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✭﷽✭

         *✭ KHILAFAT E RASHIDA.✭* 
             *✿_ खिलाफते राशिदा _✿*
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*┱✿_ *"_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की बैत _,*

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद 3 दिन तक खिलाफत का मंसब खाली रहा इस दौरान लोगों ने हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से दरख्वास्त की कि आप खिलाफत का मनसब क़ुबूल करें, लोगों ने सख्त इस बार किया लेकिन हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह भारी बोझ उठाने से इंकार कर दिया, आखिरकार मुहाजिरीन और अंसार का इसरार हद से बढ़ गया तब आपने मजबूर होकर यह बोझ उठा लिया, चुनांचे 21 जि़लहिज्जा 35 हिजरी के दिन मस्जिद-ए-नबवी में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के दस्ते मुबारक पर बैत हुई ।

★_ खलीफा बनने के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को सबसे पहले हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के का़तिलों का पता चलाना और उन्हें सज़ा देना था लेकिन उस वक्त मुश्किल यह थी कि शहादत के वक्त सिर्फ उनकी ज़ौजा मोहतरमा हजरत नायला मौजूद थी और वह का़तिलों को पहचानती नहीं थी।

★_ यहां यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि किताबों में कातिलों के नाम लिखे हैं लेकिन गवाही की जो कानूनी हैसियत है उससे वह मुजरिम साबित नहीं होते थे, मतलब यह कि कातिलों के खिलाफ गवाह कोई नहीं था मौजूदगी हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें सज़ा देने के मामले में माज़ूर थे, उनके खिलाफ कोई कार्यवाही ना कर सके,

★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का ख्याल था कि यह जो इतना बड़ा सान्हा हुआ है यह हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के गवर्नरों और दूसरे ओहदेदारों की बे अहतयाती से हुआ है, चुंनाचे खलीफा बनने के बाद आपने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के दौर के आमीलों को माज़ूल कर दिया, उस्मान बिन हनीफ को बसरा का गवर्नर मुकर्रर फरमाया, अम्मार बिन हस्सान को कूफे की हुकूमत सुपुर्द की, हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन का अमीर मुकर्रर फरमाया और सोहेल बिन हनीफ को शाम का गवर्नरी का पैगाम देकर रवाना किया,

★_ सोहेल बिन हनीफ तबूक के मुकाम तक पहुंचे थे कि हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के फौजियों ने उन्हें रोक लिया और मदीना वापस जाने पर मजबूर किया, यह खबर सुनकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को अंदाजा हो गया कि उनकी खिलाफत लड़ाई झगड़े से खाली नहीं है ।

★_ अब हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को लिखा - मुहाजिरीन और अन्सार ने मेरे हाथ पर बैत कर ली है, उन सब ने इत्तेफाक करके मुझे खलीफा चुन लिया है, इसलिए आप भी मुझे खलीफा मान लें _,"
इसके जवाब में हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने क़ासिद क़बीसा के ज़रिए जु़बानी पैगाम भेजा, उन्होंने आकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात की और कहा - शाम में 60 हज़ार लोग ऐसे हैं जो हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की खून आलूद कमीज़ को देखकर रोते है ।

★_ यह सुनकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - क्या वह लोग मुझसे हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के खून का बदला तलब करते हैं ? ऐ अल्लाह ! मैं उस्मान के खून से बरी हूं, उस्मान के कातिलों से अल्लाह समझे _,"
यह कहकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने क़बीसा को वापस रवाना कर दिया, हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के इस जवाब से उन्हें अंदाजा हो गया था कि वह बैत नहीं करेंगे ।

★_ दूसरी तरफ से हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा हज से फारिग होकर मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना हुई ही थीं कि रास्ते में उनके एक अज़ीज़ मिल गए, उनसे मदीना मुनव्वरा के हालात पूछे तो उन्होंने बताया की हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया गया है और हजरत अली खलीफा मुकर्रर हो गए हैं और वहां फितने का बाजार गर्म है ।

★_ आपने यह खबर सुनी तो मक्का वापस लौट गईं, लोगों ने वापसी का वजह पूछी तो फरमाया - उस्मान मज़लूम शहीद कर दिए गए, यह फितना दबता नज़र नहीं आ रहा इसलिए तुम लोग मज़लूम खलीफा का खून रायगा ना जाने दो, कातिलों से खून का हिसाब लेकर इस्लाम की इज्ज़त बचाओ,

★_ हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद मदीना मुनव्वरा में फितना फसाद के आसार देखकर हजरत तलहा और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से इजाज़त लेकर मक्का आ गए, हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनसे भी वहां के हालात पूछे, उन्होंने भी वही हालत बयान किए, इस तरह तमाम बातों की तस्दीक़ हो गई,

★_ इधर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी पूरी कोशिश के बावजूद उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के कातिलों का पता लगाने में कामयाब नहीं हो रहे थे, यही वह हालात थे जिनमें हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने भी हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के खून के बदले का मुतालबा किया, मक्का में अपने इर्द-गिर्द मौजूद लोगों के दरमियान आपने ऐलान कराया - हम उस्मान के खून का बदला लेंगे _," 

★_ उस वक्त मक्का के हाकिम अब्दुल्लाह दिन आमिर हज़मी थे, उन्होंने और उनके साथ मरवान बिन हकम और स'ईद बिन आस वगैरह ने निहायत पुरजोश अंदाज से हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा का साथ देने का ऐलान किया, यह हजरात बनू उमैया से थे, हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु भी बनू उमैया से थे, इस तरह बनू उमैया के लोग उनके गिर्द जमा होने लगे और एक बा- क़ायदा तहरीक बन गई, इन हजरात ने मक्का से बसरा जाने का प्रोग्राम बनाया ताकि वहां के लोगों को साथ मिलाया जा सके,

★_ इन हजरात की तैयारियों की खबरें हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु तक पहुंची तो आपने भी बसरा का रुख किया ताकि उन लोगों से पहले वहां पहुंचकर बैतूल माल की हिफाज़त करें और इराक़ के लोगों को अपनी वफादारी के लिए तैयार कर सकें, मदीना मुनव्वरा के लोगों को जब आपके इस इरादे की खबर हुई तो आप की खिदमत में हाज़िर हुए, उनमें हजरत उक़बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु भी मौजूद थे, यह बहुत बुलंद पाया सहाबी थे, गज़वा बदर में शरीक रह चुके थे, उन्होंने मदीना मुनव्वरा के साथियों की तरफ से अर्ज़ किया,

*"_ आपका मदीना मुनव्वरा छोड़कर जाना किसी तरह भी मुनासिब नहीं, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने में कितनी बड़ी-बड़ी जंगे पेश आईं लेकिन उन्होंने कभी मदीना मुनव्वरा से बाहर क़दम नहीं रखा, यह ठीक है कि उस वक्त हजरत खालिद, अबू उबैदा, साद बिन वका़स और अबु मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु जैसे सहाबा किराम ने शाम और ईरान को फतह कर डाला था लेकिन इस वक्त भी जांबाजो की कमी नहीं है, लिहाज़ा आप यहीं रहें _,"

★_ उनकी इस बात के जवाब में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - इराक़ इस वक्त मुसलमानों की बहुत बड़ी नव आबादी है वहां के बैतुलमाल भी माल व ज़र से पुर हैं, इसलिए मेरा वहां मौजूद रहना ज़रूरी है _,"

★_ इसके बाद आपने मदीना मुनव्वरा में आम ऐलान करा दिया कि लोग इराक़ के सफर के लिए तैयार हो जाएं, बाज़ बड़े-बड़े सहाबा के अलावा बाक़ी लोग हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ जाने के लिए तैयार हो गए, हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें लिए मदीना मुनव्वरा से निकले, अभी ज़िका़र तक पहुंचे थे कि खबर मिली कि हजरत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत तलहा और हजरत ज़ुबैर और मक्का के दूसरे लोगों के साथ बसरा पहुंच गई है, क़बीला बनु साद के अलावा वहां के तमाम लोगों ने उनके हाथ पर बैत कर ली है _,"*

★_ यह सुनकर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु वहीं रुक गए, आपने हजरत हसन और हजरत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हुम को कूफा रवाना फरमाया ताकि वहां के लोगों को हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की हिमायत पर तैयार करें, हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु ने कूफा पहुंचकर वहां की मस्जिद में लोगों के सामने तकरीर की और उन्हें हजरत अली का साथ देने के लिए कहा _,"

★_ हजर बिन अदि कुंदी कूफा के बड़े आदमी थे बहुत बा असर थे, उन्होंने हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु की ताईद की और कहा लोगों अमीरुल मोमिनीन ने खुद अपने साहबजादे को भेजकर तुम्हें दावत दी है इस दावत को कुबूल कर लो और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु का साथ देकर फितने की आग को बुझा दो, मैं भी इनके साथ हूं _,"
इस तरह हजरत हसन और हजर बिन अदि की तकरीरों से लोगों में जोश पैदा हो गया, उनके गिर्द तकरीबन 9000 मुसलमान जमा हो गए, यह उन्हें लेकर रवाना हुए और ज़िकार पहुंच कर हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की फौज में शामिल हो गए,

★_ हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अब अपनी फौज को नए सिरे से तरतीब दिया और बसरा की तरफ कूच फरमाया, उस वक्त बसरा का हाल यह था कि वहां तीन गिरोहो थे एक गैर जानिब गिरोह था यानी ना वह इधर था ना उधर, दूसरा गिरोह हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हू का तरफदार था और तीसरा हजरत आयशा सिद्दीका हजरत ज़ुबैर और हजरत तल आ रज़ियल्लाहु अन्हुम वगैरह का हामी था, 

★ खाना जंगी की तैयारियों को देखकर पहले गिरोह ने बहुत कोशिश की कि मुसलमान आपस में ना लड़े, तमाम नेक नियत लोग यही चाहते थे खुद हजरत अली रजियल्लाहू अन्हू, हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहू अन्हू, हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हू भी यही चाहते थे कि जंग ना हो और आपस के यह इख्तिलाफात दूर हो जाएं,
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 *"_ जंग ए जमल _,*

★_ जब दोनों लश्कर एक दूसरे के नज़दीक पहुंच गए तो सब नेक लोगों ने सुलह पर ज़ोर दिया और फिर सुलह की बातचीत शुरू हुई, दोनों तरफ के लोगों की यही ख्वाहिश थी कि जंग ना हो, आपस के इख्तिलाफात बातचीत के ज़रिए तैय हो जाएं, सुलह की बातचीत जारी थी और ज़बरदस्त उम्मीद हो चली थी कि तमाम मामलात तैय हो जाएंगे, सुलह हो जाएगी, कि रात हो गई और तैय पाया कि बाक़ी बातचीत सुबह हो जाएगी, चुनांचे दोनों फरीक अपने-अपने पड़ाव में चले गए, सब आराम और चैन की नींद सो गए,

★_ अब हुआ यह कि दोनों तरफ कुछ ऐसे लोग शामिल थे जो चाहते थे कि किसी की़मत पर भी सुलह ना हो क्योंकि सुलह हो जाने की सूरत में उनकी खैर नहीं थी और ज़ाहिर है यह लोग वही बलवाई थे जिन्होंने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के घर को 40 दिन तक घैरे रखा था और उन्हीं में से कुछ ने हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को शहीद किया था, अब ज़ाहिर है सुलह होने की सूरत में वे पकड़े जाते क्योंकि इस तरह सुकून के साथ तहकी़का़त करने की मोहलत मिल जाती और उनकी निशानदेही हो जाती फिर ज़ाहिर है उन्हें कत्ल के जुर्म में कत्ल कर दिया जाता, वह भला यह कैसे पसंद कर सकते थे ?

★_ अब्दुल्लाह बिन सबा के लोग भी दोनों तरफ मौजूद थे, वे तो थे ही साजिशी लोग, मुसलमानों को आपस में लड़ाना ही उनका मक़सद था, ऐसे लोगों ने रात के वक्त अचानक हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हु की फौज पर हमला कर दिया, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा और उनके साथी यह समझे कि हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की फौज ने उन्हें धोखा दिया है, बस इस तरह दोनों फरीको में जंग शुरू हो गई,

★_ हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा अपने ऊंट पर सवार हुई ताकि फौज को रोक सकें, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने भी अपनी फौज को रोकने के लिए पूरा ज़ोर लगाया लेकिन जंग तो छिड़ गई थी फिर जल्द ना रुक सकी, हजरत आयशा रजियल्लाहु अन्हा के साथियों ने उन्हें ऊंट पर सवार देखकर खयाल किया कि आप जंग पर आमादा हैं लिहाज़ा और ज़्यादा जोश व खरोश से लड़ने लगे, उनकी फौज में मोहम्मद बिन तलहा सवारों के अफसर थे, अब्दुल्लाह बिन जु़बेर पैदल फौज के अफसर थे और मजमूई तौर पर पूरी फौज की क़यादत हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु कर रहे थे ,

★_ जंग के दौरान हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया, हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाकर फरमाया - ऐ अबु अब्दुल्लाह ! तुम्हें वह दिन याद है जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने तुमसे पूछा था - क्या तुम अली को दोस्त रखते हो ? तो तुमने अर्ज़ किया था, ऐ अल्लाह के रसूल ! हां, मैं अली को दोस्त रखता हूं, याद करो उस वक्त तुमसे हजूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया था - एक दिन तुम उससे नाहक़ लड़ोगे _," ( मुस्तद्रक हाकिम - 3/ 1366) 

★_ हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फौरन कहां -हां मुझे याद आ गया , यह कहकर हजरत ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु लड़ाई से अलग हो गए, उन्होंने अपने बेटे हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर से फरमाया - ऐ प्यारे बेटे ! अली ने मुझे ऐसी बात याद दिला दी है कि जंग का तमाम जोश ख़तम हो गया है, बेशक हम हक़ पर नहीं हैं, लिहाजा तुम भी जंग से बाज़ आ जाओ और मेरे साथ चलो _," हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया - मैं तो मैदान-ए-जंग से नहीं हटूंगा _," 

★_ इस पर वो अकेले ही मैदान-ए-जंग से निकल आए और बसरा की तरफ चल खड़े हुए, हजरत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत जुबेर रजियल्लाहु अन्हु को जाते देखा तो उनका इरादा भी बदल गया और वह भी मैदान-ए-जंग से निकल आए, ऐसे में उनके पांव में एक तीर आकर लगा, जख्मी हालत ही में यह वहां से निकल आए, ताहम इसी जख्म से आपकी शहादत हुई, 

★_ उस मौके पर मैदान-ए-जंग में अब्दुल्ला बिन सबा के साथियों ने हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा की शान में गुस्ताखी करने की कई बार कोशिश की लेकिन आपके साथ जो जांनिसार थे वह उन्हें मुंहतोड़ जवाब देते रहे, वह लोग आपको गिरफ्तार करना चाहते थे लेकिन हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा के जांनिसार उनके लिए रुकावट बन गए और उनकी एक न चलने दी, उनकी लाशों पर लाशें गिर रही थी लेकिन वह आप की हिफाज़त से एक क़दम पीछे नहीं हट रहे थे, उनकी बहादुरी ने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को भी हैरत जदा कर दिया,

 ★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु इस बात से परेशान थे कि उनकी जांनिसारी की वजह से जंग तूल पकड़ती जा रही है और फरीक़ीन का ज्यादा नुकसान हो रहा है, यही हालत रही तो ना जाने नुकसान कहां तक पहुंचे, हालत यह थी कि एक गिरता था तो हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा के ऊंट की नकेल दूसरा पकड़ लेता था, हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबेर ने ऊंट की नकेल पकड़ी वह जख्मी हो गए तो एक और ने पकड़ ली वह भी जख्मी हो गए तो एक और ने पकड़ लिया, इस तरह एक के बाद एक दीगर 70 आदमियों ने अपने आप को कुर्बान कर दिया, ( तारीख तिबरी 6/ 318 मुस्तद्रक हाकिम -3/ 366 )

★_ यह हालत देखकर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने सोचा, जब तक ऊंट को बैठाया नहीं जाएगा उस वक्त तक खूनरेजी़ नहीं रुकेगी इसलिए आप के इशारे पर एक शख्स ने ऊंट पर वार किया, ऊंट जख्मी होकर बैठ गया, ऊंट के बैठते ही हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा की फौज हिम्मत हार गई, जंग का फैसला हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के हक़ में हो गया, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने उस वक्त ऐलान फरमाया :- भागने वालों का पीछा ना किया जाए, जख्मियों पर घोड़े ना दौड़ाएं जाएं और माले गनीमत ना लूटा जाए, जो हथियार डाल दें उन्हें अमन है _,"

★_ इस ऐलान के बाद आप हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा के पास आए और उनकी मिजाज़ पुरसी की, उन्हें चंद दिन बसरा में आराम व आराइश से ठहराया, फिर उनके भाई मोहम्मद बिन अबी बकर के साथ मदीना मुनव्वरा भेज दिया, बसरा की 40 मोअज़्ज़िज औरतें उनके साथ गई, एक मंजिल तक अपने साहबज़ादों को साथ भेजा, हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा ने रुखसत होते वक्त फरमाया - मेरे बच्चों ! हमारी आपस की कशमकश सिर्फ गलतफहमी का नतीजा थी वरना मुझमें और अली में पहले कोई झगड़ा नहीं था _,"
हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने इस बात की ताईद की और फरमाया - यें आन हजरत सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की हरमे मोहतरम हैं और हमारी मां है, इनकी ताज़ीम और तौकी़र ज़रूरी है _,"

★_ इस तरह रज्जब की 1 तारीख 36 हिजरी को हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुई, चूंकि हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हा इस जंग में ऊंट पर सवार थी इसलिए यह जंग " जंगे जमल" कहलाई ।
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 *"_ जंग ए सिफ़्फ़ीन _,*

★_ बसरा में चंद रोज़ क़याम करने के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कूफा की तरफ कूच किया, 12 रज्जब 36 हिजरी को शहर में दाखिल हुए, कूफा के लोगों ने वहां वाक़ई एक महल में आप की मेहमान नवाजी़ का सामान कर रखा था लेकिन आप आखिर जाहिद थे उसमें ठहरने से इंकार कर दिया और इरशाद फरमाया :- हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने आलीशान महल्लात को हिकारत की नज़र से देखा है मुझे भी इनकी ज़रूरत नहीं, मैदान मेरे लिए काफी है _,"

★_ चुनांचे मैदान में क़याम फरमाया, मस्जिद ए आज़म में 2 रकात नमाज अदा फरमाई, जुमे के रोज़ खुतबा दिया, उसमें लोगों को परहेजगारी की हिदायत फरमाई, इस तरह जंगे जमल के बाद हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने मदीना मुनव्वरा छोड़कर कूफा में मुस्तकिल रिहाइश अख्तियार फरमाई और दारुल हुकूमत हिजाज़ से ईराक़ में मुन्तक़िल हो गया ,

★_ तारीख की किताबों में इसकी बहुत सी वुजुहात आई हैं, एक वजह यह बयान की गई है कि हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत से हरम ए नबवी की बहुत तोहीन हुई थी शायद यही वजह थी कि हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने सियासी मरकज़ को तब्दील कर दिया, दूसरी वजह यह बयान की जाती है उस वक्त कूफा में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के हामी और तरफदार बड़ी तादाद में जमा दे ,

★_ कूफा में आने के बाद आपने मुल्क के नज़म व नुक़्स की तरफ तवज्जो दी, हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को बसरा का गवर्नर मुकर्रर किया, इसी तरह दूसरे इलाकों पर अपने अमीर मुकर्रर फरमाए, जजी़रा मोसूल पर अस्तर बखी को मुकर्रर किया, यह इलाका़ शाम के साथ था, अस्तर ने आगे बढ़कर शाम के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया लेकिन हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के हामिल ज़हाक़ बिन क़ैस ने उसका मुकाबला किया और वह इलाके उससे वापस ले लिए, अस्तर फिर मौसूल चला गया, ताहम उसने शामी फौजों से छेड़छाड़ जारी रखी,

 ★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु जानते थे कि हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु आपकी खिलाफत को तस्लीम नहीं करेंगे, ताहम आपने हुज्जत पूरी करने की खातिर उन्हें एक बार फिर सुलह की दावत दी, इस गर्ज़ के लिए आपने ज़रीर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु को कासिद बनाकर भेजा, हजरत ज़रीर रज़ियल्लाहु अन्हु जिस वक्त हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में पहुंचे वहां उस वक्त शाम के बड़े-बड़े अमीर जमा थे, हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने पहले हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु का ख़त पढ़ा फिर तमाम हाजरीन को पढ़कर सुनाया ।

★_ खत का मजमून यह था :- तुम और तुम्हारे जे़रे असर जिस क़दर मुसलमान हैं उन सब पर मेरी बैत लाज़िम है क्योंकि मुहाजरीन और अंसार ने आम इत्तेफाक से मुझे खलीफा चुना है, हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु को भी उन्होंने खलीफा चुना था, इसलिए जो शख्स इस बैत से इन्कार करेगा उससे जबरन बैत ली जाएगी, पस तुम मुहाजिरीन और अंसार की पैरवी करो यही सबसे बेहतर तरीका़ है वरना जंग के लिए तैयार हो जाओ, तुमने उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत की आड़ में बैत से इन्कार किया है अगर तुम उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के का़तिलों से इंतकाम लेने के लिए पुरजोश हो तो मेरी इता'त कुबूल करो, उसके बाद बा जा़बता इस मुकदमे को पेश करो, मैं अल्लाह ताला की किताब और सुन्नते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के मुताबिक फैसला करूंगा _,"

★_ हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस खत के जवाब में लिखा :- आप हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के का़तिलों को हमारे हवाले कर दें, इस सूरत में मैं और तमाम अहले शाम खुशी से आपकी बैत कर लेंगे, फज़ल व कमाल के लिहाज़ से आप ही खिलाफत के हक़दार हैं _,"

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने इस खत का जवाब दूसरे रोज़ देने का वादा फरमाया, हजरत अमीरे मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु का खत अबु मुस्लिम लाए थे, वह दूसरी सुबह हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुए, वहां उस वक्त 10 हज़ार मुसलह आदमी मौजूद थे, अबु मुस्लिम को देखते ही सब एक आवाज़ हो कर बोले :- हम उस्मान के का़तिल हैं _,"
हजरत अबू मुस्लिम को हैरत हुई, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने इस मौक़े पर फरमाया :- आप इसी से अंदाजा लगा लें कि हालात क्या हैं _," 
इसके बाद आपने हजरत अमीर मुआविया के नाम खत लिखवाया, उस खत में लिखा था :- हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के क़त्ल में मेरी कोई शिरकत नहीं थी लिहाज़ा आप बैत कर लें, उसके बाद हम का़तिलों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे _,"

★_ सुलह की तमाम कोशिशें नाकाम हो गई, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने आखिरकार शाम के खिलाफ लश्कर कशी का फैसला किया, आप तकरीबन 80 हज़ार के लश्कर के साथ शाम की तरफ रवाना हुए, यहां तक कि आप दरिया ए फरात को अबूर करके शाम की सरहद तक पहुंचे,

★_उस मुकाम पर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ से अबू दाउर सुलमी मुकर्रर थे, उन्होंने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के हर अव्वल दस्ते को रोका, दोनों फौजों में मुक़ाबला हुआ, इतने में हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु का मज़ीद लश्कर वहां पहुंच गया, अबुल दाउर ने महसूस कर लिया कि उनके पास इतनी फौज़ नहीं कि मुक़ाबला जारी रख सकें, चुनांचे रात की तारीकी में अपनी फौज को लिए पीछे हट गए और हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को इत्तेला दी, इत्तेला मिलने पर हजरत अमीरे मुआविया अपनी फौज लेकर रवाना हो गए और सिफ़्फ़ीन के मुका़म पर पहुंचकर डेरा डाल दिया और जंग की तैयारी शुरू कर दी,

★_ अब उस मुका़म पर भी वही कैफियत तारी हो गई, दोनों फरीक़ चाहते थे कि जंग ना हो लिहाज़ा सुलह की कोशिश शुरू हुई, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने एक बार फिर सुलह के लिए एक वफद हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में भेजा, दोनों तरफ सहाबा किराम मौजूद थे उनमें हाफ़िज़ ए कुरान और आलिम भी थे, उन सब ने पूरी कोशिश की कि सुलह हो जाए लेकिन यहां फिर वही मसला था, सबाई गिरोह कब सुलह पसंद करता था ? उसकी पूरी कोशिश थी कि जंग ज़रूर हो,

★_ यह कोशिश 3 माह तक जारी रही, इन तीन माह में उन शर पसंदो ने 50 मर्तबा जंग छेड़ने की कोशिश की लेकिन जो बुजुर्ग सहाबा थे उलमा व फुजला थे वह हर बार दरमियान में पढ़कर जंग को टालने की पूरी कोशिश करते रहे और फिर क्यों कोशिश ना करते ? दोनों तरफ मुसलमान थे, उनके अंदर दोनों तरफ ऐसा तबका भी मौजूद था जो सुलह की कोशिश को नाकाम बनाने पर तुला हुआ था उनकी साजिशें मुसलसल जारी थी,
[12/22, 6:12 PM] Haqq Ka Daayi Official: ★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु और आपके मुखलिसीन साथी हजरत अमीर मुआविया रजियल्लाहू अन्हू और उनके मुखलिसीन साथियों से यह कहते थे, तुम हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से जंग करना चाहते हो, क्या वह खिलाफत के तुमसे ज्यादा हक़दार नहीं है? जवाब में हजरत अमीर मुआविया की तरफ से कहा जाता :- हम हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के खूने नाहक़ के लिए मैदान में आए हैं यानी कातिलों को हमारे हवाले कर दो तो यह जंग अभी टल सकती है_",

★_ गर्ज़ इस तरह सुलह की कोशिश नाकाम बना दी गई, रज्जब से लेकर मोहर्रम 37 हिजरी के आखिर तक दोनों लश्कर इस तरह पड़े रहे, फिर जोंही सफर का महीना शुरू हुआ जंग फिर छिड़ गई और इस क़दर खून रेज़ लड़ाईया हुई कि हजारों अफराद दोनों तरफ के शहीद हो गए, इसके बावजूद इस खाना जंगी का कोई फैसला ना हो सका,

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु इन हालात से बहुत तंग आ चुके थे, थक कर उन्होंने फैसलाकुन जंग का इरादा कर लिया, अपनी फौज के सामने एक तकरीर की, इस तरह उनकी फौज में जोश पैदा हो गया, अब दोनों फौजों में जबरदस्त जंग शुरू हो गई, जंग का सिलसिला चंद रोज़ तक जारी रहा यहां तक कि जुमे के रोज़ बहुत ज़बरदस्त जंग हुई, सुबह से जंग शुरू हुई तो रात तक ना रुक सकी, दूसरी सुबह तक जारी रही,

★_ ज़मीन इस जंग से कांप रही थी शायद इसलिए कि दोनों तरफ से मुसलमान शहीद हो रहे थे, दुश्मनों की लगाई आग में मुसलमान कट कट कर गिर रहे थे और शर पसंद इस आग के लगाने पर बगले बजा रहे थे, दिल ही दिल में खुश हो रहे थे आखिर में मुसलमानों को लड़ाने में कामयाब हो गए, दूसरी सुबह शहीद होने वालों की लाशें और ज़ख्मियों को उठाने के लिए जंग रोक दी गई,

 ★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने एक बार फिर अपनी फौज के सामने पुरजोश तक़रीर की, दूसरी तरफ अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा - अगर मुसलमान आपस में ऐसी लड़ाई लड़ते रहे तो सारा अरब वीरान हो जाएगा फिर हम रोमियो के रहमों करम पर होंगे क्योंकि हमारी ताक़त खत्म हो चुकी होगी _,"
हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के बड़े-बड़े साथियों ने भी अमरू बिन आस के ख्यालात की ताईद की, इस पर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को एक खत लिखा, खत के अल्फाज़ यह थे :-

*"_ अगर हमें और आपको मालूम होता है कि यह जंग इस क़दर तूल पकड़ जाएगी तो शायद हम दोनों इसे पसंद ना करते, बहरहाल अब हमे इस तबाहकुन जंग को रोक देना चाहिए हम लोग बनी अब्दे मुनाफ हैं इसलिए सुलह ऐसी हो कि इज्ज़त व आबरू बरक़रार रहे _,"

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने इसके जवाब में सुलह करने से इंकार कर दिया और दूसरी सुबह अपनी फौज के साथ मैदान में आ गए लेकिन दूसरी तरफ जंग बंद कर देने का फैसला किया जा चुका था, उस वक्त हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने तदबीर की, उन्होंने पांच साथियों को नेज़ों पर क़ुरान उठाकर आगे चलने का हुक्म दिया, यह 5 साथी नेजो़ पर क़ुरान उठाएं जब सामने आए तो और जितने लोगों के पास कु़रान थे उन सब ने भी अपने अपने नेज़ो पर क़ुरान को उठा लिया,

★_ अगले चंद अफराद ने ऐलान करने के अंदाज में कहा - अल्लाह ताला हम सब को रोमियो और ईरानियों के हाथों से बचाए, अगर जंग इसी तरह जारी रही तो ज़रूर हम फना हो जाएंगे, यह अल्लाह ताला की किताब है यह हमारे और तुम्हारे दरमियान फैसला करेगी यह हमारे और तुम्हारे दरमियान हुक्म है ( यानी यह फैसला करेगी )

★_ अब हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की फौज में भी यह आवाज़ बुलंद हुई कि, "_ ठीक है! कुरान से फैसला होना चाहिए और अगर इस फैसले को ना माना गया तो फौज से अलग हो जाएंगे _,"
इस मौके पर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के एक वफादार अश'अश बिन क़ैस ने कहा - अमीरुल मोमिनीन ! मैं जिस तरह कल आपका जांनिसार था उसी तरह आज भी हूं लेकिन मेरी भी यही राय है कि कु़राने हकीम का हुक्म मान लेना चाहिए _,"

★_ आखिर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने जंग बंद करने का फैसला कर लिया, इस तरह जंग रुक गई और दोनों फरीको़ में बातचीत शुरू हुई, यह बातचीत खुतूत के ज़रिए हुई, फिर दोनों तरफ के आलिम फाजि़ल लोग जमा हुए, आखिर तैय पाया कि खिलाफत का मसला हल करने के लिए दो हकम मुकर्रर कर दिए जाएं वह जो फैसला करें उस पर अमल किया जाए, शामियों की तरफ से हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम तज़वीज किया गया, हजरत अली की तरफ से अश'अश बिन क़ैस ने हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम लिया,

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम तज़वीज किया, इस पर कुछ लोगों ने कहा - हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु और आप तो एक ही हैं, हकम तो गैर जानिबदार होना चाहिए, इस पर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने असतर का नाम लिया, इस पर एतराज़ किया गया कि जंग की आग तो असतर ही ने भड़काई है यह तो आखिरी वक्त तक जंग जारी रखने के हक़ में था, इसे किस तरह हकम मुकर्रर किया जा सकता है _,"

★_ इस पर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - ठीक है तुम जिसे चाहो हकम मुकर्रर कर दो, मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा _,"
हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु को बुलाया गया, वह इस जंग से बेजार होकर शाम के एक गांव में चले गए थे, इस तरह दोनों तरफ से हकम एक जगह जमा हुए और एक मुआहिदा लिखा गया उस मुआहिदे के अल्फाज़ यह थे :-

"_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु और इन दोनों के तरफदार आपस में रज़ामंदी से यह तय करते हैं कि दोनों हकम हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हू और हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु कुरान व सुन्नत के मुताबिक जो फैसला करेंगे उसको तस्लीम करते हैं, उन्हें कोई पशोपेश नहीं होगा इसलिए दोनों फरीक़ के लिए ज़रूरी है कि किसी हालत में इस फैसले से इंकार ना करें अगर फैसला कुरान और सुन्नत के खिलाफ होगा तो उसको तस्लीम नहीं किया जाएगा, इस सूरत में फरीक़ीन को अख्त्यार होगा कि फिर जंग शुरू कर दें,

 ★_ यह मुआहिदा 23 सफर को लिखा गया, अश'अश बिन क़ैस को इस काम पर मामूर किया गया कि वह तमाम कबीलों के सरदारों से इस पर दस्तखत करवाएं, अश'अश बिन क़ैश ने यह काम शुरू किया, वह सरदारों के यहां जाकर मुआहिदा सुना सुना कर दस्तखत कराने लगे,

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के साथियों में बहुत से लोगों ने इस मुआहिदे को नापसंद किया और उन्होंने दस्तखत से इनकार किया, यहां तक की यह लोग हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाजिर हुए और आपसे फरमाया हमें यह मुआहिदा मंजूर नहीं, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने उनकी बात नहीं सुनी, इस पर वह लोग नाराज़ हो गए और इस सारे मामले से अलग हो गए, इस तरह उनका एक अलग गिरोह बन गया, यह फिरका़ खारजी कहलाया, इसका ज़िक्र आगे आएगा।

★_ दोनों हकमों के इजलास के लिए मुका़म दोमता अलजुंदुल मुकर्रर किया गया, यह मुका़म इराक़ और शाम के दरमियान वाक़े है, दोनों हकमों के साथ 400 - 400 आदमी थे, यानी 400 आदमी हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने अपने हकम हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ रवाना फरमाए और 400 आदमी हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने हकम हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ रवाना फरमाए, हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ जो 400 आदमी रवाना किए गए उनके अफसर शरीह बिन हानी थे,

★_ कुछ बुजुर्ग सहाबा ऐसे थे जो इस जंग से बिल्कुल अलग रहे थे, अब जबकि उन्होंने सुना कि दोनों तरफ से सुलह की कोशिश हो रही है और इस गर्ज़ के लिए हकम मुकर्रर किए गए हैं तो वह भी इस मौक़े पर दोमता अलजुंदुल पहुंच गए, इन सहाबा किराम में हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर, हजरत साद बिन अबी वका़स और हजरत मुगीरा बिन शौबा रज़ियल्लाहु अन्हुम है ,

★_ इनमें से हजरत मुगीरा बिन शौबा रज़ियल्लाहु अन्हु इस कि़स्म के मामलात में बहुत सूझबूझ रखते थे उन्होंने दोनों हकमो से अलग-अलग मुलाक़ात की, इस तरह उनके खयालात मालूम करके अंदाजा लगाया कि इस तरह भी कोई खुशगवार नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है, उन्होंने अपना ख्याल दूसरे सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को भी बता दिया,

★_ इधर दोनों हकम एक जगह मिल बैठे उनकी आपस में बातचीत शुरू हो गई, काफी देर की बातचीत के बाद आखिर दोनों ने फैसला किया कि हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु और हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को माज़ूल कर दिया जाए और मुसलमान नए सिरे से अपना खलीफा मुंतखब करें, दोनों यह फैसला कर के मुसलमानों के दरमियान वापस आए, मस्जिद में सबको जमा किया गया,

★_ हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा - आप मिंबर पर आकर फैसला सुना दें, इस पर हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा - आप फज़ल व कमाल में हमारे बुजुर्ग हैं लिहाज़ा आपके मुकाबले मै पहल कैसे कर सकता हूं, पहले आप मिंबर पर आएं और फैसला सुनाएं_,"

★_ चुनांचे हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु मिंबर पर आए और लोगों को मुखातिब करके फरमाया - साहिबों ! हम हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु और हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु दोनों को माज़ूल करते हैं, मजलिसे शूरा फिर से खलीफा का इंतखाब करें _,"

★_ अब हजरत अमरू बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु की बारी आई, हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु ने पहले अल्लाह ताला की हम्दो सना की, फिर फरमाया - अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो बात कही वह तुमने सुन ली है उन्होंने अपने अमीर को माज़ूल कर दिया है और मैंने भी उन्हें माज़ूल कर दिया है, मैं अपना अमीर मुआविया को क़ायम रखता हूं, बिला शुबहा हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के मददगार और उनके खून के बदले का मुतालबा करने वाले हैं, वह सब लोगों से ज़्यादा उनकी जगह पर खड़े होने के हक़दार हैं _,"

★_ दरअसल हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने साफ तौर पर महसूस कर लिया था कि अगर इस वक्त लोगों को बगैर अमीर के छोड़ दिया गया तो इससे भी ज़्यादा तवील इख्तिलाफात बढ़ जाएंगे, बस आपने इस मसलिहत को देखकर हजरत अमीर मुआविया को क़ायम रखा,

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने इस फैसले को नापसंद फरमाया और दोबारा फौज को तैयार करने लगे थे की खारजियों की बगावत के बारे में इल्म हुआ,
खारजी वह लोग थे जिन्होंने हकम मुकर्रर करने को पसंद नहीं किया था और जब हजरत अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को हकम मुकर्रर किया गया तो ये हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के लश्कर से अलग होकर वहां से चले गए, इनकी तादाद 12 हजार के क़रीब बताई जाती है, इनका कहना था कि दीन के मामलात में किसी को भी हकम मुकर्रर नहीं किया जा सकता और ऐसा करना कुफ्र है,

★_ अब इन्होंने दूसरे लोगों से पूंछना शुरू किया कि वह हकम मुकर्रर करने को कुफ्र मानते हैं या नहीं, जिसने इनकी बात से इत्तेफाक किया उसे इन्होंने जिंदा छोड़ दिया और जिसने इख्तिलाफ किया उसे क़त्ल कराया, इस तरह इन लोगों ने कुछ लोगों को क़त्ल कर दिया, जब यह खबरें हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु तक पहुंची तो आपने हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के बजाय इन लोगों से जंग करने का फैसला फरमाया,
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 *"_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की शहादत _,*

★_ इस जंग से फारिग होने के बाद हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने शाम पर चढ़ाई करने का इरादा फरमाया लेकिन उस मौके पर अश'अश बिन क़ैस ने कहा - अमीरुल मोमिनीन! हमारे तरकस खाली हो गए तलवारों की धारें मुड़ गई, नैज़ो के फल खराब हो गए, इसलिए जंग से पहले हमें तैयारी करने की मोहलत दें _," 
आपने उन्हें मोहलत दी और नखलिया के मुका़म पर पड़ाव किया ।

★_ आपके हमराही जंग से तंग आ चुके थे लिहाज़ा रात की तारीकी में खिसकने लगे यहां तक कि आपके इर्द-गिर्द सिर्फ 1000 अफराद रह गए, यह हालत देखकर आपने शाम पर चढ़ाई का इरादा तर्क कर दिया और वापस कूफा चले गए ।

★_ उसके बाद आपकी जिंदगी के दिन बगावतों के खिलाफ कोशिशों में बसर होते रहे, दूसरी तरफ हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी ताकत बढ़ाने में कामयाब होते चले गए यहां तक कि हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की शहादत का वाक़िआ पेश आ गया,

★_ इसकी तफसील यह है कि नहरवान की जंग के बाद चंद खारजी हज के मौके पर जमा हुए, उन्होंने उस वक्त के हालात पर बातचीत शुरू की, काफी देर की बहस के बाद उन्होंने यह नतीजा निकाला कि जब तक तीन आदमी दुनिया में मौजूद हैं इस्लामी दुनिया को खाना जंगी से निजात नहीं मिल सकेगी और वह तीन हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु और हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु हैं, इस पर उनमें से तीन आदमी इन तीनों हजरात को क़त्ल करने पर आमादा हो गए ।

★_ अब्दुर रहमान बिन मुलजिम ने कहा कि मैं हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को क़त्ल का जिम्मा लेता हूं, नज़ाल नामी शख्स ने कहा कि मैं हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को क़त्ल करूंगा, तीसरा शख्स अब्दुल्लाह ने हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु को क़त्ल करने की ज़िम्मेदारी ली, तीनों अपनी-अपनी मुहिम पर रवाना हो गए ।

★_ रमजान 40 हिजरी में तीनों ने एक ही रोज़ सुबह के वक्त इन तीनों हज़रात पर हमला करने का प्रोग्राम तरतीब दिया, हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु इत्तेफाक़ी तौर पर बच गए, अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु पर वार औछा पड़ा, हजरत अमरु बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु उस रोज़ इमामत के लिए आए ही नहीं, उनकी जगह नमाज़ पढ़ाने के लिए कोई और आया और उनकी जगह मारा गया ।

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की ज़िंदगी के दिन पूरे हो चुके थे, आप मस्जिद में तशरीफ लाए, इब्ने मुलजिम पहले ही आकर मस्जिद में लेट गया था, आपने उठा दिया, जब आपने नमाज़ शुरु की तो उसी हालत में उस बदबख्त और संगदिल शख्स ने तलवार का वार किया, वार सर पर लगा, इब्ने मुलजिम को लोगों ने भागने की मोहलत ना दी और गिरफ्तार कर लिया, हजरत अली शदीद जख्मी हुए, आपने फोरन महसूस कर लिया कि इस जख्म से बच नहीं सकेंगे, चुनांचे हजरत हसन और हजरत हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुम को बुलाकर नसीहतें फरमाने लगे ।

★_ उस वक्त जुंदुब बिन अब्दुल्लाह ने पूछा - अमीरुल मोमिनीन ! आप के बाद हम हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के पे हाथ पर बैत कर लें ? 
आपने जवाब में इरशाद फरमाया - इसके बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता _," इसके बाद आपने अपने क़ातिल के बारे में फरमाया - उससे मामूली अंदाज़ से बदला लिया जाए _,"

★_ इब्ने मुलजिम की तलवार ज़हर में बुझी हुई थी, ज़हर ने अपना काम किया, आप उस ज़ख्म से बच ना सके और 20 रमजान 40 हिजरी जुमा की रात को अपने अल्लाह से जा मिले, इल्म और फ़ज़ल का सूरज गुरुब हो गया, इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजीऊन _,"
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*"_हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के फज़ाइल_,*

★_ हजरत अली रजि अल्लाह हू अल्लाह जिस वक्त खलीफा बने उस वक्त हजरत उस्मान रजि अल्लाह वालों की शहादत की वजह से मदीना मुनव्वरा के अलावा भी पूरा आलम ए इस्लाम परेशान था हजरत उस्मान रजि अल्लाह वालों की वफात कोई मामूली है या नहीं था हर तरफ जान फैल गया था यही वजह है कि आपका सारा दौरान उसके खिलाफ असर हो गया 

अनुकूल हालात के बावजूद हजरत अली रजि अल्लाह वालों ने इस्लाह आपका काम जारी रखा आप अपने आदमी की निगरानी करते थे लोगों के साथ शपथ से पेश आते थे वेतनमान के दरवाजे गरीबों के लिए खुले थे उसमें जो रकम आती है आपलोगों को मां थी आप ज़रूरतमंद में तक़सीम फरमा देते थे 

आप खुद बहुत तजुर्बा कार्ड जंग आजमाते जंगली मॉम दाद को अच्छी तरह समझते थे चलाते खलीफा बनने के बाद आपने फौजी छावनी या कसरत से कायम कि ईरान की तरफ शोर और बगावत की वजह से आपने इस तरह और मैं अकेला हसन ज्यादा बनवाया और तो और बच्चों की हिफाजत हो सके जंगली टांगे रात के सिलसिले में दरियाबाद पर पुल बनवाया यमन में इस्लाम की रोशनी आप ही की कोशिश से ली थी सोने पर अपना संतोष की तबलीग और निषाद की खिदमत आप ही के दिन में हो 

आपके खलीफा बनने के बाद विधान और आर्मीनिया के नए-नए मुसलमान मौत हो गई तो आपने वह भी सर को भी फरमाए उनमें से अक्षर में तो बाकी आप मुसलमान हो गए इसी तरह चार दिनों का किला फतह किया,

*★_ सबाई गिरोह में से कुछ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को खुदा कहने लगे थे, आपने उन्हें इबरत नाक सजाऐ दी उनके घरों को ढ़हा दिया,

★_ आपको बचपन में से आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की सोहबत नसीब हो गई थी लिहाज़ा आपको आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम से तालीम व तरबियत का मौक़ा मिला था और यह सिलसिला आखिर तक जारी रहा, आपको दिन रात में दो मर्तबा आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाज़िर रहने का मौक़ा मिलता था, सफर में भी अक्सर आप साथ होते थे, इस तरह आपको सफर से मुताल्लिक शर'ई अहकामात से वाकि़फ होने का मौक़ा मिलता रहता था,

★_ आप लिखना पढ़ना जानते थे, चुनांचे आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के तहरीरी काम आप ही करते थे, कातिबाने वही मैं आपका नाम भी शामिल है, आपने पूरा कुरान आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की ज़िंदगी ही में हिफ्ज़ कर लिया था, आप कुरान ए करीम की एक एक आयत के मा'ने और शाने नुज़ूल से वाकि़फ थे, चुनांचे आपका शुमार क़ुरआने करीम के मुफस्सिरों में होता था, सहाबा किराम में आपके अलावा हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु भी कुरान ए करीम के मुफस्सिर थे,

★_ बाज़ लोगों का ख्याल था कि आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने कुरान ए करीम के अलावा भी कुछ खास उलूम आपको बताए हैं, चुनांचे आपके शागिर्दों ने आपसे पूछा- क्या कुरान के अलावा कुछ और उलूम भी आपके पास है ? आपने जवाब में फरमाया - क़सम है उस जा़त की जो दाने को फ़ाड़ कर दरख़्त उगाता है और जो जान को जिस्म के अंदर पैदा कर देता है, कुरान के सिवा मेरे पास कुछ नहीं लेकिन कुरान के समझने की ताकत अल्लाह ताला जिसे चाहे अता करें, इसके अलावा चंद अहादीस मेरे पास हैं।

★_ आपने बचपन से लेकर वफात ए नबवी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम तक तक़रीबन 30 साल आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में बसर किए, इसलिए इस्लाम के अहकाम और फराइज़ के आप बहुत बड़े आलिम थे, इस तरह अहादीस की रिवायत का ज़माना आपको सबसे ज़्यादा मिला, खुलफा ए राशिदीन में आपकी रिवायत की तादाद सबसे ज़्यादा है, आप 886 हदीस के रावी हैं, फिक़हा और इजतिहाद में आपको कमाल हासिल था, बड़े-बड़े सहाबा यहां तक की हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु और हजरत आयशा सिद्दीका रजियल्लाहु अन्हुमा को भी कभी-कभी हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से मसाईल मालूम करने की ज़रूरत पेश आती, मुश्किल से मुश्किल और पेचीदा से पेचीदा मसाइल आप निहायत आसानी से हल फरमा देते थे,

★_ फिक़ही मसाइल में हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को जो कमाल हासिल था उसकी वजह यह थी कि आप जो बात नहीं जानते थे वह आन हजरत सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम से पूछ लिया करते थे, हनफी फिक़हा की बुनियाद हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के ही फैसलों पर मुबनी है, हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाया करते थे - हम में मुकदमात के फैसलों के लिए सबसे मौजू़ अली हैं और सबसे बड़े का़री उबई बिन का'ब है ,

★_ हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं - हम (सहाबा ) कहा करते थे कि मदीना वालों में सबसे ज़्यादा सही फैसला करने वाले अली हैं, आपके पास बहुत ही अजीब नोइयत के मुकदमात आते थे, जिनके बारे में दूसरे फैसला नहीं कर पाते थे लेकिन आप बहुत आसानी से उनका फैसला फरमा देते थे, तारीख की किताबों में ऐसे बहुत से मुकदमात दर्ज हैं, उनको पढ़कर हैरत होती है,

★_ आप बहुत बुलंद पाया खतीब थे, तकरीर और खिताबत में आपको मलका हासिल था, आप की तकरीर बहुत बा असर होती थी, आपने कमाल दर्जे का ज़ुहद पाया जाता था, हक़ यह है कि आप की जा़त ज़ुहद का नमूना थी, एक मर्तबा शदीद भूख की हालत में सुबह से शाम तक मजदूरी की, इस तरह मजदूरी में जो खजूरें मिली वह भी एक सवाल करने वाले को दे दीं, घर में कोई खादिम या खादिमा नहीं थी, घर का सारा काम हजरत फातिमा अज़ ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा करती थीं,

★_ आप निहायत इबादत गुज़ार थे, सादगी और इंकसारी भी आप में इंतेहा दर्जे की थी, लोग मसाइल पूछने आते तो आप कभी ऊंट चरा रहे होते कभी ज़मीन खोद रहे होते, मिज़ाज में सादगी इतनी थी कि ज़मीन पर ही बिला तकल्लुफ सो जाते थे, एक मर्तबा आपको मिट्टी पर सोता देख कर आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने फरमाया - ऐ अबु तुराब अब उठ बैठ,

★_अबु तुराब का मतलब है मिट्टी वाले, लिहाज़ा यही आपकी कुन्नियत मशहूर हो गई और अबु तुराब कहलाना आपको बहुत पसंद था, कोई आपको इस नाम से पुकारता तो बहुत खुश होते थे, खिलाफत के दिनों में भी यह सादगी बरकरार रही,

★_ शुजा'त और बहादुरी तो आप की खास खूबी थी, इसमें कोई आपके हम प्याल नहीं था, आप तमाम गज़वात में शरीक रहे और सब ही में शुजा'त के जोहर दिखाएं, आप दुश्मनों के साथ भी हुस्ने सुलूक से पेश आते थे, इसकी बहुत सी निसाले तारीख की कुतुब में मौजूद हैं, पहले तीनों खुल्फा के आप मुशीर रहे, तीनों आपसे मशवरा लिया करते थे,

★_ आपके 17 लड़कियां और 14 लड़के पैदा हुए, उनमें से हजरत हसन, हजरत हुसैन, मुहम्मद बिन हनफिया रजियल्लाहु अन्हुम से सिलसिला नस्ल चला, अल्लाह ताला की आप पर बेशुमार रहमते नाज़िल हों _,
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 *"_ बैत हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु _,*

★_ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से वफात से पहले पूछा गया कि क्या आप के बाद हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ पर बैत की जाए ? जवाब में आप ने फरमाया - मैं अपने हाल में मशगूल हूं, तुम जिसे पसंद करो उसके हाथ पर बैत कर लेना _,"

★_ आपके इस जुमले से लोगों ने ख्याल किया कि आपने हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु से बैत की इजाज़त दी है, चुंनाचे लोग हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आए, सबसे पहले क़ैस बिन साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने बैत के लिए हाथ बढ़ाया, उसके बाद दूसरे लोग आगे आते रहे और बैत करते रहे, हजरत हसन रजियल्लाहु अन्हू बैत लेते वक्त कहते थे मेरे कहने पर अमल करना जिससे मैं जंग करूं तुम भी उससे जंग करना और जिससे मैं सुलह करूं तुम भी उससे सुलह करना _,"

★_ दूसरी तरफ हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की वफात के बाद हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने लिए अमीरुल मोमिनीन का लक़ब अख्त्यार किया और हजरत हसन अली रज़ियल्लाहु अन्हु को पैगाम भेजा - सुलह जंग से बेहतर है और बेहतर यही है कि आप मुझे खलीफा तस्लीम करके मेरे हाथ पर बैत कर लें _," 

★_ इस मौक़े पर खारजियों और मुनाफ़िक़ों ने यह बात मशहूर कर दी कि हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु से सुलह करना चाहते हैं, अगरचे ऐसी सुलह यकी़नन खैर का बाइस थी, मगर उन जालिमों ने गोया इसे एक साजिश के तौर पर मशहूर कर दिया, साथ ही उन्होंने हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु पर कुफ्र का फतवा लगा दिया,
: ★_ इस फतवे ले हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के लश्कर में हलचल मचा दी, वह दो हिस्सों में बट गए और आपस में लड़ने लगे, यहां तक कि कुछ लोग हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के खेमे में भी घुस आए और आपका लिबास पकड़कर खींचने लगे यहां तक कि आपका लिबास तार तार हो गया, वह लोग आप की चादर और खेमें की हर चीज़ लूट कर ले गए,

★_ इन हालात में हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु ने क़बीला रबिया और हमदान को आवाज़ दी, यह दोनों क़बीले आपकी मदद को आए और शर पसंदो को आपके पास से हटाने में कामयाब हो गए, इस तरह शोर शराबा खत्म हो गया,

★_ इसके बाद आप मदाइन की तरफ जा रहे थे कि एक खारजी जराह बिन क़ुबैस ने आप पर नेज़े से का वार किया, नेज़ा आपकी रान पर लगा, आपको उठाकर मदाइन में लाया गया, आपके ज़ख्मों का इलाज किया गया और आखिर ज़ख्म ठीक हो गया।

★_ इन हालात का जायज़ा लेने के बाद हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु ने हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहू अन्हू से सुलह करने का फैसला कर लिया, आपने हजरत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को पैगाम भेजा - मैं सुलह करने और आपके हाथ पर बैत करने के लिए तैयार हूं, अगर आप मेरी चंद शर्तें मान लें _,"
: ★_ सुलह की शराइत आपने अब्दुल्लाह बिन आमिर के हाथ रवाना की, अब्दुल्लाह बिन आमिर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के पास पहुंचे और यह शराइत बयान की, साथ ही अपनी तरफ से यह शर्त भी पेश कर दी कि, जब आप फौत हो जाएं तो खिलाफत के हक़दार हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु होंगे और जब तक आप ज़िंदा हैं हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को हर साल 5 लाख दिरहम सालाना बेतूलमाल से भेजते रहेंगे, एक शर्त यह है कि इलाका़ अहवाज़ और फारस का खराज हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को मिला करेगा _,"

★_ यह शराइत सुन कर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - मुझे यह सब शराइत मंजूर है और अगर हसन रज़ियल्लाहु अन्हु कुछ और शराइत भी पेश करेंगे तो मैं वह भी मंजूर करूंगा क्योंकि उनकी नियत नेक है और वह मुसलमानों में सुलह के ख्वाहिशमंद नज़र आते हैं _,"

★_ यह कहकर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक सादा कागज पर अपनी मुहर लगाई और अब्दुल्लाह बिन आमिर को देते हुए फरमाया - यह कागज हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु के पास ले जाओ और उनसे कह दो जो शराइत चाहें इस कागज पर लिख दें, मैं तमाम शराइत मानने के लिए तैयार हूं _,"

★_ हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु अपने वालिद मोहतरम के ज़माने से हालात को देखते चले आ रहे थे, वह आपस कि जंगों से बेजा़र थे, चुनांचे अब्दुल्लाह बिन आमिर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के दस्तखत और मोहर वाला कागज़ लेकर आप की खिदमत में आए, आपने उन शराइत को पढ़ा तो नाराज़ हो गए और फरमाया - मुझे यह शर्त हरगिज पसंद नहीं कि हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद मै खलीफा बनाया जाऊं, अगर मुझे खिलाफत की ख्वाइश होती तो मैं इस वक्त ही क्यों इसे छोड़ने पर तैयार होता _," यह फरमाने के बाद आपने कातिब को बुलाया और सुलह नामा लिखने का हुक्म दिया ,
: ★_ "_यह सुलह नामा हसन बिन अली बिन अबी तालिब और मुआविया बिन अबी सुफियान के दरमियां लिखा जाता है, दोनों इन बातों पर रजामंद हो गए हैं , खिलाफत हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द की गई, उनके बाद मसलेहत के तहत जिसे चाहेंगे खलीफा बना लेंगे, हजरत अमीर मुआविया मुसलमानों के हाथ से तमाम मुसलमान मेहफूज रहेंगे, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु के तरफदारों को कुछ भी नहीं कहेंगे_," 

★_ हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु को जब यह मुआहिदा मिला तो आप बहुत खुश हुए, आपने उसे बा खुशी मंजूर फरमाया, फिर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुफा की मस्जिद में पहुंचकर हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हू से बैत ली, कूफा वालों ने भी आपकी बैत कु _,"

★_ बैत के बाद हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु ने लोगों को खुतबा दिया, उसके अल्फाज़ यह हैं , "_मैं मुसलमानों में फितने को बहुत मकरूह समझता हूं, अपने जद्दे अमजद की उम्मत में से फितने फसाद को दूर करने और मुसलमानों की जान व माल महफूज़ करने के लिए मैंने हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु से सुलह की है और उन्हें अपना अमीर और खलीफा तस्लीम किया है, अगर इमारत और खिलाफत उनका हक़ था तो उन्हें पहुंच गया और अगर यह मेरा हक़ था तो मैने यह हक़ उन्हें बख्श दिया _,"

★_ इस सुलह के बाद तमाम मामलात तैय हो गए और इस तरह आन हजरत सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की वह पेशगोई पूरी हुई जिसमें आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया था - मेरा यह बेटा सरदार है और अल्लाह ताला इसके ज़रिए मुसलमानों के दो गिरोहों में सुलह करा देगा,
★_हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु यह खुतबा देकर मिंबर से नीचे उतरे तो हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया - ऐ अबु मुहम्मद ! आज आपने ऐसी जवांमर्दी और बहादुरी दिखाई है कि आज तक कोई नहीं दिखा सका_,"

★_ यह सुलह हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की शहादत के 6 माह बाद 41 हिजरी में हुई, इसलिए 41 हिजरी को आमुल जमात ( जमात का साल) कहा गया, सुलह के मुकम्मल होने पर हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु कूफा से दमिश्क की तरफ रवाना हो गए, हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु जब तक ज़िंदा रहे हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु उनके साथ निहायत इज़्ज़त और अहतराम से पेश आते रहे,

★_ सुलह के नतीजे में हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु पूरे आलम ए इस्लाम के खलीफा हो गए और क़रीब क़रीब सभी हजरात ने हजरत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत को तसलीम कर लिया उनके हाथ पर बैत कर ली, इस सुलह के बाद हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु कूफा की सकुनत छोड़कर मदीना मुनव्वरा आ गए और बाक़ी ज़िंदगी आपने मदीना मुनव्वरा ही में बसर फरमाई,

★_ आप की वफात 50 हिजरी या 51 हिजरी में हुई, कहा जाता है कि हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को कुछ साजिश करने वालों ने ज़हर दिया था, आपको आपकी वाल्दा माजिदा सैयदा फातिमा अज़ ज़ोहरा रज़ियल्लाहु अन्हा खातूने जन्नत के पहलू में दफन किया गया, आपके 9 बेटे और 6 बेटियां थी, हजरत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु को अल्लाह ताला ने वह मर्तबा अता फरमाया कि उनके ज़रिए मुसलमानों की आपस की खाना जंगियों का 10 साल का सिलसिला खत्म हुआ, अल्लाह ताला की उन पर बेशुमार रहमते नाजि़ल हों, आमीन सुम्मा आमीन _,

*"★_ अल्हम्दुलिल्लाह ! खिलाफत ए रशीदा मुकम्मल हुआ, हमने लिखने में बहुत एहतियात से काम लिया है फिर भी बसर हूं कहीं ना कहीं कोई चूक हो गई हो कोई गलती हमसे हो गई हो तो हम अल्लाह ताला से माफी व तौबा के तलबगार हैं, साथ ही आप सभी मेंबर्स के शुक्रगुजा़र हैं कि आपने सीरतुन नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम और खिलाफत ए राशिदा रज़ियल्लाहु अन्हुम और भी दीगर उनवान पर लिखने में हमारी हमेशा हौसला अफज़ाई की, अल्लाह ताला से दुआ है अल्लाह आप सभी हजरात को जजा़ ए खैर दे और हमारी इन कोशिशों को क़ुबूल फरमाए, आमीन सुम्मा आमीन _,"*
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 *📕_ Khilafate Rashida _Qadam Ba Qadam ( Writer- Abdullah Farani ), 
 *📕_ खिलाफते राशिदा _ क़दम बा क़दम (मुसन्निफ- अब्दुल्लाह फारानी)- *
 ╨─────────────────────❥ _ *✍🏻 Haqq Ka Daayi_*
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