड़ोस में हजरत आम रोबिन हस मोर रजि अल्लाह वालों का मतलब मकान की खिड़की हजरत उस्मान रजि अल्लाह वालों के मकान में हुई थी दरवाजे पर जब यह झड़प हुई तो शादियों में से कुछ उस खिड़की के जरिए अंदर आ गए और वह वक्त सफर के बाद का था आपकी सोजा मोहतरमा हजरत नाइला आपके पास बैठी थी हजरत उस्मान रजि अल्लाह वालों के सामने कुरान खुला हुआ था और आप उस की तिलावत कर रहे थे इसी हालत में एक फसादी ने आगे बढ़कर आपकी दाढ़ी मुबारक को पकड़ लिया और सख्त बदनामी से पेश आया उसके हाथ में खंजर था वह खंजर उसने आप की पेशानी पर मारा पेशानी से खून का फव्वारा बह निकला खून से आपकी दाढ़ी मुबारक तर हो गई उस वक्त आपकी जुबान से निकला बिस्मिलाही तवक्कालतू अलअल्लाही रोमा अल्लाह के नाम से अल्लाह ही पर भरोसा है साथ ही आप बाई करवट गिर गए कुरान मजीद आपके सामने खुला हुआ था और आप उस वक्त सूरह बकरा की तिलावत कर रहे थे पेशानी से निकलकर खून दाढ़ी तक आया और डाली से क़ुरआने करीम पर बहने लगा यहां तक कि शायद पर पहुंचकर रुक गया तर्जुमा बस अन करीब अल्लाह ताला उन लोगों से आपको विन्यास कर देगा और वही सुनने वाला और जानने वाला है सूरह अल बकरा 237

आप सब मिलकर आप पर टूट पड़े कल आता बिन बशर विनीता बने लोहे की सलाह हमारी सौदान बिन हमरा ने तलवार का वार किया और आम रोबिन होमवर्क करने सीने पर बैठकर ने जैसे मुसलसल कई वार किए इसके साथ ही आपकी रोज इस मुबारक से जुदा हो गई इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी उन

★_ आपके मकान के पड़ोस में हजरत अमरू बिन हज़म रज़ियल्लाहु अन्हु का मकान था, उस मकान की एक खिड़की हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के मकान में खुलती थी, दरवाज़े पर जब यह झड़प हुई तो फसादियों में से कुछ उस खिड़की के जरिए अंदर आ गए _,"

★_ और वह वक्त असर के बाद का था, आपकी ज़ोजा मोहतरमा हजरत नाइला आपके पास बैठी थी, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने कुरान खुला हुआ था और आप उस की तिलावत कर रहे थे, इसी हालत में एक फसादी ने आगे बढ़कर आपकी दाढ़ी मुबारक को पकड़ लिया और सख्त बद कलामी से पेश आया, उसके हाथ में खंजर था वह खंजर उसने आपकी पेशानी पर मारा, पेशानी से खून का फव्वारा बह निकला, खून से आपकी दाढ़ी मुबारक तर हो गई, उस वक्त आपकी जुबान से निकला - "_ बिस्मिलाही तवक्कलतु अलल्लाही _," 
( तर्जुमा - अल्लाह के नाम से अल्लाह ही पर भरोसा है ),

★_ साथ ही आप बाईं करवट गिर गए, कुरान मजीद आपके सामने खुला हुआ था और आप उस वक्त सूरह बक़रा की तिलावत कर रहे थे, पेशानी से निकलकर खून दाढ़ी तक आया और दाढ़ी से क़ुरआने करीम पर बहने लगा यहां तक कि इस आयत पर पहुंचकर रुक गया, ( तर्जुमा - पस अन क़रीब अल्लाह ताला उन लोगों से आपको बे नियाज़ कर देगा और वही सुनने वाला और जानने वाला है - सूरह अल बक़रा 137 )

★_ अब सब मिलकर आप पर टूट पड़े, कनाता बिन बशर इताब ने लोहे की सलाख मारी, सौदान बिन हमरान ने तलवार का वार किया और अमरू बिन हुमक़ ने सीने पर बैठकर नेजै़ से मुसलसल कई वार किए, इसके साथ ही आपकी रूह जिस्म मुबारक से जुदा हो गई । "_ इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजी'ऊन _,"
: ★_ आपकी बीवी हजरत नाइला ने आप पर झुक कर सौदान‌ बिन हमदाम के तलवार का वार अपने हाथ पर रोका तो उनकी उंगलिया कट गई, उसके बाद उन कातिलों ने घर में लूटमार की, जिसके हाथ जो चीज़ आई उठाई और चलता बना ।

★_ यह पुर हौल सानहा असर और मगरिब के दरमियान जुमे के रोज 18 जि़लहिज्जा 25 हिजरी को हुआ, बागियों की वजह से पूरे शहरे मदीना में खौफ फैल गया था, एक तरह से पूरा शहर उन बलवाइयों के क़ब्ज़े में था, लोगों ने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए थे बलवाई शहर में दन दनाते फिर रहे थे ।

★_ इन हालात में सवाल यह पैदा हुआ कि मुसलमानों के तीसरे खलीफा ज़ुल नूरेन हजरत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु के कफन दफन का इंतजाम कैसे किया जाए? मराकिस से लेकर काबुल तक का हुक्मरान आज इस हालत में बे गौर व कफन पड़ा था कि कोई उसके कफन दफन के लिए नहीं आया था ।

★_ रात के वक्त कुछ हजरात खामोशी से आए और आपकी लाश उठाकर बाहर ले आए, यहां तारीखी रिवायात में बहुत इख्तिलाफ है, कुछ रिवायात की रू से जनाजे में कुल 17 आदमी थे, इब्ने साद की रिवायत है कि जनाजे में कुल चार अफराद थे, उनके नाम यह हैं - हजरत जुबेर बिन मुत'अम, हजरत हकीम बिन हुज़ान, हजरत अबू जहम बिन हुजैफा और हजरत नयार बिन मुकर्रम असलमी रज़ियल्लाहु अन्हुम ।

★_ यह हजरात आप का जनाजा जन्नतुल बकी़ में लाए, जन्नतुल बकी़ के पहलू में " हशे को कब " नाम का एक नखलिस्तान था, यह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की मिल्कियत था, इसी में आपकी क़ब्र बनाई गई और जिन कपड़ों में आप शहीद किए गए थे उन्हीं कपड़ों में आपको दफन किया गया , जनाजे की नमाज हजरत जुबेर बिन मुत'अम ने पढ़ाई ।
हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु जब मदीना मुनव्वरा आए तो आपने " हशे को कब " के दरमियान जो दीवार थी उसको गिरा दिया, इस तरह हशे को कब" भी जन्नतुल बकी़ में शामिल हो गया ।

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शहादतहादत के बाद _,*

★_ शहादत के वक्त आपकी उम्र 82 साल थी आप 12 बरस तक खलीफा रहे، सहाबा किराम उन बागियों की वजह से अपने घरों में बंद थे उन्हें फौरी तौर पर इस सानहा का पता भी ना चल सका, दरअसल उन्हें यह उम्मीद नहीं थी की नौबत यहां तक पहुंच जाएगी, ज्योंही सहाबा को यह होलनाक खबर मिली वह रोने लगे बेकरार हो गए,

★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को खबर मिली तो उन्होंने आसमान की तरफ हाथ उठाकर फरमाया - ऐ अल्लाह ! तु गवाह रह, मैं उस्मान के खून से बरी हूं _," आपने यह भी फरमाया - हजरत उस्मान की शहादत से मेरी कमर टूट गई _,"
हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा उस वक्त हज के लिए गई हुई थी, वह हज के बाद वापस आ रही थी कि इस सानहा की इत्तेला मिली, उन्होंने फरमाया & अल्लाह की क़सम ! उस्मान मज़लूम क़त्ल किए गए हैं मैं उनके क़ातिलों से बदले का मुतालबा करूंगी_,"

★_ हजरत हुज़ैफा बिन यमान रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह खबर सुनकर फरमाया - अब इस्लाम में इतना बड़ा अशगाफ पैदा हो गया कि पहाड़ भी उसे बंद नहीं कर सकता _," 
सुमामा बिन अदि रज़ियल्लाहु अन्हु को मालूम हुआ तो आपने फरमाया - उम्मते मोहम्मदिया के खिलाफते नबूवत का खात्मा हो गया, अब मलूकियत और जबरदस्ती की हुकूमत का दौर दौरा होगा जो शख्स जिस चीज़ पर गालिब आएगा उसे हड़प कर लेगा_,"

★_ हजरत अबू हामिद सा'दी बद्री सहाबी हैं, आपने यह खबर सुनकर फरमाया - मैं अब कभी नहीं हसूंगा और तमाम उमर फला फला काम नहीं करूंगा_," 
हजरत अबू हुरैरा और हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हुम को लोगों ने बेतहाशा रोते देखा, अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह खबर सुनकर फरमाया - आज अरब तबाह हो गया _,"
हजरत ज़ैद बिन सोमान रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - अब मुसलमानों के दिल कयामत तक एक दूसरे से नहीं मिल सकते_,"
 ★_ उम्मे सलीम रज़ियल्लाहु अन्हा एक सहाबिया हैं उन्होंने फरमाया - अब मुसलमानों में बाहम खून खराबे के सिवा कुछ नहीं होगा _,"
हजरत स'ईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - तुमने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ क्या किया है, हक यह है कि इस पर उहद पहाड़ को गिर जाना चाहिए _,"
अबू मुस्लिम खोलानी रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह अल्फाज़ फरमाए - कातिलीने उस्मान का वही अंजाम होगा जो क़ौमें समूद का हुआ था क्योंकि खलीफा का कत्ल एक ऊंटनी के क़त्ल से कहीं ज्यादा बड़ा गुनाह है _,"

★_ हजरत हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे शायर हजरात ने अपने अशआर में गम का इज़हार किया, उनमें से एक शेर का तर्जुमा यह है :- उस्मान दुनिया के सबसे ज्यादा अमन पसंद थे... तो क्या अब उनके बाद भी उम्मत खैर की उम्मीद कर सकती है _,"

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का पहला निकाह नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की साहबज़ादी हजरत रुकैया रजियल्लाहू अन्हा से हुआ, उनसे एक लड़का पैदा हुआ उसका नाम अब्दुल्लाह रखा गया, यह कमसिनी में ही फौत हो गया था, उसकी निस्बत से हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह थी, हजरत रुकैया रजियल्लाहू अन्हा की वफात के बाद आपका निकाह हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की दूसरी साहबजादी हजरत उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा से हुआ, उनका इंतकाल गज़वा बदर वाले दिन हुआ चूंकि आप के निकाह में आन हजरत सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की दो साहबजादियां आई इसलिए आपको जु़ल नूरेन का लक़ब मिला, जु़ल नूरेन का मतलब दो नूरों वाले_,"

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[12/10, 7:50 PM] Haqq Ka Daayi Official: *"_ फजा़इले हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु_,*

★_ उनके बाद भी आपने निकाह किए, उनसे औलाद भी हुई, हजरत नाइला बिनते अल क़ुरा से आपने सबसे आखिर में निकाह किया, शहादत के वक्त यहीं आपके साथ मौजूद थीं, शहादत के वक्त उनकी भी उंगलियां तलवार के वार से कट गई थी, यह बहुत हसीन थीं, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद इनसे निकाह की ख्वाहिश जा़हिर की गई लेकिन आपने इनकार कर दिया _,"

★_ सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम में आपका क्या मुका़म था ? इस बारे में बुखारी की एक रिवायत यह है कि, हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हम नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के ज़माने में लोगों के दरजात बयान करते थे तो हजरत अबू बकर, हजरत उमर और हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हुम को तरतीब वार दर्जा दिया करते थे _,"

★_ हजरत अल्लमा ज़ुहनी ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के फज़ाइल इन अल्फाज़ में बयान किए हैं :- हजरत उस्मान ज़ुल नूरेन थे उनसे फरिश्तों को हया आती थी, उन्होंने सारी उम्मत को इख्तिलाफात पैदा हो जाने के बाद एक कुरान पर जमा किया , उनके ओहदेदारों ने मशरिक में खुरासान और मगरिब में अक़सा तक फतेह कर डाला, वह बिल्कुल सच्चे और खरे थे, रातों को जागने वाले और दिन में रोज़ा रखने वाले थे, अल्लाह ताला के रास्ते में बे दरेग खर्च करने वाले थे, वह उन लोगों में से थे जिनके बारे में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने जन्नत की बशारत दी है_,"

★_ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने एक मौके़ पर अपनी बेटी उम्मे कुलसुम रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया - बेटी तेरा शौहर वो है जिससे अल्लाह और उसके रसूल दोनों मोहब्बत करते हैं और वह भी अल्लाह ताला और उसके रसूल से मोहब्बत करते हैं, क्या तुम्हें यह पसंद नहीं कि जब तुम जन्नत में दाखिल हों तो देखो कि वहां तुम्हारे शौहर का मकान सब लोगों के मकान से ऊंचा है _," (अल बिदाया अन निहाया)

★_ आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने आपके बारे में यह भी फरमाया - ए अल्लाह उस्मान तेरी रज़ा का तलबगार है तू उससे राज़ी हो जा _,"
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 ╨─────────────────────❥ KhilafateKhilafate _Qadam Ba Qadam Writer- Abdullah Farani )       
 ╨─────────────────────❥ *📕_ खिलाफते राशिदा _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी)- 
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*💕ʀєαd, ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd 💕,*
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      _ *✍🏻 Haqq Ka Daayi_*
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